विगत 4 मार्च को उत्तराखंड (Uttarakhand) के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Chief Minister Trivendra Singh Rawat) ने जब गैरसैंण (Gairsain) में आयोजित विधान सभा के बजट सत्र के दौरान ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा की, तो कई लोगों ने इसे सरसरी तौर पर उठाया गया कदम बताया। कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री की घोषणा को बिना ‘सोचे- समझा’ निर्णय तक करार दिया। हालांकि, जब सदन में त्रिवेंद्र ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उन्होंने भावुक होकर कहा था कि “ये फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है।” त्रिवेंद्र की घोषणा के क्रम में प्रदेश सरकार ने 8 जून को ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी थी।
अधिसूचना जारी करने के साथ ही प्रदेश सरकार ने गैरसैंण को ई-राजधानी के रूप में विकसित करने का संकल्प भी व्यक्त किया, ताकि विधान सभा सत्र के दौरान फाइलों को अनावश्यक रूप से इधर-उधर नहीं ले जाना पड़े। गैरसैण के इतिहास में एक नई तारीख तब जुड़ी, जब 15 अगस्त को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पहले अस्थाई राजधानी देहरादून और फिर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में ध्वजारोहण ही नहीं किया, अपितु ताबड़तोड़ कई घोषणाएं भी कर डालीं।

बावजूद इसके विपक्ष गाहे-बगाहे भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल उठाता रहा है। खासकर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने अंदाज में राजधानी के मुद्दे पर त्रिवेंद्र सरकार को घेरते रहे हैं। मगर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र आरोपों को लेकर जुबानी जंग में अधिक नहीं पड़े। वे एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह चुपचाप अपनी रणनीति पर काम करते रहे और विरोधियों को जवाब देने के लिए उचित समय का इन्तजार करते रहे।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र को अपनी रणनीति को अंजाम देने के लिए शायद उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस से बेहत्तर अवसर नहीं दिखा। उन्होंने स्थापना दिवस पर 9 नवम्बर को देहरादून में आयोजित होने वाले औपचारिक कार्यक्रमों में शामिल होकर सीधे गैरसैंण की राह पकड़ी। गैरसैंण में दो दिन तक विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मिलित ही नहीं हुए, अपितु गैरसैंण को लेकर विस्तृत रोडमैप घोषित कर राजनीतिक रूप से एक लंबी छलांग लगा डाली।

मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को राजधानी के रूप में संवारने और वहां राजधानी स्तर की अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक योजनाएं बनाई हैं। चरणबद्ध रूप में होने वाले इन कार्यों के लिए 10 वर्ष की समय सीमा तय की गई है। राज्य सरकार इस पर 25 हजार करोड़ रूपये खर्च करेगी। यही नहीं मुख्यमंत्री ने प्रदेश के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक का गठन भी करने की घोषणा की है, जो गैरसैंण के सुनियोजित विकास और उसके स्वरूप को लेकर विस्तृत अध्ययन करेगी। समिति का सचिव भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी पराग मधुकर धकाते को बनाया गया है। समिति में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को बतौर सदस्य शामिल किया जाएगा।
प्रदेश सरकार ने जिस प्रकार से गैरसैंण को लेकर तमाम घोषणाएं की हैं, उससे यह स्पष्ट है की सरकार गैरसैंण और उसके आसपास के इलाकों को मिला कर एक नया परिक्षेत्र विकसित करना चाहती है। इसमें राजधानी स्तर की अवस्थापना सुविधाएं विकसित की जाएंगी। बहरहाल, त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण को लेकर जो मास्टर स्ट्रोक चला है, उसकी काट ढूंढना विपक्ष के लिए फिलहाल टेढ़ी खीर है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने चरणबद्ध रूप से गैरसैण के मुद्दे पर जो लंबी सियासी लकीर खींच दी है, वे अब उसे और आगे बढ़ाने के लिए निश्चित ही जुटेंगे।
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- कुमार नारद
फ्रांस में जिहादी मानसिकता के एक मुस्लिम युवक ने एक शिक्षक की गला काटकर हत्या कर दी. उसके कुछ दिन एक बार फिर मुस्लिम जिहादी युवक ने चर्च में एक महिला सहित तीन लोगों की गला काटकर हत्या कर दी. इन घटनाओं की विश्व में कड़ी निंदा की जा रही है. लेकिन दुर्भाग्य से इस्लामिक देश इन घटनाओं की निंदा करने की अपेक्षा इस्लामिक जिहाद को समर्थन दे रहे हैं. और इसके लिए वे फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं. आतंकवाद और इस्लाम के बारे में बुद्धिजीवी लाख सफाई दें कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है, लेकिन देखे हुए, जाने हुए, अनुभव किए तथ्यों को कोई कैसे झुठला सकता है.
हर पंथ और मजहब यदि समय के अनुसार खुद को बदलता नहीं है तो उसमें लगा जंग, असल में भी जंग में बदल जाता है. और पिछली कई सदियों से यह देखने और अनुभव करने को मिल रहा है. भारत तो कई शताब्दियों से झेल रहा है, लेकिन उदारवाद और बहु-संस्कृतिवाद की बात करने वाला यूरोप भी पिछले कई दशकों से इस्लामिक चरमपंथ का शिकार बन रहा है. फ्रांस का उदाहरण ताजा है. फ्रांस यूरोप का वह देश है, जहां मुस्लिमों की संख्या बहुतायत में है. फ्रांस ने सीरिया और अन्य मुस्लिम मुल्कों से भगाए या भागे मुस्लिमों को उस समय शरण दी थी, जब मुस्लिम मुल्क भी उन्हें अपने यहां शरणार्थी बनाने के लिए तैयार नहीं थे. यह इस्लाम का एक अलग ही तरह का चेहरा है.
बहरहाल, राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में अत्यधिक उदारवाद हमेशा नुकसान का कारण होता है. फ्रांस इसे भुगत रहा है. और आने वाले कुछ वर्षों में यूरोप के ज्यादातर देश इसका शिकार होंगे. भारत भी रोहिंग्याओं से इसी तरह जूझ रहा है और संभव है आने वाले दिनों में वे लोग भारत के लिए नासूर बन जाएं.
भारत ने आतंकवाद से लड़ाई में फ्रांस का समर्थन किया है. भारत सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है. लेकिन दुर्भाग्य से देश की सबसे पुरानी पार्टी के किसी नुमाइंदे ने इस घटना की निंदा नहीं की है. निंदा करने के लिए उनके फेफड़ों में दम भी नहीं है. भारत में मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने हत्या की निंदा करने के स्थान पर फ्रांस की आलोचना की है. यही उनका इस्लामिक धर्म है. वह अपनी कौम को नई दुनिया से साक्षात ही नहीं करवाना चाहते. उन्हें इस्लाम की जड़ों में चेतना लाने की कोई चिंता नहीं है.
भारत के इस्लाम मतावलंबियों के लिए फ्रांस की घटना एक अच्छा अवसर हो सकती थी कि वे इस्लाम में आतंकवाद और चरमपंथ का विरोध करते हुए फ्रांस का समर्थन करते, लेकिन इस्लामिक ब्रदरहुड में वे इतने अंधे हैं कि उन्हें इस्लाम के आगे गला रेतने, दुष्कर्म करने, बम फोड़ने जैसी घटनाएं नजर नहीं आतीं. भारत के मुंबई और भोपाल में हजारों की संख्या में मुस्लिम फ्रांस और वहां के राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन शिक्षक की गला रेत कर हत्या करने की घटना को लेकर उन्हें कोई अफसोस नहीं है. क्या उन लोगों को मित्र देश के खिलाफ इस तरह का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की अनुमति दी जानी चाहिए? इस्लाम की दुर्दशा का अंदाजा उनके नेताओं की जुबान से पता चलता है. मलेशिया के उम्रदराज पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद जैसे लोग कहते हैं कि मुस्लिमों को लाखों की संख्या में फ्रांस के लोगों को सबक सिखाने की जरूरत है. वह भूल जाते हैं कि खराब दिनों में इस्लामिक मतावलंबियों को शरण देने वाला देश फ्रांस ही है.
क्या इस्लाम इतना खोखला हो गया है कि उन्हें कोई इंसानियत के पहलुओं के बारे में बताने वाला लीडर नहीं मिल रहा है. दुर्भाग्य की बात है कि महाथिर मोहम्मद को नहीं पता कि वे अपने बयानों से इस्लाम का कितना नुकसान कर चुके हैं. बांग्लादेश की ख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन सच ही कहती हैं कि इस्लाम में रिफॉर्म यानि सुधार की जरूरत है. आज से चौदह सौ साल पहले की परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में हजारों साल का अंतर आ गया है, लेकिन इस्लाम के अनुयाइयों का रवैया अभी भी जस का तस है. जिस मजहब की नींव ही दूसरों के धर्म, देवताओं और ईश्वरों के अपमान पर आधारित है उसको मानने वाले दूसरों को सिखा रहे है कि हमारे ईष्ट का अपमान न करो.
इस्लाम का कलमा क्या कहता है – ला इलाहा इल्लल्लाह यानि नहीं है कोई ईश्वर/ देवता सिवाए अल्लाह के. इस्लाम का पहला ही स्टेटमेंट सारे धर्मों, सभी पंथों, सभी मान्यताओं का अपमान है. अगर इसी तरह हिन्दू, सिक्ख, जैन या बौद्ध अपना कलमा बनाएं और कहें कि नहीं है कोई ईश्वर सिवाय राम के या नहीं है कोई ईश्वर सिवाय नानक के…. आपको कैसा लगेगा. आपके हिसाब से तो अल्लाह के सिवाय कोई ईश्वर ही नहीं है. इसका अर्थ हुआ कि आप किसी अन्य धर्म की किसी भी मान्यता को नहीं मानते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं. लेकिन आप कहते हैं कि हमारा सम्मान करो. यह कैसा अजीब विरोधाभास है? पहले दूसरों का सम्मान करना तो सीखिए. आपको पैगम्बर मोहम्मद की तस्वीर पर आपत्ति है, लेकिन इस्लाम के अनुयायी जो दिन रात दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं का अपमान करते हैं, उस पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं.
अगर पूरी दुनिया में इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ लामबंदी हो रही है और इस्लाम को इंसानियत के लिए खतरा बताया जा रहा है तो इसमें सबसे ज्यादा दोष इस्लाम के मतावलंबियों और उनके उन धार्मिक नेताओं का है, जिन्होंने समय के अनुसार इस्लाम को बदलने का प्रयास नहीं किया. यदि यही चलता रहा तो फ्रांस से उठी क्रांति आने वाले समय में पूरे संसार को इस्लाम के खिलाफ लामबंद कर देगी.
(विश्व संवाद केंद्र)
15वें वित्तीय आयोग (Fifteenth Finance Commission, XVFC) ने वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को सौंपी। आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह (N K Singh) के नेतृत्व में सदस्य अजय नारायण झा, प्रो. अनूप सिंह, डॉ. अशोक लाहिड़ी, डॉ. रमेश चंद व सचिव अरविंद मेहता ने राष्ट्रपति से भेंट कर यह रिपोर्ट सौंपी।
आयोग द्वारा एक अधिकृत वक्तव्य में कहा गया है कि विचारणीय विषय (Terms of Reference,ToR)) की शर्तों के अनुसार, आयोग को 2021-22 से 2025-26 तक यानी पांच साल की अवधि के लिए 30 अक्टूबर, 2020 तक अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करना अनिवार्य था। पिछले साल आयोग ने वर्ष 2020-21 के लिए अपनी सिफारिशों वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया था और यह रिपोर्ट 30 जनवरी, 2020 को संसद के पटल पर रखी गई थी।
आयोग से अपने विचारणीय विषयों में अनेक विशिष्ट और व्यापक मुद्दों पर अपनी सिफारिशें देने के लिए कहा गया था। ऊर्ध्वाधर (vertical) और क्षैतिज (horizontal) कर विचलन, स्थानीय सरकारी अनुदान, आपदा प्रबंधन अनुदान के अलावा, आयोग को विद्युत क्षेत्र, डीबीटी को अपनाने, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसे अनेक क्षेत्रों में राज्यों के कार्य प्रदर्शन प्रोत्साहनों की जांच करने और सिफारिश करने के लिए भी कहा गया था। आयोग से यह जांचने के लिए कहा कि क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के वित्तपोषण के लिए एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए और यदि ऐसा है तो इस तरह के तंत्र का संचालन कैसे किया जा सकता है? केंद्र सरकार को प्रस्तुत की जाने वाली इस रिपोर्ट में आयोग ने अपने सभी विचारणीय विषयों का निपटान करने की मांग की रखी है।
यह रिपोर्ट चार खंडों में तैयार की गई है। खण्ड-I और खण्ड-II में पहले की तरह मुख्य रिपोर्ट और उसके साथ के अनुलग्नक संलग्न हैं। खण्ड-III केंद्र सरकार को समर्पित है और इसमें मध्यम अवधि की चुनौतियों और आगे के रोडमैप के साथ प्रमुख विभागों की गहराई से जांच की गई है। खण्ड-IV पूरी तरह से राज्यों के लिए समर्पित है। आयोग ने बड़ी गहराई से प्रत्येक राज्य के वित्त का विश्लेषण किया है और प्रत्येक राज्य के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के लिए राज्य के लिए विशिष्ट विचार-विमर्श को दर्शाया है।
रिपोर्ट में निहित सिफारिशों के बारे में स्पष्टीकरण ज्ञापन और कार्रवाई की गई रिपोर्ट के साथ एक बार केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश किए जाने के बाद,यह रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। इस रिपोर्ट का कवर और शीर्षक ‘कोविड के दौरान वित्त आयोग’ (Finance Commission in Covid Times) रखा गया है। राज्यों और केंद्र के बीच संतुलन को दर्शाने के लिए कवर पर तराजू का उपयोग किया गया है।
उत्तराखंड के 21 वें स्थापना दिवस (Uttarakhand Foundation Day) के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा समेत तमाम नेताओं ने राज्यवासियों को बधाई दी है। इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान शहीद हुए आंदोलनकारियों को याद करते हुए राजधानी देहरादून के शहीद स्मारक में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
राष्ट्रपति कोविंद ने ट्विटर पर अपना सन्देश जारी करते हुए कहा कि – ‘देवभूमि उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। राज्य का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य और समृद्ध संस्कृति देश के लिए गौरव का विषय है। मैं राज्य के समग्र विकास और प्रगति के साथ उत्तराखंड के सभी निवासियों के उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य की कामना करता हूँ।’
उप राष्ट्रपति नायडू ने कहा – ‘राज्य स्थापना दिवस पर उत्तराखंड के लोगों को बधाई। देव भूमि के रूप में विख्यात – ‘देवताओं की भूमि’, उत्तराखंड अपनी सुरम्य सुंदरता और समृद्ध आध्यात्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। राज्य और इसके मेहनती लोगों की प्रगति और समृद्धि के लिए मेरी शुभकामनाएं।’
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि – ‘उत्तराखंड के निवासियों को राज्य के स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई। प्रगति के पथ पर अग्रसर, प्राकृतिक संपदा और नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर यह प्रदेश ऐसे ही विकास की नित नई ऊंचाइयों को छूता रहे।’
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया – ‘उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर प्रदेश के सभी बहनों व भाइयों को हार्दिक शुभकामनाएं। देवभूमि उत्तराखंड की निरंतर प्रगति और समृद्धि व प्रदेशवासियों की ख़ुशहाली की कामना करता हूँ।’
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपने सन्देश में कहा – ‘अध्यात्म के लिए विश्व विख्यात, भारतीय सभ्यता व संस्कृति की पावन संगम स्थली देवभूमि उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।’
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने देहरादून के शहीद स्मारक पर राज्य आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और राज्य निर्माण में शहीदों के बलिदान का स्मरण किया।
अखिल भारतीय कांग्रेस ने भी अपने ट्विटर हैंडल से प्रदेशवासियों को स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी हैं। मगर कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने कोई ट्वीट नहीं किया। कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा – ‘समस्त प्रदेशवासियों को देवभूमि उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।’
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस (Uttarakhand Foundation Day) के अवसर पर आयोजित होने वाले चार दिवसीय कार्यक्रमों की श्रृंखला रविवार से शुरू हो गई। पहले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में राज्यवासियों को कई सौगातें दी। मुख्यमंत्री ने सुबह अपने सरकारी आवास से माउंटेन टैरेन बाइकिंग रैली का फ्लैग ऑफ कर कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत की।
उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद द्वारा आयोजित इस साइकिल रैली को झंडी दिखा कर रवाना करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य के 21 वें वर्ष में प्रवेश के लिए सभी को बधाई दी। यह रैली मुख्यमंत्री आवास से जॉर्ज एवरेस्ट (मसूरी) के लिए रवाना हुई। इस रैली में युवाओं के अलावा महिलाओं ने भी प्रतिभाग किया।
सरकारी डिग्री कॉलजों में फ्री इंटरनेट सुविधा
कार्यक्रमों की श्रृंखला में रविवार को ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र डोईवाला पहुंचे, जहां उन्होंने शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय महाविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदेश के सभी महाविद्यालयों व विश्व विद्यालयों के लिए हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी व वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधा का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सरकारी महाविद्यालयों को यह सुविधा प्रदान करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा युवाओं की पूरी दुनिया से जुड़ने की अभिलाषा होती है। इस दिशा में यह हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी युवाओं के लिए वरदान साबित होगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल भारत की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है।
प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत ने कहा कि इस सुविधा का लाभ राज्य के 2 लाख से अधिक छात्र- छात्राओं को मिलेगा। कार्यक्रम में विधान सभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल, विधायक हरबंश कपूर आदि उपस्थित थे।
देश के सबसे लंबे भारी वाहन झूला पुल का लोकार्पण
दोपहर को मुख्यमंत्री ने टिहरी पहुंच कर विश्व प्रसिद्ध टिहरी झील पर निर्मित डोबरा-चांठी मोटर पुल का लोकार्पण किया। यह पुल भारी वाहनों के लिए देश का सबसे लंबा झूला पुल है। इस पुल के निर्माण से क्षेत्र की जनता का लगभग डेढ़ दशक का इंतजार खत्म हुआ। 725 मीटर लंबा यह पुल लगभग 3 अरब की लागत से तैयार हुआ है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पुल के निर्माण से क्षेत्र के विकास में नए आयाम जुड़ेंगे। यह क्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा। उन्होंने कहा कि टिहरी झील साहसिक पर्यटन का केंद्र बनेगी। इस दौरान मुख्यमंत्री ने लगभग पौने 5 अरब की योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण भी किया। कार्यक्रम में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत, सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह, जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवान, विधायक विजय सिंह पंवार, धन सिंह नेगी, शक्ति लाल शाह आदि उपस्थित थे।
यहां बता दें कि 9 नवम्बर को उत्तराखंड अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूरे कर रहा है। स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में सरकार ने चार दिन तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया है। इस वर्ष स्थापना दिवस की खास बात यह है कि गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र दो दिन तक वहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि गैरसैंण में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री कुछ बड़ी घोषणाएं भी कर सकते हैं।
केंद्र सरकार ने नेशनल हाइवेज पर टोल प्लाजा (Toll Plazas) पर लगने वाले जाम को कम करने लिए फास्टैग (FASTag) को अनिवार्य कर दिया है। देश में अगले वर्ष पहली जनवरी से सभी चार पहिया वाहनों के लिए फास्टैग जरुरी होगा। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Union Ministry of Road Trasport & Highways) ने शनिवार को इसकी अधिसूचना जारी कर दी।
फास्टैग एक इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन डिवाइस (Electronic toll collection device) है, जो वाहन के विंडशील्ड पर लगाई जाती है। इससे वाहन चालक को टोल प्लाजा पर रुकने की जरुरत नहीं पड़ती है। टोल शुल्क का भुगतान सीधे प्रीपेड वॉलेट या उससे जुड़े बैंक खाते से काट लिया जाता है। टोल प्लाजा पर कैश हैंडलिंग और जाम की समस्या से छुटकारा पाने के लिए केंद्र सरकार ने एक दिसंबर 2017 से नए चार पहिया वाहनों के सभी तरह के पंजीकरण के लिए फास्टैग अनिवार्य कर दिया गया था। साथ ही यह अनिवार्य किया गया था कि परिवहन वाहनों के लिए फास्टैग लगने के बाद ही फिटनेस प्रमाणपत्र का नवीनीकरण किया जाएगा।
इसके अलावा राष्ट्रीय परमिट वाहनों के लिए भी एक अक्टूबर, 2019 से फास्टैग चिपकाना अनिवार्य कर दिया गया था। अब वर्ष 2017 से पहले के वाहनों के लिए भी फास्टैग जरुरी कर दिया गया है। साथ ही फॉर्म 51 (बीमा का प्रमाण पत्र) में संशोधन के जरिए यह भी तय कर दिया गया है कि थर्ड पार्टी बीमा लेते समय वैध फास्टैग का होना अनिवार्य है। इसमें फास्टैग आईडी का ब्यौरा शामिल होगा। यह एक अप्रैल, 2021 से लागू होगा।
मंत्रालय ने कहा है कि यह अधिसूचना टोल प्लाजा पर केवल इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शुल्क के शत-प्रतिशत भुगतान को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे टोल प्लाजा से वाहन बिना किसी रुकावट गुजर सकेंगे। वाहनों को प्लाजा पर इंतजार नहीं करना होगा और ईंधन की बचत होगी। फास्टैग की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं। इन्हें विभिन्न स्थानों पर और ऑनलाइन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है, ताकि लोग अपनी सुविधा के अनुसार दो महीने के भीतर अपने वाहन पर फास्टैग लगा सके।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत शनिवार को चम्पावत जिले के लोहाघाट पहुंचे। मुख्यमंत्री ने वहां ग्रोथ सेंटर का निरीक्षण किया। ग्रोथ सेंटर के भवन के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ लौह बर्तन एवं कृषि यंत्र उत्पादन मशीनों का लोकार्पण किया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने चंपावत के लिए लगभग 11 करोड़ 93 लाख की सात विभिन्न विकास योजनाओं के लोकार्पण के अलावा ही लगभग 18 करोड़ 65 लाख लागत की 12 योजनाओं का शिलान्यास भी किया।
चंपावत भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ विभिन्न विकास योजनाओं एवं कार्यक्रमों की समीक्षा की और योजनाओं की अद्यतन प्रगति की जानकारी प्राप्त करते हुए विकास कार्यों में और तेजी लाने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने चिकित्सा विभाग की समीक्षा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कोविड-19 से निपटने के लिए हम सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करने होंगे। इसमें किसी भी प्रकार का शिथिलता न बरती जाए। उन्होंने पशुपालन विभाग को पोल्ट्री के क्षेत्र में सुनियोजित तरीके से कार्य करने को कहा। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य परिणात्मक होना चाहिए। मनरेगा की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने अधिक से अधिक व्यक्तियों का पंजीकरण कराने के निर्देश दिये।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने जल जीवन मिशन की समीक्षा करते हुए कहा कि इस योजना के तहत एक रूपये में पानी के कनेक्शन दिये जा रहे हैं। इसलिए विभाग प्रत्येक दिन का लक्ष्य निर्धारित कर धरातलीय कार्य करें। इसके लिए उन्होंने ग्राम व न्यायपंचायत स्तर पर कार्य योजना तैयार करने निर्देश दिए। जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी प्राप्त होगा। जिला योजना की समीक्षा के दौरान उन्होंने कहा कि धनराशि का व्यय रोजगारपरक योजनाओं पर अनिवार्य रूप से किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा प्रत्येक व्यक्ति को रोजगारपरक योजनाओं से लाभान्वित करना है।
इस अवसर पर जनपद के प्रभारी मंत्री अरविंद पांडेय, विधायक पुरन सिंह फर्त्याल, कैलाश चन्द गहतोड़ी, जिला पंचायत अध्यक्षा ज्योति राय, दायित्वधारी हयात सिंह मेहरा, मंडलायुक्त अरविंद सिंह ह्यांकी, जिलाधिकारी सुरेंद्र नारायण पांडेय आदि उपस्थित थे।
देशभर में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System, TPDS)में प्रौद्योगिकी का प्रयोग और इसके आधुनिकीकरण से एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। वर्ष 2013 से 2020 की अवधि तक देशभर में लगभग 4.39 करोड़ अपात्र अथवा फर्जी राशन कार्ड रद्द किए गए।
केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (Department of Food & Public Distribution) द्वारा शुक्रवार को जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार लाने के लिए एक लक्षित अभियान के तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act, NFSA) को लागू करने की तैयारी की। इस दौरान पीडीएस को आधुनिक बनाने और इसके परिचालन में पादर्शिता व कुशलता लाने का प्रयास किया गया। राशन कार्ड और लाभार्थियों के डाटाबेस का डिजिटाइजेशन किया गया। उन्हें आधार से जोड़ कर अपात्र व फर्जी राशन कार्डों की पहचान की गई है।
इस क्रम में डिजिटाइज किए गए डाटा से दोहराव को रोकने के साथ-साथ कई लाभार्थियों के अन्यत्र चले जाने अथवा मौत हो जाने के मामलों की पहचान की गई। केंद्र सरकार की इस कवायद के बाद राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने वर्ष 2013 से 2020 तक की अवधि में देश में कुल करीब 4.39 करोड़ अपात्र अथवा फर्जी राशन कार्डों को रद्द किया है।

सरकारी वक्तव्य के अनुसार NFSA कवरेज के तहत जारी किया जा रहा कोटा, संबंधित प्रदेश सरकारों द्वारा नियमित रूप से लाभार्थियों की ‘सही पहचान’ कर पहुंचाया जा रहा है। NFSA के तहत पात्र लाभार्थियों व परिवारों को शामिल करने और उन्हें नए राशन कार्ड जारी करने का काम जारी है। यह कार्य NFSA के तहत प्रत्येक राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश के लिए परिभाषित सीमा के भीतर किया जा रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा NFSA के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए 81.35 करोड़ लोगों को बेहद कम कीमत में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है, जो कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुरूप देश की जनसंख्या का दो तिहाई है। केन्द्र द्वारा हर माह बेहद रियायती दरों- तीन रुपये, दो रुपये और एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर से क्रमशः चावल, गेहूं और अन्य मोटा अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट (High Court of Uttarakhand) ने उत्तरकाशी में तैनात मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate, CJM) नीरज कुमार को नशे की हालत में परिजनों से मारपीट और उत्पात मचाने के आरोप में निलंबित कर दिया है। निलंबन के दौरान नीरज कुमार जिला न्यायाधीश बागेश्वर के साथ संबद्ध रहेंगे और उन्हें वेतन-भत्ते आधे ही मिलेंगे। हाईकोर्ट ने उन्हें बिना अनुमति के जिला मुख्यालय छोड़कर न जाने का आदेश भी दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने दो जजों के स्थानांतरण भी किए हैं।
हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ की संस्तुति के बाद रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल ने कार्यालय ज्ञाप जारी कर CJM के तत्काल प्रभाव से निलंबन के आदेश दिए हैं। कार्यालय ज्ञाप के अनुसार CJM नीरज कुमार उत्तरकाशी की कलेक्ट्रेट कॉलोनी में रहते हैं। 30 अक्टूबर को कलेक्ट्रेट कॉलोनी के लोगों ने हाई कोर्ट को एक शिकायत भेजी। CJM पर आरोप है कि उन्होंने 29 अक्टूबर को रात 8 बजे से 12 बजे तक नशे में अपने परिजनों के साथ मारपीट की, गालियां दीं और सड़क में उत्पात मचाया।
CJM ने कॉलोनी में खड़ी एक उप जिला मजिस्ट्रेट व तहसीलदार के वाहनों के शीशे भी तोड़ दिए। जब आसपास के लोगों ने CJM को रोकने की कोशिश की तो उन्होंने लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया। CJM की इन हरकतों के कारण आसपास रहने वाले परिवारों में बहुत रोष और भय था। CJM के पुत्र ने उन्हें घर ले जाने की कोशिश की तो उन्होंने बेटे के साथ भी अभद्र व्यवहार किया। इसके बाद CJM अपने सरकारी वाहन को बीच सड़क में ले जाकर लगातार हूटर बजाने लगे। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली – 2002 के विभिन्न प्रावधानों के तहत CJM को निलंबित किया है।
इधर, हाई कोर्ट ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) विकासनगर (देहरादून) के पद पर तैनात मदन राम को नीरज कुमार के स्थान पर उत्तरकाशी का CJM तैनात किया है। देहरादून के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रमेश सिंह (I st) को मदन राम की जगह विकासनगर भेजा गया है।
प्रदेश के मंत्रियों के विभागों की समीक्षा के क्रम में बुधवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के साथ वन, सेवायोजन एवं कौशल विकास, श्रम तथा आयुष विभाग को लेकर बैठक की। समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कई निर्देश दिए।
वन विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि प्रदेश के वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बुकिंग के लिए सिंगल विंडो सिस्टम शुरू किया जाए। वन विभाग द्वारा जहां भी वृक्षारोपण करवाया जा रहा है, उन वृक्षों की सुरक्षा के लिए सुनियोजित कार्ययोजना तैयार हो। वृक्षारोपण करने तक का ही उद्देश्य न हो, बल्कि इनकी सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। इस कार्य में जन सहयोग सुनिश्चित हो। वन विभाग राजस्व वृद्धि पर विशेष ध्यान दे। उन्होंने वनाग्नि को रोकने के लिए समुचित प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया।
आयुष विभाग की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि पौड़ी (गढ़वाल) के चरक डांडा में अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना के लिए जल्द डीपीआर बनाई जाए। मुख्यमंत्री ने सेवायोजन एवं कौशल विकास को लेकर अधिकारियों को निर्देश दिये कि प्रदेश में जिन 25 आईटीआई को अपग्रेड किया जा रहा है, उनमें प्रशिक्षण की बेहतर व्यवस्था के साथ ही प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों के प्रतिभा प्रदर्शन एवं प्रोत्साहित करने के लिए प्रोडक्शन एवं मार्केटिंग की व्यवस्था भी हो। मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड के औद्योगिक संस्थानों में 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए उद्योग विभाग की जिम्मेदारी सुनिश्चित की है।
इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने बताया कि कार्बेट टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत ढेला ‘रेस्क्यू सेन्टर’ एवं पाखरो ‘टाइगर सफारी’ की स्थापना का कार्य प्रगति पर है। उन्होंने कहा की प्रदेश में पिछले तीन सालों में प्रतिवर्ष औसतन 1500 हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया गया। प्रदेश में 14.77 प्रतिशत क्षेत्र संरक्षित है, जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना है। राज्य में 2006 में बाघों की संख्या 178 थी, जो 2018 तक बढ़कर 442 हो गई है। हाथियों की संख्या 2017 तक 1839 थी, जो अब बढ़कर 2026 हो गई है। वर्षा जल संरक्षण की दिशा में 02 वर्षों में लगभग 68.37 करोड़ ली0 वर्षा जलसंचय की संरचनाओं का निर्माण किया गया। वन विभाग द्वारा पिछले तीन सालों में विभिन्न योजनाओं के तहत 1 लाख 20 हजार लोगों को रोजगार दिया गया।