स्वस्थ और तंदुरुस्त जीवन के लिए सही खानपान का होना बेहद जरूरी है। अक्सर हम विटामिन, प्रोटीन और मिनरल्स की बात करते हैं, लेकिन शरीर के सही विकास और कार्य के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों पर ध्यान कम दिया जाता है। इनमें मैग्नीशियम एक अहम खनिज है, जो हमारी सेहत को कई तरीकों से प्रभावित करता है।
मैग्नीशियम का महत्व
अध्ययनों से पता चलता है कि मैग्नीशियम हड्डियों को मजबूत रखने, मांसपेशियों के सही कार्य, नसों के सिग्नल, ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने और हार्टबीट को सामान्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी होने पर थकान, मांसपेशियों में ऐंठन, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पी.बी. मिश्रा का कहना है कि मैग्नीशियम शरीर के लिए अत्यंत जरूरी है। इसकी कमी से मांसपेशियों में ऐंठन, हृदय की अनियमित धड़कन, थकान, अवसाद, चिंता और नींद की समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में दौरे भी पड़ सकते हैं।
कैसे करें आहार में सुधार
डॉ. मिश्रा के अनुसार मैग्नीशियम की कमी दूर करने के लिए आहार में फलियां, हरी सब्जियां, बादाम, चिया और कद्दू के बीज, ब्राउन राइस, केला और एवोकाडो शामिल किए जा सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक से परामर्श लेना भी जरूरी है।
मैग्नीशियम कैल्शियम और पोटैशियम के स्तर को प्रभावित करता है। यह हड्डियों में जमा होकर हड्डियों को मजबूत बनाए रखता है और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से बचाव करता है। इसके अलावा यह मस्तिष्क के कार्यों, ऊर्जा उत्पादन और तनाव नियंत्रण में भी अहम भूमिका निभाता है।
थकान और नींद की समस्या का कारण
मैग्नीशियम की कमी से शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलती, जिससे थकान, सुस्ती और कमजोरी महसूस होती है। यह शरीर का नेचुरल रिलैक्सर भी है, जो नींद और मानसिक शांति बनाए रखने में मदद करता है। कमी होने पर अनिद्रा, बेचैनी और तनाव बढ़ सकते हैं।
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आज की तेज़ और व्यस्त जिंदगी में तनाव और चिंता आम हो गए हैं। ऑफिस का दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियां और रोज़मर्रा की चुनौतियां अक्सर मन को बेचैन कर देती हैं। ऐसे समय में योग सिर्फ शरीर को ही लचीला नहीं बनाता, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता भी प्रदान करता है।
कुछ विशेष योगासन ऐसे हैं जो चिंता को कम करने, मानसिक संतुलन बनाए रखने और जीवन में सुकून लाने में मदद करते हैं। रोज़ाना सिर्फ 20 मिनट का अभ्यास आपके मन को शांत, शरीर को स्वस्थ और आत्मविश्वास को बढ़ा सकता है।
आइए जानते हैं कुछ असरदार योगासन, जिन्हें अपनाकर आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं:
1. बालासन (Child Pose)
बालासन दिमाग को ठंडक और मन को स्थिरता देता है। यह तनाव, थकान और सिरदर्द में राहत देने के लिए बेहद प्रभावी है।
अभ्यास: घुटनों के बल बैठें, सिर को धीरे-धीरे जमीन पर टिकाएं और हाथ आगे फैलाएं। गहरी और शांत सांस लें।
2. शवासन (Corpse Pose)
शवासन सबसे प्रभावी रिलैक्सेशन आसन है। यह पूरे शरीर को शिथिल कर मानसिक शांति देता है।
अभ्यास: पीठ के बल लेटें, आंखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
3. अनुलोम-विलोम प्राणायाम (Alternate Nostril Breathing)
सांसों के संतुलन से मानसिक ऊर्जा भी संतुलित होती है। यह चिंता, गुस्सा और डिप्रेशन कम करने में मदद करता है।
अभ्यास: एक नथुने को बंद करके दूसरे से धीरे-धीरे सांस लें, फिर नथुने बदलें और दोहराएं।
4. अधोमुख श्वानासन (Downward Dog Pose)
यह आसन नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है और ब्लड सर्कुलेशन सुधारता है। अभ्यास से शरीर हल्का और मन शांत महसूस होता है।
5. सुखासन (Easy Pose)
सुखासन सबसे सरल लेकिन असरदार ध्यान मुद्रा है। नियमित अभ्यास से मन स्थिर होता है और मानसिक बेचैनी कम होती है।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जोड़ों और हड्डियों का दर्द तेजी से युवा आबादी को भी अपनी चपेट में ले रहा है। पहले जहां यह परेशानी केवल बुजुर्गों में आम थी, वहीं अब 25 से 40 वर्ष की उम्र के लोग भी घुटनों और पीठ दर्द की शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं।
अनियमित जीवनशैली, घंटों एक जगह बैठे रहना, पोषण की कमी और प्रदूषण जैसी वजहें इसके प्रमुख कारण हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, आर्थराइटिस (गठिया) जोड़ों में सूजन और दर्द का एक प्रमुख रोग है, जो शरीर की गतिशीलता को प्रभावित करता है। समय रहते ध्यान न देने पर यह आजीवन परेशानी का रूप ले सकता है। खासतौर पर जिन लोगों का वजन अधिक होता है, उनके घुटनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे दर्द और सूजन बढ़ जाती है।
हर साल 12 अक्टूबर को ‘विश्व गठिया दिवस (World Arthritis Day)’ मनाया जाता है, ताकि इस रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके और लोग समय पर उपचार और जीवनशैली सुधार अपनाएं।
घुटनों के दर्द से राहत पाने के आसान उपाय
संतुलित और पोषक आहार अपनाएं
हड्डियों को मजबूत रखने के लिए आहार में कैल्शियम, विटामिन-डी, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में शामिल करें।
दही, दूध, बादाम, मछली, अलसी के बीज और हरी सब्जियां इन पोषक तत्वों के अच्छे स्रोत हैं।
साथ ही, प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड और अधिक चीनी का सेवन कम करें — ये शरीर में सूजन बढ़ाने का काम करते हैं।
तेल से मालिश और सेकाई करें
सरसों, नारियल या नीलगिरी तेल से हल्की मालिश करने से रक्त संचार बेहतर होता है और सूजन में राहत मिलती है।
रोजाना 10-15 मिनट हल्के हाथों से मालिश करने से जोड़ों की जकड़न घटती है।
गर्म पानी की सेकाई (हीट थेरेपी) मांसपेशियों को आराम देती है, जबकि ठंडे पैक से सूजन में कमी आती है। दर्द की स्थिति के अनुसार दोनों का संतुलित उपयोग करें।
नियमित व्यायाम और योग करें
घुटनों की सेहत के लिए हल्की एक्सरसाइज और योग बेहद जरूरी हैं।
वॉकिंग, स्विमिंग, साइक्लिंग जैसे लो-इम्पैक्ट व्यायाम आर्थराइटिस से राहत दिलाते हैं।
योगासन जैसे त्रिकोणासन, वज्रासन और भुजंगासन घुटनों की लचीलापन बढ़ाते हैं और मांसपेशियों को मजबूत करते हैं।
वजन को नियंत्रित रखें
अधिक वजन घुटनों पर दबाव डालता है, जिससे दर्द और सूजन बढ़ सकती है।
संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से वजन नियंत्रण में रखें।
अलसी के बीज और फाइबरयुक्त भोजन का सेवन वजन घटाने और जोड़ों की सूजन कम करने में सहायक होता है।
निष्कर्ष
जोड़ों का दर्द केवल उम्र बढ़ने का परिणाम नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ है। अगर आप समय रहते सही खानपान, नियमित व्यायाम और वजन नियंत्रण पर ध्यान दें, तो आर्थराइटिस जैसी समस्याओं से बचाव संभव है।
स्वस्थ दिनचर्या अपनाएं — ताकि जीवन हर उम्र में सक्रिय और दर्द-मुक्त बना रहे।
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फोकस करने बैठते ही आने लगती है नींद? हो सकता है यह आलस नहीं, शरीर में पोषक तत्वों की कमी का हो संकेत
कई बार ऐसा होता है कि जैसे ही हम किसी जरूरी काम पर ध्यान केंद्रित करने बैठते हैं — खासकर पढ़ाई या ऑफिस के काम के दौरान — अचानक आलस और नींद हावी होने लगती है। कुछ देर तक फोकस बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, आंखें भारी हो जाती हैं और दिमाग सुस्त पड़ जाता है। अगर यह समस्या कभी-कभार हो तो चिंता की बात नहीं, लेकिन अगर यह स्थिति रोजाना बनी रहती है, तो यह केवल आलस नहीं बल्कि शरीर के भीतर किसी कमी का संकेत हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार नींद और थकान महसूस होना अक्सर आयरन या विटामिन डी की कमी (Deficiency) से जुड़ा होता है। जब शरीर में ये पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं होते, तो एनर्जी लेवल गिर जाता है और दिमाग तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। इसके परिणामस्वरूप ब्रेन फॉग, ध्यान भटकना और बार-बार नींद आना जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
जब शरीर में आयरन की मात्रा कम हो जाती है, तो लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण घट जाता है। इससे दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति थका हुआ और नींद से भरा महसूस करता है। इसी तरह विटामिन डी की कमी भी शरीर की ऊर्जा और मूड दोनों को प्रभावित करती है, जिससे दिनभर सुस्ती और काम में अरुचि बनी रहती है।
अनियमित नींद और डाइट भी बड़ा कारण
थकान और नींद की समस्या केवल पोषक तत्वों की कमी से ही नहीं, बल्कि गलत दिनचर्या से भी बढ़ती है।
यदि आप रोजाना पूरी नींद (7–8 घंटे) नहीं लेते या देर रात भारी भोजन करते हैं, तो अगले दिन फोकस करना स्वाभाविक रूप से मुश्किल होता है।
इसके अलावा, ज्यादा चीनी और प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन शरीर में अचानक एनर्जी का उछाल लाता है, जिसके बाद एनर्जी तेजी से गिरती है और नींद हावी हो जाती है।
इन उपायों से करें शुरुआत
हर 45–50 मिनट के अध्ययन या काम के बाद 5 मिनट का ब्रेक जरूर लें।
कमरे को हवादार और रोशनी से भरपूर रखें।
डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, दालें, अंडे और नट्स शामिल करें।
कैफीन पर निर्भर रहने के बजाय पर्याप्त पानी पिएं और नींद का रूटीन ठीक रखें।
अगर समस्या बनी रहे तो ब्लड टेस्ट कराकर आयरन, विटामिन डी और बी12 का स्तर जांचें।
कब लें विशेषज्ञ की सलाह
यदि पर्याप्त नींद और संतुलित आहार के बाद भी थकान और नींद की समस्या खत्म नहीं होती, तो यह किसी क्रोनिक बीमारी जैसे हाइपोथायरायडिज्म या एनीमिया का संकेत हो सकती है।
इसलिए देर न करें — डॉक्टर या डायटिशियन से परामर्श लेकर सही जांच और उपचार करवाएं। सही समय पर ध्यान देने से न केवल फोकस बढ़ेगा, बल्कि आपकी सेहत और कार्यक्षमता दोनों में सुधार होगा।
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अक्सर लोग कमर या पैरों में दर्द को सामान्य थकान या दिनभर की भागदौड़ का नतीजा मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह दर्द कई बार शरीर में छिपी किसी गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकता है? यह परेशानी न सिर्फ आपकी दिनचर्या को प्रभावित करती है, बल्कि समय पर इलाज न मिलने पर चलने-फिरने में दिक्कत और स्थायी नुकसान का कारण भी बन सकती है।
आज की व्यस्त जीवनशैली, लंबे समय तक बैठकर काम करना, गलत पोस्चर और व्यायाम की कमी—ये सभी कारण इस तरह के दर्द को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, सिर्फ जीवनशैली ही नहीं, बल्कि रीढ़ की हड्डी, नसों या रक्त संचार से जुड़ी बीमारियां भी इस दर्द के पीछे जिम्मेदार हो सकती हैं।
आइए जानते हैं, कमर से पैरों तक दर्द के चार प्रमुख कारण, जिन्हें हल्के में लेना खतरनाक साबित हो सकता है—
साइटिका (Sciatica)
साइटिका एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कमर से लेकर पैरों तक जाने वाली साइटिक नस पर दबाव पड़ता है। इसके कारण तीखा, जलनभरा या चुभन जैसा दर्द महसूस होता है। यह दर्द आमतौर पर एक पैर में ज्यादा होता है और लंबे समय तक बैठने या झुकने पर बढ़ जाता है।
अगर आपको पैर में अचानक झटके जैसा दर्द या झुनझुनी महसूस होती है, तो यह साइटिका का संकेत हो सकता है।
स्लिप डिस्क (Slip Disc)
जब रीढ़ की हड्डियों के बीच की डिस्क अपने स्थान से खिसक जाती है, तो यह आसपास की नसों पर दबाव डालती है। इससे कमर, पैरों या कभी-कभी गर्दन तक दर्द फैल सकता है। साथ ही पैरों या पंजों में झुनझुनी, सुन्नपन या कमजोरी भी महसूस हो सकती है।
यह दर्द झुकने या भारी सामान उठाने पर बढ़ जाता है, इसलिए तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
स्पाइनल स्टेनोसिस (Spinal Stenosis)
उम्र बढ़ने के साथ रीढ़ की हड्डी की जगह संकरी होने लगती है, जिससे नसें दब जाती हैं। इस स्थिति को स्पाइनल स्टेनोसिस कहते हैं। इसमें व्यक्ति को चलने या लंबे समय तक खड़े रहने पर कमर और पैरों में दर्द होता है, जबकि आराम करने पर राहत मिलती है।
अगर चलते-चलते पैरों में भारीपन या सुन्नता महसूस हो रही है, तो इसे नजरअंदाज न करें।
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज (Peripheral Artery Disease – PAD)
यह बीमारी तब होती है जब पैरों की धमनियां संकरी हो जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह कम हो जाता है। इसके कारण चलने या व्यायाम के दौरान पैरों में दर्द, ऐंठन या भारीपन महसूस होता है।
आराम करने पर दर्द कुछ देर में ठीक हो जाता है, लेकिन यह हृदय रोग का संकेत भी हो सकता है, इसलिए डॉक्टर से जांच कराना जरूरी है।
सावधानी ही सुरक्षा है
अगर आपका दर्द लंबे समय से बना हुआ है या चलने-फिरने में मुश्किल पैदा कर रहा है, तो इसे “साधारण थकान” समझने की भूल न करें। समय पर जांच और उपचार से न केवल दर्द कम किया जा सकता है, बल्कि गंभीर बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पेट से जुड़ी समस्याएं बेहद आम हो गई हैं। हर उम्र का व्यक्ति कभी न कभी गैस, अपच या पेट फूलने जैसी परेशानी झेलता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि पाचन प्रणाली शरीर की नींव है—अगर पेट ठीक है तो शरीर स्वस्थ रहता है। लेकिन गड़बड़ दिनचर्या, जंक फूड और तनाव के कारण पाचन संबंधी विकार तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह समस्या लंबे समय में गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकती है।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि खाना खाने के तुरंत बाद पेट भारी और फूला हुआ महसूस हुआ हो? अगर हां, तो आप अकेले नहीं हैं। दुनियाभर में करोड़ों लोग इसी तरह की दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
अच्छी बात यह है कि कुछ प्राकृतिक खाद्य पदार्थ आपकी पाचन प्रणाली को मजबूत बनाने और पेट की असुविधाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हार्वर्ड प्रशिक्षित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ सेठी ने ऐसे कुछ फलों और बीजों की सूची बताई है जो पाचन को बेहतर बनाए रखते हैं।
क्यों बढ़ रही हैं पाचन की दिक्कतें?
डॉ. सौरभ सेठी बताते हैं कि आज ज्यादातर पाचन संबंधी परेशानियां हमारी खान-पान की गलत आदतों से जुड़ी हैं।
अत्यधिक तला-भुना खाना
देर रात भोजन करना
फाइबर की कमी
तनाव और नींद की कमी
ये सभी कारण पेट की सेहत पर सीधा असर डालते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि “जो हम खाते हैं, वही हमारे पेट की सेहत तय करता है।” इसलिए सही खानपान अपनाना ही पाचन को मजबूत रखने का सबसे आसान उपाय है।
पाचन को दुरुस्त करने वाले सुपरफूड्स
1. कीवी — पेट के लिए फाइबर और एंजाइम का खज़ाना
कीवी में पाया जाने वाला एक्टिनिडिन एंजाइम प्रोटीन को तोड़ने में मदद करता है, जिससे खाना जल्दी पचता है। इसमें मौजूद फाइबर कब्ज को दूर करता है और आंतों की मूवमेंट को बेहतर बनाता है। साथ ही इसके एंटीऑक्सीडेंट पेट की सूजन और एसिडिटी को कम करते हैं।
2. पपीता — प्राकृतिक पाचन बूस्टर
पपीते में मौजूद पेपेन एंजाइम भारी भोजन को आसानी से पचाता है। यह फल हल्का होता है और कब्ज से राहत दिलाता है। अध्ययन बताते हैं कि रोजाना पपीता खाने से दो हफ्तों में पेट फूलना और अपच की समस्या कम हो सकती है।
3. अनानास — सूजन और गैस का इलाज
अनानास में ब्रोमेलिन एंजाइम होता है जो प्रोटीन को तोड़कर गैस, सूजन और अपच को दूर करता है। यह पेट में हानिकारक बैक्टीरिया को भी नियंत्रित करता है और इम्यूनिटी बढ़ाता है।
4. खीरा — ठंडक और हाइड्रेशन का स्रोत
खीरे में 95% पानी होता है, जो शरीर को हाइड्रेट रखता है और मल त्याग को आसान बनाता है। गर्मियों में खीरा खाने से एसिडिटी और पेट की जलन से तुरंत राहत मिलती है।
5. चिया सीड्स — पेट की सफाई के लिए बेहतरीन
फाइबर और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर चिया सीड्स पानी में भिगोकर खाने से जेल जैसा बनते हैं, जो आंतों की सफाई और कब्ज से राहत में मदद करते हैं।
6. सौंफ — हर भारतीय रसोई का पाचन मित्र
सौंफ में मौजूद ऐनेथोल तत्व गैस और पेट फूलने की समस्या को तुरंत कम करता है। यह पाचन एंजाइम्स को सक्रिय करता है और खाने के बाद पेट को हल्का रखता है। यही कारण है कि भारतीय परंपरा में सौंफ को भोजन के बाद खाना जरूरी माना गया है।
छोटे बदलाव, बड़ा असर
पेट को स्वस्थ रखने के लिए केवल खाने पर ध्यान देना ही नहीं, बल्कि जीवनशैली में सुधार भी जरूरी है।
भोजन धीरे-धीरे चबाकर खाएं
पर्याप्त पानी पिएं
फाइबर युक्त फल-सब्जियां लें
तनाव कम करें और नियमित व्यायाम करें
अगर आप रोजमर्रा की जिंदगी में इन प्राकृतिक चीजों को शामिल कर लें, तो पाचन से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।
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हम अपनी ज़िंदगी का लगभग एक तिहाई हिस्सा सोने में बिताते हैं। यह सुनने में भले ही लंबा लगे, लेकिन नींद शरीर और दिमाग दोनों के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी कि खाना या सांस लेना। नींद सिर्फ आराम का समय नहीं है—यह शरीर की मरम्मत और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का अहम हिस्सा है।
हाल ही में हुए एक बड़े अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि जिन लोगों की नींद खराब थी, उनका मस्तिष्क उनकी वास्तविक उम्र से ज़्यादा बूढ़ा दिख रहा था।
27,000 लोगों पर हुआ अध्ययन
यूके में 40 से 70 वर्ष की उम्र के 27,000 से अधिक लोगों के नींद के पैटर्न और मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन का विश्लेषण किया गया। परिणाम चौंकाने वाले थे। जिन लोगों की नींद की गुणवत्ता खराब थी, उनके दिमाग की उम्र उनकी असली उम्र से कहीं अधिक पाई गई।
मस्तिष्क का “बूढ़ा होना” कैसे होता है?
जैसे शरीर बूढ़ा होने पर झुर्रियां पड़ती हैं, वैसे ही मस्तिष्क में भी उम्र के साथ बदलाव आते हैं। लेकिन हर मस्तिष्क एक ही गति से बूढ़ा नहीं होता।
आधुनिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से वैज्ञानिक अब मस्तिष्क की “जैविक उम्र” का अनुमान लगा सकते हैं। इसमें ऊतक घनत्व, कॉर्टेक्स की मोटाई और रक्त वाहिकाओं की स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन किया जाता है।
मस्तिष्क की उम्र कैसे मापी गई?
अध्ययन में 1,000 से अधिक एमआरआई संकेतों (इमेजिंग मार्कर) का विश्लेषण किया गया। मशीन लर्निंग मॉडल को उन लोगों के डेटा पर प्रशिक्षित किया गया जिनकी सेहत पूरी तरह ठीक थी। फिर बाकी प्रतिभागियों के परिणामों से तुलना की गई।
नतीजा: खराब नींद वाले लोगों में मस्तिष्क की उम्र असल उम्र से अधिक पाई गई। इसका मतलब है कि खराब नींद मस्तिष्क को समय से पहले बूढ़ा कर सकती है, जिससे भविष्य में संज्ञानात्मक क्षमता में कमी, डिमेंशिया और असमय मृत्यु का खतरा बढ़ सकता है।
नींद के पांच पहलुओं का विश्लेषण
शोध में नींद के निम्न पांच पहलुओं को ध्यान में रखा गया:
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व्यक्ति का क्रोनोटाइप (सुबह का या रात का व्यक्ति)
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औसतन कितने घंटे की नींद लेते हैं (7–8 घंटे आदर्श माने गए)
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अनिद्रा या सोने में कठिनाई
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खर्राटे लेना
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दिन में अत्यधिक नींद या थकान महसूस करना
इन सभी पहलुओं को जोड़कर “स्वस्थ नींद स्कोर” बनाया गया। जिनके चार या पांच पहलू स्वस्थ थे, उनकी नींद सबसे अच्छी पाई गई। वहीं जिनके पास केवल एक या दो स्वस्थ पहलू थे, उनमें मस्तिष्क की उम्र सबसे अधिक बढ़ी हुई दिखी।
सूजन और मस्तिष्क उम्र का संबंध
अध्ययन में प्रतिभागियों के खून के नमूनों का विश्लेषण भी किया गया। पाया गया कि खराब नींद शरीर में सूजन को बढ़ाती है। यह सूजन मस्तिष्क की उम्र बढ़ाने की प्रक्रिया में लगभग 10% योगदान करती है।
अपनी नींद कैसे सुधारें?
वैज्ञानिकों के अनुसार, कुछ सरल आदतों से नींद की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है:
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सोने से पहले कैफीन, शराब और मोबाइल स्क्रीन से दूरी रखें
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अंधेरा और शांत वातावरण तैयार करें
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हर दिन एक ही समय पर सोने और उठने की आदत डालें
इन छोटे बदलावों से न केवल नींद सुधरेगी, बल्कि आपका मस्तिष्क भी लंबे समय तक जवान और सक्रिय रहेगा।
आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में थकान महसूस होना या कुछ बाल झड़ना अब आम बात लगती है। हममें से ज़्यादातर लोग इसे काम के बोझ, तनाव या नींद की कमी से जोड़कर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन अगर पर्याप्त आराम के बावजूद आप हर समय थके-थके रहते हैं, ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं और बाल सामान्य से कहीं ज़्यादा झड़ रहे हैं, तो यह सिर्फ एक साधारण समस्या नहीं, बल्कि किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार थकान और बाल झड़ना थायराइड जैसी हार्मोनल समस्या की शुरुआती चेतावनी हो सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है, जब गले में मौजूद तितली के आकार की थायराइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन नहीं बना पाती, जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है।
क्यों होते हैं थकान और बाल झड़ने के लक्षण?
थायराइड ग्रंथि हमारे शरीर की ऊर्जा निर्माण और उपयोग की प्रक्रिया यानी मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करती है।
थायराइड दो तरह का होता है —
हाइपरथायरॉयडिज्म (Overactive Thyroid) – जब हार्मोन ज़रूरत से ज़्यादा बनते हैं।
हाइपोथायरॉयडिज्म (Underactive Thyroid) – जब हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनते।
हाइपोथायरॉयडिज्म की स्थिति में शरीर की ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे लगातार थकान, सुस्ती और कमजोरी महसूस होती है। साथ ही, थायराइड हार्मोन बालों की जड़ों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। जब हार्मोन की कमी होती है, तो बालों की ग्रोथ साइकिल प्रभावित होती है, जिससे बाल रूखे, बेजान और झड़ने लगते हैं।
हाइपोथायरॉयडिज्म के अन्य शुरुआती लक्षण
थकान और बाल झड़ने के अलावा इसके और भी संकेत हो सकते हैं—
वजन में अचानक वृद्धि
ठंड अधिक लगना
त्वचा का रूखापन और बालों का टूटना
कब्ज की समस्या
मूड में बदलाव और एकाग्रता में कमी
किन लोगों को होता है अधिक खतरा?
थायराइड की समस्या महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक आम है, खासकर 30 वर्ष की उम्र के बाद।
यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही है, तो आनुवंशिक रूप से इसका जोखिम बढ़ जाता है।
इसके अलावा, ऑटोइम्यून बीमारियां, आयोडीन की कमी, और हार्मोनल बदलाव भी इसके प्रमुख कारण हो सकते हैं।
क्या करें?
अगर आप लंबे समय से थकान, वजन बढ़ने या बाल झड़ने की समस्या झेल रहे हैं, तो इसे नजरअंदाज न करें।
TSH टेस्ट जैसे सामान्य ब्लड टेस्ट से थायराइड की पहचान आसानी से की जा सकती है।
समय पर जांच और उचित दवा से इस बीमारी को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
संतुलित आहार, पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम भी थायराइड को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं।
(साभार)
अच्छी सेहत के लिए फिटनेस एक्सपर्ट्स हमेशा नियमित शारीरिक गतिविधि पर जोर देते हैं। रनिंग और वॉकिंग जैसे साधारण अभ्यास न सिर्फ कैलोरी बर्न करने और वजन नियंत्रित रखने में मदद करते हैं, बल्कि हृदय स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के लिए भी बेहद लाभकारी माने जाते हैं। सुबह की रनिंग तो खासतौर पर इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और मूड बेहतर बनाने के लिए जानी जाती है।
हालांकि, हाल के कुछ अध्ययनों ने चेतावनी दी है कि जहां संतुलित रनिंग शरीर के लिए वरदान है, वहीं अत्यधिक और लगातार लंबी दौड़ करने से कोलन कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) का खतरा भी बढ़ सकता है।
रनिंग के फायदे
पिछले कई शोध बताते हैं कि नियमित दौड़ना असमय मृत्यु के खतरे को कम करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लगभग 32 लाख लोग पर्याप्त शारीरिक गतिविधि न करने की वजह से समय से पहले मौत का शिकार होते हैं। ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन की रिपोर्ट कहती है कि रनिंग करने वालों में हृदय रोग से मौत का खतरा 30% और कैंसर से मौत का खतरा 23% तक कम हो सकता है।
हालिया शोध में नई सावधानी
लेकिन इसी बीच शिकागो में हुई अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी (ASCO) 2025 की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट ने नए सवाल खड़े किए हैं। अध्ययन में पाया गया कि लंबी दूरी की दौड़ या मैराथन पूरी करने वाले धावकों में कोलन कैंसर के शुरुआती लक्षण अधिक पाए गए।
अध्ययन की प्रमुख बातें
शोध में 35 से 50 वर्ष के 100 प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जिन्होंने कम से कम 5 मैराथन या 2 अल्ट्रामैराथन पूरी की थीं।
कोलोनोस्कोपी जांच में सामने आया कि 15% धावकों में एडवांस्ड एडेनोमा (प्री-कैंसर घाव) थे।
41% प्रतिभागियों में कम से कम एक एडेनोमा मौजूद था।
शोधकर्ताओं का मानना है कि लंबी दूरी की रनिंग के कारण पाचन तंत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे आंतों में इंफ्लेमेशन और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों की राय
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर प्रोग्राम के सह-निदेशक डॉ. टिम कैनन कहते हैं—
“यह पहला ऐसा अध्ययन है जिसने संकेत दिया कि अत्यधिक दौड़ने वाले लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम अधिक हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए नियमित कैंसर स्क्रीनिंग बेहद जरूरी है।”
संतुलन है सबसे जरूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि रनिंग को पूरी तरह छोड़ने की जरूरत नहीं है। बल्कि इसे संतुलित तरीके से, सही डाइट, पर्याप्त पानी और आराम के साथ करना चाहिए। रोजाना 15-20 मिनट की हल्की दौड़ या तेज वॉक पर्याप्त है।
अत्यधिक या लंबी दूरी की रनिंग से बचकर ही रनिंग को स्वास्थ्य के लिए फायदे का सौदा बनाया जा सकता है।
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आजकल बाजार और रेस्टोरेंट में सोया चाप का क्रेज बढ़ता जा रहा है। शाकाहारी और जिम जाने वाले लोग इसे प्रोटीन का अच्छा स्रोत मानकर बड़ी चाव से खाते हैं। स्ट्रीट फूड हो या होम रेसिपी, हर जगह सोया चाप की लोकप्रियता बढ़ रही है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्यादातर बाजार में मिलने वाला सोया चाप आपके शरीर के लिए उतना फायदेमंद नहीं हो सकता, जितना आप सोचते हैं? असल में कई बार इसे बनाने में सोया की जगह मैदा और अन्य अनहेल्दी सामग्री ज्यादा मिलाई जाती है।
सोया चाप में प्रोटीन की मात्रा कितनी है?
सोया प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, यह सच है। लेकिन बाजार में तैयार होने वाले सोया चाप में अक्सर लागत कम करने के लिए ज्यादा मैदा और मिलावट होती है। कई जगहों पर मैदे की मात्रा सोया से भी ज्यादा होती है। इसलिए, जो आप प्रोटीन की उम्मीद में खा रहे हैं, वह असल में कार्ब्स और खाली कैलोरी हो सकती है।
मैदा के नुकसान
मैदा एक रिफाइंड कार्ब है, जिसमें फाइबर नहीं होता। यह जल्दी पचता है और ब्लड शुगर बढ़ा देता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए यह खतरनाक हो सकता है और स्वस्थ लोगों में भी वजन बढ़ाने और सूजन जैसी समस्याओं को बढ़ावा दे सकता है।
पकाने का तरीका और भी जोखिम भरा
सोया चाप को स्वादिष्ट बनाने के लिए इसे अक्सर डीप फ्राई किया जाता है और फिर भारी ग्रेवी में पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में अनहेल्दी फैट और कैलोरी बढ़ जाती है, जिससे यह हेल्दी विकल्प के बजाय नुकसानदेह बन जाता है।
स्वस्थ विकल्प
अगर आप प्रोटीन लेना चाहते हैं, तो सोया चाप पर पूरी तरह निर्भर न रहें। इसके बजाय पनीर, टोफू, दालें, छोले, राजमा और सोयाबीन जैसे शुद्ध प्रोटीन स्रोत अपनाएं। ये विकल्प सेहत और पोषण दोनों के लिए बेहतर हैं।
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