उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य में बिना पंजीकरण के चल रहे मदरसों पर सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। देहरादून के विकासनगर और सहसपुर में प्रशासन ने बुधवार को 12 और मदरसों को सील कर दिया। इससे पहले 19 मदरसों पर कार्रवाई की जा चुकी थी, जिससे अब तक कुल 31 अपंजीकृत मदरसों को बंद किया जा चुका है। प्रशासन ने साफ किया है कि बिना पंजीकरण के संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान को अनुमति नहीं दी जाएगी।
मुख्य बिंदु:
. अब तक 31 अपंजीकृत मदरसों पर कार्रवाई
. शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता
. स्थानीय विरोध के बावजूद कार्रवाई जारी
. मुख्यमंत्री ने कहा – बच्चों के भविष्य के साथ समझौता नहीं
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह कदम राज्य में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए जरूरी है। प्रशासन ने बताया कि सभी शैक्षणिक संस्थानों का सत्यापन किया जा रहा है और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर इसी तरह की कार्रवाई जारी रहेगी।
उत्तराखंड में विधायक निधि खर्च को लेकर आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार, 2022-23 से दिसंबर 2024 तक 70 विधायकों को 964 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिसमें से 61% (589.21 करोड़ रुपये) खर्च हुए।
कैबिनेट मंत्रियों में कौन आगे, कौन पीछे?
कैबिनेट मंत्रियों में सौरभ बहुगुणा (सितारगंज) ने 85% निधि खर्च कर शीर्ष स्थान हासिल किया। उनके बाद गणेश जोशी (72%), रेखा आर्य (64%), सुबोध उनियाल (57%) और सतपाल महाराज (56%) का स्थान रहा। हालांकि, कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (33%) और डॉ. धन सिंह रावत (29%) निधि खर्च में सबसे पीछे रहे, जिन्हें अधिक सक्रियता दिखाने की जरूरत है।
विधायकों में प्रदीप बत्रा सबसे आगे, किशोर उपाध्याय सबसे पीछे
विधायकों में प्रदीप बत्रा (रुड़की) ने 90% निधि खर्च कर पहला स्थान प्राप्त किया, जबकि किशोर उपाध्याय (टिहरी) सिर्फ 15% निधि खर्च कर सबसे पीछे रहे।
61% से कम खर्च करने वाले प्रमुख विधायक
बंशीधर भगत (कालाढूंगी) – 43%
भरत सिंह चौधरी (रुद्रप्रयाग) – 43%
किशोर उपाध्याय (टिहरी) – 15%
सुमित ह्रदयेश (हल्द्वानी) – 46%
यशपाल आर्य (बाजपुर) – 45%
उत्तराखंड में विधायक निधि खर्च में बड़े अंतर देखने को मिले हैं। जहां कुछ मंत्री और विधायक 85-90% तक निधि खर्च कर चुके हैं, वहीं कई 50% से भी कम खर्च कर पाए हैं। यह आंकड़े जनप्रतिनिधियों की सक्रियता पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
प्रदेश में विकास कार्यों और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए समूह-क और समूह-ख अधिकारियों को अब हवाई यात्रा की अनुमति मिल गई है। सरकार के इस फैसले से निर्माण, निरीक्षण और अनुश्रवण कार्यों में तेजी आएगी।
हवाई यात्रा को लेकर नए दिशा-निर्देश
. वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने मंगलवार को इस संबंध में आदेश जारी किए।
. यह अनुमति 1 मार्च 2025 से 28 फरवरी 2026 तक के लिए दी गई है।
. इस अवधि के बाद योजना की समीक्षा होगी, और समूह-ग के कर्मचारियों को भी हवाई यात्रा की अनुमति देने पर विचार किया जाएगा।
. योजना से संबंधित सभी जानकारियां नागरिक उड्डयन विकास विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध रहेंगी।
. राज्य से बाहर की सरकारी यात्राओं के लिए 23 जनवरी 2019 के शासनादेश का पालन करना होगा, यानी सरकार की अनुमति लेनी होगी।
तहसील दिवस में घटती रुचि, अधिकारियों को करना पड़ा इंतजार
जहां एक ओर सरकारी अधिकारी विकास योजनाओं में तेजी लाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं तहसील दिवस में आमजन की भागीदारी लगातार घट रही है।
. 31 विभागों के अधिकारी सुबह 11 बजे निर्धारित समय पर तहसील दिवस के लिए पहुंचे।
. पहले दो घंटे तक कोई फरियादी नहीं आया, अधिकारियों को इंतजार करना पड़ा।
. आखिरी घंटे में सिर्फ 9 फरियादी पहुंचे, जिनकी समस्याओं का मौके पर निस्तारण किया गया।
तहसील दिवस में घटती शिकायतों का कारण
