ग्रीन बोनस और बाहरी लोगों से पड़ने वाला बोझ घटाने को मांगेंगे अनुदान..
उत्तराखंड: प्रदेश को केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस और बाहरी राज्यों से आने वाली आबादी के बदले अनुदान मिले, इसके लिए राज्य सरकार 16वें वित्त आयोग से पैरवी करेगी। आयोग के समक्ष राज्य का पक्ष रखे जाने के लिए तैयार होने वाले विषयों को लेकर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने बुधवार को अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए।उन्होंने ताकीद किया कि इन्हीं दिशा-निर्देशों के आधार पर समय पर रिपोर्ट तैयार की जाए। उन्होंने इसके लिए विभागीय स्तर पर नोडल अफसर बनाने के भी निर्देश दिए। बता दें कि केंद्र सरकार ने नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढिया की अध्यक्षता में चार सदस्यीय 16वें वित्त आयोग का गठन किया है। आयोग एक अप्रैल 2026 से 31 मार्च 2031 तक पांच की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट 31 अक्तूबर 2025 तक उपलब्ध करानी है।
सभी विभागों की यह पहली बैठक..
आपको बता दे कि उत्तराखंड को भी आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखना है, ताकि राज्य की आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, सांस्कृतिक व अन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशों के मानकों का निर्धारण कर सके। 16वें वित्त आयोग के संबंध में सभी विभागों की यह पहली बैठक थी। बैठक में बताया गया कि 15वें वित्त आयोग से राज्य को पांच साल के लिए 28 हजार करोड़ रुपये का राजस्व घाटा अनुदान मिला। सीएस ने इसके लिए तैयारी करने के निर्देश दिए। उन्होंने आपदा, पर्यावरण और विभागों के स्तर पर अपग्रेडेशन वाले कार्यों के लिए भी रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए।
सीएम केजरीवाल से इस्तीफे की मांग, दिल्ली में BJP कार्यकर्ताओं का जोरदार प्रदर्शन..
देश-विदेश: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा ने दिल्ली मे विरोध प्रदर्शन किया। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के सीएम पद से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना है कि वे शराब घोटाले से ध्यान भटकाना चाहते हैं, वे कहते रहते हैं कि उन्हें (जेल से) आदेश मिल रहे हैं। केजरीवाल ईडी की हिरासत में ड्रामा कर रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल को इस्तीफा देना होगा..
उन्होंने कहा कि मैंने एलजी और ईडी निदेशक को लिखित शिकायत दी है कि उन्होंने जो झूठा पत्र पेश किया है, उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। जिस तरह से गैंगस्टर और जबरन वसूली करने वाले जेल से गिरोह संचालित करते हैं, वे सीएम कार्यालय को संचालित करना चाहते हैं। अरविंद केजरीवाल जैसा भ्रष्ट व्यक्ति सीएम नहीं बन सकता। उन्हें इस्तीफा देना होगा।
पूर्व मुख्य सचिव एसएस संधु बने चुनाव आयुक्त..
उत्तराखंड: चुनावी माहौल के बीच केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव डॉ सुखबीर सिंह संधु को बड़ी जिम्मेदारी दी है। बता दें एसएस संधु को केंद्र सरकार ने भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) का चुनाव आयुक्त बनाया है। बता दें डॉ सुखबीर सिंह संधू और उत्तर प्रदेश से सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार को पीएम मोदी के नेतृत्व वाले पैनल ने नए चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया है। देश के इस सबसे प्रतिष्ठित पदों में से एक पद पर डॉ. संधु की नियुक्ति उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है।
आपको बता दी कि एसएस संधु 1988 बैच के उत्तराखंड कैडर के अधिकारी थे। उन्हें 2021 में उत्तराखंड का मुख्य सचिव बनाया गया था। वह 31 जनवरी 2024 को रिटायर हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद उनके लंबे प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए उन्हें लोकपाल कार्यालय में सचिव पद की अहम जिम्मेदारी दी गई थी। अब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने जिन दो पूर्व आईएएस अफसरों को चुनाव आयुक्त बनाया है, उनमें एक डॉ. संधु हैं। वह उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश और पंजाब में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। एसएस संधु 1996 में डॉ संधु हरिद्वार, उधमसिंहनगर और नोएडा के डीएम भी रह चुके हैं। इसके अलावा डॉ संधू को लुधियाना नगर निगम के आयुक्त के रूप में अपने काम के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में संधू उत्तराखण्ड में MDDA में VC, शिक्षा विभाग में एडिसनल सचिव के पद पर भी रह चुके हैं। वहीं 2007-2012 के बीच पंजाब में बादल सरकार में सीएम के सेप्शल सेक्रेटरी भी रहे।
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष में मुआवजे की राशि में की जाएगी बढ़ोतरी, केंद्र सरकार ने संशोधित की दरें..
