मखाना एक बेहद फायदेमंद ड्राई फ्रुट है। इसका सेवन करने के कई स्वास्थ्य लाभ हैं। मखाना अपनी उच्च पोषण क्षमता के कारण आजकल स्वास्थ्य प्रेमियों की पहली पसंद बन चुका है। प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और फाइबर से भरपूर होने के कारण इसे सुपरफूड की श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन किसी भी चीज़ की तरह, इसका अत्यधिक सेवन या बिना समझे इसका उपयोग कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। इसलिए जरूरी है कि इसके लाभों के साथ-साथ इसके संभावित नुकसान भी समझे जाएं। इस लेख में हम जानेंगे कि मखाना किन परिस्थितियों में आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है और इसे कितना खाया जाना सुरक्षित है।
1. पाचन संबंधी परेशानी और कब्ज का खतरा
मखाने में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो सामान्य मात्रा में शरीर के लिए लाभकारी है। लेकिन इसकी अधिक मात्रा का सेवन और पानी कम पीना पाचन तंत्र को धीमा कर देता है। ज्यादा मखाना खाने पर यह पेट में सूखकर सख्त रूप ले सकता है, जिससे गैस, पेट फूलना और कब्ज जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसे खाने के बाद पर्याप्त पानी पीना जरूरी है।
2. शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन)
फाइबर युक्त भोजन को पचाने में शरीर को अतिरिक्त पानी की जरूरत होती है। अगर आप एक बार में अधिक मखाना खा लेते हैं लेकिन पानी का सेवन नहीं बढ़ाते, तो डिहाइड्रेशन की स्थिति बन सकती है। इससे न सिर्फ पाचन तंत्र प्रभावित होता है, बल्कि शरीर सुस्त महसूस करने लगता है।
3. किडनी स्टोन का बढ़ा जोखिम (ऑक्सालेट मौजूद)
कुछ शोध बताते हैं कि मखाने में ऑक्सालेट पाया जाता है। वही तत्व जो किडनी स्टोन बनने में योगदान देता है। जिन लोगों को पहले से पथरी, गाउट या किडनी से जुड़ी समस्या है, उन्हें बिना डॉक्टर की सलाह के मखाने का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह स्टोन बनने के खतरे को बढ़ा सकता है।
4. एक दिन में कितने मखाने सुरक्षित हैं?
विशेषज्ञों के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन लगभग 30 ग्राम (एक मुट्ठी) मखाना पर्याप्त है। यह मात्रा शरीर को जरूरी पोषक तत्व देती है और किसी प्रकार की पाचन समस्या भी नहीं पैदा करती।
कुछ लोग अपनी शारीरिक गतिविधि के आधार पर 30 से 50 ग्राम तक का सेवन भी कर सकते हैं, लेकिन इससे अधिक मात्रा में मखाना खाने पर कब्ज, गैस और डिहाइड्रेशन की समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए मात्रा तय करते समय अपने पानी के सेवन और जीवनशैली को भी ध्यान में रखें।
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सर्दियों में ठंडी हवाओं के साथ गले में खिंचाव, नाक बहना और जुकाम जैसी परेशानियाँ अक्सर बढ़ जाती हैं। ऐसे समय में दवाइयों पर निर्भर होने के बजाय प्राकृतिक उपचार ज्यादा सुरक्षित और असरदार माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है—तुलसी और अजवाइन के मिश्रित पानी की भाप, जो आयुर्वेद में लंबे समय से श्वसन संबंधी समस्याओं के लिए उपयोग की जाती रही है। इनके औषधीय गुण भाप के साथ शरीर में पहुंचकर जल्दी राहत दिलाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाते हैं।
सर्दी-जुकाम में तुरंत आराम देने वाला घरेलू उपाय
तुलसी में मौजूद एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल तत्व जहां संक्रमण को कम करने में मदद करते हैं, वहीं अजवाइन में पाया जाने वाला थाइमोल एक नैचुरल एंटीसेप्टिक की तरह काम करता है। जब इन दोनों को पानी में उबालकर भाप ली जाती है, तो इनके गुण वाष्प के रूप में सीधे नाक, गले और फेफड़ों तक पहुँचते हैं। यह प्रक्रिया श्वसन मार्ग की सूजन कम करने और जमे हुए बलगम को ढीला करने में बेहद प्रभावी मानी जाती है।
