- डॉ नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जहां पुडुचेरी, केरल और तमिलनाडु में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होंगे, वहीं पश्चिम बंगाल में आठ चरणों तो असम के लिए तीन चरणों में चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया है। भारत केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश नहीं है अपितु सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी वो अपार विविधता को अपने भीतर समेटे है। एक ओर खान-पान, बोली-भाषा एवं धार्मिक मान्यताओं की यह विविधता इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा खूबसूरत बनाती हैं। तो दूसरी ओर यही विविधता इस देश की राजनीति को जटिल और पेचीदा भी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति की दिशा में धीरे धीरे किंतु स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है।
तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ-सबका विकास और वोट बैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे। इतिहास में अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज़ादी के बाद देश के सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प मौजूद नहीं था। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने लगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत होते गए। लेकिन ये दल क्षेत्रीय ही बने रहे। अपने क्षेत्रों से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने में कामयाब नहीं हो पाए।
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि समय के साथ ये दल अपने अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनने में अवश्य कामयाब हो गए। आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं आम चुनावों में कांग्रेस की स्थिति का आंकलन इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वो लगातार दो बार से अपने इतने प्रतिनिधियों को भी लोकसभा में नहीं पहुंचा पा रही कि सदन को नेता प्रतिपक्ष दे पाए। उसे चुनौती मिल रही है एक ऐसी पार्टी से जो अपनी उत्पत्ति के समय से ही तथाकथित सेक्युलर सोच वाले दलों ही नहीं वोटरों के लिए भी राजनैतिक रूप से अछूत बनी रही।
1980 में अपनी स्थापना ,1984 आम चुनावों में में मात्र दो सीटों पर विजय, फिर 1999 में एक वोट से सरकार गिरने से लेकर 2019 लोकसभा में 303 सीटों तक का सफर तय करने में बीजेपी ने जितना लम्बा सफर तय किया है उससे कहीं अधिक लम्बी रेखा अन्य दलों के लिए खींच दी है। क्योंकि आज वो पूर्ण बहुमत के साथ केवल केंद्र तक सीमित नहीं है बल्कि लगभग 17 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। वो दल जो केवल हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित था, आज वो असम में अपनी सरकार बचाने के लिए मैदान में है, केरल तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्यों में अपनी जड़ें जमा रहा है तो पश्चिम बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल है।
असम की अगर बात करें तो घुसपैठ से परेशान स्थानीय लोगों की वर्षो से लंबित एनआरसी की मांग को लागू करना, बोडोलैंड समझौता, बोडो को असम की ऑफिशियल भाषा में शामिल करना, डॉ भूपेंद्र हज़ारिका सेतु, बोगिबिल ब्रिज, सरायघाट ब्रिज जैसे निर्माणों से असम को नार्थ ईस्ट के अलग अलग हिस्सों से जोड़ना। कालीबाड़ी घाट से जोहराट का पुल और धुबरी से मेघालय में फुलबारी तक पुल जो असम और मेघालय की सड़क मार्ग की करीब ढाई सौ किमी की वर्तमान दूरी को मात्र 19 से 20 किमी तक कर देगा जैसे विकास कार्यों के साथ भाजपा की वर्तमान सरकार जनता के सामने है। वहीं अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्षरत कांग्रेस ने अपने पुराने तर्ज़ पर ही चलते हुए,सत्ता में आने पर सीएए को निरस्त करना, सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देना, राज्य की हर महिला को 2000 रूपए प्रति माह देना और 5 लाख नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं।
बंगाल की बात करें तो यहां लगभग 34 वर्षों तक शासन करने वाली लेफ्ट और 20 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस दोनों ही रेस से बाहर हैं। विगत दो बार से सत्ता पर काबिज़ तृणमूल का एकमात्र मुख्य मुकाबला भाजपा से है। उस भाजपा से जिसका 2011 के विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुला था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी ने वाम का 34 साल पुराना किला ढहाया था, आज उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा ने उसी हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।
केरल में लेफ्ट और कांग्रेस आमने सामने हैं। यह अलग बात है कि अन्य राज्यों में लेफ्ट उसकी सहयोगी होती है। अभी तक ऐसा देखा गया है कि हर पांच साल में दोनों बारी-बारी से सत्ता में आते हैं। इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसकी सत्ता में वापसी हो सकती है। चुनाव परिणाम क्या आएंगे, यह तो समय ही बताएगा लेकिन चूंकि राहुल गांधी केरल से लोकसभा पहुंचे हैं तो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए केरल की जीत मायने रखती है। भाजपा की अगर बात करें तो 2011 में उसे केरल विधानसभा में मात्र एक सीट मिली थी और इस बार वो मेट्रोमैन ई.श्रीधरन की छवि और अपने विकास के वादे के साथ मैदान में है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतरी लेफ्ट ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए चुनावों से पहले सबरीमाला से जुड़े सभी केसों को वापस लेने का फैसला लिया है। जाहिर है गैर हिंदी भाषी केरल में भाजपा वर्तमान में अवश्य अपनी जमीन तलाश रही है लेकिन उसकी निगाहें भविष्य पर हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और लेफ्ट भले ही केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन दोनों का ही मुख्य मुकाबला भाजपा से है।
पुड्डुचेरी में कांग्रेस सरकार चुनावों से ऐन पहले गिर गई। यह दक्षिण में कांग्रेस की आखिरी सरकार थी। यहां भी भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दा है। राहुल गांधी के पुड्डुचेरी दौरे पर एक महिला की शिकायत का मुख्यमंत्री द्वारा गलत अनुवाद करने का वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था और पुड्डुचेरी सरकार की हकीकत बताने के लिए काफी था। हालांकि यहां भी भाजपा का अबतक कोई वजूद नहीं था लेकिन आज वो मुख्य विपक्षी दल है।
तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहां हिंदी भाषी नेता जनता को आकर्षित नहीं करते। लेकिन ऐसा 40 सालों में पहली बार होगा जब यहां चुनाव दो दिग्गज जयललिता और करुणानिधि के बिना होने जा रहे हैं। जयललिता छः बार और करुणानिधि पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी टक्कर एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही है। डीएमके और कांग्रेस यहां मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा एआइएडीएमके के साथ गठबंधन में है। जयललिता या करुणानिधि जैसे चेहरे के अभाव में जनता किस को चुनती है यह तो समय बताएगा। तमिलनाडु के चुनावी मुद्दों की बात करें तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा भाषा का होता है। दरअसल, तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। राहुल गांधी ने अपने हाल के दौरे में लोगों को भरोसा दिलाया कि तमिल यहां की पहली भाषा होगी। उन पर अन्य कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि उनमें एक कमी यह रह गई कि वो तमिल भाषा नहीं सीख पाए।
कहा जा सकता है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जहां कभी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था आज भाजपा वहां सबसे मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में इन राज्यों के चुनाव परिणाम ना सिर्फ इन राजनैतिक दलों का भविष्य तय करेंगे बल्कि काफी हद तक देश की राजनीति का भी भविष्य तय करेंगे।
डॉ.नीलम महेंद्र
वरिष्ठ स्तंभकार
पश्चिम बंगाल में चुनावों की औपचारिक घोषणा के साथ ही राजनैतिक पारा भी उफान पर पहुँच गया है। देखा जाए तो चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होते हैं सैद्धांतिक रूप से तो चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है।और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं।
लेकिन जब इन्हीं चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आती हैं जिनमें लोगों की जान तक दांव पर लग जाती हो तो प्रश्न केवल कानून व्यवस्था पर ही नहीं लगता बल्कि लोकतंत्र भी घायल होता है।
वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को तथ्यात्मक तरीके से प्रमाणित भी करते हैं। इनके अनुसार 2016 में बंगाल में राजनैतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं जिसमें 206 लोग इसके शिकार हुए। इससे पहले 2015 में राजनैतिक हिंसा की 131 घटनाएं दर्ज की गई जिनके शिकार 184 लोग हुए थे। वहीं गृहमंत्रालय के ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2017 में बंगाल में 509 राजनैतिक हिंसा की घटनाएं हुईं थीं और 2018 में यह आंकड़ा 1035 तक पहुंच गया था।
इससे पहले 1997 में वामदल की सरकार के गृहमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बाकायदा विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनैतिक हिंसा में मारे गए थे। निसंदेह यह आंकड़े पश्चिम बंगाल की राजनीति का कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करते हैं।
पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल का रक्तरंजित इतिहास उसकी “शोनार बंगला” की छवि जो कि रबिन्द्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों की देन है उसे भी धूमिल कर रहा है।
बंगाल की राजनीति वर्तमान में शायद अपने इतिहास के सबसे दयनीय दौर से गुज़र रही है जहाँ वामदलों की रक्तरंजित राजनीति को उखाड़ कर एक स्वच्छ राजनीति की शुरुआत के नाम पर जो तृणमूल सत्ता में आई थी आज सत्ता बचाने के लिए खुद उस पर रक्तपिपासु राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं।
हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा के ये आंकड़े भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वो भाजपा के विभिन्न रोड़ शो के दौरान हिंसा की घटनाएं हों या उनकी परिवर्तन यात्रा को रोकने की कोशिश हो या फिर जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव हो।
यही कारण है कि चुनाव आयुक्त को कहना पड़ा कि बंगाल में जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे यहाँ पर शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करना चुनाव आयोग के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग इस बार 2019 के लोकसभा चुनावों की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक सुरक्षा कर्मियों की तैनाती करने पर विचार कर रहा है।
लेकिन इस चुनावी मौसम में बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य पर घोटालों के बादल भी उभरने लगे हैं जो कितना बरसेंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन वर्तमान में उनकी गर्जना तो देश भर में सुनाई दे रही है।
दरअसल, केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने राज्य में कोयला चोरी और अवैध खनन के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बैनर्जी की पत्नी रुजीरा बैनर्जी और उनकी साली को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है।
इससे कुछ दिन पहले शारदा चिटफंड घोटाला जिसमें देश के पूर्व वित्तमंत्री चिदम्बरम और खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर आरोप लगे थे, इस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की थी। इसके अनुसार बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया। कथित तौर पर यह राशि मीडिया कर्मियों के वेतन के भुगतान के लिए दी गई।
गौरतलब है कि जांच के दौरान तारा टीवी के शारदा ग्रुप ऑफ कम्पनीज का हिस्सा होने की बात सामने आई थी। सीबीआई का कहना है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। इससे कुछ समय पहले या यूँ कहा जाए कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी शारदा घोटाले की जाँच को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार आमने सामने थीं।
वैसे भारत जैसे देश में घोटाले होना कोई नई बात नहीं हैं और ना ही चुनावी मौसम में घोटालों के पिटारे खुलना। ऐसे संयोग इस देश के आम आदमी ने पहले भी देखे हैं। चाहे वो रोबर्ट वाड्रा के जमीन और मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले हों या फिर सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं के नेशनल हेराल्ड जैसे केस हों या यूपी में अवैध खनन के मामले में अखिलेश यादव और या फिर स्मारक घोटाले में मायावती पर ईडी की कार्यवाही। अधिकाँश संयोग कुछ ऐसा ही बना कि चुनावी मौसम में ही ये सामने आते हैं और फिर पाँच साल के लिए लुप्त हो जाते हैं।
देश की राजनीति अब उस दौर से गुज़र रही है जब देश के आम आदमी को यह महसूस होने लगा है कि हिंसा और घोटाले चुनावी हथियार बनकर रह गए हैं और उसके पास इनमें से किसी का भी मुकाबला करने का सामर्थ्य नहीं है। क्योंकि जब तक तय समय सीमा के भीतर निष्पक्ष जांच के द्वारा इन घोटालों के बादलों पर से पर्दा नहीं उठाता, वो केवल चुनावों के दौरान विपक्षी दल की हिंसा के प्रतिउत्तर में गरजने के लिए सामने आते रहेंगे, बंगाल हो या बिहार या फिर कोई अन्य राज्य।
अगर बंगाल की ही बात करें तो एक तरफ चुनावों के पहले सामने आने वाले घोटालों से राज्य की मुख्यमंत्री और उनका कुनबा सवालों के घेरे में है। वहीं दूसरी तरफ जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वहाँ सत्तारूढ़ दल द्वारा सत्ता बचाने और भाजपा द्वारा सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से दोनों दलों के बीच होने वाली राजनैतिक हिंसा के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।
लेकिन सत्ता बचाने और हासिल करने की इस उठापटक के बीच राजनैतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि आज का वोटर इतना नासमझ भी नहीं है जो इन घोटालों और हिंसा के बीच की रेखाओं को ना पढ़ सके। खास तौर पर तब जब इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान बोले जाने वाले “आर नोई अन्याय” (और नहीं अन्याय) या फिर “कृष्ण कृष्ण हरे हरे, पद्म (कमल) फूल खिले घरे घरे”, या बांग्ला “निजेर मेयकेई चाए” ( बंगाल अपनी बेटी को चाहता है) जैसे शब्द कभी “नारों” की दहलीज पार करके यथार्थ में परिवर्तित नहीं होते। इसलिए “लोकतंत्र” तो सही मायनों में तभी मजबूत होगा जब चुनावी मौसम में घोटाले सिर्फ सामने ही नहीं आएंगे बल्कि उसके असली दोषी सज़ा भी पाएंगे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं है, अपितु भाजपा ने विश्व को सबसे लोकप्रिय व यशस्वी नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिए हैं।
डॉ निशंक शुक्रवार को राजधानी देहरादून की धर्मपुर विधान सभा अंतर्गत त्यागी रोड पर भाजपा के शक्ति केंद्र की कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बूथ का कार्यकर्ता हमारी असली ताकत है। बूथ के कार्यकर्ता के बल पर ही सरकार बनती है।
उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी जो मार्ग खोज लेता है और प्रकृति को अपने अनुरूप ढाल देता है, वही योद्धा होता है। उन्होंने कहा कि सही मायनों में बूथ के कार्यकर्ता योद्धा हैं। उन्होंने कहा कि बूथ जीता तो चुनाव जीता और बूथ जीता तो देश जीता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह गौरव की बात है कि वह विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के सदस्य हैं। इसके साथ ही यह भी सम्मान की बात है कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व प्रभावी नेताओं में शामिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं।
केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने की अपील करते हुए डॉ निशंक ने कहा कि आजादी के बाद देश को मोदी के रूप में पहले प्रधानमंत्री मिले, जिन्होंने शौचालय जैसे छोटी मगर महत्वपूर्ण मुद्दे की चर्चा की। प्रधानमंत्री की इस सोच के चलते करोड़ों मां-बहनों को शौचालय की सुविधा मिली।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए निःशुल्क गैस कनेक्शन वितरित किए गए। मजदूरों व किसानों के लिए पेंशन जैसी योजनाएं संचालित की गईं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने समाज के हर वर्ग के कल्याण के तमाम योजनाएं तैयार की है ।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। कांग्रेस इतने वर्षों तक सत्ता में रही। मगर उसने किसानों के हित में कभी कुछ नहीं किया। मोदी सरकार किसानों के लिए काम कर रही है तो कांग्रेस क्षुद्र राजनीति पर उतर आई है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे विपक्षियों के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने केंद्र व प्रदेश की सरकार की उपलब्धियों की चर्चा पूरी ताकत के साथ करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि प्रदेश में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं। इन्हें आमजन तक पहुंचाएं।
कार्यक्रम में उत्तराखंड रेशम फेडरेशन के अध्यक्ष अजीत चौधरी, भाजपा महानगर अध्यक्ष सीता राम भट्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनबीर चौहान, मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश संयोजक राजीव तलवार, पूर्व दायित्वधारी अजेंद्र अजय, संदीप मुखर्जी, दिनेश सती, गोपाल पुरी, मुकेश सिंघल, जयंती प्रसाद कुर्मांचली आदि उपस्थित थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक 5 जनवरी से गुजरात के कर्णावती में आयोजित होगी। संघ की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझी जाने वाली यह बैठक वर्ष में दो बार आयोजित की जाती है।
कर्णावती डेंटल कॉलेज, उवारसद में 5 से 7 जनवरी तक आयोजित होने वाली बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी सहित संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित रहेंगे। इसके अलावा भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि जैसे आनुषांगिक संगठनों के चुनिंदा केंद्रीय पदाधिकारी भी भाग लेंगे।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा 5 से 7 दिसंबर तक तीन दिन के उत्तराखंड भ्रमण पर रहेंगे। इस दौरान नड्डा राजधानी देहरादून में पार्टी की निचली इकाई मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश की सर्वोच्च मानी जानी वाली कोर कमेटी तक के नेताओं से मिलेंगे और बैठक लेंगे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रदेश भ्रमण के लिए केंद्रीय संगठन की ओर से 5,6 व 7 दिसंबर की तिथि दी गई है। कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविवार को महामंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। कार्यक्रम की रूपरेखा तय कर केंद्र को भेजी जाएगी। केंद्र उसे अंतिम रूप देगा।
नड्डा अपने तीन दिवसीय भ्रमण के दौरान प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी के अलावा विधायकों, मंत्रियों, सांसदों, विभिन्न स्तरों के पार्टी पदाधिकारियों, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारियों आदि के साथ अलग-अलग लगभग एक दर्जन बैठक करेंगे।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बिहार चुनाव से निजात पाने के बाद भाजपा अध्यक्ष नड्डा सभी प्रदेशों का इसी तरह से भ्रमण करेंगे और राज्यों में पार्टी संगठन की गतिविधियों का जायजा लेंगे। साथ ही आगामी रणनीति तैयार करेंगे। आगामी समय में जिन राज्यों में विधान सभाओं के चुनाव होने हैं, उन पर नड्डा का विशेष फोकस रहेगा।
भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बतौर नड्डा गत वर्ष नवम्बर माह में भी देहरादून के एक दिवसीय भ्रमण पर आए थे। मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उत्तराखंड का उनका यह पहला भ्रमण है। नड्डा इससे पूर्व कई बार उत्तराखंड आ चुके हैं। वर्ष 2017 में उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें व केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी थी। तब नड्डा केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे।
विधान सभा चुनाव में नड्डा ने लगातार कई दिन तक उत्तराखंड में डेरा डाले रखा था। चुनावी रणनीति तैयार करने से लेकर चुनाव प्रबन्धन और सभाओं को संबोधित करने तक में उनकी सक्रिय भूमिका रही है।
पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) नड्डा की देखरेख में तैयार हुआ था।
उत्तराखंड (Uttarakhand) भाजपा (BJP) के तेज-तर्रार विधायकों (MLA) में शामिल सुरेंद्र सिंह जीना (Surendra Singh Jeena) का गुरूवार तड़के दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। पचास वर्षीय जीना को कोरोना पॉजिटिव (Corona Positive) पाए जाने के बाद पिछले सप्ताह अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके निधन पर तमाम वरिष्ठ नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
विधायक जीना की गंगाराम अस्पताल में उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विगत दिवस अस्पताल के निदेशक को फोन कर विधायक के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी और उचित देखभाल के निर्देश दिए थे। मगर गुरूवार तड़के लगभग 4 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। अभी लगभग दो सप्ताह पूर्व उनकी पत्नी नेहा जीना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। बताया जाता है की पत्नी के निधन से उनको गहरा सदमा पहुंचा था।

मूल रूप से अल्मोड़ा जिले की भिक्यासैंण तहसील के सदीगांव निवासी सुरेंद्र सिंह जीना का जन्म 8 दिसंबर 1969 को हुआ था। दिल्ली में उनका अपना स्वतंत्र व्यवसाय था। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने प्रदेश की तत्कालीन भिक्यासैंण सीट से चुनाव लड़ा और विजयी हुए। इसके बाद वे लगातार 2012 व 2017 में अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। वे कुमायु मंडल विकास निगम (KMVN) के अध्यक्ष भी रहे हैं।
जीना को प्रदेश के बेहद प्रतिभाशाली व ऊर्जावान नेताओं में गिना जाता था। अपनी विधान सभा में वे खासे लोकप्रिय थे। उन्होंने अपने पिता प्रताप सिंह जीना के नाम से एक चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया था। इसके माध्यम से वे गरीबों व जरूरतमंदों की हर तरह से सहायता करते थे। जीना बहुत बड़ी संख्या में अपने क्षेत्र के बेरोजगारों को दिल्ली आदि में रोजगार उपलब्ध कराते रहते थे।
उनके निधन पर प्रदेश की राज्यपाल बेबी रानी मौर्या, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, विधान सभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत, प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार, सांसद अजय भट्ट, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत आदि ने शोक व्यक्त किया है।
पंजाब में विजयादशमी पर कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किए जाने पर भाजपा खासे गुस्से में है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने सोमवार को सिलसिलेवार एक के बाद एक कई ट्वीट करते हुए कांग्रेस व राहुल गांधी पर ताबड़तोड़ वार किए। उन्होंने कहा बेटा घृणा, क्रोध, झूठ और आक्रामकता की राजनीति का जीवंत प्रदर्शन करता है, तो वहीं माता दिखावे की शालीनता का प्रदर्शन और लोकतंत्र पर खोखली बयानबाजी कर इसका पूरक बनती है।
नड्डा ने कहा कि पंजाब में जो कुछ भी हो रहा है वह राहुल गांधी के इशारों पर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का पुतला जलाने का शर्मनाक ड्रामा राहुल गांधी के द्वारा निर्देशित है, लेकिन यह अनपेक्षित नहीं है। कांग्रेस से यही उम्मीद की जा सकती है। नेहरु-गांधी खानदान ने कभी भी प्रधानमंत्री पद और प्रधानमंत्री के कार्यालय की गरिमा का सम्मान नहीं किया है। 2004-2014 के बीच भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब कांग्रेस की यूपीए सरकार के शासनकाल में प्रधानमंत्री पद को संस्थागत तरीके से कमजोर किया गया था।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि निराशा और बेशर्मी का गठजोड़ काफी खतरनाक होता है। कांग्रेस के पास ये दोनों ही है। जहां पार्टी में बेटा घृणा, क्रोध, झूठ और आक्रामकता की राजनीति का जीवंत प्रदर्शन करता है, तो वहीं माता दिखावे की शालीनता का प्रदर्शन और लोकतंत्र पर खोखली बयानबाजी कर इसका पूरक बनती है। यह पार्टी के दोयम दर्जे और दोहरे रवैये को दिखाता है।
उन्होंने आगे कहा, यदि देश में कोई एक पार्टी है जिसका आचरण घृणा और नफरत का है तो वह केवल और केवल कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस शासित राजस्थान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, दलितों, पिछड़ों, शोषितों और वंचितों पर अत्याचार सबसे चरम पर है। राजस्थान के साथ-साथ पंजाब में भी महिलाएं असुरक्षित हैं। पंजाब में मंत्री छात्रवृत्ति घोटाले कर रहे हैं।
नड्डा ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर कांग्रेस कभी भी दूसरों पर दबाव नहीं बना सकती। कांग्रेस का आवाज दबाने का दशकों से इतिहास रहा है। इसे हमने आपातकाल के दौरान भी देखा। इसके बाद राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने भी प्रेस की आजादी को कमजोर करने का प्रयास किया। स्वतंत्र मीडिया सदैव ही कांग्रेस को चुभती है। अगर कोई क्रूर राज्य शक्ति के इस्तेमाल की प्रयोगशाला को देखना चाहता है, तो वह कांग्रेस के आशीर्वाद से चलने वाली महाराष्ट्र सरकार को देखे, जहां विपक्ष को परेशान किया जा रहा और बोलने की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है। राज्य चलाना छोड़कर महाराष्ट्र सरकार सब कुछ कर रही है।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि गरीबी में जन्म लेने के बाद देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले महान शख्सियत के प्रति एक खानदान और वंश की गहरी नफरत जितना ऐतिहासिक है, उतना ही ऐतिहासिक है भारत के लोगों का प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपार प्यार, समर्थन और आशीर्वाद। जितना ही कांग्रेस झूठ बोलेगी और जितनी ही इनकी नफरत बढ़ेगी, उतना ही और अधिक लोग प्रधानमंत्री मोदी को चाहेंगे और उनका समर्थन करेंगे।
कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) द्वारा प्रदेश की महिला व बाल विकास मंत्री और भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी (Imarti Devi) को ‘आइटम’ कहने के मामले ने तूल पकड़ दिया है। भाजपा के साथ-साथ बसपा नेत्री मायावती भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हो गई है। भाजपा ने जहां सोमवार को बयान के विरोध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भोपाल में मौन व्रत रखा, वहीं मायावती ने ट्वीट कर दलित महिला पर की गई टिप्पणी को लेकर कांग्रेस हाई कमान से सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने को कहा। इधर, इमरती देवी ने कमलनाथ को पागल कहा है।
ये है मामला
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की 28 विधान सभा सीटों के लिए 3 नवम्बर को उप चुनाव होने जा रहे हैं। इस क्रम में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रविवार को डबरा विधानसभा क्षेत्र में आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। अपने सम्बोधन के दौरान कमलनाथ ने इस सीट से भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी पर अभद्र टिप्पणी कर दी और उन्हें ‘आइटम’ कहा।
ये क्या आइटम है ? ये क्या आइटम है ?
कमलनाथ ने कहा – सुरेश राजे जी हमारे उम्मीदवार हैं। सरल-स्वाभाव सीधे-साधे हैं। ये तो करेंगे ही। ये उसके जैसे नहीं हैं। भीड़ की तरफ सवाल उछालते हुए कमलनाथ पूछते हैं। क्या है उसका नाम ? भीड़ से आवाज आती है इमरती देवी। फिर कमलनाथ बोलते हैं – मैं क्या उसका नाम लूं ? आप तो उसको मेरे से ज्यादा पहचानते हैं। आपको तो मुझे पहले ही सावधान कर देना चाहिए था। फिर कमलनाथ ठहाके मारते हुए कहते हैं – ये क्या आइटम है ? ये क्या आइटम है ? और फिर कमल नाथ जोर से अट्टहास करते हैं। भीड़ भी उनके साथ ठहाके लगाने व शोर मचाने लगती है।
मुख्यमंत्री शिवराज ने व्यक्त की कड़ी प्रतिक्रिया
कमलनाथ की टिप्पणी सामने आते ही भाजपा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा – आज कमलनाथ जी, आज आपने अपने ओछे बयान के द्वारा कांग्रेस की विकृत और घृणित मानसिकता का फिर परिचय दिया। आपने श्रीमती इमारती देवी ही नहीं, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की एक-एक बेटी और बहन का अपमान किया है! कमलनाथ जी, आपको किसी भी महिला के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसने दिया?

भाजपा ने रखा मौन व्रत
मुख्यमंत्री शिवराज समेत मध्य प्रदेश के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने कमलनाथ के बयान के विरोध में सोमवार को अलग-अलग स्थानों पर मौन व्रत रखा। शिवराज ने ट्ववीट कर कहा – मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कल एक महिला के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, उससे मैं आहत हूँ, शर्मिंदा हूँ। आज बापू के चरणों में उनके लिए प्रायश्चित करने हेतु बैठा हूँ। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया इंदौर में मौन उपवास पर बैठे।
मायावती ने कहा कांग्रेस आलाकमान मांगे माफ़ी
बसपा नेत्री सोमवार को ट्वीट कर कहा – मध्यप्रदेश में ग्वालियर की डाबरा रिजर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव लड़ रही दलित महिला के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व सीएम द्वारा की गई घोर महिला-विरोधी अभद्र टिप्पणी अति-शर्मनाक व अति-निन्दनीय। इसका संज्ञान लेकर कांग्रेस आलाकमान को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी चाहिए।
मायावती ने कांग्रेस को सबक सीखाने को कहा
अपने दूर ट्वीट में मायावती ने कहा – साथ ही, कांग्रेस पार्टी को इसका सबक सिखाने व आगे महिला अपमान करने से रोकने आदि के लिए भी खासकर दलित समाज के लोगों से अपील है कि वे एम.पी. में विधानसभा की सभी 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अपना वोट एकतरफा तौर पर केवल बी.एस.पी. उम्मीदवारों को ही दें तो यह बेहतर होगा।
इमरती देवी ने भी कमलनाथ को उसी अंदाज में दिया जवाब
बयान से मचे बवाल के बीच इमरती देवी ने भी उसी अंदाज में कमलनाथ को जवाब दिया है। कमलनाथ की ही तर्ज पर इमरती ने कहा है कि वह क्या जाने महिलाओं की इज्जत कैसे की जाती है। इमरती ने कमलनाथ से सवाल भी किया कि वह आइटम का मतलब बता दें। साथ में यह भी कहा कि उसकी मां-बहन बंगाल की आइटम होंगी। मंत्री ने कहा कि कमलनाथ मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पागल हो गया है। वह अभिनेत्रियों के कमर में हाथ डालकर फोटो खिंचाता है।
कौन है इमरती देवी
इमरती देवी अनुसूचित जाति से सम्बन्ध रखती हैं। वर्ष 2018 में वे कमलनाथ सरकार में महिला व बाल विकास मंत्री बनी थीं। वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक मानी जाती हैं। इस वर्ष मार्च में वह कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में सम्मिलित हो गई थीं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ने पर विधानसभा की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया था। जुलाई में शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार होने पर इमरती देवी को फिर से महिला व बाल विकास मंत्री बनाया गया। इमरती देवी द्वारा त्यागपत्र देने के बाद रिक्त हुई सीट पर अब उप चुनाव हो रहे हैं।
भाजपा ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार विधान सभा चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं मुख्यालय प्रभारी अरुण सिंह की तरफ से बुधवार को जारी एक पत्र में कहा गया है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने देवेंद्र फडणवीस को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव हेतु चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है।
प्रभारी के रूप में घोषणा होने से पूर्व फडणवीस बिहार का दौरा कर चुके थे और पार्टी कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। तभी से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी उन्हें प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपेगी।
उल्लेखनीय है कि कोरोना संकट के बीच चुनाव आयोग ने 25 सितंबर को बिहार विधानसभा चुनाव की तिथि की घोषणा की। बिहार विधान सभा के लिए 28 अक्टूबर को प्रथम चरण, 3 नवम्बर को दूसरे चरण और 7 नवम्बर को अंतिम चरण का मतदान होगा। चुनाव परिणामों की घोषणा 10 नवंबर को होगी।
उत्तराखंड भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70 वें जन्मदिन को सेवा सप्ताह के रूप में मनाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस क्रम में बुधवार को पार्टी के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों, सांसदों, मंत्रियों, विधायकों, सरकार में विभिन्न निगमों-बोर्डों के अध्यक्ष व उपाध्यक्षों और संगठन के जिलाध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद स्थापित किया।
राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति में एक नये युग की शुरुआत की है। मोदी ने विकासपरक राजनीति की अवधारणा को जन्म दिया है और राजनीति को समाज सेवा से जोड़ कर उसमें गुणात्मक परिवर्तन करके दिखाया है।

उन्होंने कहा कि 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी का 70 वां जन्मदिवस है। उनके जन्मदिवस को देखते हुए भाजपा ने 14 से 20 सितंबर तक सेवा सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दौरान प्रदेश से लेकर जिला, मंडल व बूथ स्तर तक कोविड-19 के मानकों का पालन करते हुए कार्यक्रम आयोजित करने हैं।
उन्होंने कहा कि सेवा सप्ताह के प्रथम दिन दिव्यांगों को कृत्रिम अंग वितरण, दूसरे दिन गरीबों व अस्पतालों में मरीजों को फल वितरण, तीसरे दिन भाजपा युवा मोर्चा की ओर से रक्तदान व प्लाज्मा डोनेशन कैम्प लगाकर कोरोना की लड़ाई में सहभाग करने का कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। सप्ताह के चौथे दिन वृक्षारोपण, पांचवे दिन प्लास्टिक मुक्त पर्यावरण, छठे दिन स्वच्छता कार्यक्रम और अंतिम दिन मोदी सरकार की उपलब्धियों का सोशल मीडिया के माध्यम से जनता में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए योजना बनाकर क्रियान्वित करने को कहा।

इसके साथ उन्होंने 25 सितम्बर को एकात्म मानववाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को बूथ स्तर पर तक आयोजित किए जाने की बात कही। उन्होंने बताया कि पार्टी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितम्बर से महात्मा गांधी व लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर तक आत्मनिर्भर भारत सप्ताह के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए उन्होंने कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाकर प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। उन्होंने कहा कि इन सभी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं से लेकर विधायक,सांसद व मंत्रियों तक की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए ।
इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार ने पार्टी के आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की और सभी कार्यकर्ताओं से कार्यक्रमों की सफलता के लिए जुटने की अपील की।