हृदय रोग आज हर उम्र के लोगों के लिए चिंता का कारण बन गया हैं। पहले ये समस्या ज्यादातर बुजुर्गों में देखी जाती थी, लेकिन अब कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लाखों लोग हृदय रोगों के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। बदलती जीवनशैली, धूम्रपान, शराब और शारीरिक निष्क्रियता इस संकट के मुख्य कारण माने जा रहे हैं।
धमनियों में प्लाक और हृदय रोग
हृदय रोगों के पीछे सबसे बड़ा कारण है धमनियों में प्लाक का जमना, जिसे मेडिकल भाषा में एथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं। यह धीरे-धीरे रक्त वाहिकाओं को संकीर्ण कर देता है और हृदय तक पर्याप्त रक्त और ऑक्सीजन पहुंचने में बाधा डालता है।
प्लाक मुख्यतः फैट, कोलेस्ट्रॉल, कैल्शियम और मृत कोशिकाओं का मिश्रण होता है। ये रक्त वाहिकाओं की भीतरी परत में जमने लगते हैं और खून के प्रवाह को बाधित करते हैं। शोध बताते हैं कि यह प्रक्रिया कई वर्षों में विकसित होती है और लक्षण सामने आने तक धमनी का अधिकांश हिस्सा ब्लॉक हो चुका होता है।
प्लाक बनने के कारण
अस्वस्थ जीवनशैली: जंक फूड, अधिक तेल-घी, रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड।
धूम्रपान और शराब: धमनी की दीवारों को नुकसान पहुंचाते हैं।
डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर: धमनियों की परत कमजोर करती हैं।
हृदय पर असर
धमनियों में प्लाक जमा होने से हृदय को पर्याप्त रक्त और ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। इसके परिणामस्वरूप सीने में दर्द, थकान और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अगर प्लाक टूट जाए तो रक्त का थक्का बन सकता है, जिससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
युवाओं में बढ़ता खतरा
हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार, युवाओं में यह खतरा मुख्यतः असंतुलित जीवनशैली और धूम्रपान के कारण बढ़ा है। बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल भी प्लाक बनने की प्रक्रिया को तेज कर रहा है। अगर समय रहते सावधानी नहीं बरती गई, तो भविष्य में देश की बड़ी आबादी हृदय रोगों की गिरफ्त में आ सकती है।
धमनियों में प्लाक रोकने के आसान उपाय
धूम्रपान बंद करें: यह हृदय के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
संतुलित आहार लें: हेल्दी फैट वाले भोजन जैसे देसी घी, बादाम, अखरोट और मछली शामिल करें। तले-भुने और प्रोसेस्ड फूड कम खाएं।
फाइबर युक्त आहार: गेहूं, जई, दाल, सब्जियां और बीन्स शामिल करें।
नियमित व्यायाम: योग, प्राणायाम और हल्का व्यायाम हृदय स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद हैं।
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प्लास्टिक ने कभी इंसानों की जिंदगी को आसान बनाने का वादा किया था, लेकिन अब यही प्लास्टिक हमारी सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि रोज़मर्रा के पानी की बोतल, पैकेज्ड फूड और प्लास्टिक बैग में मौजूद सूक्ष्म कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, धीरे-धीरे हमारे शरीर में जमा हो रहे हैं और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहे हैं।
शोधों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक अब लगभग हर इंसान के शरीर में मौजूद हैं। साल 2022 के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पहली बार इंसानों के खून में इन कणों की पुष्टि की। ये छोटे-छोटे कण खून, अंगों और हड्डियों तक पहुंचकर सूजन, कोशिकाओं को नुकसान और गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
रोजाना औसतन हर इंसान लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है। यह कण न केवल खाने और पानी के जरिए शरीर में प्रवेश कर रहे हैं, बल्कि हवा और यहां तक कि नमक में भी मौजूद हैं।
हड्डियों पर असर:
ब्राजील के वैज्ञानिकों की समीक्षा में पता चला कि माइक्रोप्लास्टिक हड्डियों की मज्जा में मौजूद स्टेम सेल्स की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। इससे हड्डियों का क्षय तेज होता है और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन की चेतावनी है कि 2050 तक हड्डियों के टूटने की घटनाएं 32 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं।
