तांबे के घड़े या पात्र में पानी रखना और सुबह खाली पेट उसे पीना—भारतीय घरों में यह परंपरा आज भी बड़ी मान्यता से निभाई जाती है। आयुर्वेद में इसे ‘ताम्र जल’ कहा गया है और माना गया है कि यह पानी पाचन को दुरुस्त करने, शरीर को डिटॉक्स करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने में मदद करता है। लेकिन आधुनिक शोध यह भी संकेत देते हैं कि तांबे का पानी पीना फायदेमंद तभी है, जब इसे सीमित मात्रा में लिया जाए। लगातार और ज्यादा मात्रा में कॉपर शरीर में जाने पर यह फायदे की जगह नुकसान भी दे सकता है।
यानी इस प्राचीन परंपरा में विज्ञान भी है—बस संतुलन की शर्त के साथ।
क्यों जरूरी है सावधानी?
डॉक्टर्स बताते हैं कि कॉपर हमारे शरीर में बहुत छोटी मात्रा में चाहिए—और यह जरूरत हमारे रोज के भोजन से ही पूरी हो जाती है। ऐसे में अगर दिनभर सिर्फ कॉपर के बर्तन में रखा पानी ही पिया जाए, तो शरीर में कॉपर की ओवरडोज़ का खतरा रहता है, जिसे “कॉपर टॉक्सिसिटी” कहा जाता है। इसकी शुरुआत पेट दर्द, मितली, कमजोरी और थकान जैसे लक्षणों से होती है और यह स्थिति आगे बढ़कर लिवर पर भारी असर डाल सकती है।
सही तरीका क्या है?
रात में पानी तांबे के बर्तन में भरकर रखें
सुबह खाली पेट उसका एक गिलास पीना पर्याप्त है
पूरे दिन सामान्य गिलास या स्टील के बर्तन में पानी पिएं
बच्चों, गर्भवती महिलाओं और जिनका लिवर कमजोर है, उन्हें खास सावधानी रखनी चाहिए
यानी रोज सिर्फ एक बार ताम्र जल पर्याप्त है। उससे ज़्यादा शरीर को लाभ नहीं, बल्कि जोखिम दे सकता है।
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नवंबर की ठिठुरन शुरू होते ही शरीर में जकड़न, खिंचाव और दर्द महसूस होना सामान्य बात है। ठंडी हवा के कारण मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं, रक्त प्रवाह धीमा पड़ जाता है और इसी वजह से कमर, कूल्हों, कंधों और गर्दन में तनाव बढ़ने लगता है। दवाइयों की जगह अगर हम रोज़ कुछ मिनट साधारण योगाभ्यास करें तो शरीर के इन हिस्सों में गर्माहट आती है और अकड़न धीरे-धीरे कम होने लगती है। सर्द मौसम में योग सुबह की बजाय शाम के समय करना अधिक लाभकारी माना जाता है। अभ्यास से पहले हल्का वार्मअप ज़रूर करें। इसके साथ ही प्राणायाम जैसे अनुलोम-बिलोम और भ्रामरी को जोड़ लें, इससे शरीर में गर्म ऊर्जा बनी रहती है।
सर्दियों में अकड़न और दर्द को कम करने के लिए ये सरल योगासन उपयोगी माने जाते हैं—
भुजंगासन
यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और कमर दर्द को कम करता है। पेट के बल लेटकर हथेलियों को कंधों के समीप रखें और धीरे-धीरे ऊपरी भाग को उठाएं। इससे जमे हुए हिस्से खुलते हैं और पीठ में राहत मिलती है।
मार्जरीासन
इस आसन से पूरे पीठ के भाग में गति आती है। दोनों हथेलियों और घुटनों के सहारे शरीर को टिका लें। सांस लेते हुए पीठ को नीचे झुकाएं और सांस छोड़ते हुए शरीर को ऊपर गोल कर लें। इससे मांसपेशियों की जकड़न कम होती है और रीढ़ हल्की महसूस होती है।
बालासन
यह आसन शरीर और मन, दोनों को शांत करता है। घुटनों के बल बैठें, आगे की ओर झुकें और माथा भूमि पर टिकाएं। इससे निचले पीठ वाले भाग में तनाव कम होता है और रक्त संचार बढ़ता है।
ताड़ासन
सर्दियों में सुस्ती और खिंचाव को दूर करने के लिए यह आसन बेहद लाभकारी है। पैरों को साथ रखकर सीधे खड़े हों, सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पूरे शरीर को खींचें। इससे शरीर में स्फूर्ति आती है और संतुलन बढ़ता है।
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सर्दियों में तापमान गिरते ही सांस से जुड़ी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं। गला बैठना, नाक बहना, ठंड लगना और खांसी-जुकाम इन दिनों आम हो जाता है। ऐसे वक्त में सिर्फ दवा लेना काफी नहीं, शरीर की इम्युनिटी को भीतर से मजबूत रखना भी ज़रूरी है। योगासन इस दिशा में बहुत प्रभावी माने जाते हैं। सही योगाभ्यास सांस लेने की क्षमता को बेहतर बनाते हैं, फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं और श्वसन तंत्र पर होने वाले मौसमी प्रेशर को कम करते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, जो लोग ठंड के मौसम में नियमित रूप से प्राणायाम और कुछ बेसिक आसन करते हैं, उन्हें खांसी-जुकाम, साइनस, जकड़न और सांस फूलने जैसी परेशानियों में राहत मिलती है।
कौन-से आसन इस मौसम में बेहद फायदेमंद
अनुलोम-विलोम
नाक की दोनों नाड़ियों को संतुलित करता है, बंद नाक और साइनस में आराम देता है तथा ठंड से होने वाली चिपचिपाहट कम करता है।
कपालभाति
फेफड़ों से जमा कफ को बाहर निकालने में मदद करता है। इससे ऑक्सीजन लेवल बढ़ता है और श्वसन तंत्र क्लीन रहता है।
भ्रामरी प्राणायाम
सर्दी की वजह से होने वाली बेचैनी और बैक-टू-बैक खांसी के अटैक में राहत देता है। मानसिक तनाव भी कम करता है।
सेतुबंधासन
छाती को खोलता है और सांस लेने की क्षमता को सहज बनाता है। ठंड से जकड़न और बलगम में फायदा मिलता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन
शरीर में हीट जनरेट करता है, टॉक्सिन रिलीज करता है और इम्युनिटी बूस्ट करता है। संक्रमण से बचाव में उपयोगी है।
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शरीर में विटामिन बी12 की कमी को लेकर अक्सर लोगों में यह भ्रम रहता है कि इसकी वजह केवल गलत खानपान है। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार यह पोषक तत्व तंत्रिका तंत्र की सेहत, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एनर्जी बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी से लगातार थकान, चक्कर, पैरों में झुनझुनी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि आजकल बी12 की कमी तेजी से इसलिए बढ़ रही है क्योंकि लोग मेडिकल सलाह के बिना कई ऐसी दवाएं लगातार उपयोग कर रहे हैं, जो पाचन तंत्र में बी12 के अवशोषण को कम कर देती हैं।
एक हालिया वीडियो में डॉक्टर शालिनी सिंह सोलंकी ने बताया कि एसिडिटी में दी जाने वाली दवाएं, एच-2 ब्लॉकर, एलर्जी की कुछ मेडिसिन, डायबिटिक मरीजों में इस्तेमाल होने वाली मेटफार्मिन और लंबे समय तक एंटीबायोटिक का प्रयोग, आंतों में मौजूद हेल्दी बैक्टीरिया को नुकसान पहुंचा देते हैं। यही बैक्टीरिया विटामिन बी12 के अवशोषण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसी कारण बी12 मात्रा कम होती-होती क्रॉनिक डेफिशिएंसी तक पहुंच जाती है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ऐसी दवाएं ले रहा है, तो उन्हें अपने आप बंद न करे। सही तरीका यह है कि डॉक्टर की सलाह पर ही दवा की डोज, दवा बदलना या बी12 सप्लीमेंट जोड़ने की व्यवस्था की जाए।
डॉक्टरों के अनुसार डेयरी उत्पाद, अंडा, नॉनवेज, फोर्टिफाइड सीरियल्स जैसे स्रोत बी12 का अच्छा प्राकृतिक साधन हैं। वहीं अगर किसी को कमजोरी, मानसिक थकावट या नसों में झुनझुनी जैसे संकेत महसूस हों, तो अपने स्तर पर दवा लेने या सप्लीमेंट शुरू करने के बजाय पहले ब्लड टेस्ट करवा कर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
अगर आप दो–चार सीढ़ियाँ चढ़ते ही तेज़-तेज़ साँस लेने लगते हैं, हल्का काम करने पर भी छाती में भारीपन महसूस होता है, या टहलते समय अचानक थकान बढ़ जाती है — तो इसे केवल “कमज़ोरी या साधारण थकान” समझकर अनदेखा करना ख़तरनाक हो सकता है। चिकित्सकों के अनुसार, शरीर का इस तरह जल्दी थक जाना दिल और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी का प्रारम्भिक संकेत होता है।
यानी शरीर पहले ही समय पर चेतावनी दे रहा होता है कि दिल पूरा रक्त उतनी क्षमता से पम्प नहीं कर पा रहा, जितनी आवश्यकता है। इसी कारण शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम पड़ जाती है और साँस फूलने लगती है।
साँस फूलने और दिल की सेहत का सम्बन्ध
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब दिल की मांसपेशियों तक पर्याप्त रक्त नहीं पहुँचता, या दिल में रक्त प्रवाह कम होने की स्थिति शुरू हो जाती है, तब शरीर थोड़ा प्रयास करने पर भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन चाहता है। इस कमी को पूरा करने के लिए दिल तेज़ धड़कने लगता है और साँस लेने की गति अचानक बढ़ जाती है। यही वजह है कि थोड़े से श्रम पर भी साँस फूलने लगती है।
लगातार थकान आना भी चिन्ह
यदि बिना किसी कारण के रोज़-रोज़ थकान बनी रहती है — विशेष रूप से सुबह उठते ही — तो यह भी इसके संकेत हैं कि दिल शरीर के ऊतकों तक उतनी ऑक्सीजन नहीं पहुँचा पा रहा, जितनी ज़रूरत है। इसलिए सामान्य कार्य भी कठिन लगने लगते हैं।
पैरों में सूजन? अनदेखा न करें
दिल की कमज़ोर कार्यक्षमता का असर पैरों तथा टखनों पर सबसे पहले दिखता है। रक्त और तरल पदार्थ नीचे जमा होने लगते हैं और सूजन दिखाई देने लगती है। यह एक स्पष्ट चेतावनी संकेत है, जिस पर तुरंत हृदय रोग विशेषज्ञ से जाँच करानी चाहिए।
रात को खाँसी या घबराहट भी संकेत
कई लोगों को रात में अचानक खाँसी या बेचैनी महसूस होती है। चिकित्सकों के अनुसार, यह फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने के कारण होता है — जो दिल के कार्य में दोष का संकेत देता है।
निष्कर्ष
यदि ये लक्षण लगातार दिखाई दें — साँस फूलना, बार-बार थकान, पैरों में सूजन, रात में खाँसी या घबराहट — तो देर न करें। यह शरीर का आपात संकेत है कि दिल पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सक से जाँच कराना आवश्यक है।
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देश में लिवर से जुड़ी बीमारियां अब गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले जहां यह समस्या 45-50 साल की उम्र के बाद देखने को मिलती थी, वहीं अब 20 साल से कम उम्र के युवा भी फैटी लिवर जैसी जटिल बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
गलत जीवनशैली, जंक फूड, देर रात तक जागना, व्यायाम की कमी और शराब का सेवन इसके मुख्य कारण माने जा रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार लिवर हमारे शरीर का सबसे अहम अंग है जो पाचन, ऊर्जा संचय और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करता है। लेकिन जब इसमें अत्यधिक चर्बी जमा हो जाती है तो यह फैटी लिवर डिजीज में बदल जाता है — जो आगे चलकर लिवर सिरोसिस या लिवर फेलियर जैसी घातक स्थिति पैदा कर सकता है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर भी बना चिंता का कारण
विशेषज्ञ बताते हैं कि फैटी लिवर सिर्फ शराब पीने वालों की बीमारी नहीं है। आजकल नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका कारण है — असंतुलित खानपान, मोटापा और निष्क्रिय दिनचर्या।
अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यह रोग पूरे शरीर के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर देता है और हार्ट डिजीज, डायबिटीज जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ा देता है।
क्या कह रहे हैं डॉक्टर?
डॉक्टरों के अनुसार, जीवनशैली में सुधार और संतुलित आहार इस बीमारी की रोकथाम का सबसे प्रभावी तरीका है।
रोज़ाना हल्का व्यायाम करें और वजन नियंत्रित रखें।
आहार में फलों, हरी सब्जियों, साबुत अनाज और दालों की मात्रा बढ़ाएं।
रिफाइंड शुगर, नमक और ट्रांस फैट से भरपूर चीजों से बचें।
शराब और जंक फूड को पूरी तरह त्यागें।
कॉफी पीना भी हो सकता है फायदेमंद
शोध बताते हैं कि कॉफी का सीमित सेवन फैटी लिवर के खतरे को कम कर सकता है। यह लिवर एंजाइम्स को नियंत्रित करने और सूजन घटाने में मददगार साबित होती है। हालांकि, विशेषज्ञों की सलाह के बिना अधिक मात्रा में सेवन नुकसानदेह हो सकता है।
किन चीजों से बचें
तले हुए भोजन और ट्रांस फैट लिवर में चर्बी बढ़ाते हैं।
मीठे पेय जैसे सोडा, कोल्ड ड्रिंक और डेज़र्ट्स लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं।
जंक फूड में मौजूद सोडियम और प्रिजर्वेटिव्स भी लिवर को कमजोर बनाते हैं।
शराब का सेवन लिवर सिरोसिस का सबसे बड़ा कारण है।
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अगर आपको कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर कूल्हों और पैरों के पिछले हिस्से तक तेज दर्द महसूस होता है, तो सावधान हो जाइए। यह आम कमर दर्द नहीं, बल्कि साइटिका (Sciatica) का लक्षण हो सकता है। यह समस्या तब होती है जब शरीर की सबसे लंबी नस — साइटिक नर्व (Sciatic Nerve) — किसी कारणवश दब जाती है या उसमें सूजन आ जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह नस रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से से निकलकर नितंबों और पैरों के पिछले हिस्से से होती हुई पैर के अंगूठे तक जाती है। जब इस नस पर दबाव पड़ता है, तो दर्द, जलन और सुन्नपन जैसी परेशानी पूरे तंत्रिका मार्ग में फैल जाती है।
किसे होता है साइटिका दर्द
यह समस्या अधिकतर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में या लंबे समय तक बैठकर काम करने वालों में पाई जाती है। कई बार स्लिप डिस्क, हड्डी का बढ़ना, या मांसपेशियों में अकड़न जैसी वजहें भी इस दर्द को जन्म देती हैं। दर्द की तीव्रता हल्के से लेकर असहनीय तक हो सकती है, जो बैठने, खड़े होने या यहां तक कि छींकने पर भी बढ़ जाती है।
मुख्य लक्षण
साइटिका दर्द की पहचान इसका फैलाव है — यह पीठ के निचले हिस्से से शुरू होकर नितंबों से होता हुआ पैर के पिछले हिस्से, पिंडली या यहां तक कि पैर की उंगलियों तक पहुंच सकता है। दर्द के साथ सुन्नपन, झुनझुनी और ‘सुई चुभने’ जैसा अनुभव आम है।
कैसा होता है दर्द
यह दर्द आमतौर पर बैठने या आगे झुकने पर बढ़ जाता है, जबकि लेटने पर राहत मिलती है। लंबे समय तक खड़े रहना मुश्किल हो जाता है और कभी-कभी ऐसा भी महसूस होता है कि पैर में ताकत खत्म हो गई है।
क्या करें
अगर दर्द एक सप्ताह से अधिक बना रहे, या पैर में कमजोरी, सुन्नपन या मूत्राशय नियंत्रण में कठिनाई महसूस हो, तो तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट या स्पाइन विशेषज्ञ से संपर्क करें। समय पर इलाज से यह समस्या पूरी तरह ठीक हो सकती है।
चिकित्सक सलाह देते हैं कि नियमित व्यायाम, सही बैठने की मुद्रा और वजन नियंत्रण से साइटिका के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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“सनशाइन विटामिन” शरीर को मज़बूत ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है
भारत जैसे देश में जहां सालभर सूरज चमकता रहता है, वहां विटामिन डी (Vitamin D) की कमी होना कई लोगों को हैरान कर सकता है। लेकिन स्वास्थ्य रिपोर्ट्स बताती हैं कि हमारे देश में भी लाखों लोग इस पोषक तत्व की कमी से जूझ रहे हैं।
विटामिन डी को “सनशाइन विटामिन” कहा जाता है, क्योंकि यह शरीर में तब बनता है जब त्वचा सूरज की यूवीबी (UVB) किरणों के संपर्क में आती है।
धूप से विटामिन डी पाने का सही समय क्या है?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच का समय विटामिन डी लेने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है।
इस दौरान सूर्य की किरणों में मौजूद यूवीबी किरणें सबसे प्रभावशाली होती हैं, जो त्वचा में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया को सक्रिय करती हैं।
बहुत से लोग सोचते हैं कि सुबह-सुबह की हल्की धूप फायदेमंद होती है,
लेकिन वास्तव में दोपहर से पहले वाली तेज धूप ज्यादा असरदार होती है — बस जरूरत से ज्यादा देर तक न बैठें।
कितनी देर और कैसे लें धूप
रोजाना 15 से 30 मिनट धूप में बैठना पर्याप्त है।
कोशिश करें कि आपके चेहरा, हाथ और पैर सीधे धूप के संपर्क में हों।
धूप लेने के तुरंत बाद शरीर को कपड़ों से ढक लें या छाया में चले जाएं।
धूप में बैठते समय ये गलती न करें
धूप में बैठने से पहले सनस्क्रीन का उपयोग न करें।
सनस्क्रीन एक रक्षक परत की तरह काम करता है जो यूवीबी किरणों को रोक देता है, जिससे शरीर में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया 90% तक घट जाती है।
पहले 15-30 मिनट बिना सनस्क्रीन के धूप लें, फिर सनस्क्रीन लगाकर त्वचा की सुरक्षा करें।
त्वचा का रंग भी करता है असर
जिन लोगों की त्वचा का रंग गहरा (डार्क) होता है, उन्हें हल्की त्वचा वाले लोगों की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक समय धूप में रहना पड़ता है ताकि पर्याप्त विटामिन डी बन सके।
अगर धूप नहीं मिल पा रही तो क्या करें?
यदि आप रोजाना धूप में नहीं बैठ पाते, तो आहार से भी विटामिन डी ले सकते हैं।
अपने भोजन में शामिल करें:
अंडे की जर्दी (Egg Yolk)
सैल्मन, टूना जैसी मछलियां (Fatty Fish)
फोर्टिफाइड दूध और अनाज (Fortified Milk & Cereals)
या फिर डॉक्टर की सलाह से विटामिन डी सप्लीमेंट का सेवन करें।
शरीर और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि नींद की कमी न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि कई शारीरिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देती है।
आजकल नींद की समस्या तेजी से बढ़ रही है। पहले यह सिर्फ बुजुर्गों या कामकाजी लोगों में देखी जाती थी, लेकिन अब बच्चों और युवाओं में भी नींद न आने की परेशानी आम हो गई है। मोबाइल, लैपटॉप, देर रात तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल, तनाव और अनियमित जीवनशैली इसके मुख्य कारण हैं। शोध के अनुसार, भारत में हर तीसरा व्यक्ति नींद से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है।
नींद की कमी के दुष्प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पर्याप्त नींद न लेने से प्रतिरोधक क्षमता कमजोर, मानसिक संतुलन बिगड़ता है और क्रॉनिक बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी और मधुमेह का खतरा बढ़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य: नींद पूरी न होने से दिमाग को आराम नहीं मिलता, जिससे तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ सकते हैं।
हृदय स्वास्थ्य: नींद की कमी स्ट्रेस हार्मोन बढ़ाती है, जिससे दिल पर दबाव पड़ता है और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है।
तकनीकी उपकरणों का असर: मोबाइल और कंप्यूटर की ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन को रोकती है, जो नींद के लिए जरूरी है।
नींद में सुधार के उपाय
सोने-जागने का समय निर्धारित करें
रोज़ाना एक ही समय पर सोएं और उठें। कमरा शांत, अंधेरा और ठंडा रखें।
शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं
नियमित व्यायाम से शरीर थकता है और सोना आसान होता है। ध्यान और रिलैक्सेशन तकनीकें तनाव कम करती हैं।
स्मार्टफोन और स्क्रीन टाइम कम करें
सोने से 1-2 घंटे पहले फोन, लैपटॉप या टीवी का इस्तेमाल बंद करें। आवश्यक होने पर डॉक्टर की सलाह से मेलाटोनिन सप्लीमेंट लिया जा सकता है।
यदि नींद की समस्या मानसिक रोग जैसे अवसाद या एंग्जायटी से जुड़ी हो, तो मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
अच्छी नींद ही है स्वस्थ जीवन की कुंजी।
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पेट में गैस होना एक आम समस्या है, जो किसी को भी कभी भी परेशान कर सकती है। यह तब होता है जब पाचन तंत्र में भोजन पचते समय गैस जमा हो जाती है, जिससे पेट फूलना, ऐंठन और बेचैनी जैसी समस्याएं होती हैं।
गैस की समस्या अक्सर तब बढ़ती है जब हम जल्दी-जल्दी खाते हैं, भोजन ठीक से नहीं चबाते, या तैलीय, मसालेदार और गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं। हालांकि, बाजार में इसके लिए कई दवाइयां उपलब्ध हैं, लेकिन हमेशा दवा लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि इनमें साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।
सौभाग्य से, हमारे किचन में कुछ ऐसे प्राकृतिक उपाय मौजूद हैं, जो मिनटों में गैस और पेट की सूजन से राहत दिला सकते हैं।
अजवाइन और काला नमक का असरदार नुस्खा
अजवाइन पेट की गैस दूर करने का सबसे पुराना और प्रभावी उपाय है। इसमें मौजूद ‘थाइमोल’ गैस्ट्रिक स्राव को उत्तेजित करता है।
कैसे करें:
1 चम्मच अजवाइन लें
इसे हल्के गर्म पानी और एक चुटकी काला नमक के साथ खाएं
कुछ ही मिनटों में पेट की ऐंठन और गैस में राहत मिलेगी
जीरा पानी और नींबू का जादू
जीरा पाचन के लिए बेहद फायदेमंद है। नींबू में मौजूद साइट्रिक एसिड पाचन सुधारता है, जबकि जीरा गैस बनने से रोकता है।
कैसे करें:
1 गिलास गुनगुना पानी लें
1 चम्मच जीरा पाउडर और आधा नींबू का रस मिलाएं
इसे पिएं, पेट की सूजन (ब्लोटिंग) और गैस में आराम मिलेगा
हींग और अदरक से तुरंत राहत
हींग एक शक्तिशाली वातनाशक है। अदरक पेट की ऐंठन और गैस कम करने में मदद करता है।
कैसे करें:
एक चुटकी हींग को गुनगुने पानी में घोलकर पीएं
या अदरक का छोटा टुकड़ा चबाएं, या अदरक की चाय पिएं
जीवनशैली में बदलाव से लंबी अवधि की राहत
भोजन धीरे-धीरे और अच्छे से चबाकर खाएं
भोजन के तुरंत बाद लेटने या सोने से बचें
हल्के योगासन, जैसे वज्रासन, नियमित करें
दिनभर में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, यह कब्ज और गैस दोनों से बचाता है
ध्यान दें: यदि इन उपायों के बावजूद पेट में गैस और दर्द बढ़ता है, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
(साभार)
