उत्तर भारत के कई हिस्सों में कड़ाके की ठंड के साथ-साथ वायु प्रदूषण भी गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है। ऐसे हालात में मॉर्निंग वॉक, जॉगिंग या खुले पार्क में व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्मॉग और जहरीली हवा फेफड़ों के साथ-साथ दिल पर भी अतिरिक्त दबाव डालती है। हालांकि खराब मौसम के बावजूद फिटनेस से समझौता करना जरूरी नहीं है। सही दिनचर्या और संतुलित खानपान के जरिए घर के अंदर रहकर भी वजन बढ़ने की समस्या से बचा जा सकता है।
सर्दियों में शरीर का मेटाबॉलिज्म सामान्य रूप से धीमा पड़ जाता है और हाई-कैलोरी भोजन की इच्छा बढ़ जाती है। ऐसे में अगर सावधानी न बरती जाए, तो वजन तेजी से बढ़ सकता है। अच्छी खबर यह है कि ठंड और प्रदूषण के बीच भी कुछ आसान उपाय अपनाकर फैट बर्न की प्रक्रिया को सक्रिय रखा जा सकता है।
खानपान में छोटे बदलाव, बड़ा असर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में फैट बर्न के लिए शरीर के आंतरिक तापमान को बढ़ाना बेहद जरूरी है। इसे थर्मोजेनेसिस कहा जाता है। इसके लिए भोजन में अदरक, काली मिर्च, दालचीनी और लहसुन जैसे गर्म तासीर वाले मसालों को शामिल करना फायदेमंद माना जाता है। ये तत्व मेटाबॉलिज्म को तेज करने में मदद करते हैं।
इसके साथ ही ठंडे पानी से परहेज कर गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती है। गुनगुना पानी पाचन सुधारने के साथ-साथ शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक होता है। दिन में 2 से 3 कप ग्रीन टी या हर्बल टी का सेवन भी वजन नियंत्रण में मदद कर सकता है।
घर के अंदर करें असरदार एक्सरसाइज
जब बाहर का माहौल अनुकूल न हो, तो इनडोर फिजिकल एक्टिविटी सबसे सुरक्षित विकल्प बन जाती है। फिटनेस एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एक ही जगह पर दौड़ना (स्पॉट रनिंग), जंपिंग जैक, रस्सी कूदना या सीढ़ियां चढ़ना-उतरना कैलोरी बर्न करने के प्रभावी तरीके हैं। रोजाना 15 से 20 मिनट की तेज इनडोर एक्सरसाइज भी फिट रहने के लिए काफी मानी जाती है।
योगाभ्यास भी सर्दियों में बेहद कारगर है। खासतौर पर सूर्य नमस्कार पूरे शरीर की मांसपेशियों को सक्रिय करता है और फैट बर्न में मदद करता है। इसके अलावा घर की साफ-सफाई जैसे रोजमर्रा के काम भी शारीरिक गतिविधि बढ़ाने का अच्छा माध्यम हो सकते हैं।
अनहेल्दी स्नैकिंग से रखें दूरी
ठंड के मौसम में तला-भुना और मीठा खाने की इच्छा बढ़ जाती है, जो वजन बढ़ने का मुख्य कारण बनती है। विशेषज्ञ इसे ‘बोरडम ईटिंग’ का असर मानते हैं, जो प्रदूषण के कारण घर में ज्यादा समय बिताने से बढ़ती है।
इससे बचने के लिए बिस्किट, नमकीन और मिठाइयों की जगह भुने चने, मखाने, फल या कच्ची सब्जियों को स्नैक के रूप में अपनाने की सलाह दी जाती है। बिना क्रीम का सब्जी या टमाटर सूप भी पेट भरा रखने में मदद करता है और ओवरईटिंग से बचाता है।
तनाव कम करें, नींद पूरी लें
विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में धूप की कमी और ठंड के कारण शरीर में स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ सकता है, जिससे पेट के आसपास चर्बी जमा होने लगती है। ऐसे में योग, प्राणायाम और मेडिटेशन तनाव कम करने के साथ-साथ फैट बर्न प्रक्रिया को संतुलित रखते हैं।
इसके अलावा 7 से 8 घंटे की गहरी नींद बेहद जरूरी है, क्योंकि शरीर इसी दौरान खुद को रिपेयर करता है और फैट मेटाबोलिज्म सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है। सही नींद और नियमित दिनचर्या अपनाकर ठंड और प्रदूषण के मौसम में भी खुद को फिट और हेल्दी रखा जा सकता है।
नोट: यह लेख सामान्य स्वास्थ्य जानकारी और उपलब्ध रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी डाइट या एक्सरसाइज रूटीन को अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित है।
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तेजी से बदलती जीवनशैली के बीच हृदय रोग अब केवल बुज़ुर्गों तक सीमित नहीं रह गए हैं। हाल के वर्षों में युवाओं, यहां तक कि 30 साल से कम उम्र के लोगों में भी दिल से जुड़ी गंभीर समस्याओं के मामले सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अनियमित दिनचर्या, तनाव और गलत खानपान के साथ-साथ कुछ मामलों में आनुवांशिक कारण भी हृदय रोगों के खतरे को चुपचाप बढ़ा देते हैं, जिसकी समय रहते पहचान करना बेहद जरूरी है।
इसी दिशा में वैज्ञानिकों को एक अहम सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसे ब्लड टेस्ट की पहचान की है, जो दिल की एक गंभीर आनुवांशिक बीमारी के जोखिम का पहले ही संकेत दे सकता है। यह खोज खासतौर पर हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (HCM) जैसी समस्या से जुड़े मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण मानी जा रही है।
क्या है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी?
हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी दिल की मांसपेशियों से जुड़ी एक आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें हृदय की दीवारें असामान्य रूप से मोटी हो जाती हैं। इससे दिल को खून पंप करने में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। यह बीमारी अक्सर परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है और कई बार शुरुआती चरण में इसके लक्षण साफ नजर नहीं आते।
इस बीमारी से पीड़ित लोगों को सांस फूलना, सीने में दर्द, चक्कर आना या अचानक बेहोशी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में यह स्थिति जानलेवा भी साबित हो सकती है और अचानक कार्डियक अरेस्ट का खतरा बढ़ जाता है।
अब ब्लड टेस्ट से मिलेगा खतरे का संकेत
अब तक इस बीमारी की पहचान के लिए इकोकार्डियोग्राम, ईसीजी और जेनेटिक टेस्ट का सहारा लिया जाता था। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इन तरीकों से यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि किन मरीजों को सबसे अधिक खतरा है। इसी कमी को दूर करने के लिए शोधकर्ताओं ने एक खास ब्लड टेस्ट पर काम किया है।
हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि खून में मौजूद एक विशेष प्रोटीन NT-Pro-BNP का स्तर हृदय पर पड़ने वाले दबाव को दर्शा सकता है। इस प्रोटीन का अधिक स्तर यह संकेत देता है कि दिल सामान्य से अधिक मेहनत कर रहा है।
अध्ययन में क्या सामने आया?
शोध के दौरान करीब 700 HCM मरीजों के ब्लड सैंपल का विश्लेषण किया गया। जिन मरीजों में NT-Pro-BNP का स्तर अधिक पाया गया, उनमें दिल की संरचना में बदलाव, स्कार टिश्यू बनने और भविष्य में हार्ट फेलियर या एट्रियल फाइब्रिलेशन जैसी समस्याओं का खतरा ज्यादा देखा गया।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस ब्लड टेस्ट की मदद से उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान पहले ही की जा सकेगी, जिससे उनकी नियमित निगरानी और समय पर इलाज संभव होगा।
विशेषज्ञों की राय
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की कार्डियोवैस्कुलर जेनेटिक्स विशेषज्ञ प्रोफेसर कैरोलिन हो के अनुसार, यह टेस्ट डॉक्टरों को यह तय करने में मदद कर सकता है कि किन मरीजों को अधिक गहन इलाज और निगरानी की जरूरत है। इससे जानलेवा स्थितियों को समय रहते रोका जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की जांच से मरीजों को अपनी जीवनशैली में सुधार करने और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने का मौका भी मिलेगा।
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सर्दी का मौसम आते ही शरीर से जुड़ी कई परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं। खासतौर पर जो लोग पहले से ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या जोड़ों से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा सतर्क रहने का होता है। ठंड बढ़ने के साथ ही घुटनों में दर्द, अकड़न और चलने-फिरने में दिक्कत की शिकायतें आम हो जाती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, तापमान गिरते ही शरीर की मांसपेशियां और लिगामेंट्स सिकुड़ने लगते हैं। इसका सीधा असर जोड़ों की गति पर पड़ता है। खून का प्रवाह धीमा होने से जोड़ों तक पर्याप्त रक्त नहीं पहुंच पाता, जिससे दर्द और जकड़न महसूस होती है। गठिया के मरीजों में यह परेशानी और ज्यादा गंभीर हो सकती है।
ठंड के दिनों में एक और बड़ी वजह शारीरिक निष्क्रियता भी है। लोग सर्दी के कारण बाहर निकलने से कतराने लगते हैं, जिससे वॉक और व्यायाम जैसी गतिविधियां कम हो जाती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि जोड़ों का लचीलापन घटने लगता है और दर्द की समस्या बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों में कुछ जरूरी सावधानियां अपनाकर घुटनों और जोड़ों की दिक्कतों से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है। नियमित रूप से हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधि बेहद जरूरी है। घर के अंदर ही स्ट्रेचिंग, योग या टहलने जैसी आदतें जोड़ों को सक्रिय बनाए रखती हैं।
