केंद्रीय नागरिक उड्डयन सचिव प्रदीप खरोला व एयरपोर्ट ऑथारिटी ऑफ़ इण्डिया के चैयरमेन अरविंद सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से भेंट कर ऊधमसिंहनगर में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की स्थापना की प्री-फिजीबिलीटी रिपोर्ट प्रस्तुत की। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार के सहयोग से पिछले तीन वर्ष में प्रदेश में हवाई सेवा के क्षेत्र में काफी काम किया गया है। ढांचागत विकास के साथ बड़ी संख्या में हवाई सेवाएं शुरू की गई हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यटन, आपदा व सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड में एयर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना बहुत जरूरी है। प्रदेश सरकार इसके लिए लगातार प्रयासरत है। राज्य सरकार द्वारा इसके लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयरपोर्ट ऑथारिटी ऑफ़ इण्डिया को हर प्रकार से सहयोग किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने राज्य के अधिकारियों को ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र व राज्य के अधिकारियों में बेहतर समन्वय है, इसका परिणाम भी दिखाई दे रहा है। आगे भी इसी प्रकार तालमेल के साथ काम किया जाए।
ऊधमसिंहनगर में जिला प्रशासन द्वारा ग्रीनफिल्ड एयरपोर्ट स्थापित करने के लिए 1100 एकड़ भूमि चिन्हित की गई है। भविष्य में इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में अपग्रेड किया जा सकता है। नागरिक उड्डयन सचिव प्रदीप खरोला और एयरपोर्ट आथोरिटी आफ इण्डिया के चैयरमेन अरविंद सिंह ने उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह व अन्य अधिकारियों के साथ चिन्हित भूमि का निरीक्षण कर इसकी प्री-फिजीबिलीटी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी। अधिकारियों ने कहा कि ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के लिए चिन्हित की गई भूमि उपयुक्त है।
वर्तमान में पंतनगर एयरपोर्ट में लगभग 267 एकड़ भूमि है। 530 वर्गमीटर का पेसेन्जर टर्मिनल है। यहां व्यस्तम समय में हैंडलिंग क्षमता 50 यात्रियों की है। ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बन जाने से यहां की क्षमता काफी बढ़ जाएगी। इसे आगे जाकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
इस अवसर पर मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के नागरिक उड्डयन सलाहकार कैप्टन दीप श्रीवास्तव, सचिव नागरिक उड्डयन विभाग, उत्तराखण्ड दिलीप जावलकर, अपर सचिव सोनिका, जिलाधिकारी ऊधमसिंहनगर नीरज खैरवाल उपस्थित थे।
उत्तराखंड सरकार ने अन्य राज्यों के श्रद्धालुओं को भी चारधाम यात्रा करने की सशर्त अनुमति दे दी है।
प्रदेश सरकार ने श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री धाम की यात्रा की 1 जुलाई से खोल दी थी। मगर अब तक प्रदेश के श्रद्धालुओं को ही कुछ शर्तों के साथ यात्रा की अनुमति थी। शुक्रवार को उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन ने अग्रिम आदेशों तक अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी चारधाम यात्रा की अनुमति दे दी है।
प्रदेश सरकार ने चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (Special Operating Procedures) जारी की है। चारधाम की यात्रा पर आने वाले बाहरी राज्यों के नागरिकों को उत्तराखंड आने से पूर्व 72 घंटे के भीतर RT-PCR टेस्ट करवाना अनिवार्य किया गया है। यह टेस्ट ICMR द्वारा अधिकृत लैब से होना चाहिए और टेस्ट परिणाम कोविड-19 नेगेटिव आने पर ही यात्रा की अनुमति मिलेगी। ऐसे यात्रियों को चारधाम देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड की वेबसाइट पर पंजीकरण कर इस आशय का प्रमाण-पत्र, अपना पहचान पत्र व कोविड-19 की नेगेटिव रिपोर्ट अपलोड कर यात्रा पास हासिल करना होगा।
कोविड-19 का टेस्ट कराए बिना उत्तराखंड आने वाले लोग प्रदेश सरकार के नियमों के तहत सरकारी क्वारंटाईन सेंटर, होटल, गेस्ट हाउस अथवा रिश्तेदारी में क्वारंटीन अवधि पूरी करने के बाद ही यात्रा कर सकेंगे। ऐसे लोगो को देवस्थानम बोर्ड की वेबसाइट पर पंजीकरण के समय पहचान पत्र के साथ- साथ क्वारंटाईन अवधि पूरा करने का प्रमाण पत्र भी अपलोड करना होगा।
