अग्निपथ योजना पर बवाल के बीच राहुल ने पीएम मोदी पर कसा तंज..
देश-विदेश: अग्निपथ योजना को लेकर हिंसा की आग 11 राज्यों में फैली चुकी है। यूपी-बिहार व हरियाणा से लेकर तेलंगाना में भी छात्र सड़क पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगहों पर ट्रेनों में आग लगा दी गई है, वहीं रेलवे स्टेशनों पर जमकर तोड़फोड़ की गई है। इस बीच देश के गृहमंत्री व रक्षा मंत्री ने छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है, तो वही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर योजना को लेकर तंज कसा है।
राजनाथ बोले-तैयारी शुरू करें युवा
आपको बता दे कि अग्निपथ योजना को लेकर हो रहे भारी बवाल के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि युवा शांति बनाए रखें और अपनी तैयारी शुरू करें। उनका कहना है कि सेना में भर्ती की प्रक्रिया कुछ ही दिनों में प्रारंभ होने जा रही है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को युवाओं के भविष्य की चिंता करने और उनके प्रति संवेदनशीलता के लिए हृदय से धन्यवाद करता हूं। पिछले दो वर्षों से सेना में भर्ती की प्रक्रिया नहीं होने के कारण बहुत से युवाओं को सेना में भर्ती होने का अवसर नहीं मिल सका था। इसलिए युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखकर सरकार ने अग्निवीरों की भर्ती की आयु सीमा को इस बार 21 वर्ष से बढ़ा कर 23 वर्ष कर दी है। इससे बहुत सारे युवाओं को अग्निवीर बनने की पात्रता प्राप्त हो जाएगी।
अग्निपथ योजना पर बढ़ते बवाल के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बयान भी सामने आया है। उनका कहना हैं कि इस योजना से बड़ी संख्या में युवा लाभान्वित होंगे देश सेवा व अपने उज्ज्वल भविष्य की दिशा में आगे बढ़ेंगे। पिछले दो साल से कोरोना महामारी के कारण सेना में भर्ती प्रक्रिया प्रभावित हुई थी, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अग्निपथ योजना’ में उन युवाओं की चिंता करते हुए पहले वर्ष उम्र सीमा में दो वर्ष की रियायत देकर उसे 21 साल से 23 साल करने का संवेदनशील निर्णय लिया है।
जनता क्या चाहती है, प्रधानमंत्री नहीं समझते- राहुल गांधी..
वही अग्निपथ योजना पर तीसरे दिन बवाल के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर सरकार की आलोचना की। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि “अग्निपथ – नौजवानों ने नकारा, कृषि कानून – किसानों ने नकारा, नोटबंदी – अर्थशास्त्रियों ने नकारा, GST – व्यापारियों ने नकारा।” देश की जनता क्या चाहती है, ये बात प्रधानमंत्री नहीं समझते। क्योंकि,उन्हें अपने ‘मित्रों’ की आवाज़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता।
जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वैचारिक प्रभाव देश भर में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुत्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित संगठन के बारे में जानने समझने की ललक लोगों के बीच बढ़ती जा रही है। ‘आरएसएस’ या ‘संघ’ के नाम से अधिक पहचाने जाने वाले इस ‘परिवार’ के विभिन्न विषयों पर विचार तथा इसकी कार्यप्रणाली से आमजन परिचित होना चाहते हैं।
संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’, इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने का सफल प्रयास है। एक सामाजिक – सांस्कृतिक संगठन होते हुए भी संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रवाद की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी यह पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा आदि समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज के लिए कार्य न कर रहे हों। इसके अनुसार संघ व्यक्ति निर्माण के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। जो भी करता है, स्वयंसेवक करता है। अपनी शाखाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण करना संघ का मुख्य कार्य है। इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों में गए स्वयंसेवक संघ के कार्य को मूर्त रूप देते हैं।