फेफड़ों और कैंसर का खतरा:
हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक कण फेफड़ों तक पहुंचकर सूजन, एलर्जी, अस्थमा और लंबे समय में फेफड़ों की क्षमता घटाने का काम कर सकते हैं। कुछ शोधों में इन कणों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी जोड़ा गया है।
बच्चों के लिए खतरा:
विशेषज्ञों का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक बच्चों के लिए भी खतरा हैं। प्लास्टिक की बोतलों और पैकेज्ड फूड के लगातार इस्तेमाल से शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ती है और शिशुओं में क्रॉनिक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
निष्कर्ष:
विज्ञानियों का मानना है कि अगर समय रहते प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में लाखों लोग हड्डियों, फेफड़ों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करेंगे।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग घंटों तक एक ही जगह बैठे रहते हैं—चाहे ऑफिस में कंप्यूटर के सामने हों, घर पर टीवी देख रहे हों या मोबाइल स्क्रॉल कर रहे हों। यह आदत धीरे-धीरे हमारी सेहत को अंदर से कमजोर कर रही है। डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक बैठे रहना जितना खतरनाक है, उससे भी ज्यादा नुकसानदेह है पैरों को क्रॉस करके बैठना।
क्यों है क्रॉस-लेग बैठना हानिकारक?
बहुत से लोग इसे आरामदायक मानते हैं, लेकिन शोध बताते हैं कि पैरों को क्रॉस करके बैठना ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और ब्लड क्लॉट जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है। मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार, इस पोज़िशन से शरीर का पोश्चर बिगड़ता है और रक्त प्रवाह रुकावट का शिकार हो जाता है।
‘ई-थ्रोम्बोसिस’ और ब्लड क्लॉट का खतरा
नवीनतम अध्ययन बताते हैं कि डेस्क पर लंबे समय तक क्रॉस-लेग बैठना “ई-थ्रोम्बोसिस” का कारण बन सकता है। यह समस्या तब होती है जब शरीर के निचले हिस्से में रक्त का संचार बाधित हो जाता है और खून का थक्का जमने लगता है। यह थक्का अगर फेफड़ों तक पहुंच जाए, तो पल्मोनरी एम्बोलिज्म जैसी जानलेवा स्थिति बन सकती है।
डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) का रिस्क
क्रॉस-लेग बैठने से पैरों की नसों पर लगातार दबाव पड़ता है। इससे खून का बहाव धीमा हो जाता है और पैरों में सूजन, झनझनाहट व सुन्नपन जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। बार-बार ऐसा करने से डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) होने की आशंका बढ़ जाती है।
अन्य स्वास्थ्य समस्याएं
लंबे समय तक इस पोज़िशन में बैठने से ब्लड प्रेशर असामान्य रूप से बढ़ सकता है।
दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे हृदय रोग का खतरा रहता है।
रीढ़ की हड्डी पर असमान दबाव पड़ने से पीठ और कमर दर्द बढ़ सकता है।
लंबे समय तक गलत तरीके से बैठना स्कोलियोसिस (रीढ़ का टेढ़ापन) जैसी समस्या भी पैदा कर सकता है।
निष्कर्ष
एक ही पोजिशन में बैठे रहना और खासकर पैरों को क्रॉस करके बैठना आपकी सेहत के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है। इसलिए हर थोड़ी देर में उठकर चलना-फिरना, स्ट्रेचिंग करना और सही पोश्चर में बैठना बेहद जरूरी है।
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डायबिटीज अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि हर उम्र के लोगों में तेजी से फैल रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह सिर्फ ब्लड शुगर बढ़ाने वाली बीमारी नहीं है, बल्कि समय रहते नियंत्रण न करने पर यह आंखों, किडनी और दिल जैसी महत्वपूर्ण अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि हाई शुगर लंबे समय तक शरीर की नसों को कमजोर कर देता है, जिससे पैरों में रक्त का प्रवाह बाधित हो सकता है। इसे डायबिटिक फुट कहा जाता है। अगर इस स्थिति को नजरअंदाज किया जाए, तो पैरों में अल्सर बन सकते हैं और गंभीर मामलों में पैर का हिस्सा काटना भी पड़ सकता है।
डायबिटिक फुट कैसे बनता है?
