आजकल हाई ब्लड प्रेशर केवल बुजुर्गों की समस्या नहीं रह गई है। युवाओं में भी यह तेजी से बढ़ रही है। तनाव, नींद की कमी, फास्ट फूड की लत और लंबे समय तक बैठने की आदत ने ब्लड प्रेशर की उम्र घटा दी है। विशेषज्ञ इसे ‘साइलेंट किलर’ कहते हैं, क्योंकि यह धीरे-धीरे हृदय, किडनी, आंख और दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या सिर्फ नमक ही जिम्मेदार है?
अक्सर लोग सोचते हैं कि ब्लड प्रेशर केवल ज्यादा नमक खाने से बढ़ता है। लेकिन आहार विशेषज्ञ बताते हैं कि यह केवल एक पहलू है। चीनी, अधिक कैफीन, शराब, धूम्रपान और लगातार स्क्रीन के संपर्क में रहना भी ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है।
इन आदतों से भी बढ़ सकता है ब्लड प्रेशर
विशेषज्ञों के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और पेय पदार्थों में मौजूद अतिरिक्त शुगर भी रक्तचाप बढ़ाने में योगदान देती है। शोध में यह पाया गया है कि जो लोग अपनी दैनिक कैलोरी का एक चौथाई या अधिक ऐडेड शुगर से लेते हैं, उनमें हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग का जोखिम तीन गुना तक बढ़ जाता है। कोल्ड ड्रिंक्स, सोडा और रेडी टू ईट फूड्स में शुगर अधिक होती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
अधिकांश लोग शुगर के नुकसान के प्रति जागरूक नहीं हैं, इसलिए वह तय मात्रा से ज्यादा चीनी का सेवन कर लेते हैं। इसका नतीजा मेटाबॉलिक सिंड्रोम और टाइप-2 डायबिटीज जैसी बीमारियों के रूप में सामने आता है, जो हृदय और रक्त वाहिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
यूरिक एसिड और ब्लड प्रेशर का संबंध
कुछ शोध बताते हैं कि ज्यादा शुगर यूरिक एसिड को बढ़ा सकती है, जिससे किडनी की रक्त वाहिकाओं में तनाव आता है और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।
क्या करें ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने के लिए?
विशेषज्ञों का सुझाव है कि नमक के साथ-साथ ऐडेड शुगर और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स को कम करें। इसके अलावा नियमित शारीरिक गतिविधि और स्वस्थ जीवनशैली ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखने में मदद करती है।
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किडनी स्टोन यानी गुर्दे में पथरी एक गंभीर और बहुत दर्दनाक स्वास्थ्य समस्या है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। यह छोटे-छोटे कठोर पत्थर शरीर में मौजूद खनिज और नमक के जमाव से बनते हैं। जब ये स्टोन किडनी से मूत्र मार्ग में प्रवेश करते हैं, तो तेज दर्द और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। अक्सर लोग पेट या पीठ में होने वाले दर्द को सामान्य गैस या अपच समझकर अनदेखा कर देते हैं, लेकिन अगर दर्द लगातार या बहुत तेज हो, तो यह किडनी स्टोन का संकेत हो सकता है।
किडनी स्टोन के प्रमुख कारण:
कम पानी पीना
असंतुलित खान-पान
अनुवांशिक कारण
समय पर पहचान और इलाज बहुत जरूरी है, क्योंकि इसे नजरअंदाज करने पर किडनी को स्थायी नुकसान हो सकता है।
किडनी स्टोन के आम लक्षण
1. पीठ या पेट में तेज दर्द
किडनी स्टोन का सबसे आम लक्षण पीठ के निचले हिस्से या पेट के किनारे में अचानक और तीव्र दर्द होना है। यह दर्द कमर से पेट और जांघों तक फैल सकता है। इतना तेज होता है कि व्यक्ति आराम से बैठ या लेट नहीं पाता।
2. पेशाब में बदलाव
पेशाब का रंग गहरा होना, खून आना, बार-बार पेशाब आना या पेशाब के दौरान जलन होना किडनी स्टोन के संकेत हो सकते हैं।
3. उल्टी और मतली
किडनी में दर्द पाचन तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे मतली और उल्टी की शिकायत हो सकती है। अक्सर इसे गैस या पेट की समस्या समझ लिया जाता है, लेकिन यह स्टोन का संकेत भी हो सकता है।
बचाव और इलाज
किडनी स्टोन से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका पर्याप्त मात्रा में पानी पीना है—दिन में कम से कम 8-10 गिलास। इसके अलावा, अधिक नमक और ऑक्सालेट (जैसे पालक, चुकंदर) वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें। यदि किसी में ऊपर बताए गए लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड या एक्स-रे के जरिए स्टोन की पुष्टि कर सही इलाज सुझा सकते हैं।
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अक्सर हम मुंह में होने वाले छोटे-छोटे छालों को मामूली समझकर अनदेखा कर देते हैं। आमतौर पर ये मसालेदार खाना खाने, पेट की गर्मी या विटामिन की कमी से होते हैं और कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं। लेकिन अगर कोई छाला दो सप्ताह से ज्यादा समय तक बना रहे, इसका आकार बढ़े, या दर्द बढ़े, तो यह मुंह के कैंसर का शुरुआती संकेत हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मुंह का कैंसर दुनिया में सबसे आम कैंसर में से एक है। इसकी सबसे बड़ी वजह तम्बाकू और शराब का सेवन है। समय रहते इसके लक्षण पहचान कर इलाज शुरू किया जाए, तो इसे सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है।
ओरल कैंसर के प्रमुख लक्षण
मुंह के कैंसर के लक्षण सिर्फ छालों तक सीमित नहीं हैं। इन पर ध्यान दें:
मुंह में सफेद या लाल धब्बे, जो आसानी से ठीक न हों।
मुंह में गांठ या सूजन, या खाना चबाने और निगलने में दर्द।
होंठ, मसूड़े या जीभ पर छाले या घाव।
आवाज़ में बदलाव या किसी तरह की असहजता।
तम्बाकू और शराब: मुख्य जोखिम कारक
सिगरेट, बीड़ी, सिगार, गुटखा, पान मसाला और शराब मुंह के कैंसर के सबसे बड़े कारण हैं। इनसे मुंह की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है और कैंसर का खतरा बढ़ता है। खासकर तम्बाकू और शराब का एक साथ सेवन, खतरे को कई गुना बढ़ा देता है।
बचाव के उपाय
तम्बाकू और शराब का सेवन बंद करें।
हरी सब्जियाँ और फल अपनी डाइट में शामिल करें।
मुंह की सफाई का नियमित ध्यान रखें।
अगर कोई लक्षण दो सप्ताह से ज्यादा बना रहे, तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
समय पर जांच और इलाज
मुंह के कैंसर का प्रारंभिक पता लगना ही सफल इलाज की कुंजी है। शुरुआती चरण में सर्जरी, रेडिएशन या कीमोथेरेपी से इसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन इसे अनदेखा करने पर यह शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल सकता है, जिससे इलाज कठिन हो जाता है। इसलिए जागरूकता, सावधानी और समय पर जांच ही इस बीमारी से बचने का सबसे प्रभावी तरीका है।
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आजकल ज्यादातर लोग वजन घटाने के लिए घंटों जिम में पसीना बहाते हैं, स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो करते हैं या फिर महंगे फिटनेस प्रोग्राम्स पर खर्च करते हैं। लेकिन अगर आपके पास इतना समय या साधन नहीं है, तो भी चिंता की कोई बात नहीं। क्या आप जानते हैं कि सिर्फ खड़े-खड़े भी वजन घटाना संभव है? जी हां, योग और स्ट्रेचिंग के कुछ आसान आसनों की मदद से आप बिना झुके भी कैलोरी बर्न कर सकते हैं। यह तरीका खासतौर पर उन लोगों के लिए बेहतर है जो जिम नहीं जा पाते या कमर और पीठ दर्द से परेशान रहते हैं।
खड़े होकर किए जाने वाले योगासन जैसे ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिकोणासन और उत्कटासन न सिर्फ पेट और कमर की चर्बी कम करने में मदद करते हैं बल्कि शरीर को एनर्जी और बैलेंस भी देते हैं। वहीं, स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज जैसे साइड बेंड, आर्म स्ट्रेच और नेक स्ट्रेच लचीलापन बढ़ाते हैं और ब्लड सर्कुलेशन को सुधारते हैं। रिसर्च के मुताबिक, महज 10–15 मिनट की खड़े होकर की गई एक्सरसाइज भी मेटाबॉलिज्म को एक्टिव कर कैलोरी बर्न करना शुरू कर देती है।
खड़े-खड़े करें स्ट्रेचिंग
सिर्फ कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग से आप जिद्दी चर्बी पर काबू पा सकते हैं। यह मांसपेशियों को लचीला बनाती है और शरीर को एनर्जेटिक रखती है। सुबह उठते ही या रात को सोने से पहले खड़े होकर स्ट्रेचिंग करना बेहद फायदेमंद है।
वजन घटाने में मददगार खड़े होकर किए जाने वाले योगासन
ताड़ासन (Mountain Pose)
यह सबसे आसान योगासन है जो पूरे शरीर की मांसपेशियों को एक्टिव करता है और सही पॉश्चर बनाता है। रोज़ाना 5 मिनट ताड़ासन करने से पेट और कमर की चर्बी पर असर दिखने लगता है।
वृक्षासन (Tree Pose)
इस आसन से बॉडी बैलेंस बेहतर होता है और कोर मसल्स मजबूत बनते हैं। यह जांघों और पेट की चर्बी घटाने के साथ-साथ मानसिक एकाग्रता भी बढ़ाता है।
त्रिकोणासन (Triangle Pose)
यह आसन साइड स्ट्रेच कराता है जिससे कमर और पेट की चर्बी तेजी से कम होती है। साथ ही शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी भी बढ़ती है।
उत्कटासन (Chair Pose)
इस आसन में खड़े होकर बैठने जैसी स्थिति बनती है। यह जांघ, हिप्स और पैरों की चर्बी घटाने के लिए बेहद असरदार है। इसे रोज़ 3–4 बार दोहराने से फैट बर्निंग और तेज़ हो जाती है।
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आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में नींद की कमी एक आम समस्या बन गई है। नींद सिर्फ आराम का समय नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर और दिमाग को रिचार्ज करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। नींद न पूरी होने पर थकान, ध्यान की कमी, मूड स्विंग और कई स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अक्सर हमारी रोज़मर्रा की आदतें ही नींद को प्रभावित करती हैं। आइए जानते हैं सोने से पहले कौन-सी छोटी-छोटी गलतियां आपकी नींद चुरा सकती हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
1. सोने से पहले मोबाइल और लैपटॉप का इस्तेमाल
मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट की नीली रोशनी मेलाटोनिन नामक हार्मोन के उत्पादन को रोक देती है। यह हार्मोन हमारे सोने-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है। स्क्रीन के लगातार संपर्क में रहने से दिमाग सक्रिय रहता है और नींद आने में मुश्किल होती है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सोने से कम से कम एक घंटा पहले सभी गैजेट्स से दूरी बनाएं।
2. रात में भारी या मसालेदार खाना
सोने से ठीक पहले तला-भुना, मसालेदार या भारी खाना खाने से पाचन में परेशानी होती है और नींद बाधित होती है। पेट भोजन पचाने में व्यस्त रहता है, जिससे शरीर को आराम नहीं मिलता। हल्का, सुपाच्य खाना लेना नींद को बेहतर बनाता है और पाचन से जुड़ी समस्याओं से भी बचाता है।
3. कैफीन और शराब का सेवन
कॉफी, चाय, सोडा या शराब सोने से पहले लेने से नींद प्रभावित होती है। कैफीन दिमाग को सक्रिय रखता है, जबकि शराब नींद को शुरू में तो लुभावनी लग सकती है, लेकिन यह सोने के चक्र को बाधित कर देती है। इसका असर यह होता है कि नींद बार-बार टूटती है और रात भर नींद पूरी नहीं होती।
अच्छी नींद पाने के टिप्स
हर दिन एक ही समय पर सोने और उठने की कोशिश करें।
सोने से पहले कमरे में अंधेरा और शांत वातावरण बनाएं।
सोने से पहले हल्की किताब पढ़ना या ध्यान करना मददगार हो सकता है।
लंबे समय तक नींद की समस्या हो तो डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
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हर्निया एक आम लेकिन गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें शरीर के अंदरूनी अंग या ऊतक कमजोर मांसपेशी के माध्यम से बाहर निकल आते हैं। यह दर्दनाक हो सकता है और समय पर इलाज न होने पर गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। हर्निया किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन पुरुषों में इसकी संभावना ज्यादा होती है। हालांकि लोग अक्सर सोचते हैं कि यह केवल भारी वजन उठाने से होता है, लेकिन असल में यह कई रोजमर्रा की आदतों और जीवनशैली की गलतियों के कारण भी हो सकता है।
मुख्य कारण और सावधानियां:
गलत तरीके से भारी वजन उठाना:
भारी वस्तुएं उठाते समय सीधे पीठ या पेट की मांसपेशियों पर जोर डालना हर्निया का सबसे बड़ा कारण है। हमेशा घुटनों को मोड़कर और पीठ को सीधा रखते हुए वजन उठाना चाहिए। इससे मांसपेशियों पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा और हर्निया का खतरा कम होगा।
मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता:
लंबे समय तक बैठकर काम करना और व्यायाम न करना मोटापे का कारण बनता है, जो पेट की मांसपेशियों पर दबाव डालता है। नियमित व्यायाम और संतुलित आहार हर्निया के जोखिम को काफी हद तक घटा सकते हैं।
पुरानी खांसी और कब्ज:
लगातार खांसी या कब्ज के कारण पेट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इससे मांसपेशियां कमजोर होती हैं और हर्निया का खतरा बढ़ता है। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
पोषक तत्वों की कमी:
मांसपेशियों की मजबूती के लिए सही पोषण बेहद जरूरी है। प्रोटीन, विटामिन सी और अन्य पोषक तत्वों की कमी से मांसपेशियां कमजोर होती हैं। अपने आहार में प्रोटीन और विटामिन से भरपूर भोजन शामिल करें।
निष्कर्ष:
छोटी-छोटी जीवनशैली की आदतों में बदलाव कर हर्निया के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सही वजन उठाने की तकनीक अपनाएं, नियमित व्यायाम करें, कब्ज और खांसी को अनदेखा न करें और संतुलित आहार लें।
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आजकल हर उम्र के लोगों में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने की समस्या आम हो गई है। हाई ब्लड शुगर (डायबिटीज) केवल मीठा खाने की बीमारी नहीं है, बल्कि यह शरीर में इंसुलिन हार्मोन की गड़बड़ी से जुड़ी गंभीर स्थिति है। अगर इसे समय पर कंट्रोल न किया जाए, तो यह दिल, किडनी, आंखों और नसों तक को नुकसान पहुंचा सकती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि 30 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को हर छह महीने में ब्लड शुगर की जांच अवश्य करानी चाहिए। इससे शुरुआती अवस्था में ही डायबिटीज का पता लगाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में करीब 54 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, वहीं भारत में तेजी से बढ़ते मामलों की वजह से इसे डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड कहा जाने लगा है।
तो सवाल यह है कि आखिर किन वजहों से हमारा ब्लड शुगर लेवल लगातार बढ़ता रहता है?
शुगर लेवल कैसे बढ़ता है?
डॉक्टरों के अनुसार, जब हम भोजन करते हैं तो उसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज में बदलकर खून में पहुंचता है। सामान्य स्थिति में इंसुलिन इस ग्लूकोज को कोशिकाओं तक ले जाकर ऊर्जा में बदल देता है। लेकिन जब इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है या शरीर उसे सही तरह से इस्तेमाल नहीं करता, तो शुगर खून में जमा होने लगता है। लगातार 120 mg/dl से ऊपर का लेवल डायबिटीज की ओर इशारा करता है।
एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. वसीम गौहरी के अनुसार, चार मुख्य कारण ब्लड शुगर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:
1. नींद की कमी
अगर आप रोज़ाना 7 घंटे से कम सोते हैं तो शुगर लेवल बिगड़ सकता है। नींद की कमी से शरीर का हार्मोनल बैलेंस गड़बड़ा जाता है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है। इसके अलावा, कम नींद मीठा खाने की लालसा को भी बढ़ा सकती है।
2. ज्यादा फास्टिंग
बिना गाइडेंस के लंबे समय तक फास्टिंग करना भी शुगर लेवल बढ़ा सकता है। रिसर्च में पाया गया है कि इससे स्ट्रेस हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं, जिससे डायबिटीज के मरीजों के लिए खतरा बढ़ जाता है। उपवास करने से पहले और बाद में संतुलित आहार लेना जरूरी है।
3. लगातार तनाव
तनाव की स्थिति में कोर्टिसोल और एड्रेनालाईन जैसे हार्मोन ज्यादा मात्रा में बनते हैं। इससे शरीर में ग्लूकोज लेवल ऊपर चला जाता है और कोशिकाएं इंसुलिन को सही तरह से इस्तेमाल नहीं कर पातीं। यही वजह है कि क्रॉनिक स्ट्रेस डायबिटीज को और खराब कर सकता है।
4. देर रात भोजन
रात को देर से और भारी खाना खाने से शरीर की इंसुलिन सेंसिटिविटी कम हो जाती है। इससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ने लगता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि रात का भोजन हल्का और समय पर करें, ताकि ग्लूकोज को पचाने में शरीर पर अतिरिक्त दबाव न पड़े।
निष्कर्ष:
ब्लड शुगर कंट्रोल में रखने के लिए समय पर जांच, पर्याप्त नींद, संतुलित आहार, तनाव से बचाव और सही समय पर भोजन करना बेहद जरूरी है। इन छोटी-छोटी आदतों में सुधार करके डायबिटीज के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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सुबह उठते ही अगर शरीर में जकड़न, पैरों में खिंचाव या पीठ में अकड़न महसूस होती है, तो यह केवल नींद की वजह नहीं बल्कि स्वास्थ्य का संकेत भी हो सकता है। अक्सर यह ब्लड सर्कुलेशन की कमी, मांसपेशियों की कमजोरी, जोड़ों की समस्या, बढ़ता वजन या उम्र के असर के कारण होता है। अगर इसे नजरअंदाज किया जाए तो भविष्य में आर्थराइटिस, कमर दर्द, सर्वाइकल या घुटनों की समस्या का खतरा बढ़ सकता है।
सही दिनचर्या और सरल व्यायाम से इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सुबह उठते ही अचानक बिस्तर से न उठें, बल्कि पहले 2-3 मिनट आराम से बैठें, हल्की स्ट्रेचिंग करें और गहरी सांस लें। पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और नियमित योगासन से न केवल अकड़न दूर होगी, बल्कि शरीर ऊर्जावान और सक्रिय भी रहेगा।
नीचे कुछ सरल योगासन दिए गए हैं, जो सुबह की अकड़न को कम करने और जोड़ों की लचीलापन बनाए रखने में मदद करते हैं:
ताड़ासन (Mountain Pose)
सीधे खड़े हों और दोनों हाथ ऊपर उठाएं। एड़ियों को ऊपर उठाकर पंजों के बल खड़े रहें। पूरे शरीर को ऊपर की ओर खींचें और गहरी सांस लें। यह आसन पूरे शरीर में स्ट्रेच देकर अकड़न कम करता है और ऊर्जा बढ़ाता है।
पवनमुक्तासन
पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़कर सीने से लगाएं। दोनों हाथों से घुटनों को पकड़ें और गर्दन को उठाकर ठोड़ी को घुटनों के पास लाएं। 30 सेकंड तक इसी स्थिति में रहें। यह आसन कमर, पीठ और पैरों की अकड़न को दूर करता है।
भुजंगासन (Cobra Pose)
पेट के बल लेटें और हथेलियों को कंधों के पास रखें। सांस भरते हुए सिर और सीने को ऊपर उठाएं। नाभि तक शरीर उठाकर 15–20 सेकंड रुकें। यह रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और पीठ की जकड़न को कम करता है।
वज्रासन
घुटनों को मोड़कर एड़ियों पर बैठें। रीढ़ को सीधा रखें और हथेलियों को जांघों पर रखें। 2-5 मिनट तक इसी स्थिति में बैठें। यह आसन पैरों और घुटनों की नसों को आराम देता है और शरीर को स्थिरता प्रदान करता है।
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तेज़ जीवनशैली, बढ़ता तनाव, अनियमित खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी ने हृदय रोगों को आम समस्या बना दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लाखों लोग हृदय संबंधी बीमारियों से प्रभावित होते हैं और कई असमय मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। इसलिए अब जरूरी है कि हम अपने दिल का ख्याल रखें और आहार तथा जीवनशैली में ऐसे बदलाव करें जो दिल को लंबे समय तक स्वस्थ रखें।
पौष्टिक और संतुलित आहार से दिल की सुरक्षा
अध्ययन बताते हैं कि अधिक तैलीय, जंक फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ न केवल मोटापे का कारण बनते हैं, बल्कि ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को भी असंतुलित कर देते हैं। वहीं, संतुलित और पौष्टिक आहार, विशेषकर शाकाहारी विकल्प, दिल की बीमारियों के खतरे को कम करने में मदद करते हैं।
प्लांट-बेस्ड डाइट के फायदे
हरी सब्जियां, फल, दालें, अनाज और मेवे हृदय के लिए बेहद लाभकारी हैं। इनमें मौजूद फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल्स धमनियों को साफ रखते हैं और बैड कोलेस्ट्रॉल कम करते हैं। इसके अलावा, यह ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
दिल के लिए लाभकारी खाद्य पदार्थ:
नट्स और सीड्स:
बादाम, अखरोट, चिया सीड्स और अलसी के बीज में ओमेगा-3 फैटी एसिड और फाइबर होता है, जो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखकर हृदय स्वास्थ्य को सुधारते हैं।
ग्रीन-टी:
इसमें मौजूद कैटेचिन्स एंटीऑक्सीडेंट्स हृदय के लिए लाभकारी हैं। रोजाना दो-तीन कप ग्रीन-टी पीने से ब्लड प्रेशर और दिल की अन्य समस्याओं का खतरा कम होता है।
एवोकाडो:
मोनोअनसैचुरेटेड फैट का अच्छा स्रोत, जो बैड कोलेस्ट्रॉल कम और गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है। हफ्ते में दो बार एवोकाडो खाने से कार्डियोवस्कुलर रोगों का जोखिम 21% तक घट सकता है।
फाइबर युक्त सब्जियां और पत्तेदार साग:
पालक, केल, ब्रोकली जैसी सब्जियां फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन-के से भरपूर होती हैं। ये रक्तचाप को नियंत्रित रखने और धमनियों को कठोर होने से बचाने में मदद करती हैं।
निष्कर्ष:
दिल की सेहत बनाए रखने के लिए सिर्फ व्यायाम ही नहीं, बल्कि सही आहार भी उतना ही जरूरी है। पौष्टिक और संतुलित शाकाहारी विकल्प अपनाकर आप अपने दिल को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकते हैं।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जिम्मेदारियों का बोझ हर किसी पर है—कभी ऑफिस का काम, तो कभी परिवार की देखभाल। लेकिन अगर इस बीच माइग्रेन की समस्या भी हो जाए तो दिनचर्या और मुश्किल लगने लगती है। माइग्रेन सिर्फ सिरदर्द नहीं है, बल्कि इसके साथ मतली, थकान, चिड़चिड़ापन और तेज रोशनी या आवाज से परेशानी भी जुड़ी होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि संतुलित दिनचर्या, पौष्टिक आहार और सही जीवनशैली से इस परेशानी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
सुबह की सही शुरुआत
दिन की शुरुआत ही आपके पूरे दिन का मूड और ऊर्जा तय करती है। कोशिश करें रोजाना एक ही समय पर उठने की। उठते ही तुरंत फोन या लैपटॉप न देखें, बल्कि कुछ मिनट स्ट्रेचिंग करें और फिर 10–15 मिनट योग या ध्यान में लगाएं। अनुलोम-विलोम और भ्रामरी जैसे प्राणायाम तनाव को कम करने और माइग्रेन के अटैक को नियंत्रित करने में बेहद असरदार माने जाते हैं।
नाश्ता कभी न छोड़ें
खाली पेट रहना माइग्रेन का बड़ा ट्रिगर है। इसलिए सुबह का नाश्ता कभी न छोड़ें। ओट्स, दलिया, फल, मूंग दाल चीला या हल्के पौष्टिक विकल्प आपके लिए बेहतर हैं। चाय-कॉफी या एनर्जी ड्रिंक का ज्यादा सेवन न करें, क्योंकि इनमें मौजूद कैफीन सिरदर्द को बढ़ा सकता है।
स्क्रीन से दूरी बनाएं
लंबे समय तक लगातार स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखना भी माइग्रेन को बढ़ा सकता है। अगर आपका काम कंप्यूटर या मोबाइल से जुड़ा है तो हर 30 मिनट बाद 1-2 मिनट का छोटा ब्रेक लें। बैठते समय पीठ सीधी रखें, स्क्रीन आंखों के लेवल पर हो और पैर जमीन पर टिके हों।
हाइड्रेशन और सुकून
पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन माइग्रेन को और खराब कर सकता है। इसलिए दिनभर पर्याप्त पानी पीएं। तनाव के बीच अगर सिरदर्द बढ़ रहा हो तो गहरी सांस लें, थोड़ा टहलें या अपना पसंदीदा संगीत सुनें। ये छोटे-छोटे ब्रेक आपके मूड को बेहतर बनाते हैं और दर्द को भी कम करते हैं।
अपने ट्रिगर को पहचानें
हर व्यक्ति के माइग्रेन ट्रिगर अलग हो सकते हैं—किसी को तेज आवाज या रोशनी परेशान करती है, किसी को भूख, मौसम में बदलाव या ज्यादा स्क्रीन टाइम। जब भी माइग्रेन हो, उस दिन का खाना, नींद का समय, मौसम और तनाव का स्तर नोट करें। इससे आपको अपने ट्रिगर पहचानने में मदद मिलेगी।
शाम को रिलेक्स करें
पूरे दिन की थकान के बाद खुद को रिलेक्स करना जरूरी है। इसके लिए हल्की वॉक, बागवानी, किताब पढ़ना या पेंटिंग जैसे काम कर सकते हैं। इससे दिमाग को सुकून मिलता है और तनाव कम होता है।
पर्याप्त नींद लें
माइग्रेन के मरीजों के लिए नींद सबसे बड़ी दवा है। रोजाना 7–8 घंटे की नींद लेना बेहद जरूरी है। सोने से पहले स्क्रीन बंद करें, कमरे की रोशनी हल्की करें और आरामदायक माहौल बनाएं।
जीवनशैली पर ध्यान दें
राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. के.एस. आनंद के अनुसार, माइग्रेन से राहत पाने के लिए दवाओं से ज्यादा जरूरी है अनुशासित जीवनशैली। समय पर भोजन, पर्याप्त पानी, स्ट्रेस मैनेजमेंट और मेडिटेशन से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। वे मानते हैं कि दवाइयां सिर्फ अस्थायी राहत देती हैं, लेकिन सही दिनचर्या ही माइग्रेन से लंबे समय तक सुरक्षा देती है।
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