लेखक का पूरा जीवन संघ के साथ ही बीता है। अतः पुस्तक का बड़ा भाग उनके स्वयं के अनुभवों पर आधारित है। उन्होंने बहुत ही व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से संघ के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को पाठकों के समक्ष रखा है इसलिए यह कहना उचित ही है कि यह पुस्तक उनके लिए है जो व्यवहार रूप में संघ को समझना चाहते हैं, उसके माध्यम से जिसने संघ को जिया है। पुस्तक संघ के बारे में फैलाई गई कई भ्रामक धारणाओं को स्पष्ट रूप से दूर करती है। साथ ही अनेक विवादित विषयों पर संघ के विचार सामने लाती है।
हिन्दू राष्ट्र को लेकर संघ का स्पष्ट मानना है कि यह संकल्पना किसी भी पंथ, संप्रदाय या रिलीजन’ की विरोधी नहीं है। हिन्दू राष्ट्र में सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान और स्वतंत्रता स्वयं सम्मिलित है। इसी प्रकार संघ जाति व्यवस्था को सनातन परंपरा का अंग नहीं मानता। इसलिए जन्म के आधार पर कोई भी छोटा या बड़ा नहीं। हमारे वेद भी यही कहते हैं। संघ का मानना है कि हमारी वर्ण व्यवस्था गुण कर्म पर आधारित थी, ना कि जन्म के आधार पर। वहीं, आरक्षण पर भी संघ ने दो टूक कह दिया है कि जब तक समाज में भेदभाव विद्यमान है। संघ आरक्षण का समर्थन करता रहेगा।
संघ मानता है कि भारत की सामाजिक, राजनीतिक अवधारणा का बीज हिंदू राष्ट्र में है और इस कारण भारत में इस्लाम, ईसाई तथा अन्य संप्रदायों के अनुयायियों को अपनी पूजा पद्धतियों के अनुपालन की पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन हिंदुत्व भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा कवच है। जब जब हिंदुत्व सशक्त होता है, देश की एकता और अखंडता अभेद्य और अपराजेय बन जाती है। संघ का दृढ़ विश्वास है कि आने वाले समय में भारत से विदेशों को किया जाने वाला सबसे बड़ा सांस्कृतिक निर्यात हिंदुत्व होगा। संघ मानता है कि भारत उन सभी का है, जिनका यहां जन्म हुआ और यहां रहते हैं, फिर चाहे वे किसी भी मत पंथ या संप्रदाय के हों।
भारत के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में संघ अनुभव करता है कि यहां बहुत से राजनीतिक दल होंगे, किंतु वे सब प्राचीन भारतीय परंपरा एवं श्रद्धालुओं का सम्मान करेंगे। आधारभूत मूल्य तथा हिन्दू सांस्कृतिक परंपराओं के संबंध में एकमत होंगे, मतभेद तो होंगे लेकिन ये केवल देश के विकास के प्रारूपों के संदर्भ में ही होंगे। वहीं, आरएसएस के भविष्य के बारे में पुस्तक कहती है कि जब भारतीय समाज समग्र रूप में संघ के गुणों से युक्त हो जाएगा, तब संघ तथा समाज की दूरी समाप्त हो जाएगी। उस समय संघ संपूर्ण भारतीय समाज के साथ एकाकार हो जाएगा और एक स्वतंत्र संगठन के रूप में इसके अस्तित्व की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
संघ देश के समक्ष चुनौतियों को लेकर भी अत्यंत गंभीर है। इनमें इस्लामी आतंकवाद, नक्सलवाद, अवैध घुसपैठ, हिंदुओं की घटती जनसंख्या, हिंदुओं का धर्मांतरण जैसे विषय शामिल हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह पुस्तक, जो संघ से परिचित हैं उनकी समझ को और अच्छा बनाएगी। जो अपरिचित हैं, उन्हें संघ से परिचित कराएगी। इसके अतिरिक्त संघ के विरोधियों को भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। जिससे वह पूर्वाग्रह और मिथ्या धारणाओं से युक्त चश्मे से मुक्त होकर इस राष्ट्रवादी संगठन को समझ सकेंगे। फिर भी इतने विशाल और बहुआयामी संगठन को मात्र किसी पुस्तक के आधार पर नहीं समझा जा सकता। संघ को समझना है तो संघ में आना पड़ेगा। इसलिए संघ का आह्वान है कि संघ से जुड़कर प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर रहते हुए तथा अपना कार्य करते हुए भी अपनी रुचि के अनुसार समाज हित का कार्य कर सकता है।
पुस्तक – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र
लेखक – सुनील आंबेकर
प्रकाशक – प्रभात पेपरबैक्स, 4/19 आसफ अली रोड , नई दिल्ली, पिन कोड – 110 002.
