कोरोना को मात देकर मंगलवार को सरकारी कामकाज संभालते ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए। पहला, उन्होंने नर्सिंग की भर्ती में मानकों में संशोधन के निर्देश दिए। दूसरा, राज्य के सरकारी विभागों में कार्यरत दिव्यांग कार्मिकों को सरकारी आवासों के आवंटन में मिलने वाला आरक्षण तीन से बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने नर्सिंग प्रशिक्षित बेरोजगार युवाओं के ज्ञापन का संज्ञान लेकर सचिव स्वास्थ्य को निर्देश दिए कि नर्सिंग स्टाफ की भर्ती में आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर शीघ्र आगामी कैबिनेट में लाया जाए।
वर्तमान में प्रदेश में नर्सिंग स्टाफ के 1200 से ज्यादा पदों पर भर्ती की प्रक्रिया संचालित की जा रही है। इन पदों पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों से 30 बेड के अस्पताल में एक साल का अनुभव मांगा गया है। इसके साथ ही कुछ अन्य अहर्ताएं भी रखी गई हैं। इन अहर्ताओं के कारण बड़ी संख्या में प्रशिक्षित युवक नर्सिंग भर्ती परीक्षा के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।
सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार नर्सिंग भर्ती के लिए अब 30 बेड के अस्पताल में एक साल के अनुभव की शर्त को हटाया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट के सम्मुख रखेंगे। इस संशोधन के बाद फार्म 16 की अनिवार्यता भी स्वत ही खत्म हो जाएगी।
इसके साथ ही, त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी आवासों के आवंटन में दिव्यांग कार्मिकों को मिलने वाला आरक्षण तीन प्रतिशत से बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया है। राज्य सरकार के इस निर्णय से जाहिर तौर पर दिव्यांग कार्मिकों को अब पहले से ज्यादा संख्या में सरकारी आवास मिल सकेंगे।
दीगर है कि पूर्व में दिव्यांग कार्मिकों को सरकारी आवास पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। कई बार पात्र दिव्यांग कार्मिक सरकारी आवास पाने से वंचित रह जाते थे क्योंकि उस समय दिव्यांग कार्मिकों को केवल 3 प्रतिशत आरक्षण ही सरकारी आवासों के आवंटन में मिल पा रहा था लेकिन अब राज्य सरकार ने उनकी इस पीड़ा को समझते हुए इसे दूर करने का प्रयास किया है।
भारत सरकार ने जीएसटी राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए राज्यों को 10वीं साप्ताहिक किस्त के तहत 6000 करोड़ रुपये जारी किए हैं। इस किस्त के बाद राज्यों की जीएसटी राजस्व के संग्रह में आई कमी की 50 फीसदी भरपाई हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार भारत सरकार ने विगत वर्ष अक्टूबर में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से जीएसटी राजस्व में आई कमी की भरपाई के लिए विशेष उधारी खिड़की (Special Borrowing Window) का गठन किया था। जिसके तहत 1.10 लाख करोड़ रुपये की पूंजी केंद्र सरकार मुहैया करा रही है। राज्यों की ओर से केंद्र सरकार कर्ज ले रही है। केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को पहली किस्त जारी की थी और 4 जनवरी को दसवीं किस्त जारी की गई।
इस हफ्ते केंद्र सरकार ने यह रकम 4.1526 प्रतिशत ब्याज दर पर उधार ली है। केंद्र सरकार, विशेष उधारी खिड़की के तहत अब तक 60 हजार करोड़ रुपये उधार के रूप में ले चुकी है। जिस पर उसे औसतन 4.6892 फीसदी का ब्याज चुकाना होगा।