इसके साथ ही शरीर को गर्म रखना भी बेहद अहम है। गर्म कपड़े पहनना और जरूरत पड़ने पर गर्म पानी से सिकाई करने से रक्त संचार बेहतर होता है और दर्द में आराम मिलता है। ठंड में मांसपेशियों के सिकुड़ने से जोड़ों पर दबाव बढ़ता है, जिसे गर्माहट से कम किया जा सकता है।
आहार का सही संतुलन भी जोड़ों की सेहत में अहम भूमिका निभाता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड, कैल्शियम और विटामिन-डी से भरपूर भोजन हड्डियों को मजबूती देता है। सर्दियों में धूप में कुछ समय बैठना विटामिन-डी की कमी को दूर करने में मददगार होता है। इसके अलावा वजन नियंत्रित रखना भी जरूरी है, क्योंकि अतिरिक्त वजन घुटनों पर ज्यादा दबाव डालता है।
डॉक्टरों की सलाह है कि यदि घुटनों में दर्द लगातार बना रहे, सूजन बढ़ती जाए या चलने-फिरने में परेशानी हो, तो इसे नजरअंदाज न करें और विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें। सही समय पर देखभाल और सावधानी अपनाकर सर्दियों में भी जोड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
सर्दियों के मौसम में प्यास कम लगना आम बात है, लेकिन यही आदत सेहत के लिए खतरे की घंटी बन सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ठंड के दिनों में लोग अक्सर पानी पीना नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि इस मौसम में भी शरीर लगातार नमी खोता रहता है। सूखी हवा, सांस लेने की प्रक्रिया और हल्का पसीना शरीर से पानी बाहर निकालते रहते हैं। ऐसे में पर्याप्त पानी न पीने से शरीर डिहाइड्रेशन की चपेट में आ सकता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सर्दियों में पानी की कमी से खून गाढ़ा होने लगता है, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसका असर ब्लड प्रेशर, इम्युनिटी और मेटाबॉलिज्म पर भी पड़ता है। कई लोग चाय या कॉफी को पानी का विकल्प मान लेते हैं, जबकि कैफीन युक्त पेय शरीर में पानी की कमी को और बढ़ा देते हैं।
सर्दियों में डिहाइड्रेशन क्यों है खतरनाक
डिहाइड्रेशन को सर्दियों में ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है, क्योंकि इसके लक्षण प्यास के रूप में नहीं बल्कि थकान, सिरदर्द, सुस्ती और चक्कर के रूप में सामने आते हैं। समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यह कई गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है।
किडनी और यूरिन से जुड़ी समस्याएं
कम पानी पीने का सबसे सीधा असर किडनी पर पड़ता है। मूत्र गाढ़ा होने से किडनी स्टोन बनने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिससे यूरिन इन्फेक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है। डॉक्टरों के मुताबिक सर्दियों में भी रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीना जरूरी है।
त्वचा और पाचन पर दिखता है असर
पानी की कमी से त्वचा रूखी और बेजान होने लगती है। होंठ फटना, खुजली और ड्राइनेस आम समस्याएं बन जाती हैं। वहीं पाचन तंत्र पर भी इसका असर पड़ता है। पर्याप्त पानी न मिलने से कब्ज, गैस और एसिडिटी की शिकायत बढ़ जाती है। विशेषज्ञ सर्दियों में गुनगुना पानी पीने की सलाह देते हैं, जिससे पाचन बेहतर रहता है।
हार्ट अटैक और स्ट्रोक का बढ़ता खतरा
डिहाइड्रेशन के कारण खून का गाढ़ा होना हृदय और मस्तिष्क के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इससे ब्लड क्लॉट बनने का जोखिम बढ़ता है, जो हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन सकता है। बुजुर्गों और हृदय रोगियों को सर्दियों में पानी की मात्रा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
सर्दियों में खुद को कैसे रखें हाइड्रेटेड
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सर्दियों में केवल प्यास लगने का इंतजार न करें। गुनगुना पानी, सूप, हर्बल टी और मौसमी फलों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। हर घंटे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पानी पीना आदत बनाएं। स्वाद के लिए पानी में नींबू या पुदीना मिलाया जा सकता है।
नोट: यह जानकारी विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मेडिकल रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी समस्या की स्थिति में डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