मूल्य – 250 रुपये
किसी भी खेल प्रेमी के लिए वह क्षण बड़ा ही गौरवपूर्ण होता है जब जन-गण-मन की धुन पर तिरंगा लहराता है। केंद्र सरकार की ‘खेलो इंडिया अभियान’ के बाद से भारतीय समाज में विभिन्न खेलों के प्रति लोकप्रियता बढ़ी है। यह बात मध्य प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग के निदेशक पवन कुमार जैन ने कही। अवसर था, भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के लेखक डॉ. आशीष द्विवेदी की पुस्तक ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ के विमोचन का। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की।
मुख्य अतिथि पवन जैन ने खेल पत्रकारिता और उनकी चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टिंग में खेल को समग्र दृष्टि से देखने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि कोरोना संकट के बाद खेल हमारे समाज को नया मार्ग दिखा सकते हैं। उन्होंने मीडिया प्राध्यापक डॉ. आशीष द्विवेदी की पुस्तक ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ को सामाजिक मनोभाव को सकारात्मक मार्गदर्शन करने वाला शोधपूर्ण ग्रंथ बताया। यह एक ऐसी पुस्तक है जो ना सिर्फ खेलों के बारे में हमें बताती है बल्कि यह पुस्तक हमें खेलों तक लेकर जाती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो.केजी सुरेश ने बताया कि एक खेल प्रेमी ही बेहतर खेल प्रशासक या खेल पत्रकार हो सकता है। खेल के विविध आयामों को समाहित करते हुए यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी। उन्होंने कहा कि जीवन में खेल का बहुत महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी खेल से जुड़ना चाहिए। खेल जीवन में अनुशासन लाता है।
पुस्तक की रचना के संदर्भ में लेखक डॉ.आशीष द्विवेदी ने कहा कि खेल पत्रकारिता के अध्यापन के दौरान ध्यान आया था कि इस विषय पर समग्रता से एक पुस्तक की आवश्यकता है। खेल पत्रकारिता में असीम संभावनाएं हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार शिव कुमार विवेक ने पुस्तक के कंटेंट की चर्चा करते हुए कहा कि यह पुस्तक खेल पत्रकारिता के सभी आयाम को समेटती है। उन्होंने कहा कि अब हिंदी समाचार पत्रों में भी खेल के लिए विशेष पन्ने निर्धारित होने लगे हैं, इससे यह परिलक्षित होता है कि खेलों के प्रति वातावरण बेहतर हुआ है।
खेल पत्रकार एवं विशिष्ट अतिथि श्रुति तोमर भदौरिया ने विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि खेलों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। खेलों में महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टि और बाजारवादी सोच को उन्होंने चुनौती माना।
कार्यक्रम का संचालन लोकेन्द्र सिंह ने किया और आभार प्रदर्शन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया।
समीक्षक – जयराम शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार
पोंगा पंडितों और धर्म गुरुओं के पतन और पाखंड पर लिखना बड़ा आसान है। हिंदू धर्म व संस्कृति पर अमर्यादित टिप्पणियां करना सेकुलरियों के लिए एक फैशन सा है। लेकिन मजाल क्या कि दकियानूस मुल्लाओं और फरेबी मौलानाओं पर कोई लिखने की हिम्मत दिखाए..। पर विजय मनोहर तिवारी अलग ही माटी के बने पत्रकार हैं..उन्होंने ‘ उफ ये मौलाना’ किताब लिखकर उन सबको एक मुश्त जवाब दिया है, बिल्कुल हिसाब किताब बराबर। यह किताब दरअसल में एक डायरी है जो 52 चैप्टर्स और 430 पृष्ठों के साथ इस कोरोना काल में नुमाया हुई है।
विजय तिवारी जैसा पत्रकार सब कुछ ठोक बजाकर लिखता है ताकि शक-सुबे की कोई गुंजाइश ही न बचे। 2005 में जब नीति-नियंता इंदिरा सागर बांध के गेट बंदकर सो रहे थे तब विजय जागते हुए डूबते हरसूद की संवेदनाओं को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे..। और वे तब-तक व्याकुल रहे जब-तक कि पूरे ब्योरे को एक किताब की शक्ल में नहीं उतार पाए..’ हरसूद 30 जून’।
ऐसी ही कुछ ऐसी ही अकुलाहट लाकडाउन के दरमियान झेली होगी। जब हम सब कमरों में कैद टीवी स्क्रीन पर रहस्यमयी मौलाना शाद उनके मरकज में जमा तब्लीगी जमात के फरेबी ‘फरिश्तों’ का कौतुक देख रहे थे.. या रामायण, महाभारत के सीरियल देखकर राम-कृष्ण के प्रति श्रद्धाभाव में विभोर हो रहे थे तब विजय मनोहर पेन उठाकर डायरी में उन वाकयातों को अल्फाज दे रहे थे..जो अगली सदी में इतिहास का सबसे बदनुमा अध्याय बनकर याद किए जाने वाले हैं।