जीएसटी के कारण राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए विशेष उधारी खिड़की के अलावा भारत सरकार राज्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद (Gross States Domestic Product, GSDP) का 0.50 फीसदी अतिरिक्त राशि के रूप में उधार लेने का भी विकल्प दे रही है। इसके तहत 28 राज्यों को 1,06,830 करोड़ की अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति दी गई है।
दसवीं किस्त मिला कर उत्तराखंड के हिस्से अब तक 1436.55 करोड़ की धनराशि आई है, जबकि GSDP का 0.50 फीसदी अतिरिक्त राशि के रूप में उधार लेने के प्रावधान के तहत उत्तराखंड को 1405 करोड़ की अनुमति मिली है। उत्तर प्रदेश को अब तक 3725.41, महाराष्ट्र को 7428.29, कर्नाटक को 7694.69, मध्य प्रदेश को 2816.91, हरियाणा को 2699.05, हिमाचल प्रदेश को 1064.87, गुजरात को 5719.15, बिहार को 2421.54, दिल्ली को 3637.32, पश्चिम बंगाल को1458.37, पंजाब को 2751.20, राजस्थान को 2160.37, जम्मू एवं कश्मीर को 1408.98 करोड़ रूपये की धनराशि जारी की गई है।
उत्तर-पूर्व के 5 राज्य अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में में जीएसटी लागू करने के दौरान राजस्व में कमी नहीं आई है। लिहाजा, इन राज्यों को धनराशि जारी नहीं की गई।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार से कामकाज शुरू कर दिया है। आइसोलेशन पीरियड पूरा करने के बाद उन्होंने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर फाइलों का निस्तारण किया।
त्रिवेंद्र को 28 दिसंबर को डॉक्टरी जांच के लिए दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था, जहां से उन्हें 2 जनवरी को डिस्चार्ज किया गया। तब से वे दिल्ली आवास पर होम आइसोलेशन में थे।
यहां बता दें कि विगत 18 दिसंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। उसके बाद उनकी रिपोर्ट सामान्य आ गई थी। तब से वे देहरादून में होम आइसोलेशन में थे। विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने सदन की कार्रवाई में वर्चुअली भाग लिया था।
इसके बाद हल्के बुखार की शिकायत के चलते वे एक दिन के लिए राजधानी के दून मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए थे। वहां डॉक्टरों ने उन्हें जरुरी परीक्षणों के लिए दिल्ली एम्स के लिए रेफर किया था।
सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए आमजन को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। यह सुनिश्चित करने के लिए माह अक्टूबर में शुरू किया गया मुख्यमंत्री त्वरित समाधान सेवा कार्यक्रम यानी सीएम क्यूआरटी(क्विक रेस्पॉन्स टीम) तेजी से अपने लक्ष्यों को हासिल करने की ओर अग्रसर है। बीते तीन माह में इस सेवा के जरिए 70 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की समस्याओं का निराकरण किया गया। जबकि शेष शिकायतों पर भी कार्यवाही गतिमान है।
उत्तराखंड सरकार की दूरगामी नीति के अंतर्गत जरूरतमंदों की बुनियादी समस्याओं के निदान की दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार आदि शामिल हैं। राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश के निवासियों को मूलभूत सुविधाएं समय पर मिलें और कोशिश है कि सबकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति समय पर सुनिश्चित हो सके। यदि कहीं पर किसी की कोई शिकायत हो तो उसका तत्काल निदान किया जाए।
