आज के समय में बालों का झड़ना आम समस्या बन चुकी है। खराब खान-पान, तनाव और बिगड़ी हुई दिनचर्या इसके बड़े कारण हैं। लेकिन अक्सर लोग यह भी कहते हैं कि हेलमेट पहनने की वजह से बाल झड़ते हैं या गंजापन आता है। सुनने में यह अजीब लगता है कि जो हेलमेट सिर को सुरक्षा देता है, वही आपके बालों का दुश्मन बन सकता है। तो आखिर इस दावे में कितनी सच्चाई है? आइए जानते हैं।
क्या सच में हेलमेट से बाल झड़ते हैं?
हकीकत यह है कि हेलमेट बाल झड़ने का सीधा कारण नहीं है। बल्कि, हेलमेट पहनने से जुड़ी कुछ आदतें और लापरवाही हेयर फॉल को बढ़ावा दे सकती हैं।
क्यों बढ़ता है हेयर फॉल?
पसीना और गंदगी का जमाव
लंबे समय तक हेलमेट पहनने से सिर में पसीना जम जाता है। इससे बैक्टीरिया और फंगल इंफेक्शन हो सकते हैं, जो हेयर फॉल को बढ़ाते हैं।
स्कैल्प को हवा न मिलना
टाइट और बंद हेलमेट स्कैल्प को सांस लेने नहीं देता। इससे बालों की जड़ें कमजोर हो सकती हैं।
साफ-सफाई की कमी
धूलभरे या गंदे हेलमेट का इस्तेमाल स्कैल्प पर डैंड्रफ, खुजली और रैशेज का कारण बनता है, जिससे बाल झड़ते हैं।
खराब क्वालिटी की पैडिंग
सस्ते या नकली हेलमेट में लगी खराब फोम स्कैल्प पर एलर्जिक रिएक्शन कर सकती है और हेयर फॉल को बढ़ा देती है।
बालों को सुरक्षित रखने के आसान उपाय
हमेशा अच्छी क्वालिटी और साफ हेलमेट का इस्तेमाल करें।
हेलमेट पहनने से पहले बालों को बचाने के लिए कॉटन का स्कार्फ या सॉफ्ट कैप लगाएं।
समय-समय पर हेलमेट की सफाई करें।
बालों की मजबूती के लिए संतुलित डाइट, पर्याप्त नींद और सही हेयर केयर अपनाएं।
लंबे समय तक हेयर फॉल की समस्या हो तो डर्मेटोलॉजिस्ट से परामर्श लें।
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आजकल ज्यादातर लोग वजन घटाने के लिए घंटों जिम में पसीना बहाते हैं, स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो करते हैं या फिर महंगे फिटनेस प्रोग्राम्स पर खर्च करते हैं। लेकिन अगर आपके पास इतना समय या साधन नहीं है, तो भी चिंता की कोई बात नहीं। क्या आप जानते हैं कि सिर्फ खड़े-खड़े भी वजन घटाना संभव है? जी हां, योग और स्ट्रेचिंग के कुछ आसान आसनों की मदद से आप बिना झुके भी कैलोरी बर्न कर सकते हैं। यह तरीका खासतौर पर उन लोगों के लिए बेहतर है जो जिम नहीं जा पाते या कमर और पीठ दर्द से परेशान रहते हैं।
खड़े होकर किए जाने वाले योगासन जैसे ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिकोणासन और उत्कटासन न सिर्फ पेट और कमर की चर्बी कम करने में मदद करते हैं बल्कि शरीर को एनर्जी और बैलेंस भी देते हैं। वहीं, स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज जैसे साइड बेंड, आर्म स्ट्रेच और नेक स्ट्रेच लचीलापन बढ़ाते हैं और ब्लड सर्कुलेशन को सुधारते हैं। रिसर्च के मुताबिक, महज 10–15 मिनट की खड़े होकर की गई एक्सरसाइज भी मेटाबॉलिज्म को एक्टिव कर कैलोरी बर्न करना शुरू कर देती है।
खड़े-खड़े करें स्ट्रेचिंग
सिर्फ कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग से आप जिद्दी चर्बी पर काबू पा सकते हैं। यह मांसपेशियों को लचीला बनाती है और शरीर को एनर्जेटिक रखती है। सुबह उठते ही या रात को सोने से पहले खड़े होकर स्ट्रेचिंग करना बेहद फायदेमंद है।
वजन घटाने में मददगार खड़े होकर किए जाने वाले योगासन
ताड़ासन (Mountain Pose)
यह सबसे आसान योगासन है जो पूरे शरीर की मांसपेशियों को एक्टिव करता है और सही पॉश्चर बनाता है। रोज़ाना 5 मिनट ताड़ासन करने से पेट और कमर की चर्बी पर असर दिखने लगता है।
वृक्षासन (Tree Pose)
इस आसन से बॉडी बैलेंस बेहतर होता है और कोर मसल्स मजबूत बनते हैं। यह जांघों और पेट की चर्बी घटाने के साथ-साथ मानसिक एकाग्रता भी बढ़ाता है।
