प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को एक उच्च स्तरीय बैठक में कोविड टीकाकरण के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की तैयारियों के साथ देश में कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा की। बैठक में निर्णय लिया गया कि लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, माघ बिहू आदि सहित आगामी त्यौहारों को देखते हुए टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी से शुरू किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, स्वास्थ्य सचिव और अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक में प्रधानमंत्री ने कोविड प्रबंधन की विस्तृत और व्यापक समीक्षा की।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण अभियान में लगभग 3 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके बाद 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों तथा विभिन्न बिमारियों से ग्रसित (Co-Morbidities) 50 वर्ष से कम आयु के लोगों का टीकाकरण किया जाएगा, जिनकी संख्या लगभग 27 करोड़ है।
प्रधानमंत्री को टीके की डिलीवरी के लिए तैयार किये गए को-विन प्रबंधन प्रणाली के बारे में भी जानकारी दी गई। यह अनूठा डिजिटल प्लेटफॉर्म टीके के स्टॉक, उसके भंडारण का तापमान और कोविड-19 टीका के लाभार्थियों की वैयक्तिक ट्रैकिंग आदि की सूचना उपलब्ध कराएगा।
बैठक में जानकारी दी गई कि टीकाकरण अभियान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 2360 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया था। इनमें राज्यों के टीकाकरण अधिकारी, कोल्ड चेन अधिकारी, आईईसी अधिकारी आदि सम्मिलित थे। राज्यों, जिलों और ब्लॉक स्तरों अभी तक 61,000 से अधिक कार्यक्रम प्रबंधकों, 2 लाख टीका लगाने वालों और टीकाकरण टीम के रूप में 3.7 लाख सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है।
इधर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर प्रदेश में टीकाकरण की तैयारियों की समीक्षा की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में आगामी 16 जनवरी से कोविड-19 को लेकर चरणबद्ध तरीके से राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू किया जा रहा है। वैश्विक महामारी के खिलाफ विजय के इस अभियान में आप सभी सम्मानित नागरिकों का सहयोग अपेक्षित है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड में भी इस अभियान को सफल बनाने के लिए सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए गए हैं।
झारखंड की राज्य सरकार ने बहुमत से विधेयक पारित कर घोषित किया कि सरना धर्म को मानने वाले हिन्दू नहीं हैं। सरना, हिन्दू से अलग धर्म है। तभी दूसरी ओर आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी निर्णय लिया कि अनुसूचित जनजाति के लोग हिन्दू नहीं हैं और यह मानते हुए 2021 में होने वाली जनगणना के समय उन्हें हिन्दू के स्थान पर अनुसूचित जनजाति श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध किया जाएगा। यह दोनों समाचार पढ़कर इन दोनों निर्णय करने वालों में भारतबोध व हिंदुत्व की समझ का अभाव और राजकीय सत्ता के अहंकार का दर्शन हुआ।
हिंदुत्व कोई एक रिलिजन नहीं है। वह एक जीवन दृष्टि है ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्य किया है। इस जीवन दृष्टि की विशेषता है कि यह अध्यात्म आधारित है और भारतीय उपखंड में सदियों से रहते आए विभिन्न पद्धति से उपासना करने वाले, विविध भाषा बोलने वाले सभी लोग अपने आप को इसके साथ जोड़ते हैं। इस कारण इसके मानने वालों की, इस भूखंड में रहने वालों की एक अलग पहचान, एक व्यक्तित्व तैयार हुआ है।
उसकी एक विशेषता है – एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति । सत्य या ईश्वर एक है, उसे अनेक नाम से लोग जानते हैं, उसे जानने के अनेक विभिन्न मार्ग हो सकते हैं। ये सभी समान हैं। इसीलिए यहूदी, पारसी, सिरीयन ईसाई अलग-अलग समय पर अपने देश से प्रताड़ित हो कर आश्रय लेने हेतु भारत के भिन्न-भिन्न भू-भागों में आए। वहां के राजा, लोगों की भाषा, लोगों की उपासना पद्धति अलग-अलग होने पर भी भिन्न वंश, भाषा और उपासना वाले, आश्रयार्थ आए लोगों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार समान था, सम्मान का और उदारता का था। इसके मूल में यह कारण है। उस व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है – विविधता में एकता को देखना। एक ही चैतन्य विविध रूपों में अभिव्यक्त हुआ है, इसलिए इन विविध रूपों में अंतर्निहित एकता देखने की दृष्टि भारत की रही है।
इसलिए भारत विविधता को भेद नहीं मानता। विविध रूपों में निहित एकता को पहचानकर उन सब की विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए सब को साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत रखता है। तीसरी विशेषता है – प्रत्येक मनुष्य (स्त्री या पुरुष) में दिव्यत्व विद्यमान है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही इस दिव्यत्व को प्रकट करते हुए उस परम-दिव्यत्व के साथ एक होने का प्रयत्न करना है। यह दिव्यत्व प्रकट करने का मार्ग प्रत्येक का अलग अलग हो सकता है। वह उसका रिलिजन या उपासना होगी., इन विशेषताओं से युक्त इस व्यक्तित्व को दुनिया अनेक वर्षों से हिंदुत्व के नाते जानती आयी है। उसे कोई भारतीय, सनातन, इंडिक अन्य कोई नाम भी दे सकता है। सभी का आशय एक ही है।
इनमें से कौन सी बात सरना या जनजातीय समाज को स्वीकार नहीं है?