इसी उद्देश्य के साथ अक्टूबर माह में प्रदेश के सात जिलों में मुख्यमंत्री त्वरित समाधान सेवा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इसमें जिला स्तर पर शिविरों का आयोजन जिलाधिकारी-सीडीओ के स्तर से किया जा रहा है। यूं तो 21 सितंबर को इस सेवा को शुरू किया गया लेकिन आधिकारिक रूप से जिलों में इस सेवा ने 1 अक्टूबर 2020 से कार्य करना प्रारंभ किया। तब से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक इस शिविरों के जरिए प्रदेशभर में लोगों की कुल 4025 शिकायतें विभिन्न विभागों को प्राप्त हुई जिनमें से 2904 शिकायतों का निस्तारण कर दिया गया है। यानि अब तक 70 प्रतिशत शिकायतों का निस्तरण किया जा चुका है।
इन विभागों की शिकायतों का हो रहा निदान
बिजली, सड़क, सिंचाई, वन, जल संस्थान, पेयजल निगम, जल संस्थान, स्वजल, ग्राम्य विकास, पंचायतीराज, शिक्षा विभाग, महिला बाल विकास, कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पशुपालन विभाग, समाज कल्याण, उरेडा, जिला पंचायत, दूरसंचार, मंडी समिति, उद्यान विभाग, स्वास्थ्य विभाग, कृषि एवं भूमि संरक्षण, पर्यटन विभाग, पुलिस, पीएमजीएवाई, नलकूप विभाग, खाद्य आपूर्ति, उपकोषागार, ग्रामीण निर्माण विभाग, नगर पालिका आदि।
मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने निर्देश दिए हैं कि लिंगानुपात में कमी वाले जनपदों को फोकस करते हुए गहन माॅनिटरिंग की जाए। साथ ही उन्होंने गर्भवती महिला की द्वितीय तिमाही जांच को जरुरी बताया। यह निर्देश उन्होंने सोमवार को सचिवालय में महिला सशक्त्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की राज्य स्तरीय टास्क फोर्स की बैठक में दिए।
मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने अधिकारियों को कहा कि मदर चाईल्ड ट्रेकिंग सिस्टम (MCTS) में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए, गर्भवती महिला की प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय तिमाही की जांच अवश्य करायी जाए। उन्होंने कहा कि द्वितीय तिमाही जाँच बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है। ऐसे समयावधि में गर्भपात होना अथवा जांच न कराया जाना संदिग्ध होता है। यदि गर्भपात हुआ है तो इसके कारणों की भी जांच की जानी चाहिए।उन्होंने महिलाओं में आयरन की कमी एवं कुपोषण के साथ ही, मातृ मृत्यु दर को कम किए जाने हेतु लगातार प्रयास किए जाने की बात कही।
उन्होंने वन स्टाॅप सेंटर को और अधिक सक्रिय किए जाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वन स्टाॅप सेंटर में पंजीकृत केसों में से कितनों में चार्जशीट दाखिल हुई , कितनों में सजा हुयी इसका भी ब्यौरा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ड्राॅप आउट बालिकाओं के ड्राॅप आउट करने के कारणों को जानकर उनके निराकरण के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि ड्राॅप आउट करने वाले बच्चों में अधिकतर प्रवासी और मजदूरों के बच्चे होते हैं, ऐसे में उनके लिए नोन-फार्मल एजुकेशन पर विचार किया जा सकता है।
बैठक में जानकारी दी गई कि वर्ष 2018-19 में राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात 938 बालिका प्रति हजार बालक था, जो अब बढ़कर 949 बालिका प्रति हजार बालक हो गया है। जन्म के समय लिंगानुपात की दृष्टि से उत्तराखण्ड, देश के टाॅप 10 राज्यों में शामिल है और राज्य के 05 जनपद बागेश्वर, अल्मोड़ा, चम्पावत, देहरादून एवं उत्तरकाशी देश के टाॅप 50 जनपदों में शामिल हैं। बताया गया कि चमोली, नैनीताल एवं पिथौरागढ़ में लिंगानुपात में गिरावट आई है।
इस अवसर पर सचिव एल. फैनई, एच.सी. सेमवाल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
उत्तराखंड के रुड़की शहर में एक अजीबो-गरीब मामले ने पुलिस को भी परेशानी में डाल दिया। यहां दो महिलाएं एक युवक को अपना पति बताते हुए पुलिस के सामने ही भिड़ गईं। पुलिस ने डांट-फटकार कर महिलाओं को शांत किया और घर वापस भेजा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार रविवार को शहर की सिविल लाइन्स कोतवाली में दो महिलाएं एक युवक के साथ पहुंचीं। दोनों महिलाएं युवक को अपना-अपना पति बताते हुए हंगामा करने लगीं। एक महिला ने कहा कि उसकी युवक के साथ सात वर्ष पूर्व शादी हुई है और उसका एक बेटा भी है। दूसरी महिला ने कहा कि उसकी युवक के साथ तीन साल पहले मुलाकात हुई थी। दोनों की मुलाक़ात पहले दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई। बाद में दोनों ने मंदिर में शादी कर ली थी। उसका भी एक बच्चा है।
दोनों महिलाएं पति पर अधिकार को लेकर कोतवाली में काफी देर तक बहस करती रहीं और हंगामा करने लगीं। पुलिस ने काफी समझाने की कोशिश की। मगर दोनों मानने को तैयार नहीं हुईं। दोनों महिलाएं पति को अपने-अपने साथ रखने की जिद पर अड़ गईं। आखिर में पुलिस ने थोड़ा सख्त रुख दिखाया और दोनों महिलाओं को मामले का निपटारा आपस में करने की बात कह कर घर भेज दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक 5 जनवरी से गुजरात के कर्णावती में आयोजित होगी। संघ की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझी जाने वाली यह बैठक वर्ष में दो बार आयोजित की जाती है।
कर्णावती डेंटल कॉलेज, उवारसद में 5 से 7 जनवरी तक आयोजित होने वाली बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी सहित संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित रहेंगे। इसके अलावा भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि जैसे आनुषांगिक संगठनों के चुनिंदा केंद्रीय पदाधिकारी भी भाग लेंगे।
नेपाल सीमा से जुड़े उत्तराखंड के चम्पावत जिले के गुमदेश क्षेत्र में बिल जमा नहीं करने पर विद्युत विभाग ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के टावरों की बिजली काट दी। विद्युत विभाग की इस कार्रवाई का झटका क्षेत्र के मोबाइल फोन उपभोक्ताओं को लगा है। क्षेत्र के उपभोक्ताओं का संचार संपर्क दुनिया से कट गया है और उपभोक्ताओं के फोन शोपीस बन गए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस दूरस्थ क्षेत्र में अधिकांश उपभोक्ता बीएसएनएल की ही सेवा पर निर्भर हैं। बीएसएनएल पर विद्युत विभाग का काफी बकाया चल रहा है। विद्युत विभाग ने दिसंबर माह में बीएसएनएल को नोटिस भी जारी किया था। मगर बीएसएनएल ने बिल जमा नहीं किया। इस पर विद्युत विभाग ने क्षेत्र के कुछ मोबाइल टॉवरों की बिजली काट दी। बताया जा रहा है की विद्युत विभाग कुछ अन्य टावरों की भी बिजली काटने की तैयारी में है। इसके लिए विभाग ने बीएसएनएल को नोटिस दे दिया है।
संचार सुविधा ठप होने से क्षेत्र की जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। खास कर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं के अलावा बैंकिंग सुविधाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है।
