In a big push towards electric mobility the Government has sanctioned 670 Electric buses in the states of Maharashtra, Goa, Gujarat and Chandigarh and 241 Charging Stations in Madhya Pradesh, Tamil Nadu, Kerala, Gujarat and Port Blair under Phase-II of FAME India Scheme.
Announcing this in a series of tweet messages,Union Heavy Industries minister, Prakash Javadekar said that the decision reflects government’s committment to reduce dependence on fossil fuel and to address issues of vehicular emissions. Javadekar said that the decision is in line with Prime Minister Narendra Modi’s vision for eco-friendly public transportation.
The Department of Heavy Industries (DHI) under Ministry of Heavy Industries and Public Enterprises, is administering the Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid &) Electric Vehicles in India (FAME India) Scheme since April, 2015 to promote adoption of electric/ hybrid vehicles (xEVs) in India .
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In the First Phase of the Scheme upto 31st March 2019, about 2,80,987 hybrid and electric vehicles were supported by way of demand incentive, amounting to about Rs 359 crore. Further, DHI sanctioned 425 electric and hybrid buses to various cities in the country with total cost of about Rs. 280 Crores. The Department of Heavy Industry had also sanctioned 520 Charging Stations for Rs. 43 Crore (approx.) in cities like Bangalore, Chandigarh, Jaipur and NCR of Delhi under Phase-I of FAME-India Scheme.
At present, Phase-II of FAME India Scheme is being implemented for a period of 3 years w.e.f. 01st April, 2019 with a total budgetary support of Rs. 10,000 crore.
This phase focuses on supporting electrification of public & shared transportation and aims to support, through subsidies, approximately 7000 e-Buses, 5 lakh e-3 Wheelers, 55000 e-4 Wheeler Passenger Cars and 10 lakh e-2 Wheelers. In addition, creation of charging infrastructure is also supported to address the anxiety among users of electric vehicles.
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि मोदी सरकार किसानों की सबसे बड़ी हितैषी है। मोदी सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि विधेयकों से किसानों की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। विधेयकों में ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं, जिससे किसान अपनी उपज को स्वयं अच्छी कीमतों पर मंडी में या मंडी के बाहर कहीं भी बेच सकेगा। इसमें बिचैलियों की भूमिका खत्म कर दी गई हैं। यानि जो मुनाफा किसान से बिचैलिये उठाते थे, वो पैसा अब सीधा किसान की जेब में जाएगा। इन कृषि विधेयकों से एक राष्ट्र एक बाजार की संकल्पना को मजबूती मिल रही है। किसान अब सीधे बाजार से जुड़ सकेंगे।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र आज सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग किसानों को बरगलाने और उकसाने का काम कर रहे हैं। झूठ बोला जा रहा है। परंतु किसानों को स्वयं इन कृषि सुधारों को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की सोच हमेशा से किसानों के हित में रही है। इसी सोच के साथ ये सुधार किए गए हैं। उन्होंने कहा कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने वहां किसानों के लिए 7 घंटे नियमित और निश्चित बिजली की व्यवस्था की। उन्होंने कृषि महोत्सवों की शुरूआत की।
त्रिवेंद्र ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसान हमेशा उनकी प्राथमिकताओं में रहे। उनकी सरकार में गांव, गरीब और किसानों का सबसे पहले ख्याल रखा गया है। वर्ष 2009 में यूपीए की सरकार में कृषि मंत्रालय का बजट केवल 12 हजार करोड़ रूपए था, जो आज कई गुना बढ़ाकर 1 लाख 34 हजार करोड़ किया गया है। उन्होंने कहा कि पीएम किसान योजना से अब तक 92 हजार करोड़ रूपए सीधे डीबीटी के माध्यम से किसानों के खाते में पहुंच चुके हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने कृषि अवसंरचना के लिए 1 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है। इसमें मत्स्य पालन के लिए 20 हजार करोड़, पशुपालन के लिए 15 हजार करोड़, हर्बल खेती के लिए 4 हजार करोड़, फूड प्रोसेसिंग के लिए 1 हजार करोड़ रूपए का पैकेज स्वीकृत किया है। यूपीए के समय किसानों को 8 लाख करोड़ का कर्ज मिलता था, आज 15 लाख करोड़ का ऋण सालाना दिया जा रहा