उत्तराखंड: प्रदेश में मानव वन्यजीव संघर्ष के तहत दी जाने वाली मुआवजा राशि में बढ़ोतरी की जाएगी। वन विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है। अब इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट में रखा जाएगा। राज्य वन्यजीव बोर्ड प्रस्ताव को पहले ही मंजूरी दे चुका है। इसमें मानव वन्यजीव संघर्ष में व्यक्ति के घायल होने, अपंग होने, फसलों की क्षति और संपत्ति के नुकसान पर दिए जाने वाले मुआवजे में संशोधन किया गया है। मानव-वन्यजीव संघर्ष राहत वितरण निधि नियमावली 2023 की प्रस्तावित दरों में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से निर्धारित दरों में जुलाई 2023 में संशोधन किया जा चुका है।
अब राज्यों को भी इसी के अनुरूप अपने यहां दरों में संशोधन करना अनिवार्य है। पूर्व में यह प्रस्ताव कैबिनेट में पास हो गया था, लेकिन इस बीच केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से दरों में संशोधन के बाद इसका शासनादेश जारी नहीं किया गया। अब संशोधित प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जा चुका है।
प्रस्तावित दरें..
मानव वन्यजीव संघर्ष में मृत्यु होने पर दी जानी वाली मुआवजा राशि को चार लाख रुपये से बढ़ाकर छह लाख रुपये किया जाना प्रस्तावित। इस प्रस्ताव में 18वीं वन्यजीव बोर्ड की बैठक में पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है।
साधारण घायल होने पर मिलने वाला मुआवजा 15 हजार से बढ़ाकर 16 हजार रुपये प्रस्तावित किया गया है।
गंभीर रूप से घायल होने पर 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रस्तावित।
पूर्ण रूप से अपंग होने पर दो लाख से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये प्रस्तावित।
दुधारू पशु की मृत्यु पर 30 हजार से बढ़ाकर 37 हजार 500 रुपये किया जाना प्रस्तावित।इसके अलावा फसलों के नुकसान और भवन, कच्चे-पक्के मकान इत्यादि की दरों में भी संशोधन का प्रस्ताव है।
दो नए पशु भी शामिल, मृत्यु पर मुआवजा..
वन्यजीवों की ओर से पशु क्षति में पहली बार उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले दो नए पशुओं को भी शामिल किया गया है। इसमें जबू (ज्वाॅ) और जुमो की मृत्यु होने पर 37 हजार 500 रुपये मुआवजे का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव को भी राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में मंजूरी प्रदान की जा चुकी है।मानव-वन्यजीव संघर्ष के तहत दी जाने वाली मुआवजा राशि में बढ़ोतरी के प्रस्ताव को 24 अगस्त 2023 को हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी प्रदान की गई थी, लेकिन इस बीच केंद्र सरकार ने निधि की दरों में संशोधन कर दिया। इसके चलते पुन: प्रस्ताव को संशोधित कर शासन को भेजा गया है।
राष्ट्रपति चुनाव- उत्तराखंड में क्रास वोटिंग से कांग्रेस में खलबली..