कोरोना एक वैश्विक आपदा थी लेकिन मौलानाओं ने उसे अपनी फितरत फैलाने के अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया। इस वैज्ञानिक युग में दुनिया की इतनी बड़ी जमात को अंधी खोह में ले जाने का जो काम किया गया जो इस पुस्तक के जरिए वह हमारे सामने हैं वह बेहद ही हैरतअंगेज, डरावना है।
चलिए कोरोना या कोविड-19 को लेकर जो तकरीरे आईं उससे हम पेश-ए नजर हो लें फिर आगे की बात करें।
- एक मौलाना साहब ने फरमाया – लंदन के मौलाना अब्दुल रहीम लिंबादा, जो हदीस के ग्याता हैं, उन्हें कोरोना वायरस सपने में आया। वायरस ने उनसे कहा- मैं हिंदुस्तान जाकर वहां के लोगों को तबाह और बर्बाद कर दूँगा, जहां मुसलमानों पर जुल्म हो रहे हैं।
- दूसरे मौलाना को इटली में ऐसे सपने आए। चीन में आयशा नाम की महिला से ज्यादती की गई। उसने अल्लाह को दुखड़ा सुनाया। अल्लाह का अजाब तीनों गुनहगारों पर कोरोना के रूप में नगद बरपा।
- हरी झिल्लीदार टोपी पहने एक बुजुर्ग अलीम ने समझाइश दी कि ये जो कमली वाले के रोजे पर कबूतर है, अल्ला-अल्ला करता है..इसे पकाकर खा जाओ..करोना भाग जाएगा..।
दर्जन भर से ज्यादा ऐसी ही तकरीरे हैं..जो यूट्यूब, सोशल मीडिया और प्रिंट माध्यमों से आईं..ये सब किताबकार के संदर्भ में सप्रमाण सुरक्षित हैं।
खैर चलो यह मान लेते हैं कि ये सभी के सब दकियानूस कठमुल्ले थे। लेकिन इनके बारे में क्या कहिएगा जो बेंगलुरु में इनफोसिस में इंजीनियर हैं जनाब मुजीब मोहम्मद। ये फरमा रहे थे कि बाहर आओ, हाथ मिलाओ, भीड़ में घुसो और ज्यादा से ज्यादा कोरोना वायरस फैलाओ। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी तो और भी गजब के निकले, उन्होंने एक ट्वीट में नरेन्द्र मोदी को कोरोना हो जाने की शुभेच्छा व्यक्त कर दी।
विजय मनोहर ने देश में रह रहे मुसलमानों की एक कंट्रास्ट झांकी पेश की है, कि ये लोग किस तरह गुरबत में रहते हैं और मुल्ला-मौलाना कैसे इन्हें दोजख में ही बने रहने का बंदोबस्त करते हैं।
किताब में एक बात स्पष्ट उभरकर आई है कि मुस्लिम प्रभुवर्ग कितना दकियानूस, खुदगर्ज है जबकि आम गरीब मुसलमानों में समाज के प्रति दर्द का रिश्ता अभी भी कायम है। किताब में ये बातें तफ्तील से दर्ज हैं कि एक मुसलमान किस तरह अपने पड़ोसी हिंदू की अर्थी पर कंधा देकर रामनाम सत्य का उच्चार करते हुए चल रहा है। या बेबस होकर अपने घर लौट रहे मजदूरों की भूख की चिंता कर रहा है।
विजय मनोहर की चिंता में आम भारतीय मुसलमान नहीं अपितु सलीम-जावेद, असगर अली इंजीनियर,और मुनव्वर राणा जैसे लोग हैं। सलीम-जावेद की जोड़ी ने नब्बे के दशक तक फिल्मी जेहाद चलाया। सुल्तान अहमद जैसा फिल्मकार मुल्लाओं की प्राणप्रतिष्ठा और हिंदू धर्मगुरुओं का मजाक उड़ाने के लिए जाना जाता था। नब्बे के दशक तक या जिन फिल्मों के संवाद इस जोड़ी ने लिखे हैं प्रायः हर दूसरी फिल्मों में आपको अजान की आवाजें सुनाई देंगी। और ऐसे लोगों के कुचक्र में मनमोहन देसाई, यश चौपड़ा जैसे फिल्मकार भी थे जिन्होंने बिल्ला न.786 को अपनी फिल्मों में सफलता का शुभंकर माना।
आलोक श्रीवास्तव जैसे विख्यात कवि की रचना ‘माँ’ की डंके की चोट पर चोरी करने वाले जनाब मुनव्वर राणा कहते हैं कि..इस देश में 35 करोड़ इंसान हैं और 100 करोड़ जानवर। यानी कि इस देश में जो मुसलमान नहीं हैं वे जानवर हैं।
यहां आमिर खान जैसे अभिनेता फिल्मकार हैं तो मरहूम इरफान खान जैसे भी। पीके फिल्म में हिंदू मठ-मंदिरों के अंधविश्वास की धुर्रियाँ उड़ाने वाले आमिर खान की नजर में ये मौलाना नहीं हैं जो मानते हैं कि काफिरों को मारने के लिए यह कोरोना वायरस अल्लाह की नेमत है। दूसरे इरफान खान हैं जो अपने दकियानूस परिवार में पत्नी सुतपा सिकदर के पारंपरिक व धार्मिक मूल्यों की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे। इरफान कहते हैं कि कि सिनेमा सरस्वती और लक्ष्मी का संगम है।
किताब में विजय जी एक और मार्के की बात लिखते हैं- यहां गंगा और जमुना समानांतर संस्कृति नहीं है। गंगा भी देश की है और जमुना भी..जो एक दूसरे में समाकर गौरवशाली संस्कृति रचती हैं..वह संस्कृति सिर्फ और सिर्फ गंगा की है।
