शरीर में विटामिन बी12 की कमी को लेकर अक्सर लोगों में यह भ्रम रहता है कि इसकी वजह केवल गलत खानपान है। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार यह पोषक तत्व तंत्रिका तंत्र की सेहत, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एनर्जी बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी से लगातार थकान, चक्कर, पैरों में झुनझुनी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि आजकल बी12 की कमी तेजी से इसलिए बढ़ रही है क्योंकि लोग मेडिकल सलाह के बिना कई ऐसी दवाएं लगातार उपयोग कर रहे हैं, जो पाचन तंत्र में बी12 के अवशोषण को कम कर देती हैं।
एक हालिया वीडियो में डॉक्टर शालिनी सिंह सोलंकी ने बताया कि एसिडिटी में दी जाने वाली दवाएं, एच-2 ब्लॉकर, एलर्जी की कुछ मेडिसिन, डायबिटिक मरीजों में इस्तेमाल होने वाली मेटफार्मिन और लंबे समय तक एंटीबायोटिक का प्रयोग, आंतों में मौजूद हेल्दी बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा देते हैं। यही बैक्टीरिया विटामिन बी12 के अवशोषण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसी कारण बी12 मात्रा कम होती-होती क्रॉनिक डेफिशिएंसी तक पहुंच जाती है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ऐसी दवाएं ले रहा है, तो उन्हें अपने आप बंद न करे। सही तरीका यह है कि डॉक्टर की सलाह पर ही दवा की डोज, दवा बदलना या बी12 सप्लीमेंट जोड़ने की व्यवस्था की जाए।
डॉक्टरों के अनुसार डेयरी उत्पाद, अंडा, नॉनवेज, फोर्टिफाइड सीरियल्स जैसे स्रोत बी12 का अच्छा प्राकृतिक साधन हैं। वहीं अगर किसी को कमजोरी, मानसिक थकावट या नसों में झुनझुनी जैसे संकेत महसूस हों, तो अपने स्तर पर दवा लेने या सप्लीमेंट शुरू करने के बजाय पहले ब्लड टेस्ट करवा कर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
अगर आप दो–चार सीढ़ियाँ चढ़ते ही तेज़-तेज़ साँस लेने लगते हैं, हल्का काम करने पर भी छाती में भारीपन महसूस होता है, या टहलते समय अचानक थकान बढ़ जाती है — तो इसे केवल “कमज़ोरी या साधारण थकान” समझकर अनदेखा करना ख़तरनाक हो सकता है। चिकित्सकों के अनुसार, शरीर का इस तरह जल्दी थक जाना दिल और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी का प्रारम्भिक संकेत होता है।
यानी शरीर पहले ही समय पर चेतावनी दे रहा होता है कि दिल पूरा रक्त उतनी क्षमता से पम्प नहीं कर पा रहा, जितनी आवश्यकता है। इसी कारण शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम पड़ जाती है और साँस फूलने लगती है।
साँस फूलने और दिल की सेहत का सम्बन्ध
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब दिल की मांसपेशियों तक पर्याप्त रक्त नहीं पहुँचता, या दिल में रक्त प्रवाह कम होने की स्थिति शुरू हो जाती है, तब शरीर थोड़ा प्रयास करने पर भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन चाहता है। इस कमी को पूरा करने के लिए दिल तेज़ धड़कने लगता है और साँस लेने की गति अचानक बढ़ जाती है। यही वजह है कि थोड़े से श्रम पर भी साँस फूलने लगती है।
लगातार थकान आना भी चिन्ह
यदि बिना किसी कारण के रोज़-रोज़ थकान बनी रहती है — विशेष रूप से सुबह उठते ही — तो यह भी इसके संकेत हैं कि दिल शरीर के ऊतकों तक उतनी ऑक्सीजन नहीं पहुँचा पा रहा, जितनी ज़रूरत है। इसलिए सामान्य कार्य भी कठिन लगने लगते हैं।
पैरों में सूजन? अनदेखा न करें
दिल की कमज़ोर कार्यक्षमता का असर पैरों तथा टखनों पर सबसे पहले दिखता है। रक्त और तरल पदार्थ नीचे जमा होने लगते हैं और सूजन दिखाई देने लगती है। यह एक स्पष्ट चेतावनी संकेत है, जिस पर तुरंत हृदय रोग विशेषज्ञ से जाँच करानी चाहिए।
रात को खाँसी या घबराहट भी संकेत
कई लोगों को रात में अचानक खाँसी या बेचैनी महसूस होती है। चिकित्सकों के अनुसार, यह फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने के कारण होता है — जो दिल के कार्य में दोष का संकेत देता है।
निष्कर्ष
यदि ये लक्षण लगातार दिखाई दें — साँस फूलना, बार-बार थकान, पैरों में सूजन, रात में खाँसी या घबराहट — तो देर न करें। यह शरीर का आपात संकेत है कि दिल पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सक से जाँच कराना आवश्यक है।
(साभार)
देश में लिवर से जुड़ी बीमारियां अब गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले जहां यह समस्या 45-50 साल की उम्र के बाद देखने को मिलती थी, वहीं अब 20 साल से कम उम्र के युवा भी फैटी लिवर जैसी जटिल बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
गलत जीवनशैली, जंक फूड, देर रात तक जागना, व्यायाम की कमी और शराब का सेवन इसके मुख्य कारण माने जा रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार लिवर हमारे शरीर का सबसे अहम अंग है जो पाचन, ऊर्जा संचय और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करता है। लेकिन जब इसमें अत्यधिक चर्बी जमा हो जाती है तो यह फैटी लिवर डिजीज में बदल जाता है — जो आगे चलकर लिवर सिरोसिस या लिवर फेलियर जैसी घातक स्थिति पैदा कर सकता है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर भी बना चिंता का कारण
विशेषज्ञ बताते हैं कि फैटी लिवर सिर्फ शराब पीने वालों की बीमारी नहीं है। आजकल नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका कारण है — असंतुलित खानपान, मोटापा और निष्क्रिय दिनचर्या।
अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यह रोग पूरे शरीर के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर देता है और हार्ट डिजीज, डायबिटीज जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ा देता है।
क्या कह रहे हैं डॉक्टर?
डॉक्टरों के अनुसार, जीवनशैली में सुधार और संतुलित आहार इस बीमारी की रोकथाम का सबसे प्रभावी तरीका है।
रोज़ाना हल्का व्यायाम करें और वजन नियंत्रित रखें।
आहार में फलों, हरी सब्जियों, साबुत अनाज और दालों की मात्रा बढ़ाएं।
रिफाइंड शुगर, नमक और ट्रांस फैट से भरपूर चीजों से बचें।
शराब और जंक फूड को पूरी तरह त्यागें।
कॉफी पीना भी हो सकता है फायदेमंद
शोध बताते हैं कि कॉफी का सीमित सेवन फैटी लिवर के खतरे को कम कर सकता है। यह लिवर एंजाइम्स को नियंत्रित करने और सूजन घटाने में मददगार साबित होती है। हालांकि, विशेषज्ञों की सलाह के बिना अधिक मात्रा में सेवन नुकसानदेह हो सकता है।
किन चीजों से बचें
तले हुए भोजन और ट्रांस फैट लिवर में चर्बी बढ़ाते हैं।
मीठे पेय जैसे सोडा, कोल्ड ड्रिंक और डेज़र्ट्स लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं।
जंक फूड में मौजूद सोडियम और प्रिजर्वेटिव्स भी लिवर को कमजोर बनाते हैं।
शराब का सेवन लिवर सिरोसिस का सबसे बड़ा कारण है।
(साभार)
अगर आपको कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर कूल्हों और पैरों के पिछले हिस्से तक तेज दर्द महसूस होता है, तो सावधान हो जाइए। यह आम कमर दर्द नहीं, बल्कि साइटिका (Sciatica) का लक्षण हो सकता है। यह समस्या तब होती है जब शरीर की सबसे लंबी नस — साइटिक नर्व (Sciatic Nerve) — किसी कारणवश दब जाती है या उसमें सूजन आ जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह नस रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से से निकलकर नितंबों और पैरों के पिछले हिस्से से होती हुई पैर के अंगूठे तक जाती है। जब इस नस पर दबाव पड़ता है, तो दर्द, जलन और सुन्नपन जैसी परेशानी पूरे तंत्रिका मार्ग में फैल जाती है।
किसे होता है साइटिका दर्द
यह समस्या अधिकतर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में या लंबे समय तक बैठकर काम करने वालों में पाई जाती है। कई बार स्लिप डिस्क, हड्डी का बढ़ना, या मांसपेशियों में अकड़न जैसी वजहें भी इस दर्द को जन्म देती हैं। दर्द की तीव्रता हल्के से लेकर असहनीय तक हो सकती है, जो बैठने, खड़े होने या यहां तक कि छींकने पर भी बढ़ जाती है।
मुख्य लक्षण
साइटिका दर्द की पहचान इसका फैलाव है — यह पीठ के निचले हिस्से से शुरू होकर नितंबों से होता हुआ पैर के पिछले हिस्से, पिंडली या यहां तक कि पैर की उंगलियों तक पहुंच सकता है। दर्द के साथ सुन्नपन, झुनझुनी और ‘सुई चुभने’ जैसा अनुभव आम है।
कैसा होता है दर्द
यह दर्द आमतौर पर बैठने या आगे झुकने पर बढ़ जाता है, जबकि लेटने पर राहत मिलती है। लंबे समय तक खड़े रहना मुश्किल हो जाता है और कभी-कभी ऐसा भी महसूस होता है कि पैर में ताकत खत्म हो गई है।
क्या करें
अगर दर्द एक सप्ताह से अधिक बना रहे, या पैर में कमजोरी, सुन्नपन या मूत्राशय नियंत्रण में कठिनाई महसूस हो, तो तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट या स्पाइन विशेषज्ञ से संपर्क करें। समय पर इलाज से यह समस्या पूरी तरह ठीक हो सकती है।
चिकित्सक सलाह देते हैं कि नियमित व्यायाम, सही बैठने की मुद्रा और वजन नियंत्रण से साइटिका के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
(साभार)
“सनशाइन विटामिन” शरीर को मज़बूत ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है
भारत जैसे देश में जहां सालभर सूरज चमकता रहता है, वहां विटामिन डी (Vitamin D) की कमी होना कई लोगों को हैरान कर सकता है। लेकिन स्वास्थ्य रिपोर्ट्स बताती हैं कि हमारे देश में भी लाखों लोग इस पोषक तत्व की कमी से जूझ रहे हैं।
विटामिन डी को “सनशाइन विटामिन” कहा जाता है, क्योंकि यह शरीर में तब बनता है जब त्वचा सूरज की यूवीबी (UVB) किरणों के संपर्क में आती है।
धूप से विटामिन डी पाने का सही समय क्या है?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच का समय विटामिन डी लेने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है।
इस दौरान सूर्य की किरणों में मौजूद यूवीबी किरणें सबसे प्रभावशाली होती हैं, जो त्वचा में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया को सक्रिय करती हैं।
बहुत से लोग सोचते हैं कि सुबह-सुबह की हल्की धूप फायदेमंद होती है,
लेकिन वास्तव में दोपहर से पहले वाली तेज धूप ज्यादा असरदार होती है — बस जरूरत से ज्यादा देर तक न बैठें।
कितनी देर और कैसे लें धूप
रोजाना 15 से 30 मिनट धूप में बैठना पर्याप्त है।
कोशिश करें कि आपके चेहरा, हाथ और पैर सीधे धूप के संपर्क में हों।
धूप लेने के तुरंत बाद शरीर को कपड़ों से ढक लें या छाया में चले जाएं।
धूप में बैठते समय ये गलती न करें
धूप में बैठने से पहले सनस्क्रीन का उपयोग न करें।
सनस्क्रीन एक रक्षक परत की तरह काम करता है जो यूवीबी किरणों को रोक देता है, जिससे शरीर में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया 90% तक घट जाती है।
पहले 15-30 मिनट बिना सनस्क्रीन के धूप लें, फिर सनस्क्रीन लगाकर त्वचा की सुरक्षा करें।
त्वचा का रंग भी करता है असर
जिन लोगों की त्वचा का रंग गहरा (डार्क) होता है, उन्हें हल्की त्वचा वाले लोगों की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक समय धूप में रहना पड़ता है ताकि पर्याप्त विटामिन डी बन सके।
अगर धूप नहीं मिल पा रही तो क्या करें?
यदि आप रोजाना धूप में नहीं बैठ पाते, तो आहार से भी विटामिन डी ले सकते हैं।
अपने भोजन में शामिल करें:
अंडे की जर्दी (Egg Yolk)
सैल्मन, टूना जैसी मछलियां (Fatty Fish)
फोर्टिफाइड दूध और अनाज (Fortified Milk & Cereals)
या फिर डॉक्टर की सलाह से विटामिन डी सप्लीमेंट का सेवन करें।
शरीर और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि नींद की कमी न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि कई शारीरिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देती है।
आजकल नींद की समस्या तेजी से बढ़ रही है। पहले यह सिर्फ बुजुर्गों या कामकाजी लोगों में देखी जाती थी, लेकिन अब बच्चों और युवाओं में भी नींद न आने की परेशानी आम हो गई है। मोबाइल, लैपटॉप, देर रात तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल, तनाव और अनियमित जीवनशैली इसके मुख्य कारण हैं। शोध के अनुसार, भारत में हर तीसरा व्यक्ति नींद से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है।
नींद की कमी के दुष्प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पर्याप्त नींद न लेने से प्रतिरोधक क्षमता कमजोर, मानसिक संतुलन बिगड़ता है और क्रॉनिक बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी और मधुमेह का खतरा बढ़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य: नींद पूरी न होने से दिमाग को आराम नहीं मिलता, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ सकते हैं।
हृदय स्वास्थ्य: नींद की कमी स्ट्रेस हार्मोन बढ़ाती है, जिससे दिल पर दबाव पड़ता है और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है।
तकनीकी उपकरणों का असर: मोबाइल और कंप्यूटर की ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन को रोकती है, जो नींद के लिए जरूरी है।
नींद में सुधार के उपाय
सोने-जागने का समय निर्धारित करें
रोज़ाना एक ही समय पर सोएं और उठें। कमरा शांत, अंधेरा और ठंडा रखें।
शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं
नियमित व्यायाम से शरीर थकता है और सोना आसान होता है। ध्यान और रिलैक्सेशन तकनीकें तनाव कम करती हैं।
स्मार्टफोन और स्क्रीन टाइम कम करें
सोने से 1-2 घंटे पहले फोन, लैपटॉप या टीवी का इस्तेमाल बंद करें। आवश्यक होने पर डॉक्टर की सलाह से मेलाटोनिन सप्लीमेंट लिया जा सकता है।
यदि नींद की समस्या मानसिक रोग जैसे अवसाद या एंग्जायटी से जुड़ी हो, तो मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
अच्छी नींद ही है स्वस्थ जीवन की कुंजी।
(साभार)
पेट में गैस होना एक आम समस्या है, जो किसी को भी कभी भी परेशान कर सकती है। यह तब होता है जब पाचन तंत्र में भोजन पचते समय गैस जमा हो जाती है, जिससे पेट फूलना, ऐंठन और बेचैनी जैसी समस्याएं होती हैं।
गैस की समस्या अक्सर तब बढ़ती है जब हम जल्दी-जल्दी खाते हैं, भोजन ठीक से नहीं चबाते, या तैलीय, मसालेदार और गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं। हालांकि, बाजार में इसके लिए कई दवाइयां उपलब्ध हैं, लेकिन हमेशा दवा लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि इनमें साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।
सौभाग्य से, हमारे किचन में कुछ ऐसे प्राकृतिक उपाय मौजूद हैं, जो मिनटों में गैस और पेट की सूजन से राहत दिला सकते हैं।
अजवाइन और काला नमक का असरदार नुस्खा
अजवाइन पेट की गैस दूर करने का सबसे पुराना और प्रभावी उपाय है। इसमें मौजूद ‘थाइमोल’ गैस्ट्रिक स्राव को उत्तेजित करता है।
कैसे करें:
1 चम्मच अजवाइन लें
इसे हल्के गर्म पानी और एक चुटकी काला नमक के साथ खाएं
कुछ ही मिनटों में पेट की ऐंठन और गैस में राहत मिलेगी
जीरा पानी और नींबू का जादू
जीरा पाचन के लिए बेहद फायदेमंद है। नींबू में मौजूद साइट्रिक एसिड पाचन सुधारता है, जबकि जीरा गैस बनने से रोकता है।
कैसे करें:
1 गिलास गुनगुना पानी लें
1 चम्मच जीरा पाउडर और आधा नींबू का रस मिलाएं
इसे पिएं, पेट की सूजन (ब्लोटिंग) और गैस में आराम मिलेगा
हींग और अदरक से तुरंत राहत
हींग एक शक्तिशाली वातनाशक है। अदरक पेट की ऐंठन और गैस कम करने में मदद करता है।
कैसे करें:
एक चुटकी हींग को गुनगुने पानी में घोलकर पीएं
या अदरक का छोटा टुकड़ा चबाएं, या अदरक की चाय पिएं
जीवनशैली में बदलाव से लंबी अवधि की राहत
भोजन धीरे-धीरे और अच्छे से चबाकर खाएं
भोजन के तुरंत बाद लेटने या सोने से बचें
हल्के योगासन, जैसे वज्रासन, नियमित करें
दिनभर में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, यह कब्ज और गैस दोनों से बचाता है
ध्यान दें: यदि इन उपायों के बावजूद पेट में गैस और दर्द बढ़ता है, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
(साभार)
सर्दियों के मौसम में जब तापमान गिरता है, तो सबसे ज्यादा असर हमारे गले और फेफड़ों पर पड़ता है। बार-बार होने वाली खांसी और जुकाम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने का संकेत हैं। दवाइयां अस्थायी राहत देती हैं, लेकिन योगासन शरीर को भीतर से मजबूत और रोग प्रतिरोधक बनाते हैं।
योग न केवल सांस की नलियों को खोलता है, बल्कि शरीर में ऑक्सीजन का संचार बढ़ाकर फेफड़ों की क्षमता भी बढ़ाता है। सर्दियों में यदि आप नियमित रूप से कुछ खास योगासन और प्राणायाम करें, तो खांसी-जुकाम जैसी समस्याओं से स्थायी राहत मिल सकती है।
1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम
यह श्वास अभ्यास सबसे प्रभावी माना जाता है। यह फेफड़ों को शुद्ध करता है और ठंडी हवा से होने वाली जकड़न को कम करता है। नाक बंद होना, साइनस और कफ की समस्या में यह तुरंत राहत देता है।
2. कपालभाति प्राणायाम
कपालभाति फेफड़ों से बलगम निकालता है और श्वसन तंत्र को साफ रखता है। इसके नियमित अभ्यास से फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है और ऑक्सीजन का स्तर भी सुधरता है।
3. भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम से मानसिक शांति मिलती है और सर्दी-खांसी से जुड़ी बेचैनी कम होती है। यह नाक और गले की जकड़न में तुरंत राहत देता है।
4. सेतुबंधासन
सेतुबंधासन फेफड़ों और छाती के क्षेत्र को खोलता है और सांस लेने की प्रक्रिया आसान बनाता है। इसके नियमित अभ्यास से ठंड के मौसम में सांस की समस्या और खांसी में राहत मिलती है।
5. अर्ध मत्स्येन्द्रासन
यह आसन शरीर की ऊर्जा संतुलित करता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। शरीर में गर्मी बढ़ाकर यह संक्रमण से बचाव करता है।
(साभार)
सर्दियों का मौसम न सिर्फ ठंड लाता है बल्कि हड्डियों के दर्द और जकड़न की शिकायत भी बढ़ा देता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और सूर्य की किरणें कम मिलती हैं, हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। ऐसे में योगासन एक प्राकृतिक उपाय हैं, जो हड्डियों को मजबूत, लचीला और सक्रिय रखने में मदद करते हैं।
सर्दियों में हड्डियों के दर्द को कम करने के लिए नियमित योग अभ्यास के साथ धूप से मिलने वाला विटामिन D भी जरूरी है। यह हड्डियों के लिए अत्यंत लाभकारी है और कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है। रोजाना 15 मिनट धूप में योग और 30 मिनट संतुलित योगाभ्यास हड्डियों की सेहत सुधारने और दर्द, कमजोरी या सूजन जैसी समस्याओं से बचने में मदद करते हैं।
सर्दियों में हड्डियों के लिए 5 असरदार योगासन
1. ताड़ासन
पूरा शरीर स्ट्रेच करता है और हड्डियों की बोन डेंसिटी बढ़ाता है। सीधे खड़े होकर हाथ ऊपर उठाएं, एड़ियों पर खड़े होकर शरीर को ऊपर की ओर खींचें।
2. त्रिकोणासन
कंधों, पीठ और पैरों की हड्डियों को मजबूती देता है। यह हिप्स और घुटनों के लिए फायदेमंद है और ऑस्टियोआर्थराइटिस के मरीजों के लिए उपयोगी है।
3. उष्ट्रासन
रीढ़ की हड्डी और गर्दन की लचीलापन बढ़ाता है। जोड़ों में जमा जकड़न को कम करता है। घुटनों के बल बैठें, हाथों को एड़ी की ओर ले जाएं और पेट को आगे की ओर निकालें।
4. वीरभद्रासन
पैरों, घुटनों और कूल्हों को मज़बूत बनाने वाला पावरफुल आसन। धीरे-धीरे अभ्यास करें और दर्द होने पर स्ट्रेच कम करें।
5. सेतुबंधासन
पीठ और कमर की हड्डियों को स्थिरता देता है और मांसपेशियों को टोन करता है। पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ें और कूल्हों को ऊपर उठाएं।
(साभार)
वजन बढ़ना सिर्फ लुक खराब करने की समस्या नहीं है, बल्कि यह कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है। अनियमित दिनचर्या, जंक फूड, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी आजकल के मुख्य कारण हैं। विश्वभर में बड़ी आबादी इस समस्या से जूझ रही है। बढ़े हुए वजन से हृदय रोग और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए समय रहते वजन को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञों का मानना है – रसोई में ही है समाधान
आहार विशेषज्ञ पूजा शर्मा बताती हैं कि घर में मौजूद कुछ मसाले और खाद्य पदार्थ न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि वजन घटाने में भी मदद करते हैं। ये पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं और इनमें मौजूद पोषक तत्व, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट मेटाबॉलिज्म को तेज करते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये साइड इफेक्ट नहीं करते और रोजमर्रा के खाने में आसानी से शामिल किए जा सकते हैं।
काली मिर्च: मेटाबॉलिज्म बढ़ाए, फैट घटाए
हर घर में इस्तेमाल होने वाली काली मिर्च सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाती, बल्कि मेटाबॉलिज्म को तेज कर पाचन सुधारती है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार, यह वजन घटाने में भी सहायक हो सकती है।
दालचीनी: ब्लड शुगर नियंत्रण और फैट बर्न
दालचीनी में मौजूद सिनामाल्डिहाइड मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा देता है और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है। यह इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाकर फैट घटाने में मदद करती है। सुबह गुनगुने पानी में आधा चम्मच दालचीनी मिलाकर पीने से डिटॉक्स का भी असर मिलता है।
इलायची: स्वाद और वजन दोनों में मददगार
इलायची पाचन को सुधारती है और फैट बर्न करने में सहायक होती है। इसे चाय या मसालों के साथ रोजाना इस्तेमाल किया जा सकता है।
हल्दी: प्राकृतिक औषधि
भारतीय मसालों में हल्दी एंटी-बैक्टीरियल, एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है। यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर वजन घटाने में मदद कर सकती है।
जीरा: फैट तेजी से घटाए
जीरा में मौजूद थाइमोल और क्यूमिनल्डिहाइड पाचन में सुधार करते हैं और फैट स्टोरेज रोकते हैं। शोध से पता चला है कि दही में जीरा पाउडर मिलाकर खाने से वजन तेजी से घटता है। सुबह गुनगुने पानी में एक चम्मच जीरा उबालकर पीना भी फायदेमंद है।
ध्यान दें: ये उपाय सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी नई डाइट या उपाय को अपनाने से पहले डॉक्टर या विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी है।
(साभार)
