नई दिल्ली। अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के भाषणों का संकलन यशस्वी भारत का लोकार्पण जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी ने किया। इस अवसर पर संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि अब भारत पुन: अंगड़ाई ले रहा है और अपनी खोई अस्मिता व प्रतिष्ठा अर्जित करने के पथ पर अग्रसर है।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हमें संपन्न, सामर्थ्यवान, शक्तिशाली तो बनना है, लेकिन इससे आगे भारत को यशस्वी बनना है। उन्होंने कहा कि यश तब आता है, जब कोई परमार्थ करता है। प्राचीन भारत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम 18वीं शताब्दी तक दुनिया की आर्थिक महाशक्ति थे, शक्तिशाली भी थे। लेकिन हमारी प्रतिष्ठा सर्वे भवन्तु सुखिनः की हमारी नीति और सभी को ईश्वर का अंश मानने के हमारे भाव के कारण थी।
उन्होंने मिस्र, बेबीलोन, स्पार्टा आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि बर्बर, हिंसक और क्रूर सभ्यताएं सौम्य सभ्यताओं का नाश कर देती हैं। उन्होंने कहा कि हमने कोई हजार वर्षों तक ऐसे आक्रमणों से स्वयं को भी बचाया और धर्म की भी रक्षा की। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत के सभी उद्बोधनों का मूल स्वर यही है कि कैसे हम सब भारतीय जाति-धर्म-भाषा के भेद मिटाकर भारत की यशस्विता और सर्वांगीण समेकित विकास में सहभागी बन सकें। हम अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करें जब भारत ‘विश्वगुरु’ था और एक नायक की भांति विश्व का नेतृत्व करता था। अब भारत पुन: अंगड़ाई ले रहा है और अपनी खोई अस्मिता व प्रतिष्ठा अर्जित करने के पथ पर अग्रसर है।
स्वामी अवधेशानंद गिरी ने कहा कि स्थितियां बदल रही हैं। जाति की जकड़, स्त्रियों की स्थिति, समाज के चिंतन में बदलाव आया है। संन्यास परंपरा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अब तथाकथित छोटी जातियों से भी संन्यासी बन रहे हैं और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है। हिन्दू दूसरों का धर्म परिवर्तन नहीं कराते। कोरोना काल में दुनिया में जितने लोगों ने योग, आयुर्वेद और दूसरी भारतीय पद्धतियां अपनाईं, उससे भारतीय विचार का पूरे विश्व में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है। मोहन भागवत के चिंतनपरक उद्बोधनों में भारत के स्वर्णिम भविष्य के निर्माण का मार्ग है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भारत के पूर्व नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) राजीव महर्षि ने भी हिन्दू कौन विषय को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि संघ और सरसंघचालक मोहन भागवत के चिंतन में सदैव ‘राष्ट्र’ रहता है और इसीलिए इस वैश्विक संगठन की स्वीकार्यता समाज में निरंतर बढ़ रही है।
पुस्तक में सरसंघचालक मोहन भागवत के अलग-अलग अवसरों पर दिए गए 17 भाषणों का संकलन है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित 286 पृष्ठों की पुस्तक का संपादन लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर ने किया है। पुस्तक की प्रस्तावना संघ के पूर्व अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, प्रखर चिंतक-विचारक एमजी वैद्य ने लिखी है।प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार व प्रभात कुमार ने उपस्थित अभ्यागतों का स्वागत किया।
वरिष्ठ पत्रकार, हिन्दुत्व के भाष्यकार, चिंतक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता माधव गोविंद वैद्य (बाबू राव वैद्य) का शनिवार को महाराष्ट्र के नागपुर में निधन हो गया। वे 97 वर्ष के थे। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे, और अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था।
वैद्य के पुत्र व RSS के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने ट्वीट कर उनके निधन की जानकारी दी। उनका अंतिम संस्कार रविवार को होगा। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, RSS के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत, सरकार्यवाह सुरेश (भय्या) जोशी, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा समेत तमाम लोगों ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
माधव गोविंद वैद्य का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले की तरोड़ा तहसील में 11 मार्च, 1923 को हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा तरोडा व माध्यमिक शिक्षा नील सिटी हाई स्कूल, नागपुर से पूर्ण की। नागपुर के मॉरिस कॉलेज से महाविद्यालयी शिक्षा प्रथम श्रेणी में पूरी की और शिक्षण कार्य से जुड़ गए।
संस्कृत के ख्यात शिक्षक जो अनूठी शिक्षण शैली और विषय पर पकड़ के कारण न केवल छात्रों, अपितु विरोधी विचारधारा के लोगों में भी लोकप्रिय रहे। वर्ष 1966 में संघ की योजना के तहत नौकरी छोड़ दैनिक तरुण भारत, नागपुर से जुड़े। समाचार चयन की तीक्ष्ण दृष्टि और गहरी वैचारिक स्पष्टता के कारण पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। कालांतर में इसका प्रकाशन करने वाले नरकेसरी प्रकाशन का नेतृत्व किया।
कुछ वर्षों बाद वैद्य ने पत्रकारिता से राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण किया। वर्ष 1978 से 1984 तक वे महाराष्ट्र विधान परिषद् के लिए मनोनीत किये गए। वे RSS में अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, अखिल भारतीय प्रवक्ता, तथा वर्ष 2008 तक अ. भा. कार्यकारी मंडल के निमंत्रित सदस्य रहे। वैद्य संघ शोधकों, सत्यशोधकों और विरोधी विचारधाराओं के जिज्ञासा समाधान के लिए हमेशा तत्पर और उपलब्ध रहे।
उन्होंने वैचारिक अधिष्ठान प्रदान करने वाली अनेक पुस्तकों का लेखन किया। उन्हें महाराष्ट्र सरकार का ‘महाकवि कालिदास संस्कृत साधना पुरस्कार’, राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय का ‘राष्ट्रसन्त तुकडोजी जीवन गौरव पुरस्कार’ सहित दर्जन भर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।