- प्रह्लाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
भारत के नियंत्रक और लेखा महानिरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बाल्टी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पायी हैं। आजादी के 70 वर्षों के पश्चात, देश की आबादी के एक बड़े भाग के घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। साथ ही, वाटर एड नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत वर्ष में ही है, जो वर्ष भर के किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नजर आती है।
आइए निम्न लिखित कुछ अन्य आंकड़ों पर भी जरा एक नजर डालें, जो देश में जल की कमी के बारे में कैसी भयावह स्थिति दर्शाते हैं –
- पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएं, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।
- पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियां सूख गई हैं।
- देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।
- नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने की कगार पर है।
- पिछले वर्ष, देश के कुल 91 जलाशयों में से 62 जलाशयों में 80 प्रतिशत अथवा इससे कम पानी बच गया था। किसी भी जलाशय में यदि लम्बी अवधि औसत के 90 प्रतिशत से कम पानी रह जाता है तो इस जलाशय को पानी की कमी वाले जलाशय में शामिल कर लिया जाता है, एवं यहां से पानी की निकासी कम कर दी जाती है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा। देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है और बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है। बाकी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है की आज देश के कई भागों में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक जमीन खोदने के बाद भी जमीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है। इसी कारण से भारत के भूजल स्तर में तेज़ी से कमी आ रही है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में देश में पानी की कमी की उपरोक्त वर्णित भयावह स्थिति को देखते हुए तथा इस स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है और इसके लिए एक नए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है। साथ ही, भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से की जा चुकी है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है।
जल शक्ति अभियान की शुरुआत दो चरणों में की गई है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है। पहले चरण में बरसात के पानी का संग्रहण करने हेतु प्रयास किए गए थे। इस हेतु देश के उन 256 जिलों पर फ़ोकस किया गया था, जहां स्थिति अत्यंत गंभीर एवं भयावह थी। इन जिलों में स्थानीय स्तर पर आवश्यकता अनुरूप कई कार्यक्रमों को लागू कर भूजल स्तर में वृद्धि करने हेतु प्रयास किया जा रहा है। पानी के संचय हेतु विभिन्न संरचनाएं यथा तालाब, चेकडेम, रोबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, पेरकोलेशन टैंक जमीन के ऊपर या नीचे बड़ी मात्रा में बनाए जा रहे हैं।
देश में प्रति वर्ष पानी के कुल उपयोग का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि की सिंचाई के लिए खर्च होता है, 9 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में तथा शेष 2 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा खर्च किया जाता है। देश में हर घर में खर्च होने वाले पानी का 75 प्रतिशत हिस्सा बाथरूम में खर्च होता है। इस लिहाज से देश के ग्रामीण इलाक़ों में पानी के संचय की आज आवश्यकता अधिक है। क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों में हमारी माताएं एवं बहनें तो कई इलाक़ों में 2-3 किलोमीटर पैदल चल कर केवल एक घड़ा भर पानी लाती देखी जाती हैं। अतः खेत में उपयोग होने हेतु पानी का संचय खेत में ही किया जाना चाहिए एवं गांव में उपयोग होने हेतु पानी का संचय गांव में ही किया जाना चाहिए।
जल के संचय एवं जल के नियंत्रित उपयोग के लिए उपाय किए जाने जरुरी हैं। देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना, सबसे महत्वपूर्ण सुझाव हो सकता है। क्योंकि, यह 85 प्रतिशत भूजल का उपयोग करता है। ड्रिप एवं स्प्रिंक्लर तकनीक को प्रभावी ढंग से लागू करके प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है। सरकार द्वारा किसानों के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित एवं ड्रिप तथा स्प्रिंक्लर जैसे कुशल पानी के उपयोग वाले उत्पादों और सेंसर-टैप एक्सेसरीज़, आटोमेटिक मोटर कंट्रोलर आदि उत्पादों पर सब्सिडी देकर इस तरह के उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
ऐसी फ़सलें, जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ने एवं अंगूर की खेती, आदि फ़सलों को पानी की कमी वाले इलाक़ों में धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। अथवा, इस प्रकार की फ़सलों को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहां हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है।
भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगायी जानी चाहिए ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। विभिन्न स्तरों पर पाइप लाइन में रिसाव से बहुत सारे पानी का अपव्यय हो जाता है, इस तरह के रिसाव को रोकने हेतु भी सरकार को गम्भीर प्रयास करने चाहिए। देश में लोगों को पानी का मूल्य नहीं पता है, वे समझते हैं जैसे पानी आसानी से उपलब्ध है। लोगों में पानी के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से सरकार को 24 घंटे 7 दिन की पानी की आपूर्ति के बजाय, एक निश्चित किए गए समय पर, रिसाव-प्रूफ़ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम घर में कई छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत करें। एक अनुमान के अनुसार, छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर प्रति परिवार प्रतिदिन 300 लीटर से अधिक पानी की बचत की जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता पर ध्यान दिया जाय। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।
केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा तो पानी की कमी से जूझने हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, इस कार्य हेतु जन भागीदारी की आज अधिक आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि सामाजिक संस्थाएं भी आगे आएं एवं जल संग्रहण एवं जल प्रबंधन हेतु समाज में लोगों को जागरूक करना प्रारम्भ करें। शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में इस सम्बंध में अलख जगाने की आज महती आवश्यकता है। तभी हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी आवश्यकता पूर्ति हेतु जल छोड़कर जा पाएंगे अन्यथा तो हमारे स्वयं के जीवन में ही जल की उपलब्धता शून्य की स्थिति पर पहुंच जाने वाली है।
डिस्क्लेमर : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। हिम दूत का इन विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है।