“संस्कारों की सुबह”– धामी सरकार का नया फैसला, प्रार्थना सभा में अब अनिवार्य होगा गीता पाठ
देहरादून। शिक्षा से जुड़े एक ऐतिहासिक निर्णय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार ने राज्य के सभी स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान भगवद गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य कर दिया है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि “गीता का संदेश न केवल धार्मिक, बल्कि जीवन की जटिलताओं में मार्गदर्शन करने वाला दर्शन है। यह विद्यार्थियों को न केवल पढ़ाई में बल्कि उनके व्यक्तित्व, सोच और आचरण में सकारात्मक बदलाव लाएगा।”
क्या होगा इस निर्णय के तहत.?
हर स्कूल में प्रतिदिन की प्रार्थना सभा में गीता के चयनित श्लोकों का पाठ होगा।
श्लोकों के साथ उनका सरल अर्थ और व्याख्या भी विद्यार्थियों को समझाई जाएगी।
शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर, शिक्षकों को इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
सरकार का उद्देश्य :-
नैतिकता, अनुशासन, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को शिक्षा से जोड़ना।
भावनात्मक विकास और आत्मबोध को शिक्षा प्रणाली में समाहित करना।
छात्रों को एक बेहतर इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनाना।
मुख्यमंत्री धामी का साफ़ कहना है —
“यह कोई धार्मिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।”
शिक्षाविदों और अभिभावकों ने इस फैसले का स्वागत किया है। लेकिन एक बात स्पष्ट है उत्तराखंड अब शिक्षा को केवल किताबों तक नहीं, बल्कि संस्कारों तक पहुँचाने की दिशा में एक ठोस कदम उठा रहा है।
जागेश्वर धाम बनेगा सांस्कृतिक विरासत का नया केंद्र, ₹146 करोड़ की परियोजना स्वीकृत
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जागेश्वर मंदिर समिति द्वारा आयोजित श्रावणी मेले 2025 के शुभारंभ अवसर पर वर्चुअल माध्यम से प्रतिभाग करते हुए सभी श्रद्धालुओं एवं आयोजकों को मेले की शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जागेश्वर धाम देवभूमि उत्तराखंड की पौराणिक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि श्रावणी मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह हमारी लोक आस्था, परंपराओं एवं सांस्कृतिक मूल्यों का जीवंत प्रतीक भी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सांस्कृतिक विरासत के पुनरुत्थान का अमृतकाल चल रहा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकाल लोक तथा केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम के पुनर्निर्माण इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार मानसखंड मंदिर माला मिशन के अंतर्गत कुमाऊं के प्रमुख धार्मिक स्थलों के संरक्षण एवं विकास के लिए प्रतिबद्ध है। जागेश्वर मास्टर प्लान के प्रथम चरण में ₹146 करोड़ की स्वीकृति दी जा चुकी है। दूसरे चरण की विकास परियोजनाएं भी स्वीकृत हो चुकी हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जनपद अल्मोड़ा में कोसी नदी के किनारे 40 किमी का साइकिल ट्रैक, शीतलाखेत को ईको टूरिज्म, द्वाराहाट और बिनसर को आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाने के लिए कार्यरत है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड ने सतत विकास लक्ष्यों में देश में पहला स्थान प्राप्त किया है। राज्य में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से कम हुई है। पिछले चार वर्ष में 24 हजार से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी प्रदान की गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हेतु सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून, समान नागरिक संहिता और ऑपरेशन कालनेमी जैसे कठोर कदम भी उठाए गए हैं।
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, विधायक मोहन सिंह मेहरा, उपाध्यक्ष मंदिर प्रबंधन समिति नवीन भट्ट, जिलाधिकारी अल्मोड़ा आलोक कुमार पांडेय, मुख्य विकास अधिकारी रामजी शरण शर्मा मौजूद थे।
नौलों-धारों के संरक्षण लिए जलागम ने बनाया ‘भगीरथ एप’
जलागम मंत्री ने हरेला पर किया वृक्षारोपण, “जलागम दर्पण” पत्रिका का भी किया लोकार्पण
