प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
एक अनुमान के अनुसार, देश में वर्ष 2050 तक शहरों की आबादी 80 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। यानी, उस समय की देश की कुल आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक और आज की शहरी आबादी से लगभग दुगुनी यथा भारत एक शहरी देश के तौर पर उभर कर सामने आ जाएगा। 2011 की जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में 53 ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख की संख्या से अधिक है।
शहरीकरण के एक सबसे बड़े फ़ायदे के तौर पर, यह कई अनुसंधानों के माध्यम से सिद्ध हो चुका है कि, देश में बढ़ते शहरीकरण से आर्थिक विकास की दर तेज़ होती है एवं रोज़गार के नए अवसर भी गांवों की अपेक्षा शहरों में अधिक उत्पन्न होते हैं। आज भारत में भी देश के सकल घरेलू उत्पाद में शहरी क्षेत्र का योगदान 65 प्रतिशत का है, जिसे बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक ले जाना है। बढ़ते शहरीकरण से विभिन्न स्तरों पर सरकारों की ज़िम्मेदारी भी बढ़ती है, क्योंकि साफ हवा, पीने का पानी, ऊर्जा, इन शहरों को उपलब्ध कराना सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
शहरों का विकास शुरू में ही यदि उचित तरीक़े से नहीं किया जाए तो पर्यावरण से सम्बंधित कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जैसे भारत के कई शहरों में आज देखने में आ रहा है कि सर्दियों के मौसम में शुद्ध हवा का अभाव हो जाता है। कोहरा इतना घना होने लगता है कि लगभग 50 फ़ुट दूर तक भी साफ़ दिखाई देना मुश्किल हो जाता है। शहरों की कई कालोनियों में साफ़ पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। अतः शहरों का विकास इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि भविष्य में पर्यावरण से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या खड़ी न हो सके।
हाल ही के वर्षों में इस ओर ध्यान दिया गया है। स्वच्छ भारत मिशन एवं राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसके अंतर्गत, नागरिकों के सहयोग से शहरों में स्वच्छता बनाए रखे जाने का प्रयास किया जा रहा है। शहरों में झुग्गी झोपड़ी की समस्या हल करने के उद्देश्य से हर परिवार को वर्ष 2022 तक एक पक्का मकान उपलब्ध कराये जाने का प्रयास किया जा रहा है। इस हेतु शहरी इलाक़ों में एक करोड़ नए मकान बनाये जा रहे हैं।
देश में 100 स्मार्ट शहरों का विकास किया जा रहा है। इन स्मार्ट शहरों के स्थानीय निवासियों को अपने शहर के विकास की योजना बनाने को कहा गया है। साइकल एवं पैदल चलने के लिए अलग से मार्गों को बनाया जा रहा है। इन शहरों में पब्लिक वाहनों का अधिक से अधिक प्रयोग किये जाने पर बल दिया जा रहा है। उद्योगों को इन शहरों की सीमाओं से बाहर बसाया जा रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इन शहरों का समावेशी एवं मिश्रित विकास किया जा रहा है।
देश में 500 किलोमीटर से अधिक मेट्रो की लाइन भी स्थापित चुकी है और इसका तेज़ी से विकास जारी है। महानगरों में यातायात पर दबाव कम करने के उद्देश्य से कई नए नए बाई पास भी बनाए जा रहे हैं। महानगरों के 200 किलोमीटर के आस पास के क्षेत्रों में लोगों को बसाए जाने पर भी विचार किया जा रहा है एवं उनके लिए द्रुत गति से चलने वाले यातायात की व्यवस्था भी की जाएगी। ताकि, ये लोग इन इलाक़ों में निवास कर सकें एवं आसानी से महानगरों में आवागमन कर सकें। परिवहन उन्मुख विकास योजना के अंतर्गत क्षेत्रीय त्वरित यातायात के क्षेत्र में पड़ने वाले क्षेत्र में लंबवत एवं मिश्रित विकास किया जाना चाहिए ताकि इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सारी सुविधाएं इनके घरों के आसपास ही मिलें और इन सुविधाओं को पाने के लिए उन्हें घर से कहीं दूर जाना न पड़े।
देश के शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण की स्थिति में सुधार करने हेतु वर्षा के पानी का संचयन करना, ऊर्जा की दक्षता – एलईडी बल्बों का अधिक से अधिक उपयोग करना, शहरों में हरियाली का अधिक से अधिक विस्तार करना, ध्वनि प्रदूषण कम करना, सॉलिड वेस्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना, ग्रीन यातायात का उपयोग करना, आदि क्षेत्रों में अभी और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
उक्त क्षेत्रों में तीव्र गति से सुधार करने हेतु हर मकान के लिए बारिश के पानी के संचयन को आवश्यक कर देना चाहिए ताकि भूमि के पानी को रीचार्ज किया जा सके। अक्षय ऊर्जा के उपयोग को भी आवश्यक किया जाना चाहिए और घर में सोलर ऊर्जा के उत्पादन प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। विद्युत ऊर्जा से चालित वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने की नीति बननी चाहिए। हर घर में ग्रीन बेल्ट होनी चाहिए। घरों के अंदर एवं आस पास पौधे लगाए जाने आवश्यक कर देना चाहिए। मकानों के निर्माण में लंबवत विकास होना चाहिए ताकि शहर में हरियाली हेतु अधिक ज़मीन उपलब्ध हो सके। देश में ख़ाली पड़ी पूरी ज़मीन को ग्रीन बेल्ट में बदल देना चाहिए। आज तो पेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने की तकनीक भी उपलब्ध है। अतः पेड़ों को काटने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
साथ ही, पर्यावरण को बचाने के उद्देश्य से प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने के लिए हमें कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएं तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। हम घर में कई छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर पानी की भारी बचत कर सकते हैं। जैसे, टॉइलेट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें, दातों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें।
अपशिष्ट एवं बेकार पड़ी चीज़ों को रीसाइकल कैसे करें ताकि इसे देश के लिए सम्पत्ति में परिवर्तित किया जा सके। इस विषय की और अब हम सभी को गहन ध्यान देने की ज़रूरत है। प्लास्टिक, कपड़ा, अल्यूमिनीयम, स्टील आदि सभी को रीसाइकल किया जा सकता है। कचरा एवं प्लास्टिक को तो शीघ्र ही रीसाइकल करना होगा क्योंकि देश के पर्यावरण पर इन दोनों घटकों का अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
प्रति व्यक्ति देश में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अन्य देशों की तुलना में आज बहुत कम है। जबकि देश में और अधिक शहरीकरण होने के चलते प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अभी तो और आगे बढ़ेगा। अतः वर्तमान संसाधनों की दक्षता को भी बढ़ाना ही होगा एवं इनका रीसाइकल एवं पुनः उपयोग भी करना होगा। प्रयास यह हो कि शहरीकरण और पर्यावरण में संतुलन क़ायम हो सके।
राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ ने कोविड सम्मान प्रशस्ति पत्र एवं सम्मान राशि देने में सरकार पर आयुष चिकित्सकों एवं कार्मिकों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया है। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा सिर्फ़ एलोपैथिक विभाग के कार्मिकों के लिए ही कोविड सम्मान प्रशस्ति पत्र एवं कोविड सम्मान राशि के रूप में 11 हजार रूपये देने की घोषणा की गई है।
राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ, उत्तराखण्ड (पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ० डी० सी० पसबोला ने कहा कि कोरोना काल में प्रत्येक आयुष चिकित्सक एवं स्टाफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रोगियों को ओपीडी में देखने, सैंपल लेने से लेकर कोरोना के खौफ से डरे लोगों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने हेतु काउंसलिंग तक के कामों में आयुष चिकित्सक व कार्मिक भी जुटे रहे। यहां तक कि चैक पोस्टों में बाहर से आने वाले यात्रियों का परीक्षण, आईशोलेशन केंद्रों और होम आईशोलेशन में भी उनके द्वारा योगदान दिया गया।

उन्होंने कहा कि बावजूद इसके सरकार द्वारा कोविड सम्मान राशि देते समय फ्रंटलाइन आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों के योगदान को भुला देना दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, साथ में उनके मनोबल को भी गिराने वाला कदम है। आयुष प्रदेश में सरकार के इस भेदभावपूर्ण निर्णय से समस्त आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों में आक्रोश एवं हताशा व्याप्त है।
डॉ० पसबोला द्वारा बताया गया कि इस सम्बन्ध में संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष डॉ० के० एस० नपलच्याल द्वारा निदेशक, आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवाएं डॉ० वाई० एस० रावत को पत्र लिखकर आयुर्वेदिक चिकित्सकों एवं कर्मचारियों को भी कोविड सम्मान पत्र एवं राशि प्रदान किए जाने की मांग की है। जिसकी प्रतियां आयुष सचिव, आयुष मंत्री डॉ० हरक सिंह रावत एवं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को भी भेजी गयी है।
सरकार के इस पक्षपात पूर्ण निर्णय की उपाध्यक्ष डॉ० अजय चमोला द्वारा भी कठोर शब्दों में भर्त्सना की गयी। वहीं महासचिव डॉ० हरदेव रावत द्वारा भी इस सम्बन्ध में आगे कार्यवाही करने की बात कही गयी है।
प्रान्तीय होम्योपैथिक संघ द्वारा भी सरकार के इस निर्णय का विरोध किया गया है एवं शासन को पत्र लिखा गया है।
केंद्र सरकार ने सिमली-ग्वालदम-बागेश्वर-जौलजीबी मोटर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय द्वारा इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है।
230 किमी लंबा यह राष्ट्रीय राजमार्ग भारतमाला परियोजना के तहत डबल लेन का निर्मित होगा। मोटर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किए जाने पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का आभार व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि इस महत्वपूर्ण राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित होने से राज्य की बड़ी मांग पूरी हुई है। राज्य को सड़क मरम्मत आदि में होने वाली बड़ी राशि की भी इससे बचत हुई है। उन्होंने कहा कि यह मार्ग सीमांत क्षेत्रों को जोड़ने वाली प्रमुख सड़क थी।
उन्होंने कहा कि भारतमाला परियोजना के तहत इस सड़क के डबल लेन बनने से आवागमन में भी सुविधा होगी और साथ ही भविष्य में इसकी मरम्मत आदि में होने वाला व्यय भी भारत सरकार द्वारा वहन किया जायेगा।
उत्तराखंड भी कारोबार में सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) सुधारों को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले राज्यों की श्रेणी में आ गया है। इस सुधार प्रक्रिया को पूरा करने के बाद राज्य को खुले बाजार से 702 करोड़ रुपये जुटाने की अनुमति मिल गई है। उत्तराखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश व गुजरात द्वारा भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के बाद इस श्रेणी में आने वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बुधवार को यह जानकारी दी है। मंत्रालय के अनुसार इससे पहले, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना इस श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सहायता प्रदान करने वाले सुधारों को पूरा करने पर इन 15 राज्यों को 38,088 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ऋण जुटाने की अनुमति दी गई है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस देश में निवेश के अनुकूल कारोबार के माहौल का महत्वपूर्ण सूचक है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार राज्य अर्थव्यवस्था की भविष्य की प्रगति तेज करने में समर्थ बनाएंगे। इसलिए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में यह निर्णय लिया कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करने वाले राज्यों को अतरिक्त ऋण जुटाने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा कुछ मानक तय किये गए हैं।
हिंदुओं के विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट इस वर्ष 18 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। मंगलवार को बसंत पंचमी के अवसर पर विधि-विधान के साथ कपाट खोलने की तिथि निर्धारित की गई।
उत्तराखंड के चमोली जनपद में लगभग 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि हर वर्ष बसंत पंचमी को तय की जाती है। प्राचीन परंपरा के अनुसार नरेंद्रनगर (टिहरी) स्थित राजदरबार में महाराजा मनुजयेन्द्र शाह की उपस्थिति में आयोजित एक समारोह में कपाट खुलने की तिथि तय की गई। पंडित कृष्ण प्रसाद उनियाल एवं विपिन उनियाल ने पूजा-अर्चना व पंचाग गणना की और परंपरानुसार महाराजा ने कपाट खुलने की तिथि घोषित की। इस वर्ष मंगलवार, 18 मई को प्रातः 4 :15 बजे विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ के कपाट खोले जाएंगे।

इस अवसर पर बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वरीप्रसाद नंबूदरी, टिहरी सांसद महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह, गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत , पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन सिंह गांववासी, चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष शिवप्रसाद ममगाईं, उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी.सिंह, धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल, अधिशासी अभियंता अनिल ध्यानी, डा. हरीश गौड़ सहित डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पदाधिकारी हरीश डिमरी, पंकज डिमरी, विनोद डिमरी, सुरेश डिमरी, आशुतोष डिमरी आदि मौजूद रहे।
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक करण राजदान अपनी आनेवाली फिल्म हिंदुत्व की अधिकांश शूटिंग उत्तराखंड में करेंगे। सोमवार को देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने फिल्म का मुहूर्त शाॅट लिया।

फिल्म के मुख्य कलाकार आशीष शर्मा व सोनारिका भदौरिया हैं। भजन सम्राट अनूप जलोटा फिल्म में गायकी के साथ ही अपने अभिनय का जलवा भी बिखेरेंगे। प्रसिद्ध टीवी सीरियल रामायण की सीता फेम दीपिका चिखालिया भी फिल्म में अभिनय करती दिखेंगी। फिल्म में अनूप जलोटा के अलावा दलेर मेहंदी भी गानों को अपनी आवाज देंगे। फिल्म की पटकथा करण राजदान ने खुद लिखी है।

इस अवसर मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस उद्देश्य के साथ हिंदुत्व फिल्म बनाई जा रही है, उम्मीद है कि यह फिल्म हिंदुत्व को दुनिया में पहुंचाने में सफल होगी। उन्होंने कहा कि फिल्मों का समाज एवं मानव जीवन कितना गहरा प्रभाव पड़ता है, इसके अनेक उदाहरण है। हिंदुत्व शब्द प्रेम, उदार और विश्वास का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है, और सनातन संस्कृति का आधार हिंदुत्व है।

फिल्म के निर्देशक करण राजदान ने कहा कि हिंदुत्व फिल्म में प्रेम, बलिदान एवं सद्भावना के मिलन को दिखाने का प्रयास किया जाएगा। इसके साथ ही फिल्म के माध्यम से दुनियाभर में हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश भी होगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही उत्तराखंड में एक और फिल्म की शूटिंग भी की जाएगी।
उत्तराखंड में आगामी सत्र में कार्मिकों के तबादले वार्षिक स्थानांतरण अधिनयम के प्रावधानों के तहत ही होंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कार्मिक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
पिछले साल 20-21 में वार्षिक स्थानांतरण सत्र को शून्य किया गया था। वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम की धारा-27 के अधीन गठित समिति की 3 फरवरी, 21 को हुई बैठक में शून्य सत्र को समाप्त किए जाने का निर्णय लिया गया था। मुख्य सचिव ने प्रस्ताव में बताया कि आगामी वर्ष में विधानसभा के निर्वाचन भी होने हैं। इस कारण निर्वाचन की आदर्श आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। आम तौर पर निर्वाचन कार्य में संलग्न सभी विभागों के कार्मिकों के लिए एक स्थान पर 3 साल से अधिक रहने का निषेध है। इसलिए आगामी सत्र को शून्य नहीं किया जा सकता। इसमें वित्तीय दृष्टिकोण से 10 फीसदी या आदर्श चुनावी आचार संहिता के अनुरूप वांछित स्थानांतरण ही किए जाने की व्यवस्था की गई है।
इस प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष लाया गया था। इस पर मुख्यमंत्री ने अनुमोदन दे दिया है। साथ ही आगामी सत्र के लिए वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम के प्राविधान ही लागू किए जाने और स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू करने के प्रस्ताव पर भी मोहर लगा दी है।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने चमोली जिले के सीमांत क्षेत्र में आई प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इलाके का दौरा किया और क्षेत्र में बीआरओ द्वारा चलाए जा रहे बचाव, राहत एवं पुनर्वास कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में आपदा प्रभावित क्षेत्र में काम कर रहे बीआरओ की टीम की हौंसला अफजाई भी की।
