- प्रह्लाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
भारत के नियंत्रक और लेखा महानिरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बाल्टी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पायी हैं। आजादी के 70 वर्षों के पश्चात, देश की आबादी के एक बड़े भाग के घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। साथ ही, वाटर एड नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत वर्ष में ही है, जो वर्ष भर के किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नजर आती है।
आइए निम्न लिखित कुछ अन्य आंकड़ों पर भी जरा एक नजर डालें, जो देश में जल की कमी के बारे में कैसी भयावह स्थिति दर्शाते हैं –
- पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएं, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।
- पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियां सूख गई हैं।
- देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।
- नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने की कगार पर है।
- पिछले वर्ष, देश के कुल 91 जलाशयों में से 62 जलाशयों में 80 प्रतिशत अथवा इससे कम पानी बच गया था। किसी भी जलाशय में यदि लम्बी अवधि औसत के 90 प्रतिशत से कम पानी रह जाता है तो इस जलाशय को पानी की कमी वाले जलाशय में शामिल कर लिया जाता है, एवं यहां से पानी की निकासी कम कर दी जाती है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा। देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है और बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है। बाकी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है की आज देश के कई भागों में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक जमीन खोदने के बाद भी जमीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है। इसी कारण से भारत के भूजल स्तर में तेज़ी से कमी आ रही है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश में पानी की कमी की उपरोक्त वर्णित भयावह स्थिति को देखते हुए तथा इस स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है और इसके लिए एक नए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है। साथ ही, भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से की जा चुकी है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है।
जल शक्ति अभियान की शुरुआत दो चरणों में की गई है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है। पहले चरण में बरसात के पानी का संग्रहण करने हेतु प्रयास किए गए थे। इस हेतु देश के उन 256 जिलों पर फ़ोकस किया गया था, जहां स्थिति अत्यंत गंभीर एवं भयावह थी। इन जिलों में स्थानीय स्तर पर आवश्यकता अनुरूप कई कार्यक्रमों को लागू कर भूजल स्तर में वृद्धि करने हेतु प्रयास किया जा रहा है। पानी के संचय हेतु विभिन्न संरचनाएं यथा तालाब, चेकडेम, रोबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, पेरकोलेशन टैंक जमीन के ऊपर या नीचे बड़ी मात्रा में बनाए जा रहे हैं।
देश में प्रति वर्ष पानी के कुल उपयोग का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि की सिंचाई के लिए खर्च होता है, 9 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में तथा शेष 2 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा खर्च किया जाता है। देश में हर घर में खर्च होने वाले पानी का 75 प्रतिशत हिस्सा बाथरूम में खर्च होता है। इस लिहाज से देश के ग्रामीण इलाक़ों में पानी के संचय की आज आवश्यकता अधिक है। क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों में हमारी माताएं एवं बहनें तो कई इलाक़ों में 2-3 किलोमीटर पैदल चल कर केवल एक घड़ा भर पानी लाती देखी जाती हैं। अतः खेत में उपयोग होने हेतु पानी का संचय खेत में ही किया जाना चाहिए एवं गांव में उपयोग होने हेतु पानी का संचय गांव में ही किया जाना चाहिए।
जल के संचय एवं जल के नियंत्रित उपयोग के लिए उपाय किए जाने जरुरी हैं। देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना, सबसे महत्वपूर्ण सुझाव हो सकता है। क्योंकि, यह 85 प्रतिशत भूजल का उपयोग करता है। ड्रिप एवं स्प्रिंक्लर तकनीक को प्रभावी ढंग से लागू करके प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है। सरकार द्वारा किसानों के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित एवं ड्रिप तथा स्प्रिंक्लर जैसे कुशल पानी के उपयोग वाले उत्पादों और सेंसर-टैप एक्सेसरीज़, आटोमेटिक मोटर कंट्रोलर आदि उत्पादों पर सब्सिडी देकर इस तरह के उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
ऐसी फ़सलें, जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ने एवं अंगूर की खेती, आदि फ़सलों को पानी की कमी वाले इलाक़ों में धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। अथवा, इस प्रकार की फ़सलों को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहां हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है।
भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगायी जानी चाहिए ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। विभिन्न स्तरों पर पाइप लाइन में रिसाव से बहुत सारे पानी का अपव्यय हो जाता है, इस तरह के रिसाव को रोकने हेतु भी सरकार को गम्भीर प्रयास करने चाहिए। देश में लोगों को पानी का मूल्य नहीं पता है, वे समझते हैं जैसे पानी आसानी से उपलब्ध है। लोगों में पानी के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से सरकार को 24 घंटे 7 दिन की पानी की आपूर्ति के बजाय, एक निश्चित किए गए समय पर, रिसाव-प्रूफ़ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम घर में कई छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत करें। एक अनुमान के अनुसार, छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर प्रति परिवार प्रतिदिन 300 लीटर से अधिक पानी की बचत की जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता पर ध्यान दिया जाय। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।
केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा तो पानी की कमी से जूझने हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, इस कार्य हेतु जन भागीदारी की आज अधिक आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि सामाजिक संस्थाएं भी आगे आएं एवं जल संग्रहण एवं जल प्रबंधन हेतु समाज में लोगों को जागरूक करना प्रारम्भ करें। शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में इस सम्बंध में अलख जगाने की आज महती आवश्यकता है। तभी हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी आवश्यकता पूर्ति हेतु जल छोड़कर जा पाएंगे अन्यथा तो हमारे स्वयं के जीवन में ही जल की उपलब्धता शून्य की स्थिति पर पहुंच जाने वाली है।
डिस्क्लेमर : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। हिम दूत का इन विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि हमारे देश में सेक्युलर शब्द बहुत प्रचलित है। सेक्युलर शब्द विदेशी अवधारणा से उत्पन्न हुआ है। रोम के थियोक्रेटिक स्टेट (धर्मसत्ता) के कार्यकाल में उत्पन्न हुआ यह शब्द भारत में प्रासंगिक नहीं है।
गुजरात के कर्णावती में माधव स्मृति न्यास द्वारा धर्मचक्र प्रवर्तनाय विषय पर आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ वैद्य ने कहा कि सूरत के केटी शाह ने संविधान सभा में प्रस्ताव दिया था कि भारत को सेक्युलर सोशलिस्ट रिपब्लिक कहा जाए। लेकिन उस समय के विद्वानों ने शाह का यह प्रस्ताव नामंजूर किया था। तत्कालीन विद्वानों का मानना था कि भारतीय सभ्यता में इस शब्द की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारतीय समाज और सभ्यता सभी को स्वीकार करती है।
सेक्युलर शब्द की उत्पत्ति पर डॉ. वैद्य ने कहा कि कहा कि कबिलों में बंटा यूरोपियन समाज सबसे पहले तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ एक छत के नीचे आया। यरूशलम से चलने वाली पोप की सत्ता खिसक कर वेटिकन में चली गई। वहीं राजा के आश्रय के कारण बिशप का महत्त्व बढ़ गया था। छठी शताब्दी में रोमन साम्राज्य समाप्त होने के बाद समाज को जोड़े रखने के लिए सत्ता पोप के हाथों में आई। पोप द्वारा चलाए जाने वाले इस राज्य को थियोक्रेटिक स्टेट कहा जाता था। यह राज्य लगभग एक हजार वर्ष तक बरकरार रहा। तत्कालीन रोमन समाज के लोग भौतिक चीजों को धर्म सत्ता से दूर रखना चाहते थे। नतीजतन धर्म से जुड़ी व्यवस्था के लिए रिलीजन और अन्य चीजों के लिए सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा।
सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत में आपातकाल के दौरान 1976 में बिना चर्चा के भारतीय संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में बेवजह सेक्युलर शब्द जोड़ा गया। संविधान के जानकार कहते हैं कि, संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हो सकता, इसके बावजूद प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द अनावश्यक रूप से जोडा गया।
डॉ.वैद्य ने कहा कि सेक्युलर शब्द को भारत में जिस तरह से परिभाषित किया गया, वह अपने आप में विचित्र है। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए बताया कि, हिन्दू धर्म और आस्था की बात करना हमारे देश में सांप्रदायिक माना जाता है। अन्य धर्मों के लोगों द्वारा मजार पर चादर चढ़ाना सेक्युलर है। लेकिन मंदिर में घंटी बजाना सांप्रदायिकता कहलाता है। भारतीय सेक्युलरिज्म के तहत आप ओवैसी के साथ मंच साझा कर सकते हैं। लेकिन, योगी आदित्यनाथ के साथ मंच पर बैठे तो आप को सांप्रदायिक कहा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश में हज यात्रा के लिए सब्सिडी नहीं दी जाती। लेकिन सेक्युलर कहलाने वाले भारत में हज पर सब्सिडी मिलती है। प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक समुदाय का है। प्रधानमंत्री का यह वाक्य अपने-आप में सांप्रदायिक था। लेकिन सेक्युलर देश में किसी ने उस वाक्य पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई।
धर्म की परिभाषा पर डॉ. वैद्य ने कहा कि
धारणात धर्मं इत्याहू: तस्मात् धारयते प्रजाः।
यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।
अर्थात जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे धर्म कहते हैं। उपासना और अध्यात्म धर्म से जुड़ा होता है। नतीजतन कई लोग उपासना पद्धति को धर्म मान लेते हैं। लेकिन धर्म की परिभाषा इतनी सीमित नहीं है। हमारे देश की संसद में धर्मचक्र प्रवर्तनाय लिखा हुआ है। व्यक्ति से समाज को जोड़ने का नाम धर्म है। हमारे राष्ट्रध्वज में जो चक्र है, उसे लोग अशोक चक्र कहते हैं। वास्तव में यह धर्मचक्र है, जिसे सम्राट अशोक ने स्वीकारा था। समाज में दूसरों के प्रति योगदान देना, मैं से हम तक की यात्रा का नाम धर्म है। धर्म के इस विस्तारित अर्थ को ध्यान में रख कर हमें धर्मचक्र को गतिमान रखने में योगदान देना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अविरल गंगा-निर्मल गंगा के लिए अब कार्यकर्ताओं को भगीरथ प्रयास करना होगा, क्योंकि यह काम भारत की अन्तरात्मा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि गंगा भारत की संस्कृति की जीवन रेखा है। इसे हर हाल में बचाना होगा।
सरसंघचालक डॉ भागवत शनिवार को प्रयागराज में परेड स्थित विश्व हिंदू परिषद के शिविर में गंगा के लिए कार्य कर रहे गैर सरकारी संगठन गंगा समग्र के कार्यकर्ता संगम को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में गंगा समग्र से जुड़े 6 प्रांतों से आए कार्यकर्ता उपस्थित थे।
डॉ भागवत ने कहा कि इस धरती पर जो प्रयास भागीरथ को गंगा जी को लाने के लिए करना पड़ा था, वही प्रयास कार्यकर्ताओं को गंगा एवं उससे जुड़ी नदियों को बचाने के लिए करना होगा। इस कठिन काम को आसान करने का मूल मंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि जन जागरण से यह काम संभव हो पाएगा। गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा के दोनों तटों पर पांच-पांच किलोमीटर के दायरे में बसे गांवों एवं शहरों में इसके लिए नित्य नैमित्तिक कार्यक्रम चलाने होंगे।
उन्होंने कहा कि यह काम जन-जन के भीतर के भगवान को जगा कर पूरा किया जा सकता है। इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए। स्वयं जनता को इस को अपने हाथों में लेना पड़ेगा। सभी आयामों की मजबूत टीम बनाकर केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका विधिवत प्रशिक्षित कर इस काम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए तटवर्ती गांव में प्रतिदिन सुबह-शाम गंगा आरती, तीर्थ पुरोहितों को कर्मकांड का प्रशिक्षण, घाटों की स्वच्छता, वृहद वृक्षारोपण, तालाबों में जल संचय कर उनको पुनर्जीवन देने से संभव हो पाएगा।
संघ प्रमुख ने निर्मल गंगा अविरल गंगा अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विकास और पर्यावरण दोनों का समान रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस काम में लगे सभी कार्यकर्ताओ को नदियों के जल प्रबंधन तथा जल संरक्षण का पूरा ज्ञान होना चाहिए। इस काम के लिए उन्होंने संतों का आशीर्वाद प्राप्त करने का भी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया।

गंगा समग्र के केंद्रीय महामंत्री डॉ.आशीष गौतम ने संगठन की संपूर्ण भूमिका रखी। उन्होंने बताया कि नर्मदा समग्र के माध्यम से नर्मदा नदी पर किए गए काम और उस में मिली सफलता के बाद गंगा समग्र की योजना बनी। इस काम के लिए उन्होंने स्वर्गीय अशोक सिंघल की प्रेरणा को भी महत्वपूर्ण बताया।
गंगा समग्र के केंद्रीय संगठन मंत्री मिथिलेश नारायण ने कचरा प्रबंधन एवं कचरा परिशोधन करने का तरीका कार्यकर्ताओं को समझाया। इसमें दिल्ली से आई संगठन की प्रांत संयोजिका नंदिनी पाठक ने भी नया प्रयोग करके कार्यकर्ताओं को दिखाया। प्रांत संयोजकों ने अपने-अपने प्रांतों में वृक्षारोपण, घाटों की स्वच्छता, गंगा आरती, गंगा जागरण यात्रा, प्राकृतिक खेती की जानकारी दी।
सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल ने किया समापन
कार्यक्रम का समापन आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अब गंगा समग्र का मजबूत सांगठनिक ढांचा तैयार हो गया है। कार्यकर्ता दोगुनी ताकत से अपने कार्यों का निर्वहन करेंगे। उन्होंने विश्वास जताया कि मजबूत संगठन के माध्यम से निर्मल गंगा का संकल्प अवश्य पूरा होगा।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए शुक्रवार को राज्यों को 5,000 करोड़ रुपये की 17वीं किश्त जारी की है। अभी तक, राज्यों को कुल अनुमानित जीएसटी मुआवजे की कमी की 91 प्रतिशत यानी एक लाख करोड़ रूपये की राशि जारी की जा चुकी है।
भारत सरकार ने जीएसटी कार्यान्वयन के कारण पैदा हुई 1.10 लाख करोड़ रुपये की कमी को पूरा करने के लिए पिछले वर्ष अक्टूबर में एक विशेष उधार विंडो स्थापित की थी। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से भारत सरकार द्वारा इस विंडो के माध्यम से ऋण लिया जा रहा है। 23 अक्टूबर, 2020 से शुरू होने के बाद अब तक ऋण के 17 दौर पूरे हो चुके हैं।
विशेष विंडो के तहत, भारत सरकार 3 साल और 5 साल के कार्यकाल के लिए सरकारी स्टॉक में उधार ले रही है। प्रत्येक टेनर के तहत किए गए उधार को जीएसटी क्षतिपूर्ति की कमी के अनुसार सभी राज्यों में समान रूप से विभाजित किया गया है। वर्तमान जारी राशि के साथ, 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 5 साल के लिए लंबित जीएसटी अनुपात समाप्त हो गया है। ये राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश को पहली किस्त से जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी की जा रही थी।
इस सप्ताह जारी की गई राशि राज्यों को उपलब्ध कराई गई धनराशि की 17वीं किश्त थी। इस सप्ताह यह राशि 5.5924 प्रतिशत की ब्याज दर पर उधार ली गई है। अभी तक केंद्र सरकार द्वारा इस विशेष उधार विंडो के माध्यम से 4.8307 प्रतिशत की औसत ब्याज दर पर 1,00,000 करोड़ रुपये की राशि उधार ली गई है।
जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण राजस्व में हुई कमी को पूरा करने के लिए विशेष ऋण विंडो के माध्यम से धन उपलब्ध कराने के अलावा भारत सरकार ने जीएसटी मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए विकल्प-1 चुनने वाले राज्यों को उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.50 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति भी दी है, ताकि इन राज्यों की अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने में मदद की जा सके। सभी राज्यों ने विकल्प-1 के लिए अपनी प्राथमिकता दी है। इस प्रावधान के तहत 28 राज्यों को 1,06,830 करोड़ रुपये (जीएसडीपी का 0.50 प्रतिशत) की पूरी अतिरिक्त राशि उधार लेने की अनुमति दी गई है।
उत्तराखंड के हिस्से आया ये
उत्तराखंड को जीएसडीपी की 0.50 प्रतिशत की अतिरिक्त ऋण की अनुमति के रूप में अब तक 1405 करोड़ और विशेष विंडो के मार्फत 2227.49 की धनराशि जारी की गयी है।
उत्तराखंड देश के उन सात राज्यों में शामिल हो गया है, जिसने केंद्र सरकार द्वारा ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों को लेकर तय किये गए मानकों को पूरा कर लिया है। सुधार प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उत्तराखंड ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तय किए गए सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) हानियों में कमी अथवा औसत आपूर्ति लागत और औसत राजस्व प्राप्ति (एसीएस-एआरआर) में अंतर को कम करने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल किया है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। वित्त मंत्रालय एटीएंड सी हानियों में कमी के राज्य के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.05 प्रतिशत के बराबर राशि और एसीएस-एआरआर में अंतर में कमी का लक्ष्य हासिल करने पर अतिरिक्त जीएसडीपी के 0.05 प्रतिशत राशि की अतिरिक्त उधारी लेने की राज्यों को अनुमति दे रहा है।
उत्तराखंड ने एटीएंडसी हानियों और एसीएस-एआरआर अंतर में कमी के दोनों लक्ष्यों को हासिल किया है। राज्य में एटीएंडसी हानियां 19.35 प्रतिशत के लक्ष्य के विरुद्ध 19.01 प्रतिशत कम हो गई हैं। एसीएस-एआरआर में अंतर राज्य में प्रति इकाई 0.40 के लक्ष्य के मुकाबले 0.36 रुपए प्रति यूनिट तक कम हो गया है।
उत्तराखंड के अलावा जिन अन्य राज्यों ने ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया पूरी की है, उनमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गोवा, कर्नाटक व राजस्थान शामिल हैं। इससे पूर्व उत्तराखंड देश के उन 15 राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधारों (Ease of doing business) को लेकर केंद्र द्वारा तय मानकों को पूरा कर दिखाया है।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी की वजह से संसाधन जुटाने की चुनौती को देखते हुए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में राज्यों के लिए उधारी लेने की सीमा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी।
इस विशेष राशि में से आधी पूंजी यानी कि जीएसडीपी की एक प्रतिशत राशि जुटाने की अनुमति राज्य सरकारों को तब दी जा रही है, जब वे नागरिकों की सुविधा को लेकर केंद्र सरकार द्वारा तय मानकों कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने नागरिक केंद्रित चार सुधार कार्यक्रम चिन्हांकित किये हैं। इनमें एक देश, एक राशन कार्ड व्यवस्था लागू करना, कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधार, शहरी स्थानीय निकाय/उपयोगिता सुविधाओं में सुधार और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार।
राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता अथवा वरिष्ठ या जूनियर स्तर के विश्वविद्यालय खेल बोर्ड में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अथवा अखिल भारतीय स्कूल टीमों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय खेल अथवा स्कूल खेलों में राज्य स्कूल टीमों का प्रतिनिधित्व करने वाले मेधावी पुरुष खिलाड़ियों की भारतीय सेना में हवलदार के पदों पर सीधी भर्ती होगी।
एक सरकारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि ऐसे खिलाड़ी जिनकी आयु 31 दिसंबर 2021 को साढ़े सत्रह से बाइस वर्ष के बीच हो भर्ती में शामिल हो सकते हैं। खिलाड़ी की शैक्षिक योग्यता मैट्रिक अथवा समकक्ष होनी चाहिए।
इच्छुक अभ्यर्थियों का एएससी (Army Service Corps Centre and College) की स्पोर्ट्स टीमों (शरीर सौष्ठव, वॉलीबॉल, तैराकी, बास्केटबॉल, क्रिकेट एवं फुटबॉल) में प्रत्यक्ष नामांकन के लिए चयन परीक्षण 4 मार्च से होगा। चयन परीक्षण एएससी सेंटर (दक्षिण) – 2 एटीसी, बैंगलोर (कर्नाटक) होगा।
भर्ती के संबंध में विस्तार से जानकारी के लिए इस फोन नंबर पर संपर्क करें – 8277123122
कृपया, हमारी खबरों से जुड़े रहने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। (नीचे Follow Us में)
प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
एक अनुमान के अनुसार, देश में वर्ष 2050 तक शहरों की आबादी 80 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। यानी, उस समय की देश की कुल आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक और आज की शहरी आबादी से लगभग दुगुनी यथा भारत एक शहरी देश के तौर पर उभर कर सामने आ जाएगा। 2011 की जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में 53 ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख की संख्या से अधिक है।
शहरीकरण के एक सबसे बड़े फ़ायदे के तौर पर, यह कई अनुसंधानों के माध्यम से सिद्ध हो चुका है कि, देश में बढ़ते शहरीकरण से आर्थिक विकास की दर तेज़ होती है एवं रोज़गार के नए अवसर भी गांवों की अपेक्षा शहरों में अधिक उत्पन्न होते हैं। आज भारत में भी देश के सकल घरेलू उत्पाद में शहरी क्षेत्र का योगदान 65 प्रतिशत का है, जिसे बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक ले जाना है। बढ़ते शहरीकरण से विभिन्न स्तरों पर सरकारों की ज़िम्मेदारी भी बढ़ती है, क्योंकि साफ हवा, पीने का पानी, ऊर्जा, इन शहरों को उपलब्ध कराना सरकारों की ज़िम्मेदारी है।
शहरों का विकास शुरू में ही यदि उचित तरीक़े से नहीं किया जाए तो पर्यावरण से सम्बंधित कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जैसे भारत के कई शहरों में आज देखने में आ रहा है कि सर्दियों के मौसम में शुद्ध हवा का अभाव हो जाता है। कोहरा इतना घना होने लगता है कि लगभग 50 फ़ुट दूर तक भी साफ़ दिखाई देना मुश्किल हो जाता है। शहरों की कई कालोनियों में साफ़ पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। अतः शहरों का विकास इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि भविष्य में पर्यावरण से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या खड़ी न हो सके।
हाल ही के वर्षों में इस ओर ध्यान दिया गया है। स्वच्छ भारत मिशन एवं राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसके अंतर्गत, नागरिकों के सहयोग से शहरों में स्वच्छता बनाए रखे जाने का प्रयास किया जा रहा है। शहरों में झुग्गी झोपड़ी की समस्या हल करने के उद्देश्य से हर परिवार को वर्ष 2022 तक एक पक्का मकान उपलब्ध कराये जाने का प्रयास किया जा रहा है। इस हेतु शहरी इलाक़ों में एक करोड़ नए मकान बनाये जा रहे हैं।
देश में 100 स्मार्ट शहरों का विकास किया जा रहा है। इन स्मार्ट शहरों के स्थानीय निवासियों को अपने शहर के विकास की योजना बनाने को कहा गया है। साइकल एवं पैदल चलने के लिए अलग से मार्गों को बनाया जा रहा है। इन शहरों में पब्लिक वाहनों का अधिक से अधिक प्रयोग किये जाने पर बल दिया जा रहा है। उद्योगों को इन शहरों की सीमाओं से बाहर बसाया जा रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इन शहरों का समावेशी एवं मिश्रित विकास किया जा रहा है।
देश में 500 किलोमीटर से अधिक मेट्रो की लाइन भी स्थापित चुकी है और इसका तेज़ी से विकास जारी है। महानगरों में यातायात पर दबाव कम करने के उद्देश्य से कई नए नए बाई पास भी बनाए जा रहे हैं। महानगरों के 200 किलोमीटर के आस पास के क्षेत्रों में लोगों को बसाए जाने पर भी विचार किया जा रहा है एवं उनके लिए द्रुत गति से चलने वाले यातायात की व्यवस्था भी की जाएगी। ताकि, ये लोग इन इलाक़ों में निवास कर सकें एवं आसानी से महानगरों में आवागमन कर सकें। परिवहन उन्मुख विकास योजना के अंतर्गत क्षेत्रीय त्वरित यातायात के क्षेत्र में पड़ने वाले क्षेत्र में लंबवत एवं मिश्रित विकास किया जाना चाहिए ताकि इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सारी सुविधाएं इनके घरों के आसपास ही मिलें और इन सुविधाओं को पाने के लिए उन्हें घर से कहीं दूर जाना न पड़े।
देश के शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण की स्थिति में सुधार करने हेतु वर्षा के पानी का संचयन करना, ऊर्जा की दक्षता – एलईडी बल्बों का अधिक से अधिक उपयोग करना, शहरों में हरियाली का अधिक से अधिक विस्तार करना, ध्वनि प्रदूषण कम करना, सॉलिड वेस्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना, ग्रीन यातायात का उपयोग करना, आदि क्षेत्रों में अभी और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
उक्त क्षेत्रों में तीव्र गति से सुधार करने हेतु हर मकान के लिए बारिश के पानी के संचयन को आवश्यक कर देना चाहिए ताकि भूमि के पानी को रीचार्ज किया जा सके। अक्षय ऊर्जा के उपयोग को भी आवश्यक किया जाना चाहिए और घर में सोलर ऊर्जा के उत्पादन प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। विद्युत ऊर्जा से चालित वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने की नीति बननी चाहिए। हर घर में ग्रीन बेल्ट होनी चाहिए। घरों के अंदर एवं आस पास पौधे लगाए जाने आवश्यक कर देना चाहिए। मकानों के निर्माण में लंबवत विकास होना चाहिए ताकि शहर में हरियाली हेतु अधिक ज़मीन उपलब्ध हो सके। देश में ख़ाली पड़ी पूरी ज़मीन को ग्रीन बेल्ट में बदल देना चाहिए। आज तो पेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने की तकनीक भी उपलब्ध है। अतः पेड़ों को काटने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
साथ ही, पर्यावरण को बचाने के उद्देश्य से प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने के लिए हमें कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएं तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। हम घर में कई छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर पानी की भारी बचत कर सकते हैं। जैसे, टॉइलेट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें, दातों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें।
अपशिष्ट एवं बेकार पड़ी चीज़ों को रीसाइकल कैसे करें ताकि इसे देश के लिए सम्पत्ति में परिवर्तित किया जा सके। इस विषय की और अब हम सभी को गहन ध्यान देने की ज़रूरत है। प्लास्टिक, कपड़ा, अल्यूमिनीयम, स्टील आदि सभी को रीसाइकल किया जा सकता है। कचरा एवं प्लास्टिक को तो शीघ्र ही रीसाइकल करना होगा क्योंकि देश के पर्यावरण पर इन दोनों घटकों का अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
प्रति व्यक्ति देश में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अन्य देशों की तुलना में आज बहुत कम है। जबकि देश में और अधिक शहरीकरण होने के चलते प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अभी तो और आगे बढ़ेगा। अतः वर्तमान संसाधनों की दक्षता को भी बढ़ाना ही होगा एवं इनका रीसाइकल एवं पुनः उपयोग भी करना होगा। प्रयास यह हो कि शहरीकरण और पर्यावरण में संतुलन क़ायम हो सके।
राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ ने कोविड सम्मान प्रशस्ति पत्र एवं सम्मान राशि देने में सरकार पर आयुष चिकित्सकों एवं कार्मिकों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया है। संघ का कहना है कि सरकार द्वारा सिर्फ़ एलोपैथिक विभाग के कार्मिकों के लिए ही कोविड सम्मान प्रशस्ति पत्र एवं कोविड सम्मान राशि के रूप में 11 हजार रूपये देने की घोषणा की गई है।
राजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा संघ, उत्तराखण्ड (पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ० डी० सी० पसबोला ने कहा कि कोरोना काल में प्रत्येक आयुष चिकित्सक एवं स्टाफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रोगियों को ओपीडी में देखने, सैंपल लेने से लेकर कोरोना के खौफ से डरे लोगों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने हेतु काउंसलिंग तक के कामों में आयुष चिकित्सक व कार्मिक भी जुटे रहे। यहां तक कि चैक पोस्टों में बाहर से आने वाले यात्रियों का परीक्षण, आईशोलेशन केंद्रों और होम आईशोलेशन में भी उनके द्वारा योगदान दिया गया।

उन्होंने कहा कि बावजूद इसके सरकार द्वारा कोविड सम्मान राशि देते समय फ्रंटलाइन आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों के योगदान को भुला देना दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, साथ में उनके मनोबल को भी गिराने वाला कदम है। आयुष प्रदेश में सरकार के इस भेदभावपूर्ण निर्णय से समस्त आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों में आक्रोश एवं हताशा व्याप्त है।
डॉ० पसबोला द्वारा बताया गया कि इस सम्बन्ध में संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष डॉ० के० एस० नपलच्याल द्वारा निदेशक, आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवाएं डॉ० वाई० एस० रावत को पत्र लिखकर आयुर्वेदिक चिकित्सकों एवं कर्मचारियों को भी कोविड सम्मान पत्र एवं राशि प्रदान किए जाने की मांग की है। जिसकी प्रतियां आयुष सचिव, आयुष मंत्री डॉ० हरक सिंह रावत एवं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को भी भेजी गयी है।
सरकार के इस पक्षपात पूर्ण निर्णय की उपाध्यक्ष डॉ० अजय चमोला द्वारा भी कठोर शब्दों में भर्त्सना की गयी। वहीं महासचिव डॉ० हरदेव रावत द्वारा भी इस सम्बन्ध में आगे कार्यवाही करने की बात कही गयी है।
प्रान्तीय होम्योपैथिक संघ द्वारा भी सरकार के इस निर्णय का विरोध किया गया है एवं शासन को पत्र लिखा गया है।
केंद्र सरकार ने सिमली-ग्वालदम-बागेश्वर-जौलजीबी मोटर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय द्वारा इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है।
230 किमी लंबा यह राष्ट्रीय राजमार्ग भारतमाला परियोजना के तहत डबल लेन का निर्मित होगा। मोटर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किए जाने पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का आभार व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि इस महत्वपूर्ण राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित होने से राज्य की बड़ी मांग पूरी हुई है। राज्य को सड़क मरम्मत आदि में होने वाली बड़ी राशि की भी इससे बचत हुई है। उन्होंने कहा कि यह मार्ग सीमांत क्षेत्रों को जोड़ने वाली प्रमुख सड़क थी।
उन्होंने कहा कि भारतमाला परियोजना के तहत इस सड़क के डबल लेन बनने से आवागमन में भी सुविधा होगी और साथ ही भविष्य में इसकी मरम्मत आदि में होने वाला व्यय भी भारत सरकार द्वारा वहन किया जायेगा।
उत्तराखंड भी कारोबार में सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) सुधारों को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले राज्यों की श्रेणी में आ गया है। इस सुधार प्रक्रिया को पूरा करने के बाद राज्य को खुले बाजार से 702 करोड़ रुपये जुटाने की अनुमति मिल गई है। उत्तराखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश व गुजरात द्वारा भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के बाद इस श्रेणी में आने वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बुधवार को यह जानकारी दी है। मंत्रालय के अनुसार इससे पहले, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और तेलंगाना इस श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सहायता प्रदान करने वाले सुधारों को पूरा करने पर इन 15 राज्यों को 38,088 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ऋण जुटाने की अनुमति दी गई है।
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस देश में निवेश के अनुकूल कारोबार के माहौल का महत्वपूर्ण सूचक है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार राज्य अर्थव्यवस्था की भविष्य की प्रगति तेज करने में समर्थ बनाएंगे। इसलिए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में यह निर्णय लिया कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करने वाले राज्यों को अतरिक्त ऋण जुटाने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा कुछ मानक तय किये गए हैं।