डॉ. दीपशिखा जोशी
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं रोज़ खाऊंगा चिकन-मटन
और पशु-बलि पर उनको भी गरियाऊंगा
मुझे चाहिए अपने घर पर सुंदर, लकड़ी के फ़र्नीचर,
काट-कटा कर जंगल बड़े-बड़े घर-बिल्डिंग बनवाऊंगा
मगर रोज़ शाम-सबेरे गो-ग्रीन का नारा मैं ही लगाऊंगा,
हरे-भरे पेड़ों के संग भी डीपी अपनी सजाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं निकल शाम-अंधेरे में, चोरों वाले रास्ते से,
उन सुनसान सड़कों पर, दबे-पांव,
गंदगी से भरा एक थैला रोज़ ही छोड़कर आऊंगा
और सोते-जागते हर पल देश की स्वच्छता पर,
अभियान पर, सरकार पर चिल्लाऊंगा
जब भी देखूं मनचलों को ट्रेन,बस, या भीड़ में,
करते परेशान एक लड़की को,
फेर मुंह, अनजान बन, अपने रास्ते नए बनाऊंगा
पर हां साथ ही घर लौटकर,
अपनी बेटी के अकेले कहीं
आने-जाने पर पाबंदियां ज़रूर लगाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मुझे चाहिए मेरे घर एक बेटा कैसे भी,
पर मैं साथ ही ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी लगाऊंगा
मैंने देकर बख्शीश उनको,
लेकर दीवाली की मिठाई,
अपना-उनका काम तो पक्का ही किया,
अब साथ ही करप्शन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा,
भाषण दे, अपना धर्म भी निभाऊंगा
हो सके तो इस मुद्दे पर सरकारें भी गिराऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं करूंगा नफ़रत उनसे, दिल से, दिमाग़ से,
मगर मर जाऊंगा,
ज़ुबान पर यदि धर्म, जाति-पाति का नाम भी कभी लाऊंगा
ना मैं अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करने में हूं समर्थ,
ना करता कोशिश हूं,
पर याद रखना मैंने भी किया विरोध हमेशा उनको वृद्धाश्रम भेजने का
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा.
मैं करता हूं विरोध दहेज प्रथा का सदा-सर्वदा,
मगर बेटी के जन्म से ही,
अपना पेट काट-काट, पाई-पाई जुटाऊंगा
ख़ूब पढ़ाऊंगा बेटी को, और लड़ना भी सिखाऊंगा
पर शादी के समय, पगड़ी रख पैरों पर उनके,
हाथ जोड़, 2-4 आंसू भी बहाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
डॉ. दीपशिखा जोशी मूल रूप से उत्तराखंड के चंपावत ज़िले से हैं। DSB कैंपस, कुमाऊं यूनिवर्सिटी, नैनीताल से केमिस्ट्री में पीएचडी व NET क्वालिफाइड हैं। पढ़ने-पढ़ाने का काम करती हैं।