राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि हमारे देश में सेक्युलर शब्द बहुत प्रचलित है। सेक्युलर शब्द विदेशी अवधारणा से उत्पन्न हुआ है। रोम के थियोक्रेटिक स्टेट (धर्मसत्ता) के कार्यकाल में उत्पन्न हुआ यह शब्द भारत में प्रासंगिक नहीं है।
गुजरात के कर्णावती में माधव स्मृति न्यास द्वारा धर्मचक्र प्रवर्तनाय विषय पर आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ वैद्य ने कहा कि सूरत के केटी शाह ने संविधान सभा में प्रस्ताव दिया था कि भारत को सेक्युलर सोशलिस्ट रिपब्लिक कहा जाए। लेकिन उस समय के विद्वानों ने शाह का यह प्रस्ताव नामंजूर किया था। तत्कालीन विद्वानों का मानना था कि भारतीय सभ्यता में इस शब्द की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारतीय समाज और सभ्यता सभी को स्वीकार करती है।
सेक्युलर शब्द की उत्पत्ति पर डॉ. वैद्य ने कहा कि कहा कि कबिलों में बंटा यूरोपियन समाज सबसे पहले तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ एक छत के नीचे आया। यरूशलम से चलने वाली पोप की सत्ता खिसक कर वेटिकन में चली गई। वहीं राजा के आश्रय के कारण बिशप का महत्त्व बढ़ गया था। छठी शताब्दी में रोमन साम्राज्य समाप्त होने के बाद समाज को जोड़े रखने के लिए सत्ता पोप के हाथों में आई। पोप द्वारा चलाए जाने वाले इस राज्य को थियोक्रेटिक स्टेट कहा जाता था। यह राज्य लगभग एक हजार वर्ष तक बरकरार रहा। तत्कालीन रोमन समाज के लोग भौतिक चीजों को धर्म सत्ता से दूर रखना चाहते थे। नतीजतन धर्म से जुड़ी व्यवस्था के लिए रिलीजन और अन्य चीजों के लिए सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा।
सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत में आपातकाल के दौरान 1976 में बिना चर्चा के भारतीय संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में बेवजह सेक्युलर शब्द जोड़ा गया। संविधान के जानकार कहते हैं कि, संविधान की प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं हो सकता, इसके बावजूद प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द अनावश्यक रूप से जोडा गया।
डॉ.वैद्य ने कहा कि सेक्युलर शब्द को भारत में जिस तरह से परिभाषित किया गया, वह अपने आप में विचित्र है। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए बताया कि, हिन्दू धर्म और आस्था की बात करना हमारे देश में सांप्रदायिक माना जाता है। अन्य धर्मों के लोगों द्वारा मजार पर चादर चढ़ाना सेक्युलर है। लेकिन मंदिर में घंटी बजाना सांप्रदायिकता कहलाता है। भारतीय सेक्युलरिज्म के तहत आप ओवैसी के साथ मंच साझा कर सकते हैं। लेकिन, योगी आदित्यनाथ के साथ मंच पर बैठे तो आप को सांप्रदायिक कहा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश में हज यात्रा के लिए सब्सिडी नहीं दी जाती। लेकिन सेक्युलर कहलाने वाले भारत में हज पर सब्सिडी मिलती है। प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक समुदाय का है। प्रधानमंत्री का यह वाक्य अपने-आप में सांप्रदायिक था। लेकिन सेक्युलर देश में किसी ने उस वाक्य पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई।
धर्म की परिभाषा पर डॉ. वैद्य ने कहा कि
धारणात धर्मं इत्याहू: तस्मात् धारयते प्रजाः।
यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।
अर्थात जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे धर्म कहते हैं। उपासना और अध्यात्म धर्म से जुड़ा होता है। नतीजतन कई लोग उपासना पद्धति को धर्म मान लेते हैं। लेकिन धर्म की परिभाषा इतनी सीमित नहीं है। हमारे देश की संसद में धर्मचक्र प्रवर्तनाय लिखा हुआ है। व्यक्ति से समाज को जोड़ने का नाम धर्म है। हमारे राष्ट्रध्वज में जो चक्र है, उसे लोग अशोक चक्र कहते हैं। वास्तव में यह धर्मचक्र है, जिसे सम्राट अशोक ने स्वीकारा था। समाज में दूसरों के प्रति योगदान देना, मैं से हम तक की यात्रा का नाम धर्म है। धर्म के इस विस्तारित अर्थ को ध्यान में रख कर हमें धर्मचक्र को गतिमान रखने में योगदान देना चाहिए।