नरेंद्रनगर स्थित पुलिस ट्रेनिंग सेंटर (पीटीसी) में प्रशिक्षण प्राप्त कर उत्तराखंड पुलिस सेवा (यूपीएस) संवर्ग के १७ अधिकारी गुरूवार को उत्तराखंड पुलिस का हिस्सा बन गए। पीटीसी में पुलिस उपाधीक्षक आधारभूत प्रशिक्षण दीक्षांत समारोह में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले अधिकारियों को सम्मानित भी किया। सम्मानित होने वाले पुलिस उपाधीक्षकों में रीना राठोर, नताशा सिंह, अभिनय चौधरी, स्वप्निल मुयाल, सुमित पाण्डे शामिल थे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि पीटीसी में ऑडिटोरियम का निर्माण किया जायेगा। साइबर क्राइम को रोकने हेतु प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में कार्यरत प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण भत्ता देने की घोषणा भी की।
तीरथ ने प्रशिक्षण के उपरांत पास आउट होने वाले सभी पुलिस उपाधीक्षकों को बधाई देते हुए कहा कि किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दी जाने वाली शिक्षा ही प्रशिक्षण है। प्रशिक्षण कोई एक दिन में पूर्ण होने वाला वन टाइम टास्क नहीं है, अपितु उसके अनुरूप खुद को बदलना पड़ता है। प्रशिक्षण ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने पेशेवर कार्यों को तेजी व दक्षता से करने में सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षुओं को कानूनों की जानकारी के अलावा शस्त्र संचालन आदि अनेक प्रकार के जरूरी कौशल का प्रशिक्षण भी दिया गया होगा, परंतु क्षमताओं का वास्तविक आंकलन तो तभी होगा जब हम अपने सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल को अपने व्यवहारिक जीवन सही व सहज तरीके से प्रयोग करेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भविष्य में साईबर एवं डिजिटल तकनीकी के माध्यम से होने वाले आर्थिक अपराधों, साईबर अपराधों एवं सामाजिक अपराधों से निपटना पुलिस के लिए प्रमुख चुनौती है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि पुलिस अन्य अपराधों के अलावा साइबर और संगठित अपराधों पर रोक लगाकर राज्य में चौतरफा सुरक्षा का माहौल तैयार करेंगे। कोरोना संकट के इस दौर में उत्तराखण्ड पुलिस ने कई नई-नई चुनौतियों का सामना किया है।
आज पी.टी.सी. नरेन्द्र नगर, टिहरी में पुलिस उपाधीक्षक आधारभूत प्रशिक्षण दीक्षांत समारोह में शामिल हुआ।
इस दौरान प्रशिक्षणरत पुलिस उपाधीक्षकों को प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने पर बधाई दी व सम्मानित भी किया। pic.twitter.com/j3WfRd7rpR
— Tirath Singh Rawat (मोदी का परिवार) (@TIRATHSRAWAT) June 17, 2021
पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि पुलिस के सामने अनैक चुनौतियां हैं। पुलिस को नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए यह कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने कहा कि पुलिस में जन सेवक के गुण होने बहुत जरूरी हैं। हमारा मकसद पीड़ित केन्द्रित होना चाहिए। हमारा प्रयास होना चाहिए कि समाज के ऐसे लोगों को न्याय दिलाया जाए जो सुविधाओं से वंचित हैं। पुलिस के पास यूनिफार्म के साथ ही कानूनी अधिकार भी है।
इस अवसर पर कृषि मंत्री सुबोध उनियाल, अपर पुलिस महानिदेशक डॉ. पी.वी.के.प्रसाद, पुलिस महानिरीक्षक (प्रशिक्षण) पूरन सिंह रावत, निदेशक पीटीसी राजीव स्वरूप, टिहरी की जिलाधिकारी ईवा आशीष श्रीवास्तव व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक तृप्ति भट्ट आदि उपस्थित थे।
साइबर अपराध रोकने हेतु ई-सुरक्षा चक्र हेल्पलाईन नंबर 155260 का शुभारंभ
मुख्यमंत्री तीरथ ने पीटीसी में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में साइबर अपराधों में रोकने हेतु ई-सुरक्षा चक्र हेल्पलाईन नंबर 155260 का शुभारंभ किया। यह नंबर विशेषकर वित्तीय साइबर अपराधों में त्वरित सहायता के लिए है। मुख्यमंत्री ने कहा कि साईबर अपराध एक उभरती हुई चुनौती है। इस चुनौती से लड़ने हेतु उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा यह अच्छा प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस हेल्पलाईन नम्बर की जानकारी सबको हो, इसलिए इसका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाय। मुख्यमंत्री ने ई-सुरक्षा चक्र बुकलेट का विमोचन भी किया।
कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने उत्तराखण्ड पुलिस के अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि दिन-प्रतिदिन साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। इसको रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने जरूरी है। हेल्पलाईन नम्बर जारी करने वाला उत्तराखण्ड देश का तीसरा राज्य बना इसके लिए उत्तराखण्ड पुलिस बधाई की पात्र है।
इस अवसर पर जानकारी दी गई कि विगत कुछ वर्षो में साईबर अपराध के मामलो मे लगातार बढोत्तरी हुई है। वित्तीय एवं गैर वित्तीय मामले सामने आ रहे है। हाल ही मे गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पीड़ितो की त्वरित सहायता प्रदान कराने हेतु एक साईबर हेल्प लाईन नम्बर 155260 जारी किया गया है। उत्तराखण्ड देश का तीसरा राज्य बना जिसे गृह मंत्रालय से साईबर हेल्पलाईन नम्बर 155260 के संचालन की अनुमति प्राप्त हुयी। इस नम्बर पर किसी भी प्रकार के वित्तीय साईबर अपराध की सूचना दी जा सकती है तथा पीड़ित को अतिशीघ्र राहत देने का प्रयास किया जायेगा। इस नई प्रणाली के लिये स्पेशल टास्क फोर्स के अधीन साईबर क्राईम पुलिस स्टेशन में एक ई-सुरक्षा चक्र कन्ट्रोल रुम की स्थापना की गयी है।
इस अवसर पर पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार, महानिदेशक सतर्कता, वी. विनय कुमार, अपर पुलिस महानिदेशक पी.वी.के. प्रसाद, पुलिस महानिरीक्षक अमित सिन्हा, संजय गुंज्याल, पूरन सिंह सिंह रावत, मुख्तार मोहसिन, पुलिस उप महानिरीक्षक, नीलेश आनन्द भरणे आदि उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने नई दिल्ली में केंद्रीय पंचायती राज, कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से भेंट की। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम द्वारा सहायतित और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुदानित राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना में अनुमन्य अनुदान को हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड को आर्गेनिक स्टेट बनाने के लिए गम्भीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत राज्य में 10 हजार जैविक क्लस्टरों की अनुमति दी गई थी। पहले चरण में आवंटित 3900 क्लस्टरों में जैविक कृषि संबंधी कार्य पूरे कर लिए गए हैं। जिससे लगभग 78 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि को जैविक के अंतर्गत लाया गया तथा 1.5 लाख कृषकों की आय में वृद्धि हुई है। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से जैविक प्रदेश की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए स्वीकृति के सापेक्ष अवशेष 6100 क्लस्टर आवंटित करने का अनुरोध किया।
परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत राज्य में 10 हजार जैविक क्लस्टरों की अनुमति दी गई थी। पहले चरण में आवंटित 3,900 क्लस्टरों में जैविक कृषि संबंधी कार्य पूरे कर लिए गए हैं। स्वीकृति के सापेक्ष अन्य 6,100 क्लस्टर आवंटित करने का अनुरोध भी किया।
— Tirath Singh Rawat (मोदी का परिवार) (@TIRATHSRAWAT) June 15, 2021
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा ट्रूथफूल बीज (टी.एल. सीड्स) खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत अनुदान पर वितरित करने की अनुमति प्रदेश को दी गई थी। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में बीजों पर अनुदान अनुमन्य करने एवं गुणवत्तायुक्त बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए वर्ष 2021-22 में भी ट्रुथफूल बीजों पर प्रमाणित बीजों के समकक्ष अनुदान दिए जाने का भी आग्रह मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत राजकीय क्षेत्र के सुदृढ़ीकरण के लिए वर्ष 2021-22 की 280 करोड़ रूपए परिव्यय की अतिरिक्त कार्ययोजना बनाई गई है। केंद्र से इसकी स्वीकृति की जानी है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत 16472 के लक्ष्य का आवंटन ग्राम पंचायतवार एवं श्रेणीवार ‘आवास साॅफ्ट’ में कराने का अनुरोध किया।
केंद्रीय मंत्री तोमर ने मुख्यमंत्री को उनके मंत्रालय की ओर से हर सम्भव सहयोग के प्रति आश्वस्त किया। इस अवसर पर मुख्य सचिव ओमप्रकाश, सचिव राधिका झा, शैलेश बगोली व अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
- प्रवीण गुगनानी
लेखक व स्तंभकार
अब जबकि गांव-गांव, गली-गली और खेतोखेत खरीफ फसल बुआई की तैयारी हो रही है और देश में लॉकडाऊन का दौर ढलान पर है तब सभी को खरीफ कृषि के संदर्भ यह कहावत स्मरण कर लेनी चाहिए –
असाड़ साउन करी गमतरी, कातिक खाये, मालपुआ।
मांय बहिनियां पूछन लागे, कातिक कित्ता हुआ॥
अर्थात – आषाढ़ और सावन मास में जो गांव-गांव में घूमते रहे तथा कार्तिक में मालपुआ खाते रहे (मौज उड़ाते रहे) वे लोग पूछते हैं कि कार्तिक की फसल में कितना अनाज पैदा हुआ? अर्थात जो खेती में व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते हैं उन्हें कुछ प्राप्त नहीं होता है। भारत सरकार एवं प्रदेशों की सरकारों को भी चाहिए कि वह लॉकडाऊन के इस दौर में भारतीय कृषि के कार्तिक तत्व अर्थात खरीफ उत्पादन हेतु पर्याप्त व्यवस्थाएं करके किसानों को सहयोग दें।
सर्वविदित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारतीय जनमानस भी कृषिनिर्भर ही रहता है। यदि कृषि सफल, सुचारू व सार्थक हो रही है तो भारतीय ग्राम प्रसन्न रहते हैं अन्यथा अवसादग्रस्त हो जाते हैं और यह अवसाद समूचे राष्ट्र को दुष्प्रभावित करता है। यदि भारतीय कृषि को छोटे व निर्धन कृषकों की दृष्टि से देखें तो खरीफ की फसल ही भारत की महत्वपूर्ण फसल है क्योंकि इस मौसम में सिंचाई के साधनों की अनुपलब्धता वाले छोटे-छोटे करोड़ों कृषक भी फसल उपजाने में सफल हो पाते हैं।
लगभग राष्ट्रव्यापी लॉकडाऊन के इस कालखंड में जबकि जून के प्रथम सप्ताह से देश भर में अनलॉकका क्रम प्रारंभ हो रहा है तब बहुत कुछ ऐसा है जिसे खरीफ की फसल और छोटे, मध्यम व सीमान्त किसानों की दृष्टि से समायोजित किया जाना चाहिए। छोटा किसान दूध, सब्जी, पशुपालन आदि-आदि छोटी कृषि आधारित इकाइयों से प्राप्त आय से जीवन यापन भी करता है तथा खरीफ फसल को बोने बिरोने के खर्चे भी निकालता है। स्वाभाविक है कि दो माह के लॉकडाऊन के मध्य ये छोटे कृषक अत्यधिक प्रभावित हुए हैं। उनके पास न तो परिवार के भरण-पोषण हेतु समुचित नगदी है और न ही उसकी जीवन रेखा खरीफ फसल को बोने बखरने हेतु नगदी है।
यद्यपि मोदी सरकार ने निर्धन परिवारों को निःशुल्क राशन, आयुष योजना व अन्य माध्यमों से सुरक्षित रखने की अनेक योजनाओं की झड़ी लगा दी है तथापि निर्धन, छोटे व सीमान्त किसानों का एक बड़ा वर्ग अब भी संकट में है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। निस्संदेह कोविड-19 ने जब समूचे अर्थतंत्र को दुष्प्रभावित कर दिया है तब किसान भी इससे अछूता नहीं रहा है, बल्कि कृषक वर्ग तो इकोनामिक बैकअप न होने के कारण बेहद असहाय, निर्बल व लाचार हो गया है। देश की केंद्र व प्रदेश सरकारों ने यदि कृषि तंत्र को महंगाई, बेरोजगारी व लॉकडाऊन के इस भीषण दौर में अपना सहारा नहीं दिया तो केवल कृषक समाज नहीं, अपितु समूचे देश को इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
पिछले वर्ष जब कोरोना महामारी ने भारत में पांव पसारे थे तब संपूर्ण भारत का उत्पादन तंत्र सिमट गया था और बड़े ही निराशाजनक परिणाम मिले थे। किंतु कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने जीवटतापूर्वक आशाओं से कहीं बहुत अच्छा उत्पादन करके देश की आर्थिक व्यवस्था को संबल प्रदान किया था।
बारिश अच्छी, समय पर व पर्याप्त होने की संभावनाओं के आ जाने के बाद स्वाभाविक ही है कि किसान खरीफ फसल बोने हेतु अत्यधिक उत्सुक व उत्साहित है। किंतु संकट भी है। इस वर्ष बीज बहुत महंगा रहने की आशंका है। खरीफ की प्रमुख फसल धान, सोयाबीन व मक्का के बीज मूल्य तो किसान की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं। देशव्यापी लॉकडाऊन के कारण उर्वरकों का उत्पादन व विपणन तंत्र गड़बड़ा गया है। अतः उर्वरकों के मूल्य भी बढ़ रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मूल्य तंत्र के कारणों से भी मोदी सरकार उर्वरकों के मूल्य तंत्र को संभालने में असफल रही, किंतु आभार है इस संवेदनशील सरकार का कि उसने उर्वरकों पर सरकारी सहायता (सब्सिडी) बढ़ाकर उर्वरकों की मूल्यवृद्धि को निष्प्रभावी कर दिया है। केंद्र सरकार ने डीएपी खाद पर सब्सिडी 140 प्रतिशत बढ़ा दी है। इस हेतु 1475 करोड़ रूपये की अतिरिक्त सबसिडी जारी कर देश भर के कृषकों को एक बड़ी समस्या से बचा लिया है। निस्संदेह यदि केंद्र की संवेदनशील मोदी सरकार समय पर डीएपी के संदर्भ में यह सटीक निर्णय नहीं लेती तो देश में बुआई का रकबा और खरीफ उपज अवश्य ही प्रभावित हो जाती।
प्रधानमंत्री मोदी ने किसान सम्मान निधि की आठवीं किश्त के रूप में अक्षय तृतीया के शुभ दिन को 19 हज़ार करोड़ रुपए 10 करोड़ किसानों के खाते में सीधे ट्रांसफर करके भी एक बड़ा आर्थिक संबल का वातावरण बना दिया है। महामारी के कठिन समय में ये राशि इन किसान परिवारों के बहुत काम आ रही है। इस योजना से अब तक 1 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपए कृषकों के खाते में सीधे पहुंच चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस राशि में से सिर्फ कोरोना काल में ही 60 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक किसानों को मिल गए हैं।
मोदी सरकार ने कोरोना काल को देखते हुए, KCC ऋण के भुगतान या फिर नवीनीकरण की समय सीमा को बढ़ा दिया गया है। ऐसे सभी किसान जिनका ऋण बकाया है, वो अब 30 जून तक ऋण का नवीनीकरण कर सकते हैं। इस बढ़ी हुई अवधि में भी किसानों को 4 प्रतिशत ब्याज पर जो ऋण मिलता है, जो लाभ मिलता है, वह यथावत रहेगा।
भारत की केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे सतत कृषि उन्नयन के प्रयासों का ही परिणाम है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी गत वर्ष की अपेक्षा खरीफ का रकबा 16.4% बढ़ने की संभावना बताई जा रही है। कृषि मंत्रालय ने आशा जताई है कि पिछले साल अच्छी बारिश होने की वजह से इस बार जमीन में नमी मौजूद है और यह फसलों के लिए बहुत बेहतर स्थिति है। पिछले 10 साल के औसत की तुलना में इस बार देश के जलाशय 21 प्रतिशत तक अधिक भरे हुए हैं। हमें उम्मीद है कि इस बार देश में बंपर कृषि उपज हो सकती है। गतवर्ष की अच्छी वर्षा, जलस्त्रोतों में जल की उपलब्धि व भूमि में नमी का लाभ उठाने हेतु शासन कृषि क्षेत्र को पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराये तो किसान भी देश के गोदामों को अनाज से लबालब भरने में सक्षम हो सकता है।
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच सॉल्यूशंस ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नए संकट आने के संकेत दिए हैं। इसका असर आर्थिक विकास दर पर पड़ेगा और वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 9.5% हो सकता है। ऐसी स्थिति में निश्चित ही जीवटता व जिजीविषा से लबालब किसान वर्ग ही भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने उत्पादन से एक बड़ा संबल प्रदान कर सकता है। आवश्यकता है कि शासन-प्रशासन भारतीय कृषक के प्रति संवेदनशील रहे।
- जयराम शुक्ल
पत्रकार व लेखक
कहते हैं कि हमारा समाज धर्मभीरु है। उसकी रक्षा के लिए हम किसी पराकाष्ठा तक जा सकते हैं। यदि ऐसा आप भी सोचते हैं तो एकबार चित्रकूट हो आइए, वहां जाकर देखिए कि आस्थाएं किस तरह स्वार्थ की बलि चढ़ा दी जाती हैं।
यहां भगवान श्रीराम साढ़े ग्यारह वर्ष रहे। जहां वे विचरते रहे होंगे, वहीं के जंगल और पहाड़ों के भीतर उम्दा किस्म का बाक्साइट है। इसलिए भगवान राम की स्मृतियां बची रहें या चाहे जाएं चूल्हे भाड़ में। बेरहम विकास यात्रा और ग्रोथरेट के चंद्रखिलौना के लिये हमें वो जंगल और वो पहाड़ चाहिए ही चाहिए।
जिस सिद्धा पहाड़ को देखकर राम ने – भुज उठाय प्रण कीन्ह.. का संकल्प लिया था। उस पहाड़ की गति देखेंगे,जरा भी संवेदना होगी तो रो पड़ेंगे। जेसीबी के पंजों से ऐसे बाक्साईट निकाला है, जैसे गिद्ध शवों से आंतड़ियां निकालते हैं। सरभंग ऋषि का जहां आश्रम था, उस वन प्रांतर को भी खनिज के लिए शिकारी कुत्तों की तरह नोचा खाया गया है।
भोपाल से इंदौर जाते हुए जब मैं देवास बायपास से गुजरता हूं तो कलेजा हाथ में आ जाता है। बायपास शुरू होते ही बाएं हाथ में हनुमान जी की विराट प्रतिमा है, उसके पीछे खड़े पहाड़ का जो दृश्य है, बेहद दर्दनाक है। उसे देखकर कई भाव उभरते हैं कि जैसे चमगादड़ ने अमरूद का आधा हिस्सा खाकर फेंक दिया हो, कि जैसे जंगली कुत्तों ने जिंदा वनभैंसे के लोथड़े निकाल लिए हों, कि जैसे हमने बर्थडे की केक को चाकू से काटा हो।
यदि आपमें जरा भी संवेदना होगी तो इस अधखाए पहाड़ को देखकर कुछ ऐसे ही लगेगा। दाईं ओर गुंगुआती हुई कई चिमनियां दिखेंगी। दृश्य कुछ ऐसा बनता है कि मानो धरती माता के मुंह में जबरन कई सुलगती हुई बीड़ियां दता दी गईं हों। यह दृश्य सिर्फ देवास का नहीं है। जहां है – उसके इर्दगिर्द एक नजर तो डालकर देखिए..!
पद्मपुराण में तालाब, बावड़ी, कुएं खुदवाने का पुण्य प्रताप वर्णित है। वृक्षों का महात्म्य तो दैवतुल्य है। बरगद, पीपल, आम तो हमारी जीवन संस्कृति से जुड़े हैं। महुआ तो वनवासी लोक संस्कृति का सिरमौर है।
कहते हैं, जिनके पुत्र नहीं होता था। वे आम व विभिन्न किस्म के फलदार पौधे लगाते थे। इन वृक्षों से मनुष्य को फल मिलते थे। इनमें जीव जंतु भी पलते थे। सभी आत्मा से उस व्यक्ति को साधुवाद देते व कृतज्ञ भाव व्यक्त करते जिसने बगीचे लगाए थे। सैकड़ों वर्ष तक उस व्यक्ति का नाम बगीचे के साथ चलता था। अब वही बगीचे कटकर पल्प व प्लाईबोर्ड फैक्ट्री में जा रहे हैं।
सड़कों ने भले ही आवागमन को सुगम किया हो, पर इसके लिए अरबों निर्दोष व फलदाई पेड़ों की बलि दी गई। शेरशाह सूरी ने भारत को उत्तर से दक्षिण जोड़ने के लिए जो राजमार्ग बनवाया था। वह बनारस से जबलपुर होते हुए दक्षिण जाता था। वर्षों तक हम इसे नेशनल हाइवे नंबर सात (एनएच 7) के नाम से जानते थे।
इस यवन बादशाह ने सड़कों के किनारे आम, जामुन, इमली, कपित्थ, बेल, महुआ जैसे फलदाई पौधे लगवाए थे। हर एक कोस पर कुएं और दस कोस पर एक बावड़ी व मुसाफिर खाना बने थे। रीवा के राजा अजीत सिंह के कार्यकाल में एक ब्रिटिश ट्रेवलर लेकी इस राजमार्ग से गुजरा था। उसकी डायरी के पन्ने रीवा के स्टेट गजेटियर में छपे हैं। लेकी ने सड़क के किनारे आम्रकुंजों का खूबसूरत वर्णन किया है।
हमारे देसी बादशाहों ने सड़क के विस्तार की योजना बनाई। योजना जब तक कागज से जमीन पर उतरती सड़कों के किनारे के वर्षों पुराने वृक्ष कटकर आरा मिलों में पहुंच गए। इनमें से हजारों-लाखों ऐसे जिनकी उमर पांच सौ वर्षों से एक हजार वर्ष रही होगी। किसी ने उफ तक नहीं किया।
सड़कें विधवा के मांग की भाँति सूनी हैं। गर्मियों में लगता है, रेगिस्तान से गुजर रहे हैं। वृक्षारोपण के नाम पर कनेर और बबूल रोपे गए हैं। कोई चिंता करने वाला नहीं और न ही इन पुरखों के लिए रोने वाला।
यूरोप-अमेरिका में पुराने पेड़ लिफ्ट एंड शिफ्ट किए जाते हैं। मिस्र में तो पहाड़ की शिफ्टिंग के बारे में सुना है। अपने यहां हर विकास विनाश की बुनियाद पर होता है। योजनाकार व इंजीनियर चाहते तो ये सभी पेड़ बच सकते थे। हां, जमीन का मुआवजा जरूर थोड़ा बढ़ता। पर फिकर किसे ? हर कोई घर भरना चाहता है। योजनाकार- इंजीनियर-ठेकेदार- नेता सभी के सब, क्या करियेगा !
आप जहां भी रहते हों, उसके दस किलोमीटर की परिधि में नजर दौड़ाइए। इससे भी वीभत्स और कारुणिक दृश्य दिखेंगे। पर इसे अंतः से महसूस करने को वाल्मीकि की दृष्टि जगानी होगी, जिन्होंने क्रौंच वध की घटना में क्रौंचनी के अश्रु से उपजी करुणा के चलते सृष्टि की पहली कविता रच दी।
पूरे देश के पहाड़ों और वनों के साथ ऐसे ही निर्दयी व्यवहार हो रहा है। किसलिए ?क्योंकि विकास के लिए ये जरूरी है। इससे ग्रोथरेट बढ़ती है। ग्रोथरेट की गणित बड़ी बेरहम है। खड़े हुए पेड़ों का विकास में कोई योगदान नहीं। इन्हें काटकर वहां से राजमार्ग निकालिए और पेड़ों को आरा मिल भेजिए या पेपर मिल, तभी विकास को गति मिलेगी। खड़े हुए पहाड़ विकास के बाधक हैं। उन्हें केक की तरह काटकर सड़क में पसराना पड़ेगा, विकास की गाड़ी तभी आगे बढ़ेगी। बहती हुई नदियों का विकास में तब तक कोई योगदान नहीं जब तक कि इन्हें बांध कर गांवों को न डुबा दिया जाए। यह विकास का नया फलसफा है। जहां संवेदना, स्मृति, जिंदगी की कोई हैसियत नहीं। विकास के समानांतर विनाश की भी ग्रोथरेट होती है, पर इसे नापे कौन? यह अर्थशास्त्रियों के विमर्श का विषय नहीं है।
हर मनुष्य में यह दृष्टि है….. हां, मैं प्रकृति प्रेमी हूं। मेरी मुक्ति यहीं दिखती है। जब भी समय मिलता है तो विन्ध्य के वनप्रांतर में भटक लेता हूं। सिंगरौली के धुंए से निकल कर उससे लगे जंगलों में खूब भटका हूं। वाल्मीकि आज यहां आकर घूमते तो गश खाकर गिर पड़ते। हम भौतिकवादी खुदगर्ज आदमी हैं। इसलिए ये सब कुछ देख भी लेते हैं। यहां आकर आप देखेंगे कि आदमी ने किस तरह धरती को उलटा पलटकर माटी के धुएं के नंगे पहाड़ खड़े कर दिए। लगभग तीन सौ किलोमीटर की परिधि का नामोनिशां मिट गया। पहाड़ पिसकर बिजली में बदल दिए गए। खैर के अद्भुत जंगलों, वन्यजीवों की बात कौन करे, यहां के वाशिंदे आज किस लोक में हैं, किसी को इसकी खबर नहीं।
विकास का ऑक्टोपस सिंगरौली से लगे सरई क्षेत्र के खूबसूरत जंगलों की ओर बढ़ रहा है। यह दुनिया के सबसे संपन्न जैव विविधता वाला क्षेत्र है। पेड़ पौधों की दृष्टि से और जीव जंतुओं की दृष्टि से भी।
छत्तीसगढ़, झारखंड के हाथियों का यह कॉरीडोर है। भालुओं का प्राकृतिक आवास। गुफाओं की श्रृंखला आदम सभ्यता की कहानी कहती हैं। इस क्षेत्र का गुनाह यह है कि इसके पेट में कोयला है और वह कोयला हमारी ग्रोथरेट के लिए जरूरी है। इसलिये चाहिए हर हाल पर, किसी कीमत पर। कभी कभी, गुण भी मौत के गाहक बन जाते हैं। जैसे कस्तूरी मृग के लिए, मणि नाग के लिए। यह तय है कि आज नहीं तो कल इस खूबसूरत वन की कस्तूरी और मणि की कीमत विकास की बलिबेदी पर चढ़कर चुकानी होगी।
अब ये कुछ सवाल खुद से पूछिये.. क्या हम कोई पहाड़ बना सकते हैं ? क्या जंगल, नदी, झरने पैदा कर सकते हैं ? तो फिर इन्हें सजाए मौत देने, नष्ट भ्रष्ट करने का अधिकार किसी को कहां से मिला ? पुराण कथाओं में पढ़ा है कि एक बार सहस्त्रबाहु ने नर्मदा को बांधने की कोशिश की थी, परशुराम ने उसके सभी हाथ काट ड़ाले। आज हम नदियों को बांधने, उनकी धारा को मोड़ने की, पहाड़ों और जंगलों को खाने की राक्षसी कोशिशें कर रहे हैं।
इन्हें हमारे वैदिक वांग्यमय में माता, पिता, सहोदर, भगिनी, पुत्र, बंधु-बांधवों का दर्जा कुछ सोच समझकर ही दिया गया है। ये हमें देते ही देते हैं। ये हैं तभी हम हैं।
नीति ग्रंथों में लिखा है कि प्रकृति से हम उतना ही लें, जितना कि एक भ्रमर फूल और फल से लेता है। हमें गाय की तरह दुहने की इजाजत है। गाय को ही काटकर खाने की नहीं।
विकास की निर्दयी होड़ ने प्रकृति को कत्लगाह में बदल दिया है। संभल सकें तो संभलिए नहीं तो याद रखिए ईश्वर की लाठी बे-आवाज़ होती है..और हर किए की सजा मिलती है, इसी लोक और इसी काया में।
कोरोना से बचाव को लेकर देश में वैक्सीनेशन अभियान चल रहा है। वैक्सीन को लेकर राजनीति भी हो रही है, विपक्षी दलों के नेता केंद्र को तो निशाना बना रहे हैं, लेकिन अपने दल द्वारा शासित राज्यों में अव्यवस्थाओं पर कुछ नहीं बोल रहे। उदाहरण, कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार केंद्र से वैक्सीन का मुद्दा उठा रहे हैं, यह भी पूछ रहे हैं कि हमारे बच्चों की वैक्सीन कहां गई? लेकिन, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान में वैक्सीन की बर्बादी को लेकर चुप हैं। जहां उनकी या उनके सहयोगियों की सरकार है. झारखंड (37 %) और छत्तीसगढ़ (30 %) कोरोना वैक्सीन की बर्बादी में पहले तीन राज्यों में शामिल हैं।
राजस्थान में भी वैक्सीन की बर्बादी के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार 8 जिलों के 35 वैक्सीनेशन सेंटरों पर 500 वायल में लगभग 2500 से भी ज्यादा डोज तो केवल डस्टबिन में मिले हैं। ये वायल 20-75% तक भरे हुए थे। 16 जनवरी से लेकर 17 मई तक राज्य में 11.50 लाख से भी अधिक कोविड-19 वैक्सीन की डोज बर्बाद हुई हैं।
राहुल गाँधी जी पूछ रहे थे हमारे बच्चों के #Vaccine कहाँ हैं ?@RahulGandhi जी,कचरे के डिब्बों में हैं हमारे बच्चों के वैक्सीन
आकर देखिये राजस्थान में👇 pic.twitter.com/5NussFjPjg— Major Surendra Poonia (@MajorPoonia) May 31, 2021
सबसे बुरी स्थिति राजस्थान के चूरू जिले की है। जिले में 39.7% वैक्सीन की डोज बर्बाद कर दी गई। हनुमानगढ़ में 24.60 प्रतिशत वैक्सीन तो भरतपुर में 17.13%, कोटा में 16.71%, चित्तौड़गढ़ में 11.81%, जालौर में 9.63%, सीकर में 8.83%, अलवर में 8.32% और धौलपुर में 7.89% वैक्सीन बर्बाद की गई। जयपुर प्रथम में 4.67% और द्वितीय में 1.31% वैक्सीन की डोज बर्बाद कर दी गई।
राजस्थान में 2500 कोविड की डोज कचरे में !आपदा के समय क्या ये निंदनीय नही है।@Rahulgandhi @priyankagandhi
इस पर भी बोलिये राजस्थान की जनता भी भारत की जनता है।हां ये अलग बात है यहा कांग्रेस की सरकार है pic.twitter.com/FytspbOC70— Dr. Alka Gurjar (@alka_gurjar) May 31, 2021
माना कि बड़ी वैक्सीनेशन ड्राइव में कुछ सीमा तक वैक्सीन की बर्बादी होती है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में वेस्टेज होने पर जवाबदेही तो बनती है। एक ओर कांग्रेस व राज्य सरकार वैक्सीन की कमी बताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है और दूसरी ओर स्वयं इस तरह की बर्बादी भी नहीं रोक पा रही। वैक्सीन की एक डोज की वेस्टेज का अर्थ है, एक जीवन को सुरक्षा कवच नहीं दे पाना।
राजस्थान सरकार का कोरोना प्रबंधन का मॉडल देखिये
कचरे में वैक्सीन
कबाड़ में वेंटिलेटर
फाइलों में ऑक्सीजन प्लांट
इंजेक्शन व दवाइयों की कालाबाजारी
कोरोना से मौत के आंकड़ों की जादूगरी
चिरंजीवी योजना में निःशुल्क इलाज का झूठा दावा#GehlotWastedVaccine— Arjun Ram Meghwal (@arjunrammeghwal) May 31, 2021
महामारी की दूसरी लहर ने बता दिया कि वैक्सीन का कितना महत्व है। वेस्टेज से लोगों का सुरक्षा कवच तो प्रभावित होता ही है, सप्लाई चेन पर भी खासा असर पड़ता है। वैक्सीन वेस्टेज यदि बहुत अधिक है तो इसकी मांग बढ़ती जाएगी और गैर-आवश्यक मात्रा में इसे खरीदना पड़ेगा। आज जब सवा अरब नागरिकों का वैक्सीनेशन होना है तो ऐसे में एक डोज के महत्व व उसकी कीमत को आसानी से समझा जा सकता है।
Negligence or politics ..? @INCIndia has to answer for this total failure of its Rajasthan State Govt . They keep preaching the whole world about vaccination . pic.twitter.com/XvM0PNpFll
— B L Santhosh (@blsanthosh) May 31, 2021
राजस्थान में वैक्सीन की बर्बादी ट्वीटर पर मुद्दा बन गई है। केंद्रीय संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेगवाल, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बी.एल.संतोष समेत भाजपा की राष्ट्रीय सचिव अलका गुर्जर, मेजर सुरेंद्र पूनिया आदि तमाम लोगों ने ट्वीट कर कांग्रेस से इस पर सवाल पूछा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इन ख़बरों को गंभीरता से लेते हुए राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री डॉ रघु शर्मा को पत्र लिख कर मामले की जांच करने को कहा है।
राजस्थान के कुछ ज़िलों में कोरोना वैक्सीन की बर्बादी की ख़बरों को गंभीरता से लेते हुए मैंने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री @RaghusharmaINC जी को पत्र लिखकर मामले की जांच करने को कहा है।
मैंने वैक्सीन की बर्बादी रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर बेहतर योजना बनाने को कहा है।@PMOIndia pic.twitter.com/nBsfGGAhtN
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 31, 2021
उधर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि राज्यों से लगातार आग्रह किया जा रहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके यहां सप्लाई की गई कुल वैक्सीन में से एक प्रतिशत से भी कम बर्बाद हो। जिन राज्यों में वैक्सीन की अधिक बर्बादी हो रही है, वे टीकाकारण अभियान को सही तरीके से चलाएं। इन राज्यों को वैक्सीनेशन में किसी भी प्रकार की लापरवाही से बचना चाहिए. एक वैक्सीन बर्बाद होने का अर्थ है कि कोई व्यक्ति इसकी डोज से वंचित रह जाएगा।
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी की भूमिका निभाते हुए बंगाल के बिगड़ते हालात से देश के आमजन को अवगत कराएगी, ताकि जम्मू-कश्मीर जैसी स्थिति को वहां आने से रोका जा सके।
विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रभारी भी हैं। उन्होंने मंगलवार को चुनाव पश्चात बंगाल की वर्तमान परिस्थिति के संबंध में उत्तराखंड भाजपा द्वारा आयोजित एक वेबिनार को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने बंगाल की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किस प्रकार हिन्दू समाज का कुछ कट्टरपंथियों द्वारा दमन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बंगाल के हालात राज्य के साथ—साथ देश के लिए चिंता का विषय बने हैं।
उन्होंने कहा कि प्रखर राष्ट्रवाद के अगुआ डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बांग्ला बचाओं के लिए काम किया था। भाजपा के लोग मुखर्जी के कार्यों को आगे बढ़ाते हुए बंगाल के बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे। भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी होने के नाते वहां की संस्कृति, भाषा और क्रांतिकारियों के योगदान को कमजोर नहीं होने देगी।
आज पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की परिस्थितियों पर वेबिनार के जरिए विचार-विमर्श किया गया।
जिसमें @ukcmo श्री @TIRATHSRAWAT जी, @BJP4UK के प्रदेशाध्यक्ष श्री @madankaushikbjp जी, राष्ट्रीय महामंत्री श्री @dushyanttgautam जी एवं उत्तराखंड भाजपा के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे। pic.twitter.com/naMogHHniW
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) June 1, 2021
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की धरती से आनन्द मठ, वंदेमातरम, जनगण मन जैसे नारे और गीत राष्ट्र को मिले हैं। ऐसी महान धरती के लोगों के साथ अन्याय और चिन्हित कर सताने का काम किया जा रहा है। भाजपा देश विरोधी गतिविधियों के हमेशा से लड़ती आई है और आगे भी लड़ेगी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल खुश है। लेकिन उन्हें वहां अपनी हार पर तरस नहीं आ रही। वहां के लोगों के संकटपूर्ण जीवन व बिगड़ते माहौल पर विपक्ष भी मौन बना हुआ। भाजपा पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ खड़ी है।
वेबीनार में प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम, प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय, महामंत्री सुरेश भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान समेत तमाम पार्टी पदाधिकारी जुड़े थे। बेबीनार का संयोजन प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार ने किया।
मोदी सरकार के 7 वर्ष पूरे होने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिनंदन किया है। शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने विकास, सुरक्षा, जनकल्याण और ऐतिहासिक सुधारों के समांतर समन्वय का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
https://twitter.com/AmitShah/status/1398886002769285123
केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने ट्वीट कर कहा कि “इन 7 वर्षों में मोदी जी ने एक ओर देशहित को सर्वोपरि रखकर अपने दृढसंकल्प और सर्वस्पर्शी व कल्याणकारी नीतियों से गरीब, किसान व वंचित वर्ग को विकास की मुख्यधारा से जोड़कर उनके जीवन को बेहतर बनाया है तो वहीं दूसरी ओर अपने मजबूत नेतृत्व से भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाया”।
https://twitter.com/AmitShah/status/1398886031173193730
शाह ने यह भी कहा कि “विगत 7 साल से देश की जनता ने मोदी जी की सेवा और समर्पण पर निरंतर अपना अटूट विश्वास जताया है, जिसके लिए मैं देशवासियों को नमन करता हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में हम हर चुनौती पर विजय प्राप्त कर भारत की विकासयात्रा को अविरल जारी रखेंगे”।
https://twitter.com/AmitShah/status/1398886048789196801
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शनिवार को गन्ना विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वामी यतीश्वरानंद के साथ उत्तरकाशी जनपद का भ्रमण किया। उन्होंने बड़कोट में कोविड केयर सेंटर और नौगांव में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का निरीक्षण कर विभिन्न व्यवस्थाओं का जायजा लिया। उन्होंने कोविड सेल से होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों से फोन से वार्ता कर उनका हालचाल भी जाना।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। डॉक्टरों को दूरस्थ क्षेत्रों में तैनाती दी गई है। कोविड के दौरान डॉक्टरों की कमी न हो, इसके लिए जिलाधिकारियों को भी अधिकार दिया गया है कि कोविड के दौरान मानक के अनुसार एवं आवश्यकतानुसार डॉक्टरों की तैनाती कर सकते हैं।
उन्होंने ने कहा कि उत्तरकाशी जनपद में कोविड के नियंत्रण के लिए अच्छे प्रयास हुए हैं। जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा सराहनीय कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर के दृष्टिगत सरकार द्वारा पूरी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। अस्पतालों एवं कोविड केयर सेंटरों में बच्चों के लिए अलग वार्ड की व्यवस्था के साथ ही उनके अभिभावकों के लिए भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। सीएचसी स्तर तक भी आक्सीजन प्लांट की व्यवस्था की जा रही है।
तीरथ ने भ्रमण के दौरान उत्तरकाशी में लगभग 52 करोड़ 37 लाख रूपये की 26 योजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास भी किया। जिसमें से 17 करोड़ 41 लाख रूपये की 12 योजनाओं का लोकार्पण एवं 34 करोड़ 46 लाख रूपये की 14 योजनाओं के शिलान्यास हुवा।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में स्थापित 30 नए आईसीयू बेड का लोकार्पण किया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि कोविड के समय में इन आईसीयू बेड की उपलब्धता से विशेषकर पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग एवं टिहरी जिले के लोगों को ईलाज में मदद मिलेगी। इन जनपदों से अधिकांश मरीज ईलाज के लिए श्रीनगर आते हैं। कोविड के बाद अन्य बीमारियों के ईलाज के लिए भी इन आईसीयू बेड का उपयोग होगा।
कोविड-19 के संक्रमण काल में इन आईसीयू बेड की उपलब्धता से विशेषकर पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग एवं टिहरी जिले के लोगों को उपचार में मदद मिलेगी।
— Tirath Singh Rawat (मोदी का परिवार) (@TIRATHSRAWAT) May 26, 2021
उन्होंने कहा कि राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश में आईसीयू, ऑक्सीजन बेड, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता है। मेडिकल कॉलेज एवं जिला अस्पतालों में सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनका विस्तार सीएचसी एवं पीएचसी लेवल तक किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जल्द ही नैनीडांडा, थलीसैंण एवं प्रदेश के अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कोविड की तीसरी लहर के लिए अभी से सतर्कता बरतनी होगी। सभी अस्पतालों में बच्चों के लिए अलग से व्यवस्था हो। इसकी समय से पूरी तैयारी रखी जाय।
इस अवसर पर वर्चुअल माध्यम से उच्च शिक्षा एवं सहकारिता राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, जिलाधिकारी पौड़ी विजय जोगदंडे, सीएमओ पौड़ी डॉ मनोज शर्मा, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ सीएमएस रावत आदि उपस्थित थे।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) योजना से अब तक 3 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की जा चुकी है।
वन स्टॉप सेंटर तहत महिलाओं को किसी भी प्रकार की हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिए एक ही स्थान पर पुलिस, चिकित्सा, कानूनी सहायता व परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहायता सहित कई सेवाओं के लिए तत्काल सहायता प्रदान की जाती है। यह योजना 1 अप्रैल, 2015 से पूरे देश में राज्य सरकारों के माध्यम से क्रियान्वित की जा रही है। अब तक, देश के 35 राज्यों में 701 सेंटर चालू किए जा चुके हैं।
https://twitter.com/PIBWCD/status/1396027720899776519
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार कोविड महामारी के कारण बनी मौजूदा स्थिति में, जो महिलाएं संकट की स्थिति में हैं या हिंसा से प्रभावित हैं, वे त्वरित सहायता और सेवाओं के लिए निकटतम ओएससी से संपर्क कर सकती हैं। मंत्रालय ने सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/प्रशासकों और सभी जिलों के डीसी/डीएम को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन अवधि के दौरान वन स्टॉप सेंटरों को चालू रखें।
योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इन केन्द्रों के सुचारू संचालन के लिए, कानूनी परामर्श, चिकित्सा सहायता, मनोवैज्ञानिक – सामाजिक परामर्श आदि प्रदान करने के लिए पैनल में शामिल एजेंसियों अथवा व्यक्तियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी संबंधित राज्यों के जिला प्रशासन के पास है।