- रजनीश कुमार
दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन जारी है। सरकार के प्रयासों से किसान संगठनों और सरकार के बीच संवाद भी जारी है। स्वस्थ लोकतंत्र में संवाद की महत्ता हमेशा से रही है, हमारे यहां पुरानी उक्ति है – वादे वादे जायते तत्वबोध: अर्थात् संवाद से तत्व का ज्ञान होता है। हालांकि किसान संगठन बिल वापस लेने पर अड़ गए हैं। वहीं सरकार का कहना है – जहां आपत्ति होगी, संशोधन करेंगे। किसान संगठनों ने तर्क दिया कि नए कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा, सरकार लिखित आश्वासन देने को तैयार है।
संगठनों ने एपीएमसी यानि मंडियों के समाप्त होने की चिंता प्रकट की, सरकार ने कहा – लिखित में दे देंगे कि मंडियां समाप्त नहीं होंगी। डर जताया कि किसानों की जमीन बिक जाएगी, सरकार ने कहा कि किसानों की फसल की बिक्री होगी, जमीन का कोई एग्रीमेंट नहीं होगा। किसानों ने डर व्यक्त किया कि विवाद की स्थिति में कोर्ट का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। सरकार ने उनके डर को दूर करते हुए कहा कि सिविल कोर्ट जाने का अधिकार देंगे, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाएंगे।
अब इसके बाद किसान प्रदर्शनरत संगठन कह रहे हैं प्रस्ताव मंजूर नहीं, सरकार संवाद को प्राथमिकता देते हुए कह रही है – कोई और समस्या हो तो बताइए। अब किसान संगठन मांग कर रहे हैं कि बिल वापस लो …!
सम्प्रति कहां क्या हो रहा है, कुछ ना उसको ज्ञान है
वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने किसानों के मनोभाव को समझते हुए यह पक्तियां लिखी थीं। ये पंक्तियां आज कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक हो गई हैं।
किसान बहुत भोले-भाले होते हैं, दूसरों के प्रति भी उनकी दृष्टि बहुत सरल-सहज होती है। शायद इसी कारण से किसानों के इस आंदोलन में अराजकतावादियों ने घुसपैठ कर दी है। अराजक शक्तियों का उद्देश्य स्पष्ट है – देश में अशांति और अराजकता का माहौल स्थापित करना। दुःखद है – किसानों को इस साजिश का कोई भान नहीं है, अशान्ति के अंदेशे का कोई ध्यान नहीं है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार किसान आंदोलन से जुड़ी एक रिपोर्ट सरकार को भेजी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अल्ट्रा-लेफ्ट नेताओं और प्रो-लेफ्ट विंग के चरमपंथी तत्वों ने किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। विश्वसनीय खुफिया इनपुट है कि ये तत्व किसानों को हिंसा, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाने की योजना बना रहे हैं।
अराजक वामपंथी-इस्लामी गठजोड़ के कारण देश में आंतरिक असुरक्षा का माहौल बनने का अंदेशा है। दिल्ली की सीमा पर भारतीय किसान यूनियन (उगराहा) ने दिल्ली दंगे के आरोपी उमर खालिद और शरजील इमाम के साथ-साथ अर्बन नक्सल सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा और वरवरा राव को रिहा करने की मांग की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस आंदोलनकारी किसान संघ ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस समारोह में कम से कम 20 व्यक्तियों को रिहा करने की मांग की, जिन्हें दिल्ली दंगे और भीमा कोरेगांव हिंसा में उनकी कथित भूमिका पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाला गया है।
ये लोग पिछले वर्ष दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगे के आरोपी की रिहाई की मांग कर रहे हैं, उनके मानवाधिकार की बात कर रहे हैं। नक्सल-आतंकी विचारों के पोषक एक किसान संगठन का कहना है कि ये सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और उनको सलाखों के पीछे से बाहर करवाना उनके संगठन का लक्ष्य है।
यह देश की सज्जन शक्ति के लिए खुली चुनौती के समान है। एक तरफ देश को विभाजित करने की मंशा पालने वाले लोगों के समर्थन में दिल्ली की सड़कों पर तख्तियां लहराई जाती हैं, दूसरी ओर देश को अखंड और अक्षुण्ण बनाए रखने वाली सज्जन शक्तियां अपने धैर्य का परिचय दे रही हैं।
यह विचार करने योग्य है कि आज भारतीय समाज के सामने ठीक वैसी ही परिस्थिति है, जैसी नागरिकता संशोधन कानून के समय थी। यह समझने की जरूरत है कि किसान आंदोलन की आड़ में अराजकता पैदा करने की मंशा रखने वाले ये लोग कौन हैं? आपने नागरिकता संशोधन कानून के वक्त भी देखा था, जब इन विभाजनकारी शक्तियों ने समाज में भय और भ्रम पैदा करने की कोशिश की थी।
ठीक वैसे ही कृषि कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी की व्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इन कानूनों को उनके विरुद्ध ही बताने की कोशिश की जा रही है। अब किसान संगठनों ने यह घोषणा कर दी है, सरकार से कोई वार्तालाप नहीं होगा, कोई विमर्श- संवाद नहीं होगा। आंदोलनकारियों ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, आंदोलन को तेज करने का फैसला किया है। संगठनों ने संवाद का अंत कर दिया है, विषय विवाद की तरफ बढ़ रहा है। (विश्व संवाद केंद्र सेवा)
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि मोदी सरकार किसानों की सबसे बड़ी हितैषी है। मोदी सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि विधेयकों से किसानों की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। विधेयकों में ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं, जिससे किसान अपनी उपज को स्वयं अच्छी कीमतों पर मंडी में या मंडी के बाहर कहीं भी बेच सकेगा। इसमें बिचैलियों की भूमिका खत्म कर दी गई हैं। यानि जो मुनाफा किसान से बिचैलिये उठाते थे, वो पैसा अब सीधा किसान की जेब में जाएगा। इन कृषि विधेयकों से एक राष्ट्र एक बाजार की संकल्पना को मजबूती मिल रही है। किसान अब सीधे बाजार से जुड़ सकेंगे।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र आज सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग किसानों को बरगलाने और उकसाने का काम कर रहे हैं। झूठ बोला जा रहा है। परंतु किसानों को स्वयं इन कृषि सुधारों को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की सोच हमेशा से किसानों के हित में रही है। इसी सोच के साथ ये सुधार किए गए हैं। उन्होंने कहा कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने वहां किसानों के लिए 7 घंटे नियमित और निश्चित बिजली की व्यवस्था की। उन्होंने कृषि महोत्सवों की शुरूआत की।
त्रिवेंद्र ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी किसान हमेशा उनकी प्राथमिकताओं में रहे। उनकी सरकार में गांव, गरीब और किसानों का सबसे पहले ख्याल रखा गया है। वर्ष 2009 में यूपीए की सरकार में कृषि मंत्रालय का बजट केवल 12 हजार करोड़ रूपए था, जो आज कई गुना बढ़ाकर 1 लाख 34 हजार करोड़ किया गया है। उन्होंने कहा कि पीएम किसान योजना से अब तक 92 हजार करोड़ रूपए सीधे डीबीटी के माध्यम से किसानों के खाते में पहुंच चुके हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने कृषि अवसंरचना के लिए 1 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है। इसमें मत्स्य पालन के लिए 20 हजार करोड़, पशुपालन के लिए 15 हजार करोड़, हर्बल खेती के लिए 4 हजार करोड़, फूड प्रोसेसिंग के लिए 1 हजार करोड़ रूपए का पैकेज स्वीकृत किया है। यूपीए के समय किसानों को 8 लाख करोड़ का कर्ज मिलता था, आज 15 लाख करोड़ का ऋण सालाना दिया जा रहा है। यूपीए के समय स्वामीनाथन आयेाग ने कृषि कल्याण के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे, लेकिन उस समय इन्हें लागू नहीं किया गया। आज मोदी सरकार ने न सिर्फ स्वामीनाथन रिपोर्ट के सुझावों को लागू किया बल्कि उसमें और अधिक प्रावधान जोड़कर किसानों का हित तलाशा है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में विभिन्न फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य काफी बढ़ाया गया है। मोदी सरकार ने किसानों को दो तरफा फायदा दिया है। अगर किसान मंडी में उपज बेचता है तो उसे ऊंची एमएसपी पर कीमत मिलेगी और मंडी से बाहर बाजार में बेचता है तो उसे ऊंची कीमत के साथ तकनीक का भी लाभ मिलेगा। इन विधेयकों से बिचैलियों की भूमिका खत्म होगी और किसान अपनी फसल को कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र होगा।