अलग जो भीड़ से हट कर जगह अपनी बनाते हैं
सितारों की तरह से वो जहां में जगमगाते हैं।
सफ़र की मुश्किलों का दौर होता है बड़ा प्यारा
मगर क़ायर सदा आधे सफ़र से लौट जाते हैं।
अगर आ जाएं ऐसे लोग तो तहज़ीब से मिलना
हथेली पर कहाँ सब लोग ही सरसों उगाते हैं।
जिन्हें फूलों के जैसे रखते हैं हम हर मुसीबत में
हमारी राह में अक्सर वही काँटे बिछाते हैं।
न उठ जाए कहीं इस कशमकश में राज़ से पर्दा
कभी वो आज़माते हैं कभी हम आज़माते हैं।
- बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)