है। यूपीए के समय स्वामीनाथन आयेाग ने कृषि कल्याण के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे, लेकिन उस समय इन्हें लागू नहीं किया गया। आज मोदी सरकार ने न सिर्फ स्वामीनाथन रिपोर्ट के सुझावों को लागू किया बल्कि उसमें और अधिक प्रावधान जोड़कर किसानों का हित तलाशा है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में विभिन्न फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य काफी बढ़ाया गया है। मोदी सरकार ने किसानों को दो तरफा फायदा दिया है। अगर किसान मंडी में उपज बेचता है तो उसे ऊंची एमएसपी पर कीमत मिलेगी और मंडी से बाहर बाजार में बेचता है तो उसे ऊंची कीमत के साथ तकनीक का भी लाभ मिलेगा। इन विधेयकों से बिचैलियों की भूमिका खत्म होगी और किसान अपनी फसल को कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र होगा।
विगत 26 अगस्त को चर्चित अभिनेत्री कंगना रनौत ने एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “अगर नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो बॉलीवुड की जांच करता है तो पहलीं पंक्ति के कई सितारे सलाखों के पीछे होंगे। अगर ब्लड टेस्ट हुए तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आएंगी। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री जी स्वच्छ भारत मिशन के तहत बॉलीवुड जैसे गटर को साफ करेंगे।”
कंगना के ट्वीट पर मचा था बबाल
कंगना के इस ट्वीट पर काफी बबाल मचा था। कई लोगों ने कंगना को निशाने पर लेते हुए, इसे बॉलीवुड को बदनाम करने की साजिश बताया था। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की धर्मपत्नी व समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने राज्यसभा में अप्रत्यक्ष रूप से कंगना पर आक्रामक अंदाज में हमला बोला। पूर्व में अभिनेत्री रह चुकी जया ने कंगना का नाम लिए बगैर कहा कि ‘जिन लोगों ने फिल्म इंडस्ट्री से नाम कमाया, वे इसे गटर बता रहे हैं। मैं इससे बिल्कुल सहमत नहीं हूं।’
जया बच्चन ने राज्यसभा में उठाया था मामला
जया ने केंद्र सरकार से यह मांग तक कर डाली कि वो ऐसे लोगों से कहे कि इस तरह की भाषा का प्रयोग न करें। मगर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में चल रही जांच के दौरान नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की कार्रवाई से कंगना की बात सच होती दिखाई दे रही है। NCB की जांच में सच में चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। बॉलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन की जांच के दौरान NCB कई लोगों के विरुद्ध कार्रवाई कर चुकी है और रोज नई-नई कड़ियां जुड़ रही हैं। बड़े-बड़े नाम बेपर्दा हो रहे हैं।
कई बड़े नाम NCB के रडार पर
सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले की मौत के मामले में के दौरान NCB को बॉलीवुड के ड्रग्स सिंडिकेट के बारे में पता चला था। NCB को रिया चक्रवर्ती और शोविक से पूछताछ के समय बॉलीवुड की कई हस्तियों के नाम पता चले थे। खबरों के मुताबिक बॉलीवुड के कई बड़े नाम NCB के रडार पर हैं। NCB की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है। वैसे-वैसे इसमें नए-नए नाम जुड़ते जा रहे हैं। NCB इनको समन जारी कर पूछताछ के लिए बुला रही है। NCB ने जिनको समन भेजा है, उनमें दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली खान, रकुल प्रीत सिंह आदि प्रमुख हैं।
ड्रग्स व अंडरवर्ल्ड कनेक्शन के आरोप लगते रहे
दरअसल, बॉलीवुड की ड्रग्स और अंडरवर्ल्ड से कनेक्शन की बात समय-समय पर उठती रहती है। यहां तक आरोप लगते रहे हैं की बॉलीवुड की कई फिल्मों में अंडरवर्ल्ड का पैसा लगाता है और अंडरवर्ल्ड ही तय करता है कि किस फिल्म में कौन अभिनेता होगा और कौन अभिनेत्री। सुशांत राजपूत की मौत के बाद ये तमाम मुद्दे एक बार फिर चर्चाओं में हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुशांत की मौत के बाद अप्रत्यक्ष तौर पर ये मुद्दा उठाया था।
डॉ सुब्रमण्यम स्वामी भी रहे हैं मुखर
डॉ स्वामी ने सुशांत की मौत पर फिल्मी दुनिया के दिग्गज तीन खान सलमान खान, आमिर खान व शाहरुख खान पर निशाना साधा था। एक ट्वीट में उन्होंने सवाल किया था कि आखिर ये तीनों लोग सुशांत की कथित आत्महत्या पर चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं? दूसरे ट्वीट में डॉ स्वामी ने कहा था कि इनकी भी पूरी जांच की जानी चाहिए कि इनके पास इतनी संपत्ति कहां से आई ? भारत और विदेशों में विशेष रूप से दुबई में इन 3 खान बाहुबलियों ने जो बंगले और संपत्ति बनाई है ये सब उन्हें किसने उपहार में दी और उन्होंने इसे कैसे खरीदा और इस कार्टेलाइजेशन की जांच सीबीआई, आईटी और ईडी की एसआईटी को करने की जरुरत है। क्या वे कानून से ऊपर हैं ?