हर मुद्दे पर गंगा-जमुनी संस्कृति की दुहाई देने वालों के लिए यह खुला सबक है। किताब में रवीश कुमार पांडेय उर्फ रवीश कुमार तथा दिलीप मंडल जैसे पत्रकारों की भी खबर ली गई है जो आँकड़ों के मकड़जाल को परोसकर कोरोना को भी मोदी की साजिश के रूप में देखते हैं। और वो मंडल जी जो मनुस्मृति पर जूती रखकर देश के राष्ट्रवादी मुसलमान संस्कृतिकर्मियों को गोदी मिडिया का हिस्सा कहते हैं।
चार सौ तीस पन्नों की इस किताब में काफी कुछ है जो बंद और सड़े दिमाग के दरवाजे का ताला खोलता है। सबसे बड़ी बात यह कि..एक-एक वाकए का संदर्भ भी आखिरी पन्नों पर दिया है, ताकि सनद रहे वक्त पर काम आए। कोरोना के कड़वे सबक किताब का निष्कर्ष है..और नसीहत भी..मुसलमानों के रहनुमाओं के लिए और सियासतदानों के लिए भी..।
और अंत में..अलाउद्दीन खिलजी कालीन जिस निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर ‘गंगा-जमुनी’ तहजीब वाले सेकुलरिए चादर चढ़ाने और सजदा करने जाते हैं..उस औलिया साहब की सख्शियत पर इतिहासकार बरनी के हवाले से लिखते हैं- हिंदुस्तान में इस्लामी परचम को जो भी फतह हासिल हुई, वे सबकी सब शेखुल इस्लाम निजामुद्दीन गयासपुरी की दुआओं का सबूत है। इसकी वजह यह है कि वे अल्लाह के चहेते और करीबी हैं। उनकी ही दुआओं से इस्लामी परचम बुलंदी पर है। ‘उफ ये मौलाना’ उन्हीं को समर्पित। (विश्व संवाद केंद्र सेवा)
पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध है। इसे खरीदने के लिए यहां क्लिक करें।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को वर्चुअल माध्यम से आयोजित समारोह में वातायन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही हिंदी फिल्मों के चर्चित गीतकार, कवि व लेखक मनोज मुंतशिर को वातायन अंतरराष्ट्रीय कविता-सम्मान से पुरस्कृत किया गया। नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक और प्रसिद्ध लेखक डॉ अमीष त्रिपाठी इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि थे। वातायन की अध्यक्ष मीरा कौशिक, केंद्रीय हिंदी परिषद आगरा के उपाध्यक्ष कवि अनिल शर्मा जोशी और वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति महेश्वरी भी इस समारोह में उपस्थित थे।
पुरस्कार प्रदान करने के लिए वातायन ब्रिटेन का आभार व्यक्त करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि विविधता में एकता भारत की पहचान है और हमारी संस्कृति में भाषाओं का विशेष महत्व है। संस्कृति और भाषा एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। जैसे-जैसे भाषा मजबूत होती है, वैसे-वैसे ही संस्कृति और सभ्यता को विस्तार मिलता है। इसी तरह, लेखन से देश की सभ्यता और संस्कृति भी मजबूत होती है।

शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि साहित्य हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, शैक्षणिक विरासत है जो देश को अदृश्य रूप से मजबूत करता है। उन्होंने दुनिया में भारतीय ज्ञान परंपरा की मान्यता के लिए प्रत्येक उस व्यक्ति को श्रेय दिया जो साहित्य से जुड़ा है, चाहे वह लेखक, कवि, संगीतकार या चित्रकार है।
उन्होंने कहा कि वातायन सम्मान न केवल उनके लेखन और साहित्य, बल्कि भारतीय मूल्यों और परंपराओं को भी मान्यता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि उनका लेखन उनके अनुभवों, संघर्षों, जीवन मूल्यों और आदर्शों से संबंधित है। शिक्षा मंत्री ने कहा कि उनके लेखन ने हमेशा गरीबों और शोषितों को अभिव्यक्ति प्रदान की है और उनके सभी गीत भारतीय जीवन मूल्यों, भारतीयता और राष्ट्रीयता के लिए समर्पित हैं।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना पर आधारित नई शिक्षा नीति -2020 ने भाषा और संस्कृति को केंद्र में रखा है और बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने का प्रयास किया गया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस नीति के माध्यम से युवा अपने करियर में अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचने में सक्षम होंगे।
शिक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि वातायन, मातृभाषा हिंदी के वैश्विक प्रचार और प्रसार के लिए प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश और दुनिया के हिंदी लेखकों और कवियों को सम्मानित करते हुए, उन्हें अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान किया है, जिसके माध्यम से देश की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को मान्यता प्राप्त होती है।
वातायन पुरस्कार कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची में से एक है और शिक्षा मंत्री को लेखन, कविता और अन्य साहित्यिक कार्यों के लिए सम्मानित किया गया है। डॉ निशंक को इससे पहले साहित्य और प्रशासन के क्षेत्र में कई पुरस्कार मिले हैं, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा साहित्य गौरव सम्मान, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा भारत गौरव सम्मान, दुबई सरकार द्वारा गुड गवर्नेंस अवार्ड, मॉरीशस द्वारा ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन द्वारा उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में यूक्रेन में सम्मानित किया गया। उन्हें नेपाल के हिमाल गौरव सम्मान से भी सुशोभित किया गया है।
डॉ. दीपशिखा जोशी
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं रोज़ खाऊंगा चिकन-मटन
और पशु-बलि पर उनको भी गरियाऊंगा
मुझे चाहिए अपने घर पर सुंदर, लकड़ी के फ़र्नीचर,
काट-कटा कर जंगल बड़े-बड़े घर-बिल्डिंग बनवाऊंगा
मगर रोज़ शाम-सबेरे गो-ग्रीन का नारा मैं ही लगाऊंगा,
हरे-भरे पेड़ों के संग भी डीपी अपनी सजाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं निकल शाम-अंधेरे में, चोरों वाले रास्ते से,
उन सुनसान सड़कों पर, दबे-पांव,
गंदगी से भरा एक थैला रोज़ ही छोड़कर आऊंगा
और सोते-जागते हर पल देश की स्वच्छता पर,
अभियान पर, सरकार पर चिल्लाऊंगा
जब भी देखूं मनचलों को ट्रेन,बस, या भीड़ में,
करते परेशान एक लड़की को,
फेर मुंह, अनजान बन, अपने रास्ते नए बनाऊंगा
पर हां साथ ही घर लौटकर,
अपनी बेटी के अकेले कहीं
आने-जाने पर पाबंदियां ज़रूर लगाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मुझे चाहिए मेरे घर एक बेटा कैसे भी,
पर मैं साथ ही ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी लगाऊंगा
मैंने देकर बख्शीश उनको,
लेकर दीवाली की मिठाई,
अपना-उनका काम तो पक्का ही किया,
अब साथ ही करप्शन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा,
भाषण दे, अपना धर्म भी निभाऊंगा
हो सके तो इस मुद्दे पर सरकारें भी गिराऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
मैं करूंगा नफ़रत उनसे, दिल से, दिमाग़ से,
मगर मर जाऊंगा,
ज़ुबान पर यदि धर्म, जाति-पाति का नाम भी कभी लाऊंगा
ना मैं अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करने में हूं समर्थ,
ना करता कोशिश हूं,
पर याद रखना मैंने भी किया विरोध हमेशा उनको वृद्धाश्रम भेजने का
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा.
मैं करता हूं विरोध दहेज प्रथा का सदा-सर्वदा,
मगर बेटी के जन्म से ही,
अपना पेट काट-काट, पाई-पाई जुटाऊंगा
ख़ूब पढ़ाऊंगा बेटी को, और लड़ना भी सिखाऊंगा
पर शादी के समय, पगड़ी रख पैरों पर उनके,
हाथ जोड़, 2-4 आंसू भी बहाऊंगा
मैं मानव हूं,
अपने हिस्से की मानवता सदा निभाऊंगा
डॉ. दीपशिखा जोशी मूल रूप से उत्तराखंड के चंपावत ज़िले से हैं। DSB कैंपस, कुमाऊं यूनिवर्सिटी, नैनीताल से केमिस्ट्री में पीएचडी व NET क्वालिफाइड हैं। पढ़ने-पढ़ाने का काम करती हैं।
मुकेश नौटियाल
मां ने पंखों से रेत हटाकर गड्ढा बनाया। फिर गड्ढे में अंडे दे दिए। एक दो नहीं, पूरे पचास-पचपन अंडे। अंडे देकर मां समंदर में चली गई और फिर कभी नहीं लौटी। उसका काम समाप्त हो गया था।