विगत 7 फरवरी को चमोली जिले के सीमांत रैणी गांव के पास हिमस्खलन से धौली गंगा व ऋषि गंगा के जलस्तर में अचानक वृद्वि हो गई थी और इसने भीषण बाढ़ का रूप ले लिया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए हैं, जिनमें से 40 लोगों के शव बरामद हो गए हैं। आपदा में निजी क्षेत्र के ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट समेत NTPC जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुक्सान पहुंचा। इसके अलावा ऋषिगंगा नदी पर रैणी गांव के पास जोशीमठ-मलारी रोड पर बीआरओ का 90 मीटर आरसीसी पुल भी बह गया । यह पुल चीन सीमा के निकट स्थित नीति घाटी तक पहुंचने का एकमात्र लिंक था।

प्रभावित क्षेत्र के भ्रमण के दौरान बीआरओ के महानिदेशक जनरल चौधरी ने बताया कि आपदा के बाद उनके संगठन ने राहत व बचाव कार्यों में 100 से अधिक वाहनों/उपकरणों व संयंत्रों को शामिल किया गया। बीआरओ ने भारतीय वायु सेना की सहायता से महत्वपूर्ण उपकरणों को भी अपने अभियान में शामिल किया है । प्रोजेक्ट शिवालिक के तहत 21 बीआरटीएफ की लगभग 20 टीमों को बचाव और पुनर्वास उद्देश्यों के लिए तैनात किया गया है।
प्रारंभिक निरीक्षण के बाद बीआरओ ने सभी आवश्यक मोर्चों पर कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित करने के लिए काम शुरू किया है। सुदूर किनारे पर खड़ी चट्टानों और दूसरी तरफ 25-30 मीटर ऊंचे मलबे/ कीचड़ के कारण यह स्थल बहुत चुनौतीपूर्ण था, हालांकि बीआरओ ने इन चुनौतियों को दूर कर लिया है और युद्धस्तर पर कार्य जारी है।
जनरल चौधरी ने विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर रहे बीआरओ के जवानों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि मौसम की चुनौतियों के बीच बीआरओ की टीम चौबीसों घंटे काम कर रही है, ताकि क्षेत्र में जल्द से जल्द कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित किया जा सके। उन्होंने बीआरओ को आवश्यक सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को धन्यवाद भी दिया।
रेल मंत्रालय ने मीडिया में चल रही उन खबरों का खंडन किया है, जिनमें आगामी अप्रैल माह से सभी रेल गाड़ियों को फिर से शुरू किए जाने की बात कही गई है।
मंत्रालय ने फिर से दोहराया है कि सभी रेल गाड़ियों को फिर से शुरू किए जाने के संबंध में ऐसी कोई तिथि अभी निर्धारित नहीं की गई है।
एक आधिकारिक बयान में मंत्रालय ने कहा है कि रेलवे अपनी रेलगाड़ियों की संख्या वृद्धि अवश्य कर रहा है लेकिन यह वृद्धि चरणबद्ध ढंग से की जा रही है।
वर्तमान समय में 65% रेलगाड़ियां चल रही हैं। जनवरी महीने में 250 रेल गाड़ियों को शुरू किया गया। इसी तरह से आने वाले समय में भी क्रमशः रेल गाड़ियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
गाड़ियों की संख्या बढ़ाए जाने के निर्णय में सभी आवश्यक एहतियाती उपायों को ध्यान में रखा जा रहा है और सभी पक्षों की राय ली जा रही है।
मंत्रालय ने इस संबंध में किसी तरह की अटकलबाज़ी को नजरअंदाज करने की अपील की है और कहा है कि जब भी ऐसे निर्णय लिए जाएंगे मीडिया के माध्यम से जनता को विधिवत सूचित किया जाएगा।
डॉ. नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
आज सोशल मीडिया अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है, बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी ले चुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन भले ही 26 जनवरी के बाद से दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पा रहा हो, लेकिन ट्विटर पर अपने प्रवेश के साथ ही उसने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर लिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि बीतते समय और इस आंदोलन को लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों की उपलब्धता के साथ आंदोलनरत किसानों के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर उठती और देश का आम जन सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि इसी साल की जनवरी में एक अमेरिकी डाटा फर्म की सर्वे रिपोर्ट सामने आई, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को भारत ही नहीं विश्व का सबसे लोकप्रिय और स्वीकार्य राजनेता माना गया। इस सर्वे में अमरीका, फ्रांस, ब्राज़ील, जापान सहित दुनिया के 13 लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया गया था। जिसमें 75 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है।
