– नरेन्द्र सहगल
वरिष्ठ स्तंभकार
चिर सनातन अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए कटिबद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संस्थापक डॉ. हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे अज्ञात सेनापति थे, जिन्होंने अपने तथा अपने संगठन के नाम से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में अपना सब कुछ भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया था. बाल्यकाल से लेकर जीवन की अंतिम श्वास तक भारत की स्वतंत्रता के लिए जूझते रहने वाले इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने न तो अपनी आत्मकथा लिखी और न ही इतिहास और समाचार पत्रों में अपना तथा अपनी संस्था का नाम प्रकट करवाने का कोई प्रचलित हथकंडा ही अपनाया.
डॉ. हेडगेवार तो लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, त्रलोक्यनाथ, सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, रासबिहारी बोस, श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की श्रेणी के महापुरुष थे, जिन्हें स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सत्ता पर बैठने वाले शासकों ने पूर्णतया दरकिनार कर स्वतंत्रता संग्राम का पट्टा अपने नाम लिखवा लिया. आजाद हिंद फौज, अभिनव भारत, गदर पार्टी, अनुशीलन समिति, हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना, हिन्दू महासभा, आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी संस्थाओं के योगदान को धत्ता बताकर स्वतंत्रता संग्राम को एक ही नेता और एक ही दल के खाते में जमा कर देना एक राजनीतिक अनैतिकता और ऐतिहासिक अन्याय नहीं तो और क्या है?
उपरोक्त संदर्भ में सबसे अधिक घोर अन्याय डॉ. हेडगेवार के साथ हुआ, जिसने सशस्त्र क्रांति से लेकर सभी अहिंसक आंदोलनों एवं सत्याग्रहों में न केवल अग्रणी भूमिका ही निभाई, अपितु स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय दिशा देने का भरपूर प्रयास भी किया. डॉ. हेडगेवार की इस महत्वपूर्ण पार्श्व भूमिका को स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में समझना वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है. इस ऐतिहासिक सच्चाई से कौन इंकार करेगा कि सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात समस्त भारत में तेज गति से हो रहे हिन्दुत्व के जागरण, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुर्नस्थापन, चातुर्दिक क्रांतिकारी गतिविधियों, भारतीयों की स्वातंत्र्य प्राप्ति के लिए उत्कट इच्छा को कुचलकर उसे दिशा भ्रमित करने के लिए एक कट्टरपंथी ईसाई नेता ए.ओ. ह्यूम ने 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी.
ये प्रारम्भिक कांग्रेस अंग्रेज हुकूमत का सुरक्षा कवच (सेफ्टी वाल्व) था. अतः अंग्रेजों की इसी कुटिल चाल को विफल करने, भारतीयता को विदेशी और विधर्मी षड्यंत्रों से बचाने और स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय सनातन आधार प्रदान करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. यह संघ भारत की सनातन राष्ट्रीय पहचान ‘हिन्दुत्व’ का सुरक्षा कवच था और है. राष्ट्र की सर्वांग स्वतंत्रता एवं सर्वांग सुरक्षा के लिए देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों का शक्तिशाली संगठन.
डॉ. हेडगेवार की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि सैन्य पौरुष, ज्ञान विज्ञान, अतुलनीय समृद्धि, गौरवशाली संस्कृति इत्यादि सब कुछ होते हुए भी हम परतंत्र क्यों हुए? परतंत्रता के कारणों को जाने बिना स्वतंत्रता प्राप्ति के सभी प्रयासों का परिणाम अच्छा नहीं होगा, यही हुआ भी. सदियों पुराने राष्ट्र का दुखित विभाजन और आधी-अधूरी राजनीतिक स्वतंत्रता.
डॉ. हेडगेवार ने तत्कालीन सभी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संस्थाओं एवं आंदोलनों में भागीदारी करने के बाद मंथन में से यह निष्कर्ष निकालकर स्वतंत्रता सेनानियों, नेताओं, संतों महात्माओं सहित सभी भारतवासियों के सामने रखा – ‘‘हमारे समाज और देश का पतन मुस्लिम हमलावरों या अंग्रेजों के कारण नहीं है. अपितु, राष्ट्रीय भावना शिथिल होने पर व्यक्ति और समष्टि के वास्तविक संबंध बिगड़ गये तथा इस प्रकार की असंगठित व्यवस्था के कारण ही एक समय दिग्विजय का डंका दसों दिशाओं में बजाने वाला हिन्दू (भारतीय) समाज सैकड़ों वर्षों से विदेशियों की आसुरिक सत्ता के नीचे पददलित है’’. डॉ. हेडगेवार मानते थे कि भारत के वैभव, पतन, संघर्ष और उत्थान का इतिहास हिन्दुओं के सामाजिक उतार चढ़ाव के साथ जुड़ा हुआ है. अर्थात भारत की परतंत्रता के लिए हिन्दुओं में व्याप्त हो चुका जातिवाद, अंतर्कलह, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मनोवृत्ति, असंगठित व्यवस्था और छुआछूत की भयंकर बीमारी इत्यादि ही देश की पतन अवस्था के लिए जिम्मेदार हैं.
इसलिए देश को स्वतंत्र करने एवं बाद में स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए देश के बहुसंख्यक प्राचीन राष्ट्रीय समाज हिन्दू को संगठित, शक्तिशाली, चरित्रवान, स्वदेशी, स्वाभिमानी बनाना अति आवश्यक है. डॉ. हेडगेवार के इसी चिंतन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन्म दिया. अद्भुत कार्यपद्धति की सर्वोत्तम विशेषता यही है कि उन्होंने हिन्दू संगठन और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के दोनों मुख्य काम एक साथ करने में सफलता प्राप्त की.