डॉ. राधाकृष्णन ने हिंदुत्व को Common Wealth of all Religions कहा। स्वामी विवेकानंद ने 1893 के अपने शिकागो व्याख्यान में हिंदुत्व को Mother of all Religions बताया। सर्वसमावेशकता, सर्वस्वीकार्यता, विविध मार्ग और विविध रूपों का स्वीकार करने की दृष्टि ही हिंदुत्व है दस हजार वर्षों से भी प्राचीन इस समाज में समय-समय पर लोगों के उपास्य देवता बदलते गए हैं। ऐसे परिवर्तन को स्वीकार करना यही हिंदुत्व है।
स्वामी विवेकानन्द ने 1893 के अपने सुप्रसिद्ध शिकागो व्याख्यान में यह श्लोक उद्धृत किया था।
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थ– हे परमपिता!!! आपको पाने के अनगिनत मार्ग हैं – सांख्य मार्ग, वैष्णव मार्ग, शैव मार्ग, वेद मार्ग आदि। लोग अपनी रुचि के अनुसार कोई एक मार्ग पसंद करते हैं। मगर अंत में जैसे अलग अलग नदियों का पानी बहकर समुद्र में जा मिलता है, वैसे ही, ये सभी मार्ग आप तक पहुंचते हैं। सच, किसी भी मार्ग का अनुसरण करने से आपकी प्राप्ति हो सकती है।
इस भारत के विचार की सुंदरता और सार यह है कि नए नए देवताओं का उद्भव होता रहेगा। पुराने देवताओं को साथ रखते हुए नए को भी समाविष्ट करने की प्रवृत्ति – यही हिंदुत्व है।
गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने स्पष्ट कहा – अनेकता में एकता देखना और विविधता में ऐक्य प्रस्थापित करना यही है भारत का अन्तर्निहित धर्म। भारत विविधता को भेद नहीं मानता और पराये को दुश्मन नहीं मानता। इसलिए नए मानव समूह के संघात से हम भयभीत नहीं होंगे। उनकी (नए लोगों की) विशेषता पहचान कर उन्हें अपने साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत की है। इसलिए भारत में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई परस्पर लड़ते हुए दिखेंगे, पर वे लड़ कर मर नहीं जाएंगे। वे एक सामंजस्य स्थापित करेंगे ही। यह सामंजस्य अहिन्दु नहीं होगा। वह होगा विशेष भाव से हिन्दू।
यह सामंजस्य की, एकता की दृष्टि हिंदुत्व की है। अब कोई सरना या अनुसूचित जनजाति के बंधु यह कहें कि वे हिंदुत्व से कैसे अलग है। क्योंकि हिंदुत्व किसी एक रूप (form) की बात नहीं करता, बल्कि जिस एक ही चैतन्य के ये सभी रूप हैं, उस एकता या एकत्व की दृष्टि माने हिंदुत्व है।
कुछ वर्ष पूर्व पूर्वोत्तर (असम) के जनजाति बहुल क्षेत्र में एक प्रयोग हुआ। वहां के विभिन्न राज्यों की 18 जनजातियों के सम्मेलन में ये कुछ प्रश्न पूछे गए थे। 1- ईश्वर के बारे में हमारी संकल्पना। 2- धरती के बारे में हमारी अवधारणा? 3- हम प्रार्थना में क्या मांगते हैं? 4- पाप और पुण्य की संकल्पना? 5- दूसरों की पूजा पद्धति के बारे में हमारा अभिमत क्या है? 6- क्या आप दूसरी पूजा परंपरा वालों को उनकी पूजा छुड़वाकर अपनी पूजा वालों में मिला लेना चाहते हैं?