लेकिन यहां प्रश्न प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का नहीं है, बल्कि किसान आंदोलन की विश्वसनीयता और देश के आम जनमानस के ह्रदय में उसके प्रति सहानुभूति का है। क्योंकि देखा जाए तो 26 जनवरी की हिंसा के बाद से किसान आंदोलन ने अपनी प्रासंगिकता ही खो दी थी और किसान नेताओं सहित इस पूरे आंदोलन पर ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए थे। क्योंकि जब 26 जनवरी को देश ने दिल्ली पुलिस के जवानों पर आंदोलनकारियों का हिंसक आक्रमण देखा तो इस आंदोलन ने देश की सहानुभूति भी खो दी। दरअसल, लोग इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं कि देश का किसान जो इस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचता है वो देश के उस जवान पर कभी प्रहार नहीं कर सकता जो देश की आन को अपने खून से सींचता है। शायद यही कारण है कि जो सहानुभूति इस आंदोलन के लिए “आंदोलनजीवी” नहीं खोज पाए, उस सहानुभूति को उनके द्वारा अब विदेश से प्रायोजित करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें ट्विटर जैसी माइक्रोब्लॉगिंग साइट और अन्य विदेशी मंचों का सहारा लिया जाता है। आइए कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं –
कुछ तथाकथित अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटीज़ द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन में उनके द्वारा किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर दिए जाने की खबरें सामने आती हैं। इन तथाकथित सेलेब्रिटीज़ में एक 18 साल की लड़की है और दो ऐसी महिलाएं हैं जो स्वयं अपने बारे में भी एक महिला की भौतिक देह से ऊपर उठ कर नहीं सोच पातीं। जब ऐसी महिलाएं किसान आंदोलन पर ट्वीट करके चिंता व्यक्त करती हैं तो कहने को कम और समझने के लिए ज्यादा हो जाता है। इतना ही नहीं कथित पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग द्वारा पहले किसान आंदोलन से संबंधित टूलकिट को शेयर किया जाता है और फिर हटा लिया जाता है जो अपने आप में कई गंभीर सवालों को खड़ा कर देता है।
किसान आंदोलन को लेकर ट्विटर की भूमिका संदेह के घेरे। भ्रामक एवं हिंसा भड़काने वाली जानकारी फैलाने वालों के खिलाफ सरकार के कहने के बाद भी ट्विटर उन पर आसानी से कार्रवाई को राजी नहीं हुआ। हाल ही में अमेरिका की लोकप्रिय सुपर बाउल लीग के दौरान भी किसान आंदोलन से जुड़ा विज्ञापन चलाया जाता है, जिसमें इसे ”इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन” बताया जाता है। इस बीच लेबर पार्टी के सांसद तनमजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 40 ब्रिटिश सांसदों द्वारा किसान आंदोलन के मुद्दे को ब्रिटेन की संसद में उठाकर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन ब्रिटेन की सरकार इसे भारत का अंदरूनी मामला बताकर खारिज कर देती है।
जाहिर है इन तथ्यों से देश में फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी का प्रवेश तथा आन्दोलनजीवियों के हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन किसान आंदोलन के पीछे चल रही इस राजनीति के बीच जब देश के कृषि मंत्री देश की संसद में यह खुलासा करते हैं कि पंजाब में जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बना है, उसमें करार तोड़ने पर किसान पर न्यूनतम पांच हजार रुपये जुर्माना जिसे पांच लाख तक बढ़ाया जा सकता है, इसका प्रावधान है। जबकि केंद्र द्वारा लागू कृषि कानूनों में किसान को सजा का प्रावधान नहीं है तो कांग्रेस का दोहरा चरित्र देश के सामने रखते हैं। क्योंकि पंजाब में फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट का यह कानून 2013 में बादल सरकार ने पारित किया था।
हैरत की बात है कि पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने केंद्र के कृषि क़ानूनों के विरोध में तो प्रस्ताव पारित कर दिया। लेकिन पहले से जो फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट कानून पंजाब में लागू था, जिसमें किसानों के लिए भी सजा का प्रावधान था उसे रद्द करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इस प्रकार मूलभूत तथ्यों को दरकिनार करते हुए जब किसानों के हितों के नाम विपक्ष द्वारा की जाने वाली राजनीति देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं तो तात्कालिक लाभ तो दूर की बात है, इस प्रकार के कदम यह बताते हैं कि विपक्ष में दूरदर्शी सोच का भी अभाव है। काश कि वो यह समझ पाते कि इस प्रकार के आचरण से कहीं उनकी भावी स्वीकार्यता भी समाप्त न हो जाए।