देहरादून। हमारी सरकार उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संसाधनों और यहां की हरियाली के संरक्षण के लिए अत्यंत गंभीर है। इसके लिए हर स्तर प्रयास किए जा रहे हैं। जलागम विभाग द्वारा भी केन्द्र पोषित ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलागम घटक 2.0’ तथा विश्व बैंक वित्त पोषित उत्तराखण्ड जलवायु अनुकूल बारानी कृषि परियोजना के माध्यम से हरियाली और पानी को संरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं।
उक्त बात प्रदेश के जलागम, पर्यटन, धर्मस्व, संस्कृति, पंचायतीराज, लोक निर्माण, सिंचाई एवं ग्रामीण निर्माण, मंत्री सतपाल महाराज ने बुधवार को इंदिरानगर स्थित जलागम निदेशालय परिसर में लोक पर्व हरेला पर वृक्षारोपण करने के पश्चात आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कही। उन्होंने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हरेला पर्व उत्तराखण्ड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण लोकपर्व है। यह पर्व प्रकृति और हरियाली के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारी का एहसास करवाता है। हर वर्ष श्रावण मास में मनाया जाने वाला यह लोकपर्व नई फसलों की शुरूआत का प्रतीक है। यह सामाजिक सद्भाव के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जलागम एवं संस्कृति मंत्री महाराज ने कहा कि प्रदेश सरकार उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संसाधनों और यहां की हरियाली के संरक्षण के लिए अत्यंत गंभीर है और इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। हमारी वनस्पतियों और पेड-पौधों के कारण ही पानी संरक्षित होता है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जलागम विभाग द्वारा केन्द्र पोषित ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जलागम घटक 2.0’ तथा विश्व बैंक वित्त पोषित उत्तराखण्ड जलवायु अनुकूल बारानी कृषि परियोजना के माध्यम से हरियाली और पानी को संरक्षित करने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। जलागम मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में जलागम विभाग के अंतर्गत ‘स्प्रिंग एण्ड रिवर रिजुविनेशन एथॉरिटी (सारा) का गठन भी किया गया है। इसके अंतर्गत नौलों और धारों के संरक्षण में सभी प्रदेशवासियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ‘भगीरथ एप’ बनाया गया है। इसके माध्यम से वह अब तक पाँच हजार से अधिक जलस्रोत चिन्हित किए जा चुके हैं।
महाराज ने कहा कि प्रदेश को हरा भरा करने के लिए जलागम और पंचायतीराज विभाग को साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि हमारे जलस्रोत पुनर्जीवित हो लोक पर्व हरेला को मनाने का उद्देश्य पूरा हो सकें। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जीवन में वृक्षों के महत्व को जन-जन तक पहुँचाने के लिए “एक वृक्ष माँ के नाम जैसे अभियान का शंखनाद किया है जो भावनात्मक रूप से हम सभी को धरती की हरियाली से जोड़ता है। महाराज ने कार्यक्रम के दौरान जलागम द्वारा प्रदेश में किए गये कार्यों पर आधारित पत्रिका “जलागम दर्पण” का भी लोकार्पण किया।
इस अवसर पर विधायक सविता कपूर, जलागम सचिव दिलीप जावलकर, परियोजना निदेशक डॉक्टर हिमांशु खुराना, डॉक्टर एस के डिमरी, डॉक्टर एस के सिंह, नवीन सिंह बरफाल, डॉ मीनाक्षी जोशी, दीपचंद सहित जलागम के अनेक कर्मचारी एवं अधिकारियों उपस्थित थे।
भारत में समोसा सिर्फ एक नाश्ता नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और भावनाओं से जुड़ा हुआ एक स्वाद है। दोस्तों के साथ चाय की चुस्की हो या बरसात की फुहारें—गरमागरम समोसा हर मौके को खास बना देता है। गली-मोहल्लों से लेकर ऑफिस कैफेटेरिया तक, समोसे की लोकप्रियता हर वर्ग में देखी जा सकती है।
लेकिन क्या आपने कभी इस लाजवाब स्वाद के पीछे छिपे स्वास्थ्य के खतरे पर ध्यान दिया है? अकसर हम इसकी कुरकुरी परत और चटपटे मसाले के स्वाद में इस कदर उलझ जाते हैं कि इसके नकारात्मक असर को नजरअंदाज कर देते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक तेल में तले जाने और मैदे के उपयोग के कारण समोसा हाई कैलोरी, ट्रांस फैट और अनहेल्दी कार्ब्स से भरपूर होता है। नियमित सेवन से यह मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। आइए अब जानते हैं कि समोसा हमारी सेहत के लिए क्यों नुकसानदायक है, ताकि आप समझदारी से इसका सेवन कर सकें।
