तांडव वेब सीरीज को अमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया है। वेब सीरीज का डायरेक्शन जफर अली अब्बास ने किया है। तांडव वेब सीरीज रिलीज होते ही विवादों में आ गई है। वेब सीरीज के पहले एपिसोड में जीशान अय्यूब भगवान शिव के वेश में नजर आ रहे हैं और यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि आखिर आपको किससे आजादी चाहिए। उनके मंच पर आते ही एक मंच संचालक कहता है, ‘नारायण-नारायण। प्रभु कुछ कीजिए। रामजी के फॉलोअर्स लगातार सोशल मीडिया पर बढ़ते ही जा रहे हैं। मुझे लगता है कि हमें भी कुछ नई स्ट्रेटेजी बना ही लेनी चाहिए।’ इस पर शिव के रूप में नजर आ रहे जीशान अय्यूब कहते हैं, ‘क्या करूं मैं तस्वीर बदल दूं क्या?’ इस पर मंच संचालक कहता है कि भोलेनाथ आप तो बहुत ही भोले हैं।
वेब सीरीज को लेकर लोग सोशल मीडिया पर आपत्ति जता रहे हैं। ट्विटर पर कई यूजर्स ने कहा कि इस तरह से शिव का रूप दिखाना और भगवान राम के बारे में टिप्पणी करना स्वीकार नहीं। एक यूजर ने वेब सीरीज के इस हिस्से को ट्वीट करते हुए लिखा है, ‘अली अब्बास तांडव वेब सीरीज के डायरेक्टर हैं और इसमें पूरी तरह से लेफ्ट विंग के एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। वह टुकड़े-टुकड़े गैंग को ग्लोरिफाई कर रहे हैं।’ सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि वेब सीरिज के माध्यम से जानबूझकर हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को टारगेट किया जा रहा है।
इसके अलावा वेब सीरीज के एक और हिस्से पर भी लोग आपत्ति जता रहे हैं। इस वीडियो में कॉलेज का एक युवा लड़की से कहता है, ‘जब एक छोटी जाति का आदमी एक ऊंची जाति की औरत को डेट करता है न तो वह बदला ले रहा होता है, सिर्फ उस एक औरत से। वीडियो को लेकर आपत्ति जताते हुए कुछ यूजर्स ने इसे हिंदू विरोधी प्रॉपेगेंडा करार दिया है। पॉलिटिकल ड्रामा पर आधारित इस वेब सीरीज में सैफ अली खान, डिंपल कपाड़िया, तिग्मांशू धूलिया, जीशान अय्यूब, सुनील ग्रोवर, गौहर खान सहित कई बड़े सितारे नजर आ रहे हैं।
अब हिन्दूफोबिक बॉलीवुड से कुछ सवाल….
दिखाना है तो फिर सभी धर्मों को दिखाया करो, सिर्फ एक धर्म को ही क्यों? शिव, नारद, राम की जगह मौलवी, मदरसा, या अन्य क्यों नहीं? दिखाना ही था तो दिखाते कि किस तरह लव जिहाद करके लड़कियों को छोड़ दिया जा रहा है? जेएनयू को स्टारडम बनाने की कवायद दिखी, कभी किसी और विश्वविद्यालय को दिखाना था? दलित दिखा रहे, पर शिया-सुन्नी पर मौन क्यों हो जाते हैं? वेब सीरीज तांडव नाम से ही क्यों, हलाल, हलाला या अन्य नाम से क्यों नहीं? बॉलीवुड में हजार बुराइयां हैं, नशे के कारोबार व कॉकस पर बनाने में क्या समस्या है? धर्म को फिल्म-वेब सीरिज से दूर ही रखना चाहिए, जब बार-बार एक ही धर्म को टारगेट करोगे तो समस्या होगी ही……
Union Minister of Textiles and Women and Child Development Smriti Zubin Irani addressed the closing ceremony of 24th National Youth Festival (NYF) in the presence of Union Minister of State (I/C) for Youth Affairs and Sports Kiren Rijiju in New Delhi. The festival was celebrated in a hybrid mode from 20th December, 2020 in three phases namely, District level, State level and National level.
On this occasion, Secretary, Youth Affairs Usha Sharma, Joint Secretary Asit Singh, Joint Secretary, Sports, Siddhartha Singh and other dignitaries of Ministry were present. The remarkable cultural performances by the youth volunteers of NYKS and NSS on the occasion exuded a wonderful spirit of Ék Bharat Shreshtha Bharat’.
Addressing the youth volunteers on the occasion, the Union Minister Smriti Irani said that ‘sensitive youth’ will create a New India. She called upon the youth of the country to march ahead on the path of progress holding the hand of those who need help. Irani complimented the Ministry of Youth Affairs & Sports for organising a very extraordinary and colourful valedictory function. She stated that cultural presentations of various states presented a unified India which exihibits the zeal, capability and extraordinary talent of the youth of the country. The Youth Anthem tied the entire country in one string, she added.