डॉ. हेडगेवार द्वारा प्रदत हिन्दुत्व की कल्पना और अवधारणा में सभी भारतवासी शामिल हैं. जो भी भारतवर्ष को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्य भूमि मानता है, वह व्यक्ति हिन्दू ही है. हिन्दुत्व किसी जाति मजहब का परिचायक न होकर भारत की सनातन काल से चली आ रही राष्ट्रीय जीवन व्यवस्था है. देश के भूगोल और संस्कृति की पहचान है हिन्दुत्व. कथित रूप से कहे जाने वाले अल्पसंख्यक समाज इसी राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. इसलिए हिन्दुत्व ही वह आधार है, जिस पर सभी भारतवासियों की एकता सम्भव है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना किसी विशेष मजहब, जाति या दल के विरोध में नहीं हुई. भारत को स्वतंत्र करवाना और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना संघ का एकमात्र लक्ष्य था और आज भी है. संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने बाल्यकाल से ही अंग्रेजी साम्राज्य का विद्रोह शुरू कर दिया था. उनके बचपन की तीन घटनाएं उनके द्वारा भविष्य में स्थापित होने वाले शक्तिशाली संगठन और उसके महान उद्देश्य का शिलान्यास थीं. बाल केशव हेडगेवार द्वारा स्कूल में महारानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर बंटने वाली मिठाई को यह कहकर कूड़ेदान में फैंक दिया गया – ‘‘मैंने अंग्रेजी साम्राज्य को कूड़ेदान में फेंक दिया है, विदेशी राजा के जन्मदिन पर बांटी गई मिठाई को मैं नहीं खा सकता’’. नागपुर के सीताबर्डी किले पर लगे यूनियन जैक (अंग्रेजों का झंडा) के स्थान पर भगवा ध्वज लहराने के लिए घर के एक कमरे में ही अपने बाल सखाओं के साथ सुरंग खोदने का काम शुरु कर देना.
नागपुर के नीलसिटी हाई स्कूल में पढ़ते समय वंदे मातरम गीत पर लगे प्रतिबंध को तोड़कर सभी कक्षाओं में बच्चों द्वारा वंदे मातरम के उद्घोष करवाना, आदि घटनाएं उनके भीतर जन्म ले चुके अंग्रेज विरोध तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रत्येक प्रकार का बलिदान करने की दृढ़ता को दर्शाता है. वंदेमातरम गायन पर लगे प्रतिबंध को तोड़ने की सजा मिली ‘स्कूल से निष्काष्न’. किसी तरह पुणे में जाकर विद्यालय की शिक्षा पूरी की. तत्पश्चात उस समय के राष्ट्रीय नेताओं की योजना तथा व्यवस्थानुसार कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया. उद्देश्य था – उस समय के सबसे बड़े क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ का सदस्य बनकर देश भर के सभी क्रांतिकारियों से संबंध स्थापित कर लेना. वे इस महान कार्य में सफल हुए और 6 वर्ष के बाद डॉक्टरी की डिग्री और सशस्त्र क्रांति का प्रशिक्षण व अनुभव लेकर नागपुर लौट आए. परन्तु डॉक्टरी का व्यवसाय नहीं किया और न ही विवाह किया. अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया.
1915 में प्रथम विश्व युद्ध के बादल मंडराने लगे थे. डॉ. हेडगेवार ने इस अवसर पर पूरे देश में विप्लव करके अंग्रेजों को उखाड़ फैंकने की योजना पर कार्य किया. देश भर में क्रांतिकारियों को तैयार करने, प्रत्येक स्थान पर हथियार भेजने एवं क्रांति का बिगुल बजाने की तैयारी हो गई. परन्तु उस समय के कांग्रेस नेताओं का साथ न मिलने से यह योजना साकार नहीं हो सकी. तो भी देश की स्वतंत्रता के लिए गहन चिंतन और परिश्रम जारी रहा. सभी मार्गों का अनुभव लेने, उनमें भागीदारी करने और उनके संचालन के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे. डॉ. हेडगेवार कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में भी गए, उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस का सह-सचिव का पद भी सौंपा गया. नागपुर में सम्पन्न हुए कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में मुख्य व्यवस्थापकों में भी थे. उन्होंने इस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव भी रखा था जो पारित नहीं हो पाया.
डॉ. हेडगेवार ने कांग्रेस के भीतर रहकर अखंड भारत, सर्वांग स्वतंत्रता और शक्तिशाली हिन्दू संगठन की आवश्यकता का वैचारिक आधार तैयार करने का पूरा प्रयास किया था. वे कांग्रेस के मंचों पर अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र भाषण देने लगे. ऐसे ही एक उग्र भाषण पर डॉ. हेडगेवार को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मई 1921 में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. इसके एकतरफा फैसले में डॉक्टर जी को एक वर्ष के कठोर सश्रम कारावास की सजा दी गई. कारावास में भी पूर्ण स्वतंत्रता का चिंतन चलता रहा. जेल से लौटने के पश्चात भी महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में आयोजित होने वाले सभी सत्याग्रहों एवं आंदोलनों में भाग लेते रहे.
डॉ. हेडगेवार ने विजयदशमी 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना की. उस समय संघ के स्वयंसेवकों ने एक प्रतिज्ञा लेनी होती थी – ‘मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रमाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूं.’ डॉ. हेडगेवार ने घोषणा की – ‘हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है.’ जब कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को सायंकाल 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाने का आदेश दिया. सभी शाखाओं के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश पहनकर नगरों में पथ संचलन निकाले और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़कर भाग लेने की प्रतिज्ञा दोहराई. ध्यान दें कि संघ ऐसी पहली संस्था थी, जिसने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता का उद्देश्य रखा था.
1930 से पहले कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का नाम तक नहीं लिया. यह दल हाथ में कटोरा लेकर अंग्रेजों से आजादी की भीख मांगता रहा. तो भी डॉ. हेडगेवार ने महात्मा गांधी जी के सभी सत्याग्रहों और आंदोलनों में स्वयंसेवकों को भाग लेने की अनुमति दी. गांधी जी के नेतृत्व में आयोजित असहयोग आंदोलन में स्वयं डॉ. हेडगेवार ने 6 हजार से अधिक स्वयंसेवकों के साथ ‘जंगल सत्याग्रह’ में भाग लिया था. उन्हें 9 मास के सश्रम कारावास की सजा हुई थी. इसी प्रकार 1942 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सम्पन्न ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ में संघ के स्वयंसेवकों ने सरसंघचालक श्री गुरुजी के आदेशानुसार भाग लिया था. इतना ही नहीं कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को संघ के कार्यकर्ताओं ने अपने घरों में शरण भी दी थी. उदाहरणार्थ, दिल्ली के उस समय के प्रांत संघचालक हंसराज गुप्त जी के घर में अरुणा आसफ अली और जय प्रकाश नारायण ठहरे थे.
राष्ट्रीय अभिलेखागार में गुप्तचर विभाग की एक रिपोर्ट सुरक्षित रखी हुई है. इस रिपोर्ट में संघ के अनेक कार्यकर्ताओं के नाम भी मिलते हैं, जो १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में भागीदारी करने के कारण विभिन्न स्थानों पर हिरासत में लिए गए और जेलों में सजा भुगती. इन रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि विदर्भ के चिमूर आश्थी नामक स्थान पर संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी कर ली थी. संघ के स्वयंसेवकों ने अंग्रेज पुलिस के अमानवीय अत्याचारों का सामना किया. गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों से पता चलता है कि अपनी सरकार स्थापित करने के बाद सरकारी आदेशों से हुए लाठीचार्ज/गोलीबारी में एक दर्जन से ज्यादा स्वयंसेवक बलिदान हुए थे.
नागपुर के निकट रामटेक में संघ के नगर कार्यवाह रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहब देशपांडे को 1942 “अंग्रेजों भारत छोड़ो” के आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने पर मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी थी. परन्तु बाद में उन्हें इस सजा से मुक्त कर दिया गया. इन्हीं बालासाहब देशपांडे ने बाद में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी.
उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार ने द्वितीय महायुद्ध के मंडराते बादलों को भांप कर देश में एक सशक्त क्रांति करने की योजना पर सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर और त्रलोक्यनाथ चक्रवर्ती के साथ गहन चर्चा की थी. इसी चर्चा में से सेना में नौजवानों की भर्ती, सेना में विद्रोह और आजाद हिंद फौज के गठन का विचार उत्पन्न हुआ था. सारी योजना तैयार हो गई और काम शुरु हो गया. नौजवान योजनाबद्ध फौज में भर्ती हुए और सुभाष चंद्र बोस द्वारा विदेशों में जाकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाल लिया और इधर अभिनव भारत, हिन्दू महासभा, आर्य समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सभी सशस्त्र क्रांतिकारी संगठनों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाने के लिए शक्ति अर्जित करनी प्रारम्भ कर दी.
आखिर वह समय आया जब फौज में विद्रोह हुआ और आजाद हिंद फौज भी इम्फाल तक पहुंच गई. अंग्रेजों को भय लगा, इस भयंकर विकट परिस्थिति से निपटने में अपने को असमर्थ पाकर अंग्रेजों ने अपने पहले फैसले को बदलकर 10 महीने पहले ही 15 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन की घोषणा कर दी. पहले फैसले के अनुसार विभाजन की तिथि 8 जून, 1948 थी. यह देश का और स्वतंत्रता सेनानियों का दुर्भाग्य ही था कि कांग्रेस के नेताओं ने 1200 वर्षों से चले आ रहे स्वतंत्रता संग्राम और लाखों बलिदानी हुतात्माओं के ‘‘अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता’’ के उद्देश्य को ध्वस्त करते हुए देश का विभाजन स्वीकार करके आधी-अधूरी आजादी प्राप्त कर ली. यदि एक वर्ष और ठहर जाते तो स्वतंत्रता भी मिलती और भारत का विभाजन भी न होता.
विभाजन के बाद महात्मा गांधी जी ने एक पत्र लिखकर कांग्रेस के नेताओं को सुझाव दिया था कि अब कांग्रेस को समाप्त करके इसे एक सेवादल में परिवर्तित कर दो. महात्मा गांधी जी की इस इच्छा को ठुकरा दिया गया. उधर, संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने स्वयंसेवकों को तेज गति से अपनी शक्ति बढ़ाने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि ‘डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, उनका उद्देश्य था अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता और सर्वांगीण विकास. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1947 के बाद भी सक्रिय रहा. कश्मीर की सुरक्षा के लिए स्वयंसेवकों ने बलिदान दिया. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्रीनगर में जाकर अपनी कुर्बानी दी. स्वयंसेवकों ने हैदराबाद और गोवा की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह और संघर्ष किया.
यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इन सभी संघर्षों में संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की छत्रछाया में और तिरंगे की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं. उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंतिम उद्देश्य है – परम वैभवशाली अखंड हिन्दू राष्ट्र. परम वैभवशाली अर्थात : सर्वांग स्वतंत्रता, सर्वांग संगठित, सर्वांग विकसित और सर्वांग सुरक्षित राष्ट्र.
- प्रह्लाद सबनानी
वरिष्ठ स्तंभकार
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने घोषणा की है कि वे प्रदेश के 6 जिलों सीतापुर, लखीमपुर, पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर एवं फर्रुखाबाद के 5 तीर्थस्थलों को आपस में जोड़ने हेतु 500 किलोमीटर से भी लम्बा श्री परशुराम तीर्थ सर्किट बनाने जा रहे हैं। ये पांचों तीर्थ स्थल, नैमिष धाम, महर्षि दधीचि स्थल मिश्रिख, गोला गोकर्णनाथ, गोमती उद्गम, पूर्णागिरी मां के मंदिर के बॉर्डर से बाबा नीब करोरी धाम और जलालाबाद परशुराम की जन्मस्थली, हिंदुओं की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं।
इसी प्रकार दक्षिण भारत की शैली में वृंदावन के ‘रंगजी’ मंदिर के आसपास के क्षेत्र का सौंदर्यीकरण कर उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस परियोजना को पूर्ण करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने 16.20 करोड़ रुपये की कार्ययोजना बनाई है। इस दिव्यदेश मंदिर का निर्माण वर्ष 1833 में शुरू हुआ था। भगवान नारायण के लोक को ‘दिव्यदेश’ की संज्ञा दी जाती है। दिव्यदेश की पहचान पांच प्रमुख स्तंभों से होती है। इसमें गरुड़ स्तंभ, गोपुरम, पुष्करणी, पुष्प उद्यान और गोशाला होती है। ऐसे 107 दिव्यदेश भारत में और एक नेपाल में स्थित हैं।
अयोध्या में भी भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जोर शोर से चल रहा है। 5 अगस्त 2020 को शुरु हुए श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य का लगभग एक तिहाई काम सम्पन्न हो चुका है। अब श्रीराम मंदिर के गर्भगृह का निर्माण कार्य शुरू हुआ है। मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने गर्भगृह की पहली शिला रखते हुए कहा कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ‘राष्ट्र मंदिर’ का रूप ले लेगा। 1100 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से बनने वाले इस श्रीराम मंदिर के निर्माण में अभी तक 192 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। श्रीराम जन्मभूमि परिसर से कुछ दूरी पर दक्षिण भारत के द्रविड़ शैली में भव्य श्रीरामलला देवस्थानम मंदिर भी बनाया जा रहा है।
पूर्व में केंद्र सरकार ने भी देश के 12 शहरों को “हृदय” योजना के अंतर्गत भारत के विरासत शहरों के तौर पर विकसित करने की घोषणा की है। ये शहर हैं, अमृतसर, द्वारका, गया, कामाख्या, कांचीपुरम, केदारनाथ, मथुरा, पुरी, वाराणसी, वेल्लांकनी, अमरावती एवं अजमेर। हृदय योजना के अंतर्गत इन शहरों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, ताकि इन शहरों की पुरानी विरासत को पुनर्विकसित कर पुनर्जीवित किया जा सके। इस हेतु देश में 15 धार्मिक सर्किट भी विकसित किये जा रहे हैं। जिनमें शामिल हैं, हिमालय सर्किट, नोर्थ ईस्ट सर्किट, कृष्ण सर्किट, बुद्धिस्ट सर्किट, कोस्टल सर्किट, डेजर्ट सर्किट, ट्राइबल सर्किट, वाइल्ड लाइफ सर्किट, रुरल सर्किट, स्पीरीचुअल सर्किट, रामायण सर्किट, हेरीटेज सर्किट, तीर्थंकर सर्किट एवं सूफी सर्किट। “हृदय” योजना को लागू करने के बाद से केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कई परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इनमें से अधिकतर परियोजनाओं पर काम भी प्रारम्भ हो चुका है। इन सभी योजनाओं का चयन सम्बंधित राज्य सरकारों की राय के आधार पर किया गया है।
इसी प्रकार, पर्यटन मंत्रालय ने “प्रसाद” नामक एक विशेष योजना को प्रारम्भ किया है। जिसके अंतर्गत 15 राज्यों में धार्मिक स्थलों पर 24 परियोजनाओं के माध्यम से बुनियादी ढांचे को विकसित करने के उद्देश्य से पर्यटन मंत्रालय द्वारा वित्त की व्यवस्था की जाती है। “प्रसाद” योजना के अंतर्गत रोड, रेल एवं जलमार्ग के माध्यम से परिवहन की व्यवस्था विकसित की जा रही है। इन चुने हुए धार्मिक स्थलों पर बैंकों के एटीएम का जाल बिछाया गया है। वाहनों के पार्किंग की व्यवस्था, पीने के पानी की व्यवस्था, रेस्ट रूम का निर्माण, वेटिंग रूम का निर्माण, फर्स्ट-एड के अंतर्गत दवाईयों की व्यवस्था, बिजली की व्यवस्था, दूरसंचार के साधनों की व्यवस्था, आदि की जा रही है। इन विभिन्न परियोजनाओं को निजी एवं सरकारी क्षेत्र में, पीपीपी मॉडल के अंतर्गत, संयुक्त रूप से चलाने के प्रयास किये जा रहे है। इस योजना को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भी प्रयास किए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार भारत में धार्मिक स्थलों को विकसित करने में एकाएक इतनी दिलचस्पी क्यों लेने लगीं हैं? इसका उत्तर दरअसल इस तथ्य में छुपा है कि भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोजगार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। देश के पर्यटन उद्योग में लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है। भारत में पर्यटन उद्योग लगभग 23,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय अर्जित कर रहा है। देश में पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष 13 प्रतिशत हिस्सा विदेशी पर्यटन का है। अतः भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के उद्देश्य से केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार धार्मिक स्थलों को विकसित करने हेतु प्रयास कर रही हैं।
पर्यटन उद्योग में कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियों का समावेश रहता है। यथा, अतिथि सत्कार, परिवहन, यात्रा इंतजाम, होटल आदि। इस क्षेत्र में व्यापारियों, शिल्पकारों, दस्तकारों, संगीतकारों, कलाकारों, होटेल, वेटर, कूली, परिवहन एवं टूर आपरेटर आदि को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। उक्त कारणों में चलते हाल ही के समय में भारत में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के चार मंत्रालय – पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, रेल्वे मंत्रालय एवं परिवहन मंत्रालय, आपस में तारतम्य बनाते
हुए मिलकर कार्य कर रहे हैं। इन चारों मंत्रालयों के संयुक्त प्रयासों से देश में धार्मिक यात्राओं को आसान बना दिया गया है। परिवहन मंत्रालय द्वारा विभिन्न तीर्थ स्थलों पर आसानी से पहुंचने हेतु मार्गों को विकसित किया गया है एवं बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया जा रहा है। जिसके चलते देश के नागरिकों द्वारा धार्मिक यात्राएं करने की मात्रा में काफी उच्छाल देखने में आ रहा है।
भारतीय रेल ने कई विशेष सर्किट मार्ग पर विशेष रेलगाड़ियों को चलाने का अभियान भी प्रारम्भ किया है। नवम्बर 2018 से श्री रामायण एक्सप्रेस नामक विशेष रेलगाड़ी प्रारम्भ की गई है। यह रेल भारत एवं श्रीलंका में प्रभु श्रीराम से सम्बंधित महत्वपूर्ण स्थानों के मार्ग के बीच चलायी जा रही है। यह रेल प्रभु श्रीराम के जन्म स्थान अयोध्या से प्रारम्भ होती है एवं रेल के मार्ग में पड़ने वाले प्रभु श्रीराम की श्रद्धा के प्रमुख केंद्रों पर रूकती है। साथ ही, यदि श्रद्धा स्थल रेल्वे मार्ग से कुछ दूरी पर स्थित है तो भारतीय रेल श्रद्धालुओं को उक्त स्थानों पर पहुंचाने की व्यवस्था भी करती है। इस तरह की कई अन्य विशेष रेलगाड़ियां राजकोट, जयपुर एवं मदुरई आदि स्थानों से भी चलाई जा रही हैं।
साथ ही अब वैष्णो देवी मंदिर पर पहुंच मार्ग को भी आसान बना दिया गया है। अब जम्मू-उधमपुर-कटरा रेलवे लाइन भी प्रारम्भ कर दी गई है। अब दिल्ली से कटरा तक रेल सेवा उपलब्ध करा दी गई है। कई रेलगाड़ियां अब सीधे कटरा तक पहुंच रही हैं। इससे वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को बहुत आसानी हो गई है। इसी प्रकार, एक विशेष पर्यटन रेलगाड़ी भारत दर्शन के लिए भी चलायी जा रही है। इस पैकेज टूर में 6 धार्मिक स्थल शामिल किए गए हैं, यथा, बैद्यनाथ, गंगासागर, कोलकत्ता, वाराणसी, प्रयागराज, आदि।
बुद्धिस्ट सर्किट पर भी विशेष रेलगाड़ियां अब चलाई जाने लगी हैं। विशेष पैकेज टूर के अंतर्गत बोद्धगया, नालंदा एवं वाराणसी शहरों के बीच 8 दिन की धार्मिक यात्रा सम्पन कराई जा रही है। भगवान बुद्ध के दर्शनार्थ यात्री विभिन्न देशों यथा जापान, चीन, थाईलैंड एवं श्रीलंका आदि से आते हैं। बुद्धिस्ट सर्किट पर पड़ने वाले अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी विदेशों से आए हुए इन यात्रियों को कराए जाते हैं एवं इनके सुख सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। पूरी सुविधाएं रेल्वे विभाग द्वारा प्रदान की जाती हैं।
गुरुद्वारा सर्किट पर पंज तख़्त एक्स्प्रेस नामक रेलगाड़ी चलायी जा रही है। इसके माध्यम से सिख धर्माविलंबियों को इस सर्किट पर पड़ने वाले गुरुद्वारों की यात्रा बहुत ही सहज तरीके से करायी जा रही है। इनमें शामिल हैं, अमृतसर में श्री अकाल तख़्त, श्री आनन्दपुर साहिब में तख़्त केशगड़, भटिंडा में तख़्त श्री दमदमा साहिब, पटना में तख़्त श्री पटना साहिब एवं नांदेड़ में तख़्त श्री हजूर साहिब।
उत्तराखंड में चार धाम – केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री – को भी बारहों महीने के लिए रोड के माध्यम से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे है। यह एक विशेष सर्किट के तौर पर विकसित किया जा रहा है।
उक्त विभिन्न सर्किट को विकसित करने के पीछे भारत की जड़ें तलाशने के साथ ही देश में धार्मिक पर्यटन को पंख देने की मंशा भी काम कर रही है। योग एवं आयुर्वेद भी हाल ही के समय में विदेशों में काफी लोकप्रिय हो गया है। अतः इसकी खोज के लिए विदेशों से भी कई पर्यटक भारत में धार्मिक पर्यटन करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इससे विदेशी पर्यटन भी देश में तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहा है।
केंद्र सरकार के साथ साथ हम नागरिकों का भी कुछ कर्तव्य है कि देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हम भी कुछ कार्य करें। जैसे प्रत्येक नागरिक, देश में ही, एक वर्ष में कम से कम दो देशी पर्यटन स्थलों का दौरा अवश्य करे। विदेशों से आ रहे पर्यटकों के आदर सत्कार में कोई कमी न रखें ताकि वे अपने देश में जाकर भारत के सत्कार का गुणगान करे। आज करोड़ों की संख्या में भारतीय, विदेशों में रह रहे हैं। यदि प्रत्येक भारतीय यह प्रण करे की प्रतिवर्ष कम से कम 5 विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण हेतु प्रेरणा देगा तो एक अनुमान के अनुसार विदेशी पर्यटकों की संख्या को एक वर्ष के अंदर ही दुगना किया जा सकता है।
अग्निपथ योजना पर बवाल के बीच राहुल ने पीएम मोदी पर कसा तंज..
देश-विदेश: अग्निपथ योजना को लेकर हिंसा की आग 11 राज्यों में फैली चुकी है। यूपी-बिहार व हरियाणा से लेकर तेलंगाना में भी छात्र सड़क पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगहों पर ट्रेनों में आग लगा दी गई है, वहीं रेलवे स्टेशनों पर जमकर तोड़फोड़ की गई है। इस बीच देश के गृहमंत्री व रक्षा मंत्री ने छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है, तो वही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर योजना को लेकर तंज कसा है।
राजनाथ बोले-तैयारी शुरू करें युवा
आपको बता दे कि अग्निपथ योजना को लेकर हो रहे भारी बवाल के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि युवा शांति बनाए रखें और अपनी तैयारी शुरू करें। उनका कहना है कि सेना में भर्ती की प्रक्रिया कुछ ही दिनों में प्रारंभ होने जा रही है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को युवाओं के भविष्य की चिंता करने और उनके प्रति संवेदनशीलता के लिए हृदय से धन्यवाद करता हूं। पिछले दो वर्षों से सेना में भर्ती की प्रक्रिया नहीं होने के कारण बहुत से युवाओं को सेना में भर्ती होने का अवसर नहीं मिल सका था। इसलिए युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखकर सरकार ने अग्निवीरों की भर्ती की आयु सीमा को इस बार 21 वर्ष से बढ़ा कर 23 वर्ष कर दी है। इससे बहुत सारे युवाओं को अग्निवीर बनने की पात्रता प्राप्त हो जाएगी।
अग्निपथ योजना पर बढ़ते बवाल के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बयान भी सामने आया है। उनका कहना हैं कि इस योजना से बड़ी संख्या में युवा लाभान्वित होंगे देश सेवा व अपने उज्ज्वल भविष्य की दिशा में आगे बढ़ेंगे। पिछले दो साल से कोरोना महामारी के कारण सेना में भर्ती प्रक्रिया प्रभावित हुई थी, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अग्निपथ योजना’ में उन युवाओं की चिंता करते हुए पहले वर्ष उम्र सीमा में दो वर्ष की रियायत देकर उसे 21 साल से 23 साल करने का संवेदनशील निर्णय लिया है।
जनता क्या चाहती है, प्रधानमंत्री नहीं समझते- राहुल गांधी..
वही अग्निपथ योजना पर तीसरे दिन बवाल के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर सरकार की आलोचना की। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि “अग्निपथ – नौजवानों ने नकारा, कृषि कानून – किसानों ने नकारा, नोटबंदी – अर्थशास्त्रियों ने नकारा, GST – व्यापारियों ने नकारा।” देश की जनता क्या चाहती है, ये बात प्रधानमंत्री नहीं समझते। क्योंकि,उन्हें अपने ‘मित्रों’ की आवाज़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता।
2030 तक भारत बनेगा ड्रोन हब-पीएम मोदी..
देश-विदेश: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिवसीय ड्रोन महोत्सव 2022 का दिल्ली के प्रगति मैदान में शुक्रवार को उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने प्रदर्शनी का भी निरीक्षण किया। प्रधानमंत्री का कहना हैं कि मैं ड्रोन प्रदर्शनी से प्रभावित हूं। 2030 तक भारत ड्रोन हब बनेगा। यह उत्सव सिर्फ ड्रोन का नहीं, यह नए भारत-नई गवर्नेंस का उत्सव है। ड्रोन टेक्नोलॉजी को लेकर भारत में जो उत्साह देखने को मिल रहा है, वो अद्भुत है। ये जो ऊर्जा नजर आ रही है, वो भारत में ड्रोन सर्विस और ड्रोन आधारित इंडस्ट्री की लंबी छलांग का प्रतिबिंब है। पीएम ने कहा, यह ऊर्जा भारत में रोजगार सृजन के एक उभरते हुए बड़े सेक्टर की संभावनाएं दिखाती है। उनका कहना हैं कि आठ वर्ष पहले यही वो समय था, जब भारत में हमने सुशासन के नए मंत्रों को लागू करने की शुरुआत की थी।
कांग्रेस को झटका- वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने दिया इस्तीफा..
देश-विदेश: कपिल सिब्बल ने चुपचाप कांग्रेस छोड़ने का एलान कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने बुधवार को घोषणा की कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के कुछ ही मिनटों बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले आज, सिब्बल ने राज्यसभा नामांकन दाखिल करने से पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की। मैंने 16 मई को कांग्रेस पार्टी से अपना इस्तीफा दे दिया था, “उन्होंने लखनऊ में सपा प्रमुख की उपस्थिति में राज्यसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के बाद कहा। मैंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है। मैं हमेशा देश में एक स्वतंत्र आवाज बनना चाहता हूं। एक स्वतंत्र आवाज बनना महत्वपूर्ण है।
विपक्ष में रहते हुए हम एक गठबंधन बनाना चाहते हैं ताकि हम मोदी सरकार का विरोध कर सकें। सिब्बल के नामांकन के बाद मीडिया से बात करते हुए सपा प्रमुख का कहना हैं कि ”आज कपिल सिब्बल ने नामांकन दाखिल किया। सिब्बल सपा के समर्थन से राजयसभा जा रहे है और भी दो लोग जा सकते है। कपिल सिब्बल वरिष्ठ वकील हैं. संसद में अच्छी तरह से राय रखते हैं। हमें उम्मीद है कि वह सपा के साथ-साथ खुद दोनों की राय पेश करेंगे।। विशेष रूप से, सिब्बल ने धोखाधड़ी के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान का प्रतिनिधित्व किया था।
जापान से लौटते ही काम में जुटे पीएम मोदी, बुलाई कैबिनेट बैठक..
देश-विदेश: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीन दिवसीय जापान यात्रा से वापस लौट चुके हैं। वह आज सुबह ही दिल्ली पहुंचे हैं, भारत लौटते ही अपने काम में जुट गए। प्रधानमंत्री ने सुबह ही कैबिनेट बैठक बुला ली। जानकारी के अनुसार पीएम मोदी सभी मंत्रियों के साथ कैबिनेट बैठक कर रहे हैं। इस दौरान सभी मंत्री मौजूद हैं। बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान यात्रा के दौरान करीब 24 बैठकें की। मंगलवार को भी मोदी 11 घंटे के अंदर करीब 12 कार्यक्रमों में शामिल हुए। वह 22 मई की रात आठ बजे जापान के लिए रवाना हुए थे। पीएम ने डेढ़ घंटे तक विमान में अधिकारियों के साथ बैठक की। 23 मई की सुबह साढ़े सात बजे वह टोक्यो पहुंचे थे। 40 मिनट बाद यानी सुबह 8ः30 बजे से नौ कार्यक्रम में शामिल हुए। 23 मई को कुल 12 घंटे तक पीएम बैठक व अन्य कार्यक्रमों में शामिल हुए।
यूक्रेन-रूस हमले के बाद आज पहली बार मिलेंगे पांच देशों के विदेश मंत्री..
देश-विदेश: ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक गुरुवार यानि आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होने जा रही है। रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की यह पहली बैठक है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर गुरुवार को चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के अपने समकक्षों के साथ ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की एक आभासी बैठक में शामिल होंगे। यह बैठक अगले महीने होने वाले नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले हो रही है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिनका कहना हैं कि जयशंकर के अलावा दक्षिण अफ्रीका की अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं सहयोग मंत्री नलेदी पंडोर, ब्राजीली विदेश मंत्री कार्लोस फ्रांका और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी बैठक में हिस्सा लेंगे। इसकी अध्यक्षता चीन के स्टेट काउंसलर एवं विदेश मंत्री वांग यी करेंगे।
वेनबिन ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि बैठक के दौरान ब्रिक्स विदेश मंत्री उभरते बाजारों और विकासशील देशों के अपने समकक्षों के साथ संवाद करेंगे। हालांकि उन्होंने ‘ब्रिक्स प्लस’ वार्ता में भाग लेने वाले देशों के नामों का खुलासा नहीं किया। चीन इस साल ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की अध्यक्षता कर रहा है। ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक को लेकर चीन की अपेक्षाओं के बारे में, वांग वेनबिन का कहना हैं कि बैठक एकता का स्पष्ट संदेश देगी और पांच सदस्यीय समूह के वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी करेगी।
कांग्रेस को लगा बड़ा झटका, हार्दिक पटेल ने पार्टी से दिया इस्तीफा..
देश-विदेश: कांग्रेस पार्टी को गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ही एक बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। हार्टिक पटेल ने इस्तीफे की जानकारी अपने ट्विटर हैंडल पर दी। उन्होंने लिखा, “आज मैं हिम्मत करके कांग्रेस पार्टी के पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का स्वागत मेरा हर साथी और गुजरात की जनता करेगी। मैं मानता हूं कि मेरे इस कदम के बाद मैं भविष्य में गुजरात के लिए सच में सकारात्मक रूप से कार्य कर पाऊँगा।
पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अपना इस्तीफा सौंपा। उन्होंने पत्र में लिखा कि अनेक प्रयासों के बाद भी कांग्रेस पार्टी द्वारा देशहित एवं समाज हित के बिल्कुल विपरीत कार्य करने के कारण मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं। उन्होंने आगे लिखा, देश के युवा एक सक्षम और मजबूत नेतृत्व चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी सिर्फ विरोध की राजनीति तक सीमित रह गई है। जबकि, देश के लोगों को विरोध नहीं, ऐसा विकल्प चाहिए जो भविष्य के बारे में सोचता हो।
अब दुनिया देखेगी भारत की समुद्री ताकत..
राजनाथ सिंह आज मुंबई में करेंगे दो स्वदेशी युद्धपोतों की लॉन्चिंग..
देश-विदेश: आज मुंबई के मझगांव डॉकयार्ड में दो स्वदेशी युद्धपोत लॉन्च किए जाएंगे और इस दौरान खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वहां मौजूद रहेंगे। बता दे कि स्वदेशी युद्धपोत निर्माण के क्षेत्र में भारत के लिए आज एक ऐतिहासिक दिन है। आपको बता दे कि भारतीय वायुसेना युद्धपोत आईएनएस सूरत (यार्ड 12707) और आईएनएस उदयगिरी (यार्ड 12652) के जरिए पूरी दुनिया को अपनी समुद्री ताकत दिखाएगी। दोनों ही युद्धपोतों की डिजाइन नौसेना के नेवल डिजाइन निदेशालय ने तैयार किया है।
फ्रंटलाइन युद्धपोत ‘सूरत’ (प्रोजेक्ट 15बी डिस्ट्रॉयर) और ‘उदयगिरी’ (प्रोजेक्ट 17ए फ्रिगेट) अगली पीढ़ी के स्टील्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक हैं। आईएनएस सूरत प्रोजेक्ट 15बी का चौथा युद्धपोत और प्रोजेक्ट 15ए यानि कोलकता-क्लास डेस्ट्रोयर युद्धपोत के मुकाबले एक बड़ा मेकओवर है। युद्धपोत सूरत को ब्लॉक निर्माण पद्धति का उपयोग करके बनाया गया है और इसका नाम गुजरात की वाणिज्यिक-राजधानी सूरत के नाम पर रखा गया है। सूरत को मुंबई के बाद पश्चिमी भारत का दूसरा सबसे बड़ा कॉमर्शियिल-हब माना जाता है।
युद्धपोत ‘उदयगिरी’ की खूबियां..
युद्धपोत ‘उदयगिरी’ (फ्रिगेट), जिसका नाम आंध्र प्रदेश में पर्वत श्रृंखलाओं के नाम पर रखा गया है, प्रोजेक्ट 17ए फ्रिगेट्स के तहत तीसरा जहाज है। यह उन्नत हथियारों, सेंसर और प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम से लैस है। यह युद्धपोत उदयगिरी के पिछले संस्करण का दूसरा रूप है जिसने 18 फरवरी 1976 से 24 अगस्त 2007 तक तीन दशकों की अपनी सेवा में कई चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन देखे।
वर्तमान में 50 से अधिक जहाज और पनडुब्बियां बन रहीं..
रक्षा मंत्रालय का कहना हैं कि वर्तमान में 50 से अधिक जहाज और पनडुब्बियां बन रही हैं, और भारतीय नौसेना में लगभग 150 जहाज और पनडुब्बियां पहले से ही शामिल हैं। आत्मनिर्भरता पर बोलते हुए, भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने दिसंबर 2021 में कहा था कि पिछले सात वर्षों में, नौसेना में शामिल सभी 28 जहाजों और पनडुब्बियों का निर्माण भारत द्वारा किया गया।
- प्रवीण गुगनानी
सलाहकार राजभाषा
विदेश मंत्रालय
विश्व के प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ, राजनयिक व ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि “यदि अपने देश की दीर्घकालिक समस्याओं को सुलझाना है तो, इतिहास पढ़िए, इतिहास पढ़िए, इतिहास पढ़िए; इतिहास में ही राज्य चलाने के सारे रहस्य छिपे हैं।” भारत के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि देश चलाना है, सुशासन करना है तो देश में जनसंख्या असंतुल का इतिहास पढ़ो। हमें भारत की सबसे बड़ी व संवेदनशील समस्या जनसंख्या असंतुलन को समझना है तो हमें इतिहास अवश्य पढ़ना होगा – विशेषतः भारत में तुष्टिकरण का इतिहास।
यदि हम भारत में जनसंख्या की चर्चा करें तो जनसंख्या असंतुलन की चर्चा आवश्यक हो जाती है और जनसंख्या असंतुलन की चर्चा करें तो भारतीय राजनीति के सबसे घृणित शब्द तुष्टिकरण की चर्चा आवश्यक हो जाती है। यहां आवश्यक हो जाता है कि हम इस तुष्टिकरण शब्द को भली भांति समझ लेवें। तुष्टिकरण के विषय में बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था कि – ”कुछ वर्ग मौके का फायदा लेकर अपने स्वार्थ के लिए अवैधानिक मार्ग अपनाते हैं। शासन इस संबंध में उनकी सहायता करता है। इसे ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण कहते हैं।”
बाबासाहेब अम्बेडकर तुष्टिकरण को सदैव राष्ट्रविरोधी मानते थे। कांग्रेसजनित यह एक शब्द तुष्टिकरण ही वह एकमात्र नीति है जिसके कारण देश में जनसंख्या असंतुलन की विकट समस्या उत्पन्न हुई है। इस बार विजयादशमी उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक जी ने जो कहा उसका एक प्रमख बिंदु देश में बढ़ता जनसंख्या असंतुलन है।
इस वर्ष विजयदशमी के अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत में जनसंख्या असंतुलन के प्रति अपनी चिंताओं को मुखर रूप से रखा। विभिन्न समुदायों में जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर, अनवरत विदेशी घुसपैठ व मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है, यह कहते हुए संघ ने अपनी चिंता को देश के समक्ष प्रकट किया है। 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयाइयों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है।
भागवत जी ने संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की ओर से सरकार से स्पष्ट आग्रह किया कि; देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए। सीमा पार से हो रही अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाए। राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (National Register of Citizens) का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए।
इसके अतिरिक्त, देश के सीमावर्ती प्रदेशों तथा असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बांग्लादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उपमन्यु हजारिका आयोग के प्रतिवेदन एवं समय-समय पर आये न्यायिक निर्णयों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की गयी है। यह भी एक सत्य है कि अवैध घुसपैठिए राज्य के नागरिकों के अधिकार हड़प रहे है तथा इन राज्यों के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ बन सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तनावों का कारण बन रहे हैं।
पूर्वोत्तर के राज्यों में तीव्रता से उपजाया जा रहा जनसांख्यिकीय असंतुलन तो और भी गंभीर रूप ले चुका है। अरुणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न मत-पंथों को मानने वाले जहां 1951 में 99.21 प्रतिशत थे, वे 2001 में 81.3 प्रतिशत व 2011 में 67 प्रतिशत ही रह गये हैं। केवल एक दशक में ही अरूणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार मणिपुर की जनसंख्या में इनका अनुपात 1951 में जहां 80 प्रतिशत से अधिक था, वह 2011 की जनगणना में 50 प्रतिशत ही रह गया है। उपरोक्त उदाहरण तथा देश के अनेक जिलों में ईसाईयों की अस्वाभाविक वृद्धि दर कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा एक संगठित एवं लक्ष्यबद्ध मतांतरण की गतिविधि का ही संकेत देती है। प्रबोधन में आग्रह किया गया है कि, संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सभी स्वयंसेवकों सहित देशवासियों का आव्हान करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जन-जागरण द्वारा देश को जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचाने के सभी विधि सम्मत प्रयास करें।