हर सुबह सूरज मुस्तैदी से आता, धरती पर ताप बरसाता और सांझ ढलने पर समंदर के बीच कहीं उतर जाता। तट पर रेत तपती रही ,अंडों को सेती रही और एक दिन अचानक रेत में हलचल होने लगी। कुछ ही देर बाद एक नन्हे कछुए ने रेत से बाहर गर्दन निकाली ,आश्चर्य से इधर-उधर नजरें दौड़ाई और फुर्ती से अपने मांसल पंखुड़े घसीटता हुआ समंदर की ओर भागा। फिर दूसरे, तीसरे, चौथे और दर्जनभर कछुओं ने ऐसा ही किया। पहली बार उन्होंने धरती देखी थी ,पहली बार आकाश। वहां ना उनकी मां थी, ना पिता। पता नहीं किसने उनको बताया कि जीना है तो समंदर की ओर दौड़ो। वे सभी समंदर की ओर दौड़ने लगे। जहां मां ने अंडे दिए थे वहां से समंदर कोई सौ मीटर दूर रहा होगा पर सौ मीटर का फासला भी किसी नवजात कछुए के लिए कम तो नहीं। तब तो हरगिज़ नहीं जब बीत्ते भर के इस सफर में कई ख़तरे मौजूद हों। नन्हे कछुओं की समंदर के तट पर दौड़ क्या शुरू हुई ,आकाश में चीलें मंडराने लगीं। शिकारियों का जत्था आ पहुंचा। शिशु कच्छप उनका निवाला बनने लगे। चीलों को देखकर केकड़े भी सक्रिय हो गए। समंदर छोड़ तट पर आकर वह नन्हें कछुओं को अपने पंजों में दबोचने लगे। समंदर का शांत तट कोलाहल और हलचल से भर गया। शिकारी भूख से बिलबिला रहे थे, शिकार बचाव के लिए छटपटा रहे थे।
आखिरकार युद्ध समाप्त हुआ। कई शिशु कच्छप समंदर तक पहुंचे। जितने समंदर तक पहुंचे उतने ही चीलों और केकड़ों के शिकार हुए। लेकिन एक कछुआ था जो न समंदर तक पहुंचा, न ही किसी का शिकार बना। वह सबसे कमजोर कछुआ था। जब मां ने अंडे दिए थे तभी एक अंडा बाकियों से अलग, गड्ढे के अकेले कोने पर जा लगा था। ढेर में तो अंडों को एक दूसरे का ताप मिलता रहा इसलिए सभी एक साथ परिपक्व हुए। अकेला अंडा आखिर में चटका और उसके अंदर से निकला शिशु कच्छप बाकियों से दुर्बल निकला। जब उसने रेत से बाहर अपनी गर्दन निकाली तो समंदर के तट पर कोहराम मचा था। उसने अपने सहोदरों को चीलों की चोंचों में छटपटाते देखा, केकड़ों की गिरफ्त में जाते देखा। वह समझ गया कि केवल दौड़ना काफी नहीं है। कब दौड़ना है – यह ज्यादा जरूरी है। जब माहौल एकदम शांत हो गया तब उसने अपने शरीर को रेत से बाहर निकाला और धीरे-धीरे समंदर की ओर बढ़ने लगा। समंदर के करीब पहुंचने के बावजूद वह दूर था। कमजोरी के चलते वह हांफने लगा। जब लगा कि दम निकल जाएगा तब वह सुस्ताने बैठ गया। कुछ देर आराम करने के बाद उसने दोबारा डग भरने शुरू किए और अंततः वह समंदर के गीले तट तक पहुंच गया। सूखी रेत पर दौड़ना, फिसलना, लुढ़कना आसान था लेकिन गीली रेत पर चलना खासा मुश्किल होता है। उसने प्रतीक्षा करना बेहतर समझा। वह जहां था वहीं ठहर गया ।
सूरज का लाल गोला समंदर में उतरने लगा। ढलती सांझ के साथ लहरें विकराल होने लगी। ज्वार बढ़ने के साथ लहरों का विस्तार भी बढ़ने लगा और अंततः उसकी प्रतीक्षा सफल हुई। एक लहर आई और उसको बहा कर समंदर में ले गई ।
यह तीन सौ साल पुरानी बात है। समंदर के तट पर जो बूढ़ा कछुआ धूप सेंकता दिखाई दे रहा है यह वही कछुआ है जो उस दिन आखिर में समंदर तक पहुंचा था।
डा. वंदना गांधी समाजशास्त्र की शिक्षिका हैं। समाज में चल रही गतिविधियों और उनके पीछे के एजेंडे को वह बहुत बारीक से समझती हैं। जब उन्होंने प्रेम की आड़ में चल रहे ‘लव जिहाद’ की नब्ज़ टटोलने की कोशिश की तो उनका सामना ऐसे सच से हुआ, जो बहुत डरावना है। अपने कहानी संग्रह ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ में उन्होंने 15 सच्ची कहानियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि कैसे प्रेम का मुखौटा लगा कर हिन्दू युवतियों को निशाना बनाया जा रहा है। उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। इनमें छह कहानियां मध्यप्रदेश की हैं और शेष भारत के विभिन्न हिस्सों से ली गई हैं। लेखिका का कहना है कि वह कई परिवारों और पीड़ित युवतियों से प्रत्यक्ष मिली हैं और उनके दर्द को समझने का प्रयास किया है।
धरती पर सबसे अधिक पवित्र कुछ है तो वह प्रेम है। प्रेम के सभी रूप मनुष्य के जीवन को सुंदर बनाते हैं। यह शाश्वत सत्य है कि जिसको किसी प्रकार जीतना संभव न हो, उसे प्रेम जीता जा सकता है। प्रेम में एक-दूसरे पर अटूट भरोसा हो जाता है। इस अटूट भरोसे के कारण ही कई बार प्रेम के मुखौटे के पीछे छिपी घिनौनी सूरत को हम देख नहीं पाते हैं। जब यह मुखौटा हटता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कहानीकार डॉ. वंदना गांधी की पुस्तक निश्चित ही बहुत देर होने से पहले ऐसे घिनौने चेहरों से मुखौटे नौंचने का कार्य करेगी। उनकी यह पुस्तक हिन्दू युवतियों को सावधान करती है कि उन्हें जरा एक बार अच्छे से पड़ताल करनी चाहिए कि वह जिसे प्रेम समझ रही हैं, वह वास्तव में प्रेम ही है या कुछ और।
