सेना का हेलीकॉप्टर क्रैश, 11 लोगों की मौत,सीडीएस बिपिन रावत भी थे सवार..
उत्तराखंड: तमिलनाडु से एक बड़ी खबर सामने आई है। यहां सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत को ले जा रहा एक हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। विमान हादसे में 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इस विमान में सीडीएस बिपिन रावत व उनकी पत्नी समेत 14 लोग सवार थे। इस बीच एक बड़ी खबर आ रही है कि देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह संसद में बयान देने वाले हैं। रक्षामंत्री क्या बान देंगे, इस पर देशभर की निगाहें टिकी हैं। पूरा देश इस वक्त जनरल बिपिन रावत और हेलीकॉप्टर में सवार सभी लोगों की सलामती की दुआ कर रहा है। बड़े नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
हेलिकॉप्टर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत, ब्रिगेडियर एल एस लिडेर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, एन के गुरसेवक सिंह, एनके जितेंद्र कुमार, L/NK विवेक कुमार, L/NK बी साय तेजा, हवलदार सतपाल सवार थे।खबर है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए थे। इसके बाद वो दिल्ली लौट रहे थे। इस दौरान एयरफोर्स का एमआई17-वी5 हेलिकॉप्टर नीलगिरी के जंगलों में क्रैश कर गया।
- डॉ नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जहां पुडुचेरी, केरल और तमिलनाडु में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होंगे, वहीं पश्चिम बंगाल में आठ चरणों तो असम के लिए तीन चरणों में चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया है। भारत केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश नहीं है अपितु सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी वो अपार विविधता को अपने भीतर समेटे है। एक ओर खान-पान, बोली-भाषा एवं धार्मिक मान्यताओं की यह विविधता इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा खूबसूरत बनाती हैं। तो दूसरी ओर यही विविधता इस देश की राजनीति को जटिल और पेचीदा भी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति की दिशा में धीरे धीरे किंतु स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है।
तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ-सबका विकास और वोट बैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे। इतिहास में अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज़ादी के बाद देश के सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प मौजूद नहीं था। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने लगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत होते गए। लेकिन ये दल क्षेत्रीय ही बने रहे। अपने क्षेत्रों से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने में कामयाब नहीं हो पाए।
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि समय के साथ ये दल अपने अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनने में अवश्य कामयाब हो गए। आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं आम चुनावों में कांग्रेस की स्थिति का आंकलन इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वो लगातार दो बार से अपने इतने प्रतिनिधियों को भी लोकसभा में नहीं पहुंचा पा रही कि सदन को नेता प्रतिपक्ष दे पाए। उसे चुनौती मिल रही है एक ऐसी पार्टी से जो अपनी उत्पत्ति के समय से ही तथाकथित सेक्युलर सोच वाले दलों ही नहीं वोटरों के लिए भी राजनैतिक रूप से अछूत बनी रही।
1980 में अपनी स्थापना ,1984 आम चुनावों में में मात्र दो सीटों पर विजय, फिर 1999 में एक वोट से सरकार गिरने से लेकर 2019 लोकसभा में 303 सीटों तक का सफर तय करने में बीजेपी ने जितना लम्बा सफर तय किया है उससे कहीं अधिक लम्बी रेखा अन्य दलों के लिए खींच दी है। क्योंकि आज वो पूर्ण बहुमत के साथ केवल केंद्र तक सीमित नहीं है बल्कि लगभग 17 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। वो दल जो केवल हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित था, आज वो असम में अपनी सरकार बचाने के लिए मैदान में है, केरल तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्यों में अपनी जड़ें जमा रहा है तो पश्चिम बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल है।
असम की अगर बात करें तो घुसपैठ से परेशान स्थानीय लोगों की वर्षो से लंबित एनआरसी की मांग को लागू करना, बोडोलैंड समझौता, बोडो को असम की ऑफिशियल भाषा में शामिल करना, डॉ भूपेंद्र हज़ारिका सेतु, बोगिबिल ब्रिज, सरायघाट ब्रिज जैसे निर्माणों से असम को नार्थ ईस्ट के अलग अलग हिस्सों से जोड़ना। कालीबाड़ी घाट से जोहराट का पुल और धुबरी से मेघालय में फुलबारी तक पुल जो असम और मेघालय की सड़क मार्ग की करीब ढाई सौ किमी की वर्तमान दूरी को मात्र 19 से 20 किमी तक कर देगा जैसे विकास कार्यों के साथ भाजपा की वर्तमान सरकार जनता के सामने है। वहीं अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्षरत कांग्रेस ने अपने पुराने तर्ज़ पर ही चलते हुए,सत्ता में आने पर सीएए को निरस्त करना, सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देना, राज्य की हर महिला को 2000 रूपए प्रति माह देना और 5 लाख नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं।
बंगाल की बात करें तो यहां लगभग 34 वर्षों तक शासन करने वाली लेफ्ट और 20 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस दोनों ही रेस से बाहर हैं। विगत दो बार से सत्ता पर काबिज़ तृणमूल का एकमात्र मुख्य मुकाबला भाजपा से है। उस भाजपा से जिसका 2011 के विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुला था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी ने वाम का 34 साल पुराना किला ढहाया था, आज उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा ने उसी हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।
केरल में लेफ्ट और कांग्रेस आमने सामने हैं। यह अलग बात है कि अन्य राज्यों में लेफ्ट उसकी सहयोगी होती है। अभी तक ऐसा देखा गया है कि हर पांच साल में दोनों बारी-बारी से सत्ता में आते हैं। इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसकी सत्ता में वापसी हो सकती है। चुनाव परिणाम क्या आएंगे, यह तो समय ही बताएगा लेकिन चूंकि राहुल गांधी केरल से लोकसभा पहुंचे हैं तो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए केरल की जीत मायने रखती है। भाजपा की अगर बात करें तो 2011 में उसे केरल विधानसभा में मात्र एक सीट मिली थी और इस बार वो मेट्रोमैन ई.श्रीधरन की छवि और अपने विकास के वादे के साथ मैदान में है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतरी लेफ्ट ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए चुनावों से पहले सबरीमाला से जुड़े सभी केसों को वापस लेने का फैसला लिया है। जाहिर है गैर हिंदी भाषी केरल में भाजपा वर्तमान में अवश्य अपनी जमीन तलाश रही है लेकिन उसकी निगाहें भविष्य पर हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और लेफ्ट भले ही केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन दोनों का ही मुख्य मुकाबला भाजपा से है।
पुड्डुचेरी में कांग्रेस सरकार चुनावों से ऐन पहले गिर गई। यह दक्षिण में कांग्रेस की आखिरी सरकार थी। यहां भी भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दा है। राहुल गांधी के पुड्डुचेरी दौरे पर एक महिला की शिकायत का मुख्यमंत्री द्वारा गलत अनुवाद करने का वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था और पुड्डुचेरी सरकार की हकीकत बताने के लिए काफी था। हालांकि यहां भी भाजपा का अबतक कोई वजूद नहीं था लेकिन आज वो मुख्य विपक्षी दल है।
तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहां हिंदी भाषी नेता जनता को आकर्षित नहीं करते। लेकिन ऐसा 40 सालों में पहली बार होगा जब यहां चुनाव दो दिग्गज जयललिता और करुणानिधि के बिना होने जा रहे हैं। जयललिता छः बार और करुणानिधि पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी टक्कर एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही है। डीएमके और कांग्रेस यहां मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा एआइएडीएमके के साथ गठबंधन में है। जयललिता या करुणानिधि जैसे चेहरे के अभाव में जनता किस को चुनती है यह तो समय बताएगा। तमिलनाडु के चुनावी मुद्दों की बात करें तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा भाषा का होता है। दरअसल, तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। राहुल गांधी ने अपने हाल के दौरे में लोगों को भरोसा दिलाया कि तमिल यहां की पहली भाषा होगी। उन पर अन्य कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि उनमें एक कमी यह रह गई कि वो तमिल भाषा नहीं सीख पाए।
कहा जा सकता है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जहां कभी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था आज भाजपा वहां सबसे मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में इन राज्यों के चुनाव परिणाम ना सिर्फ इन राजनैतिक दलों का भविष्य तय करेंगे बल्कि काफी हद तक देश की राजनीति का भी भविष्य तय करेंगे।
तमिलनाडु के रहने वाले ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरन एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार वे आयकर विभाग की छापेमारी के कारण चर्चाओं हैं। अपनी प्रार्थनाओं के बल पर दूसरों के कष्ट दूर करने वाले दिनाकरन आयकर विभाग द्वारा शिकंजा कसे जाने से खुद संकट में आ गए हैं। आयकर विभाग ने तमिलनाडु में पॉल के 25 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर 118 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति का पता लगाया है। छापेमारी में साढ़े चार किलो सोना भी बरामद किया गया है।
आयकर विभाग ने उनकी संस्था जीसस कॉल्स (Jesus Calls) को लेकर चेन्नई और कोयंबटूर में सर्च ऑपरेशन चलाया था। दिनाकरन इस क्रिश्चियन मिशनरी के प्रमुख हैं। इसका कामकाज कई देशों में फैला हुआ है। दिनाकरन करुण्य विश्वविद्यालय के कुलपति भी हैं।
आयकर विभाग ने विगत सप्ताह सर्च ऑपरेशन चला कर पॉल दिनाकरन के कोयंबटूर स्थित निवास से 4.7 किलो सोना जब्त किया। विभाग ने डोनेशन की रसीदों, विदेश में निवेश, खर्च को बढ़ाकर दिखाने सहित कई अन्य तरीकों से 118 करोड़ रुपये की आय छिपाने के संबंध में जानकारी जुटाई है। छापे के दौरान विभाग ने दिनाकरन के संगठन को विदेशों से मिली पूंजी की भी जांच की।
कौन हैं पॉल दिनाकरन
जीसस कॉल्स मिनिस्ट्रीज और करुण्य यूनिवर्सिटी की स्थापना उनके पिता डॉ. डीजीएस दिनाकरन ने की थी। वे ईसाई धर्म प्रचारक थे। उनके बारे में यह प्रचारित था कि उन्होंने ईसा मसीह को देखा था। उनका वर्ष 2008 में निधन हो गया था। जिसके बाद संस्थाओं का नेतृत्व पॉल दिनाकरन के हाथों में आ गया था। तमिलनाडु में दिनाकरन परिवार का खासा वर्चस्व है। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टियों से उनके अच्छे संबंध रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दिनाकरन ईश्वरीय कृपा के नाम पर अपनी प्रार्थनाओं के बल पर अनुयायियों को विभिन्न समस्याओं से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। पॉल दिनाकरन की प्रेयर (प्रार्थना) पैकेज के रूप में उनके अनुयायियों के लिए उपलब्ध हैं। उनके प्रेयर पैकेज में बच्चों, परिवार व बिजनेस के लिए अलग-अलग प्लान हैं।
ये प्लान दिनाकरन की www.prayertoweronline.org नामक वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कर ख़रीदे जा सकते हैं। यानी भक्तों को जो प्लान चाहिए, उसके लिए उन्हें वेबसाइट पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता है और बदले में दान के रूप में कुछ धनराशि देनी होती है। फिर उनके लिए दिनाकरन विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित करते हैं। उनके कार्यक्रम विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारित होते हैं।
तमिलनाडु के एक मंदिर से 40 साल पहले चुराई गई भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता की बहुमूल्य मूर्तियों को ब्रिटिश पुलिस ने मंगलवार को लंदन में भारतीय उच्चायोग को सौंप दिया। कांसे की बनी ये मूर्तियां भारतीय धातु कला की उत्कृष्ट कृतियां हैं। इन मूर्तियों को तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के अनंतमंगलम में स्थित श्री राजगोपालस्वामी मंदिर से 1978 में चुरा लिया गया था।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी एक वक्तव्य अनुसार यह मंदिर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य के समय का है और शैलीगत दृष्टि से, इन मूर्तियों का संबंध 15वीं शताब्दी से है। भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता की यह मूर्तियां क्रमशः 90.5 सेमी, 78 सेमी तथा 74.5 सेमी की हैं। चोरी के बाद तमिलनाडु पुलिस ने लंदन की मेट्रोपोलिटन पुलिस के साथ मिलकर जांच शुरू की थी।
मंगलवार को लन्दन में भारतीय उच्चायोग में एक कार्यक्रम में ब्रिटिश पुलिस ने ये मूर्तियां भारतीय उच्चायुक्त गायत्री इस्सर कुमार को सौंपी। केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल ने वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम में प्रतिभाग किया।
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री पटेल ने ब्रिटिश पुलिस, स्पेशल आइडल विंग, तमिलनाडु सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं लन्दन स्थित भारतीय उच्चायोग का इन कीमती मूर्तियों को भारत वापस लाने के प्रयासों के लिए आभार व्यक्त किया।
संस्कृति मंत्री ने कहा कि यह खुशी की बात है कि आजादी के बाद से हमें विदेशों से केवल 13 मूर्तियां मिलीं। मगर मोदी सरकार के प्रयासों के चलते 2014 से अब तक हमें 40 से अधिक मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। उन्होंने कहा की सरकार का निरंतर प्रयास है कि हमारी बहुमूल्य मूर्तियां भारत को वापस मिलें। उन्होंने यह भी कहा कि हम वाग देवी की मूर्ति को भारत वापस लाने के लिए ब्रिटिश संग्रहालय से बात कर रहे हैं।