डीप फ्राई: अनहेल्दी फैट का मुख्य कारण
समोसे को स्वादिष्ट होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है कि उसे डीप फ्राई किया जाता है। ज्यादातर जगहों पर समोसे को बार-बार गर्म किए गए तेल में तला जाता है। बार-बार गरम करने से तेल में ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट की मात्रा बढ़ जाती है।
ये दोनों ही प्रकार के फैट हमारे हृदय स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। ये न केवल शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं, बल्कि अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं, जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा काफी बढ़ जाता है।
मैदा का उपयोग और पाचन पर असर
समोसे की बाहरी परत मैदा से बनी होती है। मैदा बनाने की प्रक्रिया में गेहूं से चोकर और रोगाणु निकाल दिए जाते हैं, जिससे उसमें फाइबर और पोषक तत्वों की भारी कमी हो जाती है। फाइबर की कमी के कारण मैदा आसानी से पचता नहीं है और पेट में भारीपन, कब्ज और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
इसके अलावा, मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जिसका मतलब है कि यह ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ाता है और फिर अचानक गिराता है, जिससे भूख जल्दी लगती है और एनर्जी लेवल अस्थिर रहता है। यह खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है।
हाई कैलोरी और कम पोषण
समोसे में मौजूद आलू का भरावन और मैदे की तली हुई परत, इसे कैलोरी का पावरहाउस बना देती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और फैट भरपूर मात्रा में होते हैं, लेकिन प्रोटीन, विटामिन और खनिज जैसे जरूरी पोषक तत्व बहुत कम या न के बराबर होते हैं।
समोसा एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो आपको ऊर्जा तो देता है, लेकिन कोई खास पोषण नहीं देता। इसका नियमित सेवन मोटापा, और मोटापे से जुड़ी अन्य बीमारियों, जैसे डायबिटीज और हृदय रोग, का सीधा कारण बनता है।
स्वच्छता और अन्य छिपे हुए जोखिम
सड़क किनारे या छोटी दुकानों पर बिकने वाले समोसे में स्वच्छता की कमी की वजह से अधिक नुकसानदायक हो सकते हैं। जूस बनाने में गंदे बर्तन, दूषित पानी या सही तरीके से न ढंके गए समोसे पर बैक्टीरिया और कीटाणु आसानी से पनपने लगते हैं। यह पेट के संक्रमण, डायरिया, फूड पॉइजनिंग जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है।
कितना समोसा खाना चाहिए?
बहुत से लोगों के दिमाग में ये सवाल होता है कि एक स्वस्थ इंसान को कितना समोसा खाना चाहिए? विशेषज्ञों के मुताबिक 1 सप्ताह में एक समोसा आपके सेहत के लिए कम नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए अगली बार जब समोसा खाने का मन करे, तो अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए इसका सेवन सीमित मात्रा में करें या घर पर स्वस्थ तरीके से बनाने का विकल्प चुनें।
(साभार)
सीएम सरमा बोले-‘जो खुद जमानत पर हैं, वो दूसरों को जेल भेजेंगे?’
असम। असम की राजनीति में बयानबाजी ने नया मोड़ ले लिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक कथित बंद कमरे वाले बयान को लेकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी के इस बयान में सरमा को जेल भेजने की बात कही गई थी, जिसे लेकर मुख्यमंत्री ने एक्स पर पलटवार करते हुए इसे राजनीतिक दुर्भावना करार दिया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में असम दौरे पर थे, जहां उन्होंने पार्टी की राज्य स्तरीय राजनीतिक मामलों की समिति के साथ एक बंद बैठक की। इस दौरान मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कथित रूप से कहा कि “लिखकर ले लीजिए, हिमंत बिस्वा सरमा को जेल भेजा जाएगा।”
इस बयान को लेकर मुख्यमंत्री सरमा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पलटवार करते हुए कहा कि राहुल गांधी खुद कई आपराधिक मामलों में जमानत पर हैं और अब दूसरों को जेल भेजने की बात कर रहे हैं। उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए तंज कसा—”असम की मेहमाननवाजी का आनंद लीजिए, आप सिर्फ मुझे जेल भेजने की बात करने के लिए आए हैं?”