. तहसील दिवस से पहले हर सोमवार को जिलाधिकारी कार्यालय में जनता दरबार लगता है, जहां अधिकतर शिकायतों का समाधान हो जाता है।
. पिछले 7 महीनों में 189 अधिकारियों की उपस्थिति रही, जबकि शिकायतें मात्र 77 दर्ज हुईं।
. सबसे ज्यादा अक्टूबर में 25 शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि अन्य महीनों में यह संख्या कम रही।
अधिकारियों की उपस्थिति बनाम शिकायतों की संख्या (पिछले 7 महीने)
. सितंबर: 28 अधिकारी, 5 शिकायतें
. अक्टूबर: 31 अधिकारी, 25 शिकायतें
. नवंबर: 25 अधिकारी, 6 शिकायतें
. दिसंबर: 13 अधिकारी, 11 शिकायतें
. जनवरी: 33 अधिकारी, 6 शिकायतें
. फरवरी: 28 अधिकारी, 11 शिकायतें
. मार्च: 31 अधिकारी, 9 शिकायतें
सरकारी अधिकारियों के लिए हवाई यात्रा की अनुमति प्रशासनिक कामों में गति लाएगी, जबकि तहसील दिवस में शिकायतों की संख्या में गिरावट यह दर्शाती है कि जनता अन्य माध्यमों से अपनी समस्याएं सुलझा रही है।
उत्तराखंड में सहकारिता समितियों की चुनाव प्रक्रिया को नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने अगले आदेश तक स्थगित कर दिया है। प्राधिकरण की सदस्य सचिव रमिन्द्री मन्द्रवाल ने इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी किया है।
चुनाव प्रक्रिया पर लगा विराम
गौरतलब है कि सोमवार को राज्य के कई जिलों में सहकारी समितियों के चुनाव आयोजित किए गए थे। लेकिन अब हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पूरी चुनाव प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। कोर्ट के आगामी आदेशों के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
हाईकोर्ट का आदेश: पुरानी नियमावली से ही होंगे चुनाव
नैनीताल हाईकोर्ट ने एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सहकारिता समितियों के चुनाव पुरानी नियमावली के अनुसार ही कराए जाएं। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और सरकार के नए संशोधनों पर आपत्ति जताई।
मामले का पूरा विवरण
. सहकारी समिति ने एकलपीठ के आदेश को विशेष अपील के माध्यम से चुनौती दी थी।
. अपील में कहा गया था कि चुनाव के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को लागू किया जाए।
. हालाँकि, याचिकाकर्ताओं (भुवन पोखरिया व अन्य) ने इसे नियमों के खिलाफ बताते हुए मांग की थी कि चुनाव पूर्व के नियमों के अनुसार ही कराए जाएं।
नियम संशोधन पर विवाद
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि राज्य सरकार ने चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के बाद नियमावली में संशोधन किया, जो प्रक्रियात्मक रूप से गलत है।
. चुनाव प्रक्रिया दिसंबर से शुरू हो चुकी थी, ऐसे में संशोधन करना नियम विरुद्ध माना जा रहा है।
. सरकार ने संशोधन के जरिए सेवानिवृत्त और समिति के गैर-सदस्यों को भी मतदान का अधिकार दे दिया, जो पूर्व के नियमों का उल्लंघन है।
पूर्व के नियमों के अनुसार, केवल वही लोग चुनाव में प्रतिभाग कर सकते हैं, जो तीन वर्षों से समिति के सदस्य हैं।
सरकार की आगे की रणनीति पर नजर
अब राज्य सरकार को हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए पुरानी नियमावली के अनुसार ही चुनाव संपन्न कराने होंगे। सहकारी समितियों के चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए प्रशासन को सभी जरूरी कदम उठाने होंगे। इस निर्णय से सहकारी समितियों के सदस्यों और चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के बीच कानूनी स्थिति स्पष्ट होगी। साथ ही, राज्य सरकार को अपने संशोधन प्रस्तावों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। भविष्य में हाईकोर्ट के अगले आदेश और सरकार की नई रणनीति पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।
बागेश्वर चुनाव को लेकर बीजेपी की बडी रणनीति…
भाजपा प्रत्याशी पार्वती दास आज करेंगी नामांकन…
उत्तराखण्ड: बागेश्वर विधान सभा उपचुनाव में बीजीपे की प्रत्याशी पार्वती दास आज नामांकन भरेंगी जिनके साथ मुख्यमंत्री धामी मौजूद रहेंगें। बता दें कि चन्दन राम दास जी के निधन के बाद बागेश्वर विधानसभा सीट खाली चल रही है जिस पर उपचुनाव होने जा रहा है जिसके लिए बीजेपी ने कोई रिस्क न लेते हुए चन्दन राम दास पूर्व विधायक की पत्नी पार्वती दास उपचुनाव लड़ाने पर सहमति दी।बता दें कि नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट सहित भाजपा के कई नेता मौजूद रहेंगे। इसके साथ ही बीजेपी के दिग्गज नेता आज जनता से रूबरू भी होंगे। पूर्व विधायक और मंत्री चंदन राम दास की मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी।
बीजेपी के पक्ष में वोट मांगेंगे सीएम धामी…
पार्वती दास के पक्ष में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज बागेश्वर में आयोजित जनसभा को करेंगे संबोधित। इसके जरिए वे पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में लोगों का समर्थन मांगेंगे। बता दें कि पार्वती दास पूर्व विधायक और मंत्री चंदन राम दास की पत्नी हैं। चंदन राम दास के निधन के बाद यह सीट खाली हुई है। इसी खाली सीट पर अब उपचुनाव हो रहा है।
उत्तराखंड। केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में लगे सोने को पीतल में बदलने का सबसे पहले वीडियो वायरल करने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक मनोज रावत खुद सवालों के घेरे में आ गए हैं। भाजपा ने केदारनाथ आपदा के समय आपदा राहत कार्यों को लेकर ना केवल तत्कालीन कांग्रेस सरकार को घेरा है, बल्कि आपदा घोटाले में मनोज रावत को भी कठघरे में खड़ा किया है।
भाजपा ने केदारनाथ में स्वर्णमंडन के कार्य में घोटाले का आरोप लगाने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक मनोज रावत को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन्हें केदारनाथ आपदा में हुए घोटालों पर सही स्थिति जनता के सामने रखने की जरूरत है, क्योंकि सभी मामले उनके क्षेत्र से जुड़े हैं और उन्हें धार्मिक स्थलों को की छवि से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता बिपिन कैन्थोला ने कहा कि केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह को स्वर्ण मंडित करने के मामले में कांग्रेस घृणित राजनीति कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के निर्देश पर मनोज रावत के नेतृत्व में केदारनाथ गए दल ने प्रेस कांफ्रेंस में जो आरोप लगाए वो भ्रामक व तथ्यहीन हैं। कांग्रेस नेताओं ने अब तक जितने भी आरोप लगाए हैं, उनका श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा बिंदुवार जवाब दे दिया गया है। इसके बावजूद कांग्रेस नेता बेवजह के आरोप-प्रत्यारोप लगा कर केदारनाथ धाम की छवि को धूमिल करने का दुष्प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह को स्वर्ण मंडित करने को लेकर तमाम आरोप लगा रहे हैं। मगर उनके द्वारा अभी तक इसका कोई भी दस्तावेज अथवा प्रमाण जनता के सामने नहीं रखा गया है। इसके विपरीत केदारनाथ आपदा के समय आपदा के लिए आयी राहत राशि में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किस प्रकार से बंदरबांट की, यह जग जाहिर है। आपदा पीड़ितों के हिस्से की धनराशि को अनाप-शनाप तरीके से खर्च किया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के पूर्व विधायक मनोज रावत को तत्कालीन हरीश रावत सरकार द्वारा “हिटो-केदार” अभियान के नाम पर लाखों रूपये दिए गए। आपदा के पैंसे को ट्रैकिंग के नाम पर लुटा दिया गया। गढ़वाल मंडल विकास निगम के माध्यम से माऊंटेनियर्स एंड ट्रैकर्स एसोसियशन (माटा) नाम की एक संस्था को आनन-फानन में ट्रैकिंग अभियान संचालित करने का जिम्मा सौंप दिया गया। माटा संस्था का सोसायटी रजिस्ट्रार के यहां 22 सितंबर, 2016 को पंजीकरण किया गया और उसी माह इस संस्था को ट्रैकिंग अभियान संचालित करने की अनुमति दे गयी।
इस संस्था के अध्यक्ष कांग्रेस नेता मनोज रावत थे। इस प्रक्रिया में नियम-कानूनों का किसी प्रकार से पालन नहीं किया गया। इस संस्था के पास किसी प्रकार का अनुभव नहीं था। ना ही संस्था के चयन के लिए कोई प्रक्रिया अपनायी गयी। मनोज रावत की संस्था को किस आधार पर यह कार्य दिया गया, इसमें प्रतिभागियों का चयन किसने किया और वो कौन थे, ये कहीं स्पष्ट नहीं है।
भाजपा नेता हार्दिक पटेल ने फेसबुक पर अभद्र टिप्पणियों के चलते बंद किया कमेंट बॉक्स..
देश-विदेश: कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हार्दिक पटेल को फेसबुक पर अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। इसके कारण उन्हें अपना कमेंट बॉक्स बंद करना पड़ा। गुजरात के चर्चित पाटीदार आरक्षण आंदोलन से उभरे नेता हार्दिक पटेल को लगातार धमकियां भी मिल रही थीं, इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई गई है। आपको बता दे कि हार्दिक पटेल ने मंगलवार को फेसबुक पोस्ट लिखकर लोगों से भाजपा में शामिल होने की अपील की थी। यह गुजरात भाजपा के सदस्यता अभियान के सिलसिले में की गई थी। इसमें सोशल मीडिया यूजर्स से अपील की थी कि वे मिस्ड कॉल के जरिए भाजपा की सदस्यता लें। अपील के पोस्टर में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह व भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ हार्दिक पटेल की तस्वीर थी।
150 से ज्यादा अभ्रद टिप्पणियां की गईं..
हार्दिक की यह अपील पोस्ट होते ही उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियों का सिलसिला शुरू हो गया। लोग उनके कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने पर सवाल उठाने लगे। पोस्ट के नीचे 150 से ज्यादा अभद्र टिप्पणियां की गईं। यह देखकर पटेल को अपना कमेंट बॉक्स बंद करना पड़ा।
गुजरात के बड़े पाटीदार नेता के रूप में उभरे 28 वर्षीय हार्दिक पटेल ने 2 जून को भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके पूर्व उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व व नीतियों को लेकर सवाल खड़े किए थे। इस मौके पर हार्दिक ने भाजपा की टोपी धारण की थी। गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल व वरिष्ठ नेता नितिन पटेल ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई थी। इस साल दिसंबर में गुजरात विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे देखते हुए हार्दिक का पार्टी में शामिल होना भाजपा के लिए लाभकारी तो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना गया। अब देखना होगा कि भाजपा आगामी चुनाव में उन्हें कितनी अहमियत देती है
हरक सिंह और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के बीच जुबानी जंग..
उत्तराखंड: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बीच चल रही जुबानी जंग में एक बार फिर शोले भड़क उठे हैं। हरक सिंह ने बीते दिनों आए त्रिवेंद्र के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जिनके घर कांच के होते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। हरक सिंह, त्रिवेंद्र की टिप्पणी पर सीधे कुछ कहने से परहेज करते नजर आए। इस दौरान उन्होंने कहा कि जिसका जितना ज्ञान होता है वो उसी तरह की बातें करता है। हरक ने कहा कि त्रिवेंद्र उनसे बड़े हैं, उनकी बातों को वो आशीर्वाद के तौर पर ही लेते हैं।
हरक का कहना हैं कि उन्होंने कभी किसी के लिए व्यक्तिगत या राजनैतिक रूप से इस तरह की टिप्पणी नहीं की। हरीश रावत के साथ उनकी खूब लड़ाई रही, पर उन्होंने भी कभी बिलो दि बेल्ट रह कर काम नहीं किया। राजनेता क्या सामान्य व्यक्ति भी इस तरह की टिप्पणी नहीं करता। साथ ही यह भी कहा कि जिनके घर कांच के होते हैं उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। अंत में हरक बोले कि उन्हें अब इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है, बाकी जिसे जो कहना है, कहता रहे। उत्तराखंड की जनता सब कुछ जानती है।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि ढेंचा बीज के संदर्भ में मेरी टिप्पणी को त्रिवेंद्र रावत ने गलत तरीके से लिया। मैंने तो त्रिवेंद्र की भलाई में यह बात कही थी। हरीश रावत के कहने पर यदि त्रिवेंद्र के खिलाफ तब मुकदमा दर्ज हो जाता तो राज्य में राजनैतिक बदले की गलत परंपरा कायम हो जाती। लेकिन पता नहीं क्यों यह बात त्रिवेंद्र को बुरी लग गई।
पार्टी नेतृत्व द्वारा इस विवाद का संज्ञान लिए जाने के सवाल पर हरक ने कहा कि उन्होंने किसी के सामने किसी की शिकायत नहीं की है। पार्टी सारी बातों को देख ही रही है। विदित है कि शुक्रवार को देहरादून में भाजपा के चुनाव प्रभारी भी मौजूद थे, माना जा रहा है कि पार्टी ने हरक सिंह को इस विषय पर धैर्य बरतने की सलाह दी है। बावजूद इसके भी उन्होंने सधे हुए शब्दों में अपनी बात सार्वजनिक तौर पर रख ही दी है।
विधानसभा चुनाव से पहले BJP के लिए रेड सिग्नल, शुरू हुई गुटबाज़ी..
उत्तराखंड: देहरादून जिले में रायपुर के भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ के मामले के बहाने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में मंत्री और विधायक बने नेताओं ने ठीक विधानसभा चुनाव के वक्त एकजुटता का सूत्र तलाश लिया है। काऊ के समर्थन में खड़े होने वाले नेताओं में अब एक नाम कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का भी जुड़ गया है।
सियासी जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं पर पार्टी कार्यकर्ताओं की घेराबंदी बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए अब ये मंत्री और विधायक कड़ियों की तरह जुड़ रहे हैं ताकि पार्टी में अपने प्रभाव को बनाए रख सकें। पिछले करीब साढ़े चार साल में महाराज पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ भाजपा में आए विधायकों से फासला बनाकर चलते रहे हैं। लेकिन बुधवार को विधायक काऊ के समर्थन में खुलकर बयान दिया।
काऊ प्रकरण पर महाराज ने बेशक यह कहा कि ये कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मैं काऊ के साथ हूं और उनकी बात पार्टी फोरम पर रखूंगा।उन्होंने कहा कि हम सब में समन्वय की भावना है। बातचीत से हर समस्या का हल है। पिछले दिनों ही कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने भी काऊ के समर्थन में खुलकर बयान दागे थे।
भाजपा में अब गुटबाजी सतह पर दिखने लगी है। रायपुर में भाजपा विधायक काऊ के साथ पार्टी के नेता की तकरार के बाद दोनों ओर से केंद्रीय नेतृत्व को एक-दूसरे के खिलाफ शिकायतें की गईं। दिल्ली से लौटकर काऊ ने यह कहकर हलचल पैदा कर दी कि उनकी समस्या का निदान नहीं हुआ तो वह पार्टी से बाहर बने संगठन में ये बात रखेंगे।
आपको बता दे कि काऊ का इशारा उनके साथ भाजपा में आए सभी विधायकों व पूर्व विधायकों की ओर है जो अब पार्टी नेतृत्व को भी यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अच्छे व बुरे वक्त में वे एक-दूसरे के साथ मजबूती से खड़े हैं। उनकी यह एकजुटता पार्टी नेताओं को असहज कर रही है।
BJP ने पांच राज्यों में नियुक्त किए प्रभारी..
उत्तराखंड: भारतीय जनता पार्टी अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गई है। बुधवार को बीजेपी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान किया। पार्टी ने केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी को आगामी चुनाव के लिए उत्तराखंड का प्रभारी नियुक्त किया है वहीं, लोकसभा सांसद लॉकेट चटर्जी और सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी है। उत्तराखंड के अलावा भाजपा ने अन्य चार चुनावी राज्यों के लिए भी अपने प्रभारियों के नाम का ऐलान कर दिया है।
देश की राजनीति में सबसे अहम रोल निभाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाया गया है जबकि सह प्रभारी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर होंगे। बीजेपी ने पंजाब विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ-साथ हरदीप पुरी, मीनाक्षी लेखी, विनोद चावड़ा के हाथों सौंपी है। पार्टी ने इस सभी को पंजाब चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है।
इसके अलावा गोवा में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके लिए बीजेपी ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कंधों पर पार्टी के जीत की जिम्मेदारी रखी है। वहीं, मणिपुर के विधानसभा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी बनाया गया है।
आपको बता दे कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भारतीय जनता पार्टी ने पांचों राज्यों में अपने प्रभारी नियुक्त कर चुनावी बिगुल बजा दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगल साल मार्च से अप्रैल के बीच में इन राज्यों में मतदान की तारीख का ऐलान हो सकता है।
चुनाव के मद्देनजर बीजेपी-कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने भी कमर कस ली है, दिलचस्प बात ये है कि इनमें से चार राज्यों में भाजपा की सरकार है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह चुनाव मिशन 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।