- सिद्धार्थ शंकर गौतम
लेखक व पत्रकार
जिस मलेरकोटला की रक्षा का वचन गुरु गोविन्द सिंह जी ने स्वयं दिया था उसी को पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ईद के अगले दिन ही पंजाब का 23 वां व एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला बनाकर मुस्लिमों को ईदी का तोहफा दिया है। नए बने जिले में मलेरकोटला शहर, अमरगढ़ और अहमदगढ़ सीमा में आएंगे। गौरतलब है कि 1941 में मलेरकोटला में 38 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की थी जबकि सिख 34 प्रतिशत और हिंदू 27 प्रतिशत थे। पूर्व में संगरूर जिले में आने वाला और अब नया जिला बना मलेरकोटला आज मुस्लिम बहुल हो चुका है।
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर कहा कि यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ईद-उल-फितर के पाक मौके पर मेरी सरकार ने घोषणा की है कि मलेरकोटला राज्य का नवीनतम जिला होगा। 23वें जिले का विशाल ऐतिहासिक महत्व है। जिला प्रशासनिक परिसर के लिए उचित स्थान का तत्काल पता लगान का आदेश दिया है। मलेरकोटला को जिला का दर्जा देना कांग्रेस का चुनाव से पहले किया गया एक वादा था। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के वक्त पंजाब में 13 जिले थे। इस दौरान उन्होंने मलेरकोटला में 500 करोड़ रुपए की लागत से मेडिकल कॉलेज, एक महिला कॉलेज, एक नया बस स्टैंड और एक महिला पुलिस थाना बनाने की भी घोषणा की। मेडिकल कॉलेज के लिए वक्फ बोर्ड ने 25 एकड़ जमीन दी है जबकि लड़कियों के कॉलेज के लिए 12 करोड़ और बस स्टैंड के लिए 10 रुपए आवंटित करने की घोषणा भी की गई।
दरअसल, अमरिंदर सिंह ने मुस्लिम बहुल मलेरकोटला को जिला बनाकर कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को ही आगे बढ़ाया है। इससे पूर्व 1990 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ प्रसाद मिश्र ने मुस्लिम बहुल किशनगंज को जिला बनाकर एक नए विवाद को जन्म दिया था। आज यह क्षेत्र बांग्लादेशी मुस्लिम अवैध घुसपैठियों के लिए स्वर्ग है। इसी प्रकार 2005 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने मेवात को जिला बनाकर इस क्षेत्र को मिनी पाकिस्तान बना डाला। अभी एक साल पहले तक मेवात में हिन्दुओं के ऊपर हुए अत्याचारों व उनके पलायन की ख़बरों ने देश को झकझोर दिया था।
देखा जाए तो पंजाब की कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम बहुल मलेरकोटला को जिला बनाकर अपनी वाम समर्थित विचारधारा का ही परिचय दिया है। बिना वाम विचारधारा के कांग्रेस कुछ नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि 1969 में वरिष्ठ वामपंथी और केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ई.एम.एस.नम्बूदिरीपाद ने मुस्लिम बहुलता के आधार पर पहली बार मललप्पुरम जिले का गठन किया था जो आज कट्टरवादी मुस्लिमों के संगठन पीएफआई की आतंकी गतिविधियों का गढ़ बन चुका है।
कुल मिलाकर कांग्रेस सदा से ही हिंदुत्व को लेकर असहज रही है और 2014 के बाद राष्ट्रीय फलक पर नरेन्द्र मोदी के आने से उसके सॉफ्ट हिंदुत्व को झटका लगा है। मुस्लिमों के एकजुट वोट बैंक को लेकर उसकी राजनीति हमेशा से ही मुस्लिमों के इर्द-गिर्द चलती रही है। याद कीजिये मनमोहन सिंह सरकार के समय की सच्चर समिति की उस रिपोर्ट को जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में प्रशासनिक अधिकारी से लेकर अन्य शासकीय नियुक्तियां मुस्लिम होना चाहिए ताकि वहां की बहुसंख्यक आबादी उनके साथ सहज हो। ऐसा होना प्रारंभ भी हुआ था किन्तु नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रथा पर रोक लगी।
मुस्लिम समाज भी ऐसा चाहता है कि जहां उसकी बहुतायत हो वहां उन्हीं की कौम के अधिकारी रहें, जबकि यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है किन्तु इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने कभी संविधान के हिसाब से चलना स्वीकार नहीं किया है। अब जबकि हिन्दू कांग्रेस की मुस्लिमपरस्ती को समझ चुका है वह एक बार पुनः मुस्लिम वोट बैंक के सहारे देश में धर्म के नाम पर विभेद पैदा कर राज करने की मंशा पाले बैठी है। मुस्लिम बहुल मलेरकोटला को जिला बनाने का निर्णय हमें इसी परिपेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है।
अब सवाल यह है कि मुस्लिम बहुल जिलों के इतिहास को देखते हुए क्या मलेरकोटला शांत रह पायेगा? क्या यहाँ रहने वाले सिख और हिन्दू भाई-बहन सुरक्षित रहेंगे? क्या फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा (जिस स्थान पर गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों बेटों को दीवार में जिन्दा चुनवा दिया गया था उन्हीं की याद में बनाया गया) और किसी अशांति का गवाह नहीं बनेगा? क्या कांग्रेस भारत में अन्दर ही अन्दर कई पाकिस्तान बनाने का प्रयास कर रही है? प्रश्न कई हैं जिनका उत्तर भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल तो सिख-मुस्लिम भाई-भाई के नारे पर चढ़कर पंजाब की कांग्रेस सरकार सेकुलरिज्म की नई मिसाल पेश कर रही है।