मकर संक्रांति के पर्व पर गुरूवार को हरिद्वार में श्रद्धालुओं को रैला उमड़ पड़ा। लगभग 7 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने विभिन्न घाटों पर मां गंगा में डुबकी लगाकर पुण्यलाभ अर्जित किया। कोरोना काल में यह पहला अवसर था, जब इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु किसी पर्व पर एकत्र हुए।
एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार बुधवार रात्रि 12 बजे के बाद से ही हरिद्वार में हर की पैड़ी एवं अन्य घाटों पर स्नानार्थियों का आवागमन शुरू हो गया। सूर्योदय के साथ ही होटल, धर्मशाला, लॉज, आश्रम आदि में ठहरे हुए श्रद्धालु गंगा स्नान के लिये घाटों पर पहुंचने लगे।
सुबह कोहरे व कड़ाके की ठंड के बावजूद श्रद्धालुओं के उत्साह में कोई कमी नहीं दिखाई दी। दिन चढ़ने के साथ कोहरा छंटा तो तमाम घाटों पर भीड़ बढ़ गई। स्नान का क्रम शाम तक चलता रहा। हरिद्वार के वीआईपी घाट पर लगभग २०० लोगों ने स्नान किया। इनमें विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत, दिल्ली से सांसद व भोजपुरी गायक मनोज तिवारी समेत कई जज, वरिष्ठ अधिकारी आदि शामिल थे।

घाटों, गलियों तथा पैदल मार्ग पर लगे पुलिस बल द्वारा पैदल यातायात व्यवस्था का पालन सुनिश्चित कराते हुए स्नानार्थियों को स्नान घाटों तक पहुंचने में सहायता की गई। इस दौरान कोविड सम्बंधित गाइड लाइन का पालन न करने वाले लगभग 974 लोगों का चालान भी किया गया।
प्रदेश सरकार द्वारा सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे। सीसीटीवी कैमरों, बम निरोधक दस्ते, डॉग स्क्यॉड के अलावा भारी पुलिस बल सुरक्षा में तैनात किया गया था। लाखों लोगों की उपस्थिति के बाद भी स्नान शांतिपूर्वक निपटने पर प्रदेश सरकार ने राहत की सांस ली।
उत्तराखण्ड को सीरम इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया से कोरोना वैक्सीन की 1 लाख 13 हजार डोज बुधवार को प्राप्त हो गई हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि 16 जनवरी से शुरू होने वाले वैक्सीनैशन के पहले चरण की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। प्रथम चरण में 50 हजार हेल्थ वर्कर्स को कोविड-19 की यह वैक्सीन लगाई जानी है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। इस पर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए।
वैक्सीन मुम्बई एयरपोर्ट से दोपहर 2:45 बजे स्पाईस जैट की फ्लाईट से जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर पहुंची। एयरपोर्ट से वैक्सीन को निर्धारित कोल्ड चेन प्रणाली के अनुसार राजधानी देहरादून स्थित केन्द्रीय औषधि भण्डार गृह में लाया गया, जहां पर इसे वॉक-इन-कूलर में सुरक्षित रखा गया है।
प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने बताया कि गुरूवार सुबह तक वैक्सीन सभी जनपदों के भण्डार गृह में पहुंच जाएगी, जबकि दूरस्थ जनपदों में दोपहर तक पहुंच पाएगी।
स्वास्थ्य सचिव के अनुसार पहले चरण में मिली वैक्सीन की 1,13,000 डोज में से 1,640 डोज केन्द्रीय स्वास्थ्य ईकाईयों के हैल्थ केयर वर्कर, 3,450 आर्मड फोर्स मेडिकल सर्विसेस तथा 1,07,530 डोज राज्य के सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य सेवाओं के हैल्थ केयर वर्कर्स के लिए उपलब्ध कराई जा रही है।
वैक्सीन को ले जाने के लिए सभी जनपदों के वैक्सीन वाहन राजधानी में पहुंचे थे। वैक्सीन की सुरक्षित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक वाहन के साथ एक-एक पुलिस स्कॉर्ट वाहन भी उपलब्ध कराया गया है।
अमित नेगी के अनुसार वैक्सीन के साथ प्रत्येक डोज के लिए उतनी ही मात्रा में Auto Disposable syringes भी उपलब्ध कराई जा रही है। वैक्सीनेशन हेतु प्रत्येक लाभार्थी को एक वैक्सीनेशन कार्ड दिया जायेगा जिसकी आपूर्ति भी वैक्सीन के साथ की जा रही है।
–प्रवीण गुगनानी
लेखक व विचारक
स्वामी विवेकानंद ने भारत को व भारतत्व को कितना आत्मसात कर लिया था यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि –‘यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को संपूर्णतः पढ़ लीजिये।’
नोबेल से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां ने स्वामी जी के विषय में कहा था – ‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है वे जहां भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। प्रत्येक व्यक्ति उनमें अपने मार्गदर्शक व आदर्श को साक्षात पाता था। वे ईश्वर के साक्षात प्रतिनिधि थे व सबसे घुल मिल जाना ही उनकी विशिष्टता थी। हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा- ‘शिव!’। यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।’
ज्ञानपिपासु और घोर जिज्ञासु नरेन्द्र का बाल्यकाल तो स्वाभाविक विद्याओं और ज्ञान अर्जन में व्यतीत हो रहा था किन्तु वे बाल्यकाल में ही अचानक जीवन के चरम सत्य की खोज के लिए छटपटा उठे और यह जानने के लिए व्याकुल हो उठे कि क्या सृष्टि नियंता जैसी कोई शक्ति है जिसे लोग ईश्वर करते हैं? सत्य और परमज्ञान की यही अनवरत खोज उन्हें दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस तक ले गई और परमहंस ही वह सच्चे गुरु सिद्ध हुए जिनका सान्निध्य और आशीर्वाद पाकर नरेन्द्र की ज्ञान पिपासा शांत हुई और वे सम्पूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानंद के रूप में स्वयं को प्रस्तुत कर पाए।
स्वामी विवेकानंद एक ऐसे युगपुरुष थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति और भारतीयता से सराबोर था। उनके सारे चिंतन का केंद्र बिंदु राष्ट्र और राष्ट्रवाद था। भारत के विकास और उत्थान के लिए अद्वित्तीय चिंतन और कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया। उन्होंने कभी सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया किंतु उनके कर्म और चिंतन की प्रेरणा से हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इस युवा संन्यासी ने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था, बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। राष्ट्र व इसके दीन-हीन जनों की सेवा को ही वह ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे।
सेवा की इस भावना को उन्होंने प्रबल शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा था- ‘भले ही मुझे बार-बार जन्म लेना पड़े और जन्म-मरण की अनेक यातनाओं से गुजरना पड़े, लेकिन मैं चाहूंगा कि मैं उसे एकमात्र ईश्वर की सेवा कर सकूं, जो असंख्य आत्माओं का ही विस्तार है। वह और मेरी भावना से सभी जातियों, वर्गों, धर्मों के निर्धनों में बसता है, उनकी सेवा ही मेरा अभीष्ट है।’
अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से प्रेरित स्वामी विवेकानंद ने साधना प्रारंभ की और परमहंस के जीवनकाल में ही समाधि प्राप्त कर ली थी, किंतु विवेकानंद का इस राष्ट्र के प्रति प्रारब्ध कुछ और ही था। इसलिए जब स्वामी विवेकानंद ने दीर्घकाल तक समाधि अवस्था में रहने की इच्छा प्रकट की तो रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें एक महान लक्ष्य की ओर प्रेरित करते हुए कहा- ‘मैंने सोचा था कि तुम जीवन के एक प्रखर प्रकाश पुंज बनोगे और तुम हो कि एक साधारण मनुष्य की तरह व्यक्तिगत आनंद में ही डूब जाना चाहते हो, तुम्हें संसार में महान कार्य करने हैं, तुम्हें मानवता में आध्यात्मिक चेतना उत्पन्न करनी है और दीनहीन मानवों के दु:खों का निवारण करना है।’
विवेकानंद अपने आराध्य के इन शब्दों से अभिभूत हो उठे और अपने गुरु के वचनों में सदा के लिए खो गए। स्वयं रामकृष्ण परमहंस भी विवेकानंद के आश्वासन को पाकर अभिभूत हो गए और उन्होंने अपनी मृत्यशैया पर अंतिम क्षणों में कहा- ‘मैं ऐसे एक व्यक्ति की सहायता के लिए बीस हजार बार जन्म लेकर अपने प्राण न्योछावर करना पसंद करूंगा।’
जब 1886 में रामकृष्ण परमहंस ने अपना नश्वर शरीर त्यागा। तब उनके 12 युवा शिष्यों ने संसार छोड़कर साधना का पथ अपना लिया, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने दरिद्र-नारायण की सेवा के लिए एक कोने से दूसरे कोने तक सारे भारत का भ्रमण किया। उन्होंने देखा, देश की जनता भयानक गरीबी से घिरी हुई है और तब उनके मुख से रामकृष्ण परमहंस के शब्द अनायास ही निकल पड़े- ‘भूखे पेट से धर्म की चर्चा नहीं हो सकती।’ किसी भी रूप में धर्म को इस सब के लिए जवाबदार माने बिना उनकी मान्यता थी कि समाज की यह दुरावस्था (गरीबी) धर्म के कारण नहीं हुई बल्कि इस कारण हुई की समाज में धर्म को इस प्रकार आचरित नहीं किया गया जिस प्रकार किया जाना चाहिए था।
विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन नाम से दो पृथक संस्थाएं गठित कीं। यद्दपि इन दोनों संस्थाओं में परस्पर नीतिगत सामंजस्य था। तथापि इनके उद्देश्य भिन्न, किन्तु पूरक थे। रामकृष्ण मठ समर्पित संन्यासियों की श्रृंखला तैयार करने के लिए थी, जबकि दूसरी रामकृष्ण मिशन जनसेवा की गतिविधियों के लिए थी। वर्तमान में इन दोनों संस्थाओं के विश्वभर में सैकड़ों केंद्र हैं और ये संस्थाएं शिक्षा, चिकित्सा, संस्कृति, अध्यात्म और अन्यान्य सेवा प्रकल्पों के लिए विश्वव्यापी व प्रख्यात हो चुकी हैं।
शिकागो संभाषण के द्वारा सम्पूर्ण विश्व को भारत के विश्वगुरु होनें का दृढ़ सन्देश दे चुके स्वामी जी को पश्चिमी मीडिया जगत “साइक्लोनिक हिन्दू” के नाम से पुकारने लगा था। इन महान कार्यों के स्थापना के बाद स्वामी जी केवल पांच वर्ष ही जीवित रह पाए और मात्र चालीस वर्ष की अल्पायु उनका दुखद निधन हो गया, किन्तु इस अल्पायु के जीवन में उन्होंने सदियों के जीवन को क्रियान्वित कर दिया था। इस कार्य यज्ञ हेतु उन्होंने सात बार सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया था और पाया था कि जनता गहन अंधकार में भटकी हुई है। उन्होंने भारत में व्याप्त दो महान बुराइयों की ओर संकेत किया। पहली महिलाओं पर अत्याचार और दूसरी जातिवादी विषयों की चक्की में गरीबों का शोषण।
उन्होंने कहा कि पेड़ों और पौधों तक को जल देने वाले धर्म में जातिभेद का कोई स्थान नहीं हो सकता; ये विकृति धर्म की नहीं, हमारे स्वार्थों की देन है। स्वामीजी ने उच्च स्वर में कहा- ‘जातिप्रथा की आड़ में शोषण चक्र चलाने वाले धर्म को बदनाम न करें।’
विवेकानंद एक सुखी और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए बेचैन थे। इसके लिए जातिभेद ही नहीं, उन्होंने हर बुराई से संघर्ष किया। वे समाज में समता के पक्षधर थे और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के प्रति उनके मन में गहरा रोष था। उन्होंने कहा- ‘जब तक करोड़ों लोग गरीबी, भुखमरी और अज्ञान का शिकार हो रहे हैं, मैं हर उस व्यक्ति को शोषक मानता हूं, जो उनकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा है।’
स्वामी विवेकानंद के मन में समता के लिए वर्तमान समाजवाद की अवधारणा से भी अधिक आग्रह था। उन्होंने कहा था –‘समता का विचार सभी समाजों का आदर्श रहा है। संपूर्ण मानव जाति के विरुद्ध जन्म, जाति, लिंग, भेद अथवा किसी भी आधार पर समता के विरुद्ध उठाया गया कोई भी कदम एक भयानक भूल है, और ऐसी किसी भी जाति, राष्ट्र या समाज का अस्तित्व कायम नहीं रह सकता, जो इसके आदर्शों को स्वीकार नहीं कर लेता।’
आज कल बहुधा नहीं बल्कि सर्वदा ही कहा जानें लगा है कि शासन और प्रशासन को धर्म, संस्कृति और परम्पराओं के सन्दर्भों में धर्म निरपेक्ष होकर विचार और निर्णय करने चाहिए। यह बड़ा यक्ष प्रश्न है कि हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहलानें वाला वर्ग धर्म निरपेक्षता के जो मायने निकाल रहा है क्या वह सही है? स्वामी जी ने जब शिकागो में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा था कि ” राष्ट्रवाद का मूल धर्म व संस्कृति के विचारों में ही बसता है”, तब सम्पूर्ण पाश्चात्य विश्व ने उनके इस विचार से सहमति व्यक्त की थी और भारत के इस युग पुरुष के इस विचार को अपने-अपने देशों में जाकर प्रचारित और प्रसारित किया था और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान प्रकट किया था।
अपने संभाषण में स्वामी जी ने गौरवपूर्वक कहा था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और हिंदू जीवन शैली के साथ जीवन यापन करना ही इस आर्यावर्त का एक मात्र विकास मार्ग रहा है। भविष्य में विकास करने की और एक आत्मनिष्ठ समाज के रूप में अस्तित्व बनाएं रखने में यही एक मात्र मंत्र ही सिद्ध और सफल रहेगा। स्वामी जी ने कहा था कि भारत के विश्व गुरु के स्थान पर स्थापित होने का एक मात्र कारण यहां के वेद, उपनिषद, ग्रन्थ और लिखित अलिखित करोड़ों आख्यान और गाथाएं ही रहीं हैं।अपनी बात को विस्तार देतें हुए उन्होंने कहा था कि जिस भारत को विश्व सोने की चिड़िया के रूप में पहचानता है उसकी समृद्धि और ऐश्वर्य का आधार हिन्दू आध्यामिकता में निहित है।
- सुभाष चमोली
योग नगरी के रूप में प्रख्यात उत्तराखंड के ऋषिकेश में नवनिर्मित भव्य रेलवे स्टेशन पर सोमवार से ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया। सुबह 10 बजे जम्मू तवी एक्सप्रेस योग नगरी पहुंची।
उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल, रेलवे के मुरादाबाद मंडल के डीआरएम तरुण प्रकाश, स्टेशन अधीक्षक ज्ञानेंद्र सिंह परिहार, गढ़वाल मंडल विकास निगम के उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंघल, भाजपा नेता राजपाल नेगी, विनोद भट्ट, सरोज डिमरी आदि ने यात्रियों का स्वागत किया।

ट्रेनों के संचालन से पूर्व रविवार शाम को केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल अचानक योग नगरी रेलवे स्टेशन पहुंचे। उन्होंने रेलवे स्टेशन का निरीक्षण किया और व्यवस्थाओं का जायजा लिया। रेल मंत्री ने अधिकारियों से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण कार्यों की प्रगति की जानकारी भी ली। यहां बता दें कि रेल मंत्री गोयल शनिवार को अपने परिवार के साथ निजी यात्रा पर ऋषिकेश के निकट नरेंद्रनगर में एक होटल में पहुंचे थे।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर एक नज़र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक निर्माणाधीन ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का योग नगरी पहला स्टेशन है। यह परियोजना कई मायनों में ख़ास है। लगभग 125 किमी यह रेल लाइन कर्णप्रयाग तक की दूरी 17 सुरंगों के जरिये तय करेगी। यानी इस ट्रैक पर ट्रेनें 104 किमी की दूरी सुरंगों में ही तय करेंगी।
इस रेल परियोजना में 13 रेलवे स्टेशन प्रस्तावित हैं। पहला स्टेशन योग नगरी ऋषिकेश है। यह परियोजना उत्तराखंड के पहाड़ों में रेल पहुंचने के वर्षों पुराने सपने को साकार करेगी। इस रेल लाइन के निर्माण से ना केवल बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वाले तीर्थ यात्रियों को भारी सहूलियत मिलेगी, अपितु चीन सीमा से सटे इस राज्य के लिए सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

वर्ष 2016 में हुआ था शिलान्यास
लगभग 16,200 हजार करोड़ की लागत वाली इस परियोजना का शिलान्यास मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वर्ष 2016 में हुआ था। तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की गयी गैरसैंण में एक भव्य समारोह में इसका शिलान्यास किया था। परियोजना का निर्माण रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) कर रहा है। वर्ष 2024- 25 तक इस परियोजना के पूरे होने की उम्मीद है।

केंद्र व प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल
यह रेलवे लाइन केंद्र व प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ रेल मंत्री पीयूष गोयल, प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार इसकी मॉनिटरिंग करते रहते हैं। विगत वर्ष जुलाई में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अपने ट्वीटर हैंडल से योग नगरी रेलवे लाइन की फोटो भी शेयर की थीं।
उत्तराखंड राज्य भूकंप की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। सम्पूर्ण राज्य भूकम्प की श्रेणी में ज़ोन 4, 5 में आता है। प्रदेश में छोटे तथा मध्य श्रेणी के भूकम्प दर्शा रहे हैं कि इस क्षेत्र में भूकम्पीय गतिविधियां बढ़ रही है। इसके मद्देनजर उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) द्वारा विगत वर्षों में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न कार्य किए गए, जिसमें राज्य में भूकम्प जोखिम का ब्लाक स्तर तक आंकलन किया गया है। इस आधार पर भविष्य में होने वाले नुकसान का विभिन्न सेक्टरों में मूल्यांकन किया गया।
एक सरकारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि USDMA द्वारा राज्य में लगभग 18000 सरकारी भवनों की रैपिड विज़ुअल स्क्रीनिंग (RVS) की गई, जिसके आधार पर भवनों की घातकता को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है। यह डेटा इन भवनों को सुनियोजित तरीके से भूकंप से सुरक्षित बनाए जाने हेतु कार्यदायी विभागों को उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ ही वर्तमान में 90 अस्पतालों व संवेदनशील पुलों की रेट्रोफिटिंग हेतु डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) भी बनाई गई है। चरणबद्ध तरीके से इनकी रेट्रोफिटिंग का कार्य भी किया जा रहा है।

USDMA द्वारा भूकम्प अवरोधी निर्माण शैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से क्षमता विकास के कार्यक्रमों पर बल दे रहा है। इस क्रम में IIT Roorkee, CBRI Roorkee जैसे तकनीकी संस्थानों के साथ मिल कर राजमिस्त्रियों, इंजीनियर्स आदि के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम कराए गए हैं।
इधर, USDMA की अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी रिद्धिम अग्रवाल ने एक बैठक में विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा कर कार्यों को समय से पूर्व पूरा करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि राज्य में जो नए निर्माण कार्य हो रहें है वह Building Bye Laws के आधार पर हों। साथ ही साथ प्रदेश में इंजीनियर व राजमिस्त्री प्रशिक्षण के कार्यक्रम अधिक से अधिक कराए जाएं। बैठक में USDMA के वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ.गिरीश चन्द्र जोशी, शैलेश घिल्डियाल आदि उपस्थित थे।
- डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
धर्म अथवा पंथ जब तक मानव के व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा बनने तक सीमित रहे, वो उसकी आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बन कर उसमें एक सकारात्मक शक्ति का संचार करता है। लेकिन जब वो मानव के व्यक्तिगत जीवन के दायरे से बाहर निकल कर समाज के सामूहिक आचरण का माध्यम बन जाता है तो वो समाज में एक सामूहिक शक्ति का संचार करता है। लेकिन यह कहना कठिन होता है कि समाज की यह सामूहिक शक्ति उस समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाएगी या फिर नकारात्मकता की ओर। शायद इसीलिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को जनता की अफीम कहा था।
दरसअल, पिछले कुछ समय से मजहबी मान्यताओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में है। हाल ही में योरोपीय महाद्वीप के देश बेल्जियम में हलाल मीट और कोशर मीट पर एक अदालती फैसला आया है। पशु अधिकारों को ध्यान में रखते हुए योरोपीय संघ की अदालत ने बिना बेहोश किए जानवरों को मारे जाने पर लगी रोक को बरकरार रखा है। इसका मतलब यह है कि बेल्जियम में किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश करना होगा ताकि उसे कष्ट ना हो। योरोपीय संघ की अदालत के इस फैसले ने योरोपीय संघ के अन्य देशों में भी इस प्रकार के कानून बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर बेल्जियम के मुसलमान और यहूदी संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं।
