मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के वकील पर अवमानना की कार्रवाई, CAT ने कहा चतुर्वेदी और उनके वकील ने किया छल
- अविनाश
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) की प्रधान खंडपीठ ने भारतीय वन सेवा (IFS) के उत्तराखंड कैडर के चर्चित अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के अधिवक्ता को न्यायालय की अवमानना का दोषी माना है। CAT ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी और इस वर्ष 18 मार्च को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। विगत सप्ताह CAT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एल.नरसिम्हा रेड्डी व प्रशासनिक सदस्य ए.के.बिश्नोई की खंडपीठ ने अपना निर्णय सुनाया। हालांकि, इसे पहली घटना के रूप में मानते हुए CAT ने उन्हें कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया। CAT ने अपने निर्णय में चतुर्वेदी के विरुद्ध भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी वर्तमान में हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र में मुख्य वन संरक्षक के पद पर तैनात हैं।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त संजीव चतुर्वेदी ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), दिल्ली में अपनी प्रतिनियुक्ति के दौरान चरित्र पंजिका में की गई प्रविष्टियों को चुनौती देने के लिए CAT की प्रधान खंडपीठ दिल्ली में तीन याचिकाएं दायर की थी। चतुर्वेदी द्वारा सुनवाई के दौरान अधिवक्ता महमूद पराचा का सहयोग लिया गया। इस प्रकरण में बहस के समय अधिवक्ता का व्यवहार CAT को रास नहीं आया। CAT ने अपने निर्णय में कहा है कि उन्होंने दूसरे पक्ष के वकील को अपमानित किया। न्यायाधिकरण में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा करते हुए इशारों एवं नाटकीयता के जरिए अध्यक्ष के साथ–साथ प्रतिवादियों पर धौंस जमायी। अपने उकसावे का अपेक्षित परिणाम न निकलता देख उन्होंने आगे बढ़कर अध्यक्ष पर व्यक्तिगत आक्षेप करना शुरू कर दिया।
अधिवक्ता ने धौंस ज़माने का किया प्रयास
उन्होंने सारी हदें पार कर दीं और हर संभव तरीके से न्यायाधिकरण, विशेष रूप से अध्यक्ष, पर धौंस ज़माने का प्रयास किया। उन्हें यह सूचित किया गया कि उनके इस किस्म के रवैये से उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है। CAT ने कहा कि जहां पक्षकार थोड़े भावुक होते हैं, वहां भी वकीलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उन्हें हतोत्साहित करें और न्यायालय या न्यायाधिकरण के समक्ष उतना ही निवेदन करें जितना प्रासंगिक हो। मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रतिवादी द्वारा किया गया हमला उसके मुवक्किल की तुलना में अधिक गंभीर और आक्रामक था। खंडपीठ द्वारा कही जा रही किसी भी बात का उन पर कोई असर नहीं हुआ।
मामला ऐसे पहुंचा चरम पर
मामला उस समय चरम पर पहुंचा, जब अधिवक्ता ने खुली अदालत में यह कहा कि कार्यवाही चैंबर में सुनी जाए, क्योंकि उन्हें अध्यक्ष के बारे में कुछ कहना है। यह न्यायालय में उपस्थित लोगों को बताने का एक स्पष्ट इशारा था कि अध्यक्ष के खिलाफ कुछ गड़बड़ या गंभीर है। जब उनसे यह कहा गया कि उन्हें जो कुछ भी कहना है अदालत में कहें, तो वे इधर–उधर करते रहे और कुछ भी नहीं कहा। अदालत में जो कुछ भी घटित हुआ है, चाहे स्थानांतरण याचिका के मामले में या उसके बाद, वो एक अनायास परिघटना नहीं है, जैसा कि आवेदक और उनके वकील द्वारा दर्शाया जा रहा है।
मैग्सेसे पुरस्कार का भी दिया हवाला
CAT ने कहा कि न्यायालय में जो कुछ भी हुआ है, न केवल उसे उचित ठहराने के लिए हर संभव प्रयास किया गया, बल्कि यह भी दिखाया गया कि आवेदक ने अपने करियर में क्या कुछ हासिल किया है और उसने कैसे विभिन्न अधिकारियों का सामना किया है। इनमें मैग्सेसे पुरस्कार के प्रशस्ति -पत्र, उनके निलंबन के तथ्य, दंड की प्रमुख कार्यवाहियां, हरियाणा कैडर में रहने के दौरान 5 वर्षों के भीतर 12 मौकों पर उनका स्थानांतरण, उनके उत्तराखंड कैडर में परिवर्तन, आरोपों को निरस्त करना आदि शामिल हैं। यहां तक कि स्थानांतरण याचिका और इस अवमानना मामले में जो आदेश पारित किए गए थे, उन्हें सोशल मीडिया में पोस्ट किया गया और वहां प्राप्त प्रतिक्रियाओं को इस मामले में प्रतिवादी के जवाब का हिस्सा बनाया गया। CAT ने कहा कि दर्शाने का प्रयास किया गया कि वह सब से ऊपर है और उसके ऊपर कुछ भी नहीं है।
खंडपीठ की कड़ी टिप्पणी
प्रधान खंडपीठ ने अपने निर्णय में कठोर टिप्पणी करते हुए कहा है कि अधिवक्ता ने और उनके मुवक्किल ने हर स्तर पर और हरसंभव तरीकों से इस न्यायाधिकरण के साथ छल किया है। सैकड़ों पृष्ठों में चलने वाले जवाबी हलफनामों और समय-समय पर दायर आवेदनों के सुर एवं आशय केवल यही दर्शाएंगे कि प्रतिवादी के कथन आकस्मिक या अनजाने में नहीं दिये गये थे। इसके लिए पहले से की गयी तैयारी प्रतीत होती है। यह केवल यही दर्शाता है कि वे किसी प्राधिकरण या न्यायालय को निशाना बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, भले ही उन्हें वहां से राहत मिली हो। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि न्यायालय या प्राधिकरण उनकी पसंद का है या नहीं।
बढ़ रही शॉर्टकट की प्रवृत्ति
CAT ने वर्तमान में अपनायी जा रही शॉर्टकट की प्रवृत्ति पर भी निशाना साधा और कहा कि कानून के क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में ऐसी प्रवृत्तियां सामने आ रही हैं। एक अधिकारी को अपनी दक्षता या ईमानदारी के लिए पहचाने जाने में दशकों की समर्पित सेवा लग सकती है। इसी तरह, एक मेहनती वकील के लिए, मान्यता या प्रसिद्धि पाने में काफी समय लगेगा। दुर्भाग्यवश, कुछ लोगों द्वारा बिना इस बात का अहसास किये शॉर्टकट अपनाया जाता है कि जो शॉर्टकट को पसंद करता है, उसका कद छोटा (शार्ट) होने के लिए बाध्य होता है। कभी-कभी किसी घटना में देरी हो सकती है, लेकिन वह किसी न किसी दिन होने के लिए बाध्य है। इसका एकमात्र दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह है कि इस बीच संस्थानों को भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा आपराधिक अवमानना
बहस के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि न्यायाधिकरण के अधिकार को ही चुनौती देने वाले या अध्यक्ष को बदनाम करने का प्रयास करने वाला इस किस्म का व्यवहार, जैसा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है, साफ़ तौर पर आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आता है, जिसका किसी भी न्यायालय द्वारा समर्थन नहीं किया जा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि प्रतिवादी खेद व्यक्त करते हैं तो इस मामले को समाप्त किया जाना चाहिए।
अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा-14 के तहत कार्रवाई
मगर अधिवक्ता अपनी बात पर अडिग रहे और खंडपीठ ने अधिवक्ता को अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा-14 के तहत अदालत की अवमानना का दोषी माना। CAT ने कहा हालांकि, इसे पहली घटना के रूप में मानकर हमने उन्हें इस आशय की कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया कि यदि वो भविष्य में इस तरह के कृत्य को इस न्यायाधिकरण में दोहराते है, तो उसे इस मामले में न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जाएगा। इसे कार्यवाही के कारक के रूप में दर्ज किया जायेगा। CAT ने अपने निर्णय की कॉपी बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया और दिल्ली बार कौंसिल को भी भेजी है।