- राकेश सैन
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमान विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में हुए आंदोलन और केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार अधिनियम को लेकर पंजाब सहित उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में हो रहे किसान आंदोलन के बीच की समानता को उर्दू शायर फैज के शब्दों में यूं बयां किया जा सकता है कि – ‘वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था, वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।’
CAA में देश के किसी नागरिक का जिक्र न था, परंतु भ्रम फैलाने वालों ने इसे मुसलमानों का विरोधी बताया और लोगों को सड़कों पर उतार दिया। अब उसी तर्ज पर कृषि सुधार अधिनियम को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, इसमें न तो फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को समाप्त करने की बात कही गई है और न ही मंडी व्यवस्था खत्म करने की। परंतु इसके बावजूद आंदोलनकारी इस मुद्दे को जीवन मरण का प्रश्न बनाए हुए हैं। अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से ही पंजाब में चला आ रहा किसान आंदोलन बीच में मद्धम पड़ने के बाद किसानों के ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान के बाद फिर जोर पकड़ रहा है।
जैसी आशंका जताई जा रही थी वही हुआ, आंदोलन के चलते पिछले लगभग दो महीनों से परेशान लोगों की किसानों के अड़ियल रवैये से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। ज्यादातर जगहों पर किसानों को रोकने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं। लंबे जाम और किसानों के आक्रामक रुख को देखते हुए पुलिस ने ज्यादा सख्ती नहीं की और उन्हें आगे बढ़ने दिया। साफ सी बात है कि आने वाले दिनों में आम लोगों की परेशानी और बढ़ने वाली है, क्योंकि किसान पूरी तैयारी के साथ डटे हैं। उनकी संख्या भी हजारों में है। चाहे कुछ मार्गों पर रेल यातायात कुछ शुरू हुआ है, परंतु यह पूरी तरह बहाल नहीं हो पाया है। अब सड़क मार्ग भी बाधित होने के कारण समस्या और बढ़ गई है। इसके साथ ही सरकार और किसानों के बीच टकराव भी बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। किसानों को अलग-अलग राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है। चूंकि पंजाब में लगभग एक साल बाद विधानसभा चुनावों का बिगुल बज जाना है, इसलिए कोई भी इस आंदोलन का लाभ लेने से पीछे हटने के लिए तैयार दिखाई नहीं दे रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर जो विरोध हो रहा है, वह साधारण लोगों के लिए तो क्या कृषि विशेषज्ञों व प्रगतिशील किसानों के लिए भी समझ से बाहर की बात है। कुछ राजनीतिक दल व विघ्नसंतोषी शक्तियां अपने निजी स्वार्थों के लिए किसानों को भड़का कर न केवल अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, बल्कि वे खुद नहीं जानते कि ऐसा करके वह किसानों का कितना बड़ा नुक्सान करने जा रहे हैं। कितना हास्यास्पद है कि पंजाब के राजनीतिक दल उन्हीं कानूनों का विरोध कर रहे हैं जो राज्य में पहले से ही मौजूद हैं और उनकी ही सरकारों के समय में इन कानूनों को लागू किया गया था। इन कानूनों को लागू करते समय इन दलों ने इन्हें किसान हितैषी बताया था और आज वे किसानों के नाम पर ही इसका विरोध कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के इसी आक्रोश का राजनीतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से पंजाब विधानसभा में केंद्र के कृषि कानूनों को निरस्त भी कर चुके हैं और अपनी ओर से नए कानून भी पारित करवा चुके हैं। परंतु उनका यह दांवपेच असफल हो गया क्योंकि प्रदर्शनकारी किसानों ने पंजाब सरकार के कृषि कानूनों को भी अस्वीकार कर दिया है।
संघर्ष के पीछे की राजनीति समझने के लिए हमें वर्ष 2006 में जाना होगा। उस समय पंजाब में कांग्रेस सरकार ने कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट एमेंडमेंट एक्ट) के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी। कानून में निजी यार्डों को भी अनुमति मिली थी। किसानों को भी छूट दी गई कि वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है। साल 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसी प्रकार के कानून बनाने का वायदा किया था, जिसका वह आज विरोध कर रही है। अब चलते हैं साल 2013 में, जब राज्य में अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ की स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार सत्तारूढ़ थी। बादल सरकार ने इस दौरान अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग) की अनुमति देते हुए कानून बनाया। कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री स. सरदारा सिंह जौहल अब पूछते हैं कि अब जब केंद्र ने इन दोनों कानूनों को मिला कर नया कानून बनाया है तो कांग्रेस व अकाली दल इसका विरोध किस आधार पर कर रहे हैं।
पंजाब में चल रहे कथित किसान आंदोलन का संचालन ढाई दर्जन से अधिक किसान यूनियनें कर रही हैं। कहने को तो भारतीय किसान यूनियन किसानों का संगठन है, परंतु इनकी वामपंथी सोच जगजाहिर है। दिल्ली में चले शाहीन बाग आंदोलन में किसान यूनियन के लोग हिस्सा ले चुके हैं। किसान आंदोलन को भड़काने के लिए गीतकारों से जो गीत गवाए जा रहे हैं, उनकी भाषा विशुद्ध रूप से विषाक्त नक्सलवादी चाशनी से लिपटी हुई है। ऊपर से रही सही कसर खालिस्तानियों व कट्टरवादियों ने पूरी कर दी। प्रदेश में चल रहे कथित किसान आंदोलन में कई स्थानों पर खालिस्तान को लेकर भी नारेबाजी हो चुकी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक नहीं, बल्कि भारी संख्या में पेज ऐसे चल रहे हैं जो इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ कर देख रहे हैं और युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं।
सच्चाई तो यह है कि केंद्र के नए कृषि अधिनियम अंतत: किसानों के लिए लाभकारी साबित होने वाले हैं। इनके अंतर्गत ऑनलाइन मार्केट भी लाई गई है, जिसमें किसान अपनी फसल को इसके माध्यम से कहीं भी अपनी इच्छा से बेच सकेगा। इस कानून में राज्य सरकारों को भी अनुमति दी गई है कि वह सोसायटी बना कर माल की खरीददारी कर सकती हैं और आगे बेच भी सकती हैं। नए कानून के अनुसार, किसानों व खरीददारों में कोई झगड़ा होता है तो उपमंडल अधिकारी को एक निश्चित अवधि में इसका निपटारा करवाना होगा। इससे किसान अदालतों के चक्कर काटने से बचेगा। हैरत की बात यह है कि किसानों को नए कानून के लाभ के बारे में कोई भी नहीं जानकारी दे रहा। एक और हैरान करने वाला तथ्य है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में पंजाब में धान की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर की है। परंतु इसके बावजूद MSP को लेकर प्रदर्शनकारियों में धुंधलका छंटने का नाम नहीं ले रहा और उन बातों को लेकर विरोध हो रहा है, जिनका जिक्र तक नए कृषि कानूनों में नहीं है। (विश्व संवाद केंद्र)
केंद्र सरकार ने कोविड प्रबंधन में सहयोग के लिए उत्तर प्रदेश, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में उच्च स्तरीय केंद्रीय दलों की तैनाती का फैसला किया है। इन राज्यों में सक्रिय मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यानी उन लोगों की संख्या बढ़ रही है जो बीमारी की वजह से अस्पतालों में भर्ती हैं या जो चिकित्सा निगरानी में घर में अलग-थलग रखे गए हैं, या हर दिन कोविड संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
ये तीन सदस्यीय दल उन जिलों का दौरा करेंगे जहां कोविड के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। केंद्रीय दल महामारी की रोकथाम, निगरानी, जांच व नियंत्रण उपायों और संक्रमण के मामलों के कुशल नैदानिक प्रबंधन की दिशा में राज्य के प्रयासों में मदद करेंगे। केंद्रीय दल राज्यों का, समय पर बीमारी की पहचान और उसके बाद के इलाज से संबंधित चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने में भी मार्गदर्शन करेंगे।
इससे पहले केंद्र सरकार ने हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मणिपुर, और छत्तीसगढ़ में उच्च स्तरीय दल भेजे थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा रविवार को जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 24 घंटे में कोविड संक्रमण के 45,209 नये मामले सामने आए हैं। दिल्ली में सर्वाधिक 5,879 मामले सामने आए। इसके बाद केरल व महाराष्ट्र में क्रमशः 5,772 और 5,760 मामले दर्ज किए गए।
पिछले 24 घंटे में देश में 501 लोगों की कोविड से मौत हुई। कोविड से मौत के नए मामलों में से 22.16 प्रतिशत मामले अकेले दिल्ली के हैं, जहां बीमारी से 111 लोग मृत्यु के शिकार हुए। महाराष्ट्र में यह संख्या 62 व पश्चिम बंगाल में 53 दर्ज की गई।
सुकून की बात यह है कि देश में कोविड के कुल मामलों में सक्रिय मामलों (4,40,962) का प्रतिशत गिरकर 4.85 हो गया और यह पांच प्रतिशत के स्तर से नीचे बना हुआ है। बीमारी से उबरने की दर में भी सुधार आया है और आज यह 93.69 प्रतिशत हो गया। पिछले 24 घंटे में 43,493 लोग कोविड से उबरे हैं, जिसके साथ बीमारी से ठीक होने वाले लोगों की कुल संख्या बढ़कर 85,21,617 हो गयी।
बीमारी से उबरने के मामलों और सक्रिय मामलों के बीच का अंतर तेजी से बढ़ रहा है और इस समय यह 80,80,655 है। 26 राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में इस समय 20,000 से कम सक्रिय मामले हैं। सात राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में सक्रिय मामलों की संख्या 20,000 से 50,000 के बीच है, जबकि महाराष्ट्र व केरल में यह संख्या 50,000 से ज्यादा है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान (Aatma Nirbhar Bharat Abhiyan) के अंतर्गत केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों से 41 अधिसूचित फलों और सब्जियों को देश में किसी भी स्थान पर पहुंचाने के लिए हवाई परिवहन पर 50 प्रतिशत सब्सिडी देने की घोषणा की है। इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है।
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industries) ने जानकारी दी है कि यह सब्सिडी ऑपरेशन ग्रीन्स स्कीम – टॉप टू टोटल (Operation Greens Scheme TOP to TOTAL) के तहत दी जाएगी। एयरलाइंस कम्पनियां अब आपूर्तिकर्ता , माल भेजने वाले, माल प्राप्तकर्ता व एजेंट से ढुलाई का 50 प्रतिशत किराया ही लेंगी और शेष 50 प्रतिशत धनराशि के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के समक्ष दावा पेश करेंगी।
ऑपरेशन ग्रीन्स – टॉप टू टोटल योजना के अंतर्गत चिह्नित हवाई अड्डों से हवाई कंपनियों के माध्यम से परिवहन के लिए अधिसूचित फलों और सब्जियों की सभी खेप, चाहे जो भी मात्रा हो और कीमत हो, इसके बावजूद 50 प्रतिशत माल भाड़ा सब्सिडी के लिए पात्र होगा।
ऑपरेशन ग्रीन्स योजना के तहत परिवहन सब्सिडी को इससे पहले किसान रेल योजना के लिए शुरू किया गया था। यह सुविधा पिछले अक्टूबर माह में शुरू हुई थी। रेलवे अधिसूचित फल और सब्जियों पर केवल 50 प्रतिशत भाड़ा ही लेता है।
इन फसलों के हवाई परिवहन में मिलेगी सब्सिडी
फल :- आम, केला, अमरूद, कीवी, लीची, मौसम्बी, संतरा, किन्नु, नींबू, पपीता, अनानास, अनार, कटहल, सेब, बादाम, आंवला, पैशन फ्रूट, नाशपाती, शकरकंद, चीकू।
सब्जियां : – फ्रेंच बीन्स, करेला, बैंगन, शिमला मिर्च, गाजर, फूलगोभी, मिर्च (हरी), ओकरा, ककड़ी, मटर, लहसुन, प्याज, आलू, टमाटर, बड़ी इलायची, कद्दू, अदरक, गोभी, स्क्वैश और हल्दी (सूखी)
इन हवाई अड्डों से मिलेगी छूट
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख के सभी हवाई अड्डे। पूर्वोत्तर से अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम (बागडोगरा) और त्रिपुरा के सभी हवाई अड्डे।
बात-बेबात के मुद्दों को लेकर हो-हल्ला मचाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता व स्वराज पार्टी के नेता प्रशांत भूषण गैंग को गुरुवार को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। उच्चतम न्यायालय ने कुछ पूर्व अधिकारियों की तरफ से प्रशांत भूषण के माध्यम से दाखिल एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में केंद्र सरकार पर समय रहते लॉकडाउन लागू नहीं किए जाने और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के आयोजन के दौरान कोविड-19 के मानकों का ध्यान नहीं रखे जाने के आरोप लगाए गए थे और इसकी जांच के लिए एक आयोग गठित करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। यह मुद्दे सार्वजनिक बहस के हो सकते हैं। मगर अदालत की बहस के नहीं। 6 पूर्व अधिकारियों की ओर से दायर की गई इस याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार कोविड-19 के प्रबन्धन में पूरी तरह असफल रही। सरकार के पास लॉकडाउन को लेकर कोई योजना नहीं थी। सरकार कोरोना महामारी को रोकने में नाकाम साबित हुई है। अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है।
याचिका में कहा गया कि नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के दौरान लाखों लोग एक साथ एकत्र हुए थे। जबकि उससे पहले गृह मंत्रालय एडवाइजरी जारी कर चुका था कि बड़ी संख्या में लोग एक जगह एकत्र ना हों। याचिका में मांग की गई कि इन मुद्दों की जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच आयोग गठित किया जाए। मगर न्यायालय प्रशांत भूषण के तर्कों से सहमत नहीं हुआ और याचिका को खारिज कर दिया।
भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मानवधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया’ के रुख और बयान को दुर्भाग्यपूर्ण, अतिश्योक्तिपूर्ण और सच्चाई से परे बताया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि संगठन द्वारा मानवीय कार्य और सत्य की ताकत को लेकर की जा रही बयानबाजी सिर्फ अपनी गतिविधियों से ध्यान हटाने की चाल है। मंत्रालय ने कहा कि संगठन स्पष्ट रूप से भारतीय कानूनों की अवहेलना में लिप्त रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा पिछले कुछ वर्षों में बरती गईं अनियमितताओं और अवैध कार्यों की कई एजेंसियां जांच कर रही हैं। ऐसे बयान देकर वह जांच को प्रभावित करने के प्रयास भी कर रहा है।
घरेलू मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार शाम को बयान जारी कर कहा कि संगठन भारत में मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है, जिस तरह से अन्य संगठन कर रहे हैं। भारत के कानून विदेशी चंदे से वित्त पोषित संस्थाओं को घरेलू राजनीतिक बहस में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देते हैं। यह कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और इसी तरह एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी लागू होगा।
कई बार आवेदन के बावजूद FCRA की अनुमति नहीं
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contribution (Regulation) Act, FCRA) के अंतर्गत सिर्फ एक बार और वह भी 20 साल पहले दिसंबर, 2000 में स्वीकृति दी गई थी। तब से अभी तक एमनेस्टी इंटरनेशनल के कई बार आवेदन करने के बावजूद पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा FCRA स्वीकृति से इनकार किया जाता रहा है, क्योंकि कानून के तहत वह इस स्वीकृति को हासिल करने के लिए पात्र नहीं है। एमनेस्टी के प्रति अलग-अलग सरकारों का यह कानूनी दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि अपने कामकाज के लिए पैंसा हासिल करने की उसकी प्रक्रिया संदिग्ध है।
गैर कानूनी तरीके से हासिल किया विदेशी फंड
केंद्र सरकार के अनुसार FCRA नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी यूके ने भारत में पंजीकृत चार संस्थाओं को बड़ी मात्रा में धनराशि भेजी और इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में दिखाया गया। इसके अलावा एमनेस्टी इंडिया को FCRA के तहत गृह मंत्रालय की मंजूरी के बिना बड़ी मात्रा में विदेशी धन प्रेषित किया गया। गलत रास्ते से धन भेज कर कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया।
केंद्र सरकार के प्रति अभूतपूर्व भरोसा
गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत मुक्त प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और जीवंत घरेलू बहस के साथ संपन्न और बहुलतावादी लोकतांत्रिक संस्कृति वाला देश है। भारत के लोगों ने वर्तमान सरकार में अभूतपूर्व भरोसा दिखाया है। गृह मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कानूनों के पालन करने में विफल रहने के बाद एमनेस्टी को भारत के लोकतांत्रिक और बहुलतावादी स्वभाव पर टिप्पणियां करने का अधिकार नहीं मिल जाता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में बंद किया कामकाज
इससे पहले, एमनेस्टी इंटरनेशनल की भारत स्थित इकाई ने मंगलवार सुबह अपनी वेबसाइट पर एक बयान जारी कर बताया कि उसने देश में अपना कामकाज रोक दिया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा कि भारत सरकार द्वारा एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खातों को पूरी तरह से फ्रीज कर दिया गया है, जिसकी जानकारी 10 सितंबर 2020 को हुई। इससे संगठन द्वारा किए जा रहे सभी काम पूरी तरह से ठप हो गए हैं। एमनेस्टी ने इसे सरकार की ओर बदले की कार्रवाई बताया और कहा कि सरकार उसके पीछे पड़ गई है। उसने दावा किया कि उसके द्वारा सरकार के काम-काज में पारदर्शिता के लिए आवाज उठाई गई। लिहाजा, सरकार उसे प्रताड़ित कर रही है।
क्या है एमनेस्टी इंटरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है। यह विश्व भर में मानवधिकारों के लिए काम करता है। संगठन के घोषित उद्देश्यों में इसे मानवधिकारों पर अनुसंधान करने और उन लोगों के लिए न्याय की मांग करने वाला बताया गया है, जिनके अधिकारों का हनन किया जा रहा हो। भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल का पंजीकृत कार्यालय बंगलुरु में स्थित है।
विवादों से नाता
एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत में कई बार विवादों के घेरे में रहा है। जैसा कि गृह मंत्रालय के बयान में भी संगठन पर अवैध गतिविधियों में संलिप्त रहने की बात कही गई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल तब काफी चर्चाओं में रहा था, जब वर्ष 2019 में उसने अमरीका की विदेश मामलों की एक समिति के सामने दक्षिण एशिया ख़ास कर जम्मू-कश्मीर पर केंद्रित अपनी एक रिपोर्ट को रखा था। तब उस पर देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा था। कश्मीर में धारा-370 की समाप्ति के बाद संगठन ने वहां मानवधिकारों के हनन की बात कही। यही नहीं इस वर्ष फरवरी में CAA के विरोध में दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों को लेकर भी एमनेस्टी की रिपोर्ट विवादों में रही।
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी हुई कार्रवाई
विदेशी फंडिंग हासिल करने के मामले में इस संगठन के विरुद्ध केंद्र सरकार की कई एजेंसियां जांच कर रही हैं। वर्ष 2009 में डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी संगठन पर कार्रवाई हुई थी। तब भी उसने अपना कामकाज बंद कर दिया था। एमनेस्टी पर जब भी सरकार कोई कार्रवाई करती है तो वह सरकार पर आरोप लगाती है। उसका आरोप होता है कि सरकार मानवधिकारों की आवाज को कुचलना चाहती है।
केंद्र सरकार ने जूता व चमड़ा उद्योग के विकास के लिए जूता एवं चमड़ा उद्योग विकास परिषद (Development Council for Footwear and Leather Industry, DCFLI)का गठन किया है। एक्शन शूज के प्रबंध निदेशक राज कुमार गुप्ता को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन आने वाले उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी की है।
24 सदस्यीय इस परिषद में गुप्ता के अलावा रिलेक्सो फुटवियर के प्रबंध निदेशक रमेश कुमार दुआ, लखानी अरमान ग्रुप के चेयरमैन किशन चंद लखानी, वीकेसी ग्रुप के वी.नौशाद, बाटा इंडिया के सीईओ संदीप कटारिया, टाटा इंटरनेशनल के लेदर प्रोडक्ट हेड वी.मुथुकु मारन, एयरो ग्रुप (वुडलैंड्स) के प्रबंध निदेशक हरकीरत सिंह समेत चमड़ा उद्योग से जुड़े विभिन्न संगठनों को शामिल किया गया है। इनका कार्यकाल 2 वर्ष का होगा।
मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया है कि फुटवियर एवं चमड़ा उद्योग विकास परिषद की स्थापना भारत में व्यापक श्रम आधारित फुटवियर एवं चमड़ा क्षेत्र के विकास के लिए विभिन्न उपाय करने के लिए की गई है। परिषद घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास करेगी। साथ ही भविष्य की दृष्टि से भारत में उच्च गुणवत्ता वाले विश्वस्तरीय जूते व चमड़े के उत्पादों के विकास, डिजाइनिंग एवं विनिर्माण में काफी सक्रिय भूमिका निभाएगी।