- प्रहलाद सबनानी
बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी और आर्थिक मामलों के जानकार
देश में कोरोना महामारी के दूसरे चरण के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत बने रहने के संकेत मिले हैं। विगत अप्रैल माह के दौरान देश में जीएसटी संग्रहण, पिछले सारे रिकॉर्ड को पार करते हुए, एक नए स्तर पर पहुंच गया। अप्रैल में 141,384 करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रहण हुआ है। यह इसी मार्च माह में संग्रहित की गई राशि से 14 प्रतिशत अधिक है। पिछले 7 माह से लगातार जीएसटी संग्रहण न केवल एक लाख रुपए की राशि से अधिक बना हुआ है बल्कि इसमें लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।
इसी प्रकार, वित्त वर्ष 2020-21 में सकल व्यक्तिगत आयकर (रिफंड सहित) में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। आयकर संग्रह में वृद्धि तब हुई है, जब केलेंडर वर्ष 2020 में अधिकतर समय पूरे देश में तालाबंदी लगी हुई थी। वित्त वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड रिफंड जारी किए गए। इसके बावजूद शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहण 9.5 लाख करोड़ रुपये का रहा है। पिछले चार सालों में पहली बार कुल प्रत्यक्ष कर संग्रहण संशोधित अनुमान से ज्यादा रहा है। हालांकि, निगमित कर संग्रह 6.4 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के कर संग्रहण 6.7 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही कम है।
2.34 करोड़ व्यक्तिगत करदाताओं को करीब 87,749 करोड़ रुपये का आयकर रिफंड किया गया, जबकि निगमित कर के मामलों में 1.74 लाख करोड़ रुपये के रिफंड किए गए। उल्लेखनीय है कि 94 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में करदाताओं का स्पष्टीकरण मान लिया गया है और अतिरिक्त कर या जुर्माना नहीं लगाया गया। सिर्फ 1600 मामलों में यह माना गया है कि आय कम करके दिखाई गई है। उक्त कारणों के चलते वर्ष 2020-21 में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में कुछ कमी इसलिए भी आई है, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर महामारी का नकारात्मक प्रभाव देखकर सरकार द्वारा रिफंड के मामलों का एक निश्चित समय-सीमा के अंदर निपटारा किया गया है।
सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह 12.1 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल के 12.33 लाख करोड़ रुपये के करीब है। माना जा रहा है कि अग्रिम कर में उल्लेखनीय वृद्धि से व्यक्तिगत आयकर संग्रह में वृद्धि हुई है। सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रहण वित्तीय वर्ष 2019-20 के 5.55 लाख करोड़ रुपये की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020-21 में करीब 5.7 लाख करोड़ रुपये रहा है। बावजूद इसके कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में प्रत्यक्ष कर रिफंड पिछले साल की तुलना में 43.3 प्रतिशत अधिक है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 2.38 करोड़ से ज्यादा करदाताओं को 2.62 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए हैं। पिछले साल 1.83 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए गए थे।
जीएसटी एवं प्रत्यक्ष कर संग्रहण के इत्तर अगर हाल ही के समय में उद्योग क्षेत्र में दर्ज की गई वृद्धि दर की बात की जाय तो मार्च 2021 में 8 कोर क्षेत्र के उद्योगों द्वारा 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सीमेंट उत्पादन में तो रिकार्ड 32.5 की वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। यह वृद्धि दर इन उद्योगों द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में भी हुई वृद्धि दर से मिलान दिखाती नजर आ रही है। मार्च 2021 माह में मध्यम उद्योगों द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में 28.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि मार्च 2020 के दौरान इन उद्योगों के ऋण की राशि में 0.7 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर रही थी।
विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भी अच्छी खबर आई है। भारत द्वारा विदेशों को किए जाने वाले निर्यात की राशि में भी बहुत अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है। जनवरी-मार्च 2021 तिमाही के दौरान भारत के निर्यात में 20 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात करने वाले सबसे बड़े देशों के बीच यह वृद्धि दर चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। विश्व व्यापार संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, केलेंडर वर्ष 2021 के दौरान, वैश्विक स्तर पर भी विदेशी व्यापार में 8 प्रतिशत की असरदार वृद्धि दर रह सकती है, जबकि इसमें केलेंडर वर्ष 2020 के दौरान 5.3 प्रतिशत की कमी दृष्टिगोचर हुई थी।
मुख्यतः कपड़ा उद्योग, जेम्स एवं ज्वेलरी उद्योग, पेपर उद्योग, लेदर उद्योग, ग्लास उद्योग, लकड़ी उद्योग एवं खाद्य पदार्थ प्रसंस्करण उद्योग द्वारा उपयोग किए गए ऋण की राशि में, माह मार्च 2021 में, माह मार्च 2020 की तुलना में, वृद्धि दर अधिक रही है। कृषि क्षेत्र द्वारा उपयोग की गई ऋण की राशि में भी माह मार्च 2021 के दौरान 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि माह मार्च 2020 में यह वृद्धि दर मात्र 4.2 प्रातिशत की रही थी। उक्त उद्योगों द्वारा ऋण की अधिक राशि का उपयोग करने का आशय यह है कि इन उद्योगों में उत्पादन गतिवधियों का स्तर बढ़ रहा है।
कृषि क्षेत्र एवं विभिन उद्योगों में बढ़ते उत्पादन के स्तर को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 10.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। भारतीय रिज़र्व बैंक के ही अनुमान के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 की प्रथम तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 26.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी, वहीं द्वितीय तिमाही में यह वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत की रह सकती है, तृतीय तिमाही में यह दर 5.3 प्रतिशत की रह सकती है और चतुर्थ तिमाही में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर रह सकती है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के प्रथम माह अप्रेल 2021 माह में जीएसटी का शानदार संग्रहण, मध्यम उद्योग एवं कृषि क्षेत्र द्वारा ऋणों का अधिक उपयोग, निर्यात के क्षेत्र में आई तेजी एवं देश में कोरोना महामारी को रोकने के उद्देश्य से तेजी से चल रहे टीकाकरण से यह विश्वास हो चला है कि कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान तेज गति से आगे बढ़ने की ओर तत्पर दिखाई दे रही है।
प्रहलाद सबनानी
आर्थिक मामलों के जानकार और बैंकिंग सेवा के पूर्व अधिकारी
इस वर्ष बजट में राजकोषीय नीति को विस्तारवादी बनाया गया है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके। केंद्र सरकार द्वारा बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। केंद्र सरकार विभिन्न मदों पर कुल मिलाकर 30.42 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम खर्च करने जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा बाजार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा।
चूंकि निजी क्षेत्र अभी अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलायमान रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अपने पूंजीगत खर्चों में भारी भरकम वृद्धि करते हुए अपने निवेश को बढ़ा रही है। यानी केंद्र सरकार निवेश आधारित विकास करना चाह रही है। इस सब के लिए तरलता की स्थिति को सुदृढ़ एवं ब्याज की दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना बहुत जरुरी है और यह कार्य भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से आसानी किया जा सकता है। आरबीआई ने विगत 5 फरवरी को घोषित की गई मौद्रिक नीति के माध्यम से इसका प्रयास किया भी है।
आरबीआई ने मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। आरबीआई के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का एलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है।
साथ ही आरबीआई के गवर्नर ने वर्तमान वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई की दर में कमी आई है और यह अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे आई है। यह भी कहा गया है कि आज समय की मांग है कि अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाय। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाने से यह संकेत मिलते हैं कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कमी की जा सकती है। एक प्रकार से मौद्रिक नीति अब देश की राजकोषीय नीति का सहयोग करती दिख रही है। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाना एक अच्छी नीति है क्योंकि कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध होने से ऋण की मांग बढ़ती है।
कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार व आरबीआई तालमेल से कार्य कर रहे हैं, यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) से अधिक होते ही आरबीआई रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता है। परंतु वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रा स्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना जरुरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेजी लाना अभी अधिक आवश्यक है। मुद्रा स्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फ़ोकस करना ज़रूरी है। वैसे भी अभी खुदरा महंगाई दर 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है।
केंद्र सरकार की इस वित्तीय वर्ष में भारी मात्रा में बाजार से कर्ज लेने की योजना है ताकि बजट में किए गए खर्चों संबंधी वायदों को पूरा किया जा सके। इसलिए भी आरबीआई के लिए यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाए और ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास करे। अन्यथा की स्थिति में बजट ही फैल हो सकता है। रेपो रेट को बढ़ाना मतलब केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से उधार ली जाने वाली राशि पर अधिक ब्याज का भुगतान करना। वैसे वर्तमान में तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में तरलता उपलब्ध है।
अब तो कोरोना की बुरी आशकाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। अतः व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का विश्वास भी वापिस आ रहा है। सरकार ने बजट में खर्चे को बहुत बड़ा पुश दिया है। सरकार निवेश आधारित विकास करना चाहती है और इस खर्चे व निवेश का क्रियान्वयन केंद्र सरकार खुद लीड कर रही है। वितीय सिस्टम में न तो पैसे की कमी है और न ब्याज की दरें बढ़ी हैं। अतः इन अनुकूल परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने का प्रयास केंद्र सरकार भी कर रही है जिसका पूरा पूरा फायदा देश की अर्थव्यवस्था को होने जा रहा है।
सामान्यतः देश में यदि मुद्रा स्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी कीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रा स्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई जरुरत भी नहीं हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत से कुछ ही अधिक उपयोग हो पा रहा है जब तक यह 75-80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचता है तब तक निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ाएगा और इस प्रकार मुद्रा स्फीति में वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है। मुद्रा स्फीति पर ज्यादा सख्त होने से देश की विकास दर प्रभावित होगी, जो कि देश में अभी के लिए प्राथमिकता है। हालांकि अभी हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में स्थापित क्षमता के उपयोग में सुधार हुआ है और अर्थव्यवस्था में रिकवरी और तेज हुई है।
बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को भी मदद देने की बात की गई है क्योंकि यही क्षेत्र कोरोना महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतम लोग बेरोजगार हो गए थे। अतः इस क्षेत्र को शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की बात की जा रही है। साथ ही इस क्षेत्र को तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाना जरुरी है। यह क्षेत्र ही देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा। इसलिए भी मौद्रिक नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र को ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा सके एवं तरलता बनाए रखी जा सके।
देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से उसी ओर बढ़ रही है। रिजर्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष में 10 से 10.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेगी।
वर्तमान समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है। इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब रिज़र्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नजर बनाए रखनी होगी। यदि यह दर बढ़ती है तो देश के विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।