वर्ष 2018 में आज के ही दिन महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पेशवा बाजीराव पर अंग्रेजी सेना की 200 वीं सालगिरह मनाई जा रही थी, जब भारी हिंसा भड़क गई थी। केंद्र सरकार ने इस घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से कराई। जांच के दौरान इस घटनाक्रम में कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े कई अर्बन नक्सलियों की संलिप्तता जाहिर हुई। जिनमें से कई जेल में हैं। यह तथ्य जगजाहिर है कि भारतीय इतिहास को वामपंथी व कथित प्रगतिशील इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। इन तथाकथित इतिहासकारों ने भीमा कोरेगांव के युद्ध को जातीय और अंग्रेजी सेना के विजय के रूप में दर्शाया है। भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व छात्र और शोधार्थी देवेश खंडेलवाल ने विभिन्न इतिहासकारों की पुस्तकों का हवाला देते हुए इस युद्ध के वास्तविक तथ्यों को लाने का प्रयास किया है। यहां प्रस्तुत है उनका लेख –
31 अक्तूबर, 1817 को रात 8 बजे ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो के नेतृत्व में 500 सिपाही, 300 घुड़सवार, 2 बंदूकों और 24 तोपों के साथ एक सैनिक दस्ता पूना से रवाना हुआ। रातभर चलने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे यह छोटी टुकड़ी भीमा नदी के किनारे पहुंची तो सामने पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की मराठा फौज खड़ी थी। इस विशालकाय फौज का उद्देश्य पूना को फिर से स्वतंत्र करवाना था, लेकिन कम्पनी के उस दस्ते ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया।
कप्तान स्टोंटो की सेना में ब्रिटिश अधिकारियों के अलावा स्थानीय मुसलमान और दक्कन एवं कोंकण के हिन्दू महार शामिल थे दोनों तरफ के विश्लेषण में पेशवा की तैयारी ज्यादा कुशल और आक्रामक थी। जिसे देखकर कप्तान स्टोंटो ने नदी को पार कर सामने से हमला करने की बजाय पीछे ही रहने का फैसला किया। अपनी सुरक्षा के लिए उसने नदी के उत्तरी छोर पर बसे एक छोटे से गांव कोरेगांव को बंधक बनाकर वहां अपनी चौकी बना ली।
एक छोटी से चारदीवारी से घिरे कोरेगांव के पश्चिम में दो मंदिर – बिरोबा और मारुती थे। उत्तर-पश्चिम में रिहाईश थी. बिरोबा को भगवान शिवजी का ही एक रूप माना जाता है और महाराष्ट्र की कई हिन्दू जातियां उन्हें अपने कुलदेवता के रूप में पूजती है। जबकि मारुती को भगवान हनुमान का पर्याय कहा जाता है जो रामायण के प्रमुख पात्र हैं।
खैर, कंपनी के दस्ते ने कोरेगांव के मकानों की छतों का इस्तेमाल पेशवा की सेना पर नजर रखने लिए किया था। कप्तान स्टोंटो ने अपनी बंदूकों को गांव के दो छोर – एक सड़क के रास्ते और दूसरी नदी के किनारे पर तैनात कर दिया था। अब वह पेशवा की तरफ से पहले हमले का इंतजार करने लगा। हालांकि, अभी तक पेशवा ने कंपनी के दस्ते पर कोई हमला नहीं किया क्योंकि वह 5,000 अतिरिक्त अरबी पैदल सेना का इंतेजार कर रहे थे।
जैसे ही वह सैनिक टुकड़ी उनसे जुड़ गयी तो पेशवा की सेना ने नदी को पार कर पहले हमला शुरू कर दिया। दोपहर के आसपास पेशवा के 900 सिपाही कोरेगांव के बाहर पहुंच गए थे (कुछ पुस्तकों में इनकी संख्या 1,800 तक बताई गयी है)। दोपहर तक दोनों मंदिरों को पेशवा ने वापस अपने कब्जे में ले लिया था। शाम होने तक नदी के किनारे वाली एक बन्दूक और 24 तोपों में से 11 को मराठा सेना ने नष्ट अथवा मार दिया था। हालांकि, ब्रिटिश सरकार द्वारा साल 1910 में प्रकाशित ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में कंपनी के नुकसान के दूसरे आकंड़े पेश किये है। पुस्तक के अनुसार 24 तोपों में से 12 को नष्ट/मार और 8 को घायल कर दिया था (पृष्ठ 57)।