भारत की बात करें तो यह चर्चा में इसलिए है कि अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कोविड महामारी के मद्देनजर हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत लोगों की भोजन करने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसी से संबंधित ताजा मामला दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन के अंतर्गत आने वाले होटलों के लिए लागू किए गए एक नियम का है। इसमें दिल्ली के ऐसे होटल या मीट की दुकान जो दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (SDMC) के अंतर्गत आते हैं उन्हें अब हलाल या झटका का बोर्ड दुकान के बाहर लगाना अनिवार्य होगा। दरसअल SDMC की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें लिखा है कि हिन्दू और सिख के लिए हलाल मीट खाना वर्जित है। इससे पहले क्रिसमस के दौरान केरल के ईसाइयों ने भी हलाल मांस के विरोध में प्रदर्शन किया था। इस मामले में क्रिश्चियन असोसिएशन ऑफ चर्च के ऑक्सीलरी फ़ॉर सोशल एक्शन ने ईसाइयों से एक अपील भी की थी जिसमें हलाल मांस को उनके धार्मिक लोकाचार के खिलाफ होने के कारण इन्हें खाद्य पदार्थों के रूप में खरीदने से मना किया गया था।
मजहब के नाम पर जिस हलाल पर विश्व भर में हायतौबा मची हुई है पहले थोड़ा उसे समझ लेते हैं। हलाल दरसअल एक अरबी शब्द है जिसका उपयोग क़ुरान में भोजन के रूप में स्वीकार करने योग्य वस्तुओं के लिए किया गया है। इस्लाम में आहार संबंधी कुछ नियम बताए गए हैं जिन्हें हलाल कहा जाता है। लेकिन इसका संबंध मुख्य रूप से मांसाहार से है। जिस पशु को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है उसके वध की प्रक्रिया विशेष रूप से बताई गई है। इसी के चलते मुस्लिम देशों में सरकारें ही हलाल का सर्टिफिकेट देती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो मीट वहां परोसा जा रहा है वो उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुरूप है।
हमारे देश में भी भारतीय रेल और विमानन सेवाओँ जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है। मैकडोनाल्ड, डोमिनोज़, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में यह सर्टिफिकेट सरकार द्वारा नहीं दिया जाता। दरसअल भारत में अलग अलग वस्तुओं के लिए अलग अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क, आदि। लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती है। भारत में यह सर्टिफिकेट कुछ प्राइवेट संस्थान जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि।
अभी तक देश से निर्यात होने वाले डिब्बाबंद मांस के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण को हलाल प्रमाणपत्र देना पड़ता था क्योंकि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश हलाल मांसाहार ही आयात करते हैं। लेकिन यह बात जितनी साधारण दिखाई दे रहे है उससे कहीं अधिक पेचीदा है। क्योंकि तथ्य यह बताते हैं कि जो बात मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा, मैदा, बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुच गई है। आयुर्वेदिक औषधियों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट! ऐसा क्यों है? क्योंकि जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती हैं उन्हें इन देशों को यह सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। अगर हलाल फूड मार्किट के आंकड़ों की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर 19% की है जिसकी कीमत लगभग 2.5 ट्रिलियन $ की बैठती है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लेक्स में फ्लैट औऱ हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजेंसी से यात्रा। यहां तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वेबसाइट।
अब प्रश्न उठता है कि उपर्युक्त तथ्यों के क्या मायने हैं। दरसअल जो बात एक सर्टिफिकेट से शुरू होती है वो बहुत दूर तक जाती है। क्योंकि जब हलाल मांस की बात आती है तो स्वाभाविक रूप से उसे काटने की प्रक्रिया के चलते वो एक मुस्लिम के द्वारा ही कटा हुआ होना चाहिए। जाहिर है इसके परिणामस्वरूप जो हिन्दू इस कारोबार से जुड़े थे वो इस कारोबार से ही बाहर हो गए। इसी प्रकार जब हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित ना होकर रेस्टोरेंट या फाइव स्टार होटल पर लागू होता है तो वहाँ परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए। और जब यह हलाल सर्टिफाइड मांसाहार रेल या विमानों में परोसा जाता है तो हिदुओं और सिखों जैसे गैर मुस्लिम मांसाहारियों को भी परोसा जाता है। ये गैर मुस्लिम जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के विपरीत झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए विवश हो जाते हैं।
लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात जो समझने वाली है वो यह कि इस हलाल सर्टिफिकेट को लेने के लिए भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाति है। माँस से आगे बढ़ कर चावल, आटा, दालों, कॉस्मेटिक जैसी वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के कारण अब यह रकम धीरे-धीरे एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप लेती जा रही है जिस पर किसी भी देश की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसलिए यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी बनता जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई नेता जॉर्ज क्रिस्टेनसेन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हलाल अर्थव्यवस्था का पैसा आतंकवाद के काम में लिया जा सकता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय लेखक नसीम निकोलस ने अपनी पुस्तक “स्किन इन द गेम” में इसी विषय पर ” द मोस्ट इंटॉलरेंट विंस” (जो असहिष्णु होता है वो जीतता है) नाम का लेख लिखा है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि अमरीका जैसे देश में मुस्लिम और यहूदियों की अल्पसंख्यक आबादी कैसे पूरे अमेरिका में हलाल मांसाहार की उपलब्धता मुमकिन करा देते हैं।
अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और योरोप के देश इस बात को समझ चुके हैं कि मजहबी मान्यताओं के नाम पर हलाल सर्टिफिकेट के जरिए एक आर्थिक युद्ध की आधारशिला रखी जा रही है जिसे हलालोनोमिक्स भी कहा जा रहा है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया की दो बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी केलॉग्स और सैनिटेरियम ने अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके उत्पाद शुद्ध शाकाहारी होते हैं। इसलिए उन्हें हलाल सर्टिफिकेशन की कोई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में राष्ट्रवाद की बात करने वाले बाबा रामदेव तक अपने शाकाहारी औषधीय उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन करवाने के लिए मुस्लिम संगठनों को भारी भरकम फीस देते हैं। जब कारोबारी नफा नुकसान के आगे एक योगी की देशभक्ति कमजोर पड़ जाती है तो फिर एक आम आदमी की बिसात ही क्या। आज के युग में जब युद्ध हथियारों के बजाए अर्थव्यवस्ताओं के सहारे खेला जाता है तो योद्धा देश की सेना नहीं देश का हर नागरिक होता है। इसलिए हलाल के नाम पर एक आर्थिक युद्ध की घोषणा तो की जा चुकी है चुनाव अब आपको करना है कि इस युद्ध में सैनिक बनना है या फिर मूकदर्शक। (विसंकें)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को एक उच्च स्तरीय बैठक में कोविड टीकाकरण के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की तैयारियों के साथ देश में कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा की। बैठक में निर्णय लिया गया कि लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, माघ बिहू आदि सहित आगामी त्यौहारों को देखते हुए टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी से शुरू किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, स्वास्थ्य सचिव और अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक में प्रधानमंत्री ने कोविड प्रबंधन की विस्तृत और व्यापक समीक्षा की।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण अभियान में लगभग 3 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके बाद 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों तथा विभिन्न बिमारियों से ग्रसित (Co-Morbidities) 50 वर्ष से कम आयु के लोगों का टीकाकरण किया जाएगा, जिनकी संख्या लगभग 27 करोड़ है।
प्रधानमंत्री को टीके की डिलीवरी के लिए तैयार किये गए को-विन प्रबंधन प्रणाली के बारे में भी जानकारी दी गई। यह अनूठा डिजिटल प्लेटफॉर्म टीके के स्टॉक, उसके भंडारण का तापमान और कोविड-19 टीका के लाभार्थियों की वैयक्तिक ट्रैकिंग आदि की सूचना उपलब्ध कराएगा।
बैठक में जानकारी दी गई कि टीकाकरण अभियान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 2360 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया था। इनमें राज्यों के टीकाकरण अधिकारी, कोल्ड चेन अधिकारी, आईईसी अधिकारी आदि सम्मिलित थे। राज्यों, जिलों और ब्लॉक स्तरों अभी तक 61,000 से अधिक कार्यक्रम प्रबंधकों, 2 लाख टीका लगाने वालों और टीकाकरण टीम के रूप में 3.7 लाख सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है।
इधर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर प्रदेश में टीकाकरण की तैयारियों की समीक्षा की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में आगामी 16 जनवरी से कोविड-19 को लेकर चरणबद्ध तरीके से राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू किया जा रहा है। वैश्विक महामारी के खिलाफ विजय के इस अभियान में आप सभी सम्मानित नागरिकों का सहयोग अपेक्षित है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड में भी इस अभियान को सफल बनाने के लिए सभी इंतजाम पुख्ता कर लिए गए हैं।
झारखंड की राज्य सरकार ने बहुमत से विधेयक पारित कर घोषित किया कि सरना धर्म को मानने वाले हिन्दू नहीं हैं। सरना, हिन्दू से अलग धर्म है। तभी दूसरी ओर आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी निर्णय लिया कि अनुसूचित जनजाति के लोग हिन्दू नहीं हैं और यह मानते हुए 2021 में होने वाली जनगणना के समय उन्हें हिन्दू के स्थान पर अनुसूचित जनजाति श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध किया जाएगा। यह दोनों समाचार पढ़कर इन दोनों निर्णय करने वालों में भारतबोध व हिंदुत्व की समझ का अभाव और राजकीय सत्ता के अहंकार का दर्शन हुआ।
हिंदुत्व कोई एक रिलिजन नहीं है। वह एक जीवन दृष्टि है ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्य किया है। इस जीवन दृष्टि की विशेषता है कि यह अध्यात्म आधारित है और भारतीय उपखंड में सदियों से रहते आए विभिन्न पद्धति से उपासना करने वाले, विविध भाषा बोलने वाले सभी लोग अपने आप को इसके साथ जोड़ते हैं। इस कारण इसके मानने वालों की, इस भूखंड में रहने वालों की एक अलग पहचान, एक व्यक्तित्व तैयार हुआ है।
उसकी एक विशेषता है – एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति । सत्य या ईश्वर एक है, उसे अनेक नाम से लोग जानते हैं, उसे जानने के अनेक विभिन्न मार्ग हो सकते हैं। ये सभी समान हैं। इसीलिए यहूदी, पारसी, सिरीयन ईसाई अलग-अलग समय पर अपने देश से प्रताड़ित हो कर आश्रय लेने हेतु भारत के भिन्न-भिन्न भू-भागों में आए। वहां के राजा, लोगों की भाषा, लोगों की उपासना पद्धति अलग-अलग होने पर भी भिन्न वंश, भाषा और उपासना वाले, आश्रयार्थ आए लोगों के साथ यहां के लोगों का व्यवहार समान था, सम्मान का और उदारता का था। इसके मूल में यह कारण है। उस व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है – विविधता में एकता को देखना। एक ही चैतन्य विविध रूपों में अभिव्यक्त हुआ है, इसलिए इन विविध रूपों में अंतर्निहित एकता देखने की दृष्टि भारत की रही है।
इसलिए भारत विविधता को भेद नहीं मानता। विविध रूपों में निहित एकता को पहचानकर उन सब की विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए सब को साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत रखता है। तीसरी विशेषता है – प्रत्येक मनुष्य (स्त्री या पुरुष) में दिव्यत्व विद्यमान है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही इस दिव्यत्व को प्रकट करते हुए उस परम-दिव्यत्व के साथ एक होने का प्रयत्न करना है। यह दिव्यत्व प्रकट करने का मार्ग प्रत्येक का अलग अलग हो सकता है। वह उसका रिलिजन या उपासना होगी., इन विशेषताओं से युक्त इस व्यक्तित्व को दुनिया अनेक वर्षों से हिंदुत्व के नाते जानती आयी है। उसे कोई भारतीय, सनातन, इंडिक अन्य कोई नाम भी दे सकता है। सभी का आशय एक ही है।
इनमें से कौन सी बात सरना या जनजातीय समाज को स्वीकार नहीं है?
डॉ. राधाकृष्णन ने हिंदुत्व को Common Wealth of all Religions कहा। स्वामी विवेकानंद ने 1893 के अपने शिकागो व्याख्यान में हिंदुत्व को Mother of all Religions बताया। सर्वसमावेशकता, सर्वस्वीकार्यता, विविध मार्ग और विविध रूपों का स्वीकार करने की दृष्टि ही हिंदुत्व है दस हजार वर्षों से भी प्राचीन इस समाज में समय-समय पर लोगों के उपास्य देवता बदलते गए हैं। ऐसे परिवर्तन को स्वीकार करना यही हिंदुत्व है।
स्वामी विवेकानन्द ने 1893 के अपने सुप्रसिद्ध शिकागो व्याख्यान में यह श्लोक उद्धृत किया था।
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थ– हे परमपिता!!! आपको पाने के अनगिनत मार्ग हैं – सांख्य मार्ग, वैष्णव मार्ग, शैव मार्ग, वेद मार्ग आदि। लोग अपनी रुचि के अनुसार कोई एक मार्ग पसंद करते हैं। मगर अंत में जैसे अलग अलग नदियों का पानी बहकर समुद्र में जा मिलता है, वैसे ही, ये सभी मार्ग आप तक पहुंचते हैं। सच, किसी भी मार्ग का अनुसरण करने से आपकी प्राप्ति हो सकती है।
इस भारत के विचार की सुंदरता और सार यह है कि नए नए देवताओं का उद्भव होता रहेगा। पुराने देवताओं को साथ रखते हुए नए को भी समाविष्ट करने की प्रवृत्ति – यही हिंदुत्व है।
गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने स्पष्ट कहा – अनेकता में एकता देखना और विविधता में ऐक्य प्रस्थापित करना यही है भारत का अन्तर्निहित धर्म। भारत विविधता को भेद नहीं मानता और पराये को दुश्मन नहीं मानता। इसलिए नए मानव समूह के संघात से हम भयभीत नहीं होंगे। उनकी (नए लोगों की) विशेषता पहचान कर उन्हें अपने साथ लेने की विलक्षण क्षमता भारत की है। इसलिए भारत में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई परस्पर लड़ते हुए दिखेंगे, पर वे लड़ कर मर नहीं जाएंगे। वे एक सामंजस्य स्थापित करेंगे ही। यह सामंजस्य अहिन्दु नहीं होगा। वह होगा विशेष भाव से हिन्दू।
यह सामंजस्य की, एकता की दृष्टि हिंदुत्व की है। अब कोई सरना या अनुसूचित जनजाति के बंधु यह कहें कि वे हिंदुत्व से कैसे अलग है। क्योंकि हिंदुत्व किसी एक रूप (form) की बात नहीं करता, बल्कि जिस एक ही चैतन्य के ये सभी रूप हैं, उस एकता या एकत्व की दृष्टि माने हिंदुत्व है।
कुछ वर्ष पूर्व पूर्वोत्तर (असम) के जनजाति बहुल क्षेत्र में एक प्रयोग हुआ। वहां के विभिन्न राज्यों की 18 जनजातियों के सम्मेलन में ये कुछ प्रश्न पूछे गए थे। 1- ईश्वर के बारे में हमारी संकल्पना। 2- धरती के बारे में हमारी अवधारणा? 3- हम प्रार्थना में क्या मांगते हैं? 4- पाप और पुण्य की संकल्पना? 5- दूसरों की पूजा पद्धति के बारे में हमारा अभिमत क्या है? 6- क्या आप दूसरी पूजा परंपरा वालों को उनकी पूजा छुड़वाकर अपनी पूजा वालों में मिला लेना चाहते हैं?
इन प्रश्नों के पूछने पर सभी के उत्तर वही थे जो देश के किसी भी भाग में बसा हिंदू देता है। इनकी प्रस्तुति के पश्चात् यह सभी के लिए आश्चर्यजनक था कि अलग-अलग भाषाएं बोलने वाली इन सभी जनजातियों के विचार में सभी विषयों पर साम्य है और इन का भारत की आध्यात्मिक परंपरा से परस्पर मेल है।
इस भू-सांस्कृतिक इकाई में पूजा या उपासना के विविध रूपों में अन्तर्निहित एकता का आधार हिंदुत्व और भारत की अध्यात्म आधारित एकात्म, सर्वांगीण, सर्व-समावेशक हिन्दू जीवन दृष्टि ही है।
ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक दृष्टि से जनजाति समाज हिन्दू ही है। राजनैतिक, सांस्कृतिक और उपासना की दृष्टि से वे अनादि काल से हिन्दू समाज का अभिन्न अंग रहे हैं।
सेमेटिक मूल के होने के कारण ईसाई और मुस्लिम रिलीजन्स में यह सामंजस्य की दृष्टि नहीं है। वे मानवता को दो हिस्सों में बाँटते हैं। और दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। इसीलिए इनका कन्वर्जन का इतिहास रक्तरंजित तथा हिंसा, लालच और धोखे का रहा है। ईशान्य भारत के जनजातियों में भी ईसाई चर्च द्वारा वहां के जनजातीय लोग हिन्दू नहीं हैं ऐसा झूठा प्रचार करने का प्रयास पहले ब्रिटिश शासक और बाद में भारतीय शासकों की सहायता से वर्षों से चलते आए हैं। इसी कारण वहां अलगाववादी शक्तियां भी अधिक सक्रिय हुईं यहां भी नयी और अलग पहचान देने के नाम पर उनकी सांस्कृतिक जड़ों को गहराई से धीरे-धीरे उखाड़ना और फिर आत्माओं की खेती, यानि soul harvesting, करने की योजना चल रही थी। परन्तु अब वहां के जनजातियों को यह आभास हो गया है कि ईसाई के साथ रहकर हमारी सांस्कृतिक और पूजा पद्धति की पहचान खोने का संकट दिखता है। वे यह भी अनुभव कर रहे हैं कि हिन्दू समाज में, इसके साथ रहेंगे तो उनकी अलग सांस्कृतिक और पूजा की पहचान बनी रहेगी, सुरक्षित रहेगी। यह उनका विश्वास दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए वहां डोनी पोलो, सेंग खासी जैसे भारतीय आस्था अभियान शुरू हो गए हैं और बढ़ रहे हैं। सरना आदि अन्य जनजाति के नेताओं को भी एक बार इन भारतीय आस्था अभियान (indigenous faith movements) के लोगों के अनुभव से सीख लेनी चाहिए। और अपनी संस्कृति और पूजा पद्धति की विशेष पहचान सुरक्षित बचाकर उन्हें और अधिक समृद्ध करने की दृष्टि से हिंदुत्व से अपना नाता बनाये रखना चाहिए।
जब देवताओं के कोई रूप (forms) या नाम भी नहीं थे, तब निर्गुण निराकार ईशत्व की चर्चा, आराधना और उपासना सभी करते थे। ईशावास्यं इदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् यही उसका आधार था।
फिर तरह तरह के विभिन्न देवताओं के रूप के माध्यम से उसी परम तत्व की उपासना और आराधना शुरू हुई। परन्तु ये सभी प्रकृति की पूजा, पंच-महाभूत की पूजा तो करते ही थे। आगे भी अनेक अवतारी पुरुषों के माध्यम से नए नए उपासना मार्ग जुड़ते चले गए। ये सभी फिर भी भूमि, अग्नि, वृक्ष, पहाड़, सागर के माध्यम से प्रकृति पूजा करते ही हैं। इसलिए प्रकृति पूजा तो आरम्भ से ही है। उसके आगे कालक्रमानुसार नित नयी बातें जुड़ती चली गयीं। पर अन्यान्य माध्यम से प्रकृति पूजा तो हिन्दू समाज के सभी वर्गों में आज भी चल रही है। इसलिए केवल प्रकृति पूजा करने वालों के साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज का तादात्म्य वैसा ही बरकरार है। केवल कुछ तत्व विविधता को भेद बता कर बुद्धि भ्रम का प्रयास कर रहे हैं, उनसे सभी को सावधान रहना होगा।
केवल सरना या अनुसूचित जनजाति बंधु ही नहीं, भारत में विविध समाज वर्गों में गत कुछ वर्षों से यह प्रचलित करने का योजनाबद्ध प्रयास चल रहा है कि हम हिन्दू नहीं हैं। हिंदुत्व की जो विविधता में एकता देखने की विशेष दृष्टि है उसे भुला कर इस विविधता को भेद नाते बता कर, उभारकर हिन्दू समाज में विखंडन निर्माण करने के अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हो रहे हैं। हिन्दू एक रहेगा तो समाज एक रहेगा, देश एक रहेगा। देश एक रहेगा तभी देश आगे बढ़ेगा। ऐसा ना हो, इसमें जिनके स्वार्थ निहित हैं वे सभी तत्व भारत विखंडन के कार्य में लिप्त हैं।
भारत विखंडन के प्रयास कैसे चल रहे हैं, इस पर अनेक शोधपरक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसमें एक शक्ति ईसाई चर्च की भी है। उन्हें भारत में धर्मांतरण कर ईसाई संख्या बढ़ानी है। उनकी धर्मांतरण करने वाली सभी संस्थाओं की वेबसाइट पर इसका स्पष्ट उल्लेख है। कुछ ईसाई संस्था छद्म रूप से विभिन्न नामों से समाज में पहले भ्रम, फिर विरोध, फिर विखंडन और बाद में अलगाववाद निर्माण करने के कार्य में लगी हैं। कन्वर्जन के प्रयास को वे फसल काटना (harvesting) संज्ञा देते हैं। यह फसल काटने के प्रयास ब्रिटिश शासन के समय से ही चल रहे हैं। पर भारत की सांस्कृतिक जड़ें बहुत गहरी हैं और अनेक साधु-संतों द्वारा समय समय पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना जगाने के प्रयास यहां पीढ़ियों से चल रहे हैं। ऐसी कोई जाति या जनजाति भारत में नहीं है, जिसमें ऐसे संत-साधु पैदा नहीं हुए. इसलिए ईसाई कन्वर्जन के सभी प्रयास अन्य देशों की तुलना में भारत में कम सफल होते दिखते हैं। तभी नए-नए हथकंडे भी अपनाये जा रहे हैं। भारत विखंडन के प्रयास करने वाले सभी तत्व आपस में अच्छा तालमेल बनाकर अपना अपना एजेंडा चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रत्येक जाति और जनजाति में आध्यात्मिक-सांस्कृतिक जागरण का काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहने से इन सभी समाज में सांस्कृतिक जड़ें गहरी उतर चुकी है। कन्वर्जन आसानी से हो इस हेतु आवश्यक हैं कि जिनका कन्वर्जन करना है, उनकी सांस्कृतिक जड़ें जिस गहराई तक पहुंची है, वहां से उखाड़ना। जब जड़ें कमजोर और उथली होंगी तो उनकी (harvesting) फसल काटना आसान होगा। इसलिए तरह तरह के तर्क देकर और हथकंडे अपनाकर भ्रम फैलाने का षड्यंत्र चल ही रहा है। इसे सभी को समझना होगा, चेतना होगा, जागृत रहना होगा। प्रसिद्ध कवि प्रसून जोशी की एक कविता है –
उखड़े उखड़े क्यों हो वृक्ष सूख जाओगे।
जितनी गहरी जड़ें तुम्हारी उतने ही तुम हरियाओगे।
जिन दो राज्यों में ये निर्णय लिए गए, वे राज्य अनेक वर्षों से ईसाई गतिविधि और कन्वर्ज़न के केंद्र रहे हैं, यह महज संयोग नहीं मानना चाहिए। harvesting के लिए जड़ों की गहराई कम करना उपयोगी होता है।
तरह-तरह के भ्रम फैलाकर, उसके लिए बहुत बड़ी मात्रा में धन का प्रयोग करने के व्यापक षड्यंत्र का ही यह हिस्सा है। देश भर में जड़ों से उखाड़ने के ऐसे जितने भी प्रयास चल रहे हैं, उनके पीछे के तत्व और उनकी फंडिंग को देखेंगे तो यह समझ आएगा। (विसंकें)
लोक सभा सचिवालय और उत्तराखंड के पंचायती राज विभाग के संयुक्त तत्वाधान में शुक्रवार को राजधानी देहरादून में पंचायतीराज व्यवस्था – विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था का सशक्तीकरण विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य पंचायत प्रतिनिधियों को संसद की कार्यप्रणाली और लोकतांत्रिक सिद्धांतों व लोकाचार के बारे में परिचित कराना था।
कार्यक्रम का उदघाटन करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि देश में पंचायतीराज व्यवस्था एवं विकेन्द्रीकृत शासन के माध्यम से ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक किस तरह लोकतंत्र को और अधिक से अधिक मजबूत बनाया जा सकता है, इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से हम देश की जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। लोकतंत्र की शुरूआत गांवों से होती है।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कार्यक्रम में वर्चुअल प्रतिभाग करते हुए कहा कि भारत आज दुनिया के मजबूत लोकतंत्र के रूप में खड़ा है। इस मजबूती के लिए पंचायतों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। गांवों के विकास के बगैर शहरों का विकास नहीं हो सकता है। विकास के लिए गांव और शहर एक दूसरे से पारस्परिक रूप से जुड़े हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए विकास का मॉडल भ्रष्टाचार मुक्त होना जरूरी है।
उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष प्रेमचन्द अग्रवाल व प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री अरविन्द पाण्डेय ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर सांसद अजय टम्टा, लोकसभा के महासचिव उत्पल कुमार सिंह अन्य जन प्रतिनिधि उपस्थित थे।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जनप्रतिनिधियों को अधिक सक्रियता और चेतन्यता से कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों को प्रेरित करते हुए कहा कि यदि हमें अपने गांव, समाज और भारत को श्रेष्ठ बनाना है तो हमें बड़ी सोच रखनी पड़ेगी। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री द्वारा सुझाये गए आत्मनिर्भर भारत, समृद्ध भारत, एक भारत और श्रेष्ठ भारत बनाने के लिए ईमानदारी, पारदर्शिता और जज्बे के साथ पूरा करने का आग्रह किया।
इस सत्र को प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत, सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह, विधायक मुन्ना सिंह चौहान आदि ने भी सम्बोधित किया। इस दौरान गांव बचाओ आंदोलन के सूत्रधार पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी तथा मैती आंदोलन के प्रवर्तक कल्याण सिंह रावत आदि उपस्थित थे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं है, अपितु भाजपा ने विश्व को सबसे लोकप्रिय व यशस्वी नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिए हैं।
डॉ निशंक शुक्रवार को राजधानी देहरादून की धर्मपुर विधान सभा अंतर्गत त्यागी रोड पर भाजपा के शक्ति केंद्र की कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बूथ का कार्यकर्ता हमारी असली ताकत है। बूथ के कार्यकर्ता के बल पर ही सरकार बनती है।
उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी जो मार्ग खोज लेता है और प्रकृति को अपने अनुरूप ढाल देता है, वही योद्धा होता है। उन्होंने कहा कि सही मायनों में बूथ के कार्यकर्ता योद्धा हैं। उन्होंने कहा कि बूथ जीता तो चुनाव जीता और बूथ जीता तो देश जीता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह गौरव की बात है कि वह विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के सदस्य हैं। इसके साथ ही यह भी सम्मान की बात है कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रभावी नेताओं में शामिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं।
केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि आजादी के बाद देश को मोदी के रूप में पहले प्रधानमंत्री मिले, जिन्होंने शौचालय जैसे छोटी मगर महत्वपूर्ण मुद्दे की चर्चा की। प्रधानमंत्री की इस सोच के चलते करोड़ों मां-बहनों को शौचालय की सुविधा मिली।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए निःशुल्क गैस कनेक्शन वितरित किए गए। मजदूरों व किसानों के लिए पेंशन जैसी योजनाएं संचालित की गईं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने समाज के हर वर्ग के कल्याण के तमाम योजनाएं तैयार की है ।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। कांग्रेस इतने वर्षों तक सत्ता में रही। मगर उसने किसानों के हित में कभी कुछ नहीं किया। मोदी सरकार किसानों के लिए काम कर रही है तो कांग्रेस क्षुद्र राजनीति पर उतर आई है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे विपक्षियों के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने केंद्र व प्रदेश की सरकार की उपलब्धियों की चर्चा पूरी ताकत के साथ करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि प्रदेश में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। इन्हें आमजन तक पहुंचाएं।
कार्यक्रम में उत्तराखंड रेशम फेडरेशन के अध्यक्ष अजीत चौधरी, भाजपा महानगर अध्यक्ष सीता राम भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनबीर चौहान, मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश संयोजक राजीव तलवार, पूर्व दायित्वधारी अजेंद्र अजय, संदीप मुखर्जी, दिनेश सती, गोपाल पुरी, मुकेश सिंघल, जयंती प्रसाद कुर्मांचली आदि उपस्थित थे।