दुनिया भर में तेजी से बढ़ते डायबिटीज के मामलों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। भारत में स्थिति और भी गंभीर है, जहां हर साल मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यही कारण है कि विशेषज्ञ अब देश को ‘डायबिटीज कैपिटल’ तक कहने लगे हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज के साथ जी रहे हैं, और आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आधुनिक जीवनशैली की गड़बड़ियां—लंबे समय तक बैठे रहना, कम शारीरिक गतिविधि, जंक फूड, तनाव और अनियमित खानपान—इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं। लगातार बढ़ा हुआ ब्लड शुगर शरीर के हृदय, नसों, आंखों और किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
इसी बढ़ते खतरे के बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञ डायबिटीज मरीजों में किडनी रोगों को लेकर खासतौर पर सचेत कर रहे हैं। हाई ब्लड शुगर लंबे समय तक बना रहे, तो यह किडनी की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर उन्हें कमजोर कर देता है। इस स्थिति को डायबिटिक नेफ्रोपैथी कहा जाता है।
14 नवंबर को हर साल मनाया जाने वाला वर्ल्ड डायबिटीज डे इसी जागरूकता को बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। अमर उजाला से बातचीत में वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. वसीम गौहरी बताते हैं कि किडनी रोगों के करीब एक-तिहाई मामले डायबिटीज से जुड़े होते हैं। खून में बढ़ा हुआ शुगर लेवल धीरे-धीरे किडनी को नुकसान पहुंचाता है और समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो मरीज डायलिसिस तक पहुंच सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर में 30-40% डायबिटीज मरीजों में किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी पाई जाती है। डायबिटीज के मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या भी ज्यादा होती है, और यह दोनों मिलकर किडनी के लिए और खतरनाक साबित होते हैं। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन का कहना है कि ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर का नियंत्रण किडनी को बचाने का सबसे प्रभावी उपाय है।
किन लोगों में खतरा ज्यादा?
– लंबे समय से डायबिटीज से पीड़ित मरीज
– हाई बीपी वाले लोग
– धूम्रपान करने वाले
– अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त लोग
– परिवार में किडनी रोग या डायबिटीज का इतिहास
रिपोर्ट्स दर्शाती हैं कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में डायबिटिक किडनी डिजीज का जोखिम अधिक पाया जाता है।
कैसे बचें? विशेषज्ञों की सलाह:
– ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर नियमित रूप से नियंत्रित रखें
– नमक कम करें, जंक फूड से बचें
– धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएँ
– रोजाना कम से कम 30 मिनट तेज वॉक करें
– हरी सब्जियां, साबुत अनाज और फाइबर वाले फल आहार में शामिल करें
– साल में एक बार किडनी फंक्शन टेस्ट जरूर करवाएं
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बदलती जीवनशैली, अनियमित खानपान और तनाव भरी दिनचर्या के कारण हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही। बच्चों और किशोरों में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों में युवाओं और किशोरों में उच्च रक्तचाप के मामले लगभग दोगुने हो चुके हैं। साल 2000 में जहां यह दर 3.2 प्रतिशत थी, वहीं 2020 तक यह 6 प्रतिशत से अधिक पहुंच गई।
मोटापे से ग्रस्त हर पांचवां बच्चा हाई बीपी का शिकार
एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनियाभर में मोटापे से पीड़ित लगभग हर पांचवां बच्चा या किशोर उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है। स्वस्थ वजन वाले बच्चों की तुलना में ये खतरा लगभग आठ गुना अधिक पाया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि मोटापा न केवल ब्लड प्रेशर बढ़ाता है, बल्कि हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी डैमेज जैसी गंभीर स्थितियों की संभावना भी बढ़ा देता है।
अध्ययन में खुलासा: हर दस में से एक बच्चा ‘प्री-हाइपरटेंशन’ की स्थिति में
शोध में यह भी सामने आया कि लगभग 8 प्रतिशत बच्चे और किशोर ‘प्री-हाइपरटेंशन’ की स्थिति में हैं, जो आगे चलकर गंभीर हाई बीपी में बदल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते स्क्रीनिंग और रोकथाम से इस खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है।
विशेषज्ञ बोले — खतरे की घंटी है बढ़ता ट्रेंड, समय रहते बदलें आदतें
अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर इगोर रुडान का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में युवा आबादी में हाई ब्लड प्रेशर के मामलों का दोगुना होना चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “अच्छी बात यह है कि अगर शुरुआती उम्र में ही नियमित जांच, संतुलित आहार और व्यायाम की आदत डाली जाए, तो भविष्य की कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।”
कम उम्र से ही रखें ध्यान: आहार, व्यायाम और तनाव पर नियंत्रण जरूरी
साल 2000 से 2020 के बीच, लड़कों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले 3.4% से बढ़कर 6.5% और लड़कियों में 3% से बढ़कर लगभग 6% तक पहुंच गए हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चों का ब्लड प्रेशर समय-समय पर जांचें, नमक का सेवन घटाएं, फलों-सब्जियों को आहार का हिस्सा बनाएं, तनाव कम करें और पर्याप्त नींद लें।
हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है — “कम उम्र से अपनाई गई हेल्दी लाइफस्टाइल ही आगे चलकर दिल और दिमाग दोनों को स्वस्थ रख सकती है।”
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चेहरे की सफाई हर महिला की स्किन केयर रूटीन का सबसे अहम हिस्सा होता है। अक्सर जल्दबाजी में या थकान के कारण कई महिलाएं वेट वाइप्स से चेहरा पोंछना आसान विकल्प समझ लेती हैं। ये त्वरित रूप से गंदगी, तेल और मेकअप तो हटा देते हैं, लेकिन इनका अधिक उपयोग आपकी त्वचा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, वेट वाइप्स में मौजूद अल्कोहल, सुगंध और केमिकल्स चेहरे की नमी को छीन लेते हैं और स्किन की नैचुरल प्रोटेक्टिव लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे त्वचा रूखी, संवेदनशील और समय से पहले बूढ़ी दिखने लगती है।
वेट वाइप्स से होने वाले नुकसान
1. त्वचा की नमी घटती है
वेट वाइप्स में मौजूद केमिकल्स स्किन के नेचुरल ऑयल को खत्म कर देते हैं। लगातार इस्तेमाल से चेहरा इतना ड्राय हो जाता है कि मॉइश्चराइज़र भी असर नहीं दिखा पाता।
2. एलर्जी और इरिटेशन का खतरा
चेहरे की त्वचा बेहद नाजुक होती है। बार-बार वेट वाइप्स के प्रयोग से इचिंग, रैशेज और एलर्जी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। कई बार यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ती है।
3. सेंसिटिव स्किन वालों के लिए ज्यादा हानिकारक
अगर आपकी स्किन पहले से ही सेंसिटिव है, तो वेट वाइप्स का इस्तेमाल पिंपल्स, रेडनेस और जलन को बढ़ा सकता है। इससे चेहरा बेजान और खुरदुरा लगने लगता है।
4. जल्दी दिखने लगते हैं एजिंग साइन
वेट वाइप्स का बार-बार प्रयोग त्वचा की इलास्टिसिटी को कमजोर करता है। इससे झुर्रियां और फाइन लाइन्स जैसी एजिंग साइन जल्दी दिखाई देने लगते हैं।
क्या हैं सुरक्षित विकल्प?
स्किन को हेल्दी रखने के लिए वेट वाइप्स की जगह माइल्ड फोमिंग क्लींजर या माइस्लर वाटर का इस्तेमाल करें। ये चेहरे की सफाई तो करते हैं, लेकिन नमी बरकरार रखते हैं। इसके अलावा, एलोवेरा जेल या नारियल तेल से मेकअप हटाना भी एक सुरक्षित और नेचुरल विकल्प है। चेहरा धोने के बाद हमेशा मॉइश्चराइज़र लगाएं, ताकि त्वचा मुलायम और ग्लोइंग बनी रहे।
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14 नवंबर को दुनिया भर में वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में सिर्फ डायबिटीज ही नहीं, बल्कि “प्री-डायबिटीज” भी बेहद तेजी से बढ़ रहा है। अनुमान है कि देश में लाखों लोग इस स्टेज में पहुंच चुके हैं, लेकिन आधे से ज्यादा लोगों को यह एहसास भी नहीं कि उनका ब्लड शुगर सामान्य से ऊपर जा चुका है और उनका शरीर इंसुलिन के प्रति धीरे-धीरे रेजिस्टेंट होता जा रहा है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है —
प्री-डायबिटीज वह स्थिति है जहां यदि समय रहते जीवनशैली में बदलाव न किया गया तो टाइप-2 डायबिटीज का खतरा अगले कुछ सालों के अंदर ही सामने आ जाता है।
क्यों माना जाता है प्री-डायबिटीज को ‘रिस्क अलर्ट’?
डॉक्टर बताते हैं कि इस अवस्था में ब्लड शुगर बढ़ना शुरू हो चुका होता है और यही चुपचाप शरीर के अंगों पर असर डालना शुरू कर देता है। यही वजह है कि इसे “साइलेंट स्टेज” कहा जाता है। यही स्टेज आगे जाकर हार्ट डिसीज़, स्ट्रोक, किडनी डैमेज की नींव रखती है।
किन लोगों में बढ़ चुका है खतरा?
जिनका वजन अधिक है, विशेषकर पेट पर
जिनकी लाइफस्टाइल में फिजिकल एक्टिविटी कम है
जिनके परिवार में डायबिटीज का इतिहास है
हाई BP / हाई कोलेस्ट्रॉल वाले मरीज
PCOS वाली महिलाएं
अक्सर लक्षण नहीं दिखते — फिर भी इन संकेतों पर ध्यान दें
गर्दन / बगल की त्वचा का काला पड़ना
जल्दी थकान होना
प्यास ज्यादा लगना
बार-बार पेशाब आना
विजन ब्लर होना
ऐसे संकेत मिलें तो डॉक्टर से ब्लड टेस्ट — Fasting Plasma Glucose या Oral Glucose Tolerance Test — जरूर करवाएं
कैसे बचाव हो सकता है?
विशेषज्ञों के मुताबिक प्री-डायबिटीज को रिवर्स करना संभव है।
तीन बदलाव सबसे प्रभावी माने जा रहे हैं—
वजन में 5%–7% की कमी
रोजाना कम से कम 30 मिनट वॉक/कसरत
रिफाइंड कार्ब्स (चीनी, मैदा, प्रोसेस्ड) घटाएं और फाइबर व प्रोटीन बढ़ाएं
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आज की तेज गति वाली लाइफस्टाइल में हाई ब्लड प्रेशर अब आम स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। विशेषज्ञ इसे ‘साइलेंट किलर’ कहते हैं, क्योंकि बिना किसी खास शुरुआती लक्षण के यह शरीर के अंदरूनी तंत्र पर दबाव बनाता रहता है। लगातार बढ़ा हुआ बीपी धमनियों की दीवारों को सख्त करने लगता है और यही भविष्य में कई गंभीर बीमारियों की जड़ बनता है।
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक गलत भोजन आदतें, स्ट्रेस, बैठकर रहने की आदत और शारीरिक सक्रियता की कमी हाई बीपी को तेजी से बढ़ाती है। ऐसे में हाई बीपी के बढ़ने की स्थिति को हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए।
हृदय संबंधी गंभीर जोखिम
हाई बीपी का सीधा असर आपके हृदय पर पड़ता है। लगातार अधिक दबाव के कारण हृदय की मांसपेशियों को खून पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे हृदय की मांसपेशियां मोटी और कमजोर हो जाती हैं। इससे हार्ट फेलियर का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा धमनियों के सख्त होने से एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में फैट जमा होना) तेज होता है, जो हार्ट अटैक का प्रमुख कारण है।
मस्तिष्क और किडनी पर घातक असर
हाई बीपी मस्तिष्क की नाजुक रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) का सबसे बड़ा जोखिम पैदा करता है। वहीं किडनी पर दबाव पड़ने से उसकी फिल्टरिंग क्षमता कम हो जाती है, जिससे किडनी फेलियर का खतरा और बढ़ जाता है। यह दोनों ही स्थितियां जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं।
बीपी अचानक बढ़ने पर क्या करें?
अगर आपका रक्तचाप अचानक बहुत अधिक बढ़ जाए, तो तुरंत शांत जगह पर बैठ जाएं। गहरी सांसें लें और तनाव कम करने की कोशिश करें। अपनी नियमित दवा लें। अगर 20 मिनट बाद भी बीपी नीचे नहीं आता है, या आपको सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत या तेज सिरदर्द महसूस हो, तो तुरंत इमरजेंसी सेवा को कॉल करें या किसी नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें।
बीपी को नियंत्रित रखने के उपाय
हाई बीपी को नियंत्रित रखने के लिए नमक का सेवन सीमित करें, प्रतिदिन 1500 मिलीग्राम से कम नमक खाएं। डाइट में पोटैशियम (केला, पालक), मैग्नीशियम और फाइबर बढ़ाएं। रोजाना 30 मिनट वॉक करें, वजन नियंत्रित रखें, और धूम्रपान व शराब से दूर रहें। नियमित रूप से बीपी की जांच कराते रहें और डॉक्टर की सलाह को अनदेखा न करें।
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सर्दी का मौसम आते ही किडनी स्टोन के मामले एक बार फिर तेजी से बढ़ने लगे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि शरीर में पानी की कमी, गलत दिनचर्या और कुछ लाइफस्टाइल आदतें गुर्दे में पथरी बनने का सबसे बड़ा कारण बन रही हैं। विशेषज्ञों की मानें तो सिर्फ डाइट ही नहीं बल्कि लंबे समय तक बैठे रहना और बिना डॉक्टर सलाह के दवाएं लेना, यह सब मिलकर किडनी की सेहत को नुकसान पहुंचाता है। समय रहते ध्यान न दिया जाए तो समस्या गंभीर रूप ले सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि किडनी स्टोन तब बनता है जब मूत्र में मौजूद मिनरल्स और सॉल्ट आपस में मिलकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। यह स्थिति तब ज्यादा बनती है जब शरीर में पानी की कमी हो और किडनी उन्हें फ्लश आउट न कर पाए। इसीलिए सर्दियों में भी हाइड्रेशन बनाए रखना जरूरी है।
पानी की कमी बनेगी रिस्क फैक्टर
सर्दियों में प्यास न लगने की वजह से लोग पानी कम पीते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि मूत्र गाढ़ा होने पर कैल्शियम और ऑक्सालेट जैसे तत्व तेजी से क्रिस्टल बना सकते हैं और यही से पथरी की शुरुआत होती है।
लंबे समय तक बैठे रहना भी खतरनाक
वर्क फ्रॉम होम और ऑफिस में घंटों एक ही जगह बैठना भी पथरी की बड़ी वजह बन रहा है। लगातार बैठे रहने से कैल्शियम मेटाबॉलिज्म बिगड़ता है और यह किडनी में जमा होने लगता है।
अपने आप दवाएं लेना बढ़ा रहा खतरा
बिना डॉक्टर की सलाह के विटामिन सप्लीमेंट्स या दवाएं लेना किडनी के लिए नुकसानदायक है। विशेषज्ञों के मुताबिक अत्यधिक विटामिन C भी ऑक्सालेट बढ़ाकर स्टोन बनाने में योगदान कर सकता है।
कैसे बचें?
दिन में 7-8 गिलास पानी पिएं
नींबू पानी और नारियल पानी शामिल करें
ऑक्सालेट वाले फूड्स सीमित करें (जैसे पालक, चॉकलेट आदि)
रोज कम से कम 30 मिनट शारीरिक गतिविधि करें
बिना सलाह दवा या सप्लीमेंट न लें
डॉक्टरों का कहना है — समय रहते सावधानियां अपनाई जाएं तो इस दर्दनाक समस्या को आसानी से रोका जा सकता है।
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तांबे के घड़े या पात्र में पानी रखना और सुबह खाली पेट उसे पीना—भारतीय घरों में यह परंपरा आज भी बड़ी मान्यता से निभाई जाती है। आयुर्वेद में इसे ‘ताम्र जल’ कहा गया है और माना गया है कि यह पानी पाचन को दुरुस्त करने, शरीर को डिटॉक्स करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने में मदद करता है। लेकिन आधुनिक शोध यह भी संकेत देते हैं कि तांबे का पानी पीना फायदेमंद तभी है, जब इसे सीमित मात्रा में लिया जाए। लगातार और ज्यादा मात्रा में कॉपर शरीर में जाने पर यह फायदे की जगह नुकसान भी दे सकता है।
यानी इस प्राचीन परंपरा में विज्ञान भी है—बस संतुलन की शर्त के साथ।
क्यों जरूरी है सावधानी?
डॉक्टर्स बताते हैं कि कॉपर हमारे शरीर में बहुत छोटी मात्रा में चाहिए—और यह जरूरत हमारे रोज के भोजन से ही पूरी हो जाती है। ऐसे में अगर दिनभर सिर्फ कॉपर के बर्तन में रखा पानी ही पिया जाए, तो शरीर में कॉपर की ओवरडोज़ का खतरा रहता है, जिसे “कॉपर टॉक्सिसिटी” कहा जाता है। इसकी शुरुआत पेट दर्द, मितली, कमजोरी और थकान जैसे लक्षणों से होती है और यह स्थिति आगे बढ़कर लिवर पर भारी असर डाल सकती है।
सही तरीका क्या है?
रात में पानी तांबे के बर्तन में भरकर रखें
सुबह खाली पेट उसका एक गिलास पीना पर्याप्त है
पूरे दिन सामान्य गिलास या स्टील के बर्तन में पानी पिएं
बच्चों, गर्भवती महिलाओं और जिनका लिवर कमजोर है, उन्हें खास सावधानी रखनी चाहिए
यानी रोज सिर्फ एक बार ताम्र जल पर्याप्त है। उससे ज़्यादा शरीर को लाभ नहीं, बल्कि जोखिम दे सकता है।
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नवंबर की ठिठुरन शुरू होते ही शरीर में जकड़न, खिंचाव और दर्द महसूस होना सामान्य बात है। ठंडी हवा के कारण मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं, रक्त प्रवाह धीमा पड़ जाता है और इसी वजह से कमर, कूल्हों, कंधों और गर्दन में तनाव बढ़ने लगता है। दवाइयों की जगह अगर हम रोज़ कुछ मिनट साधारण योगाभ्यास करें तो शरीर के इन हिस्सों में गर्माहट आती है और अकड़न धीरे-धीरे कम होने लगती है। सर्द मौसम में योग सुबह की बजाय शाम के समय करना अधिक लाभकारी माना जाता है। अभ्यास से पहले हल्का वार्मअप ज़रूर करें। इसके साथ ही प्राणायाम जैसे अनुलोम-बिलोम और भ्रामरी को जोड़ लें, इससे शरीर में गर्म ऊर्जा बनी रहती है।
सर्दियों में अकड़न और दर्द को कम करने के लिए ये सरल योगासन उपयोगी माने जाते हैं—
भुजंगासन
यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और कमर दर्द को कम करता है। पेट के बल लेटकर हथेलियों को कंधों के समीप रखें और धीरे-धीरे ऊपरी भाग को उठाएं। इससे जमे हुए हिस्से खुलते हैं और पीठ में राहत मिलती है।
मार्जरीासन
इस आसन से पूरे पीठ के भाग में गति आती है। दोनों हथेलियों और घुटनों के सहारे शरीर को टिका लें। सांस लेते हुए पीठ को नीचे झुकाएं और सांस छोड़ते हुए शरीर को ऊपर गोल कर लें। इससे मांसपेशियों की जकड़न कम होती है और रीढ़ हल्की महसूस होती है।
बालासन
यह आसन शरीर और मन, दोनों को शांत करता है। घुटनों के बल बैठें, आगे की ओर झुकें और माथा भूमि पर टिकाएं। इससे निचले पीठ वाले भाग में तनाव कम होता है और रक्त संचार बढ़ता है।
ताड़ासन
सर्दियों में सुस्ती और खिंचाव को दूर करने के लिए यह आसन बेहद लाभकारी है। पैरों को साथ रखकर सीधे खड़े हों, सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पूरे शरीर को खींचें। इससे शरीर में स्फूर्ति आती है और संतुलन बढ़ता है।
(साभार)
सर्दियों में तापमान गिरते ही सांस से जुड़ी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं। गला बैठना, नाक बहना, ठंड लगना और खांसी-जुकाम इन दिनों आम हो जाता है। ऐसे वक्त में सिर्फ दवा लेना काफी नहीं, शरीर की इम्युनिटी को भीतर से मजबूत रखना भी ज़रूरी है। योगासन इस दिशा में बहुत प्रभावी माने जाते हैं। सही योगाभ्यास सांस लेने की क्षमता को बेहतर बनाते हैं, फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं और श्वसन तंत्र पर होने वाले मौसमी प्रेशर को कम करते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, जो लोग ठंड के मौसम में नियमित रूप से प्राणायाम और कुछ बेसिक आसन करते हैं, उन्हें खांसी-जुकाम, साइनस, जकड़न और सांस फूलने जैसी परेशानियों में राहत मिलती है।
कौन-से आसन इस मौसम में बेहद फायदेमंद
अनुलोम-विलोम
नाक की दोनों नाड़ियों को संतुलित करता है, बंद नाक और साइनस में आराम देता है तथा ठंड से होने वाली चिपचिपाहट कम करता है।
कपालभाति
फेफड़ों से जमा कफ को बाहर निकालने में मदद करता है। इससे ऑक्सीजन लेवल बढ़ता है और श्वसन तंत्र क्लीन रहता है।
भ्रामरी प्राणायाम
सर्दी की वजह से होने वाली बेचैनी और बैक-टू-बैक खांसी के अटैक में राहत देता है। मानसिक तनाव भी कम करता है।
सेतुबंधासन
छाती को खोलता है और सांस लेने की क्षमता को सहज बनाता है। ठंड से जकड़न और बलगम में फायदा मिलता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन
शरीर में हीट जनरेट करता है, टॉक्सिन रिलीज करता है और इम्युनिटी बूस्ट करता है। संक्रमण से बचाव में उपयोगी है।
(साभार)
शरीर में विटामिन बी12 की कमी को लेकर अक्सर लोगों में यह भ्रम रहता है कि इसकी वजह केवल गलत खानपान है। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार यह पोषक तत्व तंत्रिका तंत्र की सेहत, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एनर्जी बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी से लगातार थकान, चक्कर, पैरों में झुनझुनी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि आजकल बी12 की कमी तेजी से इसलिए बढ़ रही है क्योंकि लोग मेडिकल सलाह के बिना कई ऐसी दवाएं लगातार उपयोग कर रहे हैं, जो पाचन तंत्र में बी12 के अवशोषण को कम कर देती हैं।
एक हालिया वीडियो में डॉक्टर शालिनी सिंह सोलंकी ने बताया कि एसिडिटी में दी जाने वाली दवाएं, एच-2 ब्लॉकर, एलर्जी की कुछ मेडिसिन, डायबिटिक मरीजों में इस्तेमाल होने वाली मेटफार्मिन और लंबे समय तक एंटीबायोटिक का प्रयोग, आंतों में मौजूद हेल्दी बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा देते हैं। यही बैक्टीरिया विटामिन बी12 के अवशोषण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसी कारण बी12 मात्रा कम होती-होती क्रॉनिक डेफिशिएंसी तक पहुंच जाती है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ऐसी दवाएं ले रहा है, तो उन्हें अपने आप बंद न करे। सही तरीका यह है कि डॉक्टर की सलाह पर ही दवा की डोज, दवा बदलना या बी12 सप्लीमेंट जोड़ने की व्यवस्था की जाए।
डॉक्टरों के अनुसार डेयरी उत्पाद, अंडा, नॉनवेज, फोर्टिफाइड सीरियल्स जैसे स्रोत बी12 का अच्छा प्राकृतिक साधन हैं। वहीं अगर किसी को कमजोरी, मानसिक थकावट या नसों में झुनझुनी जैसे संकेत महसूस हों, तो अपने स्तर पर दवा लेने या सप्लीमेंट शुरू करने के बजाय पहले ब्लड टेस्ट करवा कर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
