भारत आज दुनिया भर में जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े निर्माताओं और निर्यातकों में शामिल है। कोविड-19 के प्रारंभिक चरण में इसके उपचार के लिए आपातकालीन मामलों में एचसीक्यू और एज़िथ्रोमाइसिन दवाओं को चिह्नित किया गया था। दुनिया भर में 120 से अधिक देशों में भारत द्वारा इन दवाओं की आपूर्ति की गई और भारत ने दवाओं के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में ख्याति अर्जित की है। वर्तमान में भारत में रसायन और पेट्रो केमिकल्स क्षेत्र के बाजार का कारोबार लगभग 165 बिलियन डॉलर है, जिसकी 2025 तक बढ़कर 300 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।
यह जानकारी केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने FICCI द्वारा आयोजित LEADS 2020 के दौरान ‘रीइमेजनिंग डिस्टेंस’ पर वर्चुअल सत्र को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने कहा, “हमने हाल ही में देश भर में सात मेगा पार्क- तीन बल्क ड्रग पार्क और चार मेडिकल डिवाइस पार्क विकसित करने की योजनाएं शुरू की हैं। नए निर्माता प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के लिए पात्र होंगे। उन्होंने कहा कि भारत में फार्मा क्षेत्र में निवेश करने और विनिर्माण का आधार स्थापित करने का यह बहुत अच्छा समय है।
गौड़ा ने यह भी कहा कि भारत में रसायन और पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के बाजार का कारोबार लगभग 165 बिलियन डॉलर है। वर्ष 2025 तक यह कारोबार बढ़कर 300 बिलियन डॉलर तक होने की संभावना है। यह भारत के रासायनिक क्षेत्र में एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को 2025 तक 5 सफल उद्योगों और 2040 तक अतिरिक्त 14 सफल उद्योगों की आवश्यकता होगी। केवल इन उद्योगों को 65 बिलियन डॉलर के कुल निवेश की आवश्यकता होगी।
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उन्होंने कहा कि विदेशी भागीदारी को आकर्षित करने के लिए, भारत सरकार रासायनिक और पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के लिए नीतियों पर फिर से विचार कर रही है। गौड़ा ने कहा, “हम अपने फार्मास्युटिकल क्षेत्र में बिक्री के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन देने के बारे में विचार कर रहे हैं। हम अपने रासायनिक औद्योगिक क्लस्टर को मजबूत करने के लिए अपनी नीतियों को भी बदल रहे हैं, जिसे हम पीसीपीआईआर और प्लास्टिक पार्क कहते हैं। साथ ही, जहां तक रसायन और पेट्रोकेमिकल क्षेत्र का संबंध है, सरकार की इन सहायक नीतियों से भारत में कारोबार करने के लिए सबसे अच्छे वातावरण तैयार होगा।
रसायन एवं उर्वरक मंत्री ने कहा कि भारत में उर्वरक क्षेत्र भी एक आकर्षक क्षेत्र है। हमारे किसानों द्वारा हर साल उर्वरकों की भारी मांग है। हालांकि, घरेलू उत्पादन खुद उर्वरकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हम यूरिया, और P&K उर्वरकों के बड़े आयातक हैं। उदाहरण के लिए, 2018-19 में, भारत ने 7.5 मिलियन टन यूरिया, 6.6 मिलियन टन डीएपी, 3 मिलियन टन एमओपी और 0.5 मिली टन एनपीके उर्वरक का आयात किया।
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) की सख्त कार्रवाई से एमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे अन्य ई-कॉमर्स पोर्टल्स ने ‘खादी’ ब्रांड नाम के तहत उत्पादों की बिक्री करने वाले अपने 160 से अधिक वेब लिंक को हटा दिया है। KVIC ने एक बयान में कहा कि उसने ने 1,000 से अधिक उन कंपनियों को कानूनी नोटिस भेजा था, जो अपने उत्पादों को बेचने के लिए ‘खादी इंडिया’ ब्रांड नाम का उपयोग कर रही थीं। इस प्रकार वे खादी की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रही थीं और खादी कारीगरों को काम का नुकसान पहुंचा रही थीं। KVIC के उसी नोटिस के बाद ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों ने यह पहल की है।
KVIC ने यह भी कहा है कि उसके द्वारा भेजे गए कानूनी नोटिस के बाद खादी ग्लोबल ने भी अपनी वेबसाइट www.khadiglobalstore.com से उन्हें बाहर कर दिया है और ट्विटर, फेसबुक एवं इंस्टाग्राम पर अपने सोशल मीडिया पेजों को भी हटा दिया है। साथ ही उसने ऐसी सभी सामग्री और उत्पाद को हटाने के लिए 10 दिन का समय मांगा है जो ‘खादी’ ब्रांड नाम का उपयोग कर रहे थे। KVIC की इस कार्रवाई से देश भर में ऐसे कई स्टोर बंद हो गए हैं जो नकली खादी उत्पादों को बेच रहे थे।
ये ई-कॉमर्स पोर्टल खादी मास्क, हर्बल साबुन, शैंपू, सौंदर्य प्रसाधन, हर्बल मेहंदी, जैकेट, कुर्ता और ‘खादी’ ब्रांड नाम का इस्तेमाल करने वाले विभिन्न विक्रेताओं के ऐसे तमाम उत्पादों की बिक्री कर रहे थे। इससे ऑनलाइन खरीदारों के बीच गलत धारणा बनाई जा रही थी कि ये वस्तुएं असली ‘खादी’ उत्पाद थे। KVIC ने यह भी कहा है कि हटाए गए अधिकतर उत्पादों की बिक्री एक आयुष ई-ट्रेडर्स द्वारा की जा रही थी। इस फर्म ने KVIC को पुष्टि की है कि उसने विभिन्न उत्पादों के लिए 140 लिंक हटा दिए हैं जिन्हें ‘वागड़ के खादी उत्पाद’ के तौर पर बेचा जा रहा है।
KVIC ने कहा कि खादी उत्पादों को खरीदने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील के बाद हाल के वर्षों में खादी की लोकप्रियता में कई गुना वृद्धि हुई है और ऐसे में खादी ट्रेडमार्क के उल्लंघन के मामले भी बढ़े हैं। इस अवसर का फायदा उठाने के लिए कई ऑनलाइन विक्रेताओं ने खादी के नाम पर विभिन्न उत्पादों की बिक्री शुरू कर दी। इसके अलावा विभिन्न शहरों में ऐसे सैकड़ों स्टोर खुल गए जो नकली खादी उतापदों की बिक्री कर रहे थे। हाल के महीनों में, खासकर कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इस तरह के फर्जी ऑनलाइन विक्रेताओं में काफी तेजी आई थी। हालांकि, ऑनलाइन ग्राहकों को असली खादी उत्पादों की खरीदारी करने में समर्थ बनाने के लिए KVIC ने www.kviconline.gov.in/khadimask पर 300 उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री के लिए अपना ई-पोर्टल लॉन्च किया है।
KVIC के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि फर्जी खादी उत्पादों की बिक्री करने वालों से कहा है कि वे खादी के नाम पर उत्पादों को बेचना बंद करें अथवा भारी क्षतिपूर्ति के लिए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी। सक्सेना ने कहा, ‘खादी कारीगरों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक तौर पर विभिन्न फर्मों को कानूनी नोटिस जारी किए गए हैं। इस ट्रेडमार्क के उल्लंघन का सीधा असर हमारे कारीगरों की आजीविका पर पड़ता है जो असली दस्तकारी के साथ खादी उत्पाद बना रहे हैं।’
KVIC ने ‘खादी इंडिया’ ट्रेडमार्क अधिकारों की प्रभावी तौर पर निगरानी करने के लिए एक दमदार ऑनलाइन प्रवर्तन योजना तैयार की है। इसके लिए उसने एक कानूनी टीम तैनात की है, जिसके माध्यम से खादी के नाम पर बेचे जाने वाले अनधिकृत उत्पादों की मानव और तकनीकी उपकरणों की मदद से लगातार निगरानी की जा रही है।
KVIC खादी उत्पादों के विनिर्माण में लगे सभी पंजीकृत खादी संस्थानों को भी शिक्षित कर रहा है कि केवल KVIC के साथ उनके पंजीकरण से उन्हें यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वे ‘खादी’ ट्रेडमार्क या ‘खादी इंडिया’ लोगों का उपयोग करने के लिए किसी अन्य को अधिकृत कर सकें। बल्कि इसके लिए कंपनी को KVIC से बकायदा लाइसेंस हासिल करने की आवश्यकता होगी।
पिछले महीने KVIC ने खादी के नाम से अनधिकृत तौर पर सौंदर्य प्रसाधनों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री करने के लिए दो फर्मों- खादी इसेंशियल और खादी ग्लोबल- को कानूनी नोटिस जारी किया था। बयान में कहा गया है कि KVIC ने फैबइंडिया से 500 करोड़ रुपये का हर्जाना भी मांगा है जिसके लिए मामला फिलहाल मुंबई उच्च न्यायालय में लंबित है।
मोदी सरकार ने मुखौटा अर्थात शेल कंपनियों की पहचान कर इन्हें बंद करने के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है। सरकार ने लगातार दो साल या इससे अधिक समय से वित्तीय विवरण (financial statements) दाखिल नहीं करने के आधार पर इन कंपनियों की पहचान की। कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्राविधानों के तहत पिछले तीन वर्षों के दौरान 3,82,581 कंपनियों को बंद कर दिया गया है। यह जानकारी राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने दी।
कंपनी अधिनियम के तहत “शेल कंपनी” को पारिभाषित नहीं किया गया है। यह आम तौर पर उस कंपनी को इंगित करता है, जो सक्रिय कारोबार का संचालन नहीं करती है या कंपनी के पास महत्वपूर्ण परिसंपत्ति नहीं है। इन कंपनियों का इस्तेमाल कुछ मामलों में अवैध उद्देश्य के लिए किया जाता है जैसे कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, अस्पष्ट स्वामित्व, बेनामी संपत्ति आदि। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के मुताबिक शेल कंपनी के मामले की जांच करने के लिए सरकार द्वारा गठित विशेष कार्य बल ने कुछ सिफारिशें की हैं। इसके तहत शेल कंपनियों की पहचान के लिए अलर्ट के रूप में कुछ रेड फ्लैग संकेतकों का उपयोग किया जाता है।
सामान्य भाषा में कहा जाए तो शेल कंपनियां वे कम्पनियाँ हैं जो केवल कागजों पर चलती हैं और पैसे का भौतिक लेनदेन नहीं करती हैं। इन्हें छद्म कम्पनी भी कह सकते हैं। समझा जाता है कि काले धन को सफेद करने के लिए बड़े पैमाने पर शेल कंपनियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा आतंकी गतिविधियों में पैसों के लेनदेन के लिए भी इन कंपनियों का इस्तेमाल होता है।