CBI और NCB पर उम्मीद
रुपहले परदे पर सब कुछ चमकदार दिखने वाली फ़िल्मी दुनिया में परदे के पीछे बहुत कुछ गंदगी भरी पड़ी है। कास्टिंग काउच व यौन शोषण जैसे तमाम आरोप भी बॉलीवुड के दिग्गजों पर लगते रहे हैं। ताजातरीन मामला अभिनेत्री पायल घोष द्वारा निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप पर लगाया गया आरोप है। हालांकि, अनुराग कश्यप इस मामले को राजनीति से जोड़कर बचने की कोशिशों में लगे हुए हैं। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि सुशांत राजपूत मामले की जांच कर रही CBI और NCB बॉलीवुड के गटर की गंदगी को साफ करने में सफल रहेगी।
अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ ने बुधवार को विश्व के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची जारी की। इस सूची से टाइम पत्रिका फिर विवादों में आ गई है। टाइम की सूची से हिन्दुओं के प्रति उसकी पक्षपाती व विद्वेषपूर्ण भावना एक बार फिर उजागर हुई है। साथ ही पत्रिका ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के जनमानस ने भले ही नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत के साथ दुबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया हो। मगर उसके लिए इन बातों का जरा भी महत्व नहीं है और अपने वह अपने मोदी विरोधी एजेंडें से बाज नहीं आ सकती है।
टाइम ने वर्ष 2020 के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में विश्व भर के लगभग दो दर्जन नेताओं को स्थान दिया है। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल जैसे शक्तिशाली नेताओं के नाम शामिल हैं। पत्रिका ने मोदी का नाम प्रभावशाली राजनेताओं वाली श्रेणी में शामिल तो कर दिया। मगर उसके साथ जो टिप्पणी लिखी, वो बेहद ही असयंमित व पूर्वाग्रहों से ग्रसित है। टिप्पणी देख कर यह लगता है कि पत्रिका ने मोदी का नाम इस सूची में केवल और केवल अपनी साख बचाने के उद्देश्य से शामिल किया है।
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यह तथ्य तो टाइम भी जानती है कि मोदी वास्तव में विश्व के सर्वाधिक चर्चित व प्रभावी राजनेता हैं। लोकप्रियता के मामलों में वे विश्व के कई शक्तिशाली देशों के राजनेताओं से बहुत आगे दिखते हैं। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में आजादी के बाद मोदी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जो प्रचंड बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आए हैं। मोदी ने अपनी कार्यप्रणाली और व्यक्तित्व के बल पर आम जनमानस में सरकार के प्रति एक विश्वास की भावना कायम की है और भारतीय राजनीति को विकासवादी सोच दी है।
लिहाजा, टाइम पत्रिका इन तथ्यों की अनदेखी नहीं कर सकती थी और अपनी सूची में मोदी का नाम शामिल न कर पाना उसके लिए नामुमकिन था। मगर मजबूरी में सही मोदी का नाम सूची में शामिल करने के बावजूद पत्रिका अपने छद्म एजेंडे अथवा सीधे शब्दों में कहे तो धूर्तता को छिपा नहीं सकी। पत्रिका ने मोदी पर निशाना साधने के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र का भी मजाक उड़ाने का प्रयास किया है।
मोदी के बारे में विवरण देते हुए टाइम मैगजीन के एडिटर कार्ल विक ने लिखा है कि – लोकतंत्र के लिए सबसे जरूरी स्वतंत्र चुनाव नहीं है। इसमें केवल यह पता चलता है कि किसे सबसे अधिक वोट मिला है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण उन लोगों का अधिकार है, जिन्होंने विजेता के लिए वोट नहीं दिया। भारत 7 दशकों से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र रहा है। भारत की 130 करोड़ की आबादी में ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं। भारत में सभी मिल जुलकर रहते हैं, जिसकी तारीफ दलाई लामा ने सद्भाव और स्थिरता के उदाहरण के रूप में की थी।
कार्ल विक ने आगे लिखा है कि – नरेंद्र मोदी ने इन सभी को संदेह में ला दिया है। भारत के ज्यादातर प्रधानमंत्री करीब 80 फीसदी आबादी वाले हिंदू समुदाय से आए हैं। मगर केवल मोदी ही ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसे शासन किया जैसे उनके लिए बाकियों की परवाह नहीं। नरेंद्र मोदी सशक्तिकरण के लोकप्रिय वादे के साथ सत्ता में आए। उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने ना केवल उत्कृष्टता को, बल्कि बहुलतावाद को भी खारिज कर दिया। विशेष तौर पर भारत के मुसलमानों को टारगेट किया गया।
अपने को मानवधिकारों का प्रवक्ता बताने वाली टाइम पत्रिका के इरादे बेनकाब करने के लिए उसके संपादक की यह टिप्पणी पर्याप्त है, जिसमें वह कहते हैं कि – महामारी का संकट अहसमति का गला घोंटने का बहाना बन गया और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र गहरे अंधेरे में घिर गया है। संपादक की इस टिप्पणी का अर्थ समझने में शायद ही किसी को कोई कठिनाई होगी। टाइम पत्रिका का संकेत नागरिकता संशोधन कानून (CAA ) के विरोध में शाहीन बाग में चलने वाले आंदोलन की ओर था, जिसे कोरोना महामारी के चलते जैसे-तैसे समाप्त कराया गया। टाइम पत्रिका के अर्थों में कहा जाए तो कोरोना महामारी के कारण समाप्त कराये गए इस आंदोलन से लोकतंत्र का गला घोंटा गया।
प्रधानमंत्री मोदी को लेकर की गई टिप्पणी के पीछे छिपी टाइम की कुत्सित मानसिकता उसकी इसी सूची ने उजागर करके रख दी। टाइम ने जहां एक ओर राजनेताओं की श्रेणी में मोदी को शामिल किया, तो दूसरी तरफ उसने आइकॉन की श्रेणी में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग में हुए आंदोलन से जुड़ी रहीं 82 साल की बिल्किस बानो को रखा है। शायद टाइम की संपादकीय टीम को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि इससे उनकी चालाकी पकड़ी जाएगी और उनकी वास्तविकता उजागर हो जाएगी।
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टाइम पत्रिका ने अपने नकारात्मक एजेंडे को आंख मूंद कर आगे बढ़ाया। उसने बिल्किस बानो के बारे में विवरण लिखने की जिम्मेदारी महिला पत्रकार राणा अय्यूब को दी। राणा अय्यूब पत्रकारिता और ट्वीटर पर हिन्दू विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने के लिए कुख्यात है। बिल्किस के विवरण में राणा लिखती हैं – वो एक ऐसे देश में प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं, जहां मोदी शासन में बहुमत की राजनीति द्वारा महिलाओं और अल्पसंख्यकों की आवाज़ों को व्यवस्थित रूप से बाहर किया जा रहा था। बिल्किस ने उन कार्यकर्ताओं और छात्र नेताओं को आशा और शक्ति दी, जो अलोकप्रिय सत्य के लिए देश भर में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध को प्रेरित थे।
अब इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि टाइम पत्रिका किस दुर्भावना से ग्रसित है। पत्रिका उस शाहीन बाग की एक आंदोलनकारी को आइकॉन बता रहा है, जिस जगह देश के लोकतंत्र को गिरवी रख दिया गया था। जहां टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे और भारत विरोधी साजिश रच रहे थे। टाइम उन आंदोलनकारियों को प्रतिष्ठा देने का दुष्प्रयास कर रही है, जिन्होंने आंदोलन के नाम पर दिल्ली के एक इलाके पर कई महीनों तक कब्जा किए रखा। पत्रिका उन आंदोलनकारियों के महिमा-मंडन में जुटी हुई है, जिन्होंने सुनियोजित तरीके से दिल्ली को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंक दिया था और कई निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
बहरहाल, इस बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है कि टाइम ने प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में क्या टिप्पणी की है ? टाइम एक बार पहले मोदी के विरुद्ध कवर स्टोरी छाप चुका है, जिसे लन्दन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के एक पत्रकार ने लिखा था। बावजूद इसके मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और भी प्रभावशाली राजनेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। यही कारण है कि टाइम मैगजीन को मोदी विरोधी एजेंडा चलाने के बाद भी कई बार विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची में उनको शामिल करना पड़ा है।
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Google removing Paytm from Google Play store last Friday demonstrates the current limits to sovereignty of India’s digital ecosystem and is another example of knee jerk or insensitive actions taken without proper notice of mega digital corporations based on conclusions drawn by people with half baked knowledge at best and questionable intentions at worst to impact a dependent competitor. Fortunately, the issue was resolved in 7 hours.
Paytm is not an ordinary IT company. It has played a notable role in India’s digital journey in initial days and continues to be a major player. Paytm, Flipkart, Olx, Ola and others are remarkable testimonies to homegrown technology startup entrepreneurial turned large companies, inspirations to startups, job creators and wealth creators. Though sheen may have been reduced from Paytm in recent times with adverse spotlight because of 45%+ stake of Ant Financial of Alibaba and Softbank Vision Fund, both of Chinese origins but we cannot forget that getting such investments was considered an act of heroism just 2 years back.
Gaps in our policies over long time have led to some of our most celebrated startups becoming significantly or majorly owned by non-Indian companies like Flipkart by Walmart, Paytm by Alibaba and Softbank, Ola by Softbank, Tiger Capital and Tencent among many other examples. These have also led to slipped management control or remaining tenuos at best. We made an effort sometime back by introducing dual class shares and separate ownership from economic structure but it was a late effort and still left lot to be desired.
These are unprecedented times. Nation states have realised the impact and criticality of global internet and social media companies. They have also realised critical need to support national technology champion companies and also build safeguards from companies of adversary nations.
Ironically, China the original practitioner of this philosophy over the years by disallowing or creating insurmountable hurdles in way of Google, Facebook, Amazon, Walmart and many others and reserving national markets for homegrown technology companies is now seeking a level playing field in India, United States and other jurisdictions.
China was able to create national champions with 2019 figures like Alibaba (market cap 428 billion US dollars), Tencent which owns WeChat (394 billion dollars), Meituan Dianping (76 billion dollars and one of the global innovation leaders in 2019), Baidu Search engine (43 billion dollars), Xiaomi, Huawei, Bytedance with Tiktok market value itself being 50 billion dollars among many others. It is a lesser known fact that Tencent apart from owning WeChat which is also under storm in United States, is also the biggest video game company in the world. It also owns US Game studio Riot Game, has substantial stake in Epic Games which is behind Fortnite game and is majority owner of Supercell which is behind Clash of Clans game.
China was able to get these large companies built by protecting and nurturing them with capital and market access before they could become giants and spread wings. By legislation enacted in 2017, all these companies are obligated to support China’s national strategic policy considerations from any of their global operations. Despite the Covid 19 setback, China has continued to have thriving ecosystem of startups with mega IPOs lined up and thrust to claim global AI leadership by 2030.
These reasons prompted the United States Government to force sale of Tiktok and though the US Government has withdrawn its order to ban Tiktok from 20th Sep but continues to keep the Oracle-Walmart-Bytedance deal on tenterhooks while it needed a San Francisco court to halt ban at the eleventh hour on Wechat downloads from 20th Sep. Around 30 countries in the world under The Clean Network initiative spearheaded by the United States government are taking steps to ensure safety of network and potential risks from companies originating from countries with adversarial jurisdictions which can be read as China.
India took steps to ban Tiktok and number of other Chinese apps whose activities posed security concerns including suspect data transfers. This strategic step may have been taken in backdrop of border skirmishes with China but must also be read together with active encouragement to identify homegrown Indian apps and IT companies under the Atmanirbhar Bharat campaign.
There has been active and enthusiastic participation from number of startups and as per reliable sources, many of these companies, potential winners and the Government has been approached by large global venture capitalists to explore investment opportunity in these winning companies.
In this regard, Google’s action to bar Paytm from Google app store exposes our strategic weakness. It is very important that actions impacting Indian digital ecosystem are not taken from remote locations not subject to Indian jurisdiction and laws. Indian minds are anyway influenced by Facebooks and Instagrams of the world whose policies to regulate content is at best driven by commercial considerations and at worst by parochial mindsets whether in their Indian teams or back in US Headquarters. Google banning Paytm even for 7 hours has raised another sensitive policy issue and the Government of India needs to look at playstore policies of Google and Apple which have anyway puzzled mobile app builders since long or we need to incentivize creation of India based app stores.
It is also very important that the Artificial Intelligence AI policy currently being drafted by Ministry of Electronics and IT contains actionable intent to enable large Indian owned AI companies to be built so that long term strategic intent to keep data and algorithm related intellectual property resides in companies with Indian ownership.
We also need to be careful of arguments of many multinational companies with large Indian employee base to present themselves as Indian companies because the IP ownership eventually resides with these companies. These companies can be partners in progress but policy draft must include that intellectual property built by utilizing data of Indian citizens must have complete or meaningful ownership to be retained in India or kept enabled to drive long term benefits of Indian nation.
Such meaningful provisions need to be included in data privacy policies for individuals and commercial contexts, data intermediary policy, ecommerce policy among others. The Digital Communications Policy 2018 which needs to be brought on track for holistic implementation while containing highly ambitious goals and also Bharatnet project to reach 600000 Gram Panchayats in 1000 days as announced by the Prime Minister on 15th August need to be reviewed to be made be far more effective than what is seen on ground. It is critical to digital revolution in rural India. These are few important examples.
In nutshell, the technology policies of the government need to be looked with integrated lens and strategic intent. It is pertinent to look at with nationalistic perspective on strategic matters and necessary to realise that after having missed the number of buses of PC manufacturing, internet, ecommerce, large technology startups etc, India cannot afford to miss the data, AI and digital buses too and abdicate digital sovereignty over time which will amount to compromising our long term national security.
(Author is a former member of National Working Committee of Electronics and Computer Software Export Promotion Council and advises on Technology policy.)
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत एवं वन मंत्री डॉ. हरक सिह रावत ने राजधानी देहरादून के झाझरा वन रेंज परिसर में उत्तराखण्ड सिटी फॉरेस्ट ‘आनन्द वन’ का लोकापर्ण किया। इस पार्क में प्रदेश की विभिन्न प्रजातियों के जीव-जन्तुओं एवं प्राकृतिक दृश्यों को प्रतिकृतियों के माध्यम से दिखाया गया और उनके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। नेचर एजुकेशन सेंटर के रूप में विकसित किए गए इस फारेस्ट सेंटर को नवरात्रि में आम जन के लिए खोला जायेगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि वन विभाग द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ किए बिना सिटी फॉरेस्ट तैयार किया गया है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें केवल प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया गया है। आनन्द वन में उत्तराखण्ड की उपकृति को दिखाने का अच्छा प्रयास किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की संस्कृति ग्राम की जो परिकल्पना है, उसकी झलक भी लोगों को यहां पर देखने को मिलेगी। इससे लोगों को उत्तराखण्ड की संस्कृति, शिल्प, देवस्थानों एवं परम्पराओं के बारे में भी जानकारी मिलेगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह सिटी पार्क पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केन्द्र बनेगा। उन्होंने बताया कि एक सिटी फॉरेस्ट हल्द्वानी में विकसित किया जा रहा है।
वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि यह सिटी फॉरेस्ट वन विभाग द्वारा समाज को एक धरोहर के रूप में सौंपा जा रहा। हल्द्वानी और ऋषिकेश में भी थीम बेस्ड सिटी पार्क बनाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने वन विभाग को 10 हजार लोगों को रोजगार का जो लक्ष्य दिया गया है, वह पूरा किया जाएगा। इस वर्ष कैम्पा के माध्यम से 400 करोड़ रूपये के कार्य किये जाएंगे। जिसमें 10 हजार से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जाएगा। भारत सरकार के सहयोग से देहरादून एवं कोटद्वार में नगर वन और अनेक विकास खण्डों में ‘नेचर वन’ बनाने की योजना बनाई गई है।
स्थानीय विधायक सहदेव पुण्डीर ने कहा कि झाझरा में सिटी फॉरेस्ट बनने से क्षेत्र में पर्यटन की गतिविधियां बढ़ेंगी और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने कहा कि इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा होने में लगभग सवा तीन साल लगे। इस अवसर पर वन विकास निगम के अध्यक्ष सुरेश परिहार, मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल सुशांत पटनायक, साधना जयराज आदि अधिकारी उपस्थित थे।
राज्यसभा में कृषि विधेयकों को पारित करने के दौरान विपक्षी सांसदों के व्यवहार से क्षुब्ध उपसभापति हरिवंश ने राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति को भावुक पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि ‘राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उससे पिछले दो दिनों से गहरी आत्मपीड़ा, तनाव और मानसिक वेदना में हूं। मैं पूरी रात सो नहीं पाया।’ उन्होंने घोषणा की है कि वह इसे लेकर एक दिन के उपवास पर रहेंगे।
उच्च सदन की मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई
उन्होंने लिखा है कि ‘सदन के माननीय सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ। आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई। उच्च सदन की हर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गयी।’ उन्होंने आगे लिखा कि लोग आएंगे- जायेंगे। ‘ समय और काल के सन्दर्भ में न उनकी स्मृति होगी न गणना। पर लोकतंत्र का यह मंदिर ‘ सदन’ हमेशा समाज और देश के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘मैं मानता हूँ कि मेरा निजी कोई महत्व नहीं है। पर इस पद का है।’
हरिवंश ने कहा कि ‘मुझे लगा कि उच्च सदन के मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए। शायद मेरे उपवास से सदन में इस तरह के आचरण करने वाले माननीय सदस्यों के भीतर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा सभी देशवासी पत्र जरूर पढ़ें
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सभा के सभापति हरिवंश द्वारा राष्ट्रपति को लिखे पत्र की सराहना करते हुए एक ट्वीट किया है। ट्वीट में मोदी ने कहा है, ‘माननीय राष्ट्रपति जी को माननीय हरिवंश जी ने जो पत्र लिखा, उसे मैंने पढ़ा। पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है। यह पत्र प्रेरक भी है और प्रशंसनीय भी। इसमें सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी। मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे जरूर पढ़ें।’
