दीपावली का त्योहार आते ही घर-घर में मिठाइयों और लजीज व्यंजनों की खुशबू फैल जाती है। गुलाब जामुन, गुजिया, कचौरी और तरह-तरह के तले पकवानों से टेबल सज जाती है। लेकिन अक्सर स्वाद के चक्कर में हम ज़रूरत से ज़्यादा खा लेते हैं। नतीजा — पेट में भारीपन, गैस, एसिडिटी और कभी-कभी फूड पॉइजनिंग जैसी दिक्कतें।
अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो परेशान न हों। रसोई में मौजूद कुछ साधारण चीजें ही आपकी बड़ी मदद कर सकती हैं। ये घरेलू नुस्खे पाचन तंत्र को आराम देते हैं, एसिडिटी को शांत करते हैं और शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकालने में मदद करते हैं। आइए जानते हैं ऐसे चार असरदार उपाय, जो दिवाली के बाद आपकी सेहत को फिर से दुरुस्त कर देंगे।
जीरा पानी — पेट का नैचुरल डिटॉक्स
जीरा न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि पाचन के लिए भी किसी औषधि से कम नहीं। यह पेट की गैस और अपच में तुरंत राहत देता है।
कैसे बनाएं:
एक चम्मच जीरा एक गिलास पानी में डालकर उबाल लें। जब पानी आधा रह जाए, तो उसे छानकर गुनगुना पी लें। यह मिश्रण पेट की सूजन कम करता है और पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है।
हींग और मेथी का पानी — फूड पॉइजनिंग में रामबाण
अगर ज्यादा तला-भुना या बासी खाना खाने से फूड पॉइजनिंग की समस्या हो गई है, तो यह नुस्खा बेहद असरदार है।
कैसे बनाएं:
एक चुटकी हींग, आधा चम्मच मेथी दाना और चुटकी भर सेंधा नमक एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाएं। इसे धीरे-धीरे पीएं।
हींग गैस और दर्द में राहत देती है, जबकि मेथी दाना आंतों को साफ करके हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करता है।
नींबू पानी — एसिडिटी से तुरंत आराम
त्योहारों में तैलीय खाना खाने से पेट का पीएच असंतुलित हो जाता है। नींबू पानी उसे फिर से संतुलित करने में मदद करता है।
कैसे लें:
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़ें और थोड़ा सेंधा नमक मिलाएं। इसे सुबह खाली पेट या दिन में दो बार पी सकते हैं। इससे एसिडिटी दूर होती है और शरीर डिटॉक्स होता है।
छाछ — सबसे आसान पाचन ड्रिंक
भारी खाना खाने के बाद छाछ पीना पाचन के लिए सबसे आसान उपाय है।
कैसे तैयार करें:
एक गिलास सादी छाछ में थोड़ा भुना हुआ जीरा और काला नमक डालें। इसमें मौजूद प्रोबायोटिक्स आंतों में अच्छे बैक्टीरिया बढ़ाते हैं और पेट की गर्मी कम करते हैं।
ध्यान रखें
त्योहारों के मौसम में स्वाद का मज़ा जरूर लें, लेकिन संयम से। भोजन के बाद थोड़ा टहलना, पानी पीते रहना और हल्के घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल आपकी सेहत को सुरक्षित रख सकता है।
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अक्सर हम दांतों में दर्द, मसूड़ों की सूजन या दांत टूटने जैसी समस्याओं को मामूली मानकर अनदेखा कर देते हैं। बहुत से लोग इसे बढ़ती उम्र या डेंटल हाइजीन की कमी से जोड़ते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये परेशानी आपकी हड्डियों के कमजोर होने का भी संकेत हो सकती है?
