उत्तर भारत के लोगों में बिना संक्रमण बढ़ रही सूजन की समस्या..
इस शोध में हुए कई खुलासे..
उत्तराखंड: उत्तर भारत के लोगों में बिना किसी संक्रमण के आंखों की सूजन की समस्या बढ़ रही है। इससे उनकी आंखों की रोशनी भी कम हो रही है। यह सूजन आंखों के बाहरी हिस्से में पाई जा रही है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शोध में इसका खुलासा हुआ है। शोध के दौरान लोगों की आंखों में सबसे अधिक एंटीरियर यूवीआईटिस (आंखों के आगे वाले हिस्से में सूजन) मिला।
यह शोध दून मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील ओझा, लखनऊ एसजीपीजीआई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वैभव जैन और यूपीएमयू सैफई की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीना शर्मा ने साथ मिलकर किया। बता दे कि यह शोध तमिलनाडु के जनरल ऑफ ऑप्थैल्मिक साइंस एंड रिसर्च में प्रकाशित भी हो चुका है।
आंखों के बाहरी हिस्से में अधिक सूजन पाई जा रही..
आपको बता दे कि दून मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुशील ओझा का कहना हैं कि आंखों की लालपन की स्थिति पता करने के लिए यह शोध किया गया। शोध में पता चला कि बिना इंफेक्शन आंखों के लालपन का बड़ा कारण सूजन है।
उत्तर भारत के लोगों की आंखों के बाहरी हिस्से में अधिक सूजन पाई जा रही है। आंखों में यूवीआईटिस नामक सूजन हो रही है। यह एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है। ऐसे में इम्यूनो सप्रेसिव थेरेपी देकर मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इस तरह की सूजन होने पर आंखों की रोशनी जाना, मोतियाबिंद और आंख सूख के छोटी हो जाने का खतरा बना रहता है।
तीन साल तक 89 लोगों पर चला शोध..
यह शोध 2017 से 2019 तक 89 लोगों पर किया गया। इनमें 50 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जिन्हें पिछले दो दिनों के अंदर आंखों में समस्या हुई थी और 50 प्रतिशत मरीज ऐसे थे जिनमें आंखों की समस्या पुरानी थी। मरीजों की उम्र 20 से 50 साल थी। शोध के दौरान यह पाया गया कि 46 प्रतिशत मरीजों में आंख के आगे वाले हिस्से (एंटीरियर) में सूजन थी। 26 में आंख के बीच वाले हिस्से (इंटरमीडिएट) में सूजन और 15 प्रतिशत मरीजों में आंख के पीछे वाले हिस्से (पोस्टीरियर) में सूजन पाई गई। शोध में लिए गए मरीजों को पहले से ही आंखों में सूजन की समस्या थी। मरीज को एक बार दिखाने के बाद चार महीने से लेकर डेढ़ साल तक लगातार फॉलो किया गया।
विशेषज्ञ के तौर पर एसजीपीजीआई और सैफई के डॉक्टर ने दिया सुझाव..
एसजीपीजीआई लखनऊ और सैफई मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने शोध में एक विशेषज्ञ के तौर पर मदद की। जो जांच दून मेडिकल कॉलेज में नहीं हो सकती थी, उन्हें एसजीपीजीआई से करवाया गया। मरीज की फोटो देखकर डॉक्टरों ने अपना सुझाव दिया। शोध में अधिकतर मरीज दून मेडिकल कॉलेज के थे। यहां पर 40 फीसदी मरीज यूपी से आते हैं।