भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मानवधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया’ के रुख और बयान को दुर्भाग्यपूर्ण, अतिश्योक्तिपूर्ण और सच्चाई से परे बताया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि संगठन द्वारा मानवीय कार्य और सत्य की ताकत को लेकर की जा रही बयानबाजी सिर्फ अपनी गतिविधियों से ध्यान हटाने की चाल है। मंत्रालय ने कहा कि संगठन स्पष्ट रूप से भारतीय कानूनों की अवहेलना में लिप्त रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा पिछले कुछ वर्षों में बरती गईं अनियमितताओं और अवैध कार्यों की कई एजेंसियां जांच कर रही हैं। ऐसे बयान देकर वह जांच को प्रभावित करने के प्रयास भी कर रहा है।
घरेलू मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार शाम को बयान जारी कर कहा कि संगठन भारत में मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है, जिस तरह से अन्य संगठन कर रहे हैं। भारत के कानून विदेशी चंदे से वित्त पोषित संस्थाओं को घरेलू राजनीतिक बहस में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देते हैं। यह कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और इसी तरह एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी लागू होगा।
कई बार आवेदन के बावजूद FCRA की अनुमति नहीं
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contribution (Regulation) Act, FCRA) के अंतर्गत सिर्फ एक बार और वह भी 20 साल पहले दिसंबर, 2000 में स्वीकृति दी गई थी। तब से अभी तक एमनेस्टी इंटरनेशनल के कई बार आवेदन करने के बावजूद पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा FCRA स्वीकृति से इनकार किया जाता रहा है, क्योंकि कानून के तहत वह इस स्वीकृति को हासिल करने के लिए पात्र नहीं है। एमनेस्टी के प्रति अलग-अलग सरकारों का यह कानूनी दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि अपने कामकाज के लिए पैंसा हासिल करने की उसकी प्रक्रिया संदिग्ध है।
गैर कानूनी तरीके से हासिल किया विदेशी फंड
केंद्र सरकार के अनुसार FCRA नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी यूके ने भारत में पंजीकृत चार संस्थाओं को बड़ी मात्रा में धनराशि भेजी और इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में दिखाया गया। इसके अलावा एमनेस्टी इंडिया को FCRA के तहत गृह मंत्रालय की मंजूरी के बिना बड़ी मात्रा में विदेशी धन प्रेषित किया गया। गलत रास्ते से धन भेज कर कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया।
केंद्र सरकार के प्रति अभूतपूर्व भरोसा
गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत मुक्त प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और जीवंत घरेलू बहस के साथ संपन्न और बहुलतावादी लोकतांत्रिक संस्कृति वाला देश है। भारत के लोगों ने वर्तमान सरकार में अभूतपूर्व भरोसा दिखाया है। गृह मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कानूनों के पालन करने में विफल रहने के बाद एमनेस्टी को भारत के लोकतांत्रिक और बहुलतावादी स्वभाव पर टिप्पणियां करने का अधिकार नहीं मिल जाता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में बंद किया कामकाज
इससे पहले, एमनेस्टी इंटरनेशनल की भारत स्थित इकाई ने मंगलवार सुबह अपनी वेबसाइट पर एक बयान जारी कर बताया कि उसने देश में अपना कामकाज रोक दिया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा कि भारत सरकार द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खातों को पूरी तरह से फ्रीज कर दिया गया है, जिसकी जानकारी 10 सितंबर 2020 को हुई। इससे संगठन द्वारा किए जा रहे सभी काम पूरी तरह से ठप हो गए हैं। एमनेस्टी ने इसे सरकार की ओर बदले की कार्रवाई बताया और कहा कि सरकार उसके पीछे पड़ गई है। उसने दावा किया कि उसके द्वारा सरकार के काम-काज में पारदर्शिता के लिए आवाज उठाई गई। लिहाजा, सरकार उसे प्रताड़ित कर रही है।
क्या है एमनेस्टी इंटरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है। यह विश्व भर में मानवधिकारों के लिए काम करता है। संगठन के घोषित उद्देश्यों में इसे मानवधिकारों पर अनुसंधान करने और उन लोगों के लिए न्याय की मांग करने वाला बताया गया है, जिनके अधिकारों का हनन किया जा रहा हो। भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल का पंजीकृत कार्यालय बंगलुरु में स्थित है।
विवादों से नाता
एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत में कई बार विवादों के घेरे में रहा है। जैसा कि गृह मंत्रालय के बयान में भी संगठन पर अवैध गतिविधियों में संलिप्त रहने की बात कही गई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल तब काफी चर्चाओं में रहा था, जब वर्ष 2019 में उसने अमरीका की विदेश मामलों की एक समिति के सामने दक्षिण एशिया ख़ास कर जम्मू-कश्मीर पर केंद्रित अपनी एक रिपोर्ट को रखा था। तब उस पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा था। कश्मीर में धारा-370 की समाप्ति के बाद संगठन ने वहां मानवधिकारों के हनन की बात कही। यही नहीं इस वर्ष फरवरी में CAA के विरोध में दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों को लेकर भी एमनेस्टी की रिपोर्ट विवादों में रही।
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी हुई कार्रवाई
विदेशी फंडिंग हासिल करने के मामले में इस संगठन के विरुद्ध केंद्र सरकार की कई एजेंसियां जांच कर रही हैं। वर्ष 2009 में डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी संगठन पर कार्रवाई हुई थी। तब भी उसने अपना कामकाज बंद कर दिया था। एमनेस्टी पर जब भी सरकार कोई कार्रवाई करती है तो वह सरकार पर आरोप लगाती है। उसका आरोप होता है कि सरकार मानवधिकारों की आवाज को कुचलना चाहती है।