हर साल 20 अक्टूबर को “वर्ल्ड ऑस्टियोपोरोसिस डे” मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक किया जा सके। ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की हड्डियाँ धीरे-धीरे अपना घनत्व खोने लगती हैं और कमजोर हो जाती हैं। यही असर जबड़े की हड्डी पर भी पड़ता है — जो हमारे दाँतों को थामे रखती है।
जबड़े की हड्डी कमजोर होने लगती है
जब शरीर में कैल्शियम और मिनरल की कमी होती है, तो जबड़े की हड्डी पतली और नाजुक हो जाती है। इससे दांतों की जड़ें हड्डी में ठीक से टिक नहीं पातीं और दांत ढीले या टूटने लगते हैं। यह ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती संकेत हो सकता है, जिसे नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए।
मसूड़े पीछे हटने लगते हैं
जब जबड़े की हड्डी अपना सहारा खो देती है, तो मसूड़े भी धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसकने लगते हैं। इस स्थिति को “गम रिसेशन” कहा जाता है। इससे दांतों की जड़ें बाहर दिखने लगती हैं और ठंडा-गर्म लगना या संक्रमण जैसी दिक्कतें बढ़ जाती हैं।
डेन्चर पहनने वालों को भी परेशानी
जिन लोगों के दांत पहले से टूट चुके हैं और जो डेन्चर (कृत्रिम दांत) लगाते हैं, उनके लिए भी ऑस्टियोपोरोसिस समस्या का कारण बन सकता है। जबड़े की हड्डी के कमजोर होने से डेन्चर ठीक से फिट नहीं बैठता और बार-बार ढीला हो जाता है — यह हड्डियों के नुकसान का संकेत है।
क्या करें?
अपने भोजन में कैल्शियम, विटामिन D और विटामिन K2 से भरपूर चीजें शामिल करें।
नियमित रूप से वजन उठाने वाले एक्सरसाइज करें।
धूम्रपान और शराब से दूरी बनाए रखें।
समय-समय पर डेंटल चेकअप कराते रहें और डॉक्टर से अपनी हड्डियों के स्वास्थ्य पर चर्चा करें।
याद रखें
दांतों और मसूड़ों की बार-बार होने वाली समस्या सिर्फ डेंटल नहीं, बल्कि ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती संकेत भी हो सकती है। समय पर जांच और सही उपचार से न सिर्फ आपके दांत, बल्कि आपकी पूरी हड्डी प्रणाली को मजबूत बनाए रखा जा सकता है।
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आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में जिम जाना या लंबे समय तक एक्सरसाइज करना सभी के लिए संभव नहीं होता। ऐसे में योग एक ऐसा असरदार साधन है, जो कम समय और मेहनत में शरीर और मन दोनों को फिट रख सकता है। खास बात यह है कि कुछ योगासन सीधे बैठे-बैठे भी किए जा सकते हैं, जो पेट की चर्बी कम करने, मेटाबॉलिज़्म बढ़ाने और मानसिक तनाव घटाने में मददगार होते हैं।
बैठे-बैठे किए जाने वाले योगासन न केवल शरीर को लचीला बनाते हैं, बल्कि पाचन शक्ति और कैलोरी बर्निंग को भी बेहतर करते हैं। आइए जानते हैं कुछ आसान और प्रभावी योगासनों के बारे में:
1. वज्रासन
यह आसन पाचन शक्ति बढ़ाने और फैट बर्न करने में मदद करता है। भोजन के बाद वज्रासन करने से पाचन क्रिया बेहतर होती है और पेट व कमर की चर्बी घटती है। अभ्यास के लिए घुटनों के बल बैठें, एड़ियों पर कूल्हे टिकाएं और रीढ़ को सीधा रखें।
2. सुखासन ट्विस्ट
कमर और पेट की चर्बी घटाने के लिए सुखासन ट्विस्ट बहुत प्रभावी है। इसमें कमर को धीरे-धीरे दाएं-बाएं मोड़ने से पेट की मांसपेशियां एक्टिव होती हैं और कैलोरी बर्न होती है। अभ्यास के लिए सुखासन में बैठकर दाहिने हाथ को बाएं घुटने पर रखें और शरीर को धीरे मोड़ें।
3. पद्मासन ब्रीदिंग
मेटाबॉलिज़्म बढ़ाने और तनाव घटाने के लिए पद्मासन ब्रीदिंग सबसे अच्छा है। पद्मासन में बैठकर गहरी सांसें लेने और छोड़ने से ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ती है, जिससे शरीर शांत होता है और वजन तेजी से घटता है।
4. मंडूकासन
यह आसन पेट की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। डायबिटीज और मोटापे से प्रभावित लोगों के लिए बेहद लाभकारी है। अभ्यास के लिए वज्रासन में बैठें, मुट्ठियां नाभि पर रखें और धीरे आगे झुकें।
5. अर्ध मत्स्येन्द्रासन
इस आसन से शरीर में जमी विषैले तत्व निकलते हैं और मांसपेशियों में खिंचाव आता है। पेट, कमर और जांघों की चर्बी कम करने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है। अभ्यास के लिए जमीन पर बैठें, एक पैर मोड़ें और दूसरे पैर को उसके ऊपर रखकर शरीर को विपरीत दिशा में मोड़ें।
निष्कर्ष:
बैठे-बैठे किए जाने वाले ये योगासन न केवल वजन घटाने में मदद करते हैं, बल्कि मानसिक तनाव को भी कम करते हैं और शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखते हैं। रोज़ाना 10-15 मिनट इन आसनों का अभ्यास करने से लंबे समय तक फिटनेस और सेहत बनाए रखी जा सकती है।
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हर कोई चाहता है कि उसका शरीर फिट और स्वस्थ दिखे और पेट संबंधी परेशानियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिले। लेकिन आज की व्यस्त जीवनशैली में लोग अक्सर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते। ऐसी स्थिति में आपकी रसोई में मौजूद एक साधारण चीज — मेथी का पानी — आपके लिए वरदान साबित हो सकती है।
रोजाना सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने की आदत आपके शरीर में कई सकारात्मक बदलाव ला सकती है। मेथी में फाइबर, प्रोटीन, आयरन और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व मौजूद हैं, जो इसे प्राकृतिक औषधि बनाते हैं। आयुर्वेद में सदियों से इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है, और आधुनिक विज्ञान भी इसके फायदों को मान रहा है।
आइए जानते हैं मेथी के पानी के 4 बड़े फायदे:
1. वजन घटाने में सहायक
मेथी का पानी वजन कम करने के लिए सबसे लोकप्रिय घरेलू उपायों में से एक है। इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर लंबे समय तक पेट भरा रखने में मदद करता है। इससे अनावश्यक भूख और क्रेविंग कम होती है, जिससे आप कम कैलोरी का सेवन करते हैं और वजन नियंत्रित रहता है।
2. ब्लड शुगर को नियंत्रित करे
डायबिटीज के मरीजों के लिए मेथी का पानी किसी प्राकृतिक दवा से कम नहीं। इसमें मौजूद गैलेक्टोमैनन फाइबर और अमीनो एसिड भोजन से ग्लूकोज के अवशोषण को धीमा करते हैं, जिससे ब्लड शुगर में अचानक उछाल नहीं आता।
3. पाचन तंत्र को मजबूत बनाए
सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से पाचन क्रिया सुधारती है। यह कब्ज और अपच जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। मेथी के तत्व आंतों को साफ रखते हैं और आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।
4. कोलेस्ट्रॉल और दिल के लिए फायदेमंद
मेथी में मौजूद फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स खराब कोलेस्ट्रॉल को कम और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। इससे हृदय रोग का जोखिम घटता है। यही वजह है कि मेथी का पानी शुगर, कब्ज और हृदय संबंधी बीमारियों के लिए लाभकारी माना जाता है।
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स्वस्थ और तंदुरुस्त जीवन के लिए सही खानपान का होना बेहद जरूरी है। अक्सर हम विटामिन, प्रोटीन और मिनरल्स की बात करते हैं, लेकिन शरीर के सही विकास और कार्य के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों पर ध्यान कम दिया जाता है। इनमें मैग्नीशियम एक अहम खनिज है, जो हमारी सेहत को कई तरीकों से प्रभावित करता है।
मैग्नीशियम का महत्व
अध्ययनों से पता चलता है कि मैग्नीशियम हड्डियों को मजबूत रखने, मांसपेशियों के सही कार्य, नसों के सिग्नल, ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने और हार्टबीट को सामान्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी होने पर थकान, मांसपेशियों में ऐंठन, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पी.बी. मिश्रा का कहना है कि मैग्नीशियम शरीर के लिए अत्यंत जरूरी है। इसकी कमी से मांसपेशियों में ऐंठन, हृदय की अनियमित धड़कन, थकान, अवसाद, चिंता और नींद की समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में दौरे भी पड़ सकते हैं।
कैसे करें आहार में सुधार
डॉ. मिश्रा के अनुसार मैग्नीशियम की कमी दूर करने के लिए आहार में फलियां, हरी सब्जियां, बादाम, चिया और कद्दू के बीज, ब्राउन राइस, केला और एवोकाडो शामिल किए जा सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक से परामर्श लेना भी जरूरी है।
मैग्नीशियम कैल्शियम और पोटैशियम के स्तर को प्रभावित करता है। यह हड्डियों में जमा होकर हड्डियों को मजबूत बनाए रखता है और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से बचाव करता है। इसके अलावा यह मस्तिष्क के कार्यों, ऊर्जा उत्पादन और तनाव नियंत्रण में भी अहम भूमिका निभाता है।
थकान और नींद की समस्या का कारण
मैग्नीशियम की कमी से शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलती, जिससे थकान, सुस्ती और कमजोरी महसूस होती है। यह शरीर का नेचुरल रिलैक्सर भी है, जो नींद और मानसिक शांति बनाए रखने में मदद करता है। कमी होने पर अनिद्रा, बेचैनी और तनाव बढ़ सकते हैं।
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आज की तेज़ और व्यस्त जिंदगी में तनाव और चिंता आम हो गए हैं। ऑफिस का दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियां और रोज़मर्रा की चुनौतियां अक्सर मन को बेचैन कर देती हैं। ऐसे समय में योग सिर्फ शरीर को ही लचीला नहीं बनाता, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता भी प्रदान करता है।
कुछ विशेष योगासन ऐसे हैं जो चिंता को कम करने, मानसिक संतुलन बनाए रखने और जीवन में सुकून लाने में मदद करते हैं। रोज़ाना सिर्फ 20 मिनट का अभ्यास आपके मन को शांत, शरीर को स्वस्थ और आत्मविश्वास को बढ़ा सकता है।
आइए जानते हैं कुछ असरदार योगासन, जिन्हें अपनाकर आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं:
1. बालासन (Child Pose)
बालासन दिमाग को ठंडक और मन को स्थिरता देता है। यह तनाव, थकान और सिरदर्द में राहत देने के लिए बेहद प्रभावी है।
अभ्यास: घुटनों के बल बैठें, सिर को धीरे-धीरे जमीन पर टिकाएं और हाथ आगे फैलाएं। गहरी और शांत सांस लें।
2. शवासन (Corpse Pose)
शवासन सबसे प्रभावी रिलैक्सेशन आसन है। यह पूरे शरीर को शिथिल कर मानसिक शांति देता है।
अभ्यास: पीठ के बल लेटें, आंखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
3. अनुलोम-विलोम प्राणायाम (Alternate Nostril Breathing)
सांसों के संतुलन से मानसिक ऊर्जा भी संतुलित होती है। यह चिंता, गुस्सा और डिप्रेशन कम करने में मदद करता है।
अभ्यास: एक नथुने को बंद करके दूसरे से धीरे-धीरे सांस लें, फिर नथुने बदलें और दोहराएं।
4. अधोमुख श्वानासन (Downward Dog Pose)
यह आसन नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है और ब्लड सर्कुलेशन सुधारता है। अभ्यास से शरीर हल्का और मन शांत महसूस होता है।
5. सुखासन (Easy Pose)
सुखासन सबसे सरल लेकिन असरदार ध्यान मुद्रा है। नियमित अभ्यास से मन स्थिर होता है और मानसिक बेचैनी कम होती है।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जोड़ों और हड्डियों का दर्द तेजी से युवा आबादी को भी अपनी चपेट में ले रहा है। पहले जहां यह परेशानी केवल बुजुर्गों में आम थी, वहीं अब 25 से 40 वर्ष की उम्र के लोग भी घुटनों और पीठ दर्द की शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं।
अनियमित जीवनशैली, घंटों एक जगह बैठे रहना, पोषण की कमी और प्रदूषण जैसी वजहें इसके प्रमुख कारण हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, आर्थराइटिस (गठिया) जोड़ों में सूजन और दर्द का एक प्रमुख रोग है, जो शरीर की गतिशीलता को प्रभावित करता है। समय रहते ध्यान न देने पर यह आजीवन परेशानी का रूप ले सकता है। खासतौर पर जिन लोगों का वजन अधिक होता है, उनके घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे दर्द और सूजन बढ़ जाती है।
हर साल 12 अक्टूबर को ‘विश्व गठिया दिवस (World Arthritis Day)’ मनाया जाता है, ताकि इस रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके और लोग समय पर उपचार और जीवनशैली सुधार अपनाएं।
घुटनों के दर्द से राहत पाने के आसान उपाय
संतुलित और पोषक आहार अपनाएं
हड्डियों को मजबूत रखने के लिए आहार में कैल्शियम, विटामिन-डी, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में शामिल करें।
दही, दूध, बादाम, मछली, अलसी के बीज और हरी सब्जियां इन पोषक तत्वों के अच्छे स्रोत हैं।
साथ ही, प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड और अधिक चीनी का सेवन कम करें — ये शरीर में सूजन बढ़ाने का काम करते हैं।
तेल से मालिश और सेकाई करें
सरसों, नारियल या नीलगिरी तेल से हल्की मालिश करने से रक्त संचार बेहतर होता है और सूजन में राहत मिलती है।
रोजाना 10-15 मिनट हल्के हाथों से मालिश करने से जोड़ों की जकड़न घटती है।
गर्म पानी की सेकाई (हीट थेरेपी) मांसपेशियों को आराम देती है, जबकि ठंडे पैक से सूजन में कमी आती है। दर्द की स्थिति के अनुसार दोनों का संतुलित उपयोग करें।
नियमित व्यायाम और योग करें
घुटनों की सेहत के लिए हल्की एक्सरसाइज और योग बेहद जरूरी हैं।
वॉकिंग, स्विमिंग, साइक्लिंग जैसे लो-इम्पैक्ट व्यायाम आर्थराइटिस से राहत दिलाते हैं।
योगासन जैसे त्रिकोणासन, वज्रासन और भुजंगासन घुटनों की लचीलापन बढ़ाते हैं और मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।
वजन को नियंत्रित रखें
अधिक वजन घुटनों पर दबाव डालता है, जिससे दर्द और सूजन बढ़ सकती है।
संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से वजन नियंत्रण में रखें।
अलसी के बीज और फाइबरयुक्त भोजन का सेवन वजन घटाने और जोड़ों की सूजन कम करने में सहायक होता है।
निष्कर्ष
जोड़ों का दर्द केवल उम्र बढ़ने का परिणाम नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ है। अगर आप समय रहते सही खानपान, नियमित व्यायाम और वजन नियंत्रण पर ध्यान दें, तो आर्थराइटिस जैसी समस्याओं से बचाव संभव है।
स्वस्थ दिनचर्या अपनाएं — ताकि जीवन हर उम्र में सक्रिय और दर्द-मुक्त बना रहे।
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फोकस करने बैठते ही आने लगती है नींद? हो सकता है यह आलस नहीं, शरीर में पोषक तत्वों की कमी का हो संकेत
कई बार ऐसा होता है कि जैसे ही हम किसी जरूरी काम पर ध्यान केंद्रित करने बैठते हैं — खासकर पढ़ाई या ऑफिस के काम के दौरान — अचानक आलस और नींद हावी होने लगती है। कुछ देर तक फोकस बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, आंखें भारी हो जाती हैं और दिमाग सुस्त पड़ जाता है। अगर यह समस्या कभी-कभार हो तो चिंता की बात नहीं, लेकिन अगर यह स्थिति रोजाना बनी रहती है, तो यह केवल आलस नहीं बल्कि शरीर के भीतर किसी कमी का संकेत हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार नींद और थकान महसूस होना अक्सर आयरन या विटामिन डी की कमी (Deficiency) से जुड़ा होता है। जब शरीर में ये पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं होते, तो एनर्जी लेवल गिर जाता है और दिमाग तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। इसके परिणामस्वरूप ब्रेन फॉग, ध्यान भटकना और बार-बार नींद आना जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
जब शरीर में आयरन की मात्रा कम हो जाती है, तो लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण घट जाता है। इससे दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति थका हुआ और नींद से भरा महसूस करता है। इसी तरह विटामिन डी की कमी भी शरीर की ऊर्जा और मूड दोनों को प्रभावित करती है, जिससे दिनभर सुस्ती और काम में अरुचि बनी रहती है।
अनियमित नींद और डाइट भी बड़ा कारण
थकान और नींद की समस्या केवल पोषक तत्वों की कमी से ही नहीं, बल्कि गलत दिनचर्या से भी बढ़ती है।
यदि आप रोजाना पूरी नींद (7–8 घंटे) नहीं लेते या देर रात भारी भोजन करते हैं, तो अगले दिन फोकस करना स्वाभाविक रूप से मुश्किल होता है।
इसके अलावा, ज्यादा चीनी और प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन शरीर में अचानक एनर्जी का उछाल लाता है, जिसके बाद एनर्जी तेजी से गिरती है और नींद हावी हो जाती है।
इन उपायों से करें शुरुआत
हर 45–50 मिनट के अध्ययन या काम के बाद 5 मिनट का ब्रेक जरूर लें।
कमरे को हवादार और रोशनी से भरपूर रखें।
डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, दालें, अंडे और नट्स शामिल करें।
कैफीन पर निर्भर रहने के बजाय पर्याप्त पानी पिएं और नींद का रूटीन ठीक रखें।
अगर समस्या बनी रहे तो ब्लड टेस्ट कराकर आयरन, विटामिन डी और बी12 का स्तर जांचें।
कब लें विशेषज्ञ की सलाह
यदि पर्याप्त नींद और संतुलित आहार के बाद भी थकान और नींद की समस्या खत्म नहीं होती, तो यह किसी क्रोनिक बीमारी जैसे हाइपोथायरायडिज्म या एनीमिया का संकेत हो सकती है।
इसलिए देर न करें — डॉक्टर या डायटिशियन से परामर्श लेकर सही जांच और उपचार करवाएं। सही समय पर ध्यान देने से न केवल फोकस बढ़ेगा, बल्कि आपकी सेहत और कार्यक्षमता दोनों में सुधार होगा।
(साभार)
अक्सर लोग कमर या पैरों में दर्द को सामान्य थकान या दिनभर की भागदौड़ का नतीजा मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह दर्द कई बार शरीर में छिपी किसी गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकता है? यह परेशानी न सिर्फ आपकी दिनचर्या को प्रभावित करती है, बल्कि समय पर इलाज न मिलने पर चलने-फिरने में दिक्कत और स्थायी नुकसान का कारण भी बन सकती है।
आज की व्यस्त जीवनशैली, लंबे समय तक बैठकर काम करना, गलत पोस्चर और व्यायाम की कमी—ये सभी कारण इस तरह के दर्द को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, सिर्फ जीवनशैली ही नहीं, बल्कि रीढ़ की हड्डी, नसों या रक्त संचार से जुड़ी बीमारियां भी इस दर्द के पीछे जिम्मेदार हो सकती हैं।
आइए जानते हैं, कमर से पैरों तक दर्द के चार प्रमुख कारण, जिन्हें हल्के में लेना खतरनाक साबित हो सकता है—
साइटिका (Sciatica)
साइटिका एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कमर से लेकर पैरों तक जाने वाली साइटिक नस पर दबाव पड़ता है। इसके कारण तीखा, जलनभरा या चुभन जैसा दर्द महसूस होता है। यह दर्द आमतौर पर एक पैर में ज्यादा होता है और लंबे समय तक बैठने या झुकने पर बढ़ जाता है।
अगर आपको पैर में अचानक झटके जैसा दर्द या झुनझुनी महसूस होती है, तो यह साइटिका का संकेत हो सकता है।
स्लिप डिस्क (Slip Disc)
जब रीढ़ की हड्डियों के बीच की डिस्क अपने स्थान से खिसक जाती है, तो यह आसपास की नसों पर दबाव डालती है। इससे कमर, पैरों या कभी-कभी गर्दन तक दर्द फैल सकता है। साथ ही पैरों या पंजों में झुनझुनी, सुन्नपन या कमजोरी भी महसूस हो सकती है।
यह दर्द झुकने या भारी सामान उठाने पर बढ़ जाता है, इसलिए तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
स्पाइनल स्टेनोसिस (Spinal Stenosis)
उम्र बढ़ने के साथ रीढ़ की हड्डी की जगह संकरी होने लगती है, जिससे नसें दब जाती हैं। इस स्थिति को स्पाइनल स्टेनोसिस कहते हैं। इसमें व्यक्ति को चलने या लंबे समय तक खड़े रहने पर कमर और पैरों में दर्द होता है, जबकि आराम करने पर राहत मिलती है।
अगर चलते-चलते पैरों में भारीपन या सुन्नता महसूस हो रही है, तो इसे नजरअंदाज न करें।
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज (Peripheral Artery Disease – PAD)
यह बीमारी तब होती है जब पैरों की धमनियां संकरी हो जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह कम हो जाता है। इसके कारण चलने या व्यायाम के दौरान पैरों में दर्द, ऐंठन या भारीपन महसूस होता है।
आराम करने पर दर्द कुछ देर में ठीक हो जाता है, लेकिन यह हृदय रोग का संकेत भी हो सकता है, इसलिए डॉक्टर से जांच कराना जरूरी है।
सावधानी ही सुरक्षा है
अगर आपका दर्द लंबे समय से बना हुआ है या चलने-फिरने में मुश्किल पैदा कर रहा है, तो इसे “साधारण थकान” समझने की भूल न करें। समय पर जांच और उपचार से न केवल दर्द कम किया जा सकता है, बल्कि गंभीर बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
(साभार)
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पेट से जुड़ी समस्याएं बेहद आम हो गई हैं। हर उम्र का व्यक्ति कभी न कभी गैस, अपच या पेट फूलने जैसी परेशानी झेलता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि पाचन प्रणाली शरीर की नींव है—अगर पेट ठीक है तो शरीर स्वस्थ रहता है। लेकिन गड़बड़ दिनचर्या, जंक फूड और तनाव के कारण पाचन संबंधी विकार तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह समस्या लंबे समय में गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकती है।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि खाना खाने के तुरंत बाद पेट भारी और फूला हुआ महसूस हुआ हो? अगर हां, तो आप अकेले नहीं हैं। दुनियाभर में करोड़ों लोग इसी तरह की दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
अच्छी बात यह है कि कुछ प्राकृतिक खाद्य पदार्थ आपकी पाचन प्रणाली को मजबूत बनाने और पेट की असुविधाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हार्वर्ड प्रशिक्षित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ सेठी ने ऐसे कुछ फलों और बीजों की सूची बताई है जो पाचन को बेहतर बनाए रखते हैं।
क्यों बढ़ रही हैं पाचन की दिक्कतें?
डॉ. सौरभ सेठी बताते हैं कि आज ज्यादातर पाचन संबंधी परेशानियां हमारी खान-पान की गलत आदतों से जुड़ी हैं।
अत्यधिक तला-भुना खाना
देर रात भोजन करना
फाइबर की कमी
तनाव और नींद की कमी
ये सभी कारण पेट की सेहत पर सीधा असर डालते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि “जो हम खाते हैं, वही हमारे पेट की सेहत तय करता है।” इसलिए सही खानपान अपनाना ही पाचन को मजबूत रखने का सबसे आसान उपाय है।
पाचन को दुरुस्त करने वाले सुपरफूड्स
1. कीवी — पेट के लिए फाइबर और एंजाइम का खज़ाना
कीवी में पाया जाने वाला एक्टिनिडिन एंजाइम प्रोटीन को तोड़ने में मदद करता है, जिससे खाना जल्दी पचता है। इसमें मौजूद फाइबर कब्ज को दूर करता है और आंतों की मूवमेंट को बेहतर बनाता है। साथ ही इसके एंटीऑक्सीडेंट पेट की सूजन और एसिडिटी को कम करते हैं।
2. पपीता — प्राकृतिक पाचन बूस्टर
पपीते में मौजूद पेपेन एंजाइम भारी भोजन को आसानी से पचाता है। यह फल हल्का होता है और कब्ज से राहत दिलाता है। अध्ययन बताते हैं कि रोजाना पपीता खाने से दो हफ्तों में पेट फूलना और अपच की समस्या कम हो सकती है।
3. अनानास — सूजन और गैस का इलाज
अनानास में ब्रोमेलिन एंजाइम होता है जो प्रोटीन को तोड़कर गैस, सूजन और अपच को दूर करता है। यह पेट में हानिकारक बैक्टीरिया को भी नियंत्रित करता है और इम्यूनिटी बढ़ाता है।
4. खीरा — ठंडक और हाइड्रेशन का स्रोत
खीरे में 95% पानी होता है, जो शरीर को हाइड्रेट रखता है और मल त्याग को आसान बनाता है। गर्मियों में खीरा खाने से एसिडिटी और पेट की जलन से तुरंत राहत मिलती है।
5. चिया सीड्स — पेट की सफाई के लिए बेहतरीन
फाइबर और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर चिया सीड्स पानी में भिगोकर खाने से जेल जैसा बनते हैं, जो आंतों की सफाई और कब्ज से राहत में मदद करते हैं।
6. सौंफ — हर भारतीय रसोई का पाचन मित्र
सौंफ में मौजूद ऐनेथोल तत्व गैस और पेट फूलने की समस्या को तुरंत कम करता है। यह पाचन एंजाइम्स को सक्रिय करता है और खाने के बाद पेट को हल्का रखता है। यही कारण है कि भारतीय परंपरा में सौंफ को भोजन के बाद खाना जरूरी माना गया है।
छोटे बदलाव, बड़ा असर
पेट को स्वस्थ रखने के लिए केवल खाने पर ध्यान देना ही नहीं, बल्कि जीवनशैली में सुधार भी जरूरी है।
भोजन धीरे-धीरे चबाकर खाएं
पर्याप्त पानी पिएं
फाइबर युक्त फल-सब्जियां लें
तनाव कम करें और नियमित व्यायाम करें
अगर आप रोजमर्रा की जिंदगी में इन प्राकृतिक चीजों को शामिल कर लें, तो पाचन से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।
(साभार)