डॉ. वंदना गांधी की यह कहानियां बताती हैं कि यह सिर्फ प्रेम में धोखे की दास्तां मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को छिन्न करने वाला पूरा एक षड्यंत्र है। अब यह कोई छिपा हुआ षड्यंत्र नहीं है कि हिन्दू युवतियों का धर्मांतरण करने के लिए सुनियोजित ढंग से ‘लव जिहाद’ शुरू किया गया है। तथाकथित प्रगतिशील लोग इसे भाजपा और आरएसएस का राजनीतिक एजेंडा कह कर खारिज कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा या आरएसएस से भी पहले ‘लव जिहाद’ शब्द का उपयोग वर्ष 2009 में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने किया था। केरल हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने मुस्लिम लड़के और हिन्दू युवती की शादी के मामले की सुनवाई करते समय कहा था कि देश में लव जिहाद चल रहा है। बाद में, केरल से चर्चा में आए लव जिहाद के मामले देश के कई हिस्सों से भी सामने आए, जो स्पष्टतौर पर न्यायमूर्ति केटी शंकरन के कहे को सत्य सिद्ध करते हैं। यह पुस्तक भी लव जिहाद की ऐसी कहानियां का संग्रह है। पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि यह किसी का राजनीतिक एजेंडा हो या न हो, किंतु यह एक सामाजिक संकट जरूर है। इस पर राजनीतिक बहस कम और सामाजिक दृष्टि से विमर्श अधिक होना चाहिए।
मुस्लिम समाज भी कोरी कल्पना कह कर ‘लव जिहाद’ नकार नहीं सकता। यथार्थ में क्या है? यह भी मुस्लिम समाज को देखना होगा। घटनाएं और मुस्लिम समाज का व्यवहार तो यही बयां करता है कि मुस्लिम समाज का कट्टरपंथी धड़ा ‘लव जिहाद’ की अवधारणा पर काम तो कर रहा है। वरना क्या कारण है कि मुस्लिम युवक से विवाह करने वाली प्रत्येक लड़की को इस्लाम कबूल करना पड़ता है? मुस्लिम लड़का क्यों नहीं हिन्दू धर्म अपनाता? यह कैसा प्रेम है कि हिन्दू लड़की को ही अपने धर्म का त्याग करना पड़ता है? हिन्दू लड़की के सामने इस्लाम अपनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोडऩा, लव जिहाद नहीं तो क्या है? यह तो स्पष्टतौर पर धर्मांतरण का तरीका है। ज्यादातर मामलों में यह भी देखने में आता है कि युवक अपनी मजहबी पहचान छिपा कर हिन्दू लड़की से मुलाकात बढ़ाता है। झूठ की बुनियाद पर बनाया गया संबंध प्रेम कतई नहीं हो सकता।
पुस्तक ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ निश्चित तौर पर अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल होगी। एक षड्यंत्र के विरुद्ध जागरूकता लाने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। डॉ. गांधी कहती हैं कि लव जिहाद की खौफनाक हकीकत सामने लाकर उन्हें बहुत संतोष है। यह किताब कॉलेज छात्राओं के लिए गीता साबित होगी। हर युवती को इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए। अर्चना प्रकाशन को साधुवाद कि उसने ऐसे विषय पर पुस्तक प्रकाशित करने का साहस दिखाया, जिस पर दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति हो रही है। इस संबंध में अर्चना प्रकाशन के ट्रस्टी ओमप्रकाश गुप्ता कहते हैं कि लव जेहाद की सच्ची घटनाओं पर देश में यह पहली किताब है। इस किताब में उन युवतियों की पीड़ा को उजागर किया गया है, जो गलत कदम उठाने के बाद अब पछता रही हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में विमोचित इस कृति ने पर्याप्त चर्चा प्राप्त की है।
पुस्तक : एक मुखौटा ऐसा भी (लव जिहाद पर केंद्रित कहानी संग्रह)
लेखक : डॉ. वंदना गांधी
मूल्य : 80 रुपये (पेपरबैक)
पृष्ठ : 86
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन,
17, दीनदयाल परिसर, ई-2, महावीर नगर, भोपाल
दूरभाष – 0755-2420551
समीक्षक – लोकेन्द्र सिंह, स्वतंत्र टिप्पणीकार (विसंके)
अलग जो भीड़ से हट कर जगह अपनी बनाते हैं
सितारों की तरह से वो जहां में जगमगाते हैं।
सफ़र की मुश्किलों का दौर होता है बड़ा प्यारा
मगर क़ायर सदा आधे सफ़र से लौट जाते हैं।
अगर आ जाएं ऐसे लोग तो तहज़ीब से मिलना
हथेली पर कहाँ सब लोग ही सरसों उगाते हैं।
जिन्हें फूलों के जैसे रखते हैं हम हर मुसीबत में
हमारी राह में अक्सर वही काँटे बिछाते हैं।
न उठ जाए कहीं इस कशमकश में राज़ से पर्दा
कभी वो आज़माते हैं कभी हम आज़माते हैं।
- बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)