मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में सोमवार को सचिवालय में मुख्यमंत्री सलाहकार समूह की प्रथम बैठक आयोजित की गई। राज्य में नवाचार और उद्यमिता (innovation and entrepreneurship) को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने स्टार्टअप, नवाचार और उद्यमिता पर मुख्यमंत्री सलाहकार समूह स्थापित किया है। राज्य में स्टार्टअप ईकोसिस्टम विकसित करने के लिए इस समूह द्वारा नवाचार और उद्यमिता के लिए राज्य में एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने, अनुसंधान और नये उत्पादों, सेवाओं, व्यापार मॉडल के विकास को प्रोत्साहित करने, उपयुक्त पॉलिसी योजनाओं और आवश्यक समर्थन प्रणाली को विकसित करने हेतु परामर्श देना है। इसके अलावा पाठ्यक्रम, मॉड्यूल प्रशिक्षण, कार्यशालाओं और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में नवाचार और उद्यमशीलता के बारे में जागरूकता, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निकायों और एजेंसियों के साथ आवश्यक साझेदारी हेतु सलाह देना है।
ये बनाये गए हैं सदस्य
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में बनाये गये मुख्यमंत्री सलाहकार समूह में 07 सरकारी एवं 06 गैर सरकारी सदस्य शामिल हैं। सरकारी सदस्यों में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव उद्योग, सचिव वित्त, सचिव सूचना प्रौद्योगिकी, सचिव मुख्यमंत्री, महानिदेशक उद्योग, एवं निदेशक उद्योग शामिल हैं। जबकि गैर सरकारी सदस्यों में इंडियन एंजल नेटवर्क के फाउण्डर डॉ. सौरभ श्रीवास्तव, सम्पर्क फाउण्डेशन के फाउण्डर विनीत नायर, क्वात्रो ग्लोबल सर्विस के चैयरमेन एवं प्रबंध निदेशक रमन रॉय, कन्ट्री हेड एच.एस.बी.सी नैना लाल किदवई, इन्फो एज के वाइस चैयरमेन संजीव बिखचंदानी एवं सन मोबिलिटी प्रा. लि. के वाइस चैयरमेन चेतन मणि शामिल है।
उद्यमिता, नवाचार एवं स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए राज्य में यह नई पहल
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लोकल के लिए वोकल बनने की जो बात कही गई यह उस दिशा में प्रयास है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड विविध जैव विविधताओं वाला राज्य है, यहां कि जैव विविधता का फायदा लेते हुए इस दिशा में अनेक कार्य हो सकते हैं। राज्य में इन्वेस्टर समिट के दौरान सवा लाख करोड़ के एमओयू हस्ताक्षरित किये गये। जिसमें से 25 हजार करोड़ के कार्यों की ग्राउंडिंग हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड 19 के जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, उससे औद्योगिक गतिविधियां जरूर प्रभावित हुई हैं। इस दौर दिक्कतें भी आई हैं और नई संभावनाएं भी विकसित हुई हैं। उन्होंने कहा कि ग्रुप के सभी सदस्यों के सुझावों पर गम्भीरता से कार्य किया जायेगा।
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से विशेषज्ञों के सुझाव
इस अवसर पर वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से इंडियन एंजल नेटवर्क के फाउण्डर डॉ. सौरभ श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि राज्य में उद्यमिता के विकास के लिए जो भी योजना बने राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से बने। स्टार्टअप के तहत जॉब क्रियेशन पर विशेष ध्यान दिया जाय। उत्तराखण्ड के उत्पादों की अलग ब्रांडिंग हो, वैल्यू एडिशन पर विशेष ध्यान दिया जाय। हैल्थ केयर में मेडिकल टूरिज्म पर ध्यान देने की जरूरत है।
नैना लाल किदवई ने कहा कि रूरल टूरिज्म एवं होम स्टे को बढ़ावा दिया जाय। एग्रो प्रोसेसिंग एवं फोरेस्टरी सेक्टर में अनेक कार्य किये जा सकते हैं। विनीत नायर ने कहा कि मेंटल हैल्थ के क्षेत्र में अनेक कार्य हो सकते हैं। हमें सबसे पहले बच्चों के मेंटल हैल्थ पर फोकस करना होगा। स्टार्टअप का भविष्य साइंस और तकनीक पर आधारित है। इस दिशा में पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। रमन रॉय ने कहा कि लाईवलीहुड बिजनेस पर ध्यान देने की जरूरत है। राज्य बिजनेस के कल्चर को प्रमोट करने की जरूरत है। विभिन्न सेक्टर में कार्य करने के लिए प्रत्येक सेक्टर के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने होंगे। संजीव बिखचंदानी ने कहा कि राज्य में कुछ बड़े उद्योग स्थापित करने होंगे। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत अनेक कार्य किये जा सकते हैं।
मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा कि राज्य में औद्योगिक विकास के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। कोरोना काल में साढ़े चार लाख से अधिक प्रवासी वापस उत्तराखण्ड आये हैं। उनको स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की गई है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार रवीन्द्र दत्त, अपर मुख्य सचिव मनीषा पंवार, सचिव आईटी आर.के. सुधांशु, सचिव मुख्यमंत्री राधिका झा, सचिव कौशल विकास डॉ. रणजीत कुमार सिन्हा, महानिदेशक उद्योग एस.ए. मुरूगेशन, अपर सचिव कौशल विकास आर राजेश कुमार, अपर सचिव मुख्यमंत्री ईवा श्रीवास्तव, निदेशक उद्योग सुधीर नौटियाल आदि उपस्थित थे।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने रविवार देर रात दिल्ली दंगे के दौरान साजिश के आरोप में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र उमर खालिद को गिरफ्तार कर लिया है। उमर खालिद की गिरफ्तारी गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act, UAPA) के तहत की गई है।
इस वर्ष फरवरी माह में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरोधियों और समर्थकों के बीच हिंसा के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 के करीब घायल हुए थे। स्पेशल सेल दिल्ली हिंसा की साजिश की जांच कर रही है। स्पेशल सेल पहले भी उमर खालिद से पूछताछ कर चुकी है। उमर खालिद पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से पहले भड़काऊ भाषण देने का भी आरोप है। आरोप है कि उमर खालिद ने ट्रम्प के भ्रमण के दौरान दंगे फैलाने के लिए उकसाने वाले भाषण दिए, ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने भारत की छवि ख़राब हो। उमर खालिद ने पहली बार तब सुर्खियां बटोरीं थीं, जब जेएनयू में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ एक कार्यक्रम हुआ।
उधर, उमर खालिद की गिरफ्तारी की खबर फैलते ही ‘टुकड़े- टुकड़े’ गैंग सक्रिय हो गया और उन्होंने खालिद की गिरफ्तारी पर विरोध जताया है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव व अभिनेता प्रकाश राज ने ट्वीट कर गिरफ्तारी का विरोध किया है। JNU की छात्र नेता रहीं शेहला रशीद, इस्लामिक संस्था पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के महासचिव अनीष अहमद, हर्ष मंदर आदि तमाम लोगों ने उमर खालिद की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
हड़ताली प्रदेश की छवि बना चुका उत्तराखंड वर्तमान में उत्तराखंड जनरल ओबीसी एम्प्लायज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष व सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी के विरुद्ध जांच के विरोध में कर्मचारी आंदोलन से जूझ रहा है। जोशी के विरुद्ध शासन ने बिना सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के मीडिया में राज्य सरकार तथा उसकी नीतियों का विरोध करने के आरोप में जांच बैठायी है। जोशी पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने पदीय कर्तव्यों एवं दायित्वों से इतर जाकर प्रदेश सरकार पर टिप्पणी व वक्तव्य दिए हैं। इन आरोपों के क्रम में शासन ने उनके विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत कार्रवाई करते हुए आरोप पत्र जारी किया है और अपर सचिव, गृह के पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी कृष्ण कुमार वीके को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा पहली सितम्बर को जारी इस आदेश में जांच अधिकारी को एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सचिवालय प्रशासन विभाग को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश के जारी होने के बाद से प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन आंदोलनरत हैं। कर्मचारी संगठनों की और से ‘उग्र आंदोलन’ और ‘आर-पार की लड़ाई’ जैसी धमकियां प्रदेश सरकार को दी जा रही हैं। कर्मचारियों ने गत दिवस इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से गुहार लगाई थी। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव ओम प्रकाश को इस मामले को देखने के निर्देश दिए। मुख्य सचिव सोमवार को प्रकरण से संबंधित पत्रावलियों को देखेंगे और कर्मचारी संगठनों से बातचीत करेंगे। मुख्य सचिव इस मामले में क्या निर्णय लेंगे, यह सोमवार को ही पता चलेगा।
मगर, दीपक जोशी प्रकरण के बहाने कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब बात-बेबात में आंदोलन पर उतारू रहने वाले कर्मचारी संगठनों और कर्मचारियों की छोटी-मोटी व जायज समस्याओं की अनदेखी करने वाले नौकरशाहों को देना ही चाहिए। इन सवालों पर बात करने से पहले यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। रिपोर्ट वर्ष 2016 में देश भर में हुए विभिन्न आंदोलनों पर आधारित थी। रिपोर्ट में आंदोलनों के मामले में उत्तराखंड ने देश के बड़े राज्यों को पछाड़ कर पहले स्थान पर कब्जा जमा लिया था। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों के ताबड़तोड़ आंदोलन ने राज्य को देश में पहले स्थान पर पहुंचा दिया था। कर्मचारियों के आंदोलन ने राजनीतिक व छात्र आंदोलनों को भी कोसों दूर छोड़ दिया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में उत्तराखंड के कर्मचारी सर्वाधिक असंतुष्ट दिख रहे थे। यह आकड़ें भले वर्ष 2016 के हों। मगर परिस्थितियों में आज भी कोई अंतर नहीं है।
अब सवालों की बात करते हैं। शासन ने दीपक जोशी के विरुद्ध उत्तराखंड राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली- 2002 के विभिन्न नियमों के तहत जाँच शुरू की है। यह नियमावली सरकारी कार्मिकों हेतु सरकारी सेवक के तौर पर उन्हें ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के साथ पदीय कर्तव्यों के निर्वहन के लिए एक ‘आचार संहिता’ है। आम तौर पर नियमावली के अधिकांश प्राविधानों का न तो कार्मिक पालन करते हैं और न ही सरकार इस मामले में सख्ती बरतती है। शासन ने जोशी को नियमावली के तमाम नियमों के तहत आरोप पत्र जारी किया है। जिसके बचाव में कर्मचारी संगठनो की और से यह तर्क दिया जा रहा है कि जोशी ने एक कर्मचारी संगठन के नेता के रूप में अपनी अपने वक्तव्य दिए हैं और एक संगठन के नेता के रूप में उन्हें यह अधिकार हासिल है।

मगर, ऐसे तर्क देने वालों से ये सवाल पूछा जाना जरुरी है कि क्या कर्मचारी नेता होने के नाते किसी को भी अपनी मांगों या समस्याओं से इतर जाकर कुछ भी बोलने का अधिकार मिल जाता है ? शासन द्वारा जोशी को दिए गए आरोप पत्र में क्या-क्या बिंदु शामिल किये गए हैं, यह पता नहीं चल सका है। मगर उनका उत्तराखंड को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर दिया गया बयान काफी चर्चाओं में रहा था। यह बयान सीधे-सीधे कर्मचारी आचरण नियमावली के बिलकुल विपरीत तो है ही, साथ ही यह भी सवाल खड़ा कर रहा है की ऐसे बयानों का कर्मचारी संगठनों की मांग से क्या सम्बन्ध है? अथवा यह बयान किसी राजनीति से प्रेरित से है ?
प्रदेश में कर्मचारी संगठनों की बात की जाए तो कई प्रमुख कर्मचारी संगठनों में सेवानिवृत कर्मचारी कमान संभाले हुए हैं। यह कर्मचारी संगठनों के लिए तय मानकों के विपरीत है। मगर इसके बावजूद लगातार ऐसा चल रहा है तो इसके पीछे क्या कारण है ? क्या यह कर्मचारी संगठनों की मंशा पर सवाल उठाने के लिए काफी नही है ? कर्मचारी संगठन आंदोलनों के बल पर प्रदेश की सरकारों को वोट बैंक के दवाब में लेकर अपनी जायज-नाजायज मांगों को मनवाने में भले ही सफल हो जाते हों। मगर उनकी हड़ताल पर हड़ताल से प्रदेश के विकास पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है, उसकी भरपाई शायद ही कभी हो सकेगी। ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है कि हड़ताली प्रदेश की छवि से कब मुक्त होगा उत्तराखंड ?
बहरहाल, प्रदेश में कर्मचारियों के लगातार आंदोलन के पीछे अफसरशाही भी कम दोषी नहीं है। उदाहरण के तौर पर पदोन्नति की बात की जाए। अफसरों की पदोन्नति में एक दिन का भी विलंब नहीं होता है। इसके विपरीत तमाम कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत हो जाते हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति की फाइल विभागों व सचिवालय की अंधेरी गलियों में गुम हो जाती हैं। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि यदि अधिकांश कर्मचारियों को तय समय पर पदोन्नति दे दी जाए, तो इससे सरकार पर किसी प्रकार का वित्तीय भार भी नहीं पड़ता है, क्योंकि अधिकांश कार्मिक पदोन्नति पर जाने वाले पद के अनुरूप वेतन ले रहे होते हैं। उनके लिए पदोन्नति एक सम्मान होता है, जो कार्मिकों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है।
The Monsson session of Parliament will begin from Monday. The fourth session of 17th Lok Sabha and 252nd Session of Rajya Sabha is scheduledto be held on Monday, 14th September and subject to exigencies of Government Business, may conclude on Thursday, 1st October, 2020.
The Session will provide a total of 18 sittings spread over a period of 18 days (all the days including Saturdays and Sundays of the ensuing session will be working days) and a total of 47 items have been identified for being taken up during the Monsoon Session.
The total eleven Bills replacing the ordinance namely: The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Prices Assurance and Farm Services Bill, The Homoeopathy Central Council (Amendment) Bill, The Indian Medicine Central Council (Amendment) Bill, The Essential Commodities (Amendment) Bill, The Insolvency & Bankruptcy (Second) Amendment Bill, The Banking Regulation (Amendment) Bill, The Taxation and Other Laws (Relaxation of Certain Provisions) Bill, The Epidemic Diseases (Amendment) Bill, The Salary and Allowances of Ministers (Amendment) Bill, The Salary, Allowances and Pension of Members of Parliament (Amendment) Bill are required to be passed during the ensuing Monsoon Session.
Further, some important pending legislations in the Houses required to be considered and passed during the Session.
Some other new bills likely to be introduced, considered and passed during this session are: The Bilateral Netting of Financial Contracts Bill, The Factoring Regulation (Amendment) Bill, The Pension Fund Regulatory And Development Authority (Amendment) Bill, The National Commission for Allied and Healthcare Professions Bill, The Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill, The Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Bill, The Foreign Contribution (Regulation)Amendment Bill, The Representation of People (Amendment) Bill, The Prohibition of Employment as manual Scavengers and their Rehabilitation (Amendment) Bill, The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Amendment Bill, The Multi State Cooperative Societies (Amendment) Bill, The Jammu and Kashmir Official Language, Bill.
There are few bills for withdrawal during the session namely: The Allied and Healthcare Professions Bill, 2018, The Mines (Amendment) Bill, 2011, The Inter-State Migrant Workmen (Regulation of Employment and Conditions of Service) Amendment Bill, 2011, The Building and Other Construction Workers Related Laws (Amendment) Bill, 2013, The Employment Exchanges (Compulsory Notification of Vacancies) Amendment Bill, 2013.
This will be the first Parliament session being held amid the Covid-19 pandemic. Therefore all safety measures have been taken to conduct the session as per guidelines issued for Covid-19.
There will be a four-hour session for each House each day (9 am to 1 pm for Rajya Sabha and 3 pm to 7 pm for Lok Sabha. But on the first day only i.e. on 14th September of the Lok Sabha will meet in the morning session. The session will see other measures like seating MPs in a staggered way in chambers of both Houses, as well as galleries to maintain physical distancing norms, introduction of mobile app for registering of MPs’ attendance and seats separated with poly-carbon sheets in the House.
The Zero Hour will be there and the un-starred questionswill be laid on the table.
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में शनिवार को 3 आईएएस अधिकारियों को नियुक्ति दी गई है। इनमें उत्तराखंड कैडर के मंगेश घिल्डियाल भी शामिल हैं।
मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी रघुराज राजेंद्रन को प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के पद पर तैनात किया गया है।
आंध्र प्रदेश कैडर की आम्रपाली काता को पीएमओ में उप सचिव के रूप में नियुक्ति मिली है।
उत्तराखंड कैडर के मंगेश घिल्डियाल प्रधानमंत्री कार्यालय में अवर सचिव के रूप में कार्यभार संभालेंगे। मंगेश वर्तमान में टिहरी गढ़वाल के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश सचिवालय की कार्यप्रणाली को चुस्त-दुरस्त करने और कार्मिकों के रवैये में सुधार लाने के लिए पिछले दिनों कई सख्त फैसले लेने पड़े थे। मगर सचिवालय के कुछ कार्मिकों ने तो शायद यह ठान रखी है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो सुधरेंगे नहीं। वर्तमान में एक प्रकरण वन विभाग से जुड़ा हुआ सामने आया है, जिसमें वन अनुभाग के कार्मिकों की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण शासन की फजीहत हो गयी। वन अनुभाग के कार्मिकों ने उत्तराखंड वन निगम में प्रतिनियुक्ति से संबंधित एक मामले के आदेश की प्रति प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर हुए बिना ‘लीक’ कर दी।
दरअसल, मई माह में उत्तराखंड वन विकास निगम के के प्रबंध निदेशक मोनिष मल्लिक ने प्रदेश के मुख्य वन सरंक्षक, मानव संसाधन विकास एवं कार्मिक प्रबंधन मनोज चंद्रन को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने वन निगम में विभिन्न अधिकारियों के सेवानिवृत होने के फलस्वरूप रिक्त पड़े पदों के कार्य संचालन में हो रही कठिनाइयों का उल्लेख किया और वन विभाग से 10 राजि अधिकारी स्तर के कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने का अनुरोध किया।
वन निगम के पत्र पर तत्काल कार्रवाई करते हुए मनोज चंद्रन ने मुख्य वन सरंक्षक, गढ़वाल और कुमायूं को निगम के पत्र का हवाला देते हुए प्रतिनियुक्ति हेतु वन क्षेत्राधिकारियों, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारियों तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों से आवेदन पत्र एक निर्धारित प्रारूप पर भेजने को कहा। इस क्रम में इच्छुक कार्मिकों द्वारा विभागीय माध्यम से अपने आवेदन पत्र भेज दिए गए। वन मुख्यालय ने अपने स्तर से आवश्यक कार्रवाई कर इस प्रकरण को शासन को भेज दिया।
मामला तब चर्चा में आया, जब विभागीय मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुमोदन के बाद फाइल वापस सचिवालय में पहुंची। सचिवालय पहुंचते ही फाइल से प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले कार्मिकों के आदेश की प्रति वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों के व्हाट्सएप पर घूमने लगी। मजेदार बात ये है कि इस आदेश पर विभाग के प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर भी नहीं हुए थे।


वन निगम के कार्मिकों को आदेश की जानकारी लगने पर उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। वन निगम के जूनियर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने तर्क दिया की वन विभाग से जिन कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर लिया जा रहा है, वो कनिष्ठ श्रेणी के हैं और उनको निगम में वरिष्ठ श्रेणी के पदों पर तैनाती देना उचित नहीं होगा। उन्होंने इस संबंध में प्रमुख सचिव (वन) आनंद वर्धन को अपना लिखित ज्ञापन भी सौंपा।
प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बावजूद आदेश को जारी होने से रोक दिया और इस पर वन निगम के प्रबंध निदेशक मल्लिक से आख्या मांगी। प्रबंध निदेशक ने निगम के कार्मिकों की मांग के अनुरूप अपनी आख्या शासन को भेज दी। प्रबंध निदेशक की आख्या के बाद प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने शुक्रवार को वन क्षेत्राधिकारी स्तर के पांच कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने की स्वीकृति दे दी।
इधर, वन विभाग के कार्मिकों का कहना है इस मामले में वन निगम के कार्मिकों का विरोध औचित्यहीन है। वन निगम में प्रतिनियुक्ति हेतु जिस स्तर के कार्मिक मांगे गए थे, उनके विभाग के कार्मिक उस लिहाज से कहीं कनिष्ठ नहीं हैं। वन निगम में स्केलर पद से पदोन्नति पाए कर्मचारी वरिष्ठ पदों पर कब्ज़ा जमाए हुए हैं और प्रभारी के रूप में चार्ज लिए हुए हैं। वन विभाग के वन क्षेत्राधिकारी, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारी तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों की वरिष्ठता व वेतनमान में प्रतिनियुक्ति हेतु मांगे गए पद में बहुत अंतर नहीं है।
बहरहाल, यह प्रकरण वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल उठ रहा है कि क्या जब प्रतिनियुक्ति के लिए नियम तय किये गए, तब विभागीय अधिकारियों और शासन को वरिष्ठता-कनिष्ठता का पता नहीं था? या फिर वन निगम के प्रबंधक निदेशक अपने कर्मचारी संगठन के दवाब में आ गए ? जब फाइल शासन में विभिन्न स्तरों पर गुजरी तब भी किसी स्तर पर आपत्ति क्यों नहीं लगाई गई ? सवाल यह भी हो रहा है कि विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बाद क्या विभागीय प्रमुख सचिव मामले में आपत्ति लगा सकते हैं ? और सबसे बड़ा सवाल कि सचिवालय के जिन कार्मिकों ने बिना हस्ताक्षरों के आदेश को लीक कर शासन की गोपनीयता भंग की और इस मामले को विवादित बना दिया, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी ?
भारत-चीन सीमा विवाद की तनातनी के बीच शुक्रवार को भारतीय वायु सेना की सेंट्रल एयर कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ (AOC-in-C) एयर मार्शल राजेश कुमार ने शुक्रवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भेंट की। उन्होंने चीन सीमा से जुड़े उत्तराखंड में सामरिक महत्व के दृष्टिगत वायु सेना की विभिन्न गतिविधियों के संचालन के लिए भूमि की व्यवस्था के संबंध में मुख्यमंत्री से चर्चा की।
एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार एयर मार्शल राजेश कुमार ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र से उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री से पंतनगर, जौलीग्रान्ट व पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विस्तार के साथ ही चौखुटिया में एयरपोर्ट हेतु भूमि उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि देश के उत्तर पूर्व क्षेत्र की भांति, उत्तराखण्ड के चमोली, पिथौरागढ़ तथा उत्तरकाशी क्षेत्र में रडार की स्थापना हेतु भूमि की उपलब्धता होने से सुविधा रहेगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में उत्तराखण्ड जैसे सीमांत क्षेत्र में उपयुक्त स्थलों पर रडार एवं एयर स्ट्रिप की सुविधा जरूरी है।

मुख्यमंत्री ने वायु सेना की अपेक्षानुसार उत्तराखण्ड में भूमि की उपलब्धता के लिये एयर फोर्स एवं शासन स्तर पर नोडल अधिकारी नामित करने के निर्देश दिये। ये अधिकारी संयुक्त रूप से आवश्यकतानुसार भूमि चिन्हीकरण आदि के संबंध में त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड सैनिक बाहुल्य प्रदेश है। सेना को सम्मान देना यहां के निवासियों की परम्परा रही है। सैन्य गतिविधियों के लिये भूमि की उपलब्धता के लिये राज्य वासियों का सदैव सहयोगात्मक रवैया रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंतनगर एयरपोर्ट को ग्रीन फील्ड एयर पोर्ट तथा जौलीग्रांट को अंतराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से युक्त बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व में भी चौखुटिया में एयर पोर्ट के निर्माण हेतु सैन्य अधिकारियों ने उस स्थान को उपयुक्त बताया गया था। उन्होंने कहा कि राज्य में एयर फोर्स को उसकी गतिविधियों के संचालन हेतु भूमि की व्यवस्था प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित की जायेगी।
इस अवसर पर प्रदेश के नागरिक उड्डयन सचिव दिलीप जावलकर, राजस्व सचिव सुशील कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष सचिव पराग मधुकर धकाते, अपर सचिव नागरिक उड्डयन आशीष चौहान, एयर कमोडोर एस.के. मिश्रा, विंग कमांडर डी.एस जग्गी आदि उपस्थित थे।
देश में कोरोना प्रभावितों के मामले बढ़ने के साथ- साथ रोगियों के ठीक होने की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। देश में पिछले 24 घंटों के दौरान 96,551 नए मामले सामने आये, तो वहीं 70,880 रोगी ठीक हुए हैं। महाराष्ट्र में ही एक दिन में 14,000 से अधिक रोगी ठीक हुए हैं, जबकि आंध्र प्रदेश में एक दिन में 10,000 से अधिक रोगी ठीक हुए हैं। शुक्रवार तक कुल सक्रिय मामलों की संख्या 9,43,480 हो गई है, जबकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या 45,62,414 तक पहुँच गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार दोपहर को यह आंकड़े जारी किये हैं।
इससे ठीक हुए रोगियों की संख्या 35,42,663 हो गई है और रिकवरी दर 77.65 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 60 प्रतिशत ठीक हुए नए रोगी पांच राज्यों अर्थात महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश से हैं।

पिछले 24 घंटों में 96,551 नए मामले सामने आए हैं। इसमें से अकेले महाराष्ट्र से 23,000 से अधिक और आंध्र प्रदेश से 10,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। नए मामलों में लगभग 57 प्रतिशत मामले केवल पांच राज्यों से सामने आए हैं। ये वही राज्य हैं, जो नए ठीक हुए रोगियों के मामलों में भी 60 प्रतिशत योगदान दे रहे हैं।
शुक्रवार तक देश में सक्रिय मामलों की कुल संख्या 9,43,480 हो गई है। महाराष्ट्र का इस तालिका में पहला स्थान है, जहां 2,60,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। इसके बाद कर्नाटक में 1,00,000 से अधिक सक्रिय मामले सामने आए हैं।
कुल सक्रिय मामलों में से लगभग 74 प्रतिशत सबसे अधिक प्रभावित राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से सामने आए हैं। इन राज्यों का कुल सक्रिय मामलों में 48 प्रतिशत से अधिक योगदान है।

पिछले 24 घंटों में 1209 मौत दर्ज हुई हैं। महाराष्ट्र में 495 लोगों की जान गई है, जबकि कर्नाटक में 129 और उत्तर प्रदेश में 94 लोगों ने जान गंवाई है। इस प्रकार अब तक कुल 76,271 लोग कोरोना के शिकार बने हैं। शुक्रवार तक कुल संक्रमित लोगों की संख्या 45,62,414 तक पहुँच गई है। इनमें से ठीक होने अथवा अस्पताल से छुट्टी दी गई मरीजों की संख्या 35,42,663 है।
ऑक्सीजन की आवाजाही पर किसी प्रकार का प्रतिबंध न लगाने के निर्देश
इधर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि अस्पताल में भर्ती हर रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराना प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी है। मंत्रालय के अनुसार उसकी जानकारी में आया है कि कुछ राज्य विभिन्न अधिनियमों के प्रावधानों का इस्तेमाल करके ऑक्सीजन की अंतरराज्यीय मुक्त आवाजाही को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, वे अपने राज्य में स्थित विनिर्माताओं अथवा आपूर्तिकर्ताओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति केवल राज्यों के अस्पतालों के लिए ही करने के लिए भी मजबूर कर रहे हैं।
इस बात को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने दोहराया है कि कोविड के गंभीर रोगियों के इलाज के लिए अस्पतालों में ऑक्सीजन का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने इस बात पर जोर दिया है कि मेडिकल ऑक्सीजन की पर्याप्त और बाधारहित आपूर्ति कोविड-19 के मध्यम और गंभीर मामलों के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण जरूरत है। स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि राज्यों के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की आवाजाही पर कोई प्रतिबंध लागू न किया जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अस्पताल में भर्ती हर रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराना प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी है।
Union Minister of State (Independent Charge) Development of North Eastern Region, MoS PMO, Personnel, Public Grievances, Pensions, Atomic Energy and Space, Dr Jitendra Singh said that the Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration (LBSNAA) Mussorie had started conducting “Combined” Foundation Course by enlarging the spectrum of this course, which earlier included only IAS and a few other Services. For the first time, the Academy was conducting a “Combined” Foundation Course by including over 20 different Services from the government sector.
He said, in future, an attempt will be made to further enlarge the spectrum of Foundation Course by including other Services also. This is in keeping with Prime Minister Narendra Modi’s vision to come out of a state of silos and, instead, develop a common perspective and a common vision for all functionaries, across the services.
Addressing the 61st Foundation Day celebration of the Academy Through video conferencing, Dr Jitendra Singh said, that the Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration is one of the premier institutes not only in the Indian subcontinent, but in the entire world. He said that an era spanning six decades is a significant time in the history of an Institution and the way Academy has evolved over the years bears ample testimony to the sweat, toil and vision of those who have nurtured it.
Extending his felicitations to the entire fraternity of the Academy under the leadership of Dr Sanjeev Chopra, an erudite scholar and administrator, he congratulated the Academy for delivering out of box solutions much ahead of deadlines, for designing all-inclusive training and pedagogical techniques, for embracing state of the art Technology, for making a social and ecological impact while leaving behind a set of best practices in every domain. He expressed satisfaction that the Academy is continuously training the Pioneers to fight the future challenges.
The Minister also referred to Prime Minister’s two-day visit to LBSNAA in 2017, where he had extensively interacted with Officer Trainees of 92nd Foundation Course and gave them the mantra of coming out of silos and focussing on the theme of constant learning. He said, to fulfil this novel thought, the Union Cabinet recently passed Mission Karmayogi-a National Programme for Civil Services Capacity Building (NPCSCB), which he said will go a long way in creating a new future ready civil service for a New India. He said, it is an endeavour to incarnate civil services into a real Karmayogi who is Creative, Constructive, Proactive and Technically Empowered to face the future challenges. The Union Cabinet also passed NRA recently for ease of aspiring candidates, but Mission Karmayogi harps on constant learning after one has joined the services, he added.
Dr. Jitendra Singh released a Publication- a compilation of articles on lesser known Heroes of Freedom Movement on the occasion.
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा धारा-370 हटाए जाने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास में बाधक बने तमाम कानून भी खत्म हो गए और इस क्षेत्र के विकास की रफ्तार पर लगा “स्पीड ब्रेकर” ध्वस्त हो गया है। नकवी ने दावा किया कि केंद्र सरकार की विभिन्न आर्थिक, शैक्षणिक विकास योजनाओं व कार्यक्रमों का लाभ जम्मू-कश्मीर, लेह-कारगिल के लोगों को मिलना शुरू हो गया है।
लेह के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे नकवी ने लेह, साबू-थांग, शुकोट शमा, शुकोट गोंगमा, फ्यांग आदि का दौरा कर विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से भेंट एवं प्रशासनिक अधिकारियों के साथ विकास योजनाओं की समीक्षा की। इस दौरान उनके साथ स्थानीय सांसद जामियांग शेरिंग नामग्याल भी उपस्थित थे।
नकवी ने कहा कि 2019 में धारा-370 हटाए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर और लेह-कारगिल में विकास की “राजनैतिक एवं कानूनी अड़चने” खत्म हुई है और विकास का चौमुखी समावेशी माहौल बना है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर, लेह-कारगिल में प्रशासनिक, भूमि, आरक्षण आदि सुधार हुए हैं। केंद्र सरकार के 890 कानून लागू हो गए हैं। राज्य के 164 कानून खत्म किये गए हैं। 138 कानूनों में सुधार किया गया है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था में सुधार कर अधिक से अधिक जरूरतमंदों को लाभ पहुँचाया गया है।

75 हजार से ज्यादा युवाओं को रोजगारपरक कौशल विकास की ट्रेनिंग मुहैया कराई गई है। 50 नए कॉलेज स्थापित किये जा रहे हैं। वर्तमान में जो कॉलेज हैं उनमे 1 वर्ष में 25 हजार नयी सीटें बढ़ाई गयी हैं। लाखों छात्र-छात्राओं को विभिन्न स्कॉलरशिप्स दी गई हैं। लद्दाख में 1 नए मेडिकल कॉलेज व 1 इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की जा रही है। लेह में नेशनल स्किल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की स्थापना की जा रही है। हजारों रिक्त पड़ी सरकारी नौकरियों को भरने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 35 हजार से ज्यादा स्कूल टीचर्स को नियमित कर दिया गया है। 500 करोड़ रूपए से ज्यादा कंस्ट्रक्शन मजदूरों, पिट्ठूवाला, रेहड़ी वालों, महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों के लिए दिए गए हैं। जम्मू, कश्मीर, लद्दाख को “इन्वेस्टमेंट हब” बनाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। ग्लोबल इन्वेस्टमेंट सम्मिट से 14 हजार करोड़ रूपए का निवेश आया है।
नकवी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख के सभी निवासियों को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराया गया है। आयुष्मान भारत का लाभ 30 लाख से ज्यादा लोगों को दिया गया है। कोरोना काल में 17 विशेष अस्पताल, 60 हजार नए बेड की व्यवस्था की गई है। कोरोना के चलते देश-विदेश में फंसे जम्मू, कश्मीर, लद्दाख के 2 लाख 50 हजार से ज्यादा लोगों को वापस उनके घर पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख में बड़े पैमाने पर विकास कार्यों की रुपरेखा बनाई है।