त्रिकोणासन (Triangle Pose)
यह आसन साइड स्ट्रेच कराता है जिससे कमर और पेट की चर्बी तेजी से कम होती है। साथ ही शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी भी बढ़ती है।
उत्कटासन (Chair Pose)
इस आसन में खड़े होकर बैठने जैसी स्थिति बनती है। यह जांघ, हिप्स और पैरों की चर्बी घटाने के लिए बेहद असरदार है। इसे रोज़ 3–4 बार दोहराने से फैट बर्निंग और तेज़ हो जाती है।
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आजकल जोड़ो का दर्द केवल बुज़ुर्गों तक सीमित नहीं रह गया है। बदलती लाइफस्टाइल, लंबे समय तक कंप्यूटर या मोबाइल पर काम करना, और असंतुलित खानपान की वजह से युवा भी इस परेशानी का सामना कर रहे हैं। दवाइयाँ अस्थायी राहत तो देती हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं। ऐसे में योग सबसे असरदार उपाय साबित हो सकता है। योगासन न सिर्फ जोड़ों के दर्द को कम करते हैं, बल्कि हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत और लचीला भी बनाते हैं।
अगर आप जोड़ो के दर्द से लंबे समय तक राहत पाना चाहते हैं, तो दवाइयों पर निर्भर होने की बजाय योगासन को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। शुरुआत धीरे-धीरे करें और किसी योग्य योग शिक्षक की मार्गदर्शन में आसनों को सही तरीके से अपनाएं। नियमित अभ्यास से न केवल दर्द कम होगा, बल्कि शरीर चुस्त, सक्रिय और ऊर्जावान भी बनेगा।
आइए जानते हैं 5 योगासन जो जोड़ो के दर्द को कम करने में सबसे प्रभावी हैं:
1. वज्रासन
वज्रासन पाचन सुधारने और सूजन कम करने में मदद करता है। यह आसन घुटनों और पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करता है और रक्त संचार बेहतर बनाता है। रोजाना 5–10 मिनट तक अभ्यास करने से जोड़ो की जकड़न कम होती है।
2. त्रिकोणासन
त्रिकोणासन हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को लचीला रखने में असरदार है। यह कमर, घुटनों और टखनों की मांसपेशियों को सक्रिय करता है। लगातार अभ्यास से जोड़ो में अकड़न कम होती है और हड्डियों की मजबूती बढ़ती है।
3. सेतुबंधासन
सेतुबंधासन कमर और घुटनों के दर्द में राहत देता है। पीठ के बल लेटकर यह आसन नसों में रक्त प्रवाह बढ़ाता है और जोड़ो पर दबाव कम करता है। पुराने घुटनों या कमर के दर्द से छुटकारा पाने में यह बेहद उपयोगी है।
4. भुजंगासन
भुजंगासन पीठ और कमर की मांसपेशियों को मजबूत करता है और दर्द कम करता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और जोड़ो की तकलीफ के साथ-साथ पीठ के दर्द में भी राहत देता है।
5. ताड़ासन
ताड़ासन पूरे शरीर की स्ट्रेचिंग करता है और रक्त संचार को बढ़ाता है। यह आसन हड्डियों पर दबाव कम करता है और शरीर को संतुलित बनाता है। लंबे समय तक खड़े रहने या पैरों में दर्द होने वाले लोगों के लिए यह विशेष रूप से फायदेमंद है।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जिम्मेदारियों का बोझ हर किसी पर है—कभी ऑफिस का काम, तो कभी परिवार की देखभाल। लेकिन अगर इस बीच माइग्रेन की समस्या भी हो जाए तो दिनचर्या और मुश्किल लगने लगती है। माइग्रेन सिर्फ सिरदर्द नहीं है, बल्कि इसके साथ मतली, थकान, चिड़चिड़ापन और तेज रोशनी या आवाज से परेशानी भी जुड़ी होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि संतुलित दिनचर्या, पौष्टिक आहार और सही जीवनशैली से इस परेशानी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
सुबह की सही शुरुआत