लंबे समय तक हाई शुगर रहने पर नसें कमजोर हो जाती हैं, जिससे पैरों में दर्द या चोट का एहसास नहीं होता।
रक्त वाहिकाओं के कमजोर होने से पैर तक ऑक्सीजन और खून सही मात्रा में नहीं पहुंचता।
छोटे घाव भी जल्दी ठीक नहीं होते और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
सावधानियाँ और बचाव:
पैरों में छोटे-छोटे छाले, कट या फटी एड़ियों पर तुरंत ध्यान दें।
अगर घाव 2-3 हफ्तों में ठीक न हो, बदबू या मवाद आए, या पैर का हिस्सा काला पड़ने लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
नियमित शुगर जांच और पैर की देखभाल से डायबिटिक फुट और इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि डायबिटीज और पैर की समस्याओं को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। समय रहते सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है।
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हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्ज़ाइमर दिवस (World Alzheimer’s Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को अल्ज़ाइमर जैसी गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी के बारे में जागरूक करना है। यह रोग धीरे-धीरे स्मृति, सोचने-समझने की क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करता है। दुनियाभर में लाखों लोग अल्ज़ाइमर से जूझ रहे हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में इसके मरीजों की संख्या और बढ़ सकती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि अल्ज़ाइमर को नज़रअंदाज़ करना खतरनाक साबित हो सकता है। इससे बचाव के लिए हेल्दी डाइट, संतुलित जीवनशैली और नियमित योगाभ्यास बेहद फायदेमंद माने जाते हैं। खासकर कुछ योगासन ऐसे हैं जो दिमाग को अधिक सक्रिय रखते हैं, एकाग्रता बढ़ाते हैं और याददाश्त को मजबूत बनाते हैं। आइए जानते हैं वर्ल्ड अल्ज़ाइमर डे 2025 पर दिमागी शक्ति बढ़ाने वाले कुछ प्रमुख योगासनों के बारे में।
दिमागी शक्ति बढ़ाने वाले प्रमुख योगासन
1. पद्मासन
यह आसन मन को स्थिर करता है और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। नियमित अभ्यास से तनाव और चिंता कम होती है। माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए भी यह योगासन लाभकारी माना जाता है।
2. वज्रासन
खाने के बाद किया जाने वाला यह आसन पाचन को सुधारता है और मानसिक सेहत पर सकारात्मक असर डालता है। घुटनों के बल बैठकर ध्यान लगाने से दिमाग को शांति और स्थिरता मिलती है।
3. प्राणायाम
प्राणायाम का अभ्यास मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाता है। इससे मानसिक स्पष्टता बढ़ती है, तनाव कम होता है और सोचने-समझने की क्षमता बेहतर होती है।
4. शीर्षासन
इस आसन को योग का राजा कहा जाता है। रोजाना कुछ मिनट शीर्षासन करने से मस्तिष्क में रक्त संचार बढ़ता है, जिससे स्मृति और फोकस पावर मजबूत होती है।
5. ताड़ासन
यह सरल मगर असरदार आसन शरीर और दिमाग के बीच तालमेल बनाता है। ताड़ासन तनाव को कम करता है और मानसिक शक्ति को बढ़ावा देता है।
इस तरह योगासन को अपनी दिनचर्या में शामिल करके न सिर्फ अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है, बल्कि दिमाग को लंबे समय तक सक्रिय और स्वस्थ भी रखा जा सकता है।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वजन बढ़ना और खासतौर पर पेट पर चर्बी जमा होना सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक बन चुका है। यह परेशानी अब केवल बड़े-बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि युवाओं और बच्चों में भी तेजी से देखने को मिल रही है। डॉक्टरों के अनुसार, पेट और कमर के आसपास की अतिरिक्त चर्बी शरीर के लिए सबसे खतरनाक मानी जाती है, क्योंकि यह कई गंभीर बीमारियों की जड़ बन सकती है।
अध्ययन बताते हैं कि जिन लोगों के पेट पर फैट ज्यादा जमा होता है, उनमें हृदय रोग, डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी क्रॉनिक बीमारियों का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक होता है। यही कारण है कि विशेषज्ञ सभी को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और समय-समय पर वजन नियंत्रित रखने की सलाह देते हैं।
असल समस्या यह है कि अधिकतर लोग बेली फैट को सिर्फ गलत खानपान से जोड़ते हैं, जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है। नींद की कमी, देर रात तक जागना, शराब का सेवन और लंबे समय तक बैठे रहना भी पेट की चर्बी बढ़ाने के बड़े कारण हैं।
नींद और बेली फैट का गहरा संबंध
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग रात में छह घंटे से कम सोते हैं, उनमें पेट पर चर्बी जमा होने का खतरा 30% ज्यादा होता है। नींद पूरी न होने से मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है और फैट तेजी से स्टोर होने लगता है।
शराब और पेट की चर्बी
विशेषज्ञ बताते हैं कि शराब में मौजूद अतिरिक्त कैलोरी सीधे पेट और लिवर पर चर्बी के रूप में जम जाती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोध के अनुसार, नियमित रूप से शराब पीने वालों में बेली फैट का खतरा और भी अधिक रहता है।
निष्कर्ष
पेट की चर्बी को हल्के में लेना आपके स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डाल सकता है। इसे कम करने के लिए केवल डाइटिंग ही नहीं, बल्कि नींद पूरी करना, शराब से दूरी बनाना और रोजाना शारीरिक गतिविधि बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
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आज की डिजिटल लाइफस्टाइल में मोबाइल और कंप्यूटर हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं। ऑफिस का काम हो, ऑनलाइन क्लास या फिर दोस्तों से बातचीत—हर जगह स्क्रीन हमारे साथ रहती है। लेकिन यह सुविधा धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है। खासकर गैजेट्स से निकलने वाली नीली रोशनी (ब्लू लाइट) हमारी आंखों, दिमाग और त्वचा पर गहरा असर डाल रही है।
कई शोध बताते हैं कि लंबे समय तक स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रखने से न सिर्फ नींद खराब होती है, बल्कि यह समय से पहले बुढ़ापा (Premature Ageing) भी ला सकती है। लगातार ब्लू लाइट के संपर्क में रहने से थकान, हार्मोनल असंतुलन, त्वचा पर झुर्रियां और यहां तक कि मानसिक तनाव जैसी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग घंटों कमरे या ऑफिस के अंदर काम करते हैं और बाहर धूप या प्राकृतिक रोशनी से दूर रहते हैं, उनके शरीर में विटामिन-डी की कमी और मोटापे जैसी परेशानियां जल्दी सामने आती हैं। अगर इसके साथ ब्लू लाइट का असर जुड़ जाए तो स्वास्थ्य जोखिम और बढ़ जाते हैं।
अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि लगातार ब्लू लाइट के संपर्क में रहने से शरीर की जैविक घड़ी (Biological Clock) प्रभावित होती है। यह न सिर्फ नींद और ऊर्जा स्तर बिगाड़ती है, बल्कि कोशिकाओं की कार्यक्षमता भी कम करती है। पशुओं पर हुए इस रिसर्च में स्पष्ट हुआ कि ब्लू लाइट ने उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर दिया और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाया।
नींद पर असर, मोटापे का खतरा और त्वचा की चमक खोना—ये सब ब्लू लाइट की वजह से होने वाले दुष्प्रभाव हैं। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक स्क्रीन से निकलने वाली यह रोशनी त्वचा पर झुर्रियां, दाग-धब्बे और समय से पहले बुढ़ापा लाने में अहम भूमिका निभाती है।
अगर आप भी दिनभर मोबाइल और लैपटॉप में डूबे रहते हैं, तो अब वक्त आ गया है कि सावधान हो जाएं और स्क्रीन टाइम को कम करें। प्राकृतिक रोशनी और बाहर की ताज़ी हवा आपके स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए बेहद जरूरी है।
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दुनियाभर में बदलती लाइफस्टाइल और अस्वास्थ्यकर आदतें गंभीर बीमारियों का कारण बन रही हैं। अनियमित दिनचर्या, नींद की कमी और लंबे समय तक निष्क्रिय रहना पहले से ही चिंता का विषय हैं, लेकिन हालिया रिपोर्ट बताती है कि युवाओं में बढ़ती धूम्रपान की लत सबसे खतरनाक साबित हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू सेवन हर साल लाखों भारतीयों की जान ले रहा है, बावजूद इसके देश में धूम्रपान छोड़ने की दर बेहद कम बनी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 13.5 लाख लोगों की मौत धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह संख्या लगातार बढ़ रही है। खास बात यह है कि जागरूकता अभियानों और सरकारी प्रयासों के बावजूद युवा वर्ग में तंबाकू की खपत कम नहीं हो रही।
धूम्रपान से स्वास्थ्य पर घातक असर
विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान से हृदय रोगों का खतरा 2–3 गुना तक बढ़ जाता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन रक्त वाहिकाओं को सिकोड़ देता है, जिससे ऑक्सीजन की कमी और उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा होती है। यही स्थिति आगे चलकर हार्ट अटैक, स्ट्रोक और सीओपीडी जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देती है। धूम्रपान न सिर्फ हृदय और फेफड़ों को, बल्कि शरीर के लगभग हर अंग को प्रभावित करता है।
आर्थिक बोझ भी भारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों पर लगभग 1.77 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है। यानी धूम्रपान स्वास्थ्य के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल रहा है।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. सुनैना सोनी (एम्स-सीएपीएफआईएमएस) कहती हैं कि भारत में धूम्रपान छोड़ने की दर बहुत कम है, जो चिंताजनक है। ऐसे में सुरक्षित और टोबैको-फ्री निकोटीन विकल्पों पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि लोग सिगरेट छोड़ने की ओर कदम बढ़ा सकें।
कई वैश्विक रिसर्च बताती हैं कि स्मोक-फ्री निकोटीन उत्पाद धूम्रपान की तुलना में 95% तक कम हानिकारक होते हैं, क्योंकि इनमें टार और धुआं नहीं होता। हालांकि ये पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन धूम्रपान छोड़ने में मददगार साबित हो सकते हैं।
भारत के सामने चुनौती
भारत में हर 10 में से 1 व्यक्ति तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण समय से पहले मौत का शिकार होता है। सरकार ने 2025 तक तंबाकू उपयोग को 30% तक घटाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वैकल्पिक उपायों और जागरूकता अभियानों को और मजबूत नहीं किया गया, तो यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।
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पेट में समय-समय पर होने वाला हल्का दर्द अक्सर हमें सामान्य लगता है और हम इसे गैस, अपच या गलत खान-पान की वजह मानकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन अगर यह दर्द बार-बार हो या लंबे समय तक बना रहे, तो यह शरीर में किसी गंभीर बीमारी का शुरुआती संकेत भी हो सकता है। लगातार बने रहने वाला पेट दर्द सिर्फ एक साधारण समस्या नहीं है, बल्कि यह पाचन तंत्र, लिवर, किडनी या आंतों से जुड़ी कई स्वास्थ्य दिक्कतों की ओर इशारा कर सकता है। इसलिए इसे नजरअंदाज करने की बजाय समय पर कारण को समझना और इलाज करना बेहद जरूरी है।
इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS)
आईबीएस एक सामान्य लेकिन परेशान करने वाली समस्या है, जो बड़ी आंत को प्रभावित करती है। इसके लक्षणों में पेट में लगातार हल्का दर्द, गैस, पेट फूलना और कब्ज या दस्त जैसी परेशानी शामिल होती है। यह बीमारी लंबे समय तक बनी रहती है और तनाव या कुछ खास खाने की चीजों से बढ़ सकती है।
गैस्ट्राइटिस और अल्सर
पेट की अंदरूनी परत में सूजन को गैस्ट्राइटिस कहा जाता है, जिससे जलन और दर्द महसूस होता है। अगर इसका समय पर इलाज न किया जाए तो यह अल्सर का रूप ले सकती है। अल्सर होने पर खाली पेट या खाना खाने के बाद तेज दर्द महसूस होता है, खासकर पेट के ऊपरी हिस्से में।
पित्ताशय और लिवर संबंधी दिक्कतें
पेट के दाहिने ऊपरी हिस्से में लगातार बना रहने वाला दर्द पित्ताशय या लिवर की समस्या का संकेत हो सकता है। पित्ताशय की पथरी या फैटी लिवर की स्थिति में मतली, उल्टी और लगातार दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं। ऐसे मामलों में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना जरूरी है।
कब लें डॉक्टर की सलाह?
अगर पेट का दर्द दो हफ्तों से ज्यादा समय तक बना रहे या इसके साथ उल्टी, बुखार, खून की उल्टी, भूख न लगना और वजन कम होना जैसे लक्षण हों, तो इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें और तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।
बचाव और सावधानियां
संतुलित और पौष्टिक आहार लें।
तैलीय और मसालेदार भोजन से बचें।
रोजाना पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
तनाव से दूर रहने की कोशिश करें।
नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
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आज की भाग-दौड़ और तनावपूर्ण जिंदगी में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) एक आम लेकिन गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है। यह न केवल हृदय रोगों का कारण बनता है, बल्कि स्ट्रोक, किडनी की समस्याओं और दृष्टि पर भी असर डाल सकता है। ऐसे में सिर्फ दवाओं पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होता। स्थायी और प्राकृतिक उपाय अपनाना जरूरी हो जाता है।
योग एक प्राचीन और वैज्ञानिक तरीका है, जो न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि मानसिक शांति और ऊर्जा भी प्रदान करता है। नियमित योगासन और प्राणायाम के अभ्यास से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, तनाव कम होता है और जीवनशैली में सुधार आता है।
नीचे कुछ प्रभावशाली योगासन बताए गए हैं, जिनके नियमित अभ्यास से उच्च रक्तचाप को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है:
उच्च रक्तचाप कम करने वाले 5 प्रभावशाली योगासन
1. शवासन (Shavasana)
शवासन सरल लेकिन बेहद प्रभावशाली योगासन है। यह पूरे शरीर को आराम देता है, तनाव और उच्च रक्तचाप को कम करता है। नियमित अभ्यास से मानसिक शांति मिलती है और हल्का अवसाद, सिरदर्द, थकान तथा अनिद्रा जैसी परेशानियां भी दूर होती हैं।
2. वज्रासन (Vajrasana)
वज्रासन पाचन तंत्र के लिए बेहद लाभकारी है। भोजन के बाद 5-10 मिनट इस आसन में बैठने से एसिडिटी, कब्ज और गैस जैसी समस्याओं में राहत मिलती है, जिससे रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है। यह डायबिटीज में भी सहायक होता है।
3. सेतुबंधासन (Setu Bandhasana)
सेतुबंधासन दिल और फेफड़ों को मजबूत करता है, नसों को शांत करता है और रक्त प्रवाह को नियमित रखता है। यह कमर को मजबूत बनाता है और मानसिक तनाव कम करता है। अभ्यास के लिए पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ें और कूल्हों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। 20-30 सेकंड तक इस स्थिति में रहें।
4. बालासन (Balasana)
बालासन मानसिक शांति और तनाव कम करने के लिए आदर्श है। वज्रासन में बैठकर शरीर को आगे झुकाएं और माथा ज़मीन पर टिकाएं। हाथों को आगे फैलाएं या शरीर के पास रखें। कम से कम 1-2 मिनट इसी स्थिति में रहें। यह आसन पीठ और कमर की थकान को भी दूर करता है।
5. प्राणायाम (Pranayama)
नियमित प्राणायाम, जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, रक्तचाप को नियंत्रित करने में अत्यंत प्रभावी हैं। ये न केवल हृदय और फेफड़ों को मजबूत करते हैं बल्कि मानसिक तनाव और चिंता को भी कम करते हैं।
(साभार)
