हाईकोर्ट पहुंचा उत्तरकाशी मस्जिद विवाद, मुस्लिम समुदाय ने कर दी ये मांग..
उत्तराखंड: उत्तरकाशी मस्जिद विवाद एक बार फिर से चर्चाओं में है। अब ये मामला नैनीताल हाईकोर्ट पहुंच गया है। उत्तरकाशी मस्जिद विवाद मामले में मुस्लिम समुदाय हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और मस्जिद को सुरक्षा देने की मांग की है।उत्तरकाशी में बीते दिनों मस्जिद को लेकर जमकर बवाल हुआ था। यहां तक कि जिले में धारा 163 लागू करनी पड़ी थी। इस मामले को लेकर हिंदू संगठनों में लगातार आक्रोश देखने को मिल रहा है। लेकिन अब इस मामले में मुस्लिम समुदाय हाईकोर्ट की शरण में पहुंचा और और उन्होंने इस मस्जिद को सुरक्षा देने की मांग की है। मुस्लिम समुदाय ने लोग मस्जिद को अवैध बताने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि जिस मस्जिद को अवैध बताकर इतना विरोध किया जा रहा है वो पूरी तरह से वैध है। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद को सुरक्षा देने की मांग की गई है। बता दें कि इस मामले में हाल ही में हिंदू संगठन के लोगों ने 25 नवंबर को तहसील स्तर पर ज्ञापन सौंपने और एक दिसबंर को महापंचायत करने का ऐलान किया था।
क्या है उत्तरकाशी मस्जिद विवाद ?
उत्तरकाशी के मौजा बाड़ाहाट, तहसील भटवाड़ी में एक मस्जिद है जिसे हिंदू संगठन के लोग हटाने की मांग कर रहे हैं। इसको लोकर 21 अक्टूबर को उत्तरकाशी में बाजार बंद रखे गए और एक जन आक्रोश रैली निकाली गई। इस रैली के दौरान जमकर बवाल हुआ था जिसके बाद इलाके में धारा 163 लागू कर दी गई थी।
मिली जानकारी के अनुसार इसी साल मौजा बाड़ाहाट, तहसील भटवाड़ी में स्थित मस्जिद को लेकर एक आरटीआई फाइल की गई। जिसके जवाब में प्रशासन ने कहा कि इस मस्जिद से जुड़े कागजात नहीं है। इसके बाद से ही हिंदू संगठन के लोगों ने इस मस्जिद को हटाने की मांग शुरू की। इस मस्जिद को गिराने के लिए उत्तरकाशी के डीएम को एक ज्ञापन भी सौंपा गया। जिसके बाद हिंदूवादी संगठन के सदस्य 6 सितंबर को मस्जिद गिराने की मांग को लेकर डीएम कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गए। हिंदूवादी संगठन के सदस्यों ने प्रशासन को तीन दिना का अल्टीमेटम दिया था कि अगर उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो वो खुद मस्जिद को धवस्त कर देंगे। जिसके बाद जिलाधिकारी ने इस पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया। कमेटी ने जांच के बाद जो रिपोर्ट प्रस्तुत की उसमें बताया गया था कि ये मस्जिद वैद्य है। जिस जमीन पर मस्जिद बनी है वो सरकारी नहीं है। प्रशासन ने इन संगठनों को ये जानकारी भी दी लेकिन संगठन इसे मानने को तैयार नहीं हैं और अब भी इसे हटाने की मांग कर रहे हैं।