उत्तराखंड: राष्ट्रपति चुनाव में क्रास वोटिंग को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस में खलबली मची है। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में उस काली भेड़ की तलाश शुरू हो गई है, जिसने राजग प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया। पार्टी के नेता अब एक-दूसरे को ही शक की नजर से देख रहे हैं। इस मामले को गंभीर मानते हुए प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य से एक कमेटी बनाकर मामले की जांच का अनुरोध किया।
बता दे कि इस बीच मामला हाईकमान तक भी पहुंच गया है। लेकिन जब तक पार्टी लाइन से बाहर जाकर वोट करने वाले की पहचान नहीं हो जाती, कोई भी बड़ा नेता खुलकर कुछ कहने से बच रहा है। पहले से बगावत के जख्मों से छलनी कांग्रेस को राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा धक्का लगा है। उत्तराखंड से कुल 67 विधायकों ने बीती 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में मतदान किया था। कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी और तिलकराज बेहड़ अलग-अलग कारणों से मतदान में भाग नहीं लिया था।
इसी तरह से भाजपा के विधायक व परिवहन मंत्री चंदनराम दास अस्पताल में भर्ती होने के कारण वोट नहीं दे पाए थे। इस तरह 70 में से कुल 67 विधानसभा सदस्यों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। विधानसभा में दलीय स्थिति देखें तो वर्तमान विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा के 47, कांग्रेस के 19 विधायक हैं। इसके साथ ही बसपा के दो और दो निर्दलीय हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने दो निर्दलीय और दो बसपा सदस्यों का विश्वास भी जुटा लिया था। इस तरह राजग की प्रत्याशी मुर्मू को 50 मत ही मिलने चाहिए थे, लेकिन उन्हें 51 वोट मिले हैं। साफ है कि यह वोट कांग्रेस विधायक ने दिया है। कांग्रेस के दो विधायक मतदान में शामिल नहीं हुए थे। इस हिसाब से यूपीए उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 17 वोट मिलने चाहिए थे, लेकिन उन्हें 15 ही वोट मिले।
14 फरवरी को की जाएगी विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग..
उत्तराखंड: पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग ने यह भी साफ कर दिया है कि चुनाव तय समय पर ही होंगे। मतदाता सूची भी जारी हो चुकी है। सभी चुनावी राज्यों में सियासी हलचलें तेज हैं। सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश चुनाव की है। 403 विधानसभा सीट वाले इस प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राजनीतिक बयानबाजी से नेता एक-दूसरे पर निशाना साध रहे। चुनावी वादों की भी बौछार होने लगी है। धरना-प्रदर्शन भी खूब होने लगे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने बताया कि 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग की जाएगी।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि 15 जनवरी तक रैलियों पर रोक लगाई गई है। कोरोना केसों के ट्रेंड पर ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी। चुनाव के दौरान, आयोग कम से कम बूथ ऐसा होगा, जिसका पूरा नियंत्रण महिलाओं के हाथों में होगा। मतदान के दौरान संवेदनशील पोलिंग बूथों की वीडियोग्राफी करने के सख्त हिदायत दी गई है।
आपको बता दे कि उत्तराखंड में दूसरे चरण में चुनाव होगा। 21 जनवरी से उम्मीदवार नामांकन कर सकते हैं, जिसकी आखिरी तारीख 28 जनवरी होगी। नाम वापसी 31 जनवरी तक हाे सकेगी। चंद्रा ने बताया कि 10 मार्च 2022 को मतगणना होगी। चुनाव प्रचार पर बोलते हुए चंद्रा ने कहा कि चुनावी रैली, रोड शो, बाइक रैली, नुक्कड़ सभाओं पर रोक लगा दी गई है। सिर्फ वर्चुअल कैंपेन की ही अनुमति होगी। चुनाव की समाप्ति के बाद किसी भी तरह के विजय जुलूस पर रोक होगी।
चुनाव आयोग ने कहा कि इलेक्शन के दौरान अवैध पैसे और शराब पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी। इसके अलावा कोरोना संकट को देखते हुए उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन की भी सुविधा दी जाएगी। चुनाव आचार संहित इलेक्शन शेड्यूल जारी होने के बाद ही लागू हो जाएगी। चुनाव की अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है और इसके चलते अब किसी भी राज्य में कोई सरकार जनता को लुभाने की घोषणाओं का ऐलान नहीं कर सकेगी।
विधानसभा चुनाव के लिए cds रावत के नाम का सहारा ले रही है ये दो पार्टिया..
उत्तराखंड: प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नेता, भले ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हर मुद्दे पर एक दूसरे से झगड़ रहे हों लेकिन दोनों पार्टियां मतदाताओं से एक आम वादा कर रही हैं- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत के ‘सपनों और परिकल्पना’ को साकार करना, जिनकी पिछले हफ्ते एक हेलिकॉप्टर हादसे में मौत हो गई थी।
जहां सत्तारूढ़ पार्टी के नेता राज्य के विकास के अपने संकल्प को बढ़ावा देने के लिए बार-बार जनरल रावत के नाम का आह्वान करते हैं, वहीं कांग्रेस ने उनके लिए भारत रत्न की मांग की है। आपको बता दे कि राज्य में सेवारत और रिटायर्ड रक्षा कर्मियों तथा उनकी विधवाओं की अनुमानित संख्या 2.5 लाख है- जो एक बड़ा वोट बैंक है।
जनरल रावत पौड़ी गढ़वाल ज़िले में पैदा हुए थे और उन्होंने क्षेत्र के विकास में अपनी रूचि बनाए रखी। उन्होंने अपना रिटायरमेंट समय भी उत्तराखंड में ही बिताने की उनकी योजना थी। रविवार को जनरल रावत के गृह जिले पौड़ी में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रण किया कि वो स्वर्गीय सीडीएस के ‘सपनों और परिकल्पना को पूरा करने के लिए उत्तराखंड के विकास पर काम करेंगे।
धामी का कहना हैं कि ये जमीन शहीद जनरल बिपिन रावत की है। हमने जनरल से ज्यादा एक अभिभावक को खोया है, जो हमेशा उत्तराखंड के विकास और प्रगति का सपना देखते थेरविवार को एक और बयान में सीएम ने रावत का नाम लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा। जाहिरी तौर पर प्रियंका गांधी के एक आदिवासी नृत्य में शामिल होने के वीडियो का हवाला देते हुए धामी ने कहा, ‘जब देश जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य लोगों की हेलिकॉप्टर हादसे में मौत पर शोक मना रहा था, तो एक अन्य राजनीतिक पार्टी गोवा में मजे कर रही थी।
वही पूर्व उत्तराखंड मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना हैं कि जनरल रावत का बार-बार नाम लेने के कोई ‘राजनीतिक अर्थ’ नहीं हैं लेकिन अन्य बीजेपी नेताओं ने निजी तौर पर स्वीकार किया कि अगर चुनाव प्रचार के दौरान राज्य की तरक्की के लिए स्वर्गीय सीडीएस के विचारों को बार-बार आगे बढ़ाया जाता है, तो पार्टी को उसका लाभ मिल सकता है। उन्होंने कहा कि इसकी संभावना है कि विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तराखंड के लिए जनरल रावत की योजनाओं का बार-बार उल्लेख किया जाएगा।
वही कांग्रेस नेता भी स्वर्गीय जनरल के नाम का आह्वान कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें भी एक अवसर चाहिए कि वो राज्य के विकास के लिए उनके विचारों को अमलीजामा पहना सकें।
जनरल रावत की इच्छाओं को पूरा करने का मौका चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस भी अपने विचारों के जनरल रावत के विजन के अनुरूप होने का प्रसारण कर रही है और उसने मांग की है कि उन्हें भारत रत्न दिया जाना चाहिए। पूर्व उत्तराखंड सीएम और प्रदेश कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष हरीश रावत का कहना हैं कि स्वर्गीय सीडीएस ‘राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रतीक’ थे और उन्हें ‘एक विशेष समारोह में भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए।
कांग्रेस सत्ता में आती है, तो वो जनरल रावत के विचारों पर अमल करेगी- हरीश रावत
पूर्व सीएम ने कहा, ‘मुझे कुछ मौकों पर स्वर्गीय सीडीएस से बात करके उत्तराखंड के बारे में उनके विचार जानने का मौका मिला। वो एक ईमानदार ऑफिसर थे जिन्होंने कई योजनाओं के बारे में बात की, जो उत्तराखंड के लोगों, खासकर दूर-दराज पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के कल्याण के लिए अमल में लाई जा सकती थीं। अगर कांग्रेस सरकार सत्ता में आती है, तो हम राज्य के लिए उनके विचारों तथा इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करेंगे।
लखवाड़ बहुउद्देश्यीय परियोजना को केंद्र सरकार की मंजूरी..
उत्तराखंड: पिथौरागढ़ के नैनी सैनी हवाई अड्डे का संचालन और रखरखाव के लिए भारतीय विमानन प्राधिकरण अधिग्रहण करेगा। जिससे हवाई अड्डे का विस्तार होने से यहां पर बड़े विमानों की आवाजाही शुरू हो सकेगी। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस संबंध में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज को पत्र भेज कर अवगत कराया है।
कैबिनेट मंत्री महाराज ने केंद्रीय मंत्री को 18 नवंबर को पत्र लिख कर पिथौरागढ़ के नैनी सैनी, चमोली जिले के गौचर और उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौंड हवाई अड्डे को भारतीय विमानन प्राधिकरण के अधीन लाने का मामला उठाया था। इसके अलावा जौलीग्रांट एयरपोर्ट के नवनिर्मित टर्मिनल के उद्घाटन अवसर पर महाराज ने इस मामले को केंद्रीय मंत्री के समक्ष रखा था।
आपको बता दे कि केंद्रीय मंत्री ने महाराज को पत्र भेज कर अवगत कराया कि नैनी सैनी हवाई अड्डे का अधिग्रहण कर भारतीय विमानन प्राधिकरण संचालन और रखरखाव को अपने हाथों में ले सकता है। गौचर और चिन्यालीसौंड हवाई अड्डों के पास सीमित भूमि है। जिससे दोनों हवाई अड्डों के विकास की गुंजाइश कम है।
दोनों की हवाई अड्डों का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है। महाराज का कहना है कि नैनी सैनी हवाई अड्डा भारतीय विमानन प्राधिकरण अधीन होने से अवस्थापना विकास के साथ विस्तार हो सकेगा। जिससे नैनी सैनी के लिए ज्यादा सीटर विमानों आवाजाही बढ़ेगी। इससे पर्यटकों के साथ स्थानीय लोगों को हवाई सेवाओं का लाभ मिलेगा।
वहीं केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लखवाड़ बहुउद्देश्यीय जल विद्युत परियोजना को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और केंद्र सरकार का आभार व्यक्त किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय महत्व की परियोजना जल्द पूरी होगी। वर्षों से लंबित इस परियोजना पर प्रधानमंत्री की इच्छाशक्ति से राष्ट्र हित में निर्णय लिया गया। 90 प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण की इस परियोजना से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान राज्य लाभान्वित होंगे।
इससे इन सभी राज्यों को पानी की आपूर्ति हो सकेगी। परियोजना के जल घटक का लाभ छह राज्यों को मिलेगा तथा विद्युत घटक का लाभ उत्तराखंड को मिलेगा। जलघटक का 90 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा अनुदान सहायता के रूप में दिया जाएगा।
डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
पश्चिम बंगाल में चुनावों की औपचारिक घोषणा के साथ ही राजनैतिक पारा भी उफान पर पहुँच गया है। देखा जाए तो चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होते हैं सैद्धांतिक रूप से तो चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है।और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं।
लेकिन जब इन्हीं चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आती हैं जिनमें लोगों की जान तक दांव पर लग जाती हो तो प्रश्न केवल कानून व्यवस्था पर ही नहीं लगता बल्कि लोकतंत्र भी घायल होता है।
वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को तथ्यात्मक तरीके से प्रमाणित भी करते हैं। इनके अनुसार 2016 में बंगाल में राजनैतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं जिसमें 206 लोग इसके शिकार हुए। इससे पहले 2015 में राजनैतिक हिंसा की 131 घटनाएं दर्ज की गई जिनके शिकार 184 लोग हुए थे। वहीं गृहमंत्रालय के ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2017 में बंगाल में 509 राजनैतिक हिंसा की घटनाएं हुईं थीं और 2018 में यह आंकड़ा 1035 तक पहुंच गया था।
इससे पहले 1997 में वामदल की सरकार के गृहमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बाकायदा विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनैतिक हिंसा में मारे गए थे। निसंदेह यह आंकड़े पश्चिम बंगाल की राजनीति का कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करते हैं।
पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल का रक्तरंजित इतिहास उसकी “शोनार बंगला” की छवि जो कि रबिन्द्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों की देन है उसे भी धूमिल कर रहा है।
बंगाल की राजनीति वर्तमान में शायद अपने इतिहास के सबसे दयनीय दौर से गुज़र रही है जहाँ वामदलों की रक्तरंजित राजनीति को उखाड़ कर एक स्वच्छ राजनीति की शुरुआत के नाम पर जो तृणमूल सत्ता में आई थी आज सत्ता बचाने के लिए खुद उस पर रक्तपिपासु राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं।
हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा के ये आंकड़े भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वो भाजपा के विभिन्न रोड़ शो के दौरान हिंसा की घटनाएं हों या उनकी परिवर्तन यात्रा को रोकने की कोशिश हो या फिर जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव हो।
यही कारण है कि चुनाव आयुक्त को कहना पड़ा कि बंगाल में जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे यहाँ पर शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करना चुनाव आयोग के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग इस बार 2019 के लोकसभा चुनावों की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक सुरक्षा कर्मियों की तैनाती करने पर विचार कर रहा है।
लेकिन इस चुनावी मौसम में बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य पर घोटालों के बादल भी उभरने लगे हैं जो कितना बरसेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन वर्तमान में उनकी गर्जना तो देश भर में सुनाई दे रही है।
दरअसल, केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने राज्य में कोयला चोरी और अवैध खनन के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बैनर्जी की पत्नी रुजीरा बैनर्जी और उनकी साली को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है।
इससे कुछ दिन पहले शारदा चिटफंड घोटाला जिसमें देश के पूर्व वित्तमंत्री चिदम्बरम और खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर आरोप लगे थे, इस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की थी। इसके अनुसार बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया। कथित तौर पर यह राशि मीडिया कर्मियों के वेतन के भुगतान के लिए दी गई।
गौरतलब है कि जांच के दौरान तारा टीवी के शारदा ग्रुप ऑफ कम्पनीज का हिस्सा होने की बात सामने आई थी। सीबीआई का कहना है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। इससे कुछ समय पहले या यूँ कहा जाए कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी शारदा घोटाले की जाँच को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार आमने सामने थीं।
वैसे भारत जैसे देश में घोटाले होना कोई नई बात नहीं हैं और ना ही चुनावी मौसम में घोटालों के पिटारे खुलना। ऐसे संयोग इस देश के आम आदमी ने पहले भी देखे हैं। चाहे वो रोबर्ट वाड्रा के जमीन और मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले हों या फिर सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं के नेशनल हेराल्ड जैसे केस हों या यूपी में अवैध खनन के मामले में अखिलेश यादव और या फिर स्मारक घोटाले में मायावती पर ईडी की कार्यवाही। अधिकाँश संयोग कुछ ऐसा ही बना कि चुनावी मौसम में ही ये सामने आते हैं और फिर पाँच साल के लिए लुप्त हो जाते हैं।
देश की राजनीति अब उस दौर से गुज़र रही है जब देश के आम आदमी को यह महसूस होने लगा है कि हिंसा और घोटाले चुनावी हथियार बनकर रह गए हैं और उसके पास इनमें से किसी का भी मुकाबला करने का सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि जब तक तय समय सीमा के भीतर निष्पक्ष जांच के द्वारा इन घोटालों के बादलों पर से पर्दा नहीं उठाता, वो केवल चुनावों के दौरान विपक्षी दल की हिंसा के प्रतिउत्तर में गरजने के लिए सामने आते रहेंगे, बंगाल हो या बिहार या फिर कोई अन्य राज्य।
अगर बंगाल की ही बात करें तो एक तरफ चुनावों के पहले सामने आने वाले घोटालों से राज्य की मुख्यमंत्री और उनका कुनबा सवालों के घेरे में है। वहीं दूसरी तरफ जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वहाँ सत्तारूढ़ दल द्वारा सत्ता बचाने और भाजपा द्वारा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से दोनों दलों के बीच होने वाली राजनैतिक हिंसा के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।
लेकिन सत्ता बचाने और हासिल करने की इस उठापटक के बीच राजनैतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि आज का वोटर इतना नासमझ भी नहीं है जो इन घोटालों और हिंसा के बीच की रेखाओं को ना पढ़ सके। खास तौर पर तब जब इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान बोले जाने वाले “आर नोई अन्याय” (और नहीं अन्याय) या फिर “कृष्ण कृष्ण हरे हरे, पद्म (कमल) फूल खिले घरे घरे”, या बांग्ला “निजेर मेयकेई चाए” ( बंगाल अपनी बेटी को चाहता है) जैसे शब्द कभी “नारों” की दहलीज पार करके यथार्थ में परिवर्तित नहीं होते। इसलिए “लोकतंत्र” तो सही मायनों में तभी मजबूत होगा जब चुनावी मौसम में घोटाले सिर्फ सामने ही नहीं आएंगे बल्कि उसके असली दोषी सज़ा भी पाएंगे।
उत्तराखंड देश के उन सात राज्यों में शामिल हो गया है, जिसने केंद्र सरकार द्वारा ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों को लेकर तय किये गए मानकों को पूरा कर लिया है। सुधार प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उत्तराखंड ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तय किए गए सकल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) हानियों में कमी अथवा औसत आपूर्ति लागत और औसत राजस्व प्राप्ति (एसीएस-एआरआर) में अंतर को कम करने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल किया है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। वित्त मंत्रालय एटीएंड सी हानियों में कमी के राज्य के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.05 प्रतिशत के बराबर राशि और एसीएस-एआरआर में अंतर में कमी का लक्ष्य हासिल करने पर अतिरिक्त जीएसडीपी के 0.05 प्रतिशत राशि की अतिरिक्त उधारी लेने की राज्यों को अनुमति दे रहा है।
उत्तराखंड ने एटीएंडसी हानियों और एसीएस-एआरआर अंतर में कमी के दोनों लक्ष्यों को हासिल किया है। राज्य में एटीएंडसी हानियां 19.35 प्रतिशत के लक्ष्य के विरुद्ध 19.01 प्रतिशत कम हो गई हैं। एसीएस-एआरआर में अंतर राज्य में प्रति इकाई 0.40 के लक्ष्य के मुकाबले 0.36 रुपए प्रति यूनिट तक कम हो गया है।
उत्तराखंड के अलावा जिन अन्य राज्यों ने ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया पूरी की है, उनमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गोवा, कर्नाटक व राजस्थान शामिल हैं। इससे पूर्व उत्तराखंड देश के उन 15 राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधारों (Ease of doing business) को लेकर केंद्र द्वारा तय मानकों को पूरा कर दिखाया है।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी की वजह से संसाधन जुटाने की चुनौती को देखते हुए भारत सरकार ने पिछले वर्ष मई में राज्यों के लिए उधारी लेने की सीमा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी।
इस विशेष राशि में से आधी पूंजी यानी कि जीएसडीपी की एक प्रतिशत राशि जुटाने की अनुमति राज्य सरकारों को तब दी जा रही है, जब वे नागरिकों की सुविधा को लेकर केंद्र सरकार द्वारा तय मानकों कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने नागरिक केंद्रित चार सुधार कार्यक्रम चिन्हांकित किये हैं। इनमें एक देश, एक राशन कार्ड व्यवस्था लागू करना, कारोबार में सुगमता से जुड़े सुधार, शहरी स्थानीय निकाय/उपयोगिता सुविधाओं में सुधार और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार।