देश में पिछले 24 घंटों के दौरान कोविड-19 के 44,489 नए पुष्ट मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से 60.72 प्रतिशत मामले अकेले छह राज्यों केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान व उत्तर प्रदेश से हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गुरूवार को जारी आंकड़ों के अनुसार केरल में सबसे अधिक 6,491 नए मामले दर्ज हुए हैं। महाराष्ट्र में 6,159 व दिल्ली में 5,246 नए मामले दर्ज किए गए हैं।
पिछले 24 घंटों में 524 रोगियों की मृत्यु हुई है। मौत के मामलों में भी 60.50 प्रतिशत छह राज्यों केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दर्ज हुई हैं।
इन छह राज्यों में से महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल वे चार राज्य हैं, जहां प्रतिदिन सबसे ज्यादा नये मामले सामने आए हैं और सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं।

मौत के नये मामलों में सबसे ज्यादा 99 दिल्ली में, 65 महाराष्ट्र में और 51 पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए हैं।
देश में वर्तमान सक्रिय मामलों की संख्या (4,52,344) कुल सक्रिय मामलों का 4.88 प्रतिशत है और यह पांच प्रतिशत के स्तर से नीचे बना हुआ है।
भारत में ठीक होने वाले रोगियों की कुल संख्या 86,79,138 है। रोगियों के ठीक होने की दर आज 93.66 प्रतिशत पर आ गई। देश में पिछले 24 घंटों में 36,367 मामलों में रोगी ठीक हुए हैं।
लगभग 9 साल पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दरिंदगी व गैंगरेप की शिकार हुई एक गुमनाम निर्भया के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पहल करेंगे। मुख्यमंत्री ने निर्भया के माता-पिता को आश्वासन दिया है कि प्रदेश सरकार उनकी हर प्रकार से सहायता करेगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की इस पहल के बाद यह प्रकरण चर्चा में आ गया है।
बुधवार को निर्भया के माता-पिता ने देहरादून में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र से भेंट की। निर्भया के माता-पिता से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बेटी के साथ जो हुआ, वह दिल दहलाने वाला था। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए उनका पूरा सहयोग किया जाएगा। राज्य सरकार पीड़िता के परिवार के साथ है और हर प्रकार की मदद के लिए तैयार है।
मुख्यमंत्री ने उन लोगों का भी धन्यवाद किया जिन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से इस आवाज को उठाया है। उन्होंने अपील की कि जिस तरह से राज्यवासियों ने पहले भी दिल्ली में न्याय के लिए आवाज उठाने में पीड़ित परिवार का साथ दिया, अब भी इस आवाज को उठाने में पूरा सहयोग करेंगे। उल्लेखनीय है कि, निर्भया को न्याय दिलाने के लिए मीडिया पर काफी समय से #JusticeForKiranNegi अभियान चल रहा है।

क्या था प्रकरण
दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड से लगभग दस माह पहले एक और लड़की किरण नेगी दरिंदों का शिकार बनी थी। मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी (गढ़वाल) की निवासी किरण नेगी अपने परिजनों के साथ दिल्ली के छावला में रहती थी। वह गुरुग्राम में एक कंपनी में नौकरी करती थी। उसकी आंखों में अपने भविष्य को लेकर तमाम स्वप्न थे।
9 फरवरी, 2012 की एक मनहूस शाम किरण अपनी अन्य सहेलियों के साथ नौकरी से वापस घर लौट रही थी। रास्ते में तीन दरिंदों ने अंधेरे का फायदा उठा कर लड़कियों के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। किरण की सहेलियां किसी तरह से जान बचाकर वहां से भाग गई और किरण को दरिंदों ने एक कार में अगवा कर लिया। चार दिन बाद उसकी लाश हरियाणा से बरामद हुई।
दरिंदों ने किरण के साथ जो बर्ताव किया, उसे सुन कर किसी की भी रूह कांप जाएगी। दरिंदे उसे एक सुनसान जगह ले गए। वहां उन्होंने उससे बारी-बारी से बलात्कार किया। फिर हैवानियत की सारी हदों को पार करते हुए किरण को मौत के घाट उतार दिया। लड़की के सिर पर गाड़ी के जैक व पाने से लगातार प्रहार किए गए। लड़की की पहचान छिपाने के लिए उसके शरीर को दागा गया और बियर की बोतल तोड़ कर उसके शरीर पर तब तक वार किया गया, जब तक उन्होंने यह सुनिश्चित नहीं कर लिया की लड़की की मौत हो गई।
पुलिस ने कार व मोबाइल लोकेशन के आधार पर तीनों दरिंदों राहुल, रवि व विनोद को गिरफ्तार कर लिया। 19 फरवरी 2014 को द्वारका की एक अदालत ने तीनों दरिंदों को फांसी की सजा सुनाई। अदालत में अभियोजन पक्ष ने इस मामले को ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ बताते हुए दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग करते हुए कहा था कि ऐसे लोगों को जिंदा रहने दिया गया तो समाज में गलत सन्देश जाएगा। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी दोषियों की सजा को बरकरार रखा था। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में यह प्रकरण विचाराधीन है।
किरण के माता-पिता अपराधियों को शीघ्र मृत्यु दंड दिलाने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। किरण के माता-पिता को न्याय दिलाने के लिए दिल्ली स्थित विभिन्न प्रवासी उत्तराखंडियों के संगठन भी सक्रिय हैं। गत वर्ष दिल्ली-एनसीआर में रह रहे प्रवासी उत्तराखंडियों ने प्रकरण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय संग्रहालय से इंडिया गेट तक कैंडल मार्च भी निकाला था। सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर लंबे समय से अभियान चल रहा है।
उत्तराखंड भाजपा के नव नियुक्त प्रदेश प्रभारी दुष्यन्त कुमार गौतम 28 व 29 नवम्बर को राजधानी देहरादून पहुंचेंगे। प्रभारी नियुक्त होने के बाद उनका उत्तराखंड का यह पहला भ्रमण है। दौरे के दौरान वे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के 5 दिसंबर से प्रस्तावित उत्तराखंड भ्रमण कार्यक्रम को अंतिम रूप देंगे।
यहां बता दें कि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री व राज्य सभा सदस्य गौतम को अभी हाल में ही उत्तराखंड भाजपा का प्रदेश प्रभारी नियुक्त किया गया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार अपने दो दिवसीय भ्रमण के दौरान वे सरकार व संगठन से जुड़े विभिन्न नेताओं से मिलेंगे और उनके साथ बैठक करेंगे।
इस दौरान वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के 5 दिसंबर से प्रस्तावित 3 दिवसीय भ्रमण कार्यक्रम को अंतिम रूप देंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए पहले 26 नवम्बर को दिल्ली में ही प्रदेश के नेताओं की बैठक बुलाई गई थी। मगर अब यह बैठक देहरादून में ही होगी।
वैश्विक कोरोना महामारी ने न्यायिक सेवा संस्थानों के कामकाज के तरीकों को भी बदल दिया है। कोविड-19 की परिस्थितियों के बीच न्याय तक पहुंच बनाने के लिए न्यायिक सेवा अधिकारियों ने परम्परागत पद्धति को तकनीकी के साथ जोड़ दिया।
न्यायिक सेवा प्राधिकारी नए तरीके अपनाकर लोक अदालत को वर्चुअल प्लेटफार्म पर ले आए। विधि व न्याय मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार विगत जून से अक्टूबर तक 15 राज्यों में 27 ई-लोक अदालतें आयोजित की गई, जिनमें 4.83 लाख मामलों की सुनवाई हुई। इनमें 1409 करोड़ रुपये के 2.51 लाख मामलों का निराकरण किया गया।
चालू नवम्बर माह के दौरान अभी तक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना में आयोजित ई-लोक अदालतों में 16,651 मामलों की सुनवाई हुई है। इनमें 107.4 करोड़ रुपये के 12,686 विवादों का निपटारा हुआ है।
ऑनलाइन लोक अदालत, यानी ई-लोक अदालत न्यायिक सेवा संस्थानों का एक नवाचार है, जिसमें अधिकतम लाभ के लिए टैक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है। यह घर बैठे लोगों को न्याय देने का प्लेटफार्म बन गया है। ई-लोक अदालतों के आयोजनों से खर्च में भी कटौती हुई है।
क्या हैं लोक अदालत
लोक अदालतें विवादों के वैकल्पिक समाधान का तरीका है, जिसमें मुकदमाबाजी से पहले के और अदालतों में लंबित मामलों को मैत्रीपूर्ण आधार पर सुलझाया जाता है। इसमें मुकदमे का खर्च नहीं होता। यह नि:शुल्क है।
मुकदमे से संबंधित पक्षों में सहमति के प्रयास किए जाते हैं। इस कारण दोनों पक्षों को जटिल व खर्चीली न्यायिक प्रक्रिया के बोझ से छुटकारा मिलता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खादी प्रदर्शनी रविवार से शुरू हो गई। प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, राजस्थान व पंजाब के खादी कारीगरों ने स्टाल लगाए हैं। प्रदर्शनी में कश्मीरी शहद और उत्तराखंड के ऊनी परिधान खास आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं।