मुख्यमंत्री ने इस बयान को राजनीतिक मंच का दुरुपयोग और व्यक्तिगत प्रतिशोध की भावना से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की टिप्पणियां लोकतांत्रिक विमर्श को कमजोर करती हैं।
इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। कांग्रेस जहां असम सरकार को भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोपों में घेर रही है, वहीं भाजपा कांग्रेस पर परिवारवाद और कानून उल्लंघन के आरोप लगा रही है।
मुख्यमंत्री सरमा ने राहुल गांधी पर दर्ज मामलों का भी जिक्र किया, जिसमें सबसे प्रमुख “मोदी सरनेम” टिप्पणी वाला मानहानि का केस है। इस मामले में राहुल को दो साल की सजा सुनाई गई थी, हालांकि बाद में उन्हें जमानत मिल गई। इसके अलावा, राहुल गांधी पर अन्य कानूनी मामले भी लंबित हैं।
5 दिन में सिर्फ 1.56 करोड़ कमा पाई फिल्म
इस साल कई स्टारकिड्स ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन अधिकतर की पहली फिल्में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकीं। अमन देवगन, राशा थडानी और जुनैद खान की डेब्यू फिल्मों ने जहां बॉक्स ऑफिस पर फीका प्रदर्शन किया, वहीं शनाया कपूर की पहली फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ की हालत सबसे खराब नजर आ रही है। रिलीज के पहले दिन से ही फिल्म दर्शकों को लुभाने में असफल रही है।
कमजोर शुरुआत, फीका वीकएंड
11 जुलाई को रिलीज हुई ‘आंखों की गुस्ताखियां’ को दर्शकों ने पहले ही दिन से नकार दिया। फिल्म ने ओपनिंग डे पर महज 30 लाख रुपये का कारोबार किया। शनिवार और रविवार को भी कलेक्शन कुछ खास नहीं रहा – दोनों दिन करीब 50-50 लाख रुपये का कलेक्शन हुआ।
हफ्ते की शुरुआत में और गिरी फिल्म
सोमवार को फिल्म के कलेक्शन में भारी गिरावट देखी गई, जब यह मात्र 15 लाख रुपये तक सिमट गया। मंगलवार यानी पांचवें दिन का हाल और भी बुरा रहा – सिर्फ 11 लाख रुपये की कमाई हुई। कुल मिलाकर पांच दिन में फिल्म ने सिर्फ 1.56 करोड़ रुपये का कारोबार किया है।
जबरदस्त टक्कर में पिछड़ी फिल्म
फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर दो मजबूत प्रतिद्वंद्वियों से टक्कर मिली – राजकुमार राव की ‘मालिक’ और हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर ‘सुपरमैन’ ने शनाया की फिल्म की संभावनाओं को और कमज़ोर कर दिया।
कहानी नहीं जोड़ पाई दर्शकों से कनेक्शन
संतोष सिंह के निर्देशन में बनी इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म में विक्रांत मैसी और शनाया कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं। लेकिन कमजोर कहानी और साधारण प्रस्तुति के चलते फिल्म दर्शकों से जुड़ नहीं पाई। ‘आंखों की गुस्ताखियां’ फिलहाल बॉक्स ऑफिस पर अंतिम सांसें लेती नजर आ रही है।
(साभार)
प्रदेश में हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ” थीम पर किया गया पौधा रोपण
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला के पावन अवसर पर गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज परिसर, देहरादून में “हरेला का त्योहार मनाओ, धरती माँ का ऋण चुकाओ” थीम पर आयोजित राज्यव्यापी पौधारोपण कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए समस्त प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर उन्होंने रुद्राक्ष का पौधा रोपा ।
हरेला हमारी संस्कृति और चेतना का पर्व है
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और चेतना से जुड़ा एक गहरा भाव है, जो हमें पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। उन्होंने बताया कि हरेला पर्व के दिन लगभग 5 लाख पौधे रोपे जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग के प्रत्येक डिवीजन में 50 प्रतिशत फलदार पौधे लगाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। उन्होंने कहा कि इस महाभियान में सरकार द्वारा जनसहभागिता, स्वयंसेवी संगठनों, छात्र-छात्राओं, महिला समूहों और पंचायतों का सहयोग लिया जा रहा है।
पेड़ बनना ही पौधारोपण की सच्ची सफलता
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लगाए गए पौधों की नियमित देखभाल की जाए, जब तक वे वृक्ष का रूप न ले लें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से समृद्ध राज्य है, जिसकी रक्षा करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है।
प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण को नया आयाम
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे ‘पंचामृत संकल्प’, ‘नेट ज़ीरो इमिशन’, ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे अभियानों का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य सरकार भी इन्हीं मूल्यों को आत्मसात करते हुए कार्य कर रही है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष देशभर में 108 करोड़ पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
जल स्रोतों के संरक्षण हेतु ठोस पहल: SARRA का गठन
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी (SARRA)’ का गठन किया गया है। इसके माध्यम से अब तक 6,500 से अधिक जल स्रोतों का संरक्षण और 3.12 मिलियन घन मीटर वर्षा जल का संचयन किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है और वाहनों में कूड़ेदान अनिवार्य कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से आह्वान किया कि वे अपने जीवन के विशेष अवसरों पर एक पौधा अवश्य लगाएं और उसकी देखभाल करें, जिससे पर्यावरण संरक्षण को जनांदोलन बनाया जा सके।
कृषि मंत्री गणेश जोशी और वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी दी शुभकामनाएं
कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड में श्रावण मास में हरेला पूजन के उपरांत वृक्षारोपण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो हमारी सांस्कृतिक चेतना और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का प्रमाण है। हरेला पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा करना केवल दायित्व नहीं, बल्कि एक पुनीत कर्तव्य है।
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि लोकपर्व हरेला प्रदेश के 2,389 स्थानों पर मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में हरेला पर्व पर लगाए गए पौधों का सर्वाइवल रेट 80 प्रतिशत से अधिक रहा है। उन्होंने जल स्तर में हो रही गिरावट को गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा कि इसके लिए हमें पौधारोपण एवं जलधाराओं के संरक्षण हेतु निरंतर प्रयास करने होंगे।
इस अवसर पर विधायक श्रीमती सविता कपूर, खजान दास, देहरादून के मेयर सौरभ थपलियाल, मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन, प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु, पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ, प्रमुख वन संरक्षक समीर सिन्हा सहित वन विभाग के अधिकारीगण उपस्थित रहे।
भगवा रंग में रंगी धर्मनगरी, हर-हर महादेव के नारों से गूंजा वातावरण
अब तक 80 लाख से अधिक शिवभक्त लौटे गंतव्य की ओर
हरिद्वार। श्रावण मास की शुरुआत के साथ ही कांवड़ यात्रा ने रफ्तार पकड़ ली है। पहले ही सप्ताह में आस्था का जनसैलाब हरिद्वार से लेकर गंगनहर पटरी और नेशनल हाईवे तक उमड़ पड़ा है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के बीच धर्मनगरी पूरी तरह शिवमय हो गई है। पुलिस प्रशासन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 10 जुलाई से लेकर मंगलवार शाम 6 बजे तक कुल 80 लाख 90 हजार कांवड़ यात्री हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने गंतव्य की ओर लौट चुके हैं।
हालांकि, कांवड़ मेले की औपचारिक शुरुआत 11 जुलाई से मानी जा रही है, लेकिन श्रद्धालु उससे पहले ही हरिद्वार पहुंचने लगे थे। सोमवार शाम 6 बजे से मंगलवार शाम 6 बजे के बीच ही करीब 31 लाख श्रद्धालुओं ने हर की पैड़ी और अन्य घाटों से गंगाजल भरा।
हरिद्वार की सड़कें, गंगनहर किनारे की पटरी और हाईवे शिवभक्तों की कतारों से भर चुके हैं। भगवा वस्त्रधारी शिवभक्तों के “बोल बम”, “हर-हर महादेव” और “बम बम भोले” के जयघोष से संपूर्ण वातावरण गूंज रहा है।
भीड़ को नियंत्रित करने और यातायात व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और प्रशासन पूरी सतर्कता के साथ तैनात है। श्रद्धा और सुरक्षा दोनों को संतुलित रखने की चुनौती को प्रशासन अब तक बखूबी संभाल रहा है।
