उत्तराखंड में हिमस्खलन की चेतावनी जारी, 24 घंटे सतर्क रहने की अपील..
उत्तराखंड: प्रदेश में बर्फबारी का दौरा जारी है। मौसम विभाग ने उत्तराखंड के प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों के लिए भारी हिमस्खलन की चेतावनी जारी की है। लोगों से अगले 24 घंटे सतर्क रहने की अपील की गई है। इसके लिए एडवाइजरी भी जारी कर दी गई है। उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए मौसम विभाग ने भारी हिमस्खलन की चेतावनी जारी की है। चमोली जिले के ऊंचाई वाले इलाकों में लोगों से अगले 24 घंटे सतर्क हरने की अपील की गई है। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र देहरादून की ओर जिलाधिकारी को पत्र भेजकर लोगों से सतर्क रहने की अपील की गई है।
तीन और चार मार्च को बर्फबारी के साथ हिमस्खलन की आशंका..
राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र देहरादून की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि डिफेंस जीओइंर्फोमेशन रिसर्च स्टेब्लिशमेंट चंडीगढ़ की ओर से प्रदेश के 2500 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तीन और चार मार्च को बर्फबारी के साथ हिमस्खलन होने की संभावना जताई गई है। इस पत्र के अनुसार चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी को खतरे के लेवल चार में रखा गया है। परिचालन केंद्र की ओर से तीनों जिलों में बर्फबारी वाले क्षेत्रों में सावधानी बरतने को कहा गया है।
केदारघाटी के चोराबाड़ी क्षेत्र में फिर हुआ हिमस्खलन, एक सप्ताह में दूसरी घटना आई सामने..
उत्तराखंड: सुबह 8:56 बजे केदारनाथ के चोराबाड़ी इलाके में हिमस्खलन हुआ। एक हफ्ते में यह दूसरी बार है जब हिमस्खलन सामने आया है। इससे पहले 8 जून को केदारनाथ के चोराबाड़ी ग्लेशियर जोन में हिमस्खलन हुआ था। इससे काफी देर तक बर्फ का गुबार उठता रहा। इस दौरान केदारनाथ धाम में मौजूद कई श्रद्धालुओं ने इस घटना को अपने मोबाइल में कैद किया था।
इसी रास्ते से जून 2013 की आपदा में भी भारी मात्रा में मलबा और पानी आया था। पिछले 10 महीनों में हिमस्खलन की पांच घटनाएं हो चुकी हैं। पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में इसी क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ था। इस दौरान पांच से सात मिनट के लिए क्षेत्र में बर्फ का गुबार उठा। जिस तरह से बर्फ का गुबार तेजी से नीचे की तरफ खिसक रहा था, उससे अनुमान लगाया गया कि काफी ऊंचाई से भारी मात्रा में नई बर्फ टूटकर गिरी है।
इस दौरान केदारनाथ मंदिर, मंदिर परिसर और गोल चबूतरे में मौजूद श्रद्धालुओं ने इस घटना को अपने मोबाइल में कैद किया। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार का कहना हैं कि हिमस्खलन से केदारनाथ मंदिर समेत केदारपुरी के किसी भी प्रकार से कोई नुकसान नहीं पहुंचा हैं। यह घटना मंदिर परिसर से करीब छह किमी दूर हुई है। उनका कहना हैं कि कपाट खुलने के बाद से केदारनाथ क्षेत्र में बर्फबारी के चलते एवलांच की घटना हुई है, जो सामान्य प्रक्रिया है। दूसरी ओर देहरादून में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता का कहना हैं कि हिमालय क्षेत्र में हिमस्खलन सामान्य घटना है।
बीते साल तीन बार हुआ था हिमस्खलन
आपको बता दे कि 22 सितंबर को शाम साढ़े चार बजे केदारनाथ मंदिर से लगभग तीन से चार किमी पीछे पहाड़ी से आंशिक हिमस्खलन हुआ है। इसके बाद एक अक्तूबर को शाम साढ़े पांच बजे के आसपास मंदिर से छह से सात किमी पीछे फिर से आंशिक हिमस्खलन हुआ है। इसके बाद दो अक्तूबर को भी चोराबाड़ी ताल से लगभग तीन किमी ऊपर हिमस्खलन हुआ था।
बर्फीले तूफान की चपेट में वायुसेना के दस पर्वतारोही लापता, निम से रेस्क्यू टीम रवाना..
उत्तराखंड: माउंट त्रिशूल के आरोहण के लिए गया वायुसेना का दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया है। जिसमें करीब 10 पर्वतारोही लापता बताए जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार माउंट त्रिशूल के आरोहण के दौरान हिमस्खलन आने से वायुसेना का पर्वतारोही दल इसकी चपेट में आ गया है। हिमस्खलन की चपेट में आने से दस पर्वतारोही लापता बताए जा रहे हैं। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से राहत-बचाव टीम कर्नल अमित बिष्ट के नेतृत्व में त्रिशूल चोटी के लिए रवाना हो गई है।
शुक्रवार सुबह दल चोटी के समिट के लिए आगे बढ़ा
वायुसेना का दल करीब 15 दिन पहले 7,120 मीटर ऊंची त्रिशूल चोटी के आरोहण के लिए गया था। शुक्रवार सुबह दल समिट के लिए आगे बढ़ा तो इसी दौरान हिमस्खलन हो गया। जिसकी चपेट में वायु सेना के पर्वतारोही आ गए। इस बारे में निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट ने बताया यह घटना शुक्रवार सुबह पांच बजे के करीब हुई है।
वायुसेना के करीब 10 पर्वतारोही हिमस्खलन की चपेट में आए हैं और लापता चल रहे हैं। त्रिशूल चोटी की ऊंचाई 7,120 मीटर है। इस चोटी के आरोहण के लिए चमोली जनपद के जोशीमठ और घाट के लिए पर्वतारोही टीमें जाती हैं। वायु सेना के पर्वतारोहियों की टीम भी घाट होते हुए त्रिशूल के लिए गई थी। तीन चोटियों का समूह होने के कारण इसे त्रिशूल कहते हैं।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने चमोली जिले के सीमांत क्षेत्र में आई प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इलाके का दौरा किया और क्षेत्र में बीआरओ द्वारा चलाए जा रहे बचाव, राहत एवं पुनर्वास कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में आपदा प्रभावित क्षेत्र में काम कर रहे बीआरओ की टीम की हौंसला अफजाई भी की।
विगत 7 फरवरी को चमोली जिले के सीमांत रैणी गांव के पास हिमस्खलन से धौली गंगा व ऋषि गंगा के जलस्तर में अचानक वृद्वि हो गई थी और इसने भीषण बाढ़ का रूप ले लिया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए हैं, जिनमें से 40 लोगों के शव बरामद हो गए हैं। आपदा में निजी क्षेत्र के ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट समेत NTPC जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुक्सान पहुंचा। इसके अलावा ऋषिगंगा नदी पर रैणी गांव के पास जोशीमठ-मलारी रोड पर बीआरओ का 90 मीटर आरसीसी पुल भी बह गया । यह पुल चीन सीमा के निकट स्थित नीति घाटी तक पहुंचने का एकमात्र लिंक था।
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प्रभावित क्षेत्र के भ्रमण के दौरान बीआरओ के महानिदेशक जनरल चौधरी ने बताया कि आपदा के बाद उनके संगठन ने राहत व बचाव कार्यों में 100 से अधिक वाहनों/उपकरणों व संयंत्रों को शामिल किया गया। बीआरओ ने भारतीय वायु सेना की सहायता से महत्वपूर्ण उपकरणों को भी अपने अभियान में शामिल किया है । प्रोजेक्ट शिवालिक के तहत 21 बीआरटीएफ की लगभग 20 टीमों को बचाव और पुनर्वास उद्देश्यों के लिए तैनात किया गया है।
प्रारंभिक निरीक्षण के बाद बीआरओ ने सभी आवश्यक मोर्चों पर कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित करने के लिए काम शुरू किया है। सुदूर किनारे पर खड़ी चट्टानों और दूसरी तरफ 25-30 मीटर ऊंचे मलबे/ कीचड़ के कारण यह स्थल बहुत चुनौतीपूर्ण था, हालांकि बीआरओ ने इन चुनौतियों को दूर कर लिया है और युद्धस्तर पर कार्य जारी है।
जनरल चौधरी ने विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर रहे बीआरओ के जवानों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि मौसम की चुनौतियों के बीच बीआरओ की टीम चौबीसों घंटे काम कर रही है, ताकि क्षेत्र में जल्द से जल्द कनेक्टिविटी को फिर से स्थापित किया जा सके। उन्होंने बीआरओ को आवश्यक सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को धन्यवाद भी दिया।