हरियाणा में बनेगा पतंजलि से भी बड़ा आचार्यकुलम और गुरुकुलम- बाबा रामदेव..
उत्तराखंड: रविवार को आवासीय शिक्षण संस्थान आचार्यकुलम के 12वें वार्षिकोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि आज का दिन हरियाणा के लिए गौरवशाली है। योग गुरु रामदेव हरिद्वार से बड़े पतंजलि के संस्थान हरियाणा में बनाने जा रहे हैं। इससे हरियाणा में सभी देश से बच्चे शिक्षा ग्रहण करने तो आएंगे ही, इसी के साथ संस्कार भी उन्हें मिलेंगे, जो हरियाणा के लिए बहुत ही बड़ी बात है। सीएम नायब सैनी का कहना हैं कि योग गुरु बाबा रामदेव अपनी जन्मभूमि हरियाणा की धरती पर वर्तमान से सौ गुना अधिक क्षमता के ग्लोबल आचार्यकुलम, पतंजलि विश्वविद्यालय और वेलनेस निर्माण की योजना पर कार्य कर रहे हैं। हरियाणा सरकार इन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की पूर्ति में पूरा सहयोग करेगी।
योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि हरियाणा में आचार्यकुलम की घोषणा की आधारशिला जल्द ही हरियाणा में दिखने लगेगी। एक लाख से अधिक बच्चे इस आचार्यकुलम में शिक्षा ग्रहण करेंगे। किसी के साथ चरित्र निर्माण और किस तरह से देश के लिए कार्य कर सकते हैं, ये सब बच्चों को सिखाया जाएगा। मुझे उम्मीद है कि हरियाणा में बनने वाला आचार्यकुलम विश्व का बहुत बड़ा केंद्र बनेगा। इस दौरान भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, आचार्य चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त, विरजानंद, महर्षि दयानंद सहित स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के चरित्रों व नेतृत्व से समाहित प्रेरक झांकी का मंचन किया गया।
वही कार्यक्रम में स्वामी रामदेव की ओर से सत्र 2023-24 के कक्षा 5-12 में प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को 1.5 लाख रुपये के नकद पुरस्कार प्रदान किए गए। साथ ही विविध योग, क्रीड़ा व कला प्रतियोगिताओं में विजयी विद्यार्थियों को भी सम्मानित किया गया। आदर्श विद्यार्थी सम्मान अनमोल व प्रतिभा को और सर्वश्रेष्ठ सदन का पुरस्कार आपस सदन को मिला।
एलोपैथी पर बाबा रामदेव का फिर बड़ा हमला, बोले- जहरीली दवा खाकर हर साल हो रही करोड़ों की मौत..
उत्तराखंड: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर योग गुरु स्वामी रामदेव ने एलोपैथी पर फिर बड़ा बयान दिया है। हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में झंडारोहण के बाद मीडिया से बात करते हुए बाबा रामदेव ने दावा किया है कि एलोपैथी की जहरीली दवाइयों के सेवन से हर साल करोड़ लोगों की मौत हो रही है। योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि इस आजादी के महोत्सव पर हमने यह संकल्प लिया है कि देश में स्वदेशी के अभियान को और भी मुखर करेंगे। चिकित्सा की स्वाधीनता का बहुत बड़ा सपना बाकी है, क्योंकि ऐलोपैथी की जहरीली दवा खाकर देश में करोड़ों लोगों की मौत हर साल हो रही है।
योग गुरु स्वामी रामदेव का कहना हैं कि अंग्रेजों ने भी पूरी दुनिया में अपना राजनैतिक साम्राज्य कामय करने के लिए 10 करोड़ से ज्यादा लोगों का कत्ल किया। ऐसे ही इस्लाम के नाम पर भी करोड़ों लोगों का कत्ल हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसे ही देश में अब भी जहरीली और सिंथेटिक दवाइयां खाकर करोड़ों लोग मर रहे हैं। इसलिए चिकित्सा की स्वाधीनता के आंदोलन को अब आगे बढ़ाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जरिए एक बहुत बड़ा वैचारिक युद्ध चल रहा है। इससे भारत के बच्चे और युवा बर्बाद हो रहे हैं। इससे लोगों में वासना की भावना पैदा हो रही है। दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं। इसका एक कारण यह भी है कि हम योग से दूर होते जा रहे हैं। पूरे देश में तांडव हो रहा है। भारत साधुओं का देश है और जब हम यहां सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटनाएं देखते हैं, तो हम हिल जाते हैं। इसलिए 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पतंजलि ने संकल्प लिया है कि हम देश में राजनीतिक, शैक्षिक, चिकित्सा, आर्थिक, वैचारिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ इस देश को बीमारियों, नशे और वासना से भी मुक्ति दिलाएंगे। इस अभियान को मुखर रुप से आगे बढ़ाएंगे।
बाबा रामदेव को SC से राहत,भ्रामक विज्ञापन मामले में अवमानना की कार्यवाही बंद..
उत्तराखंड: पतंजलि एड केस में बाबा रामदेव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली हैं। योग गुरु रामदेव को जिस वजह से सुप्रीम कोर्ट से खूब फटकार पड़ी थी, वह फाइल अब बंद हो गई है। जी हां, पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगगुरु रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के मामले में उनकी माफी स्वीकार कर ली है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हमने उनके (स्वामी रामदेव, पतंजलि और बालकृष्ण) माफीनामे को स्वीकार कर लिया है। हमने उन्हें सख्त चेतावनी दी है कि भविष्य में कभी फिर ऐसा ना करें, जैसा इस मामले में हुआ है। इस मामले में दिये गये हलफनामे पर पूरी तरह से पालन किया जाये। बता दें कि रामदेव अदालत में मौजूद होकर इस मामले में पहले माफी मांग चुके हैं।
योग गुरु रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की ओर से पैरवी करने वाले वकील गौतम तलुकदार ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा दिए गए आश्वासन के आधार पर अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी है। इससे पहले 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में कोविड टीकाकरण अभियान और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों के खिलाफ कथित तौर पर दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में पतंजलि और योग गुरुराम देव को सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगी थी। अखबार में माफीनामा छपवाने का भी आदेश जारी हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 21 नवंबर, 2023 के आदेश में कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने उन्हें आश्वासन दिया था कि इसके बाद किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। खासकर कंपनी द्वारा बनाए और मार्केट में लाए गए प्रोडक्ट्स के विज्ञापन या ब्रांडिंग से संबंधित। साथ ही किसी भी रूप में मीडिया में चिकित्सीय प्रभाव या चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ दावा करने वाले बयान जारी नहीं किए जाएंगे। शीर्ष अदालत ने कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड इस तरह के आश्वासन के लिए बाध्य है। विशिष्ट आश्वासन का पालन न करने और बाद में फर्म द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों से सुप्रीम कोर्ट बेहद नाराज हो गया था। इसके बाद कोर्ट ने बाबा रामदेव और पतंजलि को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।
बाबा रामदेव को झटका! सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार किया हलफनामा.
उत्तराखंड: सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को दवाओं के भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान दोनों ने बिना शर्त माफी मांग ली। हालांकि, अदालत ने बाबा रामदेव की ओर से दिए गए हलफनामे को स्वीकर करने से इनकार कर दिया। सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमा कोहली ने कहा, “हलफनामा हमारे सामने आने से पहले मीडिया में प्रकाशित हो गया। इसे प्रचार के लिए दाखिल किया गया या हमारे लिए?”
रामदेव और बालकृष्ण के वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में कहा, “हमने 6 अप्रैल को ही हलफनामा दाखिल कर दिया था. रजिस्ट्री ने शायद इसे जजों के सामने नहीं रखा.” इसके बाद रोहतगी ने हलफनामे का अंश पढ़कर सुनाया जिसमें बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की ओर से माफी मांगी गई है. जज ने दाखिल हलफनामे पर एतराज जताया. इसमें रामदेव ने देश से बाहर जाने के अपने एक कार्यक्रम की जानकारी दी है. जजों ने इसे देखकर कहा कि इस तरह से सारी प्रक्रिया को हल्के में लिया गया है.
जस्टिस अमानुल्लाह ने सुनवाई के दौरान कहा, “कोर्ट से झूठ बोला गया. इसके बाद जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि हम इस हलफनामे को स्वीकार करने से मना करते हैं। वहीं रोहतगी ने सुनवाई टालने का अनुरोध किया ताकि यह देखा जा सके कि रामदेव और बालकृष्ण को और क्या लिख कर देने की जरूरत है।इस पर जस्टिस कोहली ने कहा कि हम कितनी बार समय दें? मामला सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले उत्तराखंड सरकार ने जब आपको विज्ञापन रोकने को कहा था तो आप उनसे भी कहा था कि कानूनन आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती। क्या आपको कानून नहीं पता था?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार को भी कड़ी फटकार लगाई। जजों ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2020 में मामला उत्तराखंड सरकार को भेजा था, लेकिन उत्तराखंड के अधिकारियों ने इस मामले में निष्क्रियता दिखाई। अब उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की।
रामदेव और बालकृष्ण के वकील ने जजों के सामने दलील देते हुए कहा कि उन्होंने माफी मांगी है। उसे स्वीकार किया जाए। अब जब अधिकारियों से पूछताछ हो रही है। निश्चित रूप से उनकी तरफ से कुछ कार्रवाई होगी। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पूछा कि माफीनामा लिखी बातों के लिए उन्होंने वकीलों को सलाह दी थी। क्या उसमें कुछ कमी रह गई है? रामदेव और बालकृष्ण के वकील ने भी यही पूछा। इस पर जज ने कहा कि हम आपकी सलाह में कमी नहीं बता रहे, लेकिन पूरे मामले को उसके तथ्यों के आधार पर देख रहे हैं।
- डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
धर्म अथवा पंथ जब तक मानव के व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा बनने तक सीमित रहे, वो उसकी आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बन कर उसमें एक सकारात्मक शक्ति का संचार करता है। लेकिन जब वो मानव के व्यक्तिगत जीवन के दायरे से बाहर निकल कर समाज के सामूहिक आचरण का माध्यम बन जाता है तो वो समाज में एक सामूहिक शक्ति का संचार करता है। लेकिन यह कहना कठिन होता है कि समाज की यह सामूहिक शक्ति उस समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाएगी या फिर नकारात्मकता की ओर। शायद इसीलिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को जनता की अफीम कहा था।
दरसअल, पिछले कुछ समय से मजहबी मान्यताओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में है। हाल ही में योरोपीय महाद्वीप के देश बेल्जियम में हलाल मीट और कोशर मीट पर एक अदालती फैसला आया है। पशु अधिकारों को ध्यान में रखते हुए योरोपीय संघ की अदालत ने बिना बेहोश किए जानवरों को मारे जाने पर लगी रोक को बरकरार रखा है। इसका मतलब यह है कि बेल्जियम में किसी भी जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश करना होगा ताकि उसे कष्ट ना हो। योरोपीय संघ की अदालत के इस फैसले ने योरोपीय संघ के अन्य देशों में भी इस प्रकार के कानून बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मजहबी स्वतंत्रता के नाम पर बेल्जियम के मुसलमान और यहूदी संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं।
भारत की बात करें तो यह चर्चा में इसलिए है कि अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कोविड महामारी के मद्देनजर हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत लोगों की भोजन करने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसी से संबंधित ताजा मामला दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन के अंतर्गत आने वाले होटलों के लिए लागू किए गए एक नियम का है। इसमें दिल्ली के ऐसे होटल या मीट की दुकान जो दक्षिण दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (SDMC) के अंतर्गत आते हैं उन्हें अब हलाल या झटका का बोर्ड दुकान के बाहर लगाना अनिवार्य होगा। दरसअल SDMC की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें लिखा है कि हिन्दू और सिख के लिए हलाल मीट खाना वर्जित है। इससे पहले क्रिसमस के दौरान केरल के ईसाइयों ने भी हलाल मांस के विरोध में प्रदर्शन किया था। इस मामले में क्रिश्चियन असोसिएशन ऑफ चर्च के ऑक्सीलरी फ़ॉर सोशल एक्शन ने ईसाइयों से एक अपील भी की थी जिसमें हलाल मांस को उनके धार्मिक लोकाचार के खिलाफ होने के कारण इन्हें खाद्य पदार्थों के रूप में खरीदने से मना किया गया था।
मजहब के नाम पर जिस हलाल पर विश्व भर में हायतौबा मची हुई है पहले थोड़ा उसे समझ लेते हैं। हलाल दरसअल एक अरबी शब्द है जिसका उपयोग क़ुरान में भोजन के रूप में स्वीकार करने योग्य वस्तुओं के लिए किया गया है। इस्लाम में आहार संबंधी कुछ नियम बताए गए हैं जिन्हें हलाल कहा जाता है। लेकिन इसका संबंध मुख्य रूप से मांसाहार से है। जिस पशु को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है उसके वध की प्रक्रिया विशेष रूप से बताई गई है। इसी के चलते मुस्लिम देशों में सरकारें ही हलाल का सर्टिफिकेट देती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो मीट वहां परोसा जा रहा है वो उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुरूप है।
हमारे देश में भी भारतीय रेल और विमानन सेवाओँ जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है। मैकडोनाल्ड, डोमिनोज़, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में यह सर्टिफिकेट सरकार द्वारा नहीं दिया जाता। दरसअल भारत में अलग अलग वस्तुओं के लिए अलग अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क, आदि। लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती है। भारत में यह सर्टिफिकेट कुछ प्राइवेट संस्थान जैसे हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमायत उलमा ए हिन्द हलाल ट्रस्ट आदि।
अभी तक देश से निर्यात होने वाले डिब्बाबंद मांस के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण को हलाल प्रमाणपत्र देना पड़ता था क्योंकि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश हलाल मांसाहार ही आयात करते हैं। लेकिन यह बात जितनी साधारण दिखाई दे रहे है उससे कहीं अधिक पेचीदा है। क्योंकि तथ्य यह बताते हैं कि जो बात मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी अब वो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे लिपस्टिक और शैम्पू, अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल, रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और आटा, मैदा, बेसन जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुच गई है। आयुर्वेदिक औषधियों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट! ऐसा क्यों है? क्योंकि जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती हैं उन्हें इन देशों को यह सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। अगर हलाल फूड मार्किट के आंकड़ों की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर 19% की है जिसकी कीमत लगभग 2.5 ट्रिलियन $ की बैठती है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लेक्स में फ्लैट औऱ हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजेंसी से यात्रा। यहां तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वेबसाइट।
अब प्रश्न उठता है कि उपर्युक्त तथ्यों के क्या मायने हैं। दरसअल जो बात एक सर्टिफिकेट से शुरू होती है वो बहुत दूर तक जाती है। क्योंकि जब हलाल मांस की बात आती है तो स्वाभाविक रूप से उसे काटने की प्रक्रिया के चलते वो एक मुस्लिम के द्वारा ही कटा हुआ होना चाहिए। जाहिर है इसके परिणामस्वरूप जो हिन्दू इस कारोबार से जुड़े थे वो इस कारोबार से ही बाहर हो गए। इसी प्रकार जब हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित ना होकर रेस्टोरेंट या फाइव स्टार होटल पर लागू होता है तो वहाँ परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए। और जब यह हलाल सर्टिफाइड मांसाहार रेल या विमानों में परोसा जाता है तो हिदुओं और सिखों जैसे गैर मुस्लिम मांसाहारियों को भी परोसा जाता है। ये गैर मुस्लिम जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के विपरीत झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए विवश हो जाते हैं।
लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात जो समझने वाली है वो यह कि इस हलाल सर्टिफिकेट को लेने के लिए भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाति है। माँस से आगे बढ़ कर चावल, आटा, दालों, कॉस्मेटिक जैसी वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के कारण अब यह रकम धीरे-धीरे एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप लेती जा रही है जिस पर किसी भी देश की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसलिए यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी बनता जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई नेता जॉर्ज क्रिस्टेनसेन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हलाल अर्थव्यवस्था का पैसा आतंकवाद के काम में लिया जा सकता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय लेखक नसीम निकोलस ने अपनी पुस्तक “स्किन इन द गेम” में इसी विषय पर ” द मोस्ट इंटॉलरेंट विंस” (जो असहिष्णु होता है वो जीतता है) नाम का लेख लिखा है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि अमरीका जैसे देश में मुस्लिम और यहूदियों की अल्पसंख्यक आबादी कैसे पूरे अमेरिका में हलाल मांसाहार की उपलब्धता मुमकिन करा देते हैं।
अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और योरोप के देश इस बात को समझ चुके हैं कि मजहबी मान्यताओं के नाम पर हलाल सर्टिफिकेट के जरिए एक आर्थिक युद्ध की आधारशिला रखी जा रही है जिसे हलालोनोमिक्स भी कहा जा रहा है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया की दो बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी केलॉग्स और सैनिटेरियम ने अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके उत्पाद शुद्ध शाकाहारी होते हैं। इसलिए उन्हें हलाल सर्टिफिकेशन की कोई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में राष्ट्रवाद की बात करने वाले बाबा रामदेव तक अपने शाकाहारी औषधीय उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन करवाने के लिए मुस्लिम संगठनों को भारी भरकम फीस देते हैं। जब कारोबारी नफा नुकसान के आगे एक योगी की देशभक्ति कमजोर पड़ जाती है तो फिर एक आम आदमी की बिसात ही क्या। आज के युग में जब युद्ध हथियारों के बजाए अर्थव्यवस्ताओं के सहारे खेला जाता है तो योद्धा देश की सेना नहीं देश का हर नागरिक होता है। इसलिए हलाल के नाम पर एक आर्थिक युद्ध की घोषणा तो की जा चुकी है चुनाव अब आपको करना है कि इस युद्ध में सैनिक बनना है या फिर मूकदर्शक। (विसंकें)