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मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भर्ती प्रक्रियाओं को निर्धारित टाईम टेबल में सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना प्रोटोकोल का पालन करते हुए भर्ती परीक्षाओं का आयोजन समयबद्धता से किया जाए। इसमें किसी भी स्तर पर शिथिलता न बरती जाए। मुख्यमंत्री ने सोमवार को सचिवालय के वीर चंद्र सिंह गढ़वाली सभागार में भर्ती प्रक्रियाओं की समीक्षा करते हुए कहा कि विभागों से चयन आयोगों को अध्याचन भेजने में विलम्ब न हो। इसके लिए एक ऑनलाइन व्यवस्था बनाई जाए।
समान प्रकृति के पदों की एक ही परीक्षा हो
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि एक जैसी प्रकृति के पदों के लिए एक ही परीक्षा आयोजित की जाए। इससे परीक्षार्थियों के समय व धन की बचत होगी और भर्तियों में भी अनावश्यक विलम्ब नहीं होगा। राज्य लोक सेवा आयेाग जब एक बार डीपीसी की तिथि निर्धारित कर देता है तो यह संबंधित अधिकारियों की अनुपलब्धता के कारण स्थगित नहीं होनी चाहिए।
अध्याचन पर आपत्तियों का जवाब तीन दिन में
चयन आयेाग द्वारा की जाने वाली पृच्छाओं व आपत्तियों पर जवाब अधिकतम तीन दिनों में चला जाना चाहिए। कार्मिक विभाग प्रत्येक माह विभागों की भर्ती प्रक्रियाओं की समीक्षा करे और विभागों व चयन आयेागों में समन्वय स्थापित करे।
लक्ष्य निर्धारित कर हो काम
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना के कारण भर्ती प्रक्रियाओं में विलम्ब हुआ है। इसकी भरपाई अगले 6 माह में किस प्रकार की जा सकती है, इसकी कार्ययोजना बना ली जाए। टार्गेटेड तरीके से काम करते हुए चयन आयेागों के साथ ही शासन स्तर पर भी इसे सर्वोच्च प्राथमिकता पर लिया जाए।
बैठक में उपस्थित विभिन्न आयोगों के अध्यक्षों ने अपने-अपने यहां चल रही भर्ती प्रक्रियाओं की जानकारी दी।
उत्तराखण्ड राज्य लोक सेवा आयोग
उत्तराखण्ड राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष मेजर जनरल (सेनि) आनंद सिंह रावत ने बताया कि वर्ष 2017 से वर्तमान तक राज्य लोक सेवा आयोग से 3047 पदों पर चयन किया गया। जबकि 1145 पदों पर चयन प्रक्रिया गतिमान है जो कि इस वित्तीय वर्ष में पूर्ण कर ली जाएगी। आयोग ने इस वर्ष विभिन्न पदों के लिए टाईम टैबल बना लिया है। इसके अनुसार चयन सुनिश्चित किया जा रहा है। वर्ष 2017 से वर्तमान तक डीपीसी द्वारा कुल 2647 पदों पर चयन किया गया है, जबकि 219 पदों पर डीपीसी की प्रक्रिया गतिमान है।
उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग
उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयेाग के अध्यक्ष एस.राजू ने बताया कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा वर्ष 2017 से 2020 तक कुल 6 हजार पदों पर चयन पूर्ण किया गया। जबकि 2014 से 2017 तक 801 पदों पर चयन किया गया। वर्तमान में 9 परीक्षाएं कोविड-19 के संक्रमण के कारण लंबित हैं। इनमें से 7 परीक्षाएं अक्टूबर से दिसम्बर तक आयोजित किया जाना प्रस्तावित है। चयन वर्ष 2019-20 व 2020-21 में लगभग 7200 पदों पर अधियाचन प्राप्त हुए हैं इनमें से लगभग 2500 पदों पर विज्ञापन प्रकाशित किया जा चुका है जबकि 4 हजार पदों पर विज्ञापन की कार्यवाही प्रगति पर है।
उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड
उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्ष डा.डीएस रावत ने बताया कि 2017 से अभी तक कुल 1282 का चयन किया गया। बोर्ड को वर्तमान में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, चिकित्साधिकारी, एक्स-रे टेक्नीशियन, ईसीजी टेक्नीशियन, रेडियोग्राफिक्स, राजकीय मेडिकल कालेजों में विभिन्न तकनीशियन के पदों सहित कुल 1351 पदों के अधियाचन प्राप्त हैं। इन पर चयन प्रकियाएं निश्चित टाईमफे्रम में पूरा कर लिया जाएगा।