शिक्षक संघ ने कहा—सभी धर्मों का सम्मान जरूरी, किसी एक ग्रंथ को थोपना अनुचित
देहरादून। उत्तराखंड में प्रार्थना सभा के दौरान स्कूलों में भगवद गीता के श्लोक पढ़ाने के निर्देश का एससी-एसटी शिक्षक संघ ने विरोध किया है। संघ का कहना है कि यह कदम भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ है और शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक तटस्थता को कमजोर करता है।
शिक्षा निदेशक को सौंपा गया ज्ञापन
एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखते हुए इस निर्देश को तत्काल वापस लेने की मांग की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 28(1) के अनुसार, सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों को प्रार्थना सभा में अनिवार्य रूप से पढ़ाना न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि इससे विद्यार्थियों के बीच भेदभाव की भावना भी पनप सकती है।
समावेशी शिक्षा पर असर
एसोसिएशन का तर्क है कि सरकारी स्कूलों में सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के छात्र अध्ययन करते हैं, ऐसे में किसी एक धर्म विशेष के ग्रंथ को प्राथमिकता देना शिक्षा की समावेशी प्रकृति के विपरीत है। संघ ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक सोच और समानता को बढ़ावा देना होना चाहिए, न कि धार्मिक मान्यताओं को थोपना।
निर्देश वापसी की मांग
शिक्षक संघ ने चेतावनी दी कि यदि इस आदेश को जल्द वापस नहीं लिया गया, तो वह राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर होंगे। संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों का अपमान नहीं, बल्कि संविधान सम्मत और समावेशी शिक्षा प्रणाली की रक्षा करना है।
मानेकशॉ सेंटर में रक्षा स्वदेशीकरण पर खास प्रदर्शनी
नई दिल्ली। सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को स्पष्ट किया कि 10 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान की ओर से ड्रोन और हथियारबंद तकनीकों का प्रयोग किया गया, लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों की तत्परता के चलते कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। इस ऑपरेशन ने ड्रोन हमलों से निपटने में स्वदेशी तकनीकों की अहमियत को रेखांकित किया।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने मानेकशॉ सेंटर में आयोजित एक वर्कशॉप और प्रदर्शनी के दौरान कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह साबित कर दिया है कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए विदेशी तकनीक पर निर्भर रहने की बजाय स्वदेशी समाधान विकसित करने होंगे। उन्होंने बताया कि 10 मई को हुए इस ऑपरेशन में पाकिस्तान ने निहत्थे ड्रोन और गोला-बारूद का इस्तेमाल किया, लेकिन इनमें से ज्यादातर को भारतीय सुरक्षा बलों ने सफलतापूर्वक निष्क्रिय कर दिया। कुछ ड्रोन सही हालत में जब्त भी किए गए।
जनरल चौहान ने कहा, “इस तरह के हमले दिखाते हैं कि अब समय आ गया है कि हम काउंटर-यूएएस (Counter-UAS) तकनीकों को अपने दम पर विकसित करें। यह हमारी सुरक्षा नीति का हिस्सा होना चाहिए।”
ड्रोन की भूमिका पर उन्होंने कहा कि युद्ध के परिदृश्य में ड्रोन अब एक क्रांतिकारी उपकरण बन चुके हैं। उन्होंने कहा, “ड्रोन का विकास तकनीकी रूप से भले ही क्रमिक हो, लेकिन युद्धक्षेत्र में इनका इस्तेमाल बेहद क्रांतिकारी रहा है। हमारी सेनाएं अब तेजी से इन्हें रणनीतिक अभियानों में शामिल कर रही हैं।”
प्रदर्शनी का उद्देश्य:
मानेकशॉ सेंटर में आयोजित यह प्रदर्शनी और वर्कशॉप इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ मुख्यालय और सेंटर फॉर जॉइंट वॉरफेयर स्टडीज (CENJOWS) के संयुक्त प्रयास से आयोजित की गई। इसका मकसद रक्षा क्षेत्र में आयातित तकनीकों की जगह स्वदेशी विकल्पों को बढ़ावा देना है।
इस पहल से न सिर्फ भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि घरेलू रक्षा उद्योगों को अनुसंधान और निर्माण में नई ऊर्जा भी मिलेगी। यह कदम ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को भी मजबूती प्रदान करेगा।