- डॉ लक्ष्मी भट्ट
गीत गजल दोहा चौपाई, मेरे बस की बात नहीं।
पल-पल तेरी याद रुबाई, मेरे बस की बात नहीं।।
सावन भीगूँ भादौ नाचूँ, तन मन में श्रृंगार भरूँ।
प्रेम मिलन हो सदा जुदाई, मेरे बस की बात नहीं।।
खुद मैं सबसे जुड़ी रही, सबको खुद से जोड़ा है।
ढाई आखर प्रेम लड़ाई, मेरे बस की बात नहीं।।
कस्तूरी संग जनम हुआ, खोज जगत में सदा रही।
पास हुई अब और पढ़ाई, मेरे बस की बात नहीं।।
सदा समर्पण भाव रहा, बहकावे में रही नहीं।
तू मेरा मैं रहूं पराई, मेरे बस की बात नहीं।।
( डॉ.लक्ष्मी भट्ट लेखिका व कवियत्री हैं। मंचों पर कविता प्रस्तुत करती हैं।)