मराठा सेना ने विंगगेट, स्वांसटन, पेट्टीसन और कानेला नाम के चार कंपनी अधिकारियों को भी मार डाला था। हमला इतना तीव्र था कि परिस्थितियों को देखते हुए कप्तान स्टोंटो से बची हुई टुकड़ी ने आत्मसमर्पण की गुहार लगायी। इस सुझाव को कप्तान स्टोंटो ने स्वीकार कर लिया और वर्तमान कर्नाटक के सिरुर गाँव की तरफ भाग गया।
कप्तान स्टोंटो के पीछे हटने के निर्णय के बावजूद भी ब्रिटिश इतिहासकारों ने उसकी तारीफ की है। लड़ाई के चार साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने कप्तान स्टोंटो और उसकी सेना के नाम कोरेगांव में एक स्तम्भ बनवा दिया। कुछ सालों बाद, यानि 25 जून, 1825 को कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो मर गया और उसे समुद्र में दफना दिया गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा सेना के इस टकराव के कई ऐसे पहलू हैं, जिनका तथ्यात्मक विश्लेषण करना जरुरी है। पहली बात – महारों की मराठों से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। यह लड़ाई कंपनी और मराठा सेना के बीच में लड़ी गयी थी, जिसमें महारों ने कंपनी का साथ दिया। यह जाति पहले फ़्रांस के भारतीय अभियानों में भी उन्हें अपनी सैन्य सहायता दे चुकी थी। दूसरी बात – किसी भी इतिहास की पुस्तक में स्पष्ट तौर पर मराठा सेना की हार का कोई जिक्र नहीं है। सभी स्थानों पर कप्तान स्टोंटो द्वारा स्वयं की जान बचाने का उल्लेख है, जिसे ‘डिफेन्स ऑफ़ कोरेगांव’ के नाम से संबोधित किया गया है।
बाद के सालों में, इस टकराव को भीमा कोरेगांव युद्ध के नाम पर अंग्रेजों की मराठा सेना पर जीत में जबरन परिवर्तित कर दिया गया। जिसे रचने वाले खुद ब्रिटिश इतिहासकार थे। जिसमें रोपर लेथब्रिज द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1879); ‘द बॉम्बे गज़ेट’ (17 नवम्बर, 1880); जी. यू. पोप द्वारा लिखित ‘लॉन्गमैन्स स्कूल हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1892); आर. एम. बेथम द्वारा लिखित ‘मराठा एंड डेकखनी मुसलमान’ (1908); जोसिया कोंडर द्वारा लिखित ‘द मॉडर्न ट्रैवलर’ (1918); सी.ए. किनकैड द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ मराठा पीपल’ (1925); और रिचर्ड टेम्पल द्वारा लिखित ‘शिवाजी एंड द राइज ऑफ़ द मराठा’ (1953) इत्यादि शामिल थे।
गौर करने वाली बात है कि इन सभी पुस्तकों में एक जैसा ही, बिना किसी परिवर्तन के, ब्रिटिश इतिहास का वर्णन मिलता है। हालांकि, साल 1894 में अल्दाजी दोश्भई द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ गुजरात’ में एक अन्य तथ्य का जिक्र किया गया है। उन्होंने लिखा है कि पेशवा ने कोरेगांव में ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं समझा क्योंकि कप्तान स्टोंटो को पीछे से ब्रिटिश सहायता मिल सकती थी। इसलिए उन्होंने वहां से निकलकर दक्षिण की तरफ जाने का फैसला किया। इस समय तक, दक्षिण भारत के कई हिस्सों में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी पकड़ बना चुकी थी। पेशवा चारों तरफ से उनसे घिरे हुए थे और धीरे-धीरे उनके कई दुर्ग जैसे सतारा, रायगढ़, और पुरंदर हाथ से निकल गए थे।
‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में भी बताया गया है कि जनरल स्मिथ के आने की खबर सुनकर पेशवा की सेना अगले दिन सुबह वहां से चली गयी थी। कप्तान स्टोंटो को जनरल स्मिथ के कोरेगांव पहुंचने के समय का सटीक अंदाजा नहीं था। इस बीच, उसके पास हथियारों की कमी हो गयी थी, इसलिए वो वहां से चला गया। जनरल स्मिथ 2 जनवरी से 6 जनवरी के बीच कोरेगांव पहुंचा था, लेकिन तब तक मराठा सेना और कंपनी की टुकड़ी वहां से रवाना हो गयी थी (पृष्ठ 58)।
साल 1923 में प्रत्तुल सी. गुप्ता द्वारा लिखित ‘बाजी राव II एंड द ईस्ट इंडिया कंपनी 1796-1818’ में पेशवा की हार का कोई उल्लेख नहीं है। बल्कि उन्होंने कंपनी के नुकसान के आंकड़े पेश किये हैं। प्रत्तुल सी. गुप्ता ने यह भी लिखा है कि रात के नौ बजे लड़ाई रुक गयी थी (पृष्ठ 179)।
यहां एक गौर करने वाली बात है कि प्रत्तुल सी. गुप्ता के अनुसार रात्रि को लड़ाई रुकी थी। ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ के मुताबिक पेशवा की सेना अगले दिन सुबह कोरेगांव से रवाना हुई थी। इसका मतलब साफ़ है कि कप्तान स्टोंटो रात में ही भाग गया था। जबकि उसे पता था कि उसकी सहायता के लिए जनरल स्मिथ की एक बड़ी फौज उसके पीछे खड़ी थी। हालांकि, उसके पास अपनी जान बचाने का वक्त भी नहीं था और न ही पर्याप्त हथियार थे।
कोरेगांव के टकराव का एक अन्य विरोधाभास भी है। वर्तमान में, इस गांव में कथित ब्रिटिश शौर्य का एक स्तंभ बनाया हुआ है, जिसमें 49 मरने वालों के नाम लिखे गए हैं। जबकि खुद ब्रिटिश इतिहासकारों जैसे रोपर लेथब्रिज ने साल 1879 (तीसरा संस्करण) में अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से 79 सैनिकों के मरने अथवा घायल होने की पुष्टि की है (पृष्ठ 191)। साल 1887 में सी. कॉक्स एडमंड द्वारा लिखित ‘ए शोर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द बॉम्बे प्रेसीडेंसी’ में कप्तान स्टोंटो के 175 सैनिकों के मारे जाने का उल्लेख है (पृष्ठ 257)।
भीमा कोरेगांव का यह टकराव ब्रिटिश क्राउन के लिए कोई बेहद महत्व का नहीं था। अगर ऐसा होता तो ब्रिटिश संसद में इसकी शान में कसीदे पढ़े गए होते। गौर करने वाली बात यह है कि वहां न भीमा कोरेगांव और न ही फ्रांसिस स्टोंटो की कोई खबर है। (विश्व संवाद केंद्र)
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में साल 2020 में उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए गए। बातें कम, काम ज्यादा की तर्ज पर इस वर्ष राज्य में तेजी से विकास कार्य हुए। एक ओर वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ाई लड़ी गई, वहीं राज्य को नई दिशा देने वाले फैसले लिए गए। इस वर्ष जनभावनाओं का सम्मान देखा गया तो वर्षों से लम्बित परियेाजनाओं को पूरा होते हुए भी देखा गया। यदि इस वर्ष की महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालें तो उत्तराखंड में वर्ष 2020 में विकास ने निश्चित रूप से गति पकड़ी है। आइये जानते हैं सरकार की इस साल की उपलब्धियों के बारे में।
गैरसैंण बनी ग्रीष्मकालीन राजधानी
गैरसैैंण राज्य आंदोलन की मूल भावना थी। गैरसैंण प्रतीक है, समूचे पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का। इसी भावना और सोच के साथ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने गैरसैंण-भराड़ीसैंण को उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। इस वर्ष 4 मार्च को मुख्यमंत्री ने गैरसैंण में आयेाजित बजट सत्र के दौरान उत्तराखण्डवासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैण-भराड़ीसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की घोषणा की और 8 जून को बाकायदा अधिसूचना जारी कर दी गई।
चार धाम देवस्थानम बोर्ड का विधिवत गठन
राज्य गठन के बाद किया गया सबसे बड़ा साहसिक और ऐतिहासिक फैसला है, देवस्थानम बोर्ड बनाना। 15 जनवरी 2020 को विधिवत रूप से ‘उत्तराखण्ड चार धाम देवस्थानम बोर्ड’ का गठन किया गया। भविष्य की आवश्यकताओं, श्रद्धालुओं की सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की दृष्टि से चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया है। इसमें तीर्थ पुरोहित और पण्डा समाज के लोगों के हक-हकूक और हितों को सुरक्षित रखा गया है। देवस्थानम बोर्ड का गठन भविष्य की जरूरतों को देखते हुए किया गया है।
मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना
वर्ष 2020 में त्रिवेंद्र सरकार की एक बड़ी देन है ‘मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना’। 28 मई को प्रारम्भ की गई यह योजना कोराना काल में वापस आए प्रवासियों और राज्य के युवाओं को सम्मानजनक तरीके से आजीविका प्रदान करने का बड़ा माध्यम बन रही हैै। एमएसएमई के तहत ऋण और अनुदान की व्यवस्था है। इसमें विनिर्माण में 25 लाख रूपये और सेवा क्षेत्र में 10 लाख रूपये तक की परियोजनाओं पर ऋण की व्यवस्था है।
किसानों की खुशहाली
इस वर्ष राज्य सरकार ने किसानों के हित में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए। पं.दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना में बिना ब्याज के किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे ऋण की सीमा को बढ़ाकर तीन लाख रूपए कर दिया गया है। इसी प्रकार स्वयं सहायता समूह पांच रूपए तक का ब्याज मुक्त ऋण का लाभ ले सकते हैं। प्रदेश में पहली बार गन्ना किसानों का 100 प्रतिशत भुगतान, किया गया है।
केवल 1 रूपए में ग्रामीण घरों में पानी का कनेक्शन
प्रदेश में ग्रामीण घरों को पीने के पानी का कनेक्शन केवल 1 रूपए में दिया जा रहा है जो कि पहले 1360 रूपए था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हर घर को नल से जल के मिशन को प्रदेश में तेजी से आगे बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इसी प्रकार मुख्यमंत्री ने शहरी क्षेत्रों में भी गरीब परिवारों को केवल 100 रुपये में पानी का कनेक्शन देने का निर्णय लिया है जो कि पहले 6000 रुपये था।
गुड गर्वनेंस के लिए ई गर्वनेंस
जनवरी माह में प्रदेश मंत्रीमण्डल की पहली ई-केबिनेट बैठक हुई। राज्य में ई-आफिस की प्रक्रिया में भी तेजी लाई गई। सचिवालय के लगभग सभी अनुभागों में ई-आफिस शुरू किया जा चुका है। 3773 फाईलें ई-आफिस के माध्यम से बना दी गई हैं। सचिवालय के साथ ही 27 विभाग ई-आफिस प्रणाली के अन्तर्गत आ चुके हैं। कई जिलों के जिलाधिकारी कार्यालयों में ई-आफिस प्रणाली शुरू। राज्य के हर न्याय पंचायत से ई-पंचायत सेवा उपलब्ध कराने वाला उत्तराखण्ड देश का तीसरा राज्य बन गया है।
हेल्थ सिस्टम को मजबूती और कोरोना से जंग
कोराना काल में राज्य में हेल्थ सिस्टम को काफी मजबूत किया गया है। राज्य में पर्याप्त संख्या में कोविड अस्पताल, आइसोलेशन बेड, आईसीयू बेड, आक्सीजन सपोर्ट बेड और वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। अटल आयुष्मान योजना में लगभग 40 लाख लोगों के गोल्डन कार्ड और 2 लाख 12 हजार मरीजों को निःशुल्क उपचार, जिन पर 203 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया गया है। राज्य और जिला स्तर पर कोविड-19 वैक्सीन वितरण और भण्डारण के लिये टास्क फोर्स गठित की गई है। इसका आवश्यक डाटा संकलित किया जा चुका है, अन्य तैयारियां गतिमान हैं।