चारधाम देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड ने यात्रियों को पूरी यात्रा के दौरान अपना पहचान पत्र व कोविड-19 की टेस्ट रिपोर्ट के ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स साथ रखना अनिवार्य किया है।

इस वेबसाइट पर कराना होगा पंजीकरण–
http://www.badrinath-kedarnath.gov.in
प्रतिदिन इतने यात्री जा सकते हैं इन धामों में –
श्री बद्रीनाथ – 1200
श्री केदारनाथ – 800
गंगोत्री – 600
यमुनोत्री – 400
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने शुक्रवार को सचिवालय में डिजिटल माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायतों (ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत) को 15वें वित्त आयोग के टाईड अनुदान की कुल 143.50 करोड़ धनराशि का डिजिटल हस्तान्तरण किया। यह धनराशि उत्तराखण्ड की 7791 ग्राम पंचायतों, 95 क्षेत्र पंचायतों एवं 13 जिला पंचायतों को दी गई।
मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि पंचायतों को धनराशि का डिजिटल स्थानान्तरण होने से कार्यों में तेजी व पारदर्शिता आयेगी। सरकारी सिस्टम के प्रति लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा। राज्य सरकार ग्रोथ सेंटर को बढ़ावा देने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है। इसमें पंचायतों एवं पंचायतीराज विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। राज्य सरकार का प्रयास है कि न्याय पंचायतों पर जो भी ग्रोथ सेंटर बने, उनकी अपनी अलग पहचान हो। प्रत्येक ग्रोथ सेंटर के उत्पादों की अच्छी ब्रांडिंग हो।
मुख्यमंत्री ने पंचायतीराज विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिये कि पंचायतों में जो भी कार्य हो रहे हैं, उनकी जियो टैगिंग एवं जीआईएस मैपिंग की जाय। सभी कार्यों में मानकों एवं डिजायन का विशेष ध्यान रखा जाय। कार्यों की नियमित माॅनिटरिंग की जाय। यह सुनिश्चित किया जाय कि पचायतों की दी जाने वाली धनराशि का सही उपयोग हो। पंचायतों में पथ प्रकाश की व्यवस्था का ध्यान रखा जाय। जल संरक्षण से संबधित कार्यों में विशेषज्ञों से भी राय ली जाय। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि भारत सरकार द्वारा लागू प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का उद्देश्य सरकारी सेवाओं को उन्नत करना, सरकारी योजनाओं की जानकारी ऑनलाइन पंहुचाना एवं ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना है।
पंचायती राज विभाग के निदेशक एच.सी.सेमवाल ने बताया कि सभी त्रिस्तरीय पंचायतों को अपनी कार्य योजना ई-ग्राम स्वराज पोर्टल पर अपलोड करनी है और इसी पोर्टल के अनुरूप जियो टैगिंग व अन्य कार्य संपादित करने हैं। उन्होंने जानकारी दी कि वर्तमान में 7791 ग्राम पंचायतों में से 6773 ग्राम पंचायतों में ई-ग्राम स्वराज पोर्टल क्रियाशील हो चुकी हैं। 3554 ग्राम पंचायतों ने ऑनलाइन पेमेण्ट प्रारम्भ कर दिया है। इस पोर्टल के माध्यम से पंचायत को केन्द्रीय वित्त, राज्य वित्त व अन्य श्रोतों से प्राप्त धनराशि और पंचायत में कराये जा रहे विकास कार्यों की प्रगति के साथ-साथ अन्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- डॉ लक्ष्मी भट्ट
गीत गजल दोहा चौपाई, मेरे बस की बात नहीं।
पल-पल तेरी याद रुबाई, मेरे बस की बात नहीं।।
सावन भीगूँ भादौ नाचूँ, तन मन में श्रृंगार भरूँ।
प्रेम मिलन हो सदा जुदाई, मेरे बस की बात नहीं।।
खुद मैं सबसे जुड़ी रही, सबको खुद से जोड़ा है।
ढाई आखर प्रेम लड़ाई, मेरे बस की बात नहीं।।
कस्तूरी संग जनम हुआ, खोज जगत में सदा रही।
पास हुई अब और पढ़ाई, मेरे बस की बात नहीं।।
सदा समर्पण भाव रहा, बहकावे में रही नहीं।
तू मेरा मैं रहूं पराई, मेरे बस की बात नहीं।।
( डॉ.लक्ष्मी भट्ट लेखिका व कवियत्री हैं। मंचों पर कविता प्रस्तुत करती हैं।)
Union Minister for Finance & Corporate Affairs Nirmala Sitharaman today held Video Conference with Secretaries of the Ministries of Civil Aviation, and Steel, and the Chairman Railway Board (CRB), along with the CMDs of 7 Central Public Sector Enterprises (CPSEs) belonging to these Ministries, to review the Capital Expenditure in this Financial Year (FY). This was 2nd meeting in the ongoing series of review meetings that the Finance Minister is conducting with various stakeholders to accelerate the economic growth in the background of COVID-19 pandemic.