इस खास प्रदर्शनी में उच्च कोटि के खादी उत्पादों के स्टाल लगाए गए हैं। प्रदर्शनी में कई खादी संस्थाएं और जम्मू-कश्मीर में ‘प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम’ के तहत काम कर रही अनेक इकाइयों हिस्सा ले रही हैं। कश्मीर के ऊंचे पहाड़ी इलाकों से लाया गया शहद, ऊनी कपड़े और शॉल हर किसी का ध्यान खींच रहे हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के ऊनी उत्पादों के साथ अन्य उत्पाद भी ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल से मलमल के कपड़े, पंजाब से कोटि शॉल, कानपुर से चमड़े के उत्पाद, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के टेराकोटा मिट्टी के बर्तन और राजस्थान से अचार, मुरब्बा व हर्बल दवा जैसे कई बेहतरीन उत्पाद प्रदर्शनी में शामिल हैं। बिहार व पंजाब से विभिन्न प्रकार के सिल्क, सूती व रेडीमेड कपड़े भी प्रदर्शित किए गए हैं। प्रदर्शनी के दौरान खादी फैब्रिक और रेडीमेड कपड़ों पर 30% की विशेष छूट दी जा रही है।
प्रदर्शनी का उदघाटन KVIC के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने किया। इस अवसर पर उन्होंने इसे आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में एक एक बड़ा कदम बताया।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी के बाद KVIC की यह ऐसी दूसरी प्रदर्शनी है। इससे पूर्व अक्तूबर माह में लखनऊ में लॉकडाउन के बाद पहली खादी प्रदर्शनी लगाई गई थी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने रविवार को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के साथ हरिद्वार कुम्भ-2021 की तैयारियों के संबध में बैठक की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कुंभ मेला अपने दिव्य व भव्य स्वरूप में आयोजित होगा। कुंभ में परंपराओं व संस्कृति का पूरा ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि कुंभ के शुरू होने पर कोरोना महामारी की स्थिति कैसी रहती है, उसके अनुसार मेले के स्वरूप को विस्तार दिया जाएगा।
देहरादून में मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित बैठक में त्रिवेन्द्र ने संतों को आश्वासन दिया कि परिस्थितियों के हिसाब से कुंभ के दृष्टिगत जो भी निर्णय लिये जाएंगे, उसमें अखाड़ा परिषद एवं साधु-संतों के सुझाव जरूर शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का प्रयास है कि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो।
शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि सकुशल कुंभ सम्पन्न कराने के लिए अखाड़ा, परिषद व संत समाज का पूरा सहयोग लिया जाएगा और अखाड़ों की समस्याओं का हर संभव निदान करने का प्रयास होगा।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने हरिद्वार कुंभ के सफल आयोजन के लिए राज्य सरकार को पूर्ण सहयोग देने की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने अखाड़ों की समस्याओं से भी अवगत कराया। मेलाधिकारी दीपक रावत ने बताया कि 15 दिसंबर तक अधिकांश स्थाई प्रकृति के कार्य और 31 दिसम्बर तक अन्य सभी कार्य पूर्ण करा लिए जाएंगे।
बैठक में ये रहे उपस्थित
बैठक में अखाड़ा परिषद के महामंत्री महन्त हरि गिरी, महन्त प्रेम गिरी, महन्त सत्यगिरी, महन्त कैलाशपुरी, महन्त मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी, महन्त रवीन्द्र पुरी, गढ़वाल कमिश्नर रविनाथ रमन, आईजी गढ़वाल अभिनव कुमार, आईजी कुंभ मेला संजय गुंज्याल, अपर सचिव शहरी विकास विनोद कुमार सुमन, अपर मेलाधिकारी डाॅ. ललित नारायण मिश्र, हरवीर सिंह, रामजी शरण शर्मा आदि उपस्थित थे।
हर की पैड़ी को फिर से गंगा का दर्जा
इधर, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अखाड़ा परिषद के साथ बैठक करने से पहले एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए हर की पैड़ी को स्कैप चैनल से मुक्त रखने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हर की पैड़ी का अविरल गंगा का दर्जा बरकरार रखा जाएगा। इसके लिए जल्द ही शासनादेश जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा यह क्षेत्र आस्था एवं विश्वास का प्रतीक भी है। जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
यहां बता दें कि प्रदेश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हर की पैड़ी का गंगा का दर्जा समाप्त कर उसे स्कैप चैनल अर्थात नहर के रूप में मान्यता दे दी थी। इस कारण लंबे समय से गंगा सभा एवं जनता द्वारा हर की पैड़ी क्षेत्र को स्कैप चैनल से मुक्त रखने की मांग की जा रही थी।
केंद्र सरकार ने कोविड प्रबंधन में सहयोग के लिए उत्तर प्रदेश, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में उच्च स्तरीय केंद्रीय दलों की तैनाती का फैसला किया है। इन राज्यों में सक्रिय मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यानी उन लोगों की संख्या बढ़ रही है जो बीमारी की वजह से अस्पतालों में भर्ती हैं या जो चिकित्सा निगरानी में घर में अलग-थलग रखे गए हैं, या हर दिन कोविड संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
ये तीन सदस्यीय दल उन जिलों का दौरा करेंगे जहां कोविड के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। केंद्रीय दल महामारी की रोकथाम, निगरानी, जांच व नियंत्रण उपायों और संक्रमण के मामलों के कुशल नैदानिक प्रबंधन की दिशा में राज्य के प्रयासों में मदद करेंगे। केंद्रीय दल राज्यों का, समय पर बीमारी की पहचान और उसके बाद के इलाज से संबंधित चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने में भी मार्गदर्शन करेंगे।
इससे पहले केंद्र सरकार ने हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मणिपुर, और छत्तीसगढ़ में उच्च स्तरीय दल भेजे थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा रविवार को जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 24 घंटे में कोविड संक्रमण के 45,209 नये मामले सामने आए हैं। दिल्ली में सर्वाधिक 5,879 मामले सामने आए। इसके बाद केरल व महाराष्ट्र में क्रमशः 5,772 और 5,760 मामले दर्ज किए गए।
पिछले 24 घंटे में देश में 501 लोगों की कोविड से मौत हुई। कोविड से मौत के नए मामलों में से 22.16 प्रतिशत मामले अकेले दिल्ली के हैं, जहां बीमारी से 111 लोग मृत्यु के शिकार हुए। महाराष्ट्र में यह संख्या 62 व पश्चिम बंगाल में 53 दर्ज की गई।
सुकून की बात यह है कि देश में कोविड के कुल मामलों में सक्रिय मामलों (4,40,962) का प्रतिशत गिरकर 4.85 हो गया और यह पांच प्रतिशत के स्तर से नीचे बना हुआ है। बीमारी से उबरने की दर में भी सुधार आया है और आज यह 93.69 प्रतिशत हो गया। पिछले 24 घंटे में 43,493 लोग कोविड से उबरे हैं, जिसके साथ बीमारी से ठीक होने वाले लोगों की कुल संख्या बढ़कर 85,21,617 हो गयी।
बीमारी से उबरने के मामलों और सक्रिय मामलों के बीच का अंतर तेजी से बढ़ रहा है और इस समय यह 80,80,655 है। 26 राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में इस समय 20,000 से कम सक्रिय मामले हैं। सात राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में सक्रिय मामलों की संख्या 20,000 से 50,000 के बीच है, जबकि महाराष्ट्र व केरल में यह संख्या 50,000 से ज्यादा है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को वर्चुअल माध्यम से आयोजित समारोह में वातायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही हिंदी फिल्मों के चर्चित गीतकार, कवि व लेखक मनोज मुंतशिर को वातायन अंतरराष्ट्रीय कविता-सम्मान से पुरस्कृत किया गया। नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक और प्रसिद्ध लेखक डॉ अमीष त्रिपाठी इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि थे। वातायन की अध्यक्ष मीरा कौशिक, केंद्रीय हिंदी परिषद आगरा के उपाध्यक्ष कवि अनिल शर्मा जोशी और वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति महेश्वरी भी इस समारोह में उपस्थित थे।
पुरस्कार प्रदान करने के लिए वातायन ब्रिटेन का आभार व्यक्त करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि विविधता में एकता भारत की पहचान है और हमारी संस्कृति में भाषाओं का विशेष महत्व है। संस्कृति और भाषा एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। जैसे-जैसे भाषा मजबूत होती है, वैसे-वैसे ही संस्कृति और सभ्यता को विस्तार मिलता है। इसी तरह, लेखन से देश की सभ्यता और संस्कृति भी मजबूत होती है।

शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि साहित्य हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, शैक्षणिक विरासत है जो देश को अदृश्य रूप से मजबूत करता है। उन्होंने दुनिया में भारतीय ज्ञान परंपरा की मान्यता के लिए प्रत्येक उस व्यक्ति को श्रेय दिया जो साहित्य से जुड़ा है, चाहे वह लेखक, कवि, संगीतकार या चित्रकार है।
उन्होंने कहा कि वातायन सम्मान न केवल उनके लेखन और साहित्य, बल्कि भारतीय मूल्यों और परंपराओं को भी मान्यता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि उनका लेखन उनके अनुभवों, संघर्षों, जीवन मूल्यों और आदर्शों से संबंधित है। शिक्षा मंत्री ने कहा कि उनके लेखन ने हमेशा गरीबों और शोषितों को अभिव्यक्ति प्रदान की है और उनके सभी गीत भारतीय जीवन मूल्यों, भारतीयता और राष्ट्रीयता के लिए समर्पित हैं।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना पर आधारित नई शिक्षा नीति -2020 ने भाषा और संस्कृति को केंद्र में रखा है और बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने का प्रयास किया गया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस नीति के माध्यम से युवा अपने करियर में अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचने में सक्षम होंगे।
शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि वातायन, मातृभाषा हिंदी के वैश्विक प्रचार और प्रसार के लिए प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश और दुनिया के हिंदी लेखकों और कवियों को सम्मानित करते हुए, उन्हें अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान किया है, जिसके माध्यम से देश की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को मान्यता प्राप्त होती है।
वातायन पुरस्कार कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची में से एक है और शिक्षा मंत्री को लेखन, कविता और अन्य साहित्यिक कार्यों के लिए सम्मानित किया गया है। डॉ निशंक को इससे पहले साहित्य और प्रशासन के क्षेत्र में कई पुरस्कार मिले हैं, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा साहित्य गौरव सम्मान, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा भारत गौरव सम्मान, दुबई सरकार द्वारा गुड गवर्नेंस अवार्ड, मॉरीशस द्वारा ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन द्वारा उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में यूक्रेन में सम्मानित किया गया। उन्हें नेपाल के हिमाल गौरव सम्मान से भी सुशोभित किया गया है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा 5 से 7 दिसंबर तक तीन दिन के उत्तराखंड भ्रमण पर रहेंगे। इस दौरान नड्डा राजधानी देहरादून में पार्टी की निचली इकाई मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश की सर्वोच्च मानी जानी वाली कोर कमेटी तक के नेताओं से मिलेंगे और बैठक लेंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रदेश भ्रमण के लिए केंद्रीय संगठन की ओर से 5,6 व 7 दिसंबर की तिथि दी गई है। कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविवार को महामंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। कार्यक्रम की रूपरेखा तय कर केंद्र को भेजी जाएगी। केंद्र उसे अंतिम रूप देगा।
नड्डा अपने तीन दिवसीय भ्रमण के दौरान प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी के अलावा विधायकों, मंत्रियों, सांसदों, विभिन्न स्तरों के पार्टी पदाधिकारियों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारियों आदि के साथ अलग-अलग लगभग एक दर्जन बैठक करेंगे।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बिहार चुनाव से निजात पाने के बाद भाजपा अध्यक्ष नड्डा सभी प्रदेशों का इसी तरह से भ्रमण करेंगे और राज्यों में पार्टी संगठन की गतिविधियों का जायजा लेंगे। साथ ही आगामी रणनीति तैयार करेंगे। आगामी समय में जिन राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव होने हैं, उन पर नड्डा का विशेष फोकस रहेगा।
भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बतौर नड्डा गत वर्ष नवम्बर माह में भी देहरादून के एक दिवसीय भ्रमण पर आए थे। मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उत्तराखंड का उनका यह पहला भ्रमण है। नड्डा इससे पूर्व कई बार उत्तराखंड आ चुके हैं। वर्ष 2017 में उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें व केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी थी। तब नड्डा केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे।
विधान सभा चुनाव में नड्डा ने लगातार कई दिन तक उत्तराखंड में डेरा डाले रखा था। चुनावी रणनीति तैयार करने से लेकर चुनाव प्रबन्धन और सभाओं को संबोधित करने तक में उनकी सक्रिय भूमिका रही है।
पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) नड्डा की देखरेख में तैयार हुआ था।
उत्तराखंड के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में महिलाओं की बढ़चढ़ कर भागीदारी के उदाहरण भरे पड़े हुए हैं। उत्तराखंड पृथक राज्य निर्माण आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अलग राज्य पाने के लिए यहां की मातृ शक्ति को अथाह संघर्ष व बलिदान ही नहीं देना पड़ा, अपितु अपनी अस्मिता तक लुटानी पड़ी है। मगर फिर भी उसने अलग राज्य मिलने तक हार नहीं मानी थी।
विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के कारण यहां की महिलाओं का अपने पर्यावरण के प्रति दृष्टि का लोहा दुनिया ने माना है। चिपको आंदोलन के बाद विकास व पर्यावरण की एक नई बहस शुरू हो गई थी। नशामुक्ति के विरुद्ध आंदोलन हो या अन्य तमाम मुद्दे, पहाड़ की की महिलाएं किसी मोर्चे पर पीछे नहीं दिखी हैं। स्वतंत्रता से पूर्व की बात करें तो देश की आजादी के आंदोलन में भी उसकी भागीदारी रही है।
मगर इसे विडंबना ही कहना चाहिए कि राजनीतिक व सामाजिक तौर पर अपनी पूरी सजगता प्रदर्शित करने के बावजूद पहाड़ की महिलाओं का पहाड़ जैसी कठिनाइयों से लगातार वास्ता पड़ता रहा है। रोजगार की तलाश में पहाड़ से होने वाले पलायन की मार का सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं के जीवन पर दिखता है।
बच्चों के लालन-पालन से लेकर चूल्हा-चौका, खेत-खलिहान और अंदर-बाहर तक पूरी गृहस्थी की धुरी महिलाओं के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाती है। सरकारों की तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद पहाड़ की महिलाओं के पीठ का बोझ कम नहीं हुआ है। महिलाएं सुबह जंगल चली जाती हैं और जब घास-लकड़ी की गठरी तैयार हो जाए तभी लौटकर आती हैं और ऐसे में कई बार तो शाम के अंधेरे में ही घर पहुंच पाती हैं।
घास लेने जंगल गई महिलाओं के पेड़ से गिरने अथवा चट्टानों से फिसल कर मौत होने की घटनाएं भी अक्सर सुनाई देती हैं। इसके साथ ही जंगली जानवरों से भी उसका साबका अक्सर पड़ता रहता है। प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि कार्यों का पूरा जिम्मा आमतौर पर महिलाओं के ही कंधे पर होता है। खेत जुतवाने हों या उनकी निराई-गुड़ाई-कटाई के तमाम काम उन्हें ही करने होते हैं। मगर जिन खेतों में वो अपना पूरा खून-पसीना बहाती हैं, उसका स्वामित्व भी उनके पास नहीं है।

इसे सुखद संकेत मानना चाहिए कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने इस दिशा में एक नई पहल की है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुछ समय पूर्व घोषणा की थी कि उनकी सरकार भूमि के स्वामित्व में महिलाओं को भी अधिकार प्रदान करेगी। मुख्यमंत्री की घोषणा के क्रम में प्रदेश मंत्रिमंडल की विगत 18 नवम्बर को आयोजित बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गई।
प्रदेश मंत्रिमंडल ने भूमि के स्वामित्व में महिलाओं (बालिग) को अधिकार देने के लिए राज्य के अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करने का निर्णय लिया है। समिति में राजस्व व न्याय विभाग के सचिवों को भी शामिल किया गया है। यह समिति तय करेगी कि भूमि के स्वामित्व में महिलाओं की हिस्सेदारी किस प्रकार से तय की जाएगी। समिति शीघ्र ही इसका प्रस्ताव तैयार कर अगली बैठक में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। उम्मीद है की जल्दी ही प्रदेश में महिलाओं को भूमि के स्वामित्व में अधिकार मिल जाएगा।
महिलाओं के नाम पर भूमि होने से वे बैंक से ऋण लेकर अपना कुछ भी व्यवसाय शुरू कर सकेंगी। बहरहाल, महिलाओं को भूमि के स्वामित्व में अधिकार देना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा और वो केवल दूसरे पर ही निर्भर नहीं रहेंगी। महिलाओं के आत्मनिर्भर होने का मार्ग प्रशस्त होगा। महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलेगा।