वन संसाधनों से राजस्व बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए- सीएम धामी..
उत्तराखंड: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में वन विभाग और ऊर्जा निगम की गेम चेंजर योजनाओं की समीक्षा की। बैठक में उन्होंने वन विभाग को वनों के संरक्षण के साथ-साथ वन संपदाओं से राजस्व बढ़ाने के लिए और अधिक प्रभावी प्रयास करने के निर्देश दिए। साथ ही ऊर्जा निगम को ऊर्जा क्षेत्र में नई संभावनाओं पर कार्य करने की सलाह दी। सरकार नवीकरणीय ऊर्जा, जलविद्युत और अन्य ऊर्जा स्रोतों के बेहतर उपयोग पर फोकस कर रही है, जिससे प्रदेश की ऊर्जा क्षमता को बढ़ावा दिया जा सके।
सीएम धामी ने वन विभाग को निर्देश दिए कि गेस्ट हाउस के आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाए ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।
इसके साथ ही उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए कारगर उपाय अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। सीएम ने कहा कि वन संपदाओं के बेहतर उपयोग से प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ावा दिया जाए, जिससे स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ हो सके।
बैठक में अधिकारियों ने कहा कि इको टूरिज्म के अंतर्गत इको कैंपिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, पुराने फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के रिस्टोर, स्थानीय युवाओं को विभिन्न गतिविधियों जैसे नेचर गाइड का प्रशिक्षण और क्षमता विकास कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इको टूरिज्म के लिए समर्पित एक वेबसाइट बनाई जाएगी। अभी तक विभिन्न क्षेत्रों में संचालित इको टूरिज्म क्षेत्र से स्थानीय युवाओं को लगभग पांच करोड़ रुपये, जिप्सी संचालन से 17 करोड़ और स्वयं सहायता समूह को 30 लाख की आय हुई है।
कागजों में नहीं धरातल पर दिखाई दें प्रयास..
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने वनाग्नि (जंगल की आग) की रोकथाम के लिए प्रभावी कार्ययोजना और रणनीति तैयार करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये प्रयास केवल कागजों तक सीमित नहीं रहने चाहिए, बल्कि धरातल पर प्रभावी रूप से लागू होने चाहिए। सीएम धामी ने यह भी कहा कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं को रोकने के लिए अन्य राज्यों की बेस्ट प्रैक्टिस का अध्ययन किया जाए और राज्य में इसके आधार पर एक ठोस कार्ययोजना बनाई जाए। सरकार का उद्देश्य वन संरक्षण को मजबूत करने, जंगलों में आग की घटनाओं को कम करने और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक संभावनाओं पर कार्य करने की जरूरत..
सीएम धामी ने ऊर्जा निगम की समीक्षा बैठक में कहा कि राज्य में ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की दिशा में तेजी से कार्य किया जाए। लघु जल विद्युत परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दें। कहा कि राज्य की मुख्य अवधारणा में ऊर्जा और पर्यटन प्रदेश था। पर्यटन के क्षेत्र में राज्य में तेजी से कार्य हो रहे हैं, लेकिन ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक संभावनाओं पर कार्य करने की जरूरत है। शहरी क्षेत्रों में बिजली लाइन को भूमिगत करने का कार्य मानसून शुरू होने से पहले पूरा किया जाए। सरकारी भवनों में सोलर रूफ टॉप लगाने का कार्य जल्द पूरा करें। यूजेवीएनएल, यूपीसीएल की जो परिसंपत्तियां उपयोग में नहीं है, उनको उपयोग में लाने के लिए प्रभावी कार्य योजना बनाएं।
बैठक में अधिकारियों ने कहा कि वर्ष- 2023 में संशोधित जल विद्युत नीति के अनुसार वन टाइम एमनेस्टी के तहत कुल 160.80 मेगावाट के आठ प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई हैं। ये प्रोजेक्ट 2030 तक 1790 करोड़ की लागत से पूरे होंगे। साथ ही 121 मेगावाट के छह प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिली है। इससे क्षेत्र का सामाजिक आर्थिक विकास होगा। यूजीवीएनएल 2028 से तीन पंप स्टोरेज का कार्य शुरू कर 2031 में पूरा करेगा। लगभग 5660 करोड़ की लागत इन तीनों पंप स्टोरेज में इच्छारी , लखवार-व्यासी और व्यासी-कटापत्थर प्रोजेक्ट शामिल हैं।
जंगल की आग रोकने के लिए एप को ढाल बनाएगा वन विभाग, जल्द होगी लॉन्च..
उत्तराखंड: वन विभाग जंगलों में लगने वाली आग पर नियंत्रण के लिए तकनीकी मदद ले रहा हैं। इस दौरान नए प्रयोगों के जरिए वनाग्नि रोकथाम के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इस कड़ी में सूचना प्रबंधन प्रणाली को डिजिटलाइज करते हुए विभाग ने फॉरेस्ट फायर उत्तराखंड मोबाइल एप विकसित किया। जिसे संचालित करने के लिए राज्य भर में वन कर्मियों को प्रशिक्षण का कार्यक्रम तय किया गया है। उत्तराखंड में जंगलों की आग पर रोकथाम के लिए रिस्पांस टाइम को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए विभाग ने हाल ही में फॉरेस्ट फायर उत्तराखंड मोबाइल एप विकसित किया है। इस एप के माध्यम से विभाग का दावा है कि वनाग्नि के दौरान रिस्पांस टाइम में बेहद कमी लाई जा सकेगी। फिलहाल विभाग के अधिकारी मोबाइल एप के बेहतर प्रयोग को वन विभाग के कर्मचारियों तक पहुंचाने के प्रयास कर रहे हैं।
आपको बता दे कि उत्तराखंड वन विभाग फॉरेस्ट फायर उत्तराखंड मोबाइल एप को संचालित करने के लिए कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने जा रहा है। इसके लिए बाकायदा ट्रेनिंग के कार्यक्रम भी तय किए गए हैं। इसके तहत हरिद्वार के डीएफओ वैभव कुमार मोबाइल एप के संचालन हेतु मास्टर कंट्रोल रूम ऑपरेटर/मास्टर ट्रेनर को प्रशिक्षण देंगे। राज्य में प्रत्येक वन प्रभाग से दो मास्टर ट्रेनर, एक कंप्यूटर ऑपरेटर और एक मास्टर कंट्रोल रूम कर्मचारी को नामित किया गया है।
गढ़वाल और भागीरथी वृत के अंतर्गत कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इसी तरह शिवालिक वृत्त में 14 नवंबर, उत्तरी कुमाऊं वृत में 16 नवंबर, दक्षिणी कुमाऊं वृत में 18 नवंबर, पश्चिम वृत में 19 नवंबर और 20 नवंबर को कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस दौरान रिस्पांस टाइम को देखने के लिए भी दो वाहनों में जीपीएस लगाकर फॉरेस्ट फायर उत्तराखंड मोबाइल ऐप के जरिए ट्रैक किया जाएगा। ताकि मोबाइल ऐप के माध्यम से घटना के बाद रिस्पांस टाइम की स्थिति को देखा जा सके। इसके साथ ही जंगलों में आग के अलर्ट जल्द से जल्द मिल सके, इसके लिए मिशन मोबाइल पर अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ ही ग्राम प्रधानों, पंचायत सरपंचों के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को भी एफएसआई द्वारा विकसित फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम से जोड़ने की कार्रवाई की जाएगी।
विभागीय अनुदान पास कराने के एवज में रिश्वत लेते वन विभाग का दरोगा गिरफ्तार..
उत्तराखंड: विजिलेंस की टीम ने वन विभाग चाकीसैंण सैक्सन पावौ रेन्ज पौड़ी के वन दरोगा को सरकारी कार्य की एवज में 15 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। मामले को लेकर शिकायतकर्ता ने विजिलेंस में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत सही पाई जाने पर विजिलेंस की टीम ने आरोपी को अरेस्ट कर लिया है। शिकायतकर्ता का कहना हैं कि बीते 2 मार्च 2024 को पैठाणी पौड़ी गढवाल में वन पंचायत पाबो की सभा हुई थी। जिसमें वन पंचायत के अन्तर्गत आने वाले गांवों की आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगो को मुर्गी, बकरी पालन जैसे कार्यो को विभागीय अनुदान दिये जाने के संबंध में जानकारी दी गई।
शिकायतकर्ता ने बकरी पालन के लिए 50 हजार का अनुदान मांगा। जिसके बाद विभाग ने उसके खाते में राशि जमा करा दी। इस बीच वह मौजूद वन दरोगा हंस राज पंत ने शिकायतकर्ता से उस सम्बन्ध में फार्म भरवाने और विभागीय अनुदान पास करवाने की एवज में रिश्वत की मांग की। प्रथम दृष्टया शिकायतकर्ता के आरोप सही पाए गए। जिसके बाद विजिलेंस की टीम ने मंगलवार को चाकीसैंण सैक्सन पावौ रेन्ज पौड़ी के वन दरोगा हंस राज पंत को शिकायतकर्ता से 15 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए पैठाणी बाजार पौड़ी गढवाल से रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। फिलहाल आरोपी दरोगा से पूछताछ जारी है।
उत्तराखंड में धधक रहे जंगल को देख भड़क गया सुप्रीम कोर्ट, दिया यह आदेश..
उत्तराखंड: प्रदेश के जंगलों में लगी आग पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगायी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि उसने ज़रूरत के अनुसार फंड राज्य सरकार को क्यों नहीं दिया। बता दें उत्तराखंड के जंगलों में धड़क रही आग का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि उसने जरूरत के मुताबिक फंड राज्य सरकार को क्यों नहीं दिया। इसके साथ ही राज्य सरकार की तरफ से फंड का सही इस्तेमाल न किए जाने पर भी कोर्ट ने सवाल उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की भी आलोचना की कि वन विभाग के अधिकारियों को भी चुनाव ड्यूटी में लगाया गया। कोर्ट ने उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से शुक्रवार को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर जवाब देने के लिए कहा है। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले हुई सुनवाई में धामी सरकार को कहा था कि बारिश या क्लाउड सीडिंग के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। आग की रोकथाम के लिए जल्द से जल्द कोई अन्य कदम उठाने की जरुरत है।
जंगल में आग लगाते हुए रंगे हाथों पकड़े गए सात लोग, मुकदमा दर्ज..
उत्तराखंड: प्रदेश में जंगल धधक रहे हैं और आग बुझाने के लिए वन विभाग की टीम दिन-रात काम कर रही है। इसी बीच रविवार को वन विभाग की टीम ने अलग-अलग वन क्षेत्र में आरक्षित वनों में आग लगाने वाले सात आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ा है। सभी पर वन अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। इसके साथ ही एक आरोपी को जेल भेज दिया गया है। सभी को अलग-अलग जगह से पकड़ा गया है। भूमि संरक्षण वन प्रभाग लैंसडौन के वनकर्मियों ने जंगल में आग लगाते हुए एक नेपाली मजदूर को पकड़ा। टीम ने मजदूर को पुलिस के हवाले कर दिया है। मजदूर के तीन साथियों ने उसके खिलाफ बयान दिए हैं। मिली जानकारी के अनुसार आरोपी कुल्हाड़ मोड़ के समीप सड़क किनारे जंगल में आग लगा रहा था और उसके हाथ में गैस लाइटर भी था।
5 आरोपियों को वन विभाग ने एक साथ दबोचा..
पौड़ी जिले में वन विभाग की टीम ने आरक्षित वनों में आग लगाने वाले 5 आरोपियों को दबोचा है। विभाग का कहना हैं कि पांचों को खिर्सू की समीप आरक्षित वन में आग लगाते हुए देखा गया है। विभाग आरोपियों को जल्द ही कोर्ट में पेश करेगा। बता दे कि पौड़ी रेंज के तहत खिर्सू में आरक्षित वनों को आग से बचाने के लिए वन विभाग की टीम गश्त कर रही थी। इसी दौरान उन्होंने पांच लोगों मोसार आलम, नाजेफर आलम, फिरोज आलम, नुरूल व शालेम को आरक्षित वन में आग लगाते हुए दबोच लिया। बताया जा रहा है कि ये सभी बिहार के रहने वाले मजदूर हैं और खिर्सू के चौबट्टा में रहते हैं।
उत्तराखंड में इन अधिकारियों के हुए बंपर तबादले..
उत्तराखंड: शासन ने वन विभाग में अधिकारियों के बंपर तबादले किए है। कई अधिकारियों को नई तैनाती दी गई है। वन विभाग में अपर प्रमुख वन संरक्षक विवेक पाण्डे सहित कई डीएफओ को इधर से उधर कर दिया गया है। जिसके आदेश जारी किए गए है।
प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून वन प्रभाग नीतीशमणि को पदोन्नति के बाद वन संरक्षक वन प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी के पद पर नई तैनाती दी गई है।
वन विभाग में अपर प्रमुख वन संरक्षक विवेक पाण्डे सहित कई डीएफओ को इधर से उधर कर दिया गया है।
वन अनुसंधान प्रबंधन एवं प्रशिक्षण हल्द्वानी विवेक पाण्डे का तबादला अपर प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव के पद पर किया गया है।
मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा से वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन को हटाते हुए उन्हें प्रभारी नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन बनाया गया है।
प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून वन प्रभाग नीतीशमणि को पदोन्नति के बाद वन संरक्षक वन प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी के पद पर नई तैनाती दी गई है।
वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त हल्द्वानी दीप चंद्र आर्य वन संरक्षक हल्द्वानी तबादला किया गया है।
वन संरक्षक पौड़ी गढ़वाल पंकज कुमार को वन संरक्षक नंदा देवी बायोिस्फयर तबादला किया गया है।
वन संरक्षक आकाश वर्मा का वन संरक्षक पौड़ी गढ़वाल के पद पर तबादला किया गया है।
वन संरक्षक यमुना वृत्त डा.विनय भार्गव का वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त हल्द्वानी तबादला किया गया है।
वन संरक्षक मयंक शेखर झा का क्षेत्रीय प्रबंधक उत्तराखंड वन विकास निगम तबादला किया गया है।
वन संरक्षक कहकशां नसीम का यमुना वृत्त तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक नीरज कुमार को डीएफओ देहरादून तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक वैभव कुमार सिंह का डीएफओ हरिद्वार तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक अमित कंवर को डीएफओ मसूरी तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक जीवन मोहन दगाड़े का डीएफओ नरेंद्रनगर तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक आशुतोश सिंह का डीएफओ पिथौरागढ़ तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक हिमांशु बागड़ी का डीएफओ तराई पूर्वी हल्द्वानी तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक अभिमन्यु का डीएफओ चकराता एवं उप वन निदेशक गोविंद वन्य जीव पशु विहार तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक कल्याणी का प्रमुख वन संरक्षक कार्यालय से डीएफओ रुद्रप्रयाग तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक महातिम यादव का उप निदेशक राजाजी नेशनल पार्क तबादला किया गया है।
उप वन संरक्षक कुंदन कुमार को उप वन संरक्षक अनुसंधान हल्द्वानी भेजा गया है
उप वन संरक्षक डा.अभिलाषा सिंह का उप निदेशक उत्तराखंड वन प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी
सहायक वन संरक्षक उमेश चंद्र तिवारी का डीएफओ तराई केंद्र वन प्रभाग हल्द्वानी के पद पर तबादला किया गया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश सचिवालय की कार्यप्रणाली को चुस्त-दुरस्त करने और कार्मिकों के रवैये में सुधार लाने के लिए पिछले दिनों कई सख्त फैसले लेने पड़े थे। मगर सचिवालय के कुछ कार्मिकों ने तो शायद यह ठान रखी है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो सुधरेंगे नहीं। वर्तमान में एक प्रकरण वन विभाग से जुड़ा हुआ सामने आया है, जिसमें वन अनुभाग के कार्मिकों की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण शासन की फजीहत हो गयी। वन अनुभाग के कार्मिकों ने उत्तराखंड वन निगम में प्रतिनियुक्ति से संबंधित एक मामले के आदेश की प्रति प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर हुए बिना ‘लीक’ कर दी।
दरअसल, मई माह में उत्तराखंड वन विकास निगम के के प्रबंध निदेशक मोनिष मल्लिक ने प्रदेश के मुख्य वन सरंक्षक, मानव संसाधन विकास एवं कार्मिक प्रबंधन मनोज चंद्रन को एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने वन निगम में विभिन्न अधिकारियों के सेवानिवृत होने के फलस्वरूप रिक्त पड़े पदों के कार्य संचालन में हो रही कठिनाइयों का उल्लेख किया और वन विभाग से 10 राजि अधिकारी स्तर के कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने का अनुरोध किया।
वन निगम के पत्र पर तत्काल कार्रवाई करते हुए मनोज चंद्रन ने मुख्य वन सरंक्षक, गढ़वाल और कुमायूं को निगम के पत्र का हवाला देते हुए प्रतिनियुक्ति हेतु वन क्षेत्राधिकारियों, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारियों तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों से आवेदन पत्र एक निर्धारित प्रारूप पर भेजने को कहा। इस क्रम में इच्छुक कार्मिकों द्वारा विभागीय माध्यम से अपने आवेदन पत्र भेज दिए गए। वन मुख्यालय ने अपने स्तर से आवश्यक कार्रवाई कर इस प्रकरण को शासन को भेज दिया।
मामला तब चर्चा में आया, जब विभागीय मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुमोदन के बाद फाइल वापस सचिवालय में पहुंची। सचिवालय पहुंचते ही फाइल से प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले कार्मिकों के आदेश की प्रति वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों के व्हाट्सएप पर घूमने लगी। मजेदार बात ये है कि इस आदेश पर विभाग के प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर भी नहीं हुए थे।


वन निगम के कार्मिकों को आदेश की जानकारी लगने पर उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया। वन निगम के जूनियर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने तर्क दिया की वन विभाग से जिन कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर लिया जा रहा है, वो कनिष्ठ श्रेणी के हैं और उनको निगम में वरिष्ठ श्रेणी के पदों पर तैनाती देना उचित नहीं होगा। उन्होंने इस संबंध में प्रमुख सचिव (वन) आनंद वर्धन को अपना लिखित ज्ञापन भी सौंपा।
प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बावजूद आदेश को जारी होने से रोक दिया और इस पर वन निगम के प्रबंध निदेशक मल्लिक से आख्या मांगी। प्रबंध निदेशक ने निगम के कार्मिकों की मांग के अनुरूप अपनी आख्या शासन को भेज दी। प्रबंध निदेशक की आख्या के बाद प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने शुक्रवार को वन क्षेत्राधिकारी स्तर के पांच कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने की स्वीकृति दे दी।
इधर, वन विभाग के कार्मिकों का कहना है इस मामले में वन निगम के कार्मिकों का विरोध औचित्यहीन है। वन निगम में प्रतिनियुक्ति हेतु जिस स्तर के कार्मिक मांगे गए थे, उनके विभाग के कार्मिक उस लिहाज से कहीं कनिष्ठ नहीं हैं। वन निगम में स्केलर पद से पदोन्नति पाए कर्मचारी वरिष्ठ पदों पर कब्ज़ा जमाए हुए हैं और प्रभारी के रूप में चार्ज लिए हुए हैं। वन विभाग के वन क्षेत्राधिकारी, प्रभारी वन क्षेत्राधिकारी तथा वरिष्ठ उप वन क्षेत्राधिकारियों की वरिष्ठता व वेतनमान में प्रतिनियुक्ति हेतु मांगे गए पद में बहुत अंतर नहीं है।
बहरहाल, यह प्रकरण वन विभाग व वन निगम के कार्मिकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल उठ रहा है कि क्या जब प्रतिनियुक्ति के लिए नियम तय किये गए, तब विभागीय अधिकारियों और शासन को वरिष्ठता-कनिष्ठता का पता नहीं था? या फिर वन निगम के प्रबंधक निदेशक अपने कर्मचारी संगठन के दवाब में आ गए ? जब फाइल शासन में विभिन्न स्तरों पर गुजरी तब भी किसी स्तर पर आपत्ति क्यों नहीं लगाई गई ? सवाल यह भी हो रहा है कि विभागीय मंत्री के अनुमोदन के बाद क्या विभागीय प्रमुख सचिव मामले में आपत्ति लगा सकते हैं ? और सबसे बड़ा सवाल कि सचिवालय के जिन कार्मिकों ने बिना हस्ताक्षरों के आदेश को लीक कर शासन की गोपनीयता भंग की और इस मामले को विवादित बना दिया, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी ?