- राकेश सैन
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमान विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में हुए आंदोलन और केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार अधिनियम को लेकर पंजाब सहित उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में हो रहे किसान आंदोलन के बीच की समानता को उर्दू शायर फैज के शब्दों में यूं बयां किया जा सकता है कि – ‘वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था, वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।’
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमानों का विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, इसमें न तो फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को समाप्त करने की बात कही गई है और न ही मंडी व्यवस्था खत्म करने की। परंतु इसके बावजूद आंदोलनकारी इस मुद्दे को जीवन मरण का प्रश्न बनाए हुए हैं। अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से ही पंजाब में चला आ रहा किसान आंदोलन बीच में मद्धम पड़ने के बाद किसानों के ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान के बाद फिर जोर पकड़ रहा है।
जैसी आशंका जताई जा रही थी वही हुआ, आंदोलन के चलते पिछले लगभग दो महीनों से परेशान लोगों की किसानों के अड़ियल रवैये से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। ज्यादातर जगहों पर किसानों को रोकने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं। लंबे जाम और किसानों के आक्रामक रुख को देखते हुए पुलिस ने ज्यादा सख्ती नहीं की और उन्हें आगे बढ़ने दिया। साफ सी बात है कि आने वाले दिनों में आम लोगों की परेशानी और बढ़ने वाली है, क्योंकि किसान पूरी तैयारी के साथ डटे हैं। उनकी संख्या भी हजारों में है। चाहे कुछ मार्गों पर रेल यातायात कुछ शुरू हुआ है, परंतु यह पूरी तरह बहाल नहीं हो पाया है। अब सड़क मार्ग भी बाधित होने के कारण समस्या और बढ़ गई है। इसके साथ ही सरकार और किसानों के बीच टकराव भी बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। किसानों को अलग-अलग राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है। चूंकि पंजाब में लगभग एक साल बाद विधानसभा चुनावों का बिगुल बज जाना है, इसलिए कोई भी इस आंदोलन का लाभ लेने से पीछे हटने के लिए तैयार दिखाई नहीं दे रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर जो विरोध हो रहा है, वह साधारण लोगों के लिए तो क्या कृषि विशेषज्ञों व प्रगतिशील किसानों के लिए भी समझ से बाहर की बात है। कुछ राजनीतिक दल व विघ्नसंतोषी शक्तियां अपने निजी स्वार्थों के लिए किसानों को भड़का कर न केवल अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, बल्कि वे खुद नहीं जानते कि ऐसा करके वह किसानों का कितना बड़ा नुक्सान करने जा रहे हैं। कितना हास्यास्पद है कि पंजाब के राजनीतिक दल उन्हीं कानूनों का विरोध कर रहे हैं जो राज्य में पहले से ही मौजूद हैं और उनकी ही सरकारों के समय में इन कानूनों को लागू किया गया था। इन कानूनों को लागू करते समय इन दलों ने इन्हें किसान हितैषी बताया था और आज वे किसानों के नाम पर ही इसका विरोध कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के इसी आक्रोश का राजनीतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से पंजाब विधानसभा में केंद्र के कृषि कानूनों को निरस्त भी कर चुके हैं और अपनी ओर से नए कानून भी पारित करवा चुके हैं। परंतु उनका यह दांवपेच असफल हो गया क्योंकि प्रदर्शनकारी किसानों ने पंजाब सरकार के कृषि कानूनों को भी अस्वीकार कर दिया है।
संघर्ष के पीछे की राजनीति समझने के लिए हमें वर्ष 2006 में जाना होगा। उस समय पंजाब में कांग्रेस सरकार ने कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट एमेंडमेंट एक्ट) के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी। कानून में निजी यार्डों को भी अनुमति मिली थी। किसानों को भी छूट दी गई कि वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है। साल 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसी प्रकार के कानून बनाने का वायदा किया था, जिसका वह आज विरोध कर रही है। अब चलते हैं साल 2013 में, जब राज्य में अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ की स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार सत्तारूढ़ थी। बादल सरकार ने इस दौरान अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग) की अनुमति देते हुए कानून बनाया। कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री स. सरदारा सिंह जौहल अब पूछते हैं कि अब जब केंद्र ने इन दोनों कानूनों को मिला कर नया कानून बनाया है तो कांग्रेस व अकाली दल इसका विरोध किस आधार पर कर रहे हैं।
पंजाब में चल रहे कथित किसान आंदोलन का संचालन ढाई दर्जन से अधिक किसान यूनियनें कर रही हैं। कहने को तो भारतीय किसान यूनियन किसानों का संगठन है, परंतु इनकी वामपंथी सोच जगजाहिर है। दिल्ली में चले शाहीन बाग आंदोलन में किसान यूनियन के लोग हिस्सा ले चुके हैं। किसान आंदोलन को भड़काने के लिए गीतकारों से जो गीत गवाए जा रहे हैं, उनकी भाषा विशुद्ध रूप से विषाक्त नक्सलवादी चाशनी से लिपटी हुई है। ऊपर से रही सही कसर खालिस्तानियों व कट्टरवादियों ने पूरी कर दी। प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में कई स्थानों पर खालिस्तान को लेकर भी नारेबाजी हो चुकी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक नहीं, बल्कि भारी संख्या में पेज ऐसे चल रहे हैं जो इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ कर देख रहे हैं और युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं।
सच्चाई तो यह है कि केंद्र के नए कृषि अधिनियम अंतत: किसानों के लिए लाभकारी साबित होने वाले हैं। इनके अंतर्गत ऑनलाइन मार्केट भी लाई गई है, जिसमें किसान अपनी फसल को इसके माध्यम से कहीं भी अपनी इच्छा से बेच सकेगा। इस कानून में राज्य सरकारों को भी अनुमति दी गई है कि वह सोसायटी बना कर माल की खरीददारी कर सकती हैं और आगे बेच भी सकती हैं। नए कानून के अनुसार, किसानों व खरीददारों में कोई झगड़ा होता है तो उपमंडल अधिकारी को एक निश्चित अवधि में इसका निपटारा करवाना होगा। इससे किसान अदालतों के चक्कर काटने से बचेगा। हैरत की बात यह है कि किसानों को नए कानून के लाभ के बारे में कोई भी नहीं जानकारी दे रहा। एक और हैरान करने वाला तथ्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में पंजाब में धान की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर की है। परंतु इसके बावजूद MSP को लेकर प्रदर्शनकारियों में धुंधलका छंटने का नाम नहीं ले रहा और उन बातों को लेकर विरोध हो रहा है, जिनका जिक्र तक नए कृषि कानूनों में नहीं है। (विश्व संवाद केंद्र)
बिहार (Bihar) विधान सभा चुनावों के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में हुए उप चुनावों में कांग्रेस (Congress) की करारी हार को शायद पार्टी नेता पचा नहीं पा रहे हैं। चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) ने बुधवार को जमकर अपनी भड़ास निकाली। सिलसिलेवार एक के बाद एक करीब दर्जन भर ट्वीट कर दिग्गी राजा ने नेहरु-गांधी परिवार के प्रति अपनी स्वामी भक्ति प्रदर्शित करते हुए राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को देश का एकमात्र ऐसा नेता करार दिया है, जो विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के विरुद्ध भी आग उगली। यही नहीं उन्होंने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को बेतुका सुझाव दिया है कि वो भाजपा का साथ छोड़ कर देश की राजनीति में सक्रिय हो जाएं और बिहार में तेजस्वी यादव को अपना आशीर्वाद दें। अपने ट्वीट के बाद दिग्गी राजा यूजर्स के निशाने पर आ गए और जम कर ट्रोल हो रहे हैं।
अक्सर अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले दिग्गी राजा ने जिस अंदाज में ट्वीट किए हैं, उससे यह साफ़ लग रहा है कि वे बिहार विधान सभा चुनावों और मध्य प्रदेश उप चुनावों में कांग्रेस की करारी हार से सदमे में हैं। दिग्विजय जितने दुःखी कांग्रेस की हार से हैं, उससे अधिक भाजपा की जीत से लग रहे हैं। भाजपा की जीत के बहाने वो संघ पर निशाना साधने का मौका नहीं चूके और संघ को देश बांटने वाला बता दिया। दिग्विजय ने ट्वीट में कहा कि – ”मैं संघ की विचारधारा का घोर विरोधी हूँ क्योंकि वह भारत की सनातनी परंपराओं व सनातन धर्म की मूल भावना के विपरीत है। यह देश सबका है।” हालांकि, इस ट्वीट में उन्होंने संघ की इस बात के लिए सराहना भी की है कि ”वे अपने लक्ष्य और अपनी विचारधारा के साथ समझौता नहीं करते।” साथ ही उन्होंने कहा की संघ केवल समाज को बांट कर राजनीति करता है।
दिग्विजय सिंह ने नेहरु-गांधी खानदान के प्रति पूरी निष्ठा जताई है और कहा कि – ”मुझे विश्वास है नेहरु-गांधी परिवार के नेतृत्व में हम जनता का विश्वास फिर जीतेंगे। भाजपा ‘जन बल’ को दबाने के लिए ‘धन बल’ का भरपूर उपयोग करेगी। लेकिन देश में भाजपा के नेतृत्व में गिरती अर्थव्यवस्था बड़ती बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ गरीब मज़दूर किसान व वंचित वर्गों के साथ खड़ा होना पड़ेगा।” दिग्विजय ने राहुल गांधी को देश का ”एकमात्र” ऐसा नेता बताया है, जो विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने NDA के सहयोगी दलों को नसीहत देते हुए कहा है कि उन्हें समझना चाहिए राजनीति विचारधारा की होती है। जो भी व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा के कारण विचारधारा को छोड़कर अपने स्वार्थ के लिए समझौता करता है, वह अधिक समय तक राजनीति में जिंदा नहीं रहता। इस क्रम में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि वे भाजपा का साथ छोड़ कर तेजस्वी यादव को अपना आशीर्वाद दें और नीतीश बिहार छोड़ कर देश की राजनीति में सक्रिय हों।
नीतीश कुमार को यह सलाह देते समय दिग्विजय सिंह उन्हें याद दिला रहे हैं कि – ”यही महात्मा गांधी जी व जयप्रकाश नारायण जी के प्रति सही श्रद्धांजलि होगी। आप उन्हीं की विरासत से निकले राजनेता हैं वहीं आ जाइए। आपको याद दिलाना चाहूंगा जनता पार्टी संघ की Dual Membership के आधार पर ही टूटी थी। भाजपा/संघ को छोड़िए। देश को बर्बादी से बचाइए।” नीतीश कुमार को यह ”याद” दिलाते समय दिग्विजय सिंह को शायद यह याद नहीं रहा कि जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार व तानाशाही पूर्ण रवैये के खिलाफ ही आंदोलन छेड़ा था। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। दिग्विजय सिंह के इस विवेकहीन तर्क पर किसी के भी पास हंसने के अलावा कोई अन्य विकल्प शायद ही होगा।
मध्य प्रदेश विधान सभा उप चुनावों के परिणामों का विश्लेषण करते हुए दिग्गी राजा गजब के तर्क देते हैं। मंगलवार को आए परिणामों में प्रदेश की 28 सीटों में से 19 भाजपा की झोली में गई और कांग्रेस को 9 पर ही संतुष्ट होना पड़ा था। इस पर दिग्विजय सिंह कहते हैं कि लोग समझते थे की ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस समाप्त हो जाएगी। पर नई कांग्रेस खड़ी हो गई। दिग्गी राजा के अर्थों में कहें तो मध्य प्रदेश में 28 में से 9 सीटें मिलने से नई कांग्रेस खड़ी हो गई। यानी दिग्विजय सिंह को इतनी सीटें भी मिलने की उम्मीद नहीं थी। इस ट्वीट से यह भी लग रहा है कि दिग्विजय को कांग्रेस की विजय-पराजय से अधिक मतलब सिंधिया को सबक सीखाने पर था। यहां यह भी बता दें की मध्य प्रदेश की ये 28 सीटें कांग्रेस के पास ही थीं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने पर इन सभी विधायकों ने त्याग-पत्र दे दिए थे। जिन पर उप चुनाव हुए थे। बहरहाल, इन ट्वीट के कारण दिग्विजय ट्रोल हो रहे हैं।
पंजाब में विजयादशमी पर कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किए जाने पर भाजपा खासे गुस्से में है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने सोमवार को सिलसिलेवार एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए कांग्रेस व राहुल गांधी पर ताबड़तोड़ वार किए। उन्होंने कहा बेटा घृणा, क्रोध, झूठ और आक्रामकता की राजनीति का जीवंत प्रदर्शन करता है, तो वहीं माता दिखावे की शालीनता का प्रदर्शन और लोकतंत्र पर खोखली बयानबाजी कर इसका पूरक बनती है।
नड्डा ने कहा कि पंजाब में जो कुछ भी हो रहा है वह राहुल गांधी के इशारों पर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का पुतला जलाने का शर्मनाक ड्रामा राहुल गांधी के द्वारा निर्देशित है, लेकिन यह अनपेक्षित नहीं है। कांग्रेस से यही उम्मीद की जा सकती है। नेहरु-गांधी खानदान ने कभी भी प्रधानमंत्री पद और प्रधानमंत्री के कार्यालय की गरिमा का सम्मान नहीं किया है। 2004-2014 के बीच भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब कांग्रेस की यूपीए सरकार के शासनकाल में प्रधानमंत्री पद को संस्थागत तरीके से कमजोर किया गया था।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि निराशा और बेशर्मी का गठजोड़ काफी खतरनाक होता है। कांग्रेस के पास ये दोनों ही है। जहां पार्टी में बेटा घृणा, क्रोध, झूठ और आक्रामकता की राजनीति का जीवंत प्रदर्शन करता है, तो वहीं माता दिखावे की शालीनता का प्रदर्शन और लोकतंत्र पर खोखली बयानबाजी कर इसका पूरक बनती है। यह पार्टी के दोयम दर्जे और दोहरे रवैये को दिखाता है।
उन्होंने आगे कहा, यदि देश में कोई एक पार्टी है जिसका आचरण घृणा और नफरत का है तो वह केवल और केवल कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस शासित राजस्थान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, दलितों, पिछड़ों, शोषितों और वंचितों पर अत्याचार सबसे चरम पर है। राजस्थान के साथ-साथ पंजाब में भी महिलाएं असुरक्षित हैं। पंजाब में मंत्री छात्रवृत्ति घोटाले कर रहे हैं।
नड्डा ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर कांग्रेस कभी भी दूसरों पर दबाव नहीं बना सकती। कांग्रेस का आवाज दबाने का दशकों से इतिहास रहा है। इसे हमने आपातकाल के दौरान भी देखा। इसके बाद राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने भी प्रेस की आजादी को कमजोर करने का प्रयास किया। स्वतंत्र मीडिया सदैव ही कांग्रेस को चुभती है। अगर कोई क्रूर राज्य शक्ति के इस्तेमाल की प्रयोगशाला को देखना चाहता है, तो वह कांग्रेस के आशीर्वाद से चलने वाली महाराष्ट्र सरकार को देखे, जहां विपक्ष को परेशान किया जा रहा और बोलने की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है। राज्य चलाना छोड़कर महाराष्ट्र सरकार सब कुछ कर रही है।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि गरीबी में जन्म लेने के बाद देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले महान शख्सियत के प्रति एक खानदान और वंश की गहरी नफरत जितना ऐतिहासिक है, उतना ही ऐतिहासिक है भारत के लोगों का प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपार प्यार, समर्थन और आशीर्वाद। जितना ही कांग्रेस झूठ बोलेगी और जितनी ही इनकी नफरत बढ़ेगी, उतना ही और अधिक लोग प्रधानमंत्री मोदी को चाहेंगे और उनका समर्थन करेंगे।
कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) द्वारा प्रदेश की महिला व बाल विकास मंत्री और भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी (Imarti Devi) को ‘आइटम’ कहने के मामले ने तूल पकड़ दिया है। भाजपा के साथ-साथ बसपा नेत्री मायावती भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हो गई है। भाजपा ने जहां सोमवार को बयान के विरोध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भोपाल में मौन व्रत रखा, वहीं मायावती ने ट्वीट कर दलित महिला पर की गई टिप्पणी को लेकर कांग्रेस हाई कमान से सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने को कहा। इधर, इमरती देवी ने कमलनाथ को पागल कहा है।
ये है मामला
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की 28 विधान सभा सीटों के लिए 3 नवम्बर को उप चुनाव होने जा रहे हैं। इस क्रम में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रविवार को डबरा विधानसभा क्षेत्र में आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। अपने सम्बोधन के दौरान कमलनाथ ने इस सीट से भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी पर अभद्र टिप्पणी कर दी और उन्हें ‘आइटम’ कहा।
ये क्या आइटम है ? ये क्या आइटम है ?
कमलनाथ ने कहा – सुरेश राजे जी हमारे उम्मीदवार हैं। सरल-स्वाभाव सीधे-साधे हैं। ये तो करेंगे ही। ये उसके जैसे नहीं हैं। भीड़ की तरफ सवाल उछालते हुए कमलनाथ पूछते हैं। क्या है उसका नाम ? भीड़ से आवाज आती है इमरती देवी। फिर कमलनाथ बोलते हैं – मैं क्या उसका नाम लूं ? आप तो उसको मेरे से ज्यादा पहचानते हैं। आपको तो मुझे पहले ही सावधान कर देना चाहिए था। फिर कमलनाथ ठहाके मारते हुए कहते हैं – ये क्या आइटम है ? ये क्या आइटम है ? और फिर कमल नाथ जोर से अट्टहास करते हैं। भीड़ भी उनके साथ ठहाके लगाने व शोर मचाने लगती है।
मुख्यमंत्री शिवराज ने व्यक्त की कड़ी प्रतिक्रिया
कमलनाथ की टिप्पणी सामने आते ही भाजपा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा – आज कमलनाथ जी, आज आपने अपने ओछे बयान के द्वारा कांग्रेस की विकृत और घृणित मानसिकता का फिर परिचय दिया। आपने श्रीमती इमारती देवी ही नहीं, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की एक-एक बेटी और बहन का अपमान किया है! कमलनाथ जी, आपको किसी भी महिला के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसने दिया?
भाजपा ने रखा मौन व्रत
मुख्यमंत्री शिवराज समेत मध्य प्रदेश के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने कमलनाथ के बयान के विरोध में सोमवार को अलग-अलग स्थानों पर मौन व्रत रखा। शिवराज ने ट्ववीट कर कहा – मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कल एक महिला के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, उससे मैं आहत हूँ, शर्मिंदा हूँ। आज बापू के चरणों में उनके लिए प्रायश्चित करने हेतु बैठा हूँ। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया इंदौर में मौन उपवास पर बैठे।
मायावती ने कहा कांग्रेस आलाकमान मांगे माफ़ी
बसपा नेत्री सोमवार को ट्वीट कर कहा – मध्यप्रदेश में ग्वालियर की डाबरा रिजर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव लड़ रही दलित महिला के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व सीएम द्वारा की गई घोर महिला-विरोधी अभद्र टिप्पणी अति-शर्मनाक व अति-निन्दनीय। इसका संज्ञान लेकर कांग्रेस आलाकमान को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी चाहिए।
मायावती ने कांग्रेस को सबक सीखाने को कहा
अपने दूर ट्वीट में मायावती ने कहा – साथ ही, कांग्रेस पार्टी को इसका सबक सिखाने व आगे महिला अपमान करने से रोकने आदि के लिए भी खासकर दलित समाज के लोगों से अपील है कि वे एम.पी. में विधानसभा की सभी 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अपना वोट एकतरफा तौर पर केवल बी.एस.पी. उम्मीदवारों को ही दें तो यह बेहतर होगा।
इमरती देवी ने भी कमलनाथ को उसी अंदाज में दिया जवाब
बयान से मचे बवाल के बीच इमरती देवी ने भी उसी अंदाज में कमलनाथ को जवाब दिया है। कमलनाथ की ही तर्ज पर इमरती ने कहा है कि वह क्या जाने महिलाओं की इज्जत कैसे की जाती है। इमरती ने कमलनाथ से सवाल भी किया कि वह आइटम का मतलब बता दें। साथ में यह भी कहा कि उसकी मां-बहन बंगाल की आइटम होंगी। मंत्री ने कहा कि कमलनाथ मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पागल हो गया है। वह अभिनेत्रियों के कमर में हाथ डालकर फोटो खिंचाता है।
कौन है इमरती देवी
इमरती देवी अनुसूचित जाति से सम्बन्ध रखती हैं। वर्ष 2018 में वे कमलनाथ सरकार में महिला व बाल विकास मंत्री बनी थीं। वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक मानी जाती हैं। इस वर्ष मार्च में वह कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में सम्मिलित हो गई थीं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ने पर विधानसभा की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया था। जुलाई में शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार होने पर इमरती देवी को फिर से महिला व बाल विकास मंत्री बनाया गया। इमरती देवी द्वारा त्यागपत्र देने के बाद रिक्त हुई सीट पर अब उप चुनाव हो रहे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वाड्रा मोदी सरकार को घेरने के चक्कर में हर बार नौसिखिया साबित हो रहे हैं और हंसी का पात्र बन जा रहे हैं। ठोस तथ्यों के अभाव और होम वर्क किये बगैर मोदी सरकार पर हमला करना अक्सर उनको भारी पड़ जाता है। सर्वाधिक चर्चित उदाहरण राफेल विमान सौदों का है। राफेल विमानों की खरीददारी को लेकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाने में जमीन-आसमान एक कर दिया था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल सोते-जागते राफेल में घोटाले का आरोप लगाते रहे। मगर उनके सारे आरोप फुस्स साबित हुए। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ही बुरी तरह से हार का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि खुद राहुल गांधी अपने परिवार की परम्परागत सीट अमेठी से चुनाव हार गए। सुप्रीम कोर्ट तक से राफेल मामले का निर्णय कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहा। वर्तमान में कृषि विधेयकों के विरोध ने कांग्रेस, राहुल व प्रियंका की किरकिरी करा दी है।
क्या हैं ये अध्यादेश
कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश किये गए कृषि सम्बन्धी तीन विधेयकों का जोरदार विरोध कर रही है। मोदी कैबिनेट ने इस वर्ष जून में ‘कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020’, ‘किसानों (सशक्तिकरण और सरंक्षण) का मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं अध्यादेश, 2020’ तथा ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश,2020’ पारित किये थे। सरकार संसद के वर्तमान सत्र में इन अध्यादेशों को कानूनी रूप देने के लिए जुटी हुई है।
अब तक किसानों पर हैं ये प्रतिबन्ध
इन अध्यादेशों के कानून बन जाने के बाद किसानों को कई तरह की सहूलियतें मिलेंगीं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी तक किसान अपने उत्पादों को केवल सरकार द्वारा निर्धारित मंडियों में लाइसेंसधारी व्यापारियों को ही बेच सकते हैं। सरकार द्वारा निर्धारित मंडियों के अलावा कहीं और अपने उत्पादों को बेचना किसानों के लिए प्रतिबंधित है। इस कारण किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पता है। किसानों के बजाय बिचौलिये और दलाल ज्यादा फायदा उठाते हैं।
किसानों को ये मिलेंगी सहूलियत
केंद्र सरकार के इन अध्यादेशों के लागू होने के बाद किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए एक मुक्त बाजार मिलेगा। वो अपनी सहूलियत और मर्जी से कही भी अपने उत्पाद बेच सकेंगे। बाजार में प्रतिस्पर्धा होने के कारण किसानों को उपज का उचित मूल्य मिलेगा। अध्यादेशों में ऐसे ही तमाम अन्य प्राविधान हैं, जो किसानों की खुशहाली बढ़ाने में कारगर साबित होंगे और किसानों को उनकी मेहनत के अनुरूप उन्हें उनका हक मिलेगा।
राहुल, प्रियंका समेत पूरी कांग्रेस विरोध में
कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस इन अध्यादेशों को पूरी तरह से किसान विरोधी बता रही है और उसके छोटे से लेकर बड़ा नेता बयानबाजी करने में लगा हुआ है। कांग्रेस के इस अभियान में भाई राहुल के बाद शनिवार को बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी शामिल हो गईं। प्रियंका ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया और मोदी सरकार को किसान विरोधी बताया।
कांग्रेस ऐसे फंसी अपने जाल में
मोदी सरकार का विरोध करने से पहले राहुल, प्रियंका और कांग्रेस नेताओं ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जारी घोषणा पत्र पर ध्यान देने की जरुरत भी नहीं समझी। मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों में जो प्राविधान किये हैं, उन्हें कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था। कांग्रेस के इस विरोध को बेपर्दा करने में पार्टी से निलंबित राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा ने जरा भी देर नहीं लगाई। झा ने ट्वीट कर कहा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में खुद इन प्राविधानों की हिमायत की थी।
सोशल मीडिया पर हो रही छीछालेदर
संजय झा के बयान के साथ कांग्रेस के लोकसभा घोषणा पत्र का वह पेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें पार्टी ने ये प्राविधान करने की बात कही थी। इसके साथ ही पार्टी के यूट्यूब चैनल पर मौजूद एक वीडियो भी जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है। यह वीडियो वर्ष 2013 का है। इसमें राहुल गांधी कांग्रेस शासित 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस में बैठे हुए हैं। कांफ्रेंस को राहुल के साथ कांग्रेस नेता अजय माकन सम्बोधित कर रहे हैं। माकन कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक का हवाला देते हुए राहुल गांधी के सामने इन प्राविधानों को लागू किये जाने की जरुरत पर जोर देते हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस, राहुल व प्रियंका की इस मामले को लेकर जमकर छीछालेदर हो रही है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित पार्टी के मुखपत्र ‘कमल सन्देश’ के विशेषांक ‘नए भारत के प्रणेता’ का विमोचन किया। इस मौके पर नड्डा ने आरोप लगाया कि कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे लोग बिचौलियों की भाषा बोल रहे हैं।
भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की हर योजनाओं में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति स्पष्टतः दिखाई देती है। चाहे वह हर गाँव, हर घर में बिजली पहुंचाने की योजना हो, आयुष्मान भारत योजना हो, स्टार्ट-अप व स्टैंड-अप योजना हो, कृषि सम्मान निधि हो, जन-धन योजना हो या फिर उज्ज्वला योजना।
उन्होंने कहा कि गुरुवार को कृषि से जुड़े दो महत्वपूर्ण विधेयक कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 लोक सभा में पारित हुए हैं। एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में अमेंडमेंट वाला विधेयक दो दिन पहले ही पारित हुआ है। कृषि से जुड़े ये तीनों विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे। इन विधेयकों के लागू होने के बाद किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और किसान सशक्त होंगे।
नड्डा ने जोर देते हुए कहा कि नए कृषि विधेयक में एमएसपी अर्थात न्यूनत समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद अर्थात एपीएमसी की व्यवस्था बनी रहेगी। विधेयक किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं। इसके तहत एक परिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का प्रावधान किया गया है, जिसमें किसान कानूनी बंधनों से आजाद होंगे। किसानों के पास मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की विवशता नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। किसानों को उपज बेचने का विकल्प देकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। इस विधेयक के अनुसार जरूरी नहीं कि किसान राज्य की सीमाओं में रहकर ही फसलों की बिक्री करें। साथ ही बिक्री लाभदायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का भी लाभ ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जानबूझ कर किसानों को गुमराह कर रहे हैं ताकि किसान लाभ न उठा सकें।
नड्डा ने कांग्रेस पर कड़ा प्रहार किया और कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में यह वादा किया था कि किसानों को एपीएमसी से बाहर निकाल कर लायेंगे और एसेंशियल कमोडिटी एक्ट को बदलेंगे। उन्होंने कहा कि जो लोग इन कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे हैं, वे वास्तव में किसान और उनके उत्पाद की बिक्री के बीच में मौजूद बिचौलियों की भाषा बोल रहे हैं।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पहले भी कहा है कि हमें दबाव की राजनीति में नहीं आना है और हमारी सरकार वह काम करती रहेगी जो देश के गाँव, गरीब और किसान के लिए जरूरी हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश में हर क्षेत्र में आज बदली हुई तस्वीर दिख रही है। उन्होंने याद दिलाया कि आयुष्मान भारत योजना को लागू करते समय भी इस योजना का जम कर विरोध किया गया था लेकिन आज वही आयुष्मान भारत योजना देश के गरीबों के लिए सबसे बड़ी वरदान साबित हो रही है।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित विशेषांक के प्रकाशन के लिए लिए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी न्यास समिति एवं कमल संदेश की पूरी टीम को बधाई दी और इसे एक सराहनीय प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रधानमंत्री मोदी के जन्म दिवस (17 सितंबर) के अवसर पर 14 से 20 सितंबर तक ‘सेवा सप्ताह’ मना रही है। पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ता देश भर में सेवा कार्य में लगे हुए हैं। सेवा सप्ताह के दौरान पार्टी कार्यकर्ता ब्लड डोनेशन, प्लाज्मा डोनेशन, दिव्यांगों को जरूरी उपकरणों का वितरण, वृक्षारोपण, गरीब बस्तियों में स्वच्छता कार्यक्रम, बच्चों में फलों और पुस्तकों का वितरण और अस्पतालों में फलों का वितरण जैसे सेवा कार्य कर रहे हैं।
कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह, राष्ट्रीय महामंत्री अनिल जैन, ‘कमल संदेश’ के संपादक डॉ शिवशक्ति, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी न्यास के सचिव नंद किशोर गर्ग, न्यास के कोषाध्यक्ष गोपाल कृष्ण अग्रवाल और राष्ट्रीय मीडिया सह-प्रमुख डॉ संजय मयूख भी उपस्थित थे।