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सेहत के लिए फायदेमंद मानी जाने वाली चीज़ों में चुकंदर का नाम भी ऊपर लिया जाता है। खून की कमी से लेकर कमजोरी दूर करने तक, इसे एक नेचुरल टॉनिक के तौर पर देखा जाता है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो हर व्यक्ति के लिए चुकंदर उतना ही सुरक्षित हो, यह जरूरी नहीं। कुछ खास बीमारियों और शारीरिक स्थितियों में इसका सेवन फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। डॉक्टर शालिनी सिंह सोलंकी के अनुसार, चुकंदर में मौजूद ऑक्सलेट, नाइट्रेट और कुछ रासायनिक तत्व कुछ लोगों की सेहत को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
डॉक्टर बताती हैं कि चुकंदर में पाए जाने वाले प्यूरिन और नाइट्रेट्स हर शरीर के मेटाबॉलिज्म के अनुकूल नहीं होते। बिना अपनी स्वास्थ्य स्थिति को समझे अगर इसका नियमित या अधिक मात्रा में सेवन किया जाए, तो यह पहले से मौजूद समस्याओं को और बढ़ा सकता है। ऐसे में कुछ लोगों को चुकंदर से दूरी बनाना या बेहद सीमित मात्रा में ही इसका सेवन करना चाहिए।
पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं
जिन लोगों को आंतों की संवेदनशीलता, IBS या बार-बार गैस, पेट दर्द और दस्त की शिकायत रहती है, उनके लिए चुकंदर परेशानी बढ़ा सकता है। इसमें मौजूद फाइबर और फ्रुक्टन्स पाचन तंत्र पर दबाव डालते हैं, जिससे पेट में मरोड़ और गैस की समस्या हो सकती है। वहीं एसिडिटी या GERD से पीड़ित लोगों में यह सीने में जलन और बेचैनी को बढ़ा सकता है।
किडनी स्टोन और गुर्दे की कमजोरी
किडनी स्टोन की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए चुकंदर का सेवन जोखिम भरा माना जाता है। इसमें ऑक्सलेट की मात्रा अधिक होती है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को तेज कर सकती है। इसके अलावा जिन लोगों की किडनी कमजोर है या ठीक से फिल्टर नहीं कर पा रही, उनके लिए चुकंदर में मौजूद पोटेशियम शरीर में असंतुलन पैदा कर सकता है और किडनी पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है।
लो ब्लड प्रेशर और यूरिक एसिड की समस्या
चुकंदर में प्राकृतिक नाइट्रेट्स होते हैं, जो रक्त नलिकाओं को फैलाकर ब्लड प्रेशर को कम करते हैं। पहले से लो बीपी वाले लोगों में यह अचानक चक्कर, कमजोरी या थकान की वजह बन सकता है। वहीं हाई यूरिक एसिड और गाउट के मरीजों को भी इससे सावधान रहना चाहिए, क्योंकि चुकंदर में मौजूद प्यूरिन यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ाकर जोड़ों में दर्द और सूजन बढ़ा सकता है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए सावधानी जरूरी
मधुमेह के रोगियों के लिए भी चुकंदर पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। इसमें प्राकृतिक शर्करा की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। खासकर खाली पेट चुकंदर का जूस पीने से ब्लड शुगर लेवल तेजी से बढ़ सकता है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को इसका सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
डॉ. शालिनी सिंह सोलंकी का कहना है कि इन विशेष परिस्थितियों में बिना चिकित्सकीय परामर्श के चुकंदर का सेवन लाभ के बजाय नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए किसी भी सुपरफूड को अपनी डाइट में शामिल करने से पहले अपनी सेहत और जरूरतों को समझना बेहद जरूरी है।
नोट: यह लेख सामान्य स्वास्थ्य जानकारी पर आधारित है। किसी भी आहार में बदलाव से पहले विशेषज्ञ या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
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बदलती जीवनशैली और अनियमित खानपान के कारण पेट से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। खासतौर पर कब्ज की शिकायत अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि युवा वर्ग भी इससे परेशान नजर आ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक कब्ज बने रहने से गैस, एसिडिटी और पेट में भारीपन जैसी समस्याएं रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करती हैं। ऐसे में आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों में उपयोग होने वाला इसबगोल (इसपघोल) एक सुरक्षित और असरदार विकल्प के रूप में सामने आया है।
इसबगोल की भूसी प्राकृतिक घुलनशील फाइबर से भरपूर होती है, जो पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाती है। यह आंतों में जाकर पानी को अवशोषित करती है, जिससे मल नरम होता है और मलत्याग की प्रक्रिया सहज बनती है। नियमित और सही तरीके से सेवन करने पर यह कब्ज से राहत दिलाने के साथ-साथ पाचन तंत्र को सक्रिय रखने में मदद करती है।
कैसे करता है काम
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि इसबगोल एक बल्क-फॉर्मिंग फाइबर की तरह कार्य करता है। यह आंतों में जमा अपशिष्ट को बाहर निकालने में सहायक होता है और पाचन क्रिया को प्राकृतिक रूप से संतुलित करता है। इसके उपयोग से आंतों की सफाई बेहतर होती है और पेट से जुड़ी पुरानी परेशानियों में भी धीरे-धीरे सुधार देखा जा सकता है।
सेवन का सही तरीका
इसबगोल का अधिकतम लाभ पाने के लिए इसका सही समय और मात्रा जानना जरूरी है। आमतौर पर रात के समय भोजन के बाद एक चम्मच इसबगोल की भूसी को गुनगुने पानी या दूध में मिलाकर लेने की सलाह दी जाती है। इसे मिलाने के तुरंत बाद पीना चाहिए, ताकि यह ज्यादा गाढ़ा न हो। नियमित सेवन से कुछ ही दिनों में पाचन में सुधार महसूस हो सकता है।
दिल और शुगर के लिए भी फायदेमंद
कब्ज से राहत के अलावा इसबगोल का सेवन हृदय स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी माना जाता है। यह शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। वहीं, यह भोजन के बाद ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित रखने में भी सहायक होता है, जिससे डायबिटीज के मरीजों को लाभ मिल सकता है। फाइबर की अधिक मात्रा पेट को देर तक भरा रखती है, जिससे अनावश्यक भूख कम होती है और वजन नियंत्रण में मदद मिलती है।
सावधानी भी है जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि इसबगोल लेते समय पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बेहद जरूरी है। पानी की कमी होने पर यह समस्या बढ़ा भी सकता है। किसी गंभीर बीमारी या लंबे समय से दवाइयों का सेवन कर रहे लोग इसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
नोट: यह जानकारी सामान्य स्वास्थ्य जागरूकता के उद्देश्य से दी गई है। किसी भी प्रकार के उपचार से पहले चिकित्सकीय परामर्श आवश्यक है।
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Thyroid Awareness- आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में थायराइड एक ऐसी बीमारी बन चुकी है, जो धीरे-धीरे शरीर को अंदर से कमजोर कर देती है। गले के निचले हिस्से में मौजूद यह छोटी-सी ग्रंथि शरीर की ऊर्जा, वजन, तापमान और दिल की धड़कन को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है। अक्सर लोग गले में हल्का भारीपन या सूजन को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि यही थायराइड असंतुलन का पहला संकेत हो सकता है।
थायराइड ग्रंथि जब जरूरत से ज्यादा हार्मोन बनाने लगती है तो उसे हाइपरथायरायडिज्म कहा जाता है, वहीं हार्मोन की कमी की स्थिति हाइपोथायरायडिज्म कहलाती है। दोनों ही हालात शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं। समय रहते इलाज न होने पर यह समस्या हृदय, मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता तक पर असर डाल सकती है।
थायराइड से जुड़ा सबसे आम बदलाव वजन में दिखाई देता है। बिना अधिक खाने के वजन बढ़ना हार्मोन की कमी की ओर इशारा करता है, जबकि अचानक वजन कम होना हार्मोन की अधिकता का संकेत हो सकता है। इसके साथ ही दिनभर थकान महसूस होना, सुस्ती और काम में मन न लगना भी इस बीमारी के शुरुआती लक्षण माने जाते हैं।
यह ग्रंथि शरीर के तापमान को नियंत्रित करती है, इसलिए थायराइड बिगड़ने पर किसी को अत्यधिक ठंड लगने लगती है, तो किसी को हल्की गर्मी में भी पसीना आने लगता है। त्वचा का रूखा होना, बालों का तेजी से झड़ना और नाखूनों का कमजोर होना भी इसके आम संकेतों में शामिल है।
थायराइड हार्मोन का सीधा असर दिल और दिमाग पर भी पड़ता है। धड़कन का तेज या धीमा होना, घबराहट, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी और याददाश्त कमजोर होना इसकी पहचान हो सकती है। महिलाओं में पीरियड्स का अनियमित होना भी अक्सर थायराइड असंतुलन से जुड़ा पाया गया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, अगर गले में सूजन महसूस हो या एक साथ कई लक्षण नजर आएं, तो ब्लड टेस्ट कराना जरूरी है। संतुलित आहार, आयोडीन की पर्याप्त मात्रा और तनाव से दूरी थायराइड को नियंत्रित रखने में मदद करती है। सही समय पर जांच और नियमित इलाज से थायराइड को पूरी तरह कंट्रोल में रखा जा सकता है।
सर्दी का मौसम आते ही खानपान की आदतों में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। ठंड से बचने के लिए जहां लोग गर्म कपड़ों की कई परतें पहनते हैं, वहीं इस मौसम में भूख भी सामान्य से अधिक लगने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार, ठंड के कारण शरीर को अपना तापमान बनाए रखने के लिए ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है, जिससे मेटाबॉलिज्म तेज होता है और बार-बार खाने की इच्छा होती है।
सर्दियों में क्यों बढ़ जाती है खाने की चाह
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी होने से हार्मोनल संतुलन प्रभावित होता है। सेरोटोनिन और मेलाटोनिन जैसे हार्मोन में बदलाव के कारण लोगों में सुस्ती और ‘विंटर ब्लूज’ की स्थिति पैदा हो जाती है। इससे निपटने के लिए अधिकांश लोग हाई कैलोरी, तले-भुने और मीठे खाद्य पदार्थों की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जिन्हें आमतौर पर ‘कम्फर्ट फूड’ कहा जाता है।
ओवरईटिंग बन सकती है गंभीर बीमारियों की वजह
हालांकि स्वाद और राहत के चक्कर में की गई ओवरईटिंग सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यदि इस आदत पर समय रहते नियंत्रण न किया जाए, तो वजन तेजी से बढ़ता है और कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है, जो आगे चलकर लंबे समय तक परेशान कर सकती हैं।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम का बढ़ता खतरा
सर्दियों में शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं और कैलोरी का सेवन बढ़ जाता है। इसका सीधा असर वजन पर पड़ता है। पेट के आसपास चर्बी बढ़ने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम की आशंका बढ़ जाती है, जिससे फैटी लीवर, जोड़ों में दर्द और चलने-फिरने में परेशानी जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं।
दिल और कोलेस्ट्रॉल पर पड़ता है असर
अधिक तला-भुना और मीठा खाने से शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) का स्तर बढ़ जाता है। सर्दियों में नसें पहले से ही संकुचित रहती हैं, ऐसे में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल धमनियों में रुकावट पैदा कर सकता है। इससे हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। दिल के मरीजों के लिए सर्दियों की ओवरईटिंग खासतौर पर जोखिम भरी मानी जाती है।
डायबिटीज का भी बढ़ सकता है जोखिम
विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार ज्यादा मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और शुगर लेने से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस विकसित हो सकता है। लगातार इंसुलिन स्पाइक होने से ब्लड शुगर अनियंत्रित हो जाता है, जिससे टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। सर्दियों में कई लोगों में शुगर लेवल अचानक बढ़ने के पीछे यही कारण माना जाता है।
सर्दियों में ओवरईटिंग से कैसे बचें
स्वास्थ्य विशेषज्ञ सर्दियों में संतुलित खानपान पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हैं।
डाइट में सूप, सलाद और हरी सब्जियों को शामिल करें, जिससे पेट लंबे समय तक भरा रहे।
पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, क्योंकि कई बार प्यास को भूख समझ लिया जाता है।
भोजन धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबाकर करें, ताकि दिमाग को समय पर पेट भरने का संकेत मिल सके।
स्वाद और पोषण के बीच संतुलन बनाए रखें, ताकि सेहत के साथ सर्दियों का आनंद भी लिया जा सके।
नोट: यह खबर विभिन्न मेडिकल रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की राय के आधार पर तैयार की गई है।
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रसोई में आसानी और सुविधा के नाम पर इस्तेमाल होने वाला एल्युमिनियम फॉयल आज लगभग हर घर का हिस्सा बन चुका है। खाना पैक करना हो, गर्म रखना हो या फिर बेकिंग—हर जगह इसका इस्तेमाल आम है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदत धीरे-धीरे सेहत के लिए खतरा बन सकती है, खासकर तब जब गर्म या खट्टे खाद्य पदार्थ सीधे एल्युमिनियम फॉयल के संपर्क में आते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और विभिन्न शोध रिपोर्ट्स के अनुसार, एल्युमिनियम फॉयल में रखा या पकाया गया भोजन इसके सूक्ष्म कणों को अपने अंदर सोख सकता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब भोजन गर्म हो या उसमें नींबू, टमाटर, सिरका और मसाले जैसे अम्लीय तत्व मौजूद हों। ऐसे में एल्युमिनियम भोजन के जरिए शरीर में पहुंच जाता है, जो लंबे समय में स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
मस्तिष्क और नर्व सिस्टम पर पड़ सकता है असर
एल्युमिनियम को एक न्यूरोटॉक्सिक तत्व माना जाता है। शरीर में इसकी अधिक मात्रा मस्तिष्क की कोशिकाओं पर असर डाल सकती है। कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में यह संकेत मिला है कि मस्तिष्क में एल्युमिनियम का जमाव अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकता है। हालांकि इस पर अभी और शोध की जरूरत बताई जाती है, लेकिन खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता।
हड्डियों और किडनी के लिए भी नुकसानदेह
अत्यधिक एल्युमिनियम शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस के अवशोषण को प्रभावित कर सकता है, जिससे हड्डियों का घनत्व कम होने का खतरा रहता है। इसके अलावा, किडनी को शरीर से अतिरिक्त एल्युमिनियम बाहर निकालने का काम करना पड़ता है। लंबे समय तक अधिक मात्रा में एल्युमिनियम जमा होने से किडनी की कार्यक्षमता पर भी दबाव पड़ सकता है।
गर्म और खट्टे खाने से बढ़ता है रिसाव
विशेषज्ञों के अनुसार, एल्युमिनियम का रिसाव तापमान और भोजन की प्रकृति पर निर्भर करता है। गर्म भोजन या अम्लीय खाद्य पदार्थ जब फॉयल में लपेटे जाते हैं या उसमें पकाए जाते हैं, तो एल्युमिनियम के कण तेजी से भोजन में मिल सकते हैं। बार-बार ऐसा करने से शरीर में इसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ती जाती है।
क्या हैं सुरक्षित विकल्प
सेहत को सुरक्षित रखने के लिए एल्युमिनियम फॉयल के बजाय कांच, सिरेमिक या स्टेनलेस स्टील के बर्तनों का उपयोग बेहतर माना जाता है। यदि फॉयल का इस्तेमाल जरूरी हो, तो उसमें ठंडा और सूखा भोजन ही रखें। अम्लीय खाद्य पदार्थों को सीधे फॉयल में लपेटने से बचें और पहले बटर पेपर या फूड-ग्रेड शीट का इस्तेमाल करें।
नोट: यह लेख विभिन्न मेडिकल स्टडीज़ और विशेषज्ञों की रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी स्वास्थ्य संबंधी बदलाव से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
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सर्दियों की शुरुआत होते ही बच्चों में सर्दी-जुकाम, खांसी, बुखार और कान दर्द जैसी दिक्कतों के मामले तेजी से सामने आने लगे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ठंड का मौसम संक्रमणों के प्रसार के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है, जिससे छोटे बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अभी पूरी तरह विकसित नहीं होती, ऐसे में तापमान में मामूली गिरावट भी उन्हें बीमार कर सकती है।
माता-पिता के लिए यह चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि इस मौसम में बच्चों की त्वचा रूखी हो जाती है, होंठ फटने लगते हैं और बार-बार सर्दी लगने की समस्या आम हो जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि ठंड और शुष्क हवा नाक की म्यूकस लाइनिंग को कमजोर कर देती है, जिससे वायरस शरीर में आसानी से प्रवेश कर पाते हैं। साथ ही बच्चे स्कूल और घर जैसे बंद स्थानों में ज्यादातर समय बिताते हैं, जहाँ एक-दूसरे से संक्रमण फैलने की संभावना अधिक होती है।
क्यों बार-बार बीमार पड़ते हैं बच्चे?
बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, ठंड और शुष्क हवा ऐसे हालात पैदा कर देती है जो वायरस को सक्रिय रखने में मदद करते हैं।
कम तापमान में फ्लू जैसे कई वायरस लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
बच्चे बार-बार हाथ-मुंह-नाक को छूते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होने की प्रक्रिया में होने के कारण बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
घरों में लगातार हीटर चलने से हवा सूख जाती है, जो श्वसन तंत्र पर असर डालती है।
सर्दियों में कमजोर हो जाती है इम्यूनिटी
विशेषज्ञ बताते हैं कि सर्दियों में शरीर को पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती, जिससे विटामिन-D का स्तर घट जाता है। ठंड के कारण बच्चे बाहर कम खेलते हैं, जिससे शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है। यही वजह है कि इस मौसम में इम्यून सिस्टम धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और बच्चे तेजी से संक्रमण की चपेट में आते हैं।
कैसे रख सकते हैं बच्चों को सुरक्षित?
1. पोषक आहार सबसे जरूरी
फल, सब्जियां और विटामिन-C से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे संतरा, कीवी, अमरूद आदि बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। जिंक से भरपूर ड्राई फ्रूट्स और दालें भी संक्रमण से रक्षा करने में मदद करती हैं।
2. नियमित शारीरिक गतिविधि
हल्की एक्सरसाइज या खेलकूद बच्चे के रक्त संचार और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
3. स्वच्छता के नियम सख्ती से अपनाएं
– हाथ कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से धोना
– चेहरे और नाक-मुंह को छूने से बचना
– स्कूल से लौटने के बाद हाथ और चेहरा धोना
छोटे बच्चों के लिए माता-पिता को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
4. गर्म कपड़े और सही तापमान का ध्यान रखें
विशेषज्ञ कहते हैं कि ठंड में बच्चों को लेयरिंग में कपड़े पहनाना सबसे प्रभावी तरीका है।
बाहर जाते समय टोपी, दस्ताने और मफलर जरूर पहनाएं।
घर के अंदर हवा अधिक सूखी न हो, इसके लिए ह्यूमिडिफायर का उपयोग फायदेमंद है।
5. सूप और गरम पेय से मिलेगी अतिरिक्त सुरक्षा
अदरक, शहद, तुलसी और लहसुन जैसे प्राकृतिक तत्व वाली चीजें शरीर को गर्म रखती हैं और इम्यूनिटी मजबूत करती हैं।
सर्दियों में गरम सूप, दाल और हर्बल टी बच्चों के लिए बेहद लाभकारी मानी जाती है।
6. नींद पूरी होनी चाहिए
नींद की कमी सीधा इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है। डॉक्टरों के अनुसार:
शिशु: 12–16 घंटे
बच्चे (6–12 वर्ष): 9–12 घंटे
किशोर: 8–10 घंटे
नींद बच्चों की रोज़मर्रा की प्रतिरोधक क्षमता में अहम भूमिका निभाती है।
भीड़भाड़ से दूरी रखें: विशेषज्ञ की सलाह
मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक कुमार का कहना है कि मौसम बदलते ही बच्चों की दिनचर्या और आहार में छोटे-छोटे बदलाव बहुत ज़रूरी हैं।
वे सलाह देते हैं कि—
बच्चों को गुनगुना पानी दें
पोषण का खास ध्यान रखें
मौसम के अनुसार गर्म कपड़े पहनाएं
घर में बीमार व्यक्ति से बच्चों को दूर रखें
भीड़भाड़ वाले स्थानों पर कम ले जाएं
डॉ. दीपक कहते हैं कि यदि बच्चे लगातार बीमार पड़ रहे हों, तो तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए, क्योंकि यह कमजोर प्रतिरक्षा का संकेत हो सकता है।
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