मात्र 28 वर्ष की आयु में पाई थी वीरगति, वायु सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों ने
भारतीय वायु सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों ने 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ते हुए मात्र 28 वर्ष की आयु में वीरगति पाई। इस युद्ध में भारत विजयी हुआ और पाकिस्तान से टूटकर उसका पूर्वी हिस्सा, बांग्लादेश के नाम से स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। 14 दिसम्बर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह ड्यूटी के लिए तैयार थे। उसी समय, दुश्मन के कम से कम छह वायुयान ऊपर उड़ान भरने लगे और उन्होंने एयरफील्ड पर बमबारी और गोलाबारी शुरू कर दी।
सुरक्षा टुकड़ी की कमान संभालते हुए फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह वहां पर 18 नेट स्क्वाड्रन के साथ तैनात थे। दुश्मन F-86 सेबर जेट वेमानों के साथ आया था। उस समय निर्मलजीत के साथ फ्लाइंग लैफ्टिनेंट घुम्मन भी कमर कस कर मौजूद थे। एयरफील्ड में एकदम सवेरे काफ़ी धुंध थी। सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर चेतावनी मिली थी कि दुश्मन आक्रमण पर है। निर्मलसिंह तथा घुम्मन ने तुरंत अपने उड़ जाने का संकेत दिया और दस सेकेण्ड के बाद उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उड़ जाने का निर्णय लिया। हमले के दौरान उड़ान भरने में जान का भारी खतरा होने के बावजूद, उन्होंने उड़ान भरी ठीक 8 बजकर 4 मिनट पर दोनों वायु सेना-अधिकारी दुश्मन का सामना करने के लिए आसमान में थे।
उस समय दुश्मन का पहला F-86 सेबर जेट एयर फील्ड पर गोता लगाने की तैयारी कर रहा था। एयर फील्ड से पहले घुम्मन के जहाज ने रन वे छोड़ा था। उसके बाद जैसे ही निर्मलजीत सिंह का नेट उड़ा, रन वे पर उनके ठीक पीछे एक बम आकर गिरा। घुम्मन उस समय खुद एक सेबर जेट का पीछा कर रहे थे। सेखों ने हवा में आकर दो सेबर जेट विमानों का सामना किया, इनमें से एक जहाज वही था, जिसने एयर फिल्ड पर बम गिराया था। बम गिरने के बाद एयर फील्ड से कॉम्बैट एयर पेट्रोल का सम्पर्क सेखों तथा घुम्मन से टूट गया था।
The First PVC for IAF
— Indian Air Force (@IAF_MCC) December 14, 2020
On 14 Dec, Srinagar airfield was attacked by six Sabres. Fg Offr Nirmal Jit Singh Sekhon of No.18 Sqn who was on the runway, took off in his Gnat to engage enemy fighters. He shot down one Sabre & set another on fire before he made the supreme sacrifice. pic.twitter.com/IerVp1qbtr
सारी एयरफिल्ड धुएं और धूल से भर गई थी, जो उस बम विस्फोट का परिणाम थी। इस सबके कारण दूर तक देख पाना कठिन था। तभी फ्लाइट कमाण्डर स्क्वाड्रन लीडर पठानिया को नजर आया कि कोई दो हवाई जहाज मुठभेड़ की तैयारी में हैं। घुम्मन ने भी इस बात की कोशिश की, कि वह निर्मलजीत सिंह की मदद के लिए वहां पहुंच सकें, लेकिन यह सम्भव नहीं हो सका। तभी रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी…
मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…
उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसपान में गूंजी और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया:
मैं मुकाबले पर हूँ और मुझे मजा आ रहा है। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं। मैं एक का ही पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।
इस सन्देश के जवाब में स्क्वेड्रन लीडर पठानिया ने निर्मलजित सिंह को कुछ सुरक्षा सम्बन्धी हिदायत दी, जिसे उन्होंने पहले ही पूरा कर लिया था। इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज़ भी आई। अभी निर्मलजीत सिंह को कुछ और भी करना बाकी था, उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा-
शायद मेरा नेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।
यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम सन्देश था। अपना काम पूरा करके वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके अद्भुत शौर्य के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। फ्लाइंग अफसर सेखों ने मौत से साक्षात्कार करते हुए अपने असाधारण शौर्य, अदम्य साहस, उड़ान कौशल, दृढ़ निश्चय और इन सबसे अधिक अपनी उल्लेखनीय कर्त्तव्यपरायणता का परिचय देते हुए वायु सेना की परंपराओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। (विश्व संवाद केंद्र के इनपुट के साथ हिम दूत ब्यूरो)