इन प्रश्नों के पूछने पर सभी के उत्तर वही थे जो देश के किसी भी भाग में बसा हिंदू देता है। इनकी प्रस्तुति के पश्चात् यह सभी के लिए आश्चर्यजनक था कि अलग-अलग भाषाएं बोलने वाली इन सभी जनजातियों के विचार में सभी विषयों पर साम्य है और इन का भारत की आध्यात्मिक परंपरा से परस्पर मेल है।
इस भू-सांस्कृतिक इकाई में पूजा या उपासना के विविध रूपों में अन्तर्निहित एकता का आधार हिंदुत्व और भारत की अध्यात्म आधारित एकात्म, सर्वांगीण, सर्व-समावेशक हिन्दू जीवन दृष्टि ही है।
ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक दृष्टि से जनजाति समाज हिन्दू ही है। राजनैतिक, सांस्कृतिक और उपासना की दृष्टि से वे अनादि काल से हिन्दू समाज का अभिन्न अंग रहे हैं।
सेमेटिक मूल के होने के कारण ईसाई और मुस्लिम रिलीजन्स में यह सामंजस्य की दृष्टि नहीं है। वे मानवता को दो हिस्सों में बाँटते हैं। और दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। इसीलिए इनका कन्वर्जन का इतिहास रक्तरंजित तथा हिंसा, लालच और धोखे का रहा है। ईशान्य भारत के जनजातियों में भी ईसाई चर्च द्वारा वहां के जनजातीय लोग हिन्दू नहीं हैं ऐसा झूठा प्रचार करने का प्रयास पहले ब्रिटिश शासक और बाद में भारतीय शासकों की सहायता से वर्षों से चलते आए हैं। इसी कारण वहां अलगाववादी शक्तियां भी अधिक सक्रिय हुईं यहां भी नयी और अलग पहचान देने के नाम पर उनकी सांस्कृतिक जड़ों को गहराई से धीरे-धीरे उखाड़ना और फिर आत्माओं की खेती, यानि soul harvesting, करने की योजना चल रही थी। परन्तु अब वहां के जनजातियों को यह आभास हो गया है कि ईसाई के साथ रहकर हमारी सांस्कृतिक और पूजा पद्धति की पहचान खोने का संकट दिखता है। वे यह भी अनुभव कर रहे हैं कि हिन्दू समाज में, इसके साथ रहेंगे तो उनकी अलग सांस्कृतिक और पूजा की पहचान बनी रहेगी, सुरक्षित रहेगी। यह उनका विश्वास दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए वहां डोनी पोलो, सेंग खासी जैसे भारतीय आस्था अभियान शुरू हो गए हैं और बढ़ रहे हैं। सरना आदि अन्य जनजाति के नेताओं को भी एक बार इन भारतीय आस्था अभियान (indigenous faith movements) के लोगों के अनुभव से सीख लेनी चाहिए। और अपनी संस्कृति और पूजा पद्धति की विशेष पहचान सुरक्षित बचाकर उन्हें और अधिक समृद्ध करने की दृष्टि से हिंदुत्व से अपना नाता बनाये रखना चाहिए।
जब देवताओं के कोई रूप (forms) या नाम भी नहीं थे, तब निर्गुण निराकार ईशत्व की चर्चा, आराधना और उपासना सभी करते थे। ईशावास्यं इदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् यही उसका आधार था।
फिर तरह तरह के विभिन्न देवताओं के रूप के माध्यम से उसी परम तत्व की उपासना और आराधना शुरू हुई। परन्तु ये सभी प्रकृति की पूजा, पंच-महाभूत की पूजा तो करते ही थे। आगे भी अनेक अवतारी पुरुषों के माध्यम से नए नए उपासना मार्ग जुड़ते चले गए। ये सभी फिर भी भूमि, अग्नि, वृक्ष, पहाड़, सागर के माध्यम से प्रकृति पूजा करते ही हैं। इसलिए प्रकृति पूजा तो आरम्भ से ही है। उसके आगे कालक्रमानुसार नित नयी बातें जुड़ती चली गयीं। पर अन्यान्य माध्यम से प्रकृति पूजा तो हिन्दू समाज के सभी वर्गों में आज भी चल रही है। इसलिए केवल प्रकृति पूजा करने वालों के साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज का तादात्म्य वैसा ही बरकरार है। केवल कुछ तत्व विविधता को भेद बता कर बुद्धि भ्रम का प्रयास कर रहे हैं, उनसे सभी को सावधान रहना होगा।
केवल सरना या अनुसूचित जनजाति बंधु ही नहीं, भारत में विविध समाज वर्गों में गत कुछ वर्षों से यह प्रचलित करने का योजनाबद्ध प्रयास चल रहा है कि हम हिन्दू नहीं हैं। हिंदुत्व की जो विविधता में एकता देखने की विशेष दृष्टि है उसे भुला कर इस विविधता को भेद नाते बता कर, उभारकर हिन्दू समाज में विखंडन निर्माण करने के अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हो रहे हैं। हिन्दू एक रहेगा तो समाज एक रहेगा, देश एक रहेगा। देश एक रहेगा तभी देश आगे बढ़ेगा। ऐसा ना हो, इसमें जिनके स्वार्थ निहित हैं वे सभी तत्व भारत विखंडन के कार्य में लिप्त हैं।
भारत विखंडन के प्रयास कैसे चल रहे हैं, इस पर अनेक शोधपरक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसमें एक शक्ति ईसाई चर्च की भी है। उन्हें भारत में धर्मांतरण कर ईसाई संख्या बढ़ानी है। उनकी धर्मांतरण करने वाली सभी संस्थाओं की वेबसाइट पर इसका स्पष्ट उल्लेख है। कुछ ईसाई संस्था छद्म रूप से विभिन्न नामों से समाज में पहले भ्रम, फिर विरोध, फिर विखंडन और बाद में अलगाववाद निर्माण करने के कार्य में लगी हैं। कन्वर्जन के प्रयास को वे फसल काटना (harvesting) संज्ञा देते हैं। यह फसल काटने के प्रयास ब्रिटिश शासन के समय से ही चल रहे हैं। पर भारत की सांस्कृतिक जड़ें बहुत गहरी हैं और अनेक साधु-संतों द्वारा समय समय पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना जगाने के प्रयास यहां पीढ़ियों से चल रहे हैं। ऐसी कोई जाति या जनजाति भारत में नहीं है, जिसमें ऐसे संत-साधु पैदा नहीं हुए. इसलिए ईसाई कन्वर्जन के सभी प्रयास अन्य देशों की तुलना में भारत में कम सफल होते दिखते हैं। तभी नए-नए हथकंडे भी अपनाये जा रहे हैं। भारत विखंडन के प्रयास करने वाले सभी तत्व आपस में अच्छा तालमेल बनाकर अपना अपना एजेंडा चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रत्येक जाति और जनजाति में आध्यात्मिक-सांस्कृतिक जागरण का काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहने से इन सभी समाज में सांस्कृतिक जड़ें गहरी उतर चुकी है। कन्वर्जन आसानी से हो इस हेतु आवश्यक हैं कि जिनका कन्वर्जन करना है, उनकी सांस्कृतिक जड़ें जिस गहराई तक पहुंची है, वहां से उखाड़ना। जब जड़ें कमजोर और उथली होंगी तो उनकी (harvesting) फसल काटना आसान होगा। इसलिए तरह तरह के तर्क देकर और हथकंडे अपनाकर भ्रम फैलाने का षड्यंत्र चल ही रहा है। इसे सभी को समझना होगा, चेतना होगा, जागृत रहना होगा। प्रसिद्ध कवि प्रसून जोशी की एक कविता है –
उखड़े उखड़े क्यों हो वृक्ष सूख जाओगे।
जितनी गहरी जड़ें तुम्हारी उतने ही तुम हरियाओगे।
जिन दो राज्यों में ये निर्णय लिए गए, वे राज्य अनेक वर्षों से ईसाई गतिविधि और कन्वर्ज़न के केंद्र रहे हैं, यह महज संयोग नहीं मानना चाहिए। harvesting के लिए जड़ों की गहराई कम करना उपयोगी होता है।
तरह-तरह के भ्रम फैलाकर, उसके लिए बहुत बड़ी मात्रा में धन का प्रयोग करने के व्यापक षड्यंत्र का ही यह हिस्सा है। देश भर में जड़ों से उखाड़ने के ऐसे जितने भी प्रयास चल रहे हैं, उनके पीछे के तत्व और उनकी फंडिंग को देखेंगे तो यह समझ आएगा। (विसंकें)
लोक सभा सचिवालय और उत्तराखंड के पंचायती राज विभाग के संयुक्त तत्वाधान में शुक्रवार को राजधानी देहरादून में पंचायतीराज व्यवस्था – विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था का सशक्तीकरण विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य पंचायत प्रतिनिधियों को संसद की कार्यप्रणाली और लोकतांत्रिक सिद्धांतों व लोकाचार के बारे में परिचित कराना था।
कार्यक्रम का उदघाटन करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि देश में पंचायतीराज व्यवस्था एवं विकेन्द्रीकृत शासन के माध्यम से ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक किस तरह लोकतंत्र को और अधिक से अधिक मजबूत बनाया जा सकता है, इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से हम देश की जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। लोकतंत्र की शुरूआत गांवों से होती है।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कार्यक्रम में वर्चुअल प्रतिभाग करते हुए कहा कि भारत आज दुनिया के मजबूत लोकतंत्र के रूप में खड़ा है। इस मजबूती के लिए पंचायतों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। गांवों के विकास के बगैर शहरों का विकास नहीं हो सकता है। विकास के लिए गांव और शहर एक दूसरे से पारस्परिक रूप से जुड़े हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए विकास का मॉडल भ्रष्टाचार मुक्त होना जरूरी है।
उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष प्रेमचन्द अग्रवाल व प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री अरविन्द पाण्डेय ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर सांसद अजय टम्टा, लोकसभा के महासचिव उत्पल कुमार सिंह अन्य जन प्रतिनिधि उपस्थित थे।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जनप्रतिनिधियों को अधिक सक्रियता और चेतन्यता से कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों को प्रेरित करते हुए कहा कि यदि हमें अपने गांव, समाज और भारत को श्रेष्ठ बनाना है तो हमें बड़ी सोच रखनी पड़ेगी। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री द्वारा सुझाये गए आत्मनिर्भर भारत, समृद्ध भारत, एक भारत और श्रेष्ठ भारत बनाने के लिए ईमानदारी, पारदर्शिता और जज्बे के साथ पूरा करने का आग्रह किया।
इस सत्र को प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत, सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह, विधायक मुन्ना सिंह चौहान आदि ने भी सम्बोधित किया। इस दौरान गांव बचाओ आंदोलन के सूत्रधार पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी तथा मैती आंदोलन के प्रवर्तक कल्याण सिंह रावत आदि उपस्थित थे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं है, अपितु भाजपा ने विश्व को सबसे लोकप्रिय व यशस्वी नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिए हैं।
डॉ निशंक शुक्रवार को राजधानी देहरादून की धर्मपुर विधान सभा अंतर्गत त्यागी रोड पर भाजपा के शक्ति केंद्र की कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बूथ का कार्यकर्ता हमारी असली ताकत है। बूथ के कार्यकर्ता के बल पर ही सरकार बनती है।
उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी जो मार्ग खोज लेता है और प्रकृति को अपने अनुरूप ढाल देता है, वही योद्धा होता है। उन्होंने कहा कि सही मायनों में बूथ के कार्यकर्ता योद्धा हैं। उन्होंने कहा कि बूथ जीता तो चुनाव जीता और बूथ जीता तो देश जीता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह गौरव की बात है कि वह विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के सदस्य हैं। इसके साथ ही यह भी सम्मान की बात है कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रभावी नेताओं में शामिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं।
केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि आजादी के बाद देश को मोदी के रूप में पहले प्रधानमंत्री मिले, जिन्होंने शौचालय जैसे छोटी मगर महत्वपूर्ण मुद्दे की चर्चा की। प्रधानमंत्री की इस सोच के चलते करोड़ों मां-बहनों को शौचालय की सुविधा मिली।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए निःशुल्क गैस कनेक्शन वितरित किए गए। मजदूरों व किसानों के लिए पेंशन जैसी योजनाएं संचालित की गईं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने समाज के हर वर्ग के कल्याण के तमाम योजनाएं तैयार की है ।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। कांग्रेस इतने वर्षों तक सत्ता में रही। मगर उसने किसानों के हित में कभी कुछ नहीं किया। मोदी सरकार किसानों के लिए काम कर रही है तो कांग्रेस क्षुद्र राजनीति पर उतर आई है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे विपक्षियों के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने केंद्र व प्रदेश की सरकार की उपलब्धियों की चर्चा पूरी ताकत के साथ करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि प्रदेश में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। इन्हें आमजन तक पहुंचाएं।
कार्यक्रम में उत्तराखंड रेशम फेडरेशन के अध्यक्ष अजीत चौधरी, भाजपा महानगर अध्यक्ष सीता राम भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनबीर चौहान, मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश संयोजक राजीव तलवार, पूर्व दायित्वधारी अजेंद्र अजय, संदीप मुखर्जी, दिनेश सती, गोपाल पुरी, मुकेश सिंघल, जयंती प्रसाद कुर्मांचली आदि उपस्थित थे।
डोबराचांटी पुल के बाद त्रिवेन्द्र सरकार ने एक और ऐसे प्रोजेक्ट का काम पूरा कर लिया है जो बीते ढाई दशकों से अटका हुआ था। बद्रीनाथ धाम की यात्रा में नासूर बने ‘लामबगड़ स्लाइड जोन’ का स्थायी ट्रीटमेंट कर लिया गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की इच्छाशक्ति और सख्ती की बदौलत यह प्रोजेक्ट महज दो वर्ष में ही पूरा हो गया। तकरीबन 500 मीटर लम्बे स्लाइड जोन का ट्रीटमेंट 107 करोड़ की लागत से किया गया। अब बद्रीनाथ धाम की यात्रा निर्बाध हो सकेगी, जिससे तीर्थयात्रियों को परेशानियों से निजात मिलेगी।
सीमांत जनपद चमोली में 26 साल पहले ऋषिकेश-बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर पाण्डुकेश्वर के पास लामबगड़ में पहाड़ के दरकने से स्लाड जोन बन गया। हल्की सी बारिश में ही पहाड़ से भारी मलवा सड़क पर आ जाने से हर साल बद्रीनाथ धाम की यात्रा अक्सर बाधित होने लगी। लगभग 500 मीटर लम्बा यह जोन यात्रा के लिए नासूर बन गया। पिछले ढाई दशकों में इस स्थान पर खासकर बरसात के दिनों मे कई वाहनों के मलवे में दबने के साथ ही कई लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।
हमारी सरकार चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए तत्पर है। लामबगड़ स्लाइड जोन बद्रीनाथ यात्रा में बड़ी बाधा थी। हमने इसके ट्रीटमेंट को ईमानदारी से पूरी कोशिश की। इसका परिणाम सभी के सामने हैं। लगातार प्रभावी मानिटरिंग से वर्षों से अटकी परियोजना को पूरा किया है।
– त्रिवेंद्र सिंह रावत
करोड़ों खर्च होने पर भी इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा था। पूर्व मे जब लामबगड़ में बैराज का निर्माण किया जा रहा था, तब जेपी कंपनी ने इस स्थान सुरंग निर्माण का प्रस्ताव रखा, लेकिन उस वक्त यह सड़क सीमा सड़क संगठन (BRO) के अधीन थी। बीआरओ ने भी सुरंग बनाने के लिए हामी भर दी थी। दोनों के एस्टीमेट कास्ट मे बड़ा अंतर होने के कारण मामला अधर मे लटक गया था।
वर्ष 2013 की भीषण आपदा में लामबगड स्लाइड जोन में हाईवे का नामोनिशां मिट गया। तब सडक परिवहन मंत्रालय ने लामबगड स्लाइड जोन के स्थाई ट्रीटमेंट की जिम्मेदारी एनएच पीडब्लूडी को दी। एनएच से विदेशी कम्पनी मैकाफेरी नामक कंपनी ने यह कार्य लिया। फॉरेस्ट क्लीयरेंस समेत तमाम अड़चनों की वजह से ट्रीटमेंट का यह काम धीमा पड़ता गया।
वर्ष 2017 में त्रिवेन्द्र सरकार के सत्ता में आते ही ये तमाम अड़चनें मिशन मोड में दूर की गईं और दिसम्बर 2018 में प्रोजेक्ट का काम युद्धस्तर पर शुरू हुआ। महज दो वर्ष में अब यह ट्रीटमेंट पूरा हो चुका है। अगले 10 दिन के भीतर इसे जनता के लिए समर्पित कर दिया जाएगा। इसे त्रिवेन्द्र सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा रहा है।
A 10 member delegation of Ladakh met the Union Home Minister Amit Shah Wednesday. In view of the difficult geographical conditions and strategic importance of Ladakh, all the representatives expressed their concern with respect to conservation of language, culture and land of Ladakh, participation of the people of Ladakh in its development, protection of employment and changes in the demography of Ladakh region. A protest was also held in this regard before the LAHDC elections.
