अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ ने बुधवार को विश्व के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची जारी की। इस सूची से टाइम पत्रिका फिर विवादों में आ गई है। टाइम की सूची से हिन्दुओं के प्रति उसकी पक्षपाती व विद्वेषपूर्ण भावना एक बार फिर उजागर हुई है। साथ ही पत्रिका ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के जनमानस ने भले ही नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत के साथ दुबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया हो। मगर उसके लिए इन बातों का जरा भी महत्व नहीं है और अपने वह अपने मोदी विरोधी एजेंडें से बाज नहीं आ सकती है।
टाइम ने वर्ष 2020 के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में विश्व भर के लगभग दो दर्जन नेताओं को स्थान दिया है। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल जैसे शक्तिशाली नेताओं के नाम शामिल हैं। पत्रिका ने मोदी का नाम प्रभावशाली राजनेताओं वाली श्रेणी में शामिल तो कर दिया। मगर उसके साथ जो टिप्पणी लिखी, वो बेहद ही असयंमित व पूर्वाग्रहों से ग्रसित है। टिप्पणी देख कर यह लगता है कि पत्रिका ने मोदी का नाम इस सूची में केवल और केवल अपनी साख बचाने के उद्देश्य से शामिल किया है।
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यह तथ्य तो टाइम भी जानती है कि मोदी वास्तव में विश्व के सर्वाधिक चर्चित व प्रभावी राजनेता हैं। लोकप्रियता के मामलों में वे विश्व के कई शक्तिशाली देशों के राजनेताओं से बहुत आगे दिखते हैं। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में आजादी के बाद मोदी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जो प्रचंड बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आए हैं। मोदी ने अपनी कार्यप्रणाली और व्यक्तित्व के बल पर आम जनमानस में सरकार के प्रति एक विश्वास की भावना कायम की है और भारतीय राजनीति को विकासवादी सोच दी है।
लिहाजा, टाइम पत्रिका इन तथ्यों की अनदेखी नहीं कर सकती थी और अपनी सूची में मोदी का नाम शामिल न कर पाना उसके लिए नामुमकिन था। मगर मजबूरी में सही मोदी का नाम सूची में शामिल करने के बावजूद पत्रिका अपने छद्म एजेंडे अथवा सीधे शब्दों में कहे तो धूर्तता को छिपा नहीं सकी। पत्रिका ने मोदी पर निशाना साधने के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र का भी मजाक उड़ाने का प्रयास किया है।
मोदी के बारे में विवरण देते हुए टाइम मैगजीन के एडिटर कार्ल विक ने लिखा है कि – लोकतंत्र के लिए सबसे जरूरी स्वतंत्र चुनाव नहीं है। इसमें केवल यह पता चलता है कि किसे सबसे अधिक वोट मिला है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण उन लोगों का अधिकार है, जिन्होंने विजेता के लिए वोट नहीं दिया। भारत 7 दशकों से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र रहा है। भारत की 130 करोड़ की आबादी में ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं। भारत में सभी मिल जुलकर रहते हैं, जिसकी तारीफ दलाई लामा ने सद्भाव और स्थिरता के उदाहरण के रूप में की थी।
कार्ल विक ने आगे लिखा है कि – नरेंद्र मोदी ने इन सभी को संदेह में ला दिया है। भारत के ज्यादातर प्रधानमंत्री करीब 80 फीसदी आबादी वाले हिंदू समुदाय से आए हैं। मगर केवल मोदी ही ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसे शासन किया जैसे उनके लिए बाकियों की परवाह नहीं। नरेंद्र मोदी सशक्तिकरण के लोकप्रिय वादे के साथ सत्ता में आए। उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने ना केवल उत्कृष्टता को, बल्कि बहुलतावाद को भी खारिज कर दिया। विशेष तौर पर भारत के मुसलमानों को टारगेट किया गया।
अपने को मानवधिकारों का प्रवक्ता बताने वाली टाइम पत्रिका के इरादे बेनकाब करने के लिए उसके संपादक की यह टिप्पणी पर्याप्त है, जिसमें वह कहते हैं कि – महामारी का संकट अहसमति का गला घोंटने का बहाना बन गया और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र गहरे अंधेरे में घिर गया है। संपादक की इस टिप्पणी का अर्थ समझने में शायद ही किसी को कोई कठिनाई होगी। टाइम पत्रिका का संकेत नागरिकता संशोधन कानून (CAA ) के विरोध में शाहीन बाग में चलने वाले आंदोलन की ओर था, जिसे कोरोना महामारी के चलते जैसे-तैसे समाप्त कराया गया। टाइम पत्रिका के अर्थों में कहा जाए तो कोरोना महामारी के कारण समाप्त कराये गए इस आंदोलन से लोकतंत्र का गला घोंटा गया।
प्रधानमंत्री मोदी को लेकर की गई टिप्पणी के पीछे छिपी टाइम की कुत्सित मानसिकता उसकी इसी सूची ने उजागर करके रख दी। टाइम ने जहां एक ओर राजनेताओं की श्रेणी में मोदी को शामिल किया, तो दूसरी तरफ उसने आइकॉन की श्रेणी में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग में हुए आंदोलन से जुड़ी रहीं 82 साल की बिल्किस बानो को रखा है। शायद टाइम की संपादकीय टीम को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि इससे उनकी चालाकी पकड़ी जाएगी और उनकी वास्तविकता उजागर हो जाएगी।
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टाइम पत्रिका ने अपने नकारात्मक एजेंडे को आंख मूंद कर आगे बढ़ाया। उसने बिल्किस बानो के बारे में विवरण लिखने की जिम्मेदारी महिला पत्रकार राणा अय्यूब को दी। राणा अय्यूब पत्रकारिता और ट्वीटर पर हिन्दू विरोधी प्रोपेगेंडा चलाने के लिए कुख्यात है। बिल्किस के विवरण में राणा लिखती हैं – वो एक ऐसे देश में प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं, जहां मोदी शासन में बहुमत की राजनीति द्वारा महिलाओं और अल्पसंख्यकों की आवाज़ों को व्यवस्थित रूप से बाहर किया जा रहा था। बिल्किस ने उन कार्यकर्ताओं और छात्र नेताओं को आशा और शक्ति दी, जो अलोकप्रिय सत्य के लिए देश भर में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध को प्रेरित थे।
अब इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि टाइम पत्रिका किस दुर्भावना से ग्रसित है। पत्रिका उस शाहीन बाग की एक आंदोलनकारी को आइकॉन बता रहा है, जिस जगह देश के लोकतंत्र को गिरवी रख दिया गया था। जहां टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे और भारत विरोधी साजिश रच रहे थे। टाइम उन आंदोलनकारियों को प्रतिष्ठा देने का दुष्प्रयास कर रही है, जिन्होंने आंदोलन के नाम पर दिल्ली के एक इलाके पर कई महीनों तक कब्जा किए रखा। पत्रिका उन आंदोलनकारियों के महिमा-मंडन में जुटी हुई है, जिन्होंने सुनियोजित तरीके से दिल्ली को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंक दिया था और कई निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
बहरहाल, इस बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है कि टाइम ने प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में क्या टिप्पणी की है ? टाइम एक बार पहले मोदी के विरुद्ध कवर स्टोरी छाप चुका है, जिसे लन्दन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के एक पत्रकार ने लिखा था। बावजूद इसके मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और भी प्रभावशाली राजनेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। यही कारण है कि टाइम मैगजीन को मोदी विरोधी एजेंडा चलाने के बाद भी कई बार विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची में उनको शामिल करना पड़ा है।