The combined CAPEX target for FY 2020-21 for these 7 CPSEs is Rs. 24,663 crore. In FY 2019-20, against the CAPEX target of Rs.30,420 crore for these 7 CPSEs, the achievement was Rs. 25,974 crore i.e. 85 %. During Q1 of FY 2019-20, achievement was Rs. 3,878 crore (13%) and achievement of Q1 of FY 2020-21 is Rs. 3,557 crore (14%).

While mentioning the significant role of CPSEs in giving a push to the growth of the Indian economy, the Finance Minister encouraged the CPSEs to perform better to achieve their targets and to ensure that the capital outlay provided to them for the financial year 2020-21 is spent properly and within time. Smt. Sitharaman said that better performance of CPSEs can help the economy in a big way to recover from the impact of COVID-19.
The Finance Minister asked the concerned Secretaries and the Chairman Railway Board to closely monitor the performance of CPSEs in order to ensure capital expenditure of 50% of capital outlay by the end of Q2 of FY 2020-21 and make appropriate plan for it. Sitharaman stated that unresolved issues should be flagged immediately to the DEA/DPE/DIPAM for immediate action on them. The Finance Minister said that she will hold such review meetings on the performance of CAPEX of CPSEs every month.
The CPSEs discussed constraints being faced by them especially due to COVID-19 pandemic. The Finance Minister stated that extraordinary situation requires extraordinary efforts and with collective efforts, we will not only perform better but also help the Indian economy to achieve better results.
रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) प्रदान करने के लिए औपचारिक सरकारी मंजूरी पत्र जारी कर दिया है। इससे महिला अधिकारियों को सेना में बड़ी भूमिकाओं के निर्वहन के लिए रास्ता साफ़ हो गया है।
रक्षा मंत्रालय के मुख्य प्रवक्ता ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। अभी तक सेना की जज एवं एडवोकेट जनरल (जेएजी) व आर्मी एजुकेशनल कॉर्प्स (एईसी) शाखा में ही महिला अधिकारीयों को स्थायी कमीशन था। केंद्र सरकार के आ के आदेश के बाद भारतीय सेना के सभी दस वर्गों अर्थात आर्मी एयर डिफेंस (एएडी), सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी ऐवियेशन, इलेक्ट्रोनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई), आर्मी सर्विस कॉर्प्स (एएससी), आर्मी आर्डनेंस कॉर्प्स (एओसी) और इंटेलीजेंट कॉर्प्स में शॉर्ट सर्विस कमीशंड (एसएससी) महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन की स्वीकृति मिल गयी है।
आदेश की प्रत्याशा में, सेना मुख्यालय ने प्रभावित महिला अधिकारियों के लिए स्थायी आयोग चयन बोर्ड के संचालन के लिए तैयारी संबंधी कार्रवाइयों शुरू कर दी थीं। मंत्रालय के आदेश के बाद जैसे ही सभी प्रभावित एसएससी महिला अधिकारी अपने विकल्प का उपयोग करेंगी और वांछनीय दस्तावेजीकरण को पूर्ण करेंगी, चयन बोर्ड कार्रवाई शुरू कर देगा।
अभी तक आर्मी में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष अधिकारीयों को ही स्थायी कमीशन का विकल्प मिल रहा था। महिला अधिकारी इससे वंचित थीं। स्थायी कमीशन से महिलाएं 20 साल तक काम कर पाएंगी। शॉर्ट सर्विस कमिशन के तहत अधिकारियों को चौदह साल में रिटायर कर दिया जाता है और उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती है। ऐसे में रिटायरमेंट के बाद महिला अधिकारियों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो जाता। इसके अलावा भी कई ऐसी सुविधाएं हैं जो इन्हें नहीं मिलती है। वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को पहले से ही स्थायी कमीशन मिल रहा है।
अलग जो भीड़ से हट कर जगह अपनी बनाते हैं
सितारों की तरह से वो जहां में जगमगाते हैं।
सफ़र की मुश्किलों का दौर होता है बड़ा प्यारा
मगर क़ायर सदा आधे सफ़र से लौट जाते हैं।
अगर आ जाएं ऐसे लोग तो तहज़ीब से मिलना
हथेली पर कहाँ सब लोग ही सरसों उगाते हैं।
जिन्हें फूलों के जैसे रखते हैं हम हर मुसीबत में
हमारी राह में अक्सर वही काँटे बिछाते हैं।
न उठ जाए कहीं इस कशमकश में राज़ से पर्दा
कभी वो आज़माते हैं कभी हम आज़माते हैं।
- बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)
Uttarakhand Chief Minister Trivendra Singh Rawat invites Google to invest in state. Chief Minister Trivendra urged Google CEO Sundar Pichai to invest in the state, saying there is a great scope for investments in the information technology (IT) sector in small towns.
In a letter to Pichai, Rawat requested him to include Uttarakhand in Google’s India investment plan and said need is being felt in the time of the COVID-19 pandemic to work on an alternative development model.
Rawat said there is a great scope for investments in the IT sector in small towns, and also assured the firm of all co-operation from the state government in the venture, an official release said.
Rawat asked Chief Secretary Utpal Kumar Singh and Additional Chief Secretary Manisha Panwar to coordinate with the management of Google regarding the matter.
कोविड-19 महामारी ने फेस मास्क के उपयोग को दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना दिया है। लोग मास्क का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसके कारण उन्हें कुछ असुविधाओं का भी सामना करना पड़ रहा है। जैसे छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) को फिर से सांस के रूप में वापस लेना। विषेशज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक ऐसा होने से मानव दक्षता कम हो सकती है और यह मस्तिष्क-हाइपोक्सिया का भी कारण बन सकता है। इसके अलावा मास्क के उपयोग के दौरान साँस की नमी पैदा होती है, जो चश्मे को धूमिल करती है। मास्क के अंदर पसीने और गर्म वातावरण जैसे सुरक्षा मुद्दे भी चिंतित करने वाले मुद्दे हैं। मास्क के उपयोग से व्यक्ति की बातचीत में अस्पष्टता आदि की समस्या पैदा हो रही है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (SNBNCBS), कोलकाता के निदेशक प्रोफेसर समित कुमार रे के मार्गदर्शन में प्रोफेसर समीर के पाल और उनकी टीम ने स्वच्छ व आराम से साँस लेने के लिए एक सक्रिय रेस्पिरेटर मास्क विकसित किया है, जिसमें सांस छोड़ने के लिए वाल्व और सूक्ष्म कण नियंत्रण के लिए फ़िल्टर लगा हुआ है।
संस्थान, डीएसटी द्वारा वित्त पोषित तकनीकी अनुसंधान केंद्रों (टीआरसी) में से एक को होस्ट भी कर रहा है। सक्रिय रेस्पिरेटर मास्क कार्बन डाइऑक्साइड को पुनः सांस लेने, उत्सर्जित नमी तथा पसीने और गर्म वातावरण की समस्या से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। यह फेस मास्क व्यक्ति की बातचीत की स्पष्टता में भी सुधार करता है और पहनने वाले को वायुजनित दूषित पदार्थों के संपर्क से बचाते हुए आरामदायक, स्वच्छ सांस लेने की सुविधा देता है।
इसके अलावा, संस्थान द्वारा एक एंटी माइक्रोबॉयल लेयर के साथ नैनो-सेनीटाइजर भी विकसित किया गया है। यह नैनो- सेनीटाइजर सामान्य सेनीटाइजर के उपयोग से होने वाली समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। सामान्य सेनीटाइजर के लगातार उपयोग के कारण त्वचा के निर्जलीकरण की समस्या होती है। संस्थान द्वारा विकसित यह सेनीटाइजर लंबी अवधि तक उपयोग के बावजूद आरामदायक तरीके से हाथ को स्वच्छ रखता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के डीएसआईआर के उद्यम, राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एन आर डी सी) ने इन दोनों तकनीकों को कोलकाता स्थित कंपनी, मेसर्स पॉलमेक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित किया है। दोनों उत्पादों के पहले बैच को लॉन्च करने का लक्ष्य 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर रखा गया है। हालांकि अभी इनकी कीमतों के बारे में खुलासा नहीं किया गया है।
मुख्तार अब्बास नकवी
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री
वैसे तो अगस्त माह इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं के पन्नों से भरपूर है। 8 अगस्त भारत छोडो आंदोलन, 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 19 अगस्त विश्व मानवीय दिवस, 20 अगस्त सद्भावना दिवस, 5 अगस्त को 370 खत्म होना, जैसे इतिहास के सुनहरे लफ्जों में लिखे जाने वाले दिन हैं।
वहीं 1 अगस्त, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा, कुरीति से मुक्त करने का दिन, भारत के इतिहास में मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में दर्ज हो चुका है। तीन तलाक या तिलाके बिद्दत जो ना संवैधानिक तौर से ठीक था, ना इस्लाम के नुक्तेनजर से जायज़ था। फिर भी हमारे देश में मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न से भरपूर गैर-क़ानूनी, असंवैधानिक, गैर-इस्लामी कुप्रथा तीन तलाक वोट बैंक के सौदागरों के सियासी संरक्षण में फलता- फूलता रहा।
1 अगस्त 2019 भारतीय संसद के इतिहास का वह दिन है जिस दिन कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम तथाकथित सेक्युलरिज़्म के सियासी सूरमाओं के विरोध के बावजूद तीन तलाक कुप्रथा को ख़त्म करने के विधेयक को कानून बनाया गया। देश की आधी आबादी और मुस्लिम महिलाओं के लिए यह दिन संवैधानिक-मौलिक-लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया। यह दिन भारतीय लोकतंत्र और संसदीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों का हिस्सा रहेगा।
तीन तलाक कुप्रथा के खिलाफ कानून तो 1986 में भी बन सकता था जब शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बड़ा फैसला लिया था। उस समय लोकसभा में अकेले कांग्रेस सदस्यों की संख्या 545 में से 400 से ज्यादा और राज्यसभा में 245 में से 159 सीटें थी। मगर कांग्रेस की राजीव गाँधी सरकार ने 5 मई 1986 को इस संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और तीन तलाक क्रूरता-कुप्रथा को ताकत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संसद में संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल किया।
कांग्रेस ने कुछ दकियानूसी कट्टरपंथियों के कुतर्कों और दबाव के आगे घुटने टेक कर मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित करने का आपराधिक पाप किया था। कांग्रेस के लम्हों की खता मुस्लिम महिलाओं के लिए दशकों की सजा बन गई। जहाँ कांग्रेस ने सियासी वोटों के उधार की चिंता की थी, वहीँ मोदी सरकार ने सामाजिक सुधार की चिंता की।
भारत संविधान से चलता है। किसी शरीयत या धार्मिक कानून या व्यवस्था से नहीं। इससे पहले भी देश में सती प्रथा, बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए भी कानून बनाये गए। तीन तलाक कानून का किसी मजहब, किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं था। शुद्ध रूप से यह कानून एक कुप्रथा, क्रूरता, सामाजिक बुराई और लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए पारित किया गया। यह मुस्लिम महिलाओं के समानता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा विषय था। मौखिक रुप से तीन बार तलाक़ कह कर तलाक देना। पत्र, फ़ोन, यहाँ तक की मैसेज, व्हाट्सऐप के जरिये तलाक़ दिए जाने के मामले सामने आने लगे थे। जो कि किसी भी संवेदनशील देश-समावेशी सरकार के लिए अस्वीकार्य था।

दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर-क़ानूनी और गैर-इस्लामी घोषित कर ख़त्म कर दिया था। मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश है जिसने 1929 में तीन तलाक को ख़त्म किया, गैर क़ानूनी एवं दंडनीय अपराध बनाया। 1929 में सूडान ने तीन तलाक पर प्रतिबन्ध लगाया। 1956 में पाकिस्तान ने, 1972 बांग्लादेश, 1959 में इराक, सीरिया ने 1953 में, मलेशिया ने 1969 में इस पर रोक लगाई। इसके अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, क़तर, यूएई जैसे इस्लामी देशों ने तीन तलाक ख़त्म किया और कड़े क़ानूनी प्रावधान बनाये। लेकिन भारत को मुस्लिम महिलाओं को इस कुप्रथा के अमानवीय जुल्म से आजादी दिलाने में लगभग 70 साल लग गए।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2017 को तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। जहाँ कांग्रेस ने अपने संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए किया था, वहीँ मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक,मौलिक,लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए फैसला किया।
आज एक वर्ष हो गया है। इस दौरान तीन तलाक या तिलाके बिद्दत की घटनांओं में 82 प्रतिशत से ज्यादा की कमीं आई है। जहाँ ऐसी घटना हुई भी है वहां कानून ने अपना काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हर वर्ग के सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार को समर्पित है। कुछ लोगों का कुतर्क होता है कि मोदी सरकार को सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के तलाक की ही चिंता क्यों है? उनके आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए कुछ क्यों नहीं करते ? तो उनकी जानकारी के लिए बताना चाहता हूँ कि इन पिछले 6 वर्षों में मोदी सरकार के समावेशी विकास-सर्वस्पर्शी सशक्तिकरण के प्रयासों का लाभ समाज के सभी वर्गों के साथ मुस्लिम महिलाओं को भी भरपूर हुआ है।
पिछले छह वर्षो में 3 करोड़, 87 लाख अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप दी गई, जिसमें 60 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। पिछले 6 वर्षो में हुनर हाट के माध्यम से लाखों दस्तकारों-शिल्पकारों को रोजगार-रोजगार के मौके मिलें, जिनमे बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। सीखों और कमाओं , गरीब नवाज़ स्वरोजगार योजना, उस्ताद, नई मंजिल, नई रौशनी आदि रोजगारपरक कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से पिछले 6 वर्षों में 10 लाख से ज्यादा अल्पसंख्यकों को रोजगार और रोजगार के मौके उपलब्ध कराये गए हैं, जिनमे बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार के अंतरगर्त 2018 में शुरू की गई बिना मेहरम (पुरुष रिश्तेदार) के महिलाओं को हज पर जाने की प्रक्रिया के तहत अब तक बिना मेहरम के हज पर जाने वाली महिलाओं की संख्या 3040 हो चुकी है। इस वर्ष भी 2300 से अधिक मुस्लिम महिलाओं ने बिना मेहरम के हज पर जाने के लिए आवेदन किया था। इन महिलाओं को हज 2021 में इसी आवेदन के आधार पर हज यात्रा पर भेजा जायेगा। साथ ही अगले वर्ष भी जो महिलाएं बिना मेहरम हज यात्रा हेतु नया आवेदन करेंगी उन सभी को भी हज यात्रा पर भेजा जायेगा।
मोदी सरकार की अन्य सामाजिक सशक्तिकरण योजनाओं का लाभ मुस्लिम महिलाओं को भरपूर हुआ है। यही वजह है कि आज विपक्ष भी यह नहीं कह पाता कि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे कामों में किसी भी वर्ग के साथ भेद-भाव हुआ है, मोदी सरकार के सम्मान के साथ सशक्तिकरण, बिना तुष्टिकरण विकास का नतीजा है कि 2 करोड़ गरीबों को घर दिया तो उसमे 31 प्रतिशत अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समुदाय हैं। 22 करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत लाभ दिया, तो उसमे भी 33 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब किसान हैं। 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिया तो उसमे 37 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार लाभान्वित हुए। 24 करोड़ लोगों को मुद्रा योजना के तहत व्यवसाय सहित अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आसान ऋण दिए गए हैं, जिनमे 36 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यकों को लाभ हुआ। दशकों से अँधेरे में डूबे हजारों गांवों में बिजली पहुंचाई तो इसका बड़ा लाभ अल्पसंख्यकों को हुआ। इन सभी योजनाओं का लाभ बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाओं को भी हुआ है और वो भी तरक्की के सफल सफर की हमसफ़र बनी हैं।
(PIB)