डा. वंदना गांधी समाजशास्त्र की शिक्षिका हैं। समाज में चल रही गतिविधियों और उनके पीछे के एजेंडे को वह बहुत बारीक से समझती हैं। जब उन्होंने प्रेम की आड़ में चल रहे ‘लव जिहाद’ की नब्ज़ टटोलने की कोशिश की तो उनका सामना ऐसे सच से हुआ, जो बहुत डरावना है। अपने कहानी संग्रह ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ में उन्होंने 15 सच्ची कहानियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि कैसे प्रेम का मुखौटा लगा कर हिन्दू युवतियों को निशाना बनाया जा रहा है। उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। इनमें छह कहानियां मध्यप्रदेश की हैं और शेष भारत के विभिन्न हिस्सों से ली गई हैं। लेखिका का कहना है कि वह कई परिवारों और पीड़ित युवतियों से प्रत्यक्ष मिली हैं और उनके दर्द को समझने का प्रयास किया है।
धरती पर सबसे अधिक पवित्र कुछ है तो वह प्रेम है। प्रेम के सभी रूप मनुष्य के जीवन को सुंदर बनाते हैं। यह शाश्वत सत्य है कि जिसको किसी प्रकार जीतना संभव न हो, उसे प्रेम जीता जा सकता है। प्रेम में एक-दूसरे पर अटूट भरोसा हो जाता है। इस अटूट भरोसे के कारण ही कई बार प्रेम के मुखौटे के पीछे छिपी घिनौनी सूरत को हम देख नहीं पाते हैं। जब यह मुखौटा हटता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कहानीकार डॉ. वंदना गांधी की पुस्तक निश्चित ही बहुत देर होने से पहले ऐसे घिनौने चेहरों से मुखौटे नौंचने का कार्य करेगी। उनकी यह पुस्तक हिन्दू युवतियों को सावधान करती है कि उन्हें जरा एक बार अच्छे से पड़ताल करनी चाहिए कि वह जिसे प्रेम समझ रही हैं, वह वास्तव में प्रेम ही है या कुछ और।
डॉ. वंदना गांधी की यह कहानियां बताती हैं कि यह सिर्फ प्रेम में धोखे की दास्तां मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को छिन्न करने वाला पूरा एक षड्यंत्र है। अब यह कोई छिपा हुआ षड्यंत्र नहीं है कि हिन्दू युवतियों का धर्मांतरण करने के लिए सुनियोजित ढंग से ‘लव जिहाद’ शुरू किया गया है। तथाकथित प्रगतिशील लोग इसे भाजपा और आरएसएस का राजनीतिक एजेंडा कह कर खारिज कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा या आरएसएस से भी पहले ‘लव जिहाद’ शब्द का उपयोग वर्ष 2009 में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने किया था। केरल हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने मुस्लिम लड़के और हिन्दू युवती की शादी के मामले की सुनवाई करते समय कहा था कि देश में लव जिहाद चल रहा है। बाद में, केरल से चर्चा में आए लव जिहाद के मामले देश के कई हिस्सों से भी सामने आए, जो स्पष्टतौर पर न्यायमूर्ति केटी शंकरन के कहे को सत्य सिद्ध करते हैं। यह पुस्तक भी लव जिहाद की ऐसी कहानियां का संग्रह है। पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि यह किसी का राजनीतिक एजेंडा हो या न हो, किंतु यह एक सामाजिक संकट जरूर है। इस पर राजनीतिक बहस कम और सामाजिक दृष्टि से विमर्श अधिक होना चाहिए।
मुस्लिम समाज भी कोरी कल्पना कह कर ‘लव जिहाद’ नकार नहीं सकता। यथार्थ में क्या है? यह भी मुस्लिम समाज को देखना होगा। घटनाएं और मुस्लिम समाज का व्यवहार तो यही बयां करता है कि मुस्लिम समाज का कट्टरपंथी धड़ा ‘लव जिहाद’ की अवधारणा पर काम तो कर रहा है। वरना क्या कारण है कि मुस्लिम युवक से विवाह करने वाली प्रत्येक लड़की को इस्लाम कबूल करना पड़ता है? मुस्लिम लड़का क्यों नहीं हिन्दू धर्म अपनाता? यह कैसा प्रेम है कि हिन्दू लड़की को ही अपने धर्म का त्याग करना पड़ता है? हिन्दू लड़की के सामने इस्लाम अपनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोडऩा, लव जिहाद नहीं तो क्या है? यह तो स्पष्टतौर पर धर्मांतरण का तरीका है। ज्यादातर मामलों में यह भी देखने में आता है कि युवक अपनी मजहबी पहचान छिपा कर हिन्दू लड़की से मुलाकात बढ़ाता है। झूठ की बुनियाद पर बनाया गया संबंध प्रेम कतई नहीं हो सकता।
पुस्तक ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ निश्चित तौर पर अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल होगी। एक षड्यंत्र के विरुद्ध जागरूकता लाने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। डॉ. गांधी कहती हैं कि लव जिहाद की खौफनाक हकीकत सामने लाकर उन्हें बहुत संतोष है। यह किताब कॉलेज छात्राओं के लिए गीता साबित होगी। हर युवती को इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए। अर्चना प्रकाशन को साधुवाद कि उसने ऐसे विषय पर पुस्तक प्रकाशित करने का साहस दिखाया, जिस पर दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति हो रही है। इस संबंध में अर्चना प्रकाशन के ट्रस्टी ओमप्रकाश गुप्ता कहते हैं कि लव जेहाद की सच्ची घटनाओं पर देश में यह पहली किताब है। इस किताब में उन युवतियों की पीड़ा को उजागर किया गया है, जो गलत कदम उठाने के बाद अब पछता रही हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में विमोचित इस कृति ने पर्याप्त चर्चा प्राप्त की है।
पुस्तक : एक मुखौटा ऐसा भी (लव जिहाद पर केंद्रित कहानी संग्रह)
लेखक : डॉ. वंदना गांधी
मूल्य : 80 रुपये (पेपरबैक)
पृष्ठ : 86
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन,
17, दीनदयाल परिसर, ई-2, महावीर नगर, भोपाल
दूरभाष – 0755-2420551
समीक्षक – लोकेन्द्र सिंह, स्वतंत्र टिप्पणीकार (विसंके)