The Home Minister, Shah informed that under the leadership of Prime Minister Narender Modi, the Union Government is committed towards the development of Ladakh and conservation of the land and culture of Ladakh. By conferring the status of Union Territory on Ladakh, the Modi government has displayed its commitment towards fulfilling the long pending demands of the people of Ladakh.

A meeting was held under the chairmanship of the Union Home Minister Amit Shah, wherein it was decided that in order to find an appropriate solution to the issues related to language of Ladakh, culture of Ladakh and conservation of land in Ladakh, a committee will be constituted under the leadership of G.Kishan Reddy, MoS (Home). The committee would comprise of members of the delegation who met the Home Minister today, elected members from Ladakh, members of the LAHDC Council and ex-officio members representing the Government of India and the Ladakh administration.
The members of this committee will consider the concerns expressed by the members of this delegation to find an early solution to the same and the views of this committee would also be taken due cognizance of while taking a final decision.
उत्तराखंड सचिवालय की कार्यप्रणाली अक्सर चर्चाओं में रहती है। जन आकांक्षाओं का सर्वोच्च केंद्र माने जाने वाले सचिवालय में कई बार आम आदमी तो दूर, सरकारी तंत्र से जुड़े लोगों की उम्मीदें भी टूटने लगती हैं। ऐसा ही प्रकरण एक अधिकारी की पदोन्नति से जुड़ा हुआ सामने आया है। अधिकारी का पदोन्नति का आदेश 10 माह तक अनुभाग में ही दबा रह गया और अधिकारी को सूचना के अधिकार (RTI) का सहारा लेना पड़ा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ऑडिट विभाग में जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर प्रमोशन के लिए नवंबर, 2019 को चयन समिति की बैठक सम्पन्न हुई थी। बैठक में जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के पद के लिए बलबीर सिंह का चयन किया गया था। फरवरी, 2020 में इस सम्बन्ध में आदेश भी तैयार कर दिया गया था। मगर प्रोन्नत अधिकारी को यह आदेश नहीं मिला और आदेश सचिवालय के संबंधित अनुभाग में ही दबा रह गया।
थक-हार कर बलबीर सिंह ने RTI का सहारा लिया। उन्होंने RTI में अपनी पदोन्नति को लेकर जानकारी मांगी। RTI लगने के बाद संबंधित अनुभाग ने किसी प्रकार का जवाब देने के बजाय अधिकारी को पदोन्नति का आदेश ही थमा दिया। आदेश मिलने के बाद अब जाकर अधिकारी ने पदोन्नत पद पर कार्यभार ग्रहण किया है।
यह भी पढ़िए – उत्तराखंड सचिवालय – हरि अनंत, हरि कथा अनंता : हस्ताक्षर हुए बिना ‘लीक’ कर दिया आदेश, शासन की हुई फजीहत
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल विपिन रावत ने बुधवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनके दिल्ली स्थित आवास पर भेंट की। जनरल रावत ने मुख्यमंत्री की कुशल क्षेम पूछी और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने मुख्यमंत्री के परिवार जनों के भी अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। मुख्यमंत्री ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अब वे और उनके परिवारजन पूरी तरह स्वस्थ हैं।
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की सराहना की है। उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र द्वारा स्वस्थ होते ही नर्सिंग भर्ती में अहर्ताओं में बदलाव और दिव्यांग कार्मिकों को सरकारी आवासों के वितरण में आरक्षण बढ़ाए जाने संबंधी निर्णयों के लिए उनका धन्यवाद दिया है।
कोरोना काल में कई बार रोगियों को अस्पतालों में हो रही ऑक्सीजन की किल्लत को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री के आपात स्थिति नागरिक सहायता और राहत (PM CARES) फंड ट्रस्ट ने देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए अतिरिक्त 162 समर्पित प्रेशर स्विंग एडसोर्पश्न (पीएसए) चिकित्सा ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना के लिए 201.58 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। कुल 154.19 मीट्रिक टन क्षमता वाले इन सयंत्रों को 32 राज्यों में लगाया जाएगा।
प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार इस धनराशि में से 137.33 करोड़ रुपये ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की आपूर्ति व कमीशनिंग आदि और 64.25 करोड़ रुपये वार्षिक रखरखाव की मद में खर्च किये जाएंगे। उपकरणों की खरीद का काम केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक स्वायत्तशासी संस्था केन्द्रीय चिकित्सा आपूर्ति स्टोर (सीएमएसएस) द्वारा की जाएगी। जिन सरकारी अस्पतालों में ये संयंत्र स्थापित किए जाने हैं, उनका चयन संबंधित राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से बातचीत के बाद कर ली गई है।
इन सयंत्रों की स्थापना से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और मजबूत होगी और किफायती तरीके से मरीजों को ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। कोविड-19 के औसत और गंभीर मामलों में रोगियों के लिए ऑक्सीजन की पर्याप्त और निर्बाध आपूर्ति आवश्यक है। इसके अलावा कई अन्य रोगियों को भी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
केंद्र सरकार द्वारा ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर संयंत्रों की स्थापना से न केवल राज्यों के कुल ऑक्सीजन उपलब्धता पूल में वृद्धि होगी, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में रोगियों को समय पर ऑक्सीजन सहायता प्रदान करने में भी सुविधा होगी।
उत्तराखंड में 7 सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना की जाएगी। इसके अलावा असम 6, मिजोरम 1, मेघालय 3, मणिपुर 3, नागालैंड 3, सिक्किम 1, त्रिपुरा 2, हिमांचल प्रदेश 7, लक्षद्वीप 2, चंडीगढ़ 3, पुदुच्चेरी 6, दिल्ली 8, लद्दाख 3, जम्मू और कश्मीर 6, बिहार 5, छत्तीसगढ़ 4, मध्य प्रदेश 8, महाराष्ट्र 10, ओडिशा 7, उत्तर प्रदेश 14, पश्चिम बंगाल 5, आंध्र प्रदेश 5, हरियाणा 6, गोवा 2, पंजाब 3, राजस्थान 4, झारखंड 4, गुजरात 8, तेलंगाना 5, केरल 5 व कर्नाटक में 6 सयंत्र स्थापित होंगे।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के राजपथ पर आयोजित होने वाली परेड में इस वर्ष केदारनाथ मंदिर की झांकी भी देखने को मिलेगी। भारत सरकार ने केदारखंड थीम पर आधारित उत्तराखंड राज्य की झांकी का अंतिम रूप से चयन कर लिया है।
उत्तराखंड के सूचना व लोकसंपर्क विभाग के महानिदेशक डॉ.मेहरबान सिंह बिष्ट ने बताया कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय में विभिन्न स्तरों पर आयोजित बैठकों के पश्चात उत्तराखण्ड राज्य की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में स्थान मिला है। इस वर्ष राज्य की ओर से प्रदर्शित की जाने वाली झांकी का विषय केदारखण्ड रखा गया है।
झांकी के अग्र भाग में राज्य पशु कस्तूरी मृग, राज्य पक्षी मोनाल व राज्य पुष्प ब्रह्मकमल तथा पार्श्व भाग में केदारनाथ मन्दिर परिसर और ऋद्धालुओं को दर्शाया गया है। झांकी के चयन हेतु रक्षा मंत्रालय में सूचना विभाग के उपनिदेशक के.एस.चौहान ने थीम, डिजाइन, मॉडल तथा संगीत आदि का प्रस्तुतिकरण किया, जिसके फलस्वरुप राज्य की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड-2021 में अन्तिम रुप से चयनित किया गया है।
सूचना विभाग के अनुसार झांकी डिजाइन के चयन की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। इस वर्ष प्रारम्भ में 32 राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों ने प्रतिभाग किया था, जिसमें से अंतिम रुप से केवल 17 राज्यों का चयन किया गया है।
इससे पूर्व उत्तराखण्ड राज्य द्वारा वर्ष 2003 में फुलदेई, वर्ष 2005 में नंदाराजजात, वर्ष 2006 में फूलों की घाटी, वर्ष 2007 में कार्बेट नेशनल पार्क, वर्ष 2009 में साहसिक पर्यटन, वर्ष 2010 में कुम्भ मेला हरिद्वार, वर्ष 2014 में जड़ी बूटी, वर्ष 2015 में केदारनाथ, वर्ष 2016 में रम्माण, वर्ष 2018 में ग्रामीण पर्यटन तथा वर्ष 2019 में अनाशक्ति आश्रम (कौसानी प्रवास एवं अनाशक्ति) विषयों पर आधारित झांकियों का सफल प्रदर्शन राजपथ पर किया जा चुका है।