दिन की शुरुआत ही आपके पूरे दिन का मूड और ऊर्जा तय करती है। कोशिश करें रोजाना एक ही समय पर उठने की। उठते ही तुरंत फोन या लैपटॉप न देखें, बल्कि कुछ मिनट स्ट्रेचिंग करें और फिर 10–15 मिनट योग या ध्यान में लगाएं। अनुलोम-विलोम और भ्रामरी जैसे प्राणायाम तनाव को कम करने और माइग्रेन के अटैक को नियंत्रित करने में बेहद असरदार माने जाते हैं।
नाश्ता कभी न छोड़ें
खाली पेट रहना माइग्रेन का बड़ा ट्रिगर है। इसलिए सुबह का नाश्ता कभी न छोड़ें। ओट्स, दलिया, फल, मूंग दाल चीला या हल्के पौष्टिक विकल्प आपके लिए बेहतर हैं। चाय-कॉफी या एनर्जी ड्रिंक का ज्यादा सेवन न करें, क्योंकि इनमें मौजूद कैफीन सिरदर्द को बढ़ा सकता है।
स्क्रीन से दूरी बनाएं
लंबे समय तक लगातार स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखना भी माइग्रेन को बढ़ा सकता है। अगर आपका काम कंप्यूटर या मोबाइल से जुड़ा है तो हर 30 मिनट बाद 1-2 मिनट का छोटा ब्रेक लें। बैठते समय पीठ सीधी रखें, स्क्रीन आंखों के लेवल पर हो और पैर जमीन पर टिके हों।
हाइड्रेशन और सुकून
पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन माइग्रेन को और खराब कर सकता है। इसलिए दिनभर पर्याप्त पानी पीएं। तनाव के बीच अगर सिरदर्द बढ़ रहा हो तो गहरी सांस लें, थोड़ा टहलें या अपना पसंदीदा संगीत सुनें। ये छोटे-छोटे ब्रेक आपके मूड को बेहतर बनाते हैं और दर्द को भी कम करते हैं।
अपने ट्रिगर को पहचानें
हर व्यक्ति के माइग्रेन ट्रिगर अलग हो सकते हैं—किसी को तेज आवाज या रोशनी परेशान करती है, किसी को भूख, मौसम में बदलाव या ज्यादा स्क्रीन टाइम। जब भी माइग्रेन हो, उस दिन का खाना, नींद का समय, मौसम और तनाव का स्तर नोट करें। इससे आपको अपने ट्रिगर पहचानने में मदद मिलेगी।
शाम को रिलेक्स करें
पूरे दिन की थकान के बाद खुद को रिलेक्स करना जरूरी है। इसके लिए हल्की वॉक, बागवानी, किताब पढ़ना या पेंटिंग जैसे काम कर सकते हैं। इससे दिमाग को सुकून मिलता है और तनाव कम होता है।
पर्याप्त नींद लें
माइग्रेन के मरीजों के लिए नींद सबसे बड़ी दवा है। रोजाना 7–8 घंटे की नींद लेना बेहद जरूरी है। सोने से पहले स्क्रीन बंद करें, कमरे की रोशनी हल्की करें और आरामदायक माहौल बनाएं।
जीवनशैली पर ध्यान दें
राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. के.एस. आनंद के अनुसार, माइग्रेन से राहत पाने के लिए दवाओं से ज्यादा जरूरी है अनुशासित जीवनशैली। समय पर भोजन, पर्याप्त पानी, स्ट्रेस मैनेजमेंट और मेडिटेशन से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। वे मानते हैं कि दवाइयां सिर्फ अस्थायी राहत देती हैं, लेकिन सही दिनचर्या ही माइग्रेन से लंबे समय तक सुरक्षा देती है।
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बरसात का मौसम आते ही डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ जाता है। इन्हीं में से एक है फाइलेरिया (हाथीपांव), जो मच्छरों के काटने से फैलने वाली गंभीर बीमारी है। यह रोग धीरे-धीरे शरीर की लसीका नलिकाओं को प्रभावित कर देता है और पैरों या शरीर के अन्य हिस्सों में असामान्य सूजन ला सकता है। अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो मरीज के जीवन पर भारी असर पड़ता है।
भारत सरकार ने 2027 तक फाइलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य तय किया है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में 10 से 28 अगस्त तक फाइलेरिया उन्मूलन अभियान चलाया जा रहा है। इस दौरान लोगों को मुफ्त दवा दी जा रही है, जिसका सेवन करना बेहद जरूरी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस दवा का सेवन करना ही संक्रमण को फैलने से रोकने का सबसे आसान और कारगर तरीका है।
बीमारी कैसे फैलती है?
संक्रमित मच्छर जब किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके शरीर में मौजूद कीड़े (पैरासाइट) खून के जरिए दूसरे इंसान में पहुंच जाते हैं और धीरे-धीरे उसकी लसीका नलिकाओं पर हमला करने लगते हैं। यही कारण है कि यह रोग गंदगी, खुले नाले और पानी के जमाव वाले इलाकों में ज्यादा फैलता है।
लक्षण और दिक्कतें
शुरुआत में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन धीरे-धीरे बुखार, दर्द और सूजन बढ़ने लगती है। पैरों में असामान्य सूजन आ जाती है, जिससे वे हाथी के पैर जैसे दिखने लगते हैं। पुरुषों में हाइड्रोसील (अंडकोश में पानी भरना) की समस्या भी हो सकती है।
बचाव के उपाय
हर साल सरकार की ओर से दी जाने वाली एमडीए दवा (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) का सेवन जरूर करें।
गर्भवती महिलाओं, एक साल से छोटे बच्चों और गंभीर रोगियों को यह दवा नहीं दी जाती।
मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें, पूरी बाजू के कपड़े पहनें और रिपेलेंट का इस्तेमाल करें।
विशेषज्ञों की सलाह
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बरसात के मौसम में मच्छरों की संख्या तेजी से बढ़ती है, जिससे फाइलेरिया समेत कई मच्छर जनित रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में सावधानी और समय पर दवा का सेवन ही सबसे बड़ा बचाव है।
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अगस्त का महीना है और मौसम का मिजाज बहुत ही बदलता रहा है। कभी तेज गर्मी, तो कभी अचानक हुई बारिश से वातावरण ठंडा हो जाता है। इस बदलाव का सीधा असर हमारी त्वचा पर पड़ता है। लोग अक्सर घमौरी, खुजली और छोटे-छोटे दानों जैसी समस्याओं से जूझते हैं। यदि सही समय पर ध्यान न दिया जाए, तो यह समस्या गंभीर रूप भी ले सकती है और डॉक्टर के पास जाने की जरूरत पड़ सकती है।
हालांकि, कुछ आसान घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप इन परेशानियों से राहत पा सकते हैं।
1. चंदन का लेप
चंदन का पेस्ट त्वचा पर आए दानों पर लगाएं। यह खुजली और जलन को कम करता है और त्वचा को ठंडक भी पहुंचाता है। पेस्ट बनाते समय सफाई का ध्यान रखें, ताकि कोई संक्रमण न हो।
2. नीम का पानी
यदि आपके पास नीम का पेड़ है तो इसके पत्तों को धोकर पानी में उबाल लें। ठंडा होने पर इस पानी से स्नान करें या रुई की मदद से प्रभावित हिस्सों पर लगाएं। नीम का पानी फंगल इंफेक्शन से भी राहत देता है।
3. बेसन और दही का पेस्ट
1 चम्मच बेसन और 1 चम्मच दही मिलाकर पेस्ट तैयार करें। इसे 15 मिनट के लिए त्वचा पर लगाएं और फिर साफ पानी से धो लें। बेसन त्वचा को साफ करता है और दही ठंडक पहुंचाता है।
गलतियों से बचें:
त्वचा पर दाने होने पर टाइट कपड़े न पहनें।
ज्यादा पसीना आने पर हल्के कपड़े पहनें और पसीने को साफ करते रहें।
दिन में दो बार ठंडे पानी से स्नान करें।
इन बातों का ध्यान रखें:
दाने पूरी तरह ठीक होने तक हवादार, ढीले कपड़े पहनें। खूब पानी, नारियल पानी और नींबू पानी पीते रहें। यदि दाने बढ़ जाएं, पस निकलने लगे या खुजली बहुत ज्यादा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में करियर, नौकरी का दबाव और व्यस्त दिनचर्या इस कदर हावी हो चुके हैं कि रिश्तों के लिए समय निकालना मुश्किल हो गया है। कई लोग अपने पार्टनर से अलग शहरों या देशों में रह रहे हैं, जबकि एक ही घर में रहने वाले लोग भी काम के बोझ के कारण एक-दूसरे को पर्याप्त समय नहीं दे पाते। नतीजा यह होता है कि एक साथी को अनदेखा महसूस होता है और वह भावनात्मक रूप से अकेलापन महसूस करने लगता है।
रिश्तों में दूरी कभी-कभी इतनी गहरी हो जाती है कि व्यक्ति अंदर से टूटने लगता है। ऐसे समय में योग न सिर्फ मानसिक संतुलन लौटाने में मदद करता है, बल्कि आत्म-स्वीकृति, आत्म-प्रेम और भावनात्मक मजबूती भी देता है। अगर आप भी पार्टनर से दूरी या अकेलेपन के कारण तनाव महसूस कर रहे हैं, तो कुछ आसान योगासन आपकी मानसिक सेहत को बेहतर बना सकते हैं।
पार्टनर से दूरी के भावनात्मक लक्षण
लगातार बेचैनी या घबराहट
खालीपन और अकेलेपन की भावना
मूड स्विंग या अनचाहा रोना
आत्मग्लानि या आत्म-संकोच
ध्यान की कमी और थकान
नींद में गड़बड़ी (बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद)
इन लक्षणों को नज़रअंदाज़ करने से मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है, इसलिए इन्हें समय रहते संभालना जरूरी है।
अकेलेपन और तनाव से राहत देने वाले योगासन
1. शवासन – यह रिलैक्सेशन पोज़ शरीर और दिमाग दोनों को शांत करता है। इससे थकान, अनिद्रा, सिरदर्द और तनाव में राहत मिलती है।
2. अनुलोम-विलोम प्राणायाम – गहरी सांसों का यह अभ्यास ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है, मानसिक स्थिरता देता है और चिंता को कम करता है।
3. बालासन – एक आरामदायक पोज़ जो तनाव, चिंता, पीठ दर्द और पाचन की समस्या में मदद करता है। यह डर और असुरक्षा की भावना को भी शांत करता है।
4. सेतुबंधासन – यह आसन हॉर्मोन बैलेंस करता है, मूड बेहतर बनाता है और ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है।
5. ध्यान (मेडिटेशन) – रोज़ाना 10-15 मिनट ध्यान करने से एकाग्रता बढ़ती है, तनाव कम होता है और ओवरथिंकिंग पर काबू पाया जा सकता है।
अगर आप अपने रिश्ते को तुरंत सुधार नहीं पा रहे हैं, तो पहले खुद को संभालना ज़रूरी है। योग और ध्यान न सिर्फ आपके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएंगे, बल्कि आपको फिर से एक मजबूत और संतुलित जीवन की ओर ले जाएंगे।
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पहले आर्थराइटिस (Arthritis) को केवल उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्या माना जाता था, लेकिन अब यह कम उम्र के लोगों में भी तेजी से बढ़ रही है। सुबह उठते ही जोड़ों में जकड़न, सीढ़ियां चढ़ते समय घुटनों में दर्द, या उंगलियों में सूजन—अगर आप इन लक्षणों को नज़रअंदाज कर रहे हैं, तो यह आर्थराइटिस के शुरुआती संकेत हो सकते हैं। समय रहते ध्यान न देने पर यह गंभीर समस्या का रूप ले सकती है।
शोध बताते हैं कि महिलाओं में आर्थराइटिस का खतरा पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है। यह केवल उम्र या कैल्शियम की कमी का नतीजा नहीं है, बल्कि हार्मोनल बदलाव, इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी और अनहेल्दी लाइफस्टाइल भी इसका बड़ा कारण बन सकते हैं।
महिलाओं में खतरा क्यों ज्यादा?
हार्मोनल बदलाव: अमेरिकन कॉलेज ऑफ रूमेटोलॉजी के अनुसार, एस्ट्रोजन हार्मोन हड्डियों और जोड़ों की सुरक्षा करता है। मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन का स्तर गिरने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे आर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है।
ऑटोइम्यून डिजीज का असर: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, रुमेटाइड आर्थराइटिस महिलाओं में पुरुषों से 2-3 गुना ज्यादा पाया जाता है।
गर्भावस्था और वजन: गर्भावस्था के दौरान बढ़ा वजन और पेल्विक हड्डियों पर दबाव आगे चलकर घुटनों और कूल्हों को प्रभावित कर सकता है।
जोखिम क्यों बढ़ रहा है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 40 की उम्र के बाद 60% महिलाओं में घुटनों के ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण दिखने लगते हैं। भारत में 70% महिलाएं विटामिन डी की कमी से जूझ रही हैं, जो जोड़ों की सेहत को और बिगाड़ देती है।
किन्हें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए?
मेनोपॉज के बाद की महिलाएं
गर्भवती या हाल ही में मां बनी महिलाएं
जिनके परिवार में आर्थराइटिस का इतिहास है
मोटापा या अधिक वजन वाली महिलाएं
आर्थराइटिस से बचाव के आसान उपाय
पौष्टिक आहार लें: दूध, दही, पनीर, हरी सब्जियां, ओमेगा-3 फैटी एसिड (मछली, अखरोट, अलसी के बीज) और एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड्स (हल्दी, अदरक, लहसुन) का सेवन करें।
नियमित व्यायाम करें: योग, वॉकिंग, साइकिलिंग और तैराकी जोड़ों की लचीलापन बनाए रखते हैं।
वजन नियंत्रित रखें: अधिक वजन घुटनों पर दबाव डालता है, इसे कम करना जरूरी है।
हड्डियों की जांच कराएं: मेनोपॉज के बाद नियमित रूप से डॉक्टर से हड्डियों और जोड़ों की सेहत की जांच कराएं।
थोड़ी सी सतर्कता और सही जीवनशैली अपनाकर महिलाएं न केवल आर्थराइटिस के खतरे को कम कर सकती हैं, बल्कि लंबे समय तक जोड़ों को मजबूत और स्वस्थ भी रख सकती हैं।
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थायराइड गर्दन में स्थित एक महत्वपूर्ण ग्रंथि है, जो शरीर के मेटाबॉलिज्म और हार्मोन संतुलन को नियंत्रित करती है। आज के समय में इसकी समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल रही है। वजन बढ़ना, थकान, गले में सूजन, तनाव और हार्मोनल असंतुलन इसके आम लक्षण हैं।
अच्छी खबर यह है कि कुछ आसान योगासन नियमित रूप से करने से थायराइड को प्राकृतिक तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। योग न केवल इस ग्रंथि को सक्रिय करता है, बल्कि मानसिक तनाव को भी कम कर हार्मोन बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है। यहां पांच ऐसे असरदार योगासन बताए जा रहे हैं, जो थायराइड मरीजों के लिए खासतौर पर फायदेमंद हैं—
1. सर्वांगासन
थायराइड ग्रंथि को सक्रिय कर हार्मोन संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह आसन मेटाबॉलिज्म को सुधारता है। पीठ के बल लेटकर पैरों को ऊपर उठाएं और कमर को हाथों से सपोर्ट दें। पूरा शरीर कंधों पर टिकाएं। हाई ब्लड प्रेशर या गर्दन की समस्या होने पर पहले डॉक्टर से सलाह लें।
2. मत्स्यासन
गले की मांसपेशियों को स्ट्रेच कर थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करता है। पद्मासन में बैठकर पीछे की ओर झुकें, पीठ के बल लेटें और कोहनियों को जमीन पर टिकाएं। सिर को पीछे की ओर उठाकर गहरी सांस लें और छोड़ें।
3. भुजंगासन
गले और छाती को खोलता है तथा ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है। पेट के बल लेटें, हथेलियों को कंधों के पास रखें और सांस लेते हुए ऊपरी शरीर को उठाएं। 20–30 सेकंड तक रुकें। यह आसन रीढ़ की हड्डी को सीधा करता है और गर्दन-पीठ का तनाव कम करता है।
4. उष्ट्रासन
गले को पीछे की ओर स्ट्रेच कर थायराइड को सक्रिय करता है। घुटनों के बल बैठकर हाथों को पीछे ले जाकर एड़ियों को पकड़ें, फिर पेट को आगे की ओर निकालें और कुछ देर इस स्थिति में रहें।
5. भ्रामरी प्राणायाम
तनाव को कम करने और हार्मोनल संतुलन सुधारने में मदद करता है। आंखें बंद करें, गहरी सांस लें, दोनों कानों को अंगूठों से बंद करें और मधुमक्खी जैसी ध्वनि निकालें।
(साभार)
भागदौड़ भरी जिंदगी, अनियमित दिनचर्या और खराब खानपान के चलते आज एसिडिटी एक आम समस्या बन चुकी है। सीने में जलन, खट्टी डकारें और पेट फूलने जैसी परेशानियां कई लोगों के लिए रोज़मर्रा की बात हो गई हैं। यह समस्या तब होती है जब पेट का अम्ल (एसिड) भोजन नली में लौट आता है, जिससे जलन और बेचैनी महसूस होती है। मेडिकल भाषा में इसे गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स डिज़ीज (GERD) कहा जाता है। अच्छी बात यह है कि कुछ घरेलू उपायों से इस परेशानी को शुरूआती स्तर पर आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
एसिडिटी के प्रमुख कारण:
एसिडिटी आमतौर पर पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की अत्यधिक मात्रा बनने से होती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
मसालेदार और तला-भुना भोजन
देर रात खाना और तुरंत लेटना
धूम्रपान और शराब का सेवन
अत्यधिक चाय/कॉफी पीना
तनाव और नींद की कमी
इन आदतों में सुधार कर एसिडिटी को काफी हद तक रोका जा सकता है।
घरेलू उपाय जो तुरंत राहत दें:
सौंफ:
पाचन शक्ति बढ़ाने वाली सौंफ में ऐसे तत्व होते हैं जो गैस, सूजन और जलन को कम करने में मदद करते हैं। आप एक चम्मच सौंफ चबा सकते हैं या सौंफ का पानी (उबला हुआ पानी + सौंफ) पी सकते हैं।
ठंडा दूध:
दूध में मौजूद कैल्शियम अतिरिक्त एसिड को निष्क्रिय करता है। बिना चीनी का ठंडा दूध पीने से जलन में राहत मिलती है। हालांकि यह उपाय कभी-कभी ही कारगर होता है; बार-बार एसिडिटी होने पर डॉक्टर से सलाह लें।
केला:
फाइबर से भरपूर केला पेट को शांत करता है और कब्ज जैसी दिक्कतों को भी कम करता है। एसिडिटी महसूस होने पर एक पका हुआ केला खाना लाभकारी होता है।
जीरे का पानी:
जीरा पाचन एंजाइमों को सक्रिय करता है और गैस को बाहर निकालने में मदद करता है। एक चम्मच जीरे को एक गिलास पानी में उबालें और ठंडा करके पी लें।
निष्कर्ष:
ये घरेलू उपाय सामान्य और शुरुआती एसिडिटी के लक्षणों में राहत देने में मदद कर सकते हैं। लेकिन यदि एसिडिटी बार-बार हो रही है या लक्षण गंभीर हैं, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें और चिकित्सकीय सलाह अवश्य लें। खानपान और जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव आपकी पाचन से जुड़ी समस्याओं को दूर रख सकते हैं।
(साभार)