बैठक में मुख्य सचिव ओमप्रकाश, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, सचिव अमित नेगी सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा ‘देखो अपना देश’ के तहत आयोजित वेबिनार की श्रृंखला में “प्रमोटिंग डेस्टिनैशन विद ऑथेन्टकैटड क्विज़ीन” विषय पर उत्तराखंड, पंजाब व दिल्ली के पारंपरिक व्यंजनों की प्रस्तुति दी गई। वेबिनार में भारत को विभिन्न व्यंजनों की भूमि के रूप में पेश किया गया। कहा गया कि प्रत्येक राज्य, क्षेत्र और इलाके में अद्वितीय पारंपरिक व्यंजन होते हैं, जो इसकी जलवायु के अनुकूल होते हैं। साथ ही स्थानीय स्तर पर जो अनाज, सब्जियां, मसाले, जड़ी-बूटियाँ और फल उपलब्ध होते हैं, उन्हें विभिन्न तरीकों और प्रकारों से पकाया जाता है। भारत के पारंपरिक व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि बेहद स्वस्थप्रद भी हैं। साथ ही व्यंजनों में मिलाए गए मसाले और जड़ी-बूटियाँ प्रतिरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।
वेबिनार में तीन राज्यों, उत्तरांचल, पंजाब और दिल्ली के कुछ पारंपरिक व्यंजनों को प्रस्तुत किया गया। बर्ड ग्रुप की चेयरपर्सन राधा भाटिया, दिल्ली स्थित एक होटल ग्रुप से जुड़े इग्ज़ेक्यटिव शेफ अनुज वधावन, ऋषिकेश स्थित रोज़ीइट गंगा के इग्ज़ेक्यटिव शेफ चेतन राणा और दिल्ली के ही पेस्ट्री शेफ आनंद पवार ने वेबिनार प्रस्तुत किया था।
शेफ चेतन राणा ने उत्तराखंड के पकवान तैयार किए। उन्होंने कद्दू के पत्ते की भाजी व चटनी की रेसिपी बताई। उन्होंने दर्शकों के लिए लाइव खाना पकाया। उन्होंने प्राकृतिक स्वाद को बनाए रखने के लिए मसालों के कम इस्तेमाल पर जोर दिया। सिलबटटे का इस्तेमाल कर बनाई गई चटनी सुस्वादु और स्वादिष्ट होती है। उन्होंने काफुली, चटनी, फाणु, बाड़ी, चावल, कुमाऊंनी रायता, डुबुक, झंगोरा की खीर आदि से युक्त एक सुंदर सात्विक उत्तराखंडी थाली भी प्रदर्शित की।
शेफ आनंद पंवार ने राम लड्डू, दौलत की चाट की रेसिपी साझा की और दर्शकों को देखने और सीखने के लिए लाइव कुकिंग की। उन्होंने, चांदनी चौक और इसके स्ट्रीट फूड के बारे में बात करते हुए खाने-पीने की अलग-अलग गलियों के बारे में जानकारी दी। जैसे कि परांठेवाली गली, चाटवाली गली आदि। राम लड्डू, चना और मूंग दाल में अदरक, जीरा, नमक मिला कर तैयार किया जाता है और तेल में तला जाता है। फिर उस पर सॉस, कच्चे प्याज, मूली और अनार रखा जाता है। चांदनी चौक में एक बहुत लोकप्रिय मिठाई मिलती है, जिसे दौलत की चाट कहा जाता है। यह मिठाई फुल क्रीम दूध, चीनी, ड्राई फ्रूट्स और केसर से तैयार की जाती है।
शेफ अनुज वधावन ने अवध भोजन और दम कुकिंग के बारे में बताया। उन्होंने लाइव मुर्गज़ामेंडोज़ खाना पकाया। यह मसालेदार चिकन और रूमाली रोटी में रोल कर और दम में पका कर तैयार किया गया।
भारत सरकार की अपर महानिदेशक, रूपिंदर बराड़ ने इस दौरान प्रकृति का सम्मान करने और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की सीख देने की आवश्यकता को रेखांकित किया। पर्यटन मंत्रालय द्वारा ‘देखो देश अपना’ वेबिनार श्रृंखला भारत की समृद्ध विविधता को दर्शाने का एक प्रयास है। यह वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से लगातार एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रसार कर रहा है।
मोदी सरकार ने मुखौटा अर्थात शेल कंपनियों की पहचान कर इन्हें बंद करने के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है। सरकार ने लगातार दो साल या इससे अधिक समय से वित्तीय विवरण (financial statements) दाखिल नहीं करने के आधार पर इन कंपनियों की पहचान की। कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्राविधानों के तहत पिछले तीन वर्षों के दौरान 3,82,581 कंपनियों को बंद कर दिया गया है। यह जानकारी राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने दी।
कंपनी अधिनियम के तहत “शेल कंपनी” को पारिभाषित नहीं किया गया है। यह आम तौर पर उस कंपनी को इंगित करता है, जो सक्रिय कारोबार का संचालन नहीं करती है या कंपनी के पास महत्वपूर्ण परिसंपत्ति नहीं है। इन कंपनियों का इस्तेमाल कुछ मामलों में अवैध उद्देश्य के लिए किया जाता है जैसे कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, अस्पष्ट स्वामित्व, बेनामी संपत्ति आदि। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के मुताबिक शेल कंपनी के मामले की जांच करने के लिए सरकार द्वारा गठित विशेष कार्य बल ने कुछ सिफारिशें की हैं। इसके तहत शेल कंपनियों की पहचान के लिए अलर्ट के रूप में कुछ रेड फ्लैग संकेतकों का उपयोग किया जाता है।
सामान्य भाषा में कहा जाए तो शेल कंपनियां वे कम्पनियाँ हैं जो केवल कागजों पर चलती हैं और पैसे का भौतिक लेनदेन नहीं करती हैं। इन्हें छद्म कम्पनी भी कह सकते हैं। समझा जाता है कि काले धन को सफेद करने के लिए बड़े पैमाने पर शेल कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा आतंकी गतिविधियों में पैसों के लेनदेन के लिए भी इन कंपनियों का इस्तेमाल होता है।