Union Minister of State Kiren Rijiju said that by taking inspiration from Prime Minister Narendra Modi, his ministry has given a new colour to the 24th National Youth Festival. Rijiju added that this edition is unique in many ways. The festival has been organised in virtual mode for the first time keeping in view the challenges of covid-19 pandemic but enthusiasm of NYKS & NSS volunteers made this event successful.
Rijiju said that Ministry of Youth Affairs is going to launch a big programme on National Girl Child Day on Beti Bachao Beti Padhao in collaboration with Ministry of Women and Child Development. Rijiju added that we will run this program the whole year. The Department of Sports will take the lead role and it will be supported by NYKS & NSS Volunteers. Along with this, the Ministry will celebrate 125th birth anniversary of Netaji Subhash Chandra Bose on a large scale.
देश में कोविड-19 वैक्सीन के टीका लगाने का काम शनिवार को शुरू हो जाएगा। टीकाकरण कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रातः 10:30 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करेंगे। देशभर में 3006 स्थानों पर टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा। इसे दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फेन्स के माध्यम से क्रमशः दून मेडिकल कॉलेज तथा हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से भी जुड़ेंगे और टीकाकरण की गतिविधि को देखेंगे। इस अवधि में प्रधानमंत्री वहां उपस्थित वैक्सीनेशन कार्य में लगे हुए स्वास्थ्य अधिकारियों से वार्ता भी करेंगे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राजधानी के दून अस्पताल से वर्चुअली इस कार्यक्रम में प्रतिभाग करेंगे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा है कि प्रदेश में वैक्सीनेशन का पहले चरण के लिए पूरी तैयारी कर ली गयी हैं । उन्होंने कहा कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है, इस पर किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से प्रदेश को पहली खेप के रूप में 01 लाख 13 हजार वैक्सीन दी गई हैं। प्रथम चरण में 50 हजार हेल्थ वर्कर्स को कोविड-19 की यह वैक्सीन लगाई जानी है। मुख्यमंत्री प्रदेशवासियों से इस वैश्विक महामारी के खिलाफ अभियान में सहयोग की अपेक्षा की है।
कोविड-19 वैक्सीनेशन के बारे में जानकारी देते हुए राज्य नोडल अधिकारी एवं मिशन निदेशक एनएचएम सोनिका ने बताया कि आज राज्य के सभी जिलों के 13 चिकित्सालयों पर टीकाकरण किया जाएगा। सोनिका के अनुसार जनपद देहरादून में 5, हरिद्वार व उधमसिंहनगर में 4, नैनीताल में 3 तथा अन्य जनपदों में 02-02 स्थानों पर टीकाकरण सत्र आयोजित किए जाएंगे। टीकाकरण हेतु चिन्हित 34 स्थानों में 32 सरकारी चिकित्सा संस्थान हैं जिसमें एम्स ऋषिकेश तथा ऋषिकुल आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी भी सम्मिलित हैं जबकि 2 निजी चिकित्सा संस्थान हिमालयन मेडिकल कॉलेज एवं गुरु रामराय मेडिकल कॉलेज में भी टीकाकरण होगा।
मिशन निदेशक सोनिका ने बताया कि टीकाकरण कार्यक्रम के शुभारम्भ के अवसर पर सभी 34 स्वास्थ्य ईकाईयो पर 100-100 लाभार्थियों को वैक्सीन दी जाएगी। इस प्रकार वैक्सीनेशन के पहले दिन लगभग 3400 हैल्थ केयर वर्कर्स का टीकाकरण किया जाएगा।
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ0 अमिता उप्रेती ने बताया कि सभी जनपदों में वैक्सीन सुरक्षित पहुंच चुकी है। उन्होंने बताया कि सभी जनपदों को निर्देश दिए गए हैं कि वह टीकाकरण के दौरान भारत सरकार की गाईड लाईन का सख्ती से अनुपालन करें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि श्रीराम जन्म भूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण व संपर्क अभियान धन संग्रह का नहीं, बल्कि समर्पण का कार्यक्रम है और समाज अपनी श्रद्धा एवं इच्छा से जो सहयोग करेगा, वह सब स्वीकार्य है।
भय्याजी जोशी ने यह बात जम्मू-कश्मीर में इस अभियान का शुभारंभ करते हुए कही। उन्होंने जम्मू शहर के गांधीनगर स्थित वाल्मीकि मोहल्ला में जाकर मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण हेतु संपर्क किया। इसके बाद डिगियाना स्थित श्री संत मेला सिंह जी दस्तकारी आश्रम के महंत मंजीत सिंह से भेंट कर मंदिर निर्माण के लिए सहयोग राशि ली। जम्मू-कश्मीर में यह अभियान मकर संक्रांति से शुरू होकर 27 फरवरी माघ पूर्णिमा तक चलेगा।

भय्याजी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय और प्रभु श्रीराम की इच्छा अनुसार अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है। भगवान के लिए समाज अपने सामर्थ्य के अनुसार स्वयं प्रेरणा से सहयोग करेगा। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि की प्रत्येक कारसेवा में जम्मू कश्मीर के लोगों की अविस्मरणीय भूमिका रही है।
उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सिक्ख समाज के बंधुओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने कहा कि 30 नवंबर, 1858 को दर्ज एक एफआईआर की रिपोर्ट में लिखा है – निहंग सिक्ख, विवादास्पद ढांचे में घुस गए थे और राम नाम के साथ वहां हवन किया। निहंग सिक्खों ने वहां न सिर्फ हवन और पूजा की, बल्कि उस परिसर के भीतर श्रीराम का प्रतीक भी बनाया। उस समय उनके साथ 25 और सिक्ख थे, जिन्होंने वहां धार्मिक झंडे उठाए और उसकी दीवारों पर चारकोल के साथ ‘राम-राम’ लिखा था।
मकर संक्रांति के पर्व पर गुरूवार को हरिद्वार में श्रद्धालुओं को रैला उमड़ पड़ा। लगभग 7 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने विभिन्न घाटों पर मां गंगा में डुबकी लगाकर पुण्यलाभ अर्जित किया। कोरोना काल में यह पहला अवसर था, जब इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु किसी पर्व पर एकत्र हुए।
एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार बुधवार रात्रि 12 बजे के बाद से ही हरिद्वार में हर की पैड़ी एवं अन्य घाटों पर स्नानार्थियों का आवागमन शुरू हो गया। सूर्योदय के साथ ही होटल, धर्मशाला, लॉज, आश्रम आदि में ठहरे हुए श्रद्धालु गंगा स्नान के लिये घाटों पर पहुंचने लगे।
सुबह कोहरे व कड़ाके की ठंड के बावजूद श्रद्धालुओं के उत्साह में कोई कमी नहीं दिखाई दी। दिन चढ़ने के साथ कोहरा छंटा तो तमाम घाटों पर भीड़ बढ़ गई। स्नान का क्रम शाम तक चलता रहा। हरिद्वार के वीआईपी घाट पर लगभग २०० लोगों ने स्नान किया। इनमें विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत, दिल्ली से सांसद व भोजपुरी गायक मनोज तिवारी समेत कई जज, वरिष्ठ अधिकारी आदि शामिल थे।

घाटों, गलियों तथा पैदल मार्ग पर लगे पुलिस बल द्वारा पैदल यातायात व्यवस्था का पालन सुनिश्चित कराते हुए स्नानार्थियों को स्नान घाटों तक पहुंचने में सहायता की गई। इस दौरान कोविड सम्बंधित गाइड लाइन का पालन न करने वाले लगभग 974 लोगों का चालान भी किया गया।
प्रदेश सरकार द्वारा सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे। सीसीटीवी कैमरों, बम निरोधक दस्ते, डॉग स्क्यॉड के अलावा भारी पुलिस बल सुरक्षा में तैनात किया गया था। लाखों लोगों की उपस्थिति के बाद भी स्नान शांतिपूर्वक निपटने पर प्रदेश सरकार ने राहत की सांस ली।
उत्तराखण्ड को सीरम इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया से कोरोना वैक्सीन की 1 लाख 13 हजार डोज बुधवार को प्राप्त हो गई हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि 16 जनवरी से शुरू होने वाले वैक्सीनैशन के पहले चरण की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। प्रथम चरण में 50 हजार हेल्थ वर्कर्स को कोविड-19 की यह वैक्सीन लगाई जानी है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। इस पर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए।
वैक्सीन मुम्बई एयरपोर्ट से दोपहर 2:45 बजे स्पाईस जैट की फ्लाईट से जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर पहुंची। एयरपोर्ट से वैक्सीन को निर्धारित कोल्ड चेन प्रणाली के अनुसार राजधानी देहरादून स्थित केन्द्रीय औषधि भण्डार गृह में लाया गया, जहां पर इसे वॉक-इन-कूलर में सुरक्षित रखा गया है।
प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने बताया कि गुरूवार सुबह तक वैक्सीन सभी जनपदों के भण्डार गृह में पहुंच जाएगी, जबकि दूरस्थ जनपदों में दोपहर तक पहुंच पाएगी।
स्वास्थ्य सचिव के अनुसार पहले चरण में मिली वैक्सीन की 1,13,000 डोज में से 1,640 डोज केन्द्रीय स्वास्थ्य ईकाईयों के हैल्थ केयर वर्कर, 3,450 आर्मड फोर्स मेडिकल सर्विसेस तथा 1,07,530 डोज राज्य के सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य सेवाओं के हैल्थ केयर वर्कर्स के लिए उपलब्ध कराई जा रही है।
वैक्सीन को ले जाने के लिए सभी जनपदों के वैक्सीन वाहन राजधानी में पहुंचे थे। वैक्सीन की सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक वाहन के साथ एक-एक पुलिस स्कॉर्ट वाहन भी उपलब्ध कराया गया है।
अमित नेगी के अनुसार वैक्सीन के साथ प्रत्येक डोज के लिए उतनी ही मात्रा में Auto Disposable syringes भी उपलब्ध कराई जा रही है। वैक्सीनेशन हेतु प्रत्येक लाभार्थी को एक वैक्सीनेशन कार्ड दिया जायेगा जिसकी आपूर्ति भी वैक्सीन के साथ की जा रही है।
–प्रवीण गुगनानी
लेखक व विचारक
स्वामी विवेकानंद ने भारत को व भारतत्व को कितना आत्मसात कर लिया था यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि –‘यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को संपूर्णतः पढ़ लीजिये।’
नोबेल से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां ने स्वामी जी के विषय में कहा था – ‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है वे जहां भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। प्रत्येक व्यक्ति उनमें अपने मार्गदर्शक व आदर्श को साक्षात पाता था। वे ईश्वर के साक्षात प्रतिनिधि थे व सबसे घुल मिल जाना ही उनकी विशिष्टता थी। हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा- ‘शिव!’। यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।’
ज्ञानपिपासु और घोर जिज्ञासु नरेन्द्र का बाल्यकाल तो स्वाभाविक विद्याओं और ज्ञान अर्जन में व्यतीत हो रहा था किन्तु वे बाल्यकाल में ही अचानक जीवन के चरम सत्य की खोज के लिए छटपटा उठे और यह जानने के लिए व्याकुल हो उठे कि क्या सृष्टि नियंता जैसी कोई शक्ति है जिसे लोग ईश्वर करते हैं? सत्य और परमज्ञान की यही अनवरत खोज उन्हें दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस तक ले गई और परमहंस ही वह सच्चे गुरु सिद्ध हुए जिनका सान्निध्य और आशीर्वाद पाकर नरेन्द्र की ज्ञान पिपासा शांत हुई और वे सम्पूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानंद के रूप में स्वयं को प्रस्तुत कर पाए।
स्वामी विवेकानंद एक ऐसे युगपुरुष थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति और भारतीयता से सराबोर था। उनके सारे चिंतन का केंद्र बिंदु राष्ट्र और राष्ट्रवाद था। भारत के विकास और उत्थान के लिए अद्वित्तीय चिंतन और कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया। उन्होंने कभी सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया किंतु उनके कर्म और चिंतन की प्रेरणा से हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इस युवा संन्यासी ने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था, बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। राष्ट्र व इसके दीन-हीन जनों की सेवा को ही वह ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे।
सेवा की इस भावना को उन्होंने प्रबल शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा था- ‘भले ही मुझे बार-बार जन्म लेना पड़े और जन्म-मरण की अनेक यातनाओं से गुजरना पड़े, लेकिन मैं चाहूंगा कि मैं उसे एकमात्र ईश्वर की सेवा कर सकूं, जो असंख्य आत्माओं का ही विस्तार है। वह और मेरी भावना से सभी जातियों, वर्गों, धर्मों के निर्धनों में बसता है, उनकी सेवा ही मेरा अभीष्ट है।’
अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से प्रेरित स्वामी विवेकानंद ने साधना प्रारंभ की और परमहंस के जीवनकाल में ही समाधि प्राप्त कर ली थी, किंतु विवेकानंद का इस राष्ट्र के प्रति प्रारब्ध कुछ और ही था। इसलिए जब स्वामी विवेकानंद ने दीर्घकाल तक समाधि अवस्था में रहने की इच्छा प्रकट की तो रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें एक महान लक्ष्य की ओर प्रेरित करते हुए कहा- ‘मैंने सोचा था कि तुम जीवन के एक प्रखर प्रकाश पुंज बनोगे और तुम हो कि एक साधारण मनुष्य की तरह व्यक्तिगत आनंद में ही डूब जाना चाहते हो, तुम्हें संसार में महान कार्य करने हैं, तुम्हें मानवता में आध्यात्मिक चेतना उत्पन्न करनी है और दीनहीन मानवों के दु:खों का निवारण करना है।’
विवेकानंद अपने आराध्य के इन शब्दों से अभिभूत हो उठे और अपने गुरु के वचनों में सदा के लिए खो गए। स्वयं रामकृष्ण परमहंस भी विवेकानंद के आश्वासन को पाकर अभिभूत हो गए और उन्होंने अपनी मृत्यशैया पर अंतिम क्षणों में कहा- ‘मैं ऐसे एक व्यक्ति की सहायता के लिए बीस हजार बार जन्म लेकर अपने प्राण न्योछावर करना पसंद करूंगा।’
जब 1886 में रामकृष्ण परमहंस ने अपना नश्वर शरीर त्यागा। तब उनके 12 युवा शिष्यों ने संसार छोड़कर साधना का पथ अपना लिया, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने दरिद्र-नारायण की सेवा के लिए एक कोने से दूसरे कोने तक सारे भारत का भ्रमण किया। उन्होंने देखा, देश की जनता भयानक गरीबी से घिरी हुई है और तब उनके मुख से रामकृष्ण परमहंस के शब्द अनायास ही निकल पड़े- ‘भूखे पेट से धर्म की चर्चा नहीं हो सकती।’ किसी भी रूप में धर्म को इस सब के लिए जवाबदार माने बिना उनकी मान्यता थी कि समाज की यह दुरावस्था (गरीबी) धर्म के कारण नहीं हुई बल्कि इस कारण हुई की समाज में धर्म को इस प्रकार आचरित नहीं किया गया जिस प्रकार किया जाना चाहिए था।
विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन नाम से दो पृथक संस्थाएं गठित कीं। यद्दपि इन दोनों संस्थाओं में परस्पर नीतिगत सामंजस्य था। तथापि इनके उद्देश्य भिन्न, किन्तु पूरक थे। रामकृष्ण मठ समर्पित संन्यासियों की श्रृंखला तैयार करने के लिए थी, जबकि दूसरी रामकृष्ण मिशन जनसेवा की गतिविधियों के लिए थी। वर्तमान में इन दोनों संस्थाओं के विश्वभर में सैकड़ों केंद्र हैं और ये संस्थाएं शिक्षा, चिकित्सा, संस्कृति, अध्यात्म और अन्यान्य सेवा प्रकल्पों के लिए विश्वव्यापी व प्रख्यात हो चुकी हैं।
शिकागो संभाषण के द्वारा सम्पूर्ण विश्व को भारत के विश्वगुरु होनें का दृढ़ सन्देश दे चुके स्वामी जी को पश्चिमी मीडिया जगत “साइक्लोनिक हिन्दू” के नाम से पुकारने लगा था। इन महान कार्यों के स्थापना के बाद स्वामी जी केवल पांच वर्ष ही जीवित रह पाए और मात्र चालीस वर्ष की अल्पायु उनका दुखद निधन हो गया, किन्तु इस अल्पायु के जीवन में उन्होंने सदियों के जीवन को क्रियान्वित कर दिया था। इस कार्य यज्ञ हेतु उन्होंने सात बार सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया था और पाया था कि जनता गहन अंधकार में भटकी हुई है। उन्होंने भारत में व्याप्त दो महान बुराइयों की ओर संकेत किया। पहली महिलाओं पर अत्याचार और दूसरी जातिवादी विषयों की चक्की में गरीबों का शोषण।
उन्होंने कहा कि पेड़ों और पौधों तक को जल देने वाले धर्म में जातिभेद का कोई स्थान नहीं हो सकता; ये विकृति धर्म की नहीं, हमारे स्वार्थों की देन है। स्वामीजी ने उच्च स्वर में कहा- ‘जातिप्रथा की आड़ में शोषण चक्र चलाने वाले धर्म को बदनाम न करें।’
विवेकानंद एक सुखी और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए बेचैन थे। इसके लिए जातिभेद ही नहीं, उन्होंने हर बुराई से संघर्ष किया। वे समाज में समता के पक्षधर थे और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के प्रति उनके मन में गहरा रोष था। उन्होंने कहा- ‘जब तक करोड़ों लोग गरीबी, भुखमरी और अज्ञान का शिकार हो रहे हैं, मैं हर उस व्यक्ति को शोषक मानता हूं, जो उनकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा है।’
स्वामी विवेकानंद के मन में समता के लिए वर्तमान समाजवाद की अवधारणा से भी अधिक आग्रह था। उन्होंने कहा था –‘समता का विचार सभी समाजों का आदर्श रहा है। संपूर्ण मानव जाति के विरुद्ध जन्म, जाति, लिंग, भेद अथवा किसी भी आधार पर समता के विरुद्ध उठाया गया कोई भी कदम एक भयानक भूल है, और ऐसी किसी भी जाति, राष्ट्र या समाज का अस्तित्व कायम नहीं रह सकता, जो इसके आदर्शों को स्वीकार नहीं कर लेता।’
आज कल बहुधा नहीं बल्कि सर्वदा ही कहा जानें लगा है कि शासन और प्रशासन को धर्म, संस्कृति और परम्पराओं के सन्दर्भों में धर्म निरपेक्ष होकर विचार और निर्णय करने चाहिए। यह बड़ा यक्ष प्रश्न है कि हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहलानें वाला वर्ग धर्म निरपेक्षता के जो मायने निकाल रहा है क्या वह सही है? स्वामी जी ने जब शिकागो में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा था कि ” राष्ट्रवाद का मूल धर्म व संस्कृति के विचारों में ही बसता है”, तब सम्पूर्ण पाश्चात्य विश्व ने उनके इस विचार से सहमति व्यक्त की थी और भारत के इस युग पुरुष के इस विचार को अपने-अपने देशों में जाकर प्रचारित और प्रसारित किया था और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान प्रकट किया था।
अपने संभाषण में स्वामी जी ने गौरवपूर्वक कहा था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और हिंदू जीवन शैली के साथ जीवन यापन करना ही इस आर्यावर्त का एक मात्र विकास मार्ग रहा है। भविष्य में विकास करने की और एक आत्मनिष्ठ समाज के रूप में अस्तित्व बनाएं रखने में यही एक मात्र मंत्र ही सिद्ध और सफल रहेगा। स्वामी जी ने कहा था कि भारत के विश्व गुरु के स्थान पर स्थापित होने का एक मात्र कारण यहां के वेद, उपनिषद, ग्रन्थ और लिखित अलिखित करोड़ों आख्यान और गाथाएं ही रहीं हैं।अपनी बात को विस्तार देतें हुए उन्होंने कहा था कि जिस भारत को विश्व सोने की चिड़िया के रूप में पहचानता है उसकी समृद्धि और ऐश्वर्य का आधार हिन्दू आध्यामिकता में निहित है।
- सुभाष चमोली
योग नगरी के रूप में प्रख्यात उत्तराखंड के ऋषिकेश में नवनिर्मित भव्य रेलवे स्टेशन पर सोमवार से ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया। सुबह 10 बजे जम्मू तवी एक्सप्रेस योग नगरी पहुंची।
उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल, रेलवे के मुरादाबाद मंडल के डीआरएम तरुण प्रकाश, स्टेशन अधीक्षक ज्ञानेंद्र सिंह परिहार, गढ़वाल मंडल विकास निगम के उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंघल, भाजपा नेता राजपाल नेगी, विनोद भट्ट, सरोज डिमरी आदि ने यात्रियों का स्वागत किया।

ट्रेनों के संचालन से पूर्व रविवार शाम को केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल अचानक योग नगरी रेलवे स्टेशन पहुंचे। उन्होंने रेलवे स्टेशन का निरीक्षण किया और व्यवस्थाओं का जायजा लिया। रेल मंत्री ने अधिकारियों से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी भी ली। यहां बता दें कि रेल मंत्री गोयल शनिवार को अपने परिवार के साथ निजी यात्रा पर ऋषिकेश के निकट नरेंद्रनगर में एक होटल में पहुंचे थे।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर एक नज़र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक निर्माणाधीन ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का योग नगरी पहला स्टेशन है। यह परियोजना कई मायनों में ख़ास है। लगभग 125 किमी यह रेल लाइन कर्णप्रयाग तक की दूरी 17 सुरंगों के जरिये तय करेगी। यानी इस ट्रैक पर ट्रेनें 104 किमी की दूरी सुरंगों में ही तय करेंगी।
इस रेल परियोजना में 13 रेलवे स्टेशन प्रस्तावित हैं। पहला स्टेशन योग नगरी ऋषिकेश है। यह परियोजना उत्तराखंड के पहाड़ों में रेल पहुंचने के वर्षों पुराने सपने को साकार करेगी। इस रेल लाइन के निर्माण से ना केवल बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वाले तीर्थ यात्रियों को भारी सहूलियत मिलेगी, अपितु चीन सीमा से सटे इस राज्य के लिए सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

वर्ष 2016 में हुआ था शिलान्यास
लगभग 16,200 हजार करोड़ की लागत वाली इस परियोजना का शिलान्यास मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वर्ष 2016 में हुआ था। तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की गयी गैरसैंण में एक भव्य समारोह में इसका शिलान्यास किया था। परियोजना का निर्माण रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) कर रहा है। वर्ष 2024- 25 तक इस परियोजना के पूरे होने की उम्मीद है।

केंद्र व प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल
यह रेलवे लाइन केंद्र व प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ रेल मंत्री पीयूष गोयल, प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार इसकी मॉनिटरिंग करते रहते हैं। विगत वर्ष जुलाई में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अपने ट्वीटर हैंडल से योग नगरी रेलवे लाइन की फोटो भी शेयर की थीं।
उत्तराखंड राज्य भूकंप की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। सम्पूर्ण राज्य भूकम्प की श्रेणी में ज़ोन 4, 5 में आता है। प्रदेश में छोटे तथा मध्य श्रेणी के भूकम्प दर्शा रहे हैं कि इस क्षेत्र में भूकम्पीय गतिविधियां बढ़ रही है। इसके मद्देनजर उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) द्वारा विगत वर्षों में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न कार्य किए गए, जिसमें राज्य में भूकम्प जोखिम का ब्लाक स्तर तक आंकलन किया गया है। इस आधार पर भविष्य में होने वाले नुकसान का विभिन्न सेक्टरों में मूल्यांकन किया गया।
एक सरकारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि USDMA द्वारा राज्य में लगभग 18000 सरकारी भवनों की रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग (RVS) की गई, जिसके आधार पर भवनों की घातकता को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है। यह डेटा इन भवनों को सुनियोजित तरीके से भूकंप से सुरक्षित बनाए जाने हेतु कार्यदायी विभागों को उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ ही वर्तमान में 90 अस्पतालों व संवेदनशील पुलों की रेट्रोफिटिंग हेतु डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) भी बनाई गई है। चरणबद्ध तरीके से इनकी रेट्रोफिटिंग का कार्य भी किया जा रहा है।

USDMA द्वारा भूकम्प अवरोधी निर्माण शैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से क्षमता विकास के कार्यक्रमों पर बल दे रहा है। इस क्रम में IIT Roorkee, CBRI Roorkee जैसे तकनीकी संस्थानों के साथ मिल कर राजमिस्त्रियों, इंजीनियर्स आदि के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम कराए गए हैं।
इधर, USDMA की अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी रिद्धिम अग्रवाल ने एक बैठक में विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा कर कार्यों को समय से पूर्व पूरा करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि राज्य में जो नए निर्माण कार्य हो रहें है वह Building Bye Laws के आधार पर हों। साथ ही साथ प्रदेश में इंजीनियर व राजमिस्त्री प्रशिक्षण के कार्यक्रम अधिक से अधिक कराए जाएं। बैठक में USDMA के वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ.गिरीश चन्द्र जोशी, शैलेश घिल्डियाल आदि उपस्थित थे।
- डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
धर्म अथवा पंथ जब तक मानव के व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा बनने तक सीमित रहे, वो उसकी आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बन कर उसमें एक सकारात्मक शक्ति का संचार करता है। लेकिन जब वो मानव के व्यक्तिगत जीवन के दायरे से बाहर निकल कर समाज के सामूहिक आचरण का माध्यम बन जाता है तो वो समाज में एक सामूहिक शक्ति का संचार करता है। लेकिन यह कहना कठिन होता है कि समाज की यह सामूहिक शक्ति उस समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाएगी या फिर नकारात्मकता की ओर। शायद इसीलिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को जनता की अफीम कहा था।
दरसअल, पिछले कुछ समय से मजहबी मान्यताओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में है। हाल ही में योरोपीय महाद्वीप के देश बेल्जियम में हलाल मीट और कोशर मीट पर एक अदालती फैसला आया है। पशु अधिकारों को ध्यान में रखते हुए योरोपीय संघ की अदालत ने बिना बेहोश किए जानवरों को मारे जाने पर लगी रोक को बरकरार रखा है। इसका मतलब यह है कि बेल्जियम में किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश करना होगा ताकि उसे कष्ट ना हो। योरोपीय संघ की अदालत के इस फैसले ने योरोपीय संघ के अन्य देशों में भी इस प्रकार के कानून बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर बेल्जियम के मुसलमान और यहूदी संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं।
भारत की बात करें तो यह चर्चा में इसलिए है कि अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कोविड महामारी के मद्देनजर हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत लोगों की भोजन करने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसी से संबंधित ताजा मामला दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन के अंतर्गत आने वाले होटलों के लिए लागू किए गए एक नियम का है। इसमें दिल्ली के ऐसे होटल या मीट की दुकान जो दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (SDMC) के अंतर्गत आते हैं उन्हें अब हलाल या झटका का बोर्ड दुकान के बाहर लगाना अनिवार्य होगा। दरसअल SDMC की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें लिखा है कि हिन्दू और सिख के लिए हलाल मीट खाना वर्जित है। इससे पहले क्रिसमस के दौरान केरल के ईसाइयों ने भी हलाल मांस के विरोध में प्रदर्शन किया था। इस मामले में क्रिश्चियन असोसिएशन ऑफ चर्च के ऑक्सीलरी फ़ॉर सोशल एक्शन ने ईसाइयों से एक अपील भी की थी जिसमें हलाल मांस को उनके धार्मिक लोकाचार के खिलाफ होने के कारण इन्हें खाद्य पदार्थों के रूप में खरीदने से मना किया गया था।
मजहब के नाम पर जिस हलाल पर विश्व भर में हायतौबा मची हुई है पहले थोड़ा उसे समझ लेते हैं। हलाल दरसअल एक अरबी शब्द है जिसका उपयोग क़ुरान में भोजन के रूप में स्वीकार करने योग्य वस्तुओं के लिए किया गया है। इस्लाम में आहार संबंधी कुछ नियम बताए गए हैं जिन्हें हलाल कहा जाता है। लेकिन इसका संबंध मुख्य रूप से मांसाहार से है। जिस पशु को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है उसके वध की प्रक्रिया विशेष रूप से बताई गई है। इसी के चलते मुस्लिम देशों में सरकारें ही हलाल का सर्टिफिकेट देती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो मीट वहां परोसा जा रहा है वो उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुरूप है।
हमारे देश में भी भारतीय रेल और विमानन सेवाओँ जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है। मैकडोनाल्ड, डोमिनोज़, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में यह सर्टिफिकेट सरकार द्वारा नहीं दिया जाता। दरसअल भारत में अलग अलग वस्तुओं के लिए अलग अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क, आदि। लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती है। भारत में यह सर्टिफिकेट कुछ प्राइवेट संस्थान जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि।
अभी तक देश से निर्यात होने वाले डिब्बाबंद मांस के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण को हलाल प्रमाणपत्र देना पड़ता था क्योंकि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश हलाल मांसाहार ही आयात करते हैं। लेकिन यह बात जितनी साधारण दिखाई दे रहे है उससे कहीं अधिक पेचीदा है। क्योंकि तथ्य यह बताते हैं कि जो बात मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा, मैदा, बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुच गई है। आयुर्वेदिक औषधियों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट! ऐसा क्यों है? क्योंकि जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती हैं उन्हें इन देशों को यह सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। अगर हलाल फूड मार्किट के आंकड़ों की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर 19% की है जिसकी कीमत लगभग 2.5 ट्रिलियन $ की बैठती है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लेक्स में फ्लैट औऱ हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजेंसी से यात्रा। यहां तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वेबसाइट।
अब प्रश्न उठता है कि उपर्युक्त तथ्यों के क्या मायने हैं। दरसअल जो बात एक सर्टिफिकेट से शुरू होती है वो बहुत दूर तक जाती है। क्योंकि जब हलाल मांस की बात आती है तो स्वाभाविक रूप से उसे काटने की प्रक्रिया के चलते वो एक मुस्लिम के द्वारा ही कटा हुआ होना चाहिए। जाहिर है इसके परिणामस्वरूप जो हिन्दू इस कारोबार से जुड़े थे वो इस कारोबार से ही बाहर हो गए। इसी प्रकार जब हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित ना होकर रेस्टोरेंट या फाइव स्टार होटल पर लागू होता है तो वहाँ परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए। और जब यह हलाल सर्टिफाइड मांसाहार रेल या विमानों में परोसा जाता है तो हिदुओं और सिखों जैसे गैर मुस्लिम मांसाहारियों को भी परोसा जाता है। ये गैर मुस्लिम जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के विपरीत झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए विवश हो जाते हैं।
लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात जो समझने वाली है वो यह कि इस हलाल सर्टिफिकेट को लेने के लिए भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाति है। माँस से आगे बढ़ कर चावल, आटा, दालों, कॉस्मेटिक जैसी वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के कारण अब यह रकम धीरे-धीरे एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप लेती जा रही है जिस पर किसी भी देश की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसलिए यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी बनता जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई नेता जॉर्ज क्रिस्टेनसेन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हलाल अर्थव्यवस्था का पैसा आतंकवाद के काम में लिया जा सकता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय लेखक नसीम निकोलस ने अपनी पुस्तक “स्किन इन द गेम” में इसी विषय पर ” द मोस्ट इंटॉलरेंट विंस” (जो असहिष्णु होता है वो जीतता है) नाम का लेख लिखा है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि अमरीका जैसे देश में मुस्लिम और यहूदियों की अल्पसंख्यक आबादी कैसे पूरे अमेरिका में हलाल मांसाहार की उपलब्धता मुमकिन करा देते हैं।
अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और योरोप के देश इस बात को समझ चुके हैं कि मजहबी मान्यताओं के नाम पर हलाल सर्टिफिकेट के जरिए एक आर्थिक युद्ध की आधारशिला रखी जा रही है जिसे हलालोनोमिक्स भी कहा जा रहा है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया की दो बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी केलॉग्स और सैनिटेरियम ने अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके उत्पाद शुद्ध शाकाहारी होते हैं। इसलिए उन्हें हलाल सर्टिफिकेशन की कोई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में राष्ट्रवाद की बात करने वाले बाबा रामदेव तक अपने शाकाहारी औषधीय उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन करवाने के लिए मुस्लिम संगठनों को भारी भरकम फीस देते हैं। जब कारोबारी नफा नुकसान के आगे एक योगी की देशभक्ति कमजोर पड़ जाती है तो फिर एक आम आदमी की बिसात ही क्या। आज के युग में जब युद्ध हथियारों के बजाए अर्थव्यवस्ताओं के सहारे खेला जाता है तो योद्धा देश की सेना नहीं देश का हर नागरिक होता है। इसलिए हलाल के नाम पर एक आर्थिक युद्ध की घोषणा तो की जा चुकी है चुनाव अब आपको करना है कि इस युद्ध में सैनिक बनना है या फिर मूकदर्शक। (विसंकें)