बंद नाक खोलने में कारगर
ठंडी हवा के कारण नाक बंद होना आम समस्या है, खासकर रात के समय। तुलसी-अजवाइन की गर्म भाप सांस की नलियों को तुरंत खोलती है। अजवाइन के तेज़ सुगंधित तेल नाक के मार्ग में जमी रुकावटों को ढीला करते हैं, जिससे साँस लेना आसान हो जाता है।
संक्रमण से बचाव में मददगार
तुलसी के पत्ते स्वाभाविक रूप से संक्रमण पैदा करने वाले वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता रखते हैं। जब इसकी भाप ली जाती है, तो ये औषधीय गुण सीधे श्वसन तंत्र में पहुंचते हैं और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं से मुकाबला करते हैं।
साइनस और सिरदर्द में राहत
साइनस ब्लॉकेज या लगातार जुकाम की वजह से होने वाला सिरदर्द काफी परेशान करता है। तुलसी और अजवाइन के संयुक्त वाष्प साइनस कैविटी को आराम देते हैं और सिर में रक्त प्रवाह को बेहतर करते हैं। इस वजह से दर्द में तेज़ और प्रभावी राहत मिलती है।
भाप लेने का सही तरीका
एक गहरे बर्तन में पानी अच्छी तरह उबालें।
इसमें 8–10 तुलसी की पत्तियाँ और 1 चम्मच अजवाइन डालें।
अपने सिर को तौलिये से ढककर भाप को गहराई से अंदर लें।
यह प्रक्रिया 5–10 मिनट तक करें।
दिन में 2–3 बार दोहराने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
ध्यान रखें—बहुत ज़्यादा देर तक भाप न लें, इससे त्वचा या नाक को जलन हो सकती है।
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लिवर के नीचे मौजूद छोटा अंग पित्ताशय (Gallbladder) शरीर में वसा को पचाने के लिए आवश्यक पित्त को सुरक्षित रखता है। लेकिन जब पित्त में मौजूद तत्व—जैसे कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन—अपने सामान्य अनुपात से बिगड़ जाते हैं, तो ये जमकर छोटे–बड़े कठोर कणों में बदल जाते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन कहा जाता है। यह समस्या कई बार बिना किसी लक्षण के बनी रहती है और तभी सामने आती है जब पथरी नलिकाओं में फंसकर तेज दर्द उत्पन्न करती है।
आधुनिक जीवनशैली और गलत खान–पान इस समस्या को तेजी से बढ़ा रहे हैं। समय रहते इन कारणों को समझना जरूरी है ताकि आगे चलकर सर्जरी जैसे बड़े उपचार की जरूरत न पड़े।
कौन-सी गलत आदतें बढ़ाती हैं पित्ताशय की पथरी का खतरा?
1. अत्यधिक फैट वाला भोजन
अगर भोजन में वसा की मात्रा अधिक और फाइबर कम है, तो पित्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने लगता है। यही अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल धीरे-धीरे पथरी बनाने लगता है।
2. तेजी से वजन कम करना
बहुत सख्त डाइट, लंबा उपवास या अचानक वजन कम करना पित्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ा देता है और पित्ताशय सही ढंग से खाली नहीं होता। इससे गॉलस्टोन बनने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
3. हार्मोन से जुड़ी दवाएं
एस्ट्रोजन वाली दवाएं—जैसे कुछ गर्भनिरोधक गोलियां या हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी—पित्त में कोलेस्ट्रॉल स्तर बढ़ा देती हैं। गर्भावस्था के दौरान भी हार्मोनल बदलाव यह जोखिम बढ़ा सकते हैं।
4. शारीरिक गतिविधि की कमी
लंबे समय तक बैठे रहना या व्यायाम न करना पित्ताशय को पूरी तरह खाली नहीं होने देता। इससे पित्त गाढ़ा हो जाता है और पथरी बनने की स्थिति पैदा होती है।
5. मोटापा
अधिक वजन होने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है, जो सीधे-सीधे गॉलस्टोन बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
कैसे बचा जा सकता है इस समस्या से?
संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम, नियंत्रित वजन और विशेषज्ञ की सलाह से दवाओं का सेवन पित्ताशय की पथरी के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकता है। जीवनशैली में छोटे-मोटे सुधार इस दर्दनाक बीमारी से बचाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
आजकल युवाओं में समय से पहले बाल सफेद होने की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है। मेडिकल साइंस में इसे प्रिमेच्योर हेयर ग्रेइंग कहा जाता है। जहां सामान्यतः बालों का रंग 30 वर्ष की उम्र के बाद बदलना शुरू होता है, वहीं अब कई लोग 18–20 वर्ष की उम्र में ही सफेद बालों का अनुभव करने लगे हैं। इसका सीधा संबंध मेलानिन नामक पिगमेंट के कम बनने या पूरी तरह रुक जाने से है, जो बालों को उनका मूल रंग देता है।
जैसे ही हेयर फॉलिकल में मौजूद मेलानोसाइट कोशिकाएं मेलानिन उत्पादन घटा देती हैं, बाल अपना रंग खोने लगते हैं और सिल्वर स्ट्रैंड्स दिखाई देने लगते हैं। यह बदलाव केवल उम्र की वजह से नहीं होता, बल्कि कई आंतरिक और बाहरी कारण इस प्रक्रिया को तेज़ कर देते हैं।
1. पारिवारिक इतिहास सबसे बड़ा कारण
कम उम्र में सफेद बाल होने में जेनेटिक्स का सबसे मजबूत रोल माना जाता है। यदि परिवार में पहले भी किसी के बाल जल्दी सफेद हुए हैं, तो यही प्रवृत्ति अगली पीढ़ी में भी देखने को मिल सकती है।
हालांकि जेनेटिक फैक्टर को पूरी तरह रोकना संभव नहीं, लेकिन हेल्दी डायट, अच्छी नींद और सही देखभाल से इसकी गति कम की जा सकती है।
2. लाइफस्टाइल और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस
लंबे समय तक तनाव, देर रात तक जागना, स्मोकिंग, और पोषणहीन आहार शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ा देते हैं। यह स्ट्रेस मेलानोसाइट्स को नुकसान पहुंचाता है, जिससे बाल समय से पहले ही रंग खोने लगते हैं। तनाव कम करने की तकनीकों और पोषक तत्वों से भरपूर आहार से इस प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
3. पोषण की कमी
बालों के पिगमेंटेशन के लिए विटामिन B12, आयरन और कॉपर अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनकी कमी मेलानिन उत्पादन को प्रभावित करती है और ग्रेइंग की प्रक्रिया को तेज कर देती है। ऐसे में संतुलित भोजन और आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर द्वारा सुझाए गए सप्लीमेंट्स सहायक हो सकते हैं।
4. छुपी हुई मेडिकल कंडीशन का असर
कुछ स्वास्थ्य समस्याएं भी पिगमेंटेशन में हस्तक्षेप करती हैं—
थायराइड विकार
एनीमिया
विटिलिगो जैसी ऑटोइम्यून बीमारियां
इन समस्याओं में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मेलानिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर सकती है। यदि बालों का सफेद होना अचानक बहुत तेज़ी से बढ़े, तो विशेषज्ञ डॉक्टर से जांच करवाना बेहद जरूरी है, क्योंकि समय पर इलाज से स्थिति को सुधारा जा सकता है।
दुनिया भर में तेजी से बढ़ते डायबिटीज के मामलों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। भारत में स्थिति और भी गंभीर है, जहां हर साल मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यही कारण है कि विशेषज्ञ अब देश को ‘डायबिटीज कैपिटल’ तक कहने लगे हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज के साथ जी रहे हैं, और आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आधुनिक जीवनशैली की गड़बड़ियां—लंबे समय तक बैठे रहना, कम शारीरिक गतिविधि, जंक फूड, तनाव और अनियमित खानपान—इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं। लगातार बढ़ा हुआ ब्लड शुगर शरीर के हृदय, नसों, आंखों और किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
इसी बढ़ते खतरे के बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञ डायबिटीज मरीजों में किडनी रोगों को लेकर खासतौर पर सचेत कर रहे हैं। हाई ब्लड शुगर लंबे समय तक बना रहे, तो यह किडनी की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर उन्हें कमजोर कर देता है। इस स्थिति को डायबिटिक नेफ्रोपैथी कहा जाता है।
14 नवंबर को हर साल मनाया जाने वाला वर्ल्ड डायबिटीज डे इसी जागरूकता को बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। अमर उजाला से बातचीत में वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. वसीम गौहरी बताते हैं कि किडनी रोगों के करीब एक-तिहाई मामले डायबिटीज से जुड़े होते हैं। खून में बढ़ा हुआ शुगर लेवल धीरे-धीरे किडनी को नुकसान पहुंचाता है और समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो मरीज डायलिसिस तक पहुंच सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर में 30-40% डायबिटीज मरीजों में किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी पाई जाती है। डायबिटीज के मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या भी ज्यादा होती है, और यह दोनों मिलकर किडनी के लिए और खतरनाक साबित होते हैं। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन का कहना है कि ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर का नियंत्रण किडनी को बचाने का सबसे प्रभावी उपाय है।
किन लोगों में खतरा ज्यादा?
– लंबे समय से डायबिटीज से पीड़ित मरीज
– हाई बीपी वाले लोग
– धूम्रपान करने वाले
– अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त लोग
– परिवार में किडनी रोग या डायबिटीज का इतिहास
रिपोर्ट्स दर्शाती हैं कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में डायबिटिक किडनी डिजीज का जोखिम अधिक पाया जाता है।
कैसे बचें? विशेषज्ञों की सलाह:
– ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर नियमित रूप से नियंत्रित रखें
– नमक कम करें, जंक फूड से बचें
– धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएँ
– रोजाना कम से कम 30 मिनट तेज वॉक करें
– हरी सब्जियां, साबुत अनाज और फाइबर वाले फल आहार में शामिल करें
– साल में एक बार किडनी फंक्शन टेस्ट जरूर करवाएं
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बदलती जीवनशैली, अनियमित खानपान और तनाव भरी दिनचर्या के कारण हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही। बच्चों और किशोरों में भी इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों में युवाओं और किशोरों में उच्च रक्तचाप के मामले लगभग दोगुने हो चुके हैं। साल 2000 में जहां यह दर 3.2 प्रतिशत थी, वहीं 2020 तक यह 6 प्रतिशत से अधिक पहुंच गई।
मोटापे से ग्रस्त हर पांचवां बच्चा हाई बीपी का शिकार
एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनियाभर में मोटापे से पीड़ित लगभग हर पांचवां बच्चा या किशोर उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है। स्वस्थ वजन वाले बच्चों की तुलना में ये खतरा लगभग आठ गुना अधिक पाया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि मोटापा न केवल ब्लड प्रेशर बढ़ाता है, बल्कि हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी डैमेज जैसी गंभीर स्थितियों की संभावना भी बढ़ा देता है।
अध्ययन में खुलासा: हर दस में से एक बच्चा ‘प्री-हाइपरटेंशन’ की स्थिति में
शोध में यह भी सामने आया कि लगभग 8 प्रतिशत बच्चे और किशोर ‘प्री-हाइपरटेंशन’ की स्थिति में हैं, जो आगे चलकर गंभीर हाई बीपी में बदल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते स्क्रीनिंग और रोकथाम से इस खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है।
विशेषज्ञ बोले — खतरे की घंटी है बढ़ता ट्रेंड, समय रहते बदलें आदतें
अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर इगोर रुडान का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में युवा आबादी में हाई ब्लड प्रेशर के मामलों का दोगुना होना चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “अच्छी बात यह है कि अगर शुरुआती उम्र में ही नियमित जांच, संतुलित आहार और व्यायाम की आदत डाली जाए, तो भविष्य की कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।”
कम उम्र से ही रखें ध्यान: आहार, व्यायाम और तनाव पर नियंत्रण जरूरी
साल 2000 से 2020 के बीच, लड़कों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले 3.4% से बढ़कर 6.5% और लड़कियों में 3% से बढ़कर लगभग 6% तक पहुंच गए हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चों का ब्लड प्रेशर समय-समय पर जांचें, नमक का सेवन घटाएं, फलों-सब्जियों को आहार का हिस्सा बनाएं, तनाव कम करें और पर्याप्त नींद लें।
हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है — “कम उम्र से अपनाई गई हेल्दी लाइफस्टाइल ही आगे चलकर दिल और दिमाग दोनों को स्वस्थ रख सकती है।”
(साभार)
चेहरे की सफाई हर महिला की स्किन केयर रूटीन का सबसे अहम हिस्सा होता है। अक्सर जल्दबाजी में या थकान के कारण कई महिलाएं वेट वाइप्स से चेहरा पोंछना आसान विकल्प समझ लेती हैं। ये त्वरित रूप से गंदगी, तेल और मेकअप तो हटा देते हैं, लेकिन इनका अधिक उपयोग आपकी त्वचा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, वेट वाइप्स में मौजूद अल्कोहल, सुगंध और केमिकल्स चेहरे की नमी को छीन लेते हैं और स्किन की नैचुरल प्रोटेक्टिव लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे त्वचा रूखी, संवेदनशील और समय से पहले बूढ़ी दिखने लगती है।
वेट वाइप्स से होने वाले नुकसान
1. त्वचा की नमी घटती है
वेट वाइप्स में मौजूद केमिकल्स स्किन के नेचुरल ऑयल को खत्म कर देते हैं। लगातार इस्तेमाल से चेहरा इतना ड्राय हो जाता है कि मॉइश्चराइज़र भी असर नहीं दिखा पाता।
2. एलर्जी और इरिटेशन का खतरा
चेहरे की त्वचा बेहद नाजुक होती है। बार-बार वेट वाइप्स के प्रयोग से इचिंग, रैशेज और एलर्जी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। कई बार यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ती है।
3. सेंसिटिव स्किन वालों के लिए ज्यादा हानिकारक
अगर आपकी स्किन पहले से ही सेंसिटिव है, तो वेट वाइप्स का इस्तेमाल पिंपल्स, रेडनेस और जलन को बढ़ा सकता है। इससे चेहरा बेजान और खुरदुरा लगने लगता है।
4. जल्दी दिखने लगते हैं एजिंग साइन
वेट वाइप्स का बार-बार प्रयोग त्वचा की इलास्टिसिटी को कमजोर करता है। इससे झुर्रियां और फाइन लाइन्स जैसी एजिंग साइन जल्दी दिखाई देने लगते हैं।
क्या हैं सुरक्षित विकल्प?
स्किन को हेल्दी रखने के लिए वेट वाइप्स की जगह माइल्ड फोमिंग क्लींजर या माइस्लर वाटर का इस्तेमाल करें। ये चेहरे की सफाई तो करते हैं, लेकिन नमी बरकरार रखते हैं। इसके अलावा, एलोवेरा जेल या नारियल तेल से मेकअप हटाना भी एक सुरक्षित और नेचुरल विकल्प है। चेहरा धोने के बाद हमेशा मॉइश्चराइज़र लगाएं, ताकि त्वचा मुलायम और ग्लोइंग बनी रहे।
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14 नवंबर को दुनिया भर में वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में सिर्फ डायबिटीज ही नहीं, बल्कि “प्री-डायबिटीज” भी बेहद तेजी से बढ़ रहा है। अनुमान है कि देश में लाखों लोग इस स्टेज में पहुंच चुके हैं, लेकिन आधे से ज्यादा लोगों को यह एहसास भी नहीं कि उनका ब्लड शुगर सामान्य से ऊपर जा चुका है और उनका शरीर इंसुलिन के प्रति धीरे-धीरे रेजिस्टेंट होता जा रहा है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है —
प्री-डायबिटीज वह स्थिति है जहां यदि समय रहते जीवनशैली में बदलाव न किया गया तो टाइप-2 डायबिटीज का खतरा अगले कुछ सालों के अंदर ही सामने आ जाता है।
क्यों माना जाता है प्री-डायबिटीज को ‘रिस्क अलर्ट’?
डॉक्टर बताते हैं कि इस अवस्था में ब्लड शुगर बढ़ना शुरू हो चुका होता है और यही चुपचाप शरीर के अंगों पर असर डालना शुरू कर देता है। यही वजह है कि इसे “साइलेंट स्टेज” कहा जाता है। यही स्टेज आगे जाकर हार्ट डिसीज़, स्ट्रोक, किडनी डैमेज की नींव रखती है।
किन लोगों में बढ़ चुका है खतरा?
जिनका वजन अधिक है, विशेषकर पेट पर
जिनकी लाइफस्टाइल में फिजिकल एक्टिविटी कम है
जिनके परिवार में डायबिटीज का इतिहास है
हाई BP / हाई कोलेस्ट्रॉल वाले मरीज
PCOS वाली महिलाएं
अक्सर लक्षण नहीं दिखते — फिर भी इन संकेतों पर ध्यान दें
गर्दन / बगल की त्वचा का काला पड़ना
जल्दी थकान होना
प्यास ज्यादा लगना
बार-बार पेशाब आना
विजन ब्लर होना
ऐसे संकेत मिलें तो डॉक्टर से ब्लड टेस्ट — Fasting Plasma Glucose या Oral Glucose Tolerance Test — जरूर करवाएं
कैसे बचाव हो सकता है?
विशेषज्ञों के मुताबिक प्री-डायबिटीज को रिवर्स करना संभव है।
तीन बदलाव सबसे प्रभावी माने जा रहे हैं—
वजन में 5%–7% की कमी
रोजाना कम से कम 30 मिनट वॉक/कसरत
रिफाइंड कार्ब्स (चीनी, मैदा, प्रोसेस्ड) घटाएं और फाइबर व प्रोटीन बढ़ाएं
(साभार)
आज की तेज गति वाली लाइफस्टाइल में हाई ब्लड प्रेशर अब आम स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। विशेषज्ञ इसे ‘साइलेंट किलर’ कहते हैं, क्योंकि बिना किसी खास शुरुआती लक्षण के यह शरीर के अंदरूनी तंत्र पर दबाव बनाता रहता है। लगातार बढ़ा हुआ बीपी धमनियों की दीवारों को सख्त करने लगता है और यही भविष्य में कई गंभीर बीमारियों की जड़ बनता है।
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक गलत भोजन आदतें, स्ट्रेस, बैठकर रहने की आदत और शारीरिक सक्रियता की कमी हाई बीपी को तेजी से बढ़ाती है। ऐसे में हाई बीपी के बढ़ने की स्थिति को हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए।
हृदय संबंधी गंभीर जोखिम
हाई बीपी का सीधा असर आपके हृदय पर पड़ता है। लगातार अधिक दबाव के कारण हृदय की मांसपेशियों को खून पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे हृदय की मांसपेशियां मोटी और कमजोर हो जाती हैं। इससे हार्ट फेलियर का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा धमनियों के सख्त होने से एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में फैट जमा होना) तेज होता है, जो हार्ट अटैक का प्रमुख कारण है।
मस्तिष्क और किडनी पर घातक असर
हाई बीपी मस्तिष्क की नाजुक रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) का सबसे बड़ा जोखिम पैदा करता है। वहीं किडनी पर दबाव पड़ने से उसकी फिल्टरिंग क्षमता कम हो जाती है, जिससे किडनी फेलियर का खतरा और बढ़ जाता है। यह दोनों ही स्थितियां जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं।
बीपी अचानक बढ़ने पर क्या करें?
अगर आपका रक्तचाप अचानक बहुत अधिक बढ़ जाए, तो तुरंत शांत जगह पर बैठ जाएं। गहरी सांसें लें और तनाव कम करने की कोशिश करें। अपनी नियमित दवा लें। अगर 20 मिनट बाद भी बीपी नीचे नहीं आता है, या आपको सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत या तेज सिरदर्द महसूस हो, तो तुरंत इमरजेंसी सेवा को कॉल करें या किसी नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें।
बीपी को नियंत्रित रखने के उपाय
हाई बीपी को नियंत्रित रखने के लिए नमक का सेवन सीमित करें, प्रतिदिन 1500 मिलीग्राम से कम नमक खाएं। डाइट में पोटैशियम (केला, पालक), मैग्नीशियम और फाइबर बढ़ाएं। रोजाना 30 मिनट वॉक करें, वजन नियंत्रित रखें, और धूम्रपान व शराब से दूर रहें। नियमित रूप से बीपी की जांच कराते रहें और डॉक्टर की सलाह को अनदेखा न करें।
(साभार)
सर्दी का मौसम आते ही किडनी स्टोन के मामले एक बार फिर तेजी से बढ़ने लगे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि शरीर में पानी की कमी, गलत दिनचर्या और कुछ लाइफस्टाइल आदतें गुर्दे में पथरी बनने का सबसे बड़ा कारण बन रही हैं। विशेषज्ञों की मानें तो सिर्फ डाइट ही नहीं बल्कि लंबे समय तक बैठे रहना और बिना डॉक्टर सलाह के दवाएं लेना, यह सब मिलकर किडनी की सेहत को नुकसान पहुंचाता है। समय रहते ध्यान न दिया जाए तो समस्या गंभीर रूप ले सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि किडनी स्टोन तब बनता है जब मूत्र में मौजूद मिनरल्स और सॉल्ट आपस में मिलकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। यह स्थिति तब ज्यादा बनती है जब शरीर में पानी की कमी हो और किडनी उन्हें फ्लश आउट न कर पाए। इसीलिए सर्दियों में भी हाइड्रेशन बनाए रखना जरूरी है।
पानी की कमी बनेगी रिस्क फैक्टर
सर्दियों में प्यास न लगने की वजह से लोग पानी कम पीते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि मूत्र गाढ़ा होने पर कैल्शियम और ऑक्सालेट जैसे तत्व तेजी से क्रिस्टल बना सकते हैं और यही से पथरी की शुरुआत होती है।
लंबे समय तक बैठे रहना भी खतरनाक
वर्क फ्रॉम होम और ऑफिस में घंटों एक ही जगह बैठना भी पथरी की बड़ी वजह बन रहा है। लगातार बैठे रहने से कैल्शियम मेटाबॉलिज्म बिगड़ता है और यह किडनी में जमा होने लगता है।
अपने आप दवाएं लेना बढ़ा रहा खतरा
बिना डॉक्टर की सलाह के विटामिन सप्लीमेंट्स या दवाएं लेना किडनी के लिए नुकसानदायक है। विशेषज्ञों के मुताबिक अत्यधिक विटामिन C भी ऑक्सालेट बढ़ाकर स्टोन बनाने में योगदान कर सकता है।
कैसे बचें?
दिन में 7-8 गिलास पानी पिएं
नींबू पानी और नारियल पानी शामिल करें
ऑक्सालेट वाले फूड्स सीमित करें (जैसे पालक, चॉकलेट आदि)
रोज कम से कम 30 मिनट शारीरिक गतिविधि करें
बिना सलाह दवा या सप्लीमेंट न लें
डॉक्टरों का कहना है — समय रहते सावधानियां अपनाई जाएं तो इस दर्दनाक समस्या को